रविवार, 29 जून 2025

मप्र अजब है और यहाँ की सरकार भी

हमारे यहां कहावत है कि कोई अपनी जंघा खुद नहीं दिखाता या कोई अपनी मां को भट्टी नहीं कहता. लेकिन मप्र के संदर्भ में ये दोनों कहावतें लागू नहीं होतीं. ये बात हाल की कुछ घटनाओं से प्रमाणित होती है.

मप्र से केंद्र में कृषि मंत्री हैं श्री शिवराज सिंह चौहान. दो दशक तक मुख्यमंत्री भी रहे किंतु आज तक संविधान को नहीं समझ पाए. और एक संवैधानिक पद पर होते हुए संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की संघ के दत्तात्रय होंसबोले की मांग का समर्थन कर बैठे. संघ में अपना महत्व जो बढाना है, अन्यथा उनकी हरकत संविधान की अवमानना है. शिवराज ने मुख्यमंत्री रहते दो दशक में ऐसी मांग नही की.

अब आइये मप्र में सुशासन पर. मप्र में सुशासन की स्थिति ये है कि यहाँ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के कारकेट में शामिल 19 वाहनों में पेट्रोल के बजाय पानी भर दिया जाता है, और किसी को शर्म नही आती. बाद में विभागीय मंत्री पूरे प्रदेश के पेट्रोल पंपो की जांच के आदेश दे देते हैं. आप कल्पना कर सकते हैं कि मप्र में मिलावट का स्तर कहाँ से कहाँ पहुंच गया है?

इसी मप्र में देवास इंदौर हाईवे पर 36 घंटे का जाम तगा रहता है, 3 लोग  इलाज न मिने से मर जाते हैं, लेकिन कोई जिम्मेदारी लैने को तैयार नहीं होता.किसी को शर्म नहीं आती, अन्यथा कोई तो इस घोर लापरवाही क लिए क्षमा मांगता. मप्र में ही राजधानी भोपाल में लोनिवि के इजीनियर 90डिग्री का आर ओ वी बना देते है और  सरकार बेशर्मी से कहती है नया पुल बनवा देंगे. मामला उजागर होने के एक पखवाडे बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को दोषियों पर कार्रवाई की सुध आती है.

मप्र की सरकार इस समय विकास के नाम पर केवल धाम बनाने में जुट जाती है. मुख्यमंत्री अगडे, पिछडे सभी को खुश करने के लिए प्रतिदिन नये धाम बनाने की घोषणाएं कर रही है. मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अभी तक ये यकीन नहीं कर पाए कि वे स्वतंत्र मुख्यमंत्री हैं. उनका पूरा समय सिंधिया, तोमर, चौहान और कैलास विजयवर्गीय को साधने में ही खर्च हो रहा है.

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश पर कर्ज का स्तर चिंताजनक है। 2025 तक, राज्य पर 4.10 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बताया गया है, और 18 फरवरी 2025 को 5,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज लेने की योजना है।सीएजी की रिपोर्ट में कर्ज की स्थिति पर चिंता जताई गई है, जिसमें कर्ज चुकाने के लिए और कर्ज लेने की प्रवृत्ति उजागर हुई है।2021-22 में कर्ज 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक था, और ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों के 10% से अधिक रहा।गरीबी और सामाजिक सूचकांक:2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश को सामाजिक-आर्थिक विकास में अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ा बताया गया। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात 31.65% था, जो राष्ट्रीय औसत 21.92% से अधिक है। और तो और शिशु मृत्यु दर में मप्र पहले स्थान  पर है. यहाँ एक हजार में से 40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते. क्योंकि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में शिशुरोग विशेषज्ञों के 70  फीसदी पद खाली है.

मेरे पांच दशक के कार्यानुभव में ऐसा लचर मुख्यमंत्री कोई दूसरा नहीं रहा. लेकिन ये राजनीती का नया दौर है. इसमें सब कुछ चलता है.

@  राकेश अचल

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