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मंगलवार, 24 जून 2025

बारह दिन का महाभारत और युद्ध विराम

 

आज की अच्छी खबर ये है कि ईरान, इजराइल और अमेरिका के बीच पिछले बारह दिन से चल रहे लोमहर्षक अमानवीय, अनैतिक और अयाचित युद्ध पर विराम लग गया. गनीमत है कि इस युद्ध विराम की घोषणा चीन, रूस या विश्वगुरु भारत ने नहीं बल्कि खुद हमलावर अमेरिका ने की है. ये मौका था कि भारत अमेरिका से पहले युद्ध विराम की घोषणा कर अमेरिका से अपने अपमान का बदला ले लेता. खैर !

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद ईरान और इजरायल के बीच सीजफायर लागू हो गया है. दोनों देशों के बीच बीते 12 दिनों से जंग चल रही थी, जिसके वजह से दोनों देशों को लगातार जान-माल का नुक़सान हो रहा था. दोनों ही देश एक-दूसरे पर हवाई हमले कर रहे थे. दुनिया इस हिंसक, क्रूर लडाई को तीसरे विश्व युदध के आगाज के रूप में देख रही थी, लेकिन बला टल गई. अब अगले 24 घंटे में युद्ध की औपचारिक तौर पर अंत हो जाएगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के साथ ही दुनियाभर के देश युद्ध को समाप्त करने की अपील कर रहे थे ताकि मध्य पूर्व में शांति बहाल हो सके.



अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान-इजरायल के बीच सीजफायर का ऐलान किया.उन्होंने कहा, मिडिल ईस्ट में शांति बहाल का रास्ता साफ हो गया है.

दोनों देश के बीच बीते 12 दिनों से जंग चल रही थी, लगातार हवाई हमले किए जा रहे थे. जिसकी वजह से स्थिति और तनावपूर्ण होते जा रहा था. इस दौरान दोनों ही पक्षों को जान-माल का नुक़सान हुआ. हालांकि, अब दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति से सीजफायर पर बात बन गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने बताया है कि अगले 24 घंटे में औपचारिक तौर से युद्ध की समाप्ति हो जाएगी.मजे की बात देखिए कि जिस अमेरिका ने ईरान को नेस्तनाबूत करने की कसम खाई थी उसी अमेरिकी प्रशासन ने दोनों पक्षों को शांति के लिए प्रेरित किया. 

 आपको याद होगा कि ईरान ने कतर की राजधानी में स्थित अमेरिकी अल-उदीद बेस (सैन्य ठिकाना) पर सोमवार को मिसाइल हमले कर दागकर पूरी दुनिया को चौंका दिया था. जिसकी वजह से कतर को कुछ घंटों के लिए अपना एयरस्पेस बंद करना पड़ा था. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने अमेरिकी बेस पर हमले के बाद कहा कि ईरान किसी के समक्ष झुकेगा नहीं. ईरान आत्मसमर्पण करने वाला राष्ट्र नहीं है. 

 द्वापर में धरती का सबसे विनाशकारी युद्ध महाभारत 18दिन चला था, लेकिन खाडी का ये युद्ध 12दिन में ही ठिठक गया. एक जमाने में खाडी युद्ध 8साल तक चला था. लेकिन तब के और अब के हालात में बहुत अंतर आ गया है. इस युद्धविराम के बाद अब रूस और यूक्रेन को भी जनहित में युद्ध रोक देना चाहिए. ईरान, इजराइल, अमेरिका, रूस और यूक्रेन से बेहतर तो हम भारत वाले हैं जो हमने तीन दिन में युद विराम स्वीकार कर लिया.हम जानते हैं कि युद्ध लीला कोई रामलीला या रासलीला नहीं है. युद्ध हमेशा से विनाशकारी होता है.

ईरान -इजराइल युद्ध लंबा खिंच सकताश्रथा लेकिन रूस और चीन के साथ ही ईरान के तेवर देख अमेरिका को युद्ध विराम की घोषणा करना पडी, अन्यथा इजराइल और अमेरिका का एजेंडा तो ईरान में तख्ता पलटने का था. खुदा का करम है कि ये एजेंडा पूरा नहीं हुआ. इसके लिए दुनिया के सभी पक्षों का शुक्रिया, उनका भी जिन्होंने ईरान का समर्थन किया, उनका भी जिन्होंने मौन धारण किया. भगवान करे कि अब युद्ध की चिंगारी दुनिया के किसी भी हिस्से में न भडके. इस विनाषक, भयावह, नृशंस युद्ध में बेमौत मारे गये ईरानियों, इजराइलियों और अमरीकियों को ऊपरवाला जन्नत फरमाए. जो जख्मी हुए हैं उन्हे सेहत दे. इस युद्ध से हुए नुकसान की भरपाई आसानी से नहीं होगी. एक लंबा अरसा लगेगा हालात मामूल पर आने में.

बधाई उन ईरानियों को जो अपनी संप्रभुता और स्वाभिमान के लिए लडे. बधाई उन इजराइलियों और अमरीकियों के अलावा दुनिया के उन तमाम लोगों और संगठनों को को जो इस युद्ध के खिलाफ अपनी -अपनी जमीन पर लडे. जो तटस्थ रहे उनका हिसाब भी समय करगा ही.

@ राकेश अचल

सोमवार, 23 जून 2025

अब मिलकर बजाइए जलमध्यडमरू

 चौंकिए मत, ईरान पर अमरीकी हमले के बाद ईरान ने वही किया जिसकी आशंका थी. ईरान ने होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर दिया. ये रास्ता एक तरह का जल मध्य डमरू है. ये डमरू अपनी रचना की वजह से महत्वपूर्ण है. आप कहेंगे कि आखिर ये क्या बला है, तो पहले इसे जान लीजिये.

जलमध्यडमरू, जिसे जलसंधि या जलडमरूमध्य भी कहा जाता है, एक संकीर्ण जलमार्ग है जो दो बड़े जल निकायों (जैसे समुद्र, महासागर या खाड़ी) को जोड़ता है। इसका भौगोलिक आकार अक्सर  शंकर जी के प्रिय डमरू  जैसा होता है,. डमरू मदारी भी बजाते थे. आजकल मदारी नाम की संस्था समाप्त हो चुकी है, लेकिन जल के मध्य डमरु आज भी महत्वपूर्ण है.. इसमें  दो बड़े जल क्षेत्रों के बीच एक तंग हिस्सा होता है, इसलिए इसे जलडमरूमध्य कहा जाता है।यह डमरू कोई बनाता नहीं है बल्कि ये प्राकृतिक रूप से बनता है, जैसे टेक्टोनिक प्लेटों की गति या जल के कटाव से नौकाएँ और जहाज इस मार्ग से एक जलाशय से दूसरे जलाशय तक जा सकते हैं, जो व्यापार और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है।जलसंधियाँ व्यापारिक और सैन्य नौवहन पर नियंत्रण के लिए कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं। उदाहरण के लिए, होर्मुज जलसंधि तेल व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।इसका भू-राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है.इन पर नियंत्रण को लेकर इतिहास में कई बार अंतरराष्ट्रीय विवाद हुए हैं, जैसे जिब्राल्टर जलसंधि पर स्पेन, ब्रिटेन और मोरक्को के बीच तनाव।

ईरान के ऊपर अमेरिका हमले के बाद इस युद्ध के विकराल रूप लेनी की संभावनाए अपने चरम पर है. ईरान ने ऐलान किया है कि वह अमेरिका के इस हमले का जवाब देगा. हालांकि इजराइल ने अमेरिका के हमले के बाद इजराइल पर करीब 30 मिसाइलें दागी हैं. अब ईरान की संसद ने एक ऐसा फैसला किया है, जिसके बाद बिना मिसाइल दागे पूरी दुनिया ही जाएगी.

अगर ईरान इस होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर देगा, तो तेल की कीमते आसमान छू सकती हैं हालांकि बता दें कि ईरानी संसद में तो ये प्रस्ताव पारित हो चुका है, लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला ईरानी सुप्रीम लीडर लेंगे.


आपको बता दें कि दुनिया का 20 फीसदी तेल इसी रास्ते से जाता है. इसमें ज्यादातर एशियाई देशों को जाने वाला तेल हैं. तेल ही नहीं यहां से गैस भी ट्रांस्पोर्ट की जाती है और यह रास्ता ऐशियाई देशों के मध्य पूर्व में निर्यात का रूट भी है. जिसमें भारत, चीन और पाकिस्तान अहम हैं. जाहिर है कि ईरान के इस फैसले के खिलाफ अमेरिका और सख्त कदम उठा सकता है.

एशिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर तेल मध्यपूर्व के देशों से लेता हैं. भारत का करीब 50 फीसदी तेल और गैस होर्मुज की खाड़ी से आता हैं. भारत अपनी एल एन जी का 40 फीसदी कतर और 10 फीसदी दूसरे खाड़ी देशों आयात करता हैं. वहीं भारत 21 फीसद इराक और बाकी दूसरे खाड़ी देशों से आयात करता है.

अगर होर्मुज को ईरान ने बंद किया तो भारत में तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. साथ भारत की ओर से खाड़ी देशों में एक्सपोर्ट होने वाला सामान भी लंबा रास्ता लेकर निर्यात होगा, जो निर्यात की लागत को बढ़ाएगा.लेकिन भारत इस नये युद्ध में अभी तक अपना रुख तय नहीं कर पाया है. भारत की सरकारी पार्टी इसलिए खुश है कि एक इस्लामिक देश बर्बाद हो रहा है. भारत की सरकार और सरकारी पार्टी हमलावर इजराइल के प्रति सहानुभूति रखती है क्योंकि उसे लगता है कि इजराइलियों की नस्ल और हिंदुओं की नस्ल एक है. यानि श्रेष्ठ नस्ल. लेकिन सरकार और सरकारी पार्टी भूल जाती है कि कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरते. युद्ध न वियतनाम को समाप्त कर सका, न अफगानिस्तान को. न सीरिया को न ईराक को. यूक्रैन भी अभी बाकी है, हाँ हर युद्ध में मानवता पिसती है. आज भी पिस रही है.

बहरहाल ईरान अमेरिका, इजराइल युद्ध आपकी जेब पर भी भारी पडने वाला है. भले ही हम रूस से तेल लेने लगे हैं. लेकिन  अर्थव्यवस्था का तेल निकालने के बहुत से तरीके बाकी है. भारत का मौन, या रटी -रटाई गागरौनी भारत की छवि धुमिल कर रहे हैं.

