शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

सीना तान कर कहो-"हम सब चोर हैं "

 

 देश में वोट चोरी को लेकर बवाल मचा है. मामला देश की सबसे बडी अदालत तक जा पहुंचा.बडी अदालत ने बडप्पन दिखाया और चोरी जैसे घटिया अपराध के लिए अपना कीमती वक्त जाया किया, वोट चोरी रोकने के लिए कुछ निर्देश दिए, वो भी वोट चोरी के आरोपी केंचुआ को.

केंचुआ अर्थात केंद्रीय चुनाव आयोग. सुविधा के लिए हम सब इसे केंचुआ कहते हैं ठीक वैसे ही जैसे इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट को ईडी कहते हैं. वैसे नाम बिगाडने में हम भारतीयों का कोई मुकाबला नहीं. हम देवी प्रसाद त्रिपाठी को डीपीटी तो जुल्फकार अली भुट्टो को जुल्फी कहने से नहीं चूके तो केंचुआ किस खेत की मूली है.

बात चोरी की चल रही है. जिसके आसपास जो होता है वो उसे ही चुराता है. केंचुआ के आसपस चूंकि वोटर लिस्ट होती है सो उसने वोट चुराना शुरु कर दिया. केंचुआ ने चोरी भी की और सीनाजोरी भी लेकिन अपने लिए नहीं. जो किया परहित में किया, क्योंकि केंचुआ ने कहीं पढ- सुन लिया था कि -'परहित सरस धरम नहिं भाई '. बेचारा केंचुआ सत्तारुढ दल के लिए वोट चोरी करते हुए रंगे हाथ पकडा गया.

बहरहाल मै चोरी पर लौटते हैं. चोरी हमारा सनातन पेशा है. राष्ट्रधर्म है. त्रेता में रावण ने सीता को चोरी किया, द्वापर में भगवान कृष्ण निगरानीशुदा माखन चोर बने. उन्हें किसी ने चितचोर भी कहा, लेकिन उन्होने कभी बुरा नहीं माना. उस जमाने में सुप्रीमकोर्ट जैसा कुछ था नहीं सो अपील ज्यादा से ज्यादा मां-बाप तक हो पाती थी. हमारे कान्हा पर तो नींद चुराने, चैन चुराने और बंशी पर डाका डालने तक के इल्जाम लगे.

हमारे यहाँ कलियुग में नारे, घोषणापत्र अक्सर चोरी हो जाते हैं. साहित्य में चोरी जग जाहिर है. आइडिया चोरी भी आम बात है. चोरी रोकने के लिए पुलिस बनी, कानून बने अदालतें बनीं किंतु चोरी पूर्ववत, यथावत धडल्ले से जारी है. जारी हो भी तो क्यों न हो भला? चोरी तो हमारा राष्ट्रीय चरित्र है, पहचान है. इसी लिए हम गर्व से करते हैं कि-' हम सब चोर हैं. चोरों की दो आंखें बारह हाथ होते हैं. फिल्म वाले कहानियाँ, संगीत और जाने क्या क्या चुरा लेते हैं.

भारत में चोरी नकबजनी, डाका आम बात है. इन्हें अंग्रेजों की आईपीसी नहीं रोक सकी तो सरकार को भारतीय न्याय संहिता रच डाली. आईपीसी और बीएन एस में धाराएं ही उलट-पलट की गई और कुछ नही. हमारा अनुभव है कि हम आकाश को जमीन पर उतार सकते हैं. चूंकि चरित्र है, चोरी पुरषार्थ है, चोरी एस ई एम ई है. चोरी चाल है, चोरी चरित्र है और चोरी पहचान भी है. जो चोरी नहीं कर सकता वो कुछ भी नहीं कर सकता. इसीलिए कहता हूँ कि आदमी का मूल तत्व मरना नहीं चाहिए. आदमी का मूल चरित्र चोरी करने का है. इसे महफूज रखना चाहिए. हमारे यहाँ तभी कहा जाता है कि-चोर चोरी से अलग हो सकता है, हेरा फेरी से नहीं. चोर*चोर मौसेरे भाई या चोरी और सीनाजोरी जैसी कहावतें प्रचलित हैं.

चोर चरितम पर हास्य, व्यंग्य, कहानी, कविता, इतिहास, संस्कृति सब कुछ है. जो चोरी करने से घबडा जाते हैं वे फरियादी बन गये. गवाह बन गये, वकील बन गये. जो कुछ नही बन पाए वे सब नेता बन गए. कोई किसी दल में कोई किसी दल मे समा गया. माँ में जैसे मातृत्व होता है, पिता में पितृत्व होता है पशुओं में पशुत्व होता है ठीक इसी तरह चोरों में चोरत्व होता है. वोट चोर इस समय सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित (बदनाम)है. भारत में हर कोई डाक्टर, वकील, आईएएस, आईपीएस, आईई एस,बनना शायद न चाहे किंतु वोट चोर जरूर बन जाता है. चारा, दवा, सीमेंट, दलिया सब तो चुरा चुके हैं आदमी.

आपको पता है कि हमारे यहाँ चोर अक्सर सफाचट यानि क्लीनशेव होते हैं. चोर अगर गलती से दाढी रख ले तो लोग कह उठते हैं कि चोर की दाढी में तिनका होत है. और इसी तिनके से चोर पकडा भी जाता है.चोर को जब आदमी नहीं पकड पाता तो चोर को पुलिस का कुत्ता इस काम को अंजाम देता है. हम अपना परिचय ये कहकर गर्व से देते हैं कि -'चोरी मेरा काम.,हमारा चोर पुलिस से तो खाक डरेगा, माननीय अदालत से क्या डरेगा. हमारा चोर भगवान के मंदिर से कलश, दानपटी, छत्र, मूर्ति सहित  चुरा लेता है.

चोर अपनी बात कहीं भी रखने के लिए परम स्वतंत्र है. चोर के लिए लालककिला हो नीलाकिला, मधुबनी हो या मुंबई कोई फर्क नहीं पडता. चोर हर महफिल में मिल सकता है. ढोल बजाते, भजन करते, ध्यान मग्न, खिलखिलाते, आंसू बहाते, सेना की वर्दी हो या संत की, कोई फर्क नहीं पडता. आप न वोट चोर पकड सकते हैं न नोट चोर. चोर किसी के हाथ नहीं आता. इसलिए बस जागते रहो. ऊपर वाले से दुआ करते रहो कि देश को चोरों से भी आजादी मिले.

@ राकेश अचल

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