बुधवार, 25 नवंबर 2020

देवोत्थान एकादशी: पांच माह बाद जागे देव, शुरू हुए मांगलिक कार्य

ग्वालियर l आज दोपहर बाद से देवोत्थान एकादशी मनाए जाने का सिलसिला शुरू हो गया है जो रात तक जारी रहेगा।देवोत्थान एकादशी जिसे देव दीपावली देव उठनी या विष्णु प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है पर 59 वर्षों बाद शनि-गुरु का संयोग भी बना है। शाम: 5.15 से 5.40 इससे लोग जीवन जीने की तक (गोधूलि बेला) कला सीखेंगे और आत्मनिर्भर शामः 6.40 से रात भी होंगे। देव जागने के साथ ही 8.25 तक (अमृत काल) आज से विवाह आदि मंगल कार्य भी शुरू हो जाएंगे। मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल हरिश्यान एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह के शयन पर जाते हैं, लेकिन इस वर्ष अश्विन अधिकमास के चलते देवशयन काल पांच माह का रहा। आज तमाम हिंदू सनातन धर्मावलंबियों ने ब्रह्म मुहूर्त की शुभबेला में मंगल वाद्य व वैदिक मंत्रोच्चार-'उत्तिष्ठो तिष्ठ गोविंदम उतिष्ठ गरुणध्वज, उतिष्ठ कमलाकांत त्रैलोक्यम मंगल कुरु' के साथ भगवान विष्णु को शयन से उठाया और इसी के साथ मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो गई। गोधलिबेला व प्रदोष बेला में होगा तुलसी विवाह
आज गोधूलि बेला व प्रदोष बेला में हरि की पटरानी तुलसी का विवाह होगा। यह सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला होगा। तुलसी वैष्णव संप्रदाय की परम आराध्या व प्रकृति स्वरूपा भी मानी जाती हैं। ठाकुरजी के भोग में जब तक तुलसी दल नहीं डाला जाता वह अधूरा ही माना जाता है। उतनी एकादशी पर आज शाम भगवान सालिगराम श्री नारायणजी के विग्रह केसाथ धार्मिक मान्यता व परंपरानुसार विधिवित तुलसी जी का विवाह किया जाएगा। इसके लिए तुलसी के गमले को रंगोली, आंवला सजाकर सुहाग की वस्तुएं चढ़ाईव दान की जाती हैं। चुनरी भी ओढ़ाईजाती है। विभिन्न नैवेध अर्पित किए जाते इसके बाद मंगल गीतों व मंत्रों के साथ सालिगराम की मूर्ति को लेकर सात परिक्रमा के साथ विवाह संपन्न होता है। गोधूलि बेला में ओम नमो भगवते वासुदेवाय महामंत्र का जप करने व दीपदान का विशेष महत्व है।

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