@राकेश अचल

रविवार, 22 जून 2025

स्वर्गीय जोर सिंह कुशवाहा स्मृति सम्मान इस वर्ष राकेश अचल को

ग्वालियर/मध्य प्रदेश काव्य धारा मंच एवं आदर्श कला निकेतन के संयुक्त तत्वावधान में श्रमिक नेता स्वर्गीय श्री जोर सिंह कुशवाहा की पुण्य स्मृति में एक भव्य कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 24 जून 2025 को सायंकाल 5:30 बजे इंटक मैदान, सब्जी मंडी हजीरा में आयोजित होगा।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि  पूर्व  संभागीय कमिश्नर अखिलेदु अर्जरिया होंगे कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ सुरेश सम्राट करेंगे 

उक्त आयोजन मेंवरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार राकेश अचल जी होंगे, जिन्हें जोर सिंह कुशवाहा स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इसके अलावा, कवि सम्मेलन में शहर के प्रमुख कवियों द्वारा अपनी रचनाओं का पाठ किया जाएगा।

मध्य प्रदेश काव्य धारा मंच के अध्यक्ष नयन किशोर श्रीवास्तव ने बताया कि यह कार्यक्रम साहित्य और कला के प्रति लोगों को जागरूक करने और साहित्यकारों को सम्मानित करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। सभी साहित्य प्रेमियों से अनुरोध है कि वे इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर अपनी गरिमा मयी उपस्थिति दर्ज कराएं।

क्या सरकारें खुद न्यायाधीश बन सकती है ?

 


मै लंबे समय से जो कहता आया हूँ कि सरकारें न्यायपालिका का काम नहीं कर सकतीं. यही बात अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने  भी यही बात हाल ही में कही कि सरकारें कभी भी न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकतीं। इस सप्ताह की शुरुआत में भारत में सरकारी प्राधिकारियों द्वारा निजी संपत्तियों के प्रतिशोधात्मक विध्वंस  के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा कि कार्यपालिका,  न्यायाधीश, जूरी  और जल्लाद नहीं बन सकती।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने कहा कि हाल ही में, कोर्ट ने संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में न्यायालय ने राज्य अधिकारियों द्वारा अभियुक्तों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त करने के निर्णयों की जांच की, जो कि उन्हें न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही दंड के रूप में दिए गए थे। यहां, न्यायालय ने माना कि इस तरह के मनमाने विध्वंस, जो कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हैं, कानून के शासन और अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं। कार्यपालिका एक साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले ने इस बात की पुष्टि की है कि संवैधानिक गारंटियों को न केवल नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से कमजोर लोगों की गरिमा, सुरक्षा और भौतिक कल्याण को भी बनाए रखना चाहिए।

न्यायमूर्ति गवई, जिन्होंने पिछले साल फैसला सुनाने वाली पीठ का नेतृत्व किया था, 18 जून को मिलान अपीलीय न्यायालय में “देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में संविधान की भूमिका: भारतीय संविधान के 75 वर्षों पर विचार” विषय पर बोल रहे थे।

सीजेआई गवई ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत द्वारा हासिल किए गए सामाजिक-आर्थिक न्याय ने भारतीय संविधान के आलोचकों को गलत साबित कर दिया है। उन्होंने संवैधानिक लक्ष्यों को मजबूत करने में न्यायपालिका द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डाला।

सीजेआई गवई ने कहा कि मैं कह सकता हूं कि संसद और न्यायपालिका दोनों ने 21वीं सदी में सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के दायरे का विस्तार किया है । उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान ने आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास किया है.

आपको याद होगा कि पिछले कुछ वर्षों में देश की तमाम डबल इंजिन की सरकारों ने बुलडोजर संहिता लागू कर  हत्या, बलात्कार, अतिक्रमण के आरोपियों के खिलाफ अंधाधुंध तरीके से बुलडोजर का इस्तेमाल कर एक वर्ग विशेष को प्रताडित किया था. बुलडोजर संहिता लागू करने में उप्र की योगी सरकार सबसे आगे रही. बाद में मप्र, राजस्थान, उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया थ. पीडितों ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी. कुछ राज्य सरकारों ने माननीय अदालत के निर्देश के बावजूद बुलडोजर  का इस्तेमाल बंद नहीं किया था. अब आप उम्मीद कर सकते हैं कि डबल इंजन की सरकारों  को सदबुद्धि आएगी और सरकारें अर्थात न्यायाधीश बनने की कुचेष्टा नहीं करेगी.

उल्लेखनीय है कि 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाइयों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं और दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:किसी व्यक्ति का घर केवल इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता क्योंकि वह किसी अपराध का आरोपी या दोषी है।बुलडोजर कार्रवाई से पहले उचित नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें कम से कम 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।कार्रवाई कानून के शासन और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए। बिना सुनवाई के किसी को दंडित करना असंवैधानिक है।अगर अवैध निर्माण सिद्ध होता है, तो केवल उसी हिस्से को हटाया जा सकता है, और पूरी संपत्ति को ध्वस्त करना अंतिम उपाय होना चाहिए।गलत कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को मुआवजा देना होगा और उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका (प्रशासन) यह तय नहीं कर सकती कि कोई दोषी है या नहीं; यह न्यायपालिका का अधिकार है। बुलडोजर कार्रवाइयाँ सामूहिक दंड के समान हैं, जो संविधान के खिलाफ है।सामाजिक प्रभाव: कुछ लोग बुलडोजर कार्रवाइयों को अपराध के खिलाफ कठोर कदम मानते हैं और इसे समर्थन देते हैं, जैसा कि एक सर्वे में 54% लोगों ने उत्तर प्रदेश में इसे माफिया के खिलाफ प्रभावी बताया। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह कार्रवाइयाँ अक्सर पक्षपातपूर्ण होती हैं और अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाती हैं।

@ राकेश अचल

मंगलवार, 17 जून 2025

गांधी का डीएनए भी बदल गया है अब


मैं चूंकि गांधीवादी हूँ इसलिए मुझे ये खबर पढकर सदमा लगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रपौत्री को उस दक्षिण अफ्रीका में धोखाधडी के मामले में दंडित किया गया है, जिस दक्षिण अफ्रीका को महात्मा गांधी ने सत्याग्रह करना सिखाया और नींद से जगाया था.

खबर है कि महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन को दक्षिण अफ्रीका में 3.22 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में 7 साल की सजा हुई. उन्होंने नकली दस्तावेजों के जरिए व्यापारी से पैसे लिए. लता, महात्मा  गांधी  के बेटे मणिलाल की पोती और एला गांधी की बेटी हैं.

लता रामगोबिन पर आरोप था कि उन्होंने व्यापारी एसआर महाराज को यह कहकर 62 लाख रैंड ले लिए कि उन्होंने भारत से लिनन के तीन कंटेनर मंगवाए हैं, जिन पर कस्टम ड्यूटी और अन्य आयात शुल्क चुकाने के लिए पैसे की जरूरत है. बदले में उन्होंने व्यापारी को मुनाफे में हिस्सेदारी का लालच दिया. एसआर महाराज दक्षिण अफ्रीका की एक कंपनी न्यू अफ्रीका अलाइंस फुबियर डिस्ट्रीब्यूटर के डायरेक्टर हैं. उनकी कंपनी वस्त्र, जूते और लिनन का आयात और निर्माण के साथ ही फाइनेंस भी मुहैया कराती है.

नेशनल प्रॉसिक्यूशन अथॉरिटी  के अनुसार, लता रामगोबिन ने व्यापारी को भरोसा दिलाने के लिए फर्जी इनवॉयस, डिलीवरी नोट और नेट केयर अस्पताल समूह की ओर से भुगतान का दावा करने वाले दस्तावेज प्रस्तुत किए. उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि तीन कंटेनरों में लिनन  अस्पताल के लिए मंगवाया गया है.“रामगोबिन ने महाराज से कहा था कि उन्हें बंदरगाह से माल छुड़वाने के लिए तत्काल 6.2 मिलियन रैंड की आवश्यकता है. उन्होंने अस्पताल  का एक फर्जी परचेज ऑर्डर और इनवॉयस भी दिखाया ताकि भरोसा दिलाया जा सके कि माल डिलीवर हो चुका है और भुगतान जल्द ही होगा.

आशीष लता रामगोबिन महात्मा गांधी की परपोती हैं. उनका संबंध गांधी जी के दूसरे बेटे मणिलाल गांधी से है, जो दक्षिण अफ्रीका में बस गए थे. मणिलाल गांधी की बेटी एला गांधी एक जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वे करीब 9 साल तक दक्षिण अफ्रीका की सांसद भी रहीं. एला गांधी के चार बच्चों में से एक हैं आशीष लता रामगोबिन. इस तरह आशीष लता, गांधी जी की वंशज हैं और उनका परिवार लंबे समय से दक्षिण अफ्रीका में सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ा रहा है.

महाराज ने लता रामगोबिन के पारिवारिक पृष्ठभूमि और गांधी परिवार से उनके संबंधों को देखते हुए उन पर भरोसा किया और पैसे दिए. लेकिन बाद में जब उन्होंने दस्तावेजों की जांच की, तो पता चला कि वे सभी नकली थे. इसके बाद उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. लता रामगोबिन को पहले 50,000 रैंड की जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए 7 साल जेल की सजा सुनाई.

लता रामगोबिन  भी एक स्वयं सेवी संगठन इंटरनेशनल सेंटर फार नान वायलेंस की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक थीं. वे खुद को पर्यावरण, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर काम करने वाली कार्यकर्ता बताती थीं. गौरतलब है कि महात्मा गांधी के कई वंशज आज भी सामाजिक कार्यों में जुटे हैं. लता रामगोबिन की मां एला गांधी भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों ही देशों में सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता रही हैं. उनके अन्य रिश्तेदारों में कीर्ति मेनन, उमा धुपेलिया-मेस्थ्री और स्व. सतीश धुपेलिया जैसे नाम शामिल हैं, जो मानवाधिकारों के लिए सक्रिय रहे हैं.

यह मामला दिखाता है कि डीएनए स्धिर चीज नहीं है और एक न एक दिन बदल भी सकता है. लता का डीएनए बदला. उनके लिए अहिंसा और सत्याग्रह जैसे सिद्धांत केवल प्रदर्शन के लिए रह गए.लेकिन गांधीवाद का डीएनए अक्षुण है. वह नहीं बदलता. गांधी के बताए रास्ते पर चलने के लिए गांधी का वंशज होना जरुरी नहीं है. महात्मा गांधी को राष्ट्र विभाजन के लिए अपराधी मानने वाले वर्ग के लिए लता ने एक अवसर और दे दिया है, लेकिन इससे गांधी और गांधीवाद पर कोई असर पडने वाला नहीं है, क्योंकि महात्मा गांधी ही सली विश्ववगुरू हैं.

