सोमवार, 19 मई 2025

संसद के विशेष सत्र से कन्नी काटती सरकार

भारत सरकार आपरेशन सिंदूर के पहले और बाद का सच बताने के लिए सांसदों के सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडलों को दुनिया के 33देशों में भेज सकती है. विदेश सचिव इन सांसदों को आपरेशन सिंदूर और सीजफायर के बारे में ब्रीफिंग कर सकते हैं लेकिन देश की संसद का सामना करने के लिए सरकार तैयार नहीं है. संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग से सरकार लगातार कन्नी काट रही है.

सरकार का रवैया संसद को लेकर इतना उपेक्षापूर्ण क्यों है कोई नहीं जानता किंतु ये जानने में दिलचस्पी सभी की है. कुछ तो ऐसा है जिसे सरकार देश से यानि संसद से छुपाना चाहती है. सरकार अगर देश की संसद को सब कुछ सच सच बता देती तो दुनिया को बताने के लिए ये तामझाम करने की जरूरत ही नहीं पडती. लेकिन मुश्किल ये है कि  हमारी सरकार विपक्ष से इस नाजुक मसले पर सहयोग तो ले लेती है किंतु सच्चाई छुपाने से बाज नहीं आती.

खबर है कि सरकार के निर्देश पर विदेश सचिव विक्रम मिसरी  संसदीय कमेटी को भारत-पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सैन्य टकराव पर जानकारी दे रहे हैं. यह टकराव पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुआ था, जिसके जवाब में भारतीय सशस्त्र बलों ने ऑपरेशन सिंदूर के साथ आतंकी ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई की थी. इस ऑपरेशन का मकसद आतंकी और उनके ठिकानों को तबाह करना था.

दोनों देशों के बीच मई 10 को सभी सैन्य गतिविधियों को रोकने का समझौता हुआ, जिससे तनाव में कमी आई. विक्रम मिसरी सरकारी मुलाजिम हैं, उनसे जो कहा जा रहा है वो कर रहे हैं.कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली कमेटी को सोमवार और मंगलवार को "भारत-पाकिस्तान के संबंधों में वर्तमान विदेशी नीति के विकास" पर विस्तार से अवगत कराएंगे.

इसके साथ ही जल संसाधन समिति की भी मीटिंग होगी, जिसका नेतृत्व बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी कर रहे हैं. उन्हें विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारी बाढ़ की स्थिति, नदी किनारों की सुरक्षा, मानसून में राहत उपाय और सीमा पार बहने वाली नदियों से जुड़ी समस्याओं पर ब्रीफिंग देंगे. इन दोनों बैठकों का मकसद सरकार की नीतियों और हाल के घटनाक्रम पर पारदर्शिता लाना है.

आपको पता ही है कि संसद से कन्नी काटने वाली हमारी बैशाखा सरकार  का सात सांसदों का डेलिगेशन भेजना का प्लान है. इसके तहत सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में आतंकवाद से सख्ती से निपटने की भारत की प्रतिबद्धता को वैश्विक नेताओं तक पहुंचाने के लिए 33 देशों की राजधानी में सभी पार्टी प्रतिनिधिमंडलों को भेजने का भी फैसला किया गया है. अलग-अलग देशों में सात सांसदों का प्रतिनिधिमंडल जाएगा और पाकिस्तान को आतंक के मसले पर बेनकाब करेगा.

संसद से मुँह छुपाने के पीछे सरकार का क्या निहितार्थ है ये सरकार ही जानें किंतु ये एक तरह से संसद की अवमानना है. संसद की अवमानना पहली बार नहीं हो रही. इससे पहले भी मणिपुर के मुद्दे पर विपक्ष की पुरजोर मांग के बाद भी संसद का विशेष सत्र नहीं बुलाया गया था. सरकार ने संसद का विशेष सत्र नारी वंदन विधेयक को पारित करने के लिए जरूर बुलाया था.

आप खुद तय कर सकते हैं कि सरकार के लिए क्या महत्वपूर्ण है, देश के भीतर-बाहर के तनाव पर संसद को भरोसे में लेना या राजनीति के लिए कोई विधेयक पारित करना जिस पर फिलहाल अमल नहीं होना था. समस्या ये है कि यदि आप सरकार से सवाल करते हैं तो आपको जेल भेजा जा सकता है और यदि सवाल नहीं करते तो आपका एक लोकतान्त्रिक देश में रहने का अर्थ क्या है?

मौजूदा मुद्दे पर सरकार लाख चुप्पी साध ले एक न एक दिन उसे संसद को यानि देश को आपरेशन सिंदूर और सीजफायर का सच तो बताना ही पडेगा. संसद देश की दाई है और कहावत है कि दाई से पेट(गर्भ) नहीं छिपता. दाई से पेट छिपाना आत्मघाती साबित हो सकता है. दाई के पास अनुभव और इल्म दोनों होता है. बेहतर हो कि सरकार अपनी हठधर्मी छोडकर दुनिया में ढोल पीटने के पहले देश की संसद को भरोसे में ले. विपक्ष पहले से बिना शर्त सरकार को समर्थन दे चुका है. ऐसे में विपक्ष और संसद का आदर करना सरकार का नैतिक और संवैधानिक दायित्व है. अभी भी कुछ नहीं बिगडा. सरकार बिना देर किए संसद का विशेष सत्र आहूत करे. सुप्रीम कोर्ट से सवाल करने वाली राष्ट्रपति को सरकार पर दबाब डालना चाहिए. राष्ट्रपति का मौन भी वेदनाजनक है.राष्ट्रपति का काम केवल दही-मिश्री खिलाना ही नहीं है, सरकार के कान उमेंठना भी है.

@ राकेश अचल

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