मंगलवार, 26 अगस्त 2025

दिग्विजय सिंह का झूठ भी सच और सच भी झूठ है

 

मप्र के पू्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह उर्फ़ दिग्गी राजा को सुर्खियों में रहना खूब आता है. इन दिनों जब कांग्रेस हाईकमान मप्र में नये सिरे से संगठन सृजन में लगा है तब खुद को हासिये पर जाता देख दिग्विजय सिंह ने पांच साल पुराना विवादों का गडा मुर्दा उखाडकर खुद को सियासी सुर्खी बना लिया. मुद्दा है पांच साल पहले कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा के दत्तक पुत्र बन चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया  और दिग्विजय की भूमिका का.

ग्वालियर के सिंधिया और राघौगढ़ के खीची घराने की अदावत तबकी है जब भारत आजाद नहीं था. तब कांग्रेस भी नहीं थी. राघौगढ में दिग्विजय के पुरखे राज करते थे और ग्वालियर में ज्योतिरादित्य के. चार-पांच पीढी पहले की अदावद मुसलसल जारी है. पुरानी अदावत के दस्तावेजी साक्ष्य हैं लेकिन 1971 से 2025 तक की अदावत का चश्मदीद मैं खुद हूँ. दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया से अदावत निभाई और बाद में उनके असमय निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी अदालत निभा रहे हैं. लेकिन दोनों परिवारों के बीच अदावत के बावजूद गजब की  खानदानी शालीनता है.

आप शायद यकीन न करें और मुमकिन है कि अवसर आने पर खुद दिग्विजय सिंह इसे झूठ और बकवास बता दें लेकिन मैने ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता के निधन के बाद माधवराव सिंधिया की पगडी रस्म में और  माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की पगडी रस्म में दिग्विजय सिंह को वे सब रीति रिवाज़ निभाते देखा है जो अब धीरे - धीरे दुर्लभ हो रहे हैं. इनमें एक राजा का एक महाराजा के सामने मुजरा करना और नेग देना शामिल है.

मैने ये उल्लेख इसलिए किया क्योंकि जब भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2019 के लोकसभा चुनाव में घेरकर हरा दिया गया था तब राघोगढ़ में जश्न मना था. ज्योतिरादित्य चाहते थे कि मप्र से उन्हे पहली प्राथमिकता वाली राज्यसभा सीट से प्रत्याशी बनाया जाए लेकिन दिग्विजय सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ से गठजोड कर ये सीट हडप ली. यदि उनके मन में ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति रत्ती भर भी प्रेम होता तो वे ये सीट लेते ही नहीं. लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने मिलकर सिंधिया से पुरानी अदावत भुना कर ही दम लिया स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद गांधी परिवार में कमलनाथ की धमक कुछ कम हो गई थी. कमलनाथ संजयगांधी के प्रिय थे और माधवराव राजीव गांधी के प्रिय होने की वजह से नाथ के लिए चुनौती थे.

पिछले दिनों एक निजी समारोह में दर्शक दीर्घा में बैठे दिग्विजय सिंह को हाथ पकडकर मंच तक ले जाने की जो शालीनता केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिखाई वो उतनी ही नकली थी जितना कि दिग्विजय सिंह का महाराज पिता-पुत्र के आगे कोर्निश करना. इसी घटना के बाद दिग्विजय सिंह ने अपने ऊपर लगे खलनायकी के दाग धोने का अभियान शुरू कर दिया. पहले कहा कि ज्योतिरादित्य भले ही भाजपा में हैं लेकिन मेरे पुत्रवत हैं. उनके पिता माधवराव सिंधिया और मैने साथ-साथ काम किया है. दिग्विजय सिंह ने इस घटना के बाद पाडकास्ट और दूसरे संचार माध्यमों के जरिए खुद को सिंधिया की बगावत के लिए जिम्मेदार होने से बचाने के लिए कमलनाथ को भी मोहरा बनाया और ये साबित करने की कोशिश की कि सिंधिया को कांग्रेस छोडने के लिए मजबूर करने के लिए जिम्मेदार वे नही बल्कि कमलनाथ हैं. 

दिग्विजय का कौन सा झूठ सच है और कौन सा सच झूठ है ये पकडना भगवान के बूते की भी बात नहीं है, क्योंकि दिग्गी राजा झूठ को सच और सच को झूठ बनाने में महारत   हासिल राजनीतिज्ञ हैं.

इस पूरे प्रसंग में कमलनाथ ने बहुत संजीदगी का परिचय दिया. उन्होंने दिग्विजय सिंह की बातों का न खंडन किया न समर्थन. उन्होने एक तरह से इस मामले से पल्ला झाड लिया क्योंकि उन्हे पता है कि दिग्विजय सिंह पर आंख बंदकर भरोसा करने से उन्हे कितना नफा, नुक्सान हुआ? छिंदवाड़ा की अजेय लोकसभा सीट भी कमलनाथ को दिग्विजय सिंह का साथ निभाने की वजह से गंवाना पडी, अन्यथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तो उन्हे कोई शिकायत थी ही नहीं.प्रधानमंत्री मोदी से उनका सीधा संपर्क था. 2019 में छिंदवाड़ा लोकसभा से जीते अपने बेटे नकुलननाथ को आशीर्वाद दिलाने कमलनाथ खुद प्रधानमंत्री मोदी के आवास पर गए थे.

लब्बोलुआब ये है कि  नये जमाने की कांग्रेस में न दिग्विजय सिंह का कोई भविष्य है और न कमलनाथ का.ज्योतिरादित्य कांग्रेस छोड ही चुके हैं. फिलहाल उनकी घर वापसी की न कोई जरुरत है और न सूरत फिर भी वे घर वापसी के लिए एक न एक खिडकी खुली रखना चाहते हैं.

बदले मंजर में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से कौन नायक है, कौन खलनायक है तथा कौन अधिनायक है ये तय करना टेढी खीर है. भविष्य में कमलनाथ परिवार भले ही कांग्रेस की राजनीति से दूर चला जाए किंतु राघौगढ का खीची राजघराना और ग्वालियर का सिंधिया राजघराना अपनी राजनीतिक अदावत को जारी रखने के लिए कमर कसकर तैयार है. दिग्विजय सिंह का बेटा राजनीति में एक मंत्री बनकर पैर जमा चुका है और ज्योतिरादित्य का बेटा महाआर्यमन क्रिकेट के रास्ते राजनीति में प्रवेश कर चुका है.खानदानी अदावत की नयी कहानियाँ अभी समाप्त होने वाली नहीं हैं.

=अपनी राय से अवगत अवश्य कराएं.)

@ राकेश अचल

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