@ राकेश अचल

सोमवार, 16 जून 2025

झांसी से आयेगी शहीद ज्योति यात्रा

              1008 दीपों से श्रृद्धांजलि देंगे

ग्वालियर 16 जून ।  ग्वालियर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला दो दिवसीय वीरांगना लक्ष्मीबाई बलिदान मेले का शुभारम्भ 17 जून को सायं झांसी से आई शहीद ज्योति यात्रा से होगा। 

बलिदान मेले में 17 जून की सायं 6:00 बजे शहीद ज्योति झांसी दुर्ग से ग्वालियर पहुंचेगी, जिसे राजा मानसिंह तोमर प्रतिमा से राइडर्स क्लब की वाहन सवार मातृशक्ति की अगुवाई में फूलबाग चौराहा लाया जायेगा। फूलबाग चौराहे से सायं 6:30 बजे अश्वारोही झांकियों के साथ सैकड़ों केसरिया ध्वजधारी देशभक्त पैदल शोभा यात्रा के रूप में समाधि तक लायेंगे व मेला के संस्थापक अध्यक्ष श्री जयभान सिंह पवैया व नगर निगम के सभापति श्री मनोज तोमर ज्योति को स्थापित करेंगे। 17 जून को ही सायं 7:30 बजे नगर निगम द्वारा लगाई गई क्रांतिकारियों के शस्त्रों व संस्कृति विभाग द्वारा लगाई जा रही प्रदर्शनी "जरा याद करो कुर्बानी" का शुभारम्भ कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान की उपस्थिति में सम्पन्न होगा। इस अवसर पर समाधि के समक्ष भारत विकास परिषद द्वारा 1008 दीपों द्वारा दीपदान किया जायेगा।

नेशनल क्रिकेटर सुश्री वैष्णवी शर्मा का सम्मान एवं अ.भा. कवि सम्मेलन भी होगा 

बलिदान मेले के दूसरे दिन 18 जून की सायं 7:00 बजे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मुख्य आतिथ्य में महानाट्य व क्रांतिवीर तथा शहीद परिजन सम्मान के साथ ग्वालियर की अंडर 19 नेशनल प्लेयर कु. वैष्णवी शर्मा के सम्मानोपरांत अ.भा. कवि सम्मेलन में प्रख्यात कवि पद्म श्री सुरेन्द्र दुबे, अरुण जेमिनी, विनीत चौहान, सुरेश अलबेला, भुवन मोहिनी, शशिकांत यादव, योगेन्द्र शर्मा, गौरव चौहान व दिनेश "देशी घी" का काव्यपाठ होगा।

लव जिहाद ही नहीं अब लव अपराध भी है

मुझे लगता है कि लव यानि प्यार यानि इश्क से जुडी कहानियों को लेकर मुझे अब बाकायदा किसी विश्वविद्यालय में जाकर शोध कार्य करना पडेगा. सोनम-राजा रघुवंशी कांड के बाद मुझे -'नफरत सी हो गई है, मोहब्बत के नाम से '. लगता है प्रेम अब न जिहाद है, न जिद बल्कि अपराध है, केवल अपराध.

इंदौर के राजा रघुवंशी की उसकी पत्नी सोनम द्वारा हत्या और इंदौर कै ही कांग्रेस पारषद द्वारा लव जिहाद के लिए पार्षद निधि का इस्तेमाल सचमुच चौंकाने वाला मामला है.

सोनम कांड एक प्रेम, धोखे, और सुनियोजित हत्या की कहानी है, जिसने न केवल राजा रघुवंशी के परिवार को झकझोर दिया, बल्कि समाज में रिश्तों और विश्वास पर सवाल उठाए। मेघालय पुलिस की जांच अभी भी जारी है, और सोनम की व्हाट्सएप चैट, क्राइम सीन रीक्रिएशन, और अन्य सबूत इस मामले को और स्पष्ट कर सकते हैं।

 सबसे पहले सोनम की बेवफाई की बात करते हैं. मामला पिछले महीने का है लेकिन हमारे ठलुआ मीडिया ने इसे अभी तक जिंदा रखा हुआ है. सोनम का नाम और हर रोज एक नयी कहानी सुन और पढकर लगता है कि सोनम न हुई चंद्रकांता संतति का अंतहीन किस्सा हो गई. लगता है कि मीडिया ने तय कर लिया है कि वो सोनम को मरने नहीं देगा.सोनम कांड, जिसे मेघालय हनीमून मर्डर केस के रूप में भी जाना जाता है, मध्य प्रदेश के इंदौर के रहने वाले राजा रघुवंशी की हत्या से संबंधित एक हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामला है। इस मामले में मुख्य आरोपी उनकी पत्नी सोनम रघुवंशी हैं। यह मामला 2025 में सुर्खियों में आया और इसने पूरे देश में व्यापक चर्चा उत्पन्न की।

आपको बता दें कि इंदौर देश में स्वच्छता के मामले में नंवर वन था लेकिन अब अपराध के मामले में नंवर वन है.. भाजपा के राज में इसी इंदौर में हनीट्रेप कांड हुआ था. उस मामले में भी किसी का कुछ नहीं बिगडा और शायद सोनम का भी कुछ नहीं बिगडेगा. मुमकिन है कि रामसे ब्रदर्श सोनम कांड पर कोई हारर फिल्म का ऐलान कर दें.राजा रघुवंशी और सोनम की शादी 11 मई 2025 को हुई थी। शादी के कुछ ही दिनों बाद, सोनम ने अपने पति को हनीमून के लिए मेघालय ले जाने का फैसला किया।मेघालय में, सोनम ने अपने प्रेमी राज कुशवाह और कुछ अन्य साथियों के साथ मिलकर राजा की हत्या की साजिश रची।.20 मई 2025 को राजा और सोनम मेघालय के लिए रवाना हुए। सोनम ने राजा को शिलांग के पास एक सुनसान रास्ते पर ले गई, जिसे उसने हत्या के लिए चुना था।जांच के अनुसार, सोनम ने राजा को वेइसाडोंग फॉल्स के पास ले जाकर उसकी हत्या करवाई और शव को एक गहरी खाई में फेंक दिया। 2 जून 2025 को राजा का शव खाई में मिला।पुलिस का दावा है कि सोनम ने अपने प्रेमी राज कुशवाह और तीन अन्य लोगों (विशाल सिंह चौहान, आकाश राजपूत, और आनंद कुर्मी) के साथ मिलकर इस हत्या को अंजाम दिया।मकसद:प्रारंभिक जांच में हत्या का मकसद सोनम का राज कुशवाह के साथ अवैध संबंध बताया गया है।कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि सोनम ने राजा की हत्या के लिए 20 लाख रुपये का प्रलोभन देकर सुपारी किलर हायर किए।

 सोनम ने राजा को तंत्र-मंत्र और मंगल दोष के बहाने कामाख्या मंदिर ले जाकर हत्या की योजना को अंजाम दिया।पुलिस जांच और गिरफ्तारी:मेघालय पुलिस ने इस मामले की जांच के लिए "ऑपरेशन हनीमून" शुरू किया।सोनम ने 9 जून 2025 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अन्य तीन आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया।सभी पांच आरोपियों को शिलांग कोर्ट ने 8 दिन की पुलिस रिमांड में भेजा।पुलिस ने सोनम के मंगलसूत्र और अंगूठी से महत्वपूर्ण सुराग प्राप्त किए, जो जांच में महत्वपूर्ण साबित हुए।सोनम की व्हाट्सएप चैट हिस्ट्री को रिकवर करने की कोशिश की जा रही है, जो इस मामले को सुलझाने में महत्वपूर्ण हो सकती है.

यह मामला सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से ट्रेंड कर रहा है, जिसमें "सोनम बेवफा है" जैसे हैशटैग वायरल हुए।बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने भी इस मामले पर टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने शादी को लेकर डर और सामाजिक चिंता व्यक्त की।इस कांड ने शादी से पहले पार्टनर की पृष्ठभूमि जांच कराने की मांग को बढ़ा दिया है।सोनम के भाई गोविंद ने राजा के परिवार से मुलाकात की और रोते हुए कहा कि अगर उनकी बहन दोषी है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए।सोनम के पड़ोसियों ने भी हैरानी जताई, क्योंकि उन्हें सोनम एक धार्मिक और सामाजिक रूप से सक्रिय लड़की के रूप में दिखती थी।विवाद और अन्य दावे:सोनम के पिता ने अपनी बेटी को निर्दोष बताया और मेघालय पुलिस पर उसे फंसाने का आरोप लगाया, साथ ही सीबीआई जांच की मांग की।कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के अपराधों में फिल्मों, टीवी, और सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है, जो महिलाओं को अपराध की ओर ले जा सकता है।

दूसरी कहानी भी इंदौर की ही है. उसी इंदौर की जो देवी अहिल्या का इंदौर है.इंदौर के बाणगंगा थाना क्षेत्र में दो युवकों पर दो युवतियों के साथ बलात्कार और धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाने का मामला दर्ज किया  है. दोनों आरोपियों ने कांग्रेस पार्षद अनवर कादरी का नाम लिया, जिस पर उन्हें लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने और निकाह के लिए पैसों का लालच देने का आरोप है।

पुलिस की मानें तो आरोपी साहिल शेख और अल्ताफ ने सोशल मीडिया पर फर्जी हिंदू नामों से आईडी बनाकर युवतियों से संपर्क किया था। मोबाइल जांच में यह स्पष्ट हुआ कि वे 'अर्जुन' और 'राज' जैसे नामों का इस्तेमाल कर लड़कियों से दोस्ती करते और फिर उन्हें बहलाकर मुलाकात के लिए बुलाते थे। इसके बाद शादी और धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता था।

पुलिस को मिले वीडियो साक्ष्यों और आरोपियों के बयान के आधार पर पार्षद अनवर कादरी का नाम एफआईआर में जोड़ा गया है। बताया गया है कि उसने युवकों को एक लड़की को फंसाने के लिए एक लाख रुपए और निकाह कराने पर दो लाख रुपए देने की बात कही थी। पुलिस जल्द ही अनवर को हिरासत में लेकर पूछताछ करेगी।

लव के नाम पर जब गोरखधंधे होते हैं तो हिंदू संगठनों की भी बन आती है.हिंदू संगठनों ने आरोप लगाया कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जिसके तहत हिंदू लड़कियों को सोशल मीडिया के ज़रिए निशाना बनाया जा रहा था। हकीकत जो भी हो लेकिन तथ्य ये है कि अब कोई न सोनम पर भरोसा करेगा और न अपने पार्षद पर. सब लव को औजार बनाकर उसे बदनाम कर रहे हैं. वरना सोनम से पहले जब लव जिहाद का जिक्र होता था तो शीरी-फरहाद, हीर-रांझा, और सोनी-महवाल का नाम श्रद्धा से लिया जाता था. सावधान रहिए कि ये लव जानलेवा साबित न हो जाए.

