रविवार, 25 मई 2025

पुलिस पर हमलों की वजह है 'पुलिस स्टेट

 

मप्र के गुना जिले में एक पुलिस इंस्पेक्टर पर त्रिशूल से हक्षले की खबर हालांकि बहुत बडी नहीं है लेकिन इस हमले के पीछे की वजह बहुत बडी है. पुलिस पर बढते हमलों की पडताल से पता चलता है कि यह सब सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा सूबे को पुलिस स्टेट में बदलने का नतीजा है.

सबसे पहले आपको पुलिस स्टेट के बारे में जानना होगा क्योंकि ये बहुत प्रचलित शब्द नहीं है.दरअसल पुलिस स्टेट  एक ऐसी शासन व्यवस्था को कहते हैं जिसमें सरकार अत्यधिक नियंत्रण और निगरानी के माध्यम से नागरिकों की स्वतंत्रता को सीमित करती है। इसमें पुलिस या अन्य सुरक्षा बलों को व्यापक शक्तियाँ दी जाती हैं, जो अक्सर नागरिकों के मौलिक अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता, और गतिविधियों की स्वतंत्रता, का उल्लंघन करती हैं।

पुलिस स्टेट में सरकार  नागरिकों की गतिविधियों और संचार, और निजी जीवन पर कड़ी नजर रखती है,  फोन टैपिंग, इंटरनेट मॉनिटरिंग, या सीसीटीवी के व्यापक उपयोग के माध्यम से स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं.अभिव्यक्ति की यानि प्रेस, और सभा की स्वतंत्रता सीमित होती है। असहमति या विरोध को दबाने के लिए सख्त कानून लागू किए जाते हैं। पुलिस को बिना उचित कारण के गिरफ्तारी, पूछताछ, या संपत्ति जब्त करने की शक्ति दी जा सकती है। पुलिस स्टेट में भय का माहौल बनता है.नागरिकों में सरकार या पुलिस के डर से आत्म-संयम  बढ़ता है, जिससे लोग अपनी राय व्यक्त करने से बचते हैं। जब पुलिस ही सब कुछ हो जाती है तब न्यायिक स्वतंत्रता का अभाव नजर आने लगता है, और कानून का शासन  कमजोर होता है। सरकार प्रचार के माध्यम से अपनी नीतियों को उचित ठहराती है और असहमति को देशद्रोह या खतरे के रूप में चित्रित करती है।

भारत में पुलिस स्टेट बनाने की लत हाल के वर्षों में तेजी से बढी है. अतीत में  नाज़ी जर्मनी, सोवियत संघ (स्टालिन के शासनकाल में), और कुछ आधुनिक अधिनायकवादी शासनों को पुलिस स्टेट के उदाहरण के रूप में देखा जाता है, जहाँ नागरिकों की स्वतंत्रता को कठोर नियंत्रण के तहत दबाया गया।भारत में संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है, और लोकतांत्रिक ढांचा पुलिस स्टेट की विशेषताओं से बचने की कोशिश करता है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में, जैसे आपातकाल (1975-1977) के दौरान, या कुछ विवादास्पद कानूनों (जैसे UAPA) के दुरुपयोग के मामलों में, पुलिस स्टेट जैसे लक्षण साफ नजर आ रहे हैं.

मप्र सहित डबल इंजन की सरकारें पुलिस स्टेट बनने और बनाने की ओर अग्रसर हैं. फर्जी मुठभेडें, बुलडोजरों का बेजा इस्तेमाल, बुद्धजीवियों की गिरफ्तारी, उनके ऊपर मुकदमे लादने की ताजा घटनाओं से इस बात की पुष्टि हो रही है कि देश पुलिस स्टेट की तरफ बढ रहा है. प्रो अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी, नेहा राठौड और कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय पर मुककदमें, महाराष्ट्र में एक स्टेंडिग कमेडियन के स्टूडियो में तोडफोड और सत्ता प्रतिषपर उंगली उठाने वाले लोगों को अर्बन नक्सली कहकर उन्हे पुलिस प्रताडना का शिकार बनाना पुलिस स्टेट को बढावा देना ही है.

पुलिस मजबूरी में पुलिस स्टेट बनने में सरकार का सहयोग कर रही है या पुलिस को ऐसा करने से लाभ है, ये कहना कठिन है. लेकिन एक बात तय है कि पुलिस स्टेट में पुलिस का इकबाल समाप्त हो रहा है. उसका देशभक्ति, जनसेवा का संकल्प अकारथ जा रहा है. जनता पुलिस पर भरोसा करने के बजाय पुलिस से नफरत करने लगी है. पुलिस पर बढते हमले चिंताजनक हैं.

इस मुद्दे पर मेरी अनेक पुलिस अफसरों से बात हुई. अनेक सेवानिवृत और मौजूदा आईपीएस अफसर पुलिस स्टेट की अवधारणा को अलोकतांत्रिक मानते हैं. नाम न देने के आग्रह के साथ इन अफसरों का कहना है कि सत्ता प्रतिष्ठान ने जबसे नियुक्ति और पदोन्नति प्रक्रिया का राजनीतिकरण किया है तब से हालात और बिगड गए हैं.पुलिस जनता के बजाय नेताओं की सेवा करने के लिए अभिशप्त हो चुकी है. जो लोग नेताओं की कठपुतली बनने से इंकार करते हैं उन्हें फील्ड से हटाकर बाबू बना दिया जाता है.मौजूदा समय मे इस मुद्दे पर तत्काल समीक्षा की सख्त जरूरत है.मैने शुरू में जिस घटना का जिक्र किया उसके पीछे भी जनाक्रोश ही प्रमुख वजह है.

 मप्र  में गुना जिले के मधुसूदनगढ़ में  अतिक्रमण हटाने पहुंचे प्रशासन और पुलिस पर अतिक्रमणकारियों ने हमला कर दिया। इस दौरान इन्होंने जामनेर थाना प्रभारी को त्रिशूल मार दिया। मधुसूदनगढ़ में भोपाल रोड पर बस स्टैंड की जमीन से अतिक्रमण हटाने गए प्रशासन और पुलिस की टीम पर हमला हुआ। करीब 30 वर्ष पुराने अतिक्रमण को हटाने अमला पहुंचा था। इस दौरान जामनेर थाना प्रभारी सुरेश सिंह कुशवाहा पर त्रिशूल से हमला किया गया, जिससे उनके हाथ की हथेली कट गई और चोट आई है।अब अतिक्रमण कराया किसी और ने, किया किसी और ने और पिटी पुलिस.

@ राकेश अचल

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