रविवार, 22 जून 2025

क्या सरकारें खुद न्यायाधीश बन सकती है ?

 


मै लंबे समय से जो कहता आया हूँ कि सरकारें न्यायपालिका का काम नहीं कर सकतीं. यही बात अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने  भी यही बात हाल ही में कही कि सरकारें कभी भी न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकतीं। इस सप्ताह की शुरुआत में भारत में सरकारी प्राधिकारियों द्वारा निजी संपत्तियों के प्रतिशोधात्मक विध्वंस  के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा कि कार्यपालिका,  न्यायाधीश, जूरी  और जल्लाद नहीं बन सकती।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने कहा कि हाल ही में, कोर्ट ने संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में न्यायालय ने राज्य अधिकारियों द्वारा अभियुक्तों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त करने के निर्णयों की जांच की, जो कि उन्हें न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही दंड के रूप में दिए गए थे। यहां, न्यायालय ने माना कि इस तरह के मनमाने विध्वंस, जो कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हैं, कानून के शासन और अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं। कार्यपालिका एक साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले ने इस बात की पुष्टि की है कि संवैधानिक गारंटियों को न केवल नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से कमजोर लोगों की गरिमा, सुरक्षा और भौतिक कल्याण को भी बनाए रखना चाहिए।

न्यायमूर्ति गवई, जिन्होंने पिछले साल फैसला सुनाने वाली पीठ का नेतृत्व किया था, 18 जून को मिलान अपीलीय न्यायालय में “देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में संविधान की भूमिका: भारतीय संविधान के 75 वर्षों पर विचार” विषय पर बोल रहे थे।

सीजेआई गवई ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत द्वारा हासिल किए गए सामाजिक-आर्थिक न्याय ने भारतीय संविधान के आलोचकों को गलत साबित कर दिया है। उन्होंने संवैधानिक लक्ष्यों को मजबूत करने में न्यायपालिका द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डाला।

सीजेआई गवई ने कहा कि मैं कह सकता हूं कि संसद और न्यायपालिका दोनों ने 21वीं सदी में सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के दायरे का विस्तार किया है । उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान ने आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास किया है.

आपको याद होगा कि पिछले कुछ वर्षों में देश की तमाम डबल इंजिन की सरकारों ने बुलडोजर संहिता लागू कर  हत्या, बलात्कार, अतिक्रमण के आरोपियों के खिलाफ अंधाधुंध तरीके से बुलडोजर का इस्तेमाल कर एक वर्ग विशेष को प्रताडित किया था. बुलडोजर संहिता लागू करने में उप्र की योगी सरकार सबसे आगे रही. बाद में मप्र, राजस्थान, उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया थ. पीडितों ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी. कुछ राज्य सरकारों ने माननीय अदालत के निर्देश के बावजूद बुलडोजर  का इस्तेमाल बंद नहीं किया था. अब आप उम्मीद कर सकते हैं कि डबल इंजन की सरकारों  को सदबुद्धि आएगी और सरकारें अर्थात न्यायाधीश बनने की कुचेष्टा नहीं करेगी.

उल्लेखनीय है कि 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाइयों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं और दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:किसी व्यक्ति का घर केवल इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता क्योंकि वह किसी अपराध का आरोपी या दोषी है।बुलडोजर कार्रवाई से पहले उचित नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें कम से कम 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।कार्रवाई कानून के शासन और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए। बिना सुनवाई के किसी को दंडित करना असंवैधानिक है।अगर अवैध निर्माण सिद्ध होता है, तो केवल उसी हिस्से को हटाया जा सकता है, और पूरी संपत्ति को ध्वस्त करना अंतिम उपाय होना चाहिए।गलत कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को मुआवजा देना होगा और उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका (प्रशासन) यह तय नहीं कर सकती कि कोई दोषी है या नहीं; यह न्यायपालिका का अधिकार है। बुलडोजर कार्रवाइयाँ सामूहिक दंड के समान हैं, जो संविधान के खिलाफ है।सामाजिक प्रभाव: कुछ लोग बुलडोजर कार्रवाइयों को अपराध के खिलाफ कठोर कदम मानते हैं और इसे समर्थन देते हैं, जैसा कि एक सर्वे में 54% लोगों ने उत्तर प्रदेश में इसे माफिया के खिलाफ प्रभावी बताया। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह कार्रवाइयाँ अक्सर पक्षपातपूर्ण होती हैं और अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाती हैं।

@ राकेश अचल

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