@राकेश अचल

रविवार, 15 जून 2025

पिता का स्मरण करते हुए बेटे से बतरस मै भी युद्ध विराम कर रहा हूँ बेटा

 बेहद मुश्किल काम कर रहा हूं बेटा 

मैं खुद को नीलाम कर रहा हूं बेटा

🌹

देखें कितना दाम लगाती है दुनिया 

सब कुछ इसके नाम कर रहा हूँ बेटा

🌹

मेरी कीमत क्या है, मुझको पता नहीं 

कोशिश रोज तमाम कर रहा हूँ बेटा

🌹

दाम लगाने वाले ढेरों हैं फिर भी 

मोल भाव निशियाम कर रहा हूं बेटा

🌹

दुनिया भर के कर्ज पटाना हैं मुझको

गुणा भाग अविराम कर रहा हूँ बेटा

🌹

मेरे बाद न कुर्की हो मेरे घर की 

मै भी युद्ध विराम कर रहा हूं बेटा

🌹

@राकेश अचल

युद्ध विराम के बाद प्रधानमंत्री की पहली विदेश यात्रा

 

ईजराइल और ईरान के बीच छिडी जंग के बीच भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पांच दिन की विदेश यात्रा पर निकल रहे हैं. प्रधानमंत्री की इस विदेश यात्रा से दो मित्र देशों के बीच छिडी जंग पर कोई असर पडने वाला नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री ने रूस -यूक्रेन युद्ध के बीच पंचायत की नाकामी के बाद सबक ले लिया है.

विदेश मंत्रालय के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी सबसे पहले साइप्रस की दौरे पर जाएंगे. 15-16 जून के दो दिवसीय यात्रा के बाद पीएम मोदी 16-17 जून की दो दिवसीय यात्रा पर कनाडा पहुंचेंगे. मंत्रालय के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी कनाडा में G-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देंगे. इसके बाद अंत में 18 जून को पीएम मोदी क्रोएशिया जाएंगे और 19 जून को भारत लौट आएंगे.

आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्राओं का कीर्तिमान बनाने में यकीन रखते हैं. उनकी इस विदेश यात्रा से भी एक नया कीर्तिमान बनने वाला है.मंत्रालय के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस के निमंत्रण पर 15-16 जून को साइप्रस जाएंगे.  यह दो दशकों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की साइप्रस की पहली यात्रा होगी. मोदी साइप्रस की राजधानी निकोसिया में प्रधानमंत्री राष्ट्रपति क्रिस्टोडौलिडेस के साथ वार्ता करेंगे और लिमासोल में व्यापार जगत के नेताओं को संबोधित करेंगे. दावा किया जा रहा है कि “यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ बनाने और भूमध्यसागरीय क्षेत्र व यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के लिए दोनों देशों की साझा प्रतिबद्धता की पुष्टि करेगी.”

अपने पांच दिवसीय विदेश यात्रा के दूसरे चरण में, प्रधानमंत्री मोदी कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के निमंत्रण पर G7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए 16-17 जून को कनाडा के कनानास्किस जाएंगे. प्रधानमंत्री लगातार छठी बार G7 शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. “शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री G7 देशों के नेताओं, अन्य आमंत्रित देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों के साथ ऊर्जा सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और नवाचार, विशेष रूप से AI-ऊर्जा संबंध और क्वांटम से संबंधित मुद्दों सहित महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर विचार विमर्श करेंगे.” इसके अलावा प्रधानमंत्री शिखर सम्मेलन के दौरान कई द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे

. जी 7 समूह में भारत सदस्य नहीं है. इस समूह में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा,जापान,जर्मनी,यूनाइटेड किंगडम,फ्रांस, और इटली  सदस्य हैं.

प्रधानमंत्री मोदी अपने दौरे के अंतिम चरण में क्रोएशिया की एक दिवसीय यात्रा पर जाएंगे. क्रोएशिया के प्रधानमंत्री आंद्रेज प्लेंकोविच के निमंत्रण पर भारतीय पीएम 18 जून को यूरोपीय देश की आधिकारिक यात्रा करेंगे.“यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की क्रोएशिया की पहली यात्रा होगी, जो द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित होगी.” पीएम मोदी अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान क्रोएशिया के प्रधानमंत्री प्लेंकोविच के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे और राष्ट्रपति जोरान मिलनोविच से भी मिलेंगे.

प्रधानमंत्री श्री मोदी विश्व भ्रमण करने में अपने तमाम पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के कीर्तिमान ध्वस्त कर चुके हैं, लेकिन हासिल कुछ नहीं है. हाल ही में 7मयी को भारत-पाकिस्तान के बीच एक क्षणिक युद्ध के बाद दुनिया का एक भी देश भारत के पक्ष में सीना तानकर खडा नहीं हुआ था.मोदीजी की ये विदेश यात्रा सफल हो इसके लिए हमारी शुभकामनायें.

@ राकेश अचल

शुक्रवार, 13 जून 2025

शेष नल-जल योजनाओं का काम जल्द से जल्द पूर्ण करें -विवेक कुमार

ग्वालियर 13 जून ।  जिले में शेष नल-जल योजनाओं का काम जल्द से जल्द पूर्ण कराने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विवेक कुमार ने शुक्रवार को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों की बैठक लेकर जिले के 70 ग्रामों में जल जीवन मिशन के तहत निर्माणाधीन नल-जल योजनाओं की समीक्षा की। उन्होंने ग्रीष्म ऋतु को ध्यान में रखकर नल-जल योजनाओं को युद्ध स्तर पर पूर्ण करने के निर्देश दिए। 

बैठक में जिला पंचायत के डीपीआरओ, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री व उपयंत्री तथा संबंधित ग्राम पंचायतों के सरपंच व सचिव मौजूद थे। खासतौर पर रेड व ओरेंज जोन में चिन्हित की गई जिले की ग्रामीण नल-जल योजनाओं की समीक्षा बैठक में की गई। बैठक में मौजूद सरपंचों व सचिवों से कहा गया कि वे नल-जल योजनाओं पर व्यक्तिगत नजर रखें। सरकार की मंशा के अनुरूप गाँव के हर घर में नल से जल पहुँचना चाहिए। 


अकल्पनीय होता है हवा में हर हादसा

 

अहमदाबाद में एयर इंडिया के वोइंग विमान के क्रेश होने की खबर जब वायरल हुई उस समय में एक सुपरफास्ट रेल में सफर कर रहा था. हादसे की खबर सुनकर मै सिहर उठा. थोडी ही देर में हादसे की तस्वीरें भी आना शुरू हो गई ं जिन्हे देख कुछ देर के लिए लगा जैसे सांस रुक रही है. बोइंग में 242यात्री थे और जीवित बचा सिर्फ 1.इसे चमत्कार कहा जाए तो कम नहीं होगा.

हर हादसा एक त्रासदी होता है और हर मौद दुखद लेकिन कोई भी हवाई त्रासदी सबसे दुखद होती है, क्योंकि हवाई हादसों में किसी के भी बचने की संभावना नगण्य होती है.

बात 12 जून 2025 की है.अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास मेघानीनगर इलाके में एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 (बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर) टेकऑफ के कुछ सेकंड बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह विमान अहमदाबाद से लंदन (गैटविक) जा रहा था और इसमें 242 लोग सवार थे, जिनमें 169 भारतीय, 53 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली, और 1 कनाडाई नागरिक शामिल थे। हादसे में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी समेत 204 लोगों की मौत की पुष्टि हुई, जबकि दीव के रमेश विश्वास कुमार एकमात्र जीवित बचे।

विमान ने दोपहर 1:38 बजे रनवे 23 से उड़ान भरी और तुरंत MAYDAY संदेश भेजा, जिसके बाद एटीसी से संपर्क टूट गया।यह  विमान मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल बिल्डिंग से टकराया, जिससे आग लग गई और घना काला धुआं उठा। मलबा 1.5 किमी तक फैला।प्रारंभिक जांच में इंजन की तकनीकी खराबी, पायलट की गलती, या टेकऑफ के दौरान बाधा को संभावित कारण बताया गया।बचाव और राहत कार्य:एनडीआरएफ, बीएसएफ, सेना, और फायर ब्रिगेड की टीमें तुरंत मौके पर पहुंचीं। 7 दमकल गाड़ियों ने आग बुझाने का काम शुरू किया।घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया, और ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया।अहमदाबाद हवाई अड्डा अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया, जिससे यात्रियों को परेशानी हुई। रेलवे ने विशेष ट्रेनें शुरू कीं।

केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू और गृह मंत्री अमित शाह अहमदाबाद पहुंचे। जांच के लिए डीजीसीए और अन्य एजेंसियां सक्रिय हैं।प्रधानमंत्री भी संभवतः मौके पर जाएंगे.टाटा ग्रुप ने मृतकों के परिजनों के लिए 1 करोड़ रुपये मुआवजे की घोषणा की। इस हवाई हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया। पीएम मोदी, सीएम भूपेंद्र पटेल, और अन्य नेताओं ने शोक व्यक्त किया।सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दुर्घटना की भयावहता दिखी। कुछ यात्रियों ने हादसे से पहले विमान में खामियों की शिकायत की थी, जिसकी जांच की मांग उठी।।

मै पिछले दो दशक में सैकडों घंटे की हवाई यात्रा का साक्षी हूँ. हवा में तीस चालीस हजार फीट ऊपर घंटों तक उडना जान हथेली पर रखने जैसा होता है, किंतु उन्नत तकनीक और घोर प्रशिक्षण से गुजरे अनुभवी पायलट हर विमान यात्री के लिए देवदूत जैसे होते हैं. विमान बवंडर में फंसे या बादलों में प्राण कंठ में आ जाते हैं. आपदा के समय बताए जाने वाले तमाम सुरक्षात्मक उपाय उस समय धरे रह जाते हैं जब कोई भी विमान हादसे का शिकार होता है.. ऐसे हादसों के बाद लाल बहादुर शास्त्री और माधवराव सिंधिया जैसे मंत्री नैतिकता के चलते अपने पदों से इस्तीफे तक दे देते हैं. लेकिन ये गुजरे जमाने की बात हो चुकी है..

टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान हादसे सबसे आम हैं, वर्ष 2023 के वैश्विक आंकड़ों (109 हादसों में 37 टेकऑफ के दौरान) से पता चलता है।यह एक दुखद घटना है, और जांच से हादसे के सटीक कारणों का पता चलने की उम्मीद है।हाल के आंकड़ों के अनुसार, हवाई यात्रा को परिवहन का सबसे सुरक्षित साधन माना जाता है, लेकिन दुर्घटनाओं का प्रतिशत समझने के लिए कुछ तथ्य महत्वपूर्ण हैं:एविएशन सेफ्टी नेटवर्क के अनुसार, 2017 से 2023 के बीच दुनियाभर में 813 विमान हादसे हुए, जिनमें 1,473 यात्रियों की मौत हुई। यह संख्या कुल उड़ानों की तुलना में बहुत कम है। 2023 में, इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक, 3.7 करोड़ से अधिक उड़ानें हुईं।एसोसियेशन का दावा है कि यदि कोई व्यक्ति 1,03,239 साल तक हर दिन विमान में सफर करे, तो एक घातक दुर्घटना की संभावना होगी। 

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी  के एक अध्ययन (2018-2022) के अनुसार, 1.34 करोड़ यात्रियों में से केवल 1 को घातक दुर्घटना का जोखिम है। 2024 में, चार घातक दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जो 2023 (कोई घातक हादसा नहीं) से अधिक थीं। फिर भी, कुल उड़ानों की संख्या के आधार पर दुर्घटना दर कम रही।पिछले पांच सालों में भारत में केवल एक घातक विमान हादसा हुआ, जिसमें यात्रियों की मौत हुई। 2017-2023 के बीच भारत में 14 हादसे दर्ज किए गए। सबसे ज्यादा हादसे टेक-ऑफ (37%) और लैंडिंग (30%) के दौरान होते हैं। अर्थात हवाई यात्रा की दुर्घटना दर अन्य परिवहन साधनों (जैसे सड़क, रेल) की तुलना में बहुत कम है। सड़क हादसों में भारत में 2022 में 61,000 से अधिक मौतें हुईं, जबकि हवाई हादसों में यह संख्या नगण्य थी। सख्त नियम, उन्नत तकनीक, और प्रशिक्षण के कारण हवाई यात्रा सुरक्षित बनी हुई  है.लेकिन हवाई दुर्घटना सबसे भयावह होती है अहमदाबाद की दुर्घटना क तरह.

