सोमवार, 30 जून 2025

हिंदी,चीनी भाई -भाई तो हिंदी, मराठी भाई- भाई क्यों नहीं

हिंदी चीनी भाई भाई" हो गये थे लेकिन आज 65साल बाद भी न  मराठी और न तमिल, हिदी भाई -भाई हो पाए. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हिंदी का विरोध आज भी न सिर्फ जारी है बल्कि इस पर बाकायदा, बेमुलाहिजा सियासत भी हो रही है.हिंदी, चीनी भाई-भाई का  नारा 1950 के दशक में भारत और चीन के बीच मजबूत दोस्ती और सहयोग के संबंधों को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इस नारे का मतलब था कि दोनों देश, भारत और चीन, एक दूसरे के साथ भाईचारे और सद्भावना के साथ रहेंगे। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, यह नारा अपनी प्रासंगिकता खो बैठा। 

महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले ने राज्य की राजनीति को तेज कर दिया है। बाला साहेब ठाकरे के सामने ही अलग हो गए राज और उद्दव ठाकरे इस मुद्दे पर एक साथ होकर महाराष्ट्र की भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। दोनों ही नेताओं से अपनी-अपनी पार्टियों का नेतृत्व करते हुए फड़णवीस सरकार के खिलाफ विरोध मार्च निकाला है। इस प्रदर्शन पर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नितेश राणे ने विपक्ष पर निशाना साधा है।

नितेश राणे ने महाराष्ट्र् में मराठी भाषा की अनिवार्यता और उसकी जगह पर किसी के न आने को लेकर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, "हमने इतनी जोर से कहा है.. इतनी बार चिल्ला है के महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य नहीं है.. अब क्या हम इस बात को अपनी छाती पर लिखकर घूमना चालू कर दें? 

ठाकरे बंधुओं पर निशाना साधते हुए राणे ने कहा कि यह लोग केवल और केवल भाषा के नाम पर हिंदुओं को विभाजित करना चाहते हैं। मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे परिवार पर निशाना साधते हुए कहा, "जावेद अख्तर, आमिर खान और राहुल गांधी हिंदी में बात करते हैं उनके हिंदी थोपने से किसी को कोई परेशानी नहीं है? उन्हें मराठी बोलने के लिए कहिए। उन्हें (ठाकरे बंधुओं) को कहिए कि वे मोहम्मद अली रोड या बेहरामपाड़ा से अपना विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश करें। अगर उन्हें वाकई मराठी से प्यार है, तो कल से अजान मराठी में पढ़वाएं.. तब हम मानेंगे कि उन्हें मराठी भाषा का सम्मान है।"

 दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को लेकर यूटर्न लेने उद्धव ठाकरे ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठी मानुष की शक्ति के आगे हार गई है।महाराष्ट्र सरकार के हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने के बाद शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे ने फडणवीस सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने रविवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के स्कूलों में पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में तीन भाषा नीति के तहत हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस ले लिया है। मतलब सरकार ने मराठी मानुष के सामने हार मान ली है। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के साथ में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने वाले उनके चचेरे भाई और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी इस सफलता का श्रेय मराठी मानुष को ही दिया।

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे बंधुओं के राज्य में हिंदी अनिवार्य करने के विरोध में आने को लेकर तंज कसा है। मंत्री ने कहा कि राहुल गांधी, जावेद अख्तर और आमिर खाने के हिंदी थोपने से किसी को दिक्कत क्यों नहीं है?

 

तमिलनाडु में भी हिंदी का सनातन विरोध है. तमिलनाडु के हिंदी विरोधी तर्क दे रहे हैं कि कर्नाटक में हिंदी अनिवार्य किए जाने से वहाँ हाईस्कूल परीक्षा में 90हजार बच्चे फेल हो गये.तमिलनाडु में हिंदी का विरोध 1937  से अनवरत चल रहा है.

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, तमिलनाडु में हिंदी विरोध फिर से उभरा है, मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले के कारण, जिसे डीएमके सरकार हिंदी थोपने की कोशिश मानती है।डीएमके नेता और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि नयी शिक्षा नीति के जरिए हिंदी और संस्कृत को थोपा जा रहा है, जो तमिल भाषा और संस्कृति के लिए खतरा है।

आपको याद होगा कि फरवरी 2025 में, चेन्नई में रेलवे स्टेशनों और डाकघरों के साइनबोर्ड पर हिंदी शब्दों पर कालिख पोतने की घटनाएं हुईं।अयप्पक्कम हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में लोगों ने रंगोली बनाकर "तमिल का स्वागत, हिंदी थोपना बंद करो" का संदेश दिया। डीएमके और अन्य द्रविड़ दल हिंदी विरोध को तमिल पहचान और स्वायत्तता से जोड़ते हैं।स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने चेतावनी दी है कि हिंदी का बढ़ता प्रभाव तमिल भाषा को नष्ट कर सकता है, जैसा कि उत्तर भारत में अवधी और भोजपुरी जैसी भाषाओं के साथ हुआ।तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी विरोध को द्रविड़ आंदोलन की विरासत के रूप में देखा जाता है, जिसने डीएमके और एआईएडीएमके को सत्ता में लाने में मदद की। 

 तमिलनाडु के लोग तमिल भाषा को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। हिंदी को अनिवार्य बनाने को तमिल संस्कृति पर हमले के रूप में देखा जाता है। तमिलनाडु में तमिल और अंग्रेजी को व्यापार और शिक्षा के लिए पर्याप्त माना जाता है। हिंदी सीखने को आर्थिक या करियर के लिए आवश्यक नहीं समझा जाता। हिंदी विरोध के साथ-साथ, परिसीमन को लेकर भी चिंता है, क्योंकि इससे दक्षिण भारत के राज्यों की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उनकी राजनीतिक आवाज कमजोर हो सकती है।

मजे की बात ये है कि विरोध के बावजूद, तमिलनाडु में हिंदी सीखने की रुचि बढ़ रही है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अनुसार, 2022 में 2.86 लाख लोग हिंदी की परीक्षा में शामिल हुए, जिनमें 80 फीसदी स्कूली छात्र थे।तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति और हिंदी सीखने की बढ़ती मांग से पता चलता है कि आम लोगों में हिंदी के प्रति विरोध उतना तीव्र नहीं है, जितना राजनीतिक स्तर पर दिखाया जाता है।

@  राकेश अचल

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