@राकेश अचल

बुधवार, 11 जून 2025

बिहार : टिमटिमाते चिराग में रोशनी नहीं


अपने जमाने के मौसम विज्ञानी रानीतिज्ञ कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान के पुत्र लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान  बिहार की राजनीति में अपना चिराग जलाना चाहते हैं. चिराग ने  2025 बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की पुष्टि  कर दी है.बिहार की राजनीति में चिराग की घोषणा से हलचल तो हुई है लेकिन बिहार की चुनावी आंधी में अपनी लोकप्रियता का चिराग जला पाएंगे ये कहना बहुत कठिन है 

डत रविवार को  चिराग पासवान बिहार के आरा  पहुंचे.दरअसल चिराग की रणनीति, बिहार की बदलती राजनीतिक परिदृश्य और एनडीए गठबंधन की आंतरिक राजनीति को लेकर पशोपेश बढाने वाली है. अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से कोई ठोस आश्वासन दिया होगा, अन्यथा चिराग अपना मुँह नहीं खोलते. . आज हर कोई यह सोचने को विवश है कि चिराग पासवान केंद्र में मिले हुए मंत्री पद को छोड़कर बिहार की अनिश्चित राजनीति में आखिर क्यों आना चाहते हैं? हालांकि विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ने की कोई जरूरत वैसे तो नहीं है. पर यदि वाकई में अगर उन्हें बिहार में विधायक बनकर राजनीति करनी है तो उनकी संवैधानिक मजबूरी होगी कि वे अपना मंत्री पद और सांसदी दोनों ही छोड़ दें.

सब जानते हैं कि भाजपा महाराष्ट्र की तर्ज पर अपनी सहयोगी जेडीयू को चकमा देकर बिहार में अपनी सरकार बनाने की फिराक में है.भाजपा ने महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को आखिर मुख्यमंत्री पद से हटाकर ही दम लिया था.

लेकिन, सवाल  ये  है कि क्या बीजेपी ऐसा चाहेगी? और ये भी महत्वपूर्ण है कि बदले में चिराग पासवान से बीजेपी की क्या अपेक्षा होगी?

बीजेपी के लिए गठबंधन सहयोगी क्या मायने रखते हैं, थोड़ा पीछे जाकर ट्रैक रिकॉर्ड देखा जा सकता है. चिराग पासवान खुद भी पांच साल पुराने भुक्तभोगी हैं. 

देखा जाये तो वो भी कुर्बानी जैसी ही रही है. एक दौर था जब वो उद्धव ठाकरे और शरद पवार की ही तरह पार्टी से भी हाथ धो बैठे थे, दिल्ली के सरकारी बंगले से भी बेदखल होना पड़ा था - और काफी इंतजार के बाद धीरे धीरे चीजें मिल पाईं. जब नीतीश कुमार को बर्बाद करने के लिए इतना झेलना पड़ा, तब तो नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बनने के लिए तो और भी बड़ी कुर्बानी देनी पड़ेगी. और बड़ी कुर्बानी तभी मानी जाएगी जब चिराग पासवान अपनी पार्टी दान में दे दें, लेकिन किसी और को नहीं, सिर्फ बीजेपी को. मतलब, बीजेपी में ही विलय कर लें. ऐसे प्रयासों की चर्चा जेडीयू को लेकर भी रही है, और वो भी दोनों तरफ से. लेकिन क्या चिराग पासवान भी तैयार होंगे? 

ये तो पूरी तरह साफ है कि यदि भाजपा ने चिराग पासवान को मोहरा बनाया तो राजद के तेजस्वी यादव की राजनीति बुरी तरह प्रभावित होगी,. तेजस्वी या तो भाजपा के साथ ही चिराग को रास्ते से हटाएं अन्यथा उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबा इंतजार और कड़ा संघर्ष भी करना होगा.

तेजस्वी यादव के लिए ये चुनाव ऐसा मौका है, जब नीतीश कुमार की उम्र और राजनीति दोनों ही ढलान पर है. जाति जनगणना भी होने जा रही है. बीजेपी की तरफ से कोई मजबूत दावेदार भी सामने नहीं आया है - और सर्वे में मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा चेहरा बन चुके हैं.  ऐसे माहौल में चिराग पासवान को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बना दिया जाता है, तो तेजस्वी यादव के लिए नये सिरे से शुरुआत करनी होगी.

चिराग पासवान राजद के तेजस्वी के हम उम्र हैं. लेकिन उनका रास्ता इतना निरापद भी नहीं है. यदि भाजपा चिराग की रोशनी में सत्ता सिंहासन हासिल करने की कोशिश करती है तो जीतन माझी भी चुप बैठने वाले नहीं हैं. वे भी मुमकिन है कि एन वक्त पर भाजपा का साथ छोडकर राजद के साथ खडे हो जाए्. माझी यदि भाजपा को मझधार में छोडकर जाते हैं तो भाजपा की मुश्किल और बढ सकती है.सवाल ये है कि क्या वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सब कुछ मौन होकर देखते रहेंगे?

सब जानते हैं कि नीतीश के पेट में दाढी है. उन्हे एकनाथ शिंदे की तरह मूषक बनाना आसान नहीं है. वे भाजपा द्वारा बिछाए गंये जाल को कुतर कर भाग भी सकते हैं. नीतीश की बैशाखी के सहारे केंद्र में टिकी सरकार को अस्थिर नही करना भाजपा की जरुरत भी है और मजबूरी भी. भाजपा का सिंदूर खेला कुछ भी दाव पर लगा सकता है क्योंकि भाजपा ढाई दशक से बिहार की सत्ता हासिल करने का सपना देखरही है.

@  राकेश अचल 


सोमवार, 9 जून 2025

डीएमके को क्यों नहीं हरा सकती भाजपा?

 

राजनीति में महात्वकांक्षा का बडा महत्व है और इस समय भाजपा देश की सबसे बडी महात्वाकांक्षी राजनीतिक दल है. भाजपा रोडमैप बनाकर राजनीति करती है और भाजपा ने अभी से मान लिया है कि भाजपा बिहार भले जीत ले लेकिन तमिलनाडु को नहीं जीत सकती. भाजपा के लिए तमिल अस्मिता को सिंदूरी रंग में रंगना आसान नहीं है. इसीलिए भाजपा के चाणक्य कहिये या भामाशाह यानि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मान लिया है कि डीएके को हराना भाजपा के बूते की बात नहीं है लेकिन शाह को भरोसा है कि तमिल जनता ही डीएमके को हराएगी.

अमित शाह के हाव-भाव, बोलचाल से मैं रत्तीभर पसंद नहीं करता किंतु मै उनकी हाडतोड मेहनत और  दृढ इच्छाशक्ति का मुरीद हूँ. किसी दूसरे दल के पास अमित शाह जैसा मेहनती नेता नहीं है. शाह दूर की कौंडी लेकर चलते हैं. आलोचनाओं से घबडाते नहीं हैं. तमिलनाडु को लेकर भी उन्होने जमीनी हकीकत जान ली है लेकिन तमिलनाडु में सत्ता हासिल करने का लक्ष्य नहीं छोडा है.

अमित शाह के सपनों वाले तमिलनाडु की राजनीति के बारे में जान लीजिये. तमिलनाडु में अगले साल 2026में विधानसभा चुनाव हैं.तमिलनाडु का राजनीतिक परिदृश्य 2025 में द्रविड़ विचारधारा, क्षेत्रीय अस्मिता, और केंद्र-राज्य संबंधों पर केंद्रित है। तमिलनाडु में प्रमुख राजनीतिक दलद्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम यानि डीएमके वर्तमान में सत्तारूढ़ पार्टी है. एम.के. स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं। आपको याद होगा कि वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने 10 साल बाद सत्ता हासिल की थी , जिसका कारण एआईएडीएमके की सत्ता-विरोधी लहर और गठबंधन रणनीति थी। डीएमके तमिल अस्मिता, भाषाई गौरव, और सामाजिक न्याय पर जोर देती है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति  2020 के त्रिभाषा फॉर्मूले का विरोध करती है, इसे हिंदी थोपने की साजिश मानते हुए हाल ही में  डीएमके ने केंद्र सरकार पर परिसीमन और जनगणना 2027 को लेकर तमिलनाडु के संसदीय प्रतिनिधित्व को कम करने का आरोप लगाया है।

अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम प्रमुख विपक्षी दल है.जिसका नेतृत्व एडप्पादी के. पलानीस्वामी  कर रहे हैं। 2021 में सत्ता गंवाने के बाद से ही एआईएडीएमके 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में सक्रिय है। हाल ही में केंद्र में बीजेपी के साथ गठबंधन करने का ऐलान किया है  अमित शाह इस गठबंधश के योजनाकार हैं. हालांकि इस गठबंधन को लेकर दोनों दलों में कुछ मतभेद भी हैं।, खासकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई इन मतभेदों की जड हैं. आपको पता ही है कि भारतीय जनता पार्टी का तमिलनाडु में  प्रभाव सीमित रहा है, लेकिन के. अन्नामलाई के नेतृत्व में पार्टी ने वोट शेयर को 3.66 फीसदी से बढ़ाकर 11.1 फीसदी किया है।

तमिलनाडु में द्रविड़ दलों की मजबूत जड़ों के कारण बीजेपी को सत्ता में आने के लिए कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।बीजेपी ने तमिल संस्कृति और रामसेतु जैसे प्रतीकों के जरिए अपनी पैठ बनाने की कोशिश की, लेकिन हिंदी विरोध और द्रविड़ अस्मिता जैसे मुद्दों ने इसे मुश्किल बनाया।तमिलगा वेट्री कझगम तमिल सुपरस्टार विजय ने 2024 में अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की, जिसे 2026 के विधानसभा चुनाव में एक नया विकल्प माना जा रहा है।विजय की पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रही, लेकिन क्षेत्रीय मुद्दों और सामाजिक कल्याण पर जोर दे रही है। सर्वे में विजय को 18 फीसदी लोगों की पसंद बताया गया, जो डीएमके के बाद दूसरा स्थान है। 

तमिलनाडु में हिंदी विरोध का लंबा इतिहास रहा है, जो 1937 से शुरू हुआ।2025 में डीएमके ने नयी शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले को हिंदी थोपने की कोशिश करार दिया, जिसे केंद्र ने खारिज किया। ।स्टालिन ने इसे तमिल अस्मिता और द्रविड़ गौरव से जोड़कर "भाषा युद्ध" की बात कही।परिसीमन और जनगणना 2027 के मुद्दे पर भी स्टालिन भाजपा पर हमलावर हैं.स्टालिन ने केंद्र पर आरोप लगाया कि 2027 की जनगणना और परिसीमन से तमिलनाडु की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे दक्षिण भारत की राजनीतिक ताकत कमजोर होगी।केंद्र ने इन आशंकाओं को निराधार बताया और गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया कि दक्षिणी राज्यों को नुकसान नहीं होगा।तमिलनाडु सरकार और केंद्र के बीच टकराव के तमाम मुद्दे है.

स्टालिन ने प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को, खासकर  तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन मामले में, राज्य के अधिकारों में दखल बताया। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगाई, इसे संघीय ढांचे का उल्लंघन माना।डीएमके ने केंद्र पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाया, जबकि बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई बताती है.तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड़ विचारधारा और तमिल भाषा का गौरव केंद्रीय मुद्दा रहा है। डीएमके और एआईएडीएमके दोनों इस अस्मिता को मजबूत करने में लगे हैं।तमिलनाडु का नाम "तमिझगम" करने का प्रस्ताव भी विवाद का कारण बना, जब राज्यपाल आरएन रवि ने इसे समर्थन दिया, जिसे डीएमके ने राष्ट्रीय एकता के खिलाफ माना।

सत्तारूढ़ दल के रूप में डीएमके को अपनी सामाजिक कल्याण योजनाओं और तमिल अस्मिता के मुद्दे पर भरोसा है, लेकिन कर्ज का बोझ और भ्रष्टाचार के आरोप चुनौतियाँ हैं.हालांकि  एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन 2026 में मजबूत चुनौती पेश कर सकता है, लेकिन अन्नामलाई और पलानीस्वामी के बीच तनाव गठबंधन की एकजुटता को प्रभावित कर सकता है। नवगठित टीवीके के नेता विजय की लोकप्रियता और युवा समर्थन नई राजनीतिक गतिशीलता ला सकता है, लेकिन संगठनात्मक अनुभव की कमी एक चुनौती होगी। आपको पता ही होगा कि सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन का गहरा प्रभाव है, जो 1916 में गैर-ब्राह्मण घोषणापत्र से शुरू हुआ।डीएमके और AIADMK दोनों द्रविड़ विचारधारा से निकले हैं, लेकिन छोटे दल जैसे पीएमकेवीसीकेऔर एमडीएमके भी जातीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रभाव रखते हैं।तमिल भाषा और संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता राजनीतिक रणनीतियों का आधार रही है। अब देखना ये है कि भाजपा तमालनाडु में खेला कर पाती है या नहीं?

@ राकेश अचल

रविवार, 8 जून 2025

क्या मुमकिन है टूटे दलों का एकीकरण ?

 

महाराष्ट्र में शिवसेना के तीन धडों के एकीकरण की सुगबुगाहट के साथ ही ये मुद्दा भी गर्म होने लगा है कि क्या शिव सेना समेत देश के तमाम विखंडित राजनीतिक दलों का एकीकरण मुमकिन है?  क्या एकीकरण का बिस्मिल्लाह शिव सेना से ही होगा ?

शिवसेना नेता और बालासाहेब के पुराने भक्त गजानन कीर्तिकर ने  शिवसेना के एकीकरण का सुर्रा तब छोडा जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की शिवसेनाओं के एकीकरण की सुगबगाहट तेज हुई. कीर्तिकर ने कहा,कि ''बालासाहेब ठाकरे के जीवित रहते हुए भी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक करने की कोशिश हुई थी लेकिन शिवसेना का विभाजन हो गया. शिवसेना और मनसे के अलग-अलग होने से शिवसेना को नुकसान हुआ. अब समय है कि ये दोनों एक साथ आएं. ठाकरे नाम एक ब्रांड है, और वह ब्रांड बना रहना चाहिए. ऐसी इच्छा पुराने शिवसैनिकों की है.'

शिंदे गुट के नेता गजानन कीर्तिकर ने कहा, “क्या ये दोनों (उद्धव ठाकरे-राज ठाकरे) साथ आएंगे? यह नहीं मालूम, लेकिन सुना है कि दोनों ने कुछ शर्तें रखी हैं. उद्धव ठाकरे ने कहा है कि राज ठाकरे को महायुति (बीजेपी गठबंधन) छोड़ना चाहिए, तो वहीं राज ने कहा है कि उद्धव को कांग्रेस का साथ छोड़ना चाहिए. दोनों की बातें सही हैं.” गजानन कीर्तिकर ने लोकसभा चुनाव के दौरान एकनाथ शिंदे की शिवसेना के लिए प्रचार भी किया था और शिंदे की उपस्थिति में शिवसेना में दोबारा एंट्री ली थी. 

 महाराष्ट्र में शिवसेना के तीन हिस्से हो गए है. एक शिवसेना उद्धव ठाकरे की है, दूसरी राज ठाकरे की है और तीसरी एकनाथ शिंदे की. उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी), जो एमवीए के साथ है. एमवीए में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की पार्टी एनसीपी है.  एकनाथ शिंदे गुट की पार्टी शिवसेना जो महायुति के साथ है. इसमें बीजेपी, शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी है.तीसरी शिवसेना राज ठाकरे की है. उनकी शिवसेना  मनसे के नाम से जानी जाती है. शिवसेना पहले पारिवारिक विवाद के चलते टूटी थी बाद में भाजपा ने उद्धव ठाकरे की सेना को दो फांक कर दिया था.

कीर्तिकर का दावा है कि, ''एकनाथ शिंदे, शिवसेना प्रमुख बालासाहेब की विचारधारा को लेकर ही पार्टी से बाहर निकले थे—जैसे हिंदुत्व, आक्रमक शैली, राष्ट्रीयता और मराठी लोगों का सर्वांगीण विकास लेकिन बीजेपी के साथ होने की वजह से आगे बढ़ने में उन्हें कई अड़चनें आती हैं. दोनों (उद्धव-राज) की शर्तें सही हैं, क्योंकि ये बाधाएं हैं जो अखंड शिवसेना बनने से रोक रही हैं. जब तक ये दूर नहीं होतीं, तब तक मजबूत शिवसेना नहीं बन पाएगी.”

आपको याद होगा कि एनडीए में पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना थी, फिर उन्होंने साथ छोड़ा, और फिर एकनाथ शिंदे ने उसमें प्रवेश किया. दोनों बालासाहेब की विचारधारा को आगे ले जाने की बात करते हैं. लेकिन मतदाता और कार्यकर्ता बालासाहेब की शिवसेना को जानते हैं, न कि बीजेपी या कांग्रेस प्रेरित शिवसेना को. इसलिए अगर असली शिवसेना को फिर से स्थापित करना है, तो इन तीनों को (राज-उद्धव-शिंदे) अपने-अपने गठबंधन छोड़ने होंगे.''

गजानन कीर्तिकर ने ये भी कहा, ''बालासाहेब खुद चाहते थे कि राज और उद्धव एक हों. उन्हें इस विभाजन के खतरे की पहले से जानकारी थी. आज अगर राज और उद्धव एक होने का रुख ले रहे हैं, तो वह अच्छा संकेत है लेकिन अगर हम फिर से बालासाहेब की प्रचंड, प्रभावशाली शिवसेना देखना चाहते हैं, तो उसमें एकनाथ शिंदे को भी शामिल होना चाहिए. अगर राज, उद्धव और शिंदे तीनों एक साथ आते हैं, तभी एक मजबूत शिवसेना दिखाई देगी. ये जरूरत महाराष्ट्र और शिवसैनिकों की है.

महाराष्ट्र में भाजपा ने केवल शिवसेना को ही नहीं तोड़ा बल्कि एनसीपी को भी तोडा. एक गुट शरद पंवार का है, दूसरा अजित पंवार का. एक गुट मविअ में है तो दूसरा एनडीए में.अब भाजपा ने शरद पंवार गुट को भी एनडीए में शामिल होने के लिए चारा डाला है. शरद पंवार भी भाजपा की ओर झुकते नजर आ रहे हैं. भाजपा के कारण मप्र में कांग्रेस टूट चुकी है. हरियाणा में भी ऐसी ही टूट जेजेपी में भी हुई. झारखंड में भाजपा ने झामुमो को  तोडा. बिहार में भी इसी तरह की तोडफोड प्रादेशिक दलों में हुई. सबसे ज्यादा तोडफोड का सामना कांगेस ने किया, फिर समाजवादी दल का नंबर आता है. बंगाल में सत्तारूढ तृमूका कांग्रेस का ही उत्पाद है.

अब सवाल ये है कि भाजपा की 'फूट डालो और राज करो  'की नीति के शिकार अनेक दल दोबारा एक होकर भाजपा से बदला लेंगे. इस सवाल का जबाब हां भी हो सकता है और ना भी. लेकिन टूटे दलों का एकीकरण. टूटना आसान है और जुडना कठिन भी. लेकिन राजनीति भी क्रिकेट की तरह संभावनाओं का खेल है. यहाँ कुछ भी सकता है. यदि टूटे दलों के एकीकरण की प्रक्रिया सत्तारूढ भाजपा के लिए घातक हो सकता है.

@राकेश अचल

शनिवार, 7 जून 2025

मेरी गजल

🌹🌹🌹

मोअजिज कौन है इस मुंबई में

जुबां हर मौन है इस मुंबई में

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सभी परिचय, अपरिचय एक से हैं

सिसकती पौन है इस मुंबई में

🌹

यहाँ घर हैं, मगर लगते हैं दडबे

मुहल्ले जोन हैं इस मुंबई में

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समंदर है यहाँ दुख बांटने को

अजब सी टोन है इस मुंबई में

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सुबह से शाम, भागमभाग, तौबा

सहारा फोन है इस मुंबई में

🌹

धरम के नाम पर धंधे अनेको

नया इस्कोन है इस मुंबई में

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सऊदी सा, कतर सा, एक हिस्सा

उरई-जालौन है, इस मुंबई में

🌹

कोई जीता नहीं, मरता नहीं है

सभी का 'क्लोन 'है इस मुंबई मे

🌹

@ राकेश अचल

लगातार गायब होते सिक्के और दुर्लभ होते नोट

  

आज का विषय शुष्क जरूर है लेकिन है महत्वपूर्ण. आज हम भारत की उस मौद्रिक प्रणाली की बात कर रहे हैं जिसके चलते हमारे देश से तमाम नोट और सिक्के गायब हो रहे हैं. हम शायद ऐसी आखिरी पीढी के लोग होंगे जिन्होने अपने देश की सबसे छोटी मुद्राक्ष1 पैसे के सिक्के या एक रुपये के नोट को बाजार में चलते हुए देखा था धीरे धीरे  ये सिक्के और नोट चलन से बाहर हो गये. अब 2000 के नोट के बाद 2रुपये का नोट भी दुर्लभ हो रहा है.

रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया के द्वारा मुद्रा व्यवस्था में बड़ी बदलाव की गई है। आरबीआई ने ₹2, रु5 और ₹2000 के नोटों की छपाई बंद कर दी है। इस बदलाव का मुख्य मकसद डिजिटल करेंसी को बढ़ावा देना है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया पहले 2000 नोटों की छपाई बंद कर चुका है। अब ₹2 और ₹5 के नोटों की छपाई पर भी रोक लग जाएगी.अब ऐसे नोट आम लोगों के जेबों से भी गायब हो चुके हैं। इसका चलन लगभग बंद हो चुका है। सिर्फ नोट ही नहीं बल्कि सिक्कों के इस्तेमाल में भी कमी देखने को मिल रही है। छोटे लेनदेन के लिए ही लोग अब ₹2 या ₹5 के सिक्कों का इस्तेमाल करते हैं।

रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने बताया कि ऐसे नोटों के छपाई में ज्यादा खर्चा आ रहा था। हर साल इसके छपाई में लगभग 6372 करोड रुपए तक का खर्च आ जाता था। लेकिन इसका इस्तेमाल बेहद कम किया जाता था, यही वजह है कि ऐसे नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया है।

आरबीआई ने साफ किया है कि पुराने और गंदे नोटों का रीसायकल किया जाएगा। आज के समय में ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा दिया जा रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने साफ कर दिया है कि कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा दिया जाएगा यही वजह है कि छोटे नोटों को अब बंद किया जा रहा है।

अभी कुछ समय पहले ही रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने ₹5 के पुराने सिक्के को बंद करने का फैसला लिया था। इसका मुख्य कारण था ऐसे सिक्कों को छापने में काफी ज्यादा खर्च आ रहा था। अब दो और ₹5 के नोटों को बंद करने का भी और आरबीआई ने फैसला किया है और जल्द ही ऐसे नोट मार्केट से पूरी तरह गायब हो जाएंगे।

मुझे याद है कि आज से आधी सदी पहले देश में 1,2,3,5, और 25,पैसे के सिक्के इफरात में चलन में थे. सबसे छोटा नोट एक रुपये का था, जो चल तो अब भी रहा है लेकिन अब बेचारे की कोई हैसियत नहीं है. और अब दो, पांच रुपये के नोटों के वजूद पर संकट मंडरा रहा है. नोटों और सिक्कों के प्रचलन से बाहर होने की वजह मंहगाई है. नोट और सिक्के बनाने का बढता खर्च है. मजे की बात ये  है कि हमारी मौद्रिक प्रणाली जस की तस है लेकिन सिक्कों और नोटों का वजूद खतरे में है.

 मै उन लोगों मे से हूँ जिन लोगों ने अधन्नी, एकन्नी, दुअन्नी, चार पैसा, पांच पैसा, दस पैसा, बीस पैसा, चवन्नी (25 पैसे), अठन्नी (50 पैसे): के सिक्के देखे और इस्तेमाल किए हैं.ये सिक्के  धीरे धीरे बंद किए गए, क्योंकि उनकी खरीद शक्ति कम हो गई थी और उत्पादन लागत अधिक थी। उदाहरण के लिए, 25 पैसे और उससे कम मूल्य के सिक्के 30 जून 2011 से वैध मुद्रा के रूप में बंद हो गए।एक रुपये, दो रुपये, और पांच रुपये के नोट भी धीरे-धीरे सर्कुलेशन से हटा लिए गए, क्योंकि सिक्कों ने इनकी जगह ले ली। एक रुपये का नोट 1994 में बंद हुआ, और दो रुपये व पांच रुपये के नोट भी 1990 के दशक में धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गए।

मैने अपने घर में 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट देखे हैं. ये नोट देश आजाद होने के पहले से चलन में थे. इन्हे कुछ समय के लिए बंद किया गया लेकिन 1954 में फिर से शुरू कर दिया गया.साथ ही 5,000 रुपये का नोट भी छापा गया। लेकिन ये सभी नोट 1978 में फिर से बंद हो गए।

एक लंबे अरसे के बाद 2005 में नोटों का विमुद्रीकरण फिर हुआ.2005 से पहले के 500 रुपये के नोटों को मनमोहन सिंह सरकार ने बंद किया था।भारत में नोटबंदी की प्रमुख घटनाएँ 1946, 1978, और 2016 में हुईं, जिनमें उच्च मूल्यवर्ग के नोट (500, 1,000, 5,000, 10,000 रुपये) बंद किए गए। 2023 में 2,000 रुपये के नोट को सर्कुलेशन से हटाया गया, लेकिन यह पूर्ण नोटबंदी नहीं थी। सिक्कों में छोटे मूल्यवर्ग (जैसे 25 पैसे, 50 पैसे) और कुछ छोटे नोट (1, 2, 5 रुपये) भी समय के साथ बंद हो गए। इन फैसलों के खिलाफ देश में कभी कोई आंदोलन नहीं हुआ क्योंकि कभी किसी ने मुद्रा को देश की अस्मिता से नहीं जोडा.

मैंने  दुनिया के अनेक देशों में भी छोटे सक्के और नोट प्रचलन में देखे हैं खासतौर पर इंग्लैंड और अमेरिका में. दुनिया के तमाम देश आज भी अपनी मुद्रा का भरपूर सम्मान करते है एक भारत देश है जहाँ आपको एक रुपया या पचास पैसे के सिक्के के बदले में चाकलेट, माचिस या च्विंगम थमाई जा सकती है और आप कुछ नहीं कर सकते. विदेशों में आप छोटे सिक्कों को भी वही सम्मान मिलते देख सकते हैं जो किसी बडे नोट को मिलता है. विदेशो में छोटे सिक्कों को आप रुपये में बदल सकते हैं. इसके लिए टेलरिंग मशीनें लगी हैं. वहां लागत की बिना पर किसी सिक्के या नोट का गला नहीं घोंटा गया. लेकिन भारत में किसी मंच पर इस समस्या पर विमर्श नहीं होता. संसद में भी नही. सवाल मे है जब आप प्लास्टिक मुद्रा से पैसे और सिक्के नहीं हटा रहे तो आभासी दुनिया से उन्हें विदा क्यों किया जा रहा है.

लागत की आड में सिक्के ही नहीं हमारे पोस्टकार्ड, अंतर्देशी लिफाफे भी गायब हो गये. आने वाले दिनों  में और  पता नहीं है कि लागत बढने के नाम पर और क्या क्या बंद हो सकता है.

@राकेश अचल

शुक्रवार, 6 जून 2025

एक लाख वृक्षारोपण का संकल्प : सांसद भारत सिंह कुशवाह के मुख्य आतिथ्य में संस्था सदस्यों के साथ पोधारोपड़ किया

 ग्वालियर। समाजसेवी संस्था अनुपमा राज डंडोतिया वेलफेयर फाउंडेशन गंगा जगत गुरुधाम अखाड़ा परिषद बड़ागांव द्वारा संस्था की सरंक्षक स्व. रामश्री देवी दंडोतिया  की स्मृति में एक लाख पोधारोपड़ करने का संकल्प लिया और सांसद भारत सिंह कुशवाह के मुख्य आतिथ्य में संस्था सदस्यों के साथ पोधारोपड़ किया ।

इस अवसर पर ग्वालियर सांसद भारत सिंह कुशवाह ने अनुपमा राज दंडोतिया वेलफेयर फाउडेशन द्वारा अपनी माँ रामश्री देवी दंडोतिया की स्मृति में एक पेड़ माँ के नाम एक पेड़।पूर्वजो,शहीदों के नाम कार्यक्रम की सराहना की ऒर प्रधानमंत्री मोदी के साथ अनुपमा राज दंडोतिया वेलफेयर फाउडेशन की पुनीत पहल उद्देश्य में सभी से सहभागी बनने की अपील की ।
इस अवसर पर सांसद भारत सिंह कुशवाह,राज दंडोतिया अनुपमा दंडोतिया रामवरण शास्त्री, रामवीर शर्मा,पूजा गुप्ता, जयारोग्य अस्पताल अधीक्षक सुधीर सक्सेना,उप अधीक्षक बालेन शर्मा,अमित दुबे, अखिलेश पांडे सहित सेकड़ो कार्यकर्ताओ ने सभी देश व प्रदेश वासियो से एक पेड़ माँ पूर्वजों शहीदों के नाम लगाने की अपील की ।

सिंधी समाज के जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिये पाठ्य सामग्री वितरण कार्यक्रम के फॉर्म 15 जून से होंगे वितरित

 सिंधु विद्यार्थी शिक्षा चैरिटेबल ट्रस्ट की पहल

पूज्य सिंध  हिंदू जनरल पंचायत द्वारा गठित

 ग्वालियर । सिंधु विद्यार्थी शिक्षा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा सिंधी समाज के जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए पाठ्य सामग्री वितरण कार्यक्रम के अंतर्गत आवेदन फॉर्म का वितरण दिनांक 15 जून से प्रारंभ होगा। मीडिया प्रभारी अमर माखीजा जी ने बताया कि ट्रस्ट के मुख्यन्यासी श्रीचंद वलेचा जी के निवास पर हुई पंचायत के महासचिव श्रीचंद  पंजाबी जी की अध्यक्षता में मीटिंग में यह तय  किया गया।

ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री प्रहलाद रोहिरा एवं महासचिव ओम प्रकाश छाबड़ा के नेतृत्व में फॉर्म का वितरण तीन चरणों में सप्ताह के निर्धारित दिनों में झूलेलाल परमार्थ ट्रस्ट भवन दाना ओली में प्रातः 10: 30 बजे से 12:30 बजे तक किया जाएगा। यह तिथियाँ 15, 16, 17 जून, 22, 23, 24 जून एवं 29, 30 जून तथा 1 जुलाई रहेंगी। पात्र विद्यार्थियों को जुलाई के प्रथम पखवाड़े में पाठ्य सामग्री वितरित की जाएगी। इस कार्यक्रम के संयोजक विजय वलेचा, अमृत माखीजानी, धनराज दर्रा एवं गोपाल मोटवानी रहेंगे।

 मीटिंग में  मुख्य रूप से ट्रस्ट के उपाध्यक्ष भीष्म पमनानी, दिलीप हुंदवानी, सचिव मुकेश वासवानी कोषाध्यक्ष निर्मल एलानी एवं वितरण समिति सदस्य नरेन्द्र छबलानी, संतोष वाधवानी, जय जयसिंघानी एवं सुशील कुकरेजा, रमेश रुपानी उपस्थित थे ।

सभी अभिभावकों एवं विद्यार्थियों से समय पर फॉर्म प्राप्त कर निर्धारित तिथियों में जमा कराने की अपील की गई है।

गुरुवार, 5 जून 2025

शिवपुरी के खनियाधाना ब्लॉक के शिक्षा विभाग के सभी अधिकारी कर्मचारियों को दो माह से नहीं मिला वेतन

वेतन न मिलने के कारण भुखमरी के कगार कर्मचारी शीघ्र वेतन दिया जाए - डॉ अग्र

 ग्वालियर । जिला शिवपुरी के खनियाधाना ब्लॉक के शिक्षा विभाग के सभी अधिकारी कर्मचारी दो माह से वेतन न मिलने के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड रहा हैं ।

आरक्षित वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ अवाक्स के संस्थापक प्रांताध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र ने बताया कि खनियाधाना ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले शिक्षक पत्राचार क्लर्क चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को विगत दो माह अप्रैल 2025 से मई 2025 का वेतन नहीं मिला इस कारण शिक्षा विभाग खनियाधाना ब्लॉक के सभी शासकीय अधिकारी कर्मचारी भुखमरी के कगार पर है बच्चों के एडमिशन के लिए फीस भी जमा नहीं कर पा रहे हैं ट्यूशन फीस भी जमा नहीं कर पा रहे हैं ईएमआई किस्त भी जमा नहीं कर पा रहे हैं परिवार में बीमा सदस्यों का इलाज भी नहीं कर पा रहे हैं ।

 दवाई डॉक्टरी जांच के लिए भी कर्मचारी परेशान हो रहे हैं। उधारी जैसे दूध और करना और सब्जी वाले उनके घरों पर चक्कर काट रहे हैं इससे उनकी बेजती हो रही है आरक्षित वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ अवाक्स के संस्थापक प्रांताध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र ने मध्य प्रदेश शासन ऊर्जा विभाग के मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर मनोज खत्री आयुक्त ग्वालियर संभाग ग्वालियर कलेक्टर जिला शिवपुरी तथा सहयोग संचालक लोक शिक्षण संभाग ग्वालियर एवं जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिवपुरी से मांग की है कि खनियाधाना ब्लॉक के शिक्षा विभाग के सभी अधिकारी कर्मचारियों को शीघ्र से शीघ्र विगत 2 माह अप्रैल और मई 2025 का वेतन  भुगतान शीघ्र से शीघ्र किया जाए डॉ  जवर सिंह अग्र ने रोष व्यक्त करते हुए कहा है कि मध्य प्रदेश शासन के स्पष्ट नियम है कि सभी अधिकारी कर्मचारियों को महीने की पहली तारीख को हर हालत में वेतन का भुगतान होना चाहिए इस प्रकार के आदेश वित्त विभाग के भी हैं फिर भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण कर्मचारियों को दो माह से वेतन का भुगतान नहीं हो रहा है आज 5 तारीख हो गई शीघ्र से शीघ्र वेतन का भुगतान कराया जाए कल दिनांक 6 जून 2025 को अब्बास के संस्थापक प्रांताध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र मध्य प्रदेश शासन की ऊर्जा मंत्री जिला शिवपुरी के प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर एवं आयुक्त ग्वालियर संभाग ग्वालियर कलेक्टर जिला शिवपुरी संयुक्त संचालक लोक शिक्षण ग्वालियर संभाग ग्वालियर तथा जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिवपुरी को पत्र भेजकर कर्मचारियों को शीघ्र वेतन भुगतान करने की मांग करेंगे।

बुधवार, 4 जून 2025

राजा-रानियों पर लट्टू मोहन बाबू की सरकार


मप्र में भाजपा सरकार राजा और रानियों पर लट्टू है. मप्र में भाजपा 2003,में सत्ता में आई थी. जनता ने भाजपा को 20018 के विधानसभा चुनाव में उखाड फेंका था, लेकिन मात्र 19महीने बाद ही एक स्वयंभू महाराज की कृपा से भाजपा पुनः सत्ता में लौट आई तो भाजपा का राजा रानी प्रेम और बढ गया. आजकल भाजपा प्रदेश के अनेक राजा रानियों को सम्मानित करने में खजाना लुटा रही है.

आपको याद होगा कि भाजपा सरकार ने सबसे पहले भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर एक आदिवासी  गोंड रानी कमलापत को सम्मान देते हुए हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापत स्टेशन कर दिया.मप्र के लोग रानी कमलापत को भूल चुके थे लेकिन भाजपा ने उन्हे खोज निकाला.रानी कमलापति 18वीं शताब्दी की भोपाल की अंतिम गोंड रानी थीं। उनका विवाह गिन्नौरगढ़ के गोंड राजा निजाम शाह से हुआ था, जिनकी सात पत्नियों में से कमलापति सबसे प्रिय थीं।


 वे सीहोर के सलकनपुर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया की बेटी थीं और अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता, और साहस के लिए जानी जाती थीं। कमलापति कुशल घुड़सवार, धनुर्धर, और सेनापति थीं, जिन्होंने अपने पिता की सेना के साथ युद्धों में हिस्सा लिया।1720 में निजाम शाह की उनके भतीजे आलम शाह (या कुछ स्रोतों में चैन सिंह) द्वारा जहर देकर हत्या के बाद, रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह के साथ भोपाल के कमलापति महल में आ गईं। उन्होंने अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए अफगान सरदार दोस्त मोहम्मद खान से मदद मांगी, जिसके बदले में उन्होंने एक लाख रुपये देने का वादा किया। दोस्त मोहम्मद ने आलम शाह को मार दिया, लेकिन रानी पूरी राशि नहीं दे पाईं और भोपाल का हिस्सा देना पड़ा।बाद में, दोस्त मोहम्मद ने भोपाल पर कब्जा करने की कोशिश की और रानी को अपने हरम में शामिल करने का प्रस्ताव रखा। अपनी और अपने बेटे की रक्षा के लिए रानी ने विरोध किया। 1723 में, जब दोस्त मोहम्मद ने हमला किया, रानी के 14 वर्षीय बेटे नवल शाह ने लाल घाटी में युद्ध लड़ा, जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। रानी ने अपनी आबरू और भोपाल को बचाने के लिए महल के पास तालाब में अपनी संपत्ति डालकर जल समाधि ले ली। उनके बलिदान के बाद भोपाल में नवाबों का शासन शुरू हुआ।रानी कमलापति की वीरता और साहस के सम्मान में भोपाल के हबीबगंज  स्टेशन का नाम 2021 में उनके नाम पर रखा गया।

रानी कमलापत के बाद हाल ही में इंदौर की रानी अहिल्या बाई को सम्मान देने के लिए मप्र सरकार ने अहिल्या बाई  मराठा की 300 वीं सालगिरह पर इंदौर के राजवाडा में मंत्रिमंडल की बैठक पर करोडों रुपये फूंक दिए.अहिल्या बाई होल्कर (31 मई 1725 – 13 अगस्त 1795) मराठा साम्राज्य की होल्कर रियासत की रानी थीं, जिन्हें उनकी प्रशासनिक कुशलता, साहस और समाज सुधार के लिए जाना जाता है। वे मालवा की रानी थीं और अपने पति खंडेराव होल्कर की मृत्यु के बाद उन्होंने होल्कर राज्य का नेतृत्व संभाला।

अहिल्या बाई ने अपने शासनकाल में मालवा को समृद्ध और सुव्यवस्थित बनाया। उन्होंने न्याय, व्यापार और कृषि को बढ़ावा दिया। उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया और सामाजिक भेदभाव को कम करने के प्रयास किए।धार्मिक और सांस्कृतिक कार्य: अहिल्या बाई ने कई मंदिरों, घाटों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण और सोमनाथ मंदिर की मरम्मत शामिल हैं। उन्होंने होल्कर सेना को मजबूत किया और कई युद्धों में अपनी रणनीतिक कुशलता दिखाई।अहिल्या बाई को उनकी सादगी, धर्मनिष्ठा और जनता के प्रति समर्पण के लिए याद किया जाता है। उन्हें "पुण्यश्लोक" (पवित्र ख्याति वाली) कहा जाता है।

अहिल्या बाई को सम्मान देने के बाद राज्य सरकार को अचानक एक और आदिवासी राजा भभूत सिंह को सम्मानित करने की याद आ गई. राज्य सरकार न राजा भभूत सिंह को सम्मानित करने के लिए मंत्रिमंडल की बैठक पचमढी में आयोजित कर डाली.अब आप कहेंगे कि ये कौन से राजा हैं तो आपको बता दें कि राजा भभूत सिंह मध्य प्रदेश के पचमढ़ी क्षेत्र के एक जनजातीय शासक थे, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सतपुड़ा की वादियों में उन्होंने तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन का मुकाबला किया। वे हर्राकोट के जागीरदार थे और जनजातीय समाज पर उनका गहरा प्रभाव था। 

राजा भभूत सिंह ने गुरिल्ला युद्ध पद्धति का उपयोग कर अंग्रेजों को परेशान किया, खासकर देनवा घाटी में, जहां उनकी सेना ने अंग्रेजी फौज को हराया। उनकी रणनीति शिवाजी महाराज की छापामार युद्ध शैली से मिलती-जुलती थी।1858 में, तात्या टोपे के साथ नर्मदा नदी पार करने और स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत करने में उनकी भूमिका उल्लेखनीय थी। हालांकि, 1860 तक वे अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करते रहे, लेकिन अंततः उन्हें पकड़ने के लिए ब्रिटिश सेना को विशेष प्रयास करने पड़े। उनकी वीरता और नेतृत्व को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हाल के वर्षों में सम्मानित किया गया है, जैसे कि 3 जून 2025 को पचमढ़ी में उनकी स्मृति में आयोजित कैबिनेट बैठक और पौधरोपण कार्यक्रम।

भाजपा दर असल राजा रानियों की अनुकंपाओं से उऋण होना चाहती है. पूर्व में भाजपा ने ग्वकी राजमाता के नाम से कृषि विश्वविद्यालय बनाया तो राजा मानसिह तोमर के नाम से संगीत विश्वविद्यालय बना दिया. पूरे प्रदेश में राजा रानियों की दर्जनों प्रतिमाएं लगीं है.ग्वालियर में सिंधिया, जबलपुर में रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या देवी की प्रतिमाएं बनाने में भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी कभी कंजूसी नहीं दिखाई.

आने वाले दिनों में पता नहीं किस राजा या रानी को सम्मान देने के लिए खोज लिया जाए. मप्र सरकार राजा रानियों के बिना शायद चल ही नहीं सकती. कांग्रेस ने भी दशकों तक राजा रानियों को झेला. राजा नरेन्द्र सिंह, अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह, महाराज माधवराव सिंधिया कांग्रेस के लिए पूजनीय रहे थे. भाजपा ने भी अनेक राजा मंत्रिमंडल में रखे. एक थे मानवेन्द्र सिंह जो मंत्री बनाए गये थे. एक हो तो गिनाएं भी, मप्र में तो राजा रानियों की इफरात है.

@राकेश अचल

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