शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

नोटबंदी के बाद अघोषित वोटबंदी की ओर देश

 

लिखने के लिए विषय और मुद्दे कभी समाप्त नहीं होते. बीती रात मैने मप्र की राजनीति पर लिखने का मन बनाया था किंतु लिख रहा हूं बिहार की राजनीति के बहाने देश पर थोपी जा रही वोटबंदी की. सरकार नोटबंदी के बाद विपक्ष पर जीत हासिल करने के लिये वोटबंदी का सहारा ले रही है. इसके लिए सरकार ने अपने केंचुए को सक्रिय कर दिया है. केंचुआ अचानक कोबरा की मुद्रा में नजर आ रहा है.

नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल 9 जून 2024 को शुरू हुआ, जब वे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ लेने वाले दूसरे नेता बने, पहले जवाहरलाल नेहरू थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 293 सीटें जीतीं, लेकिन भाजपा अकेले 240 सीटों के साथ बहुमत से चूक गई। इससे मोदी को तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जिससे उनके पिछले एकल-निर्णयकारी शासन की तुलना में सहयोगात्मक शासन शैली की आवश्यकता है।किसी ने नहीं सोचा था कि बैशाखियों पर टिकी सरकार विनम्र होने के वजाय और दंभी हो जाएगी.

मोदी का यह कार्यकाल उनके पिछले कार्यकालों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि गठबंधन की गतिशीलता और एक मजबूत विपक्ष (इंडिया गठबंधन, 234 सीटें) के कारण उन्हें सत्ता साझा करनी पड़ रही है। विश्लेषकों का कहना है कि आर्थिक मुद्दे, जैसे महामारी के बाद बेरोजगारी, और धार्मिक ध्रुवीकरण की आलोचना ने मतदाताओं को प्रभावित किया। फिर भी, मोदी विकास और हिंदू राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे पर जोर दे रहे हैं, 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखते हुए।क्या आप किसी विशिष्ट पहलू, जैसे नीतियों या राजनीतिक चुनौतियों, पर अधिक जानकारी चाहेंगे?इसी के तहत मोदी जी किसी भी सूरत में बिहार जीतना चाहते हैं. बिहार जीते बिना वे बंगाल नहीं जीत सकते.

बिहार जीतने के लिए भाजपा ने बिहार की मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण और सत्यापन के बहाने कम से कम 3करोड मतदाओं को मताधिकार से वंचित करने की रणनीति बनाई और इस पर अमल के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग को सक्रिय कर दिया. केंचुए ने मतदाता सत्यापन के लिए जो नियम बनाए हैं वे अमेरिका में अवैध प्रवासियों के लिए बनाए गये नियमों से भी ज्यादा कठिन हैं. यानि वे 3करोड मतदाता रोजी रोटी के लिए बिहार से बाहर हैं वे पहले सत्यापन के लिए अपने घर आएं. अपने माँ बाप के जन्म प्रमाण पत्र जुटाएं जो असंभव है. और जुटा भी लें तो मतदान के दिन फिर बिहार आएं.

विपक्ष ने इन अव्यावहारिक नियमों का विरोध करत हुए केंचुआ प्रमुख से मलना चाहा तो उन्होने राजनतिक दलों के प्रतिनिधियों से मिलने के नये नियम बना दिए. केंचुआ एक दल के केवल अध्यक्ष और महासचिव से ही मिलना चाहता है. यानि केंचुए का दफ्तर न हुआ बल्कि रक्षा मंत्रालय हो गया. लग ऐसा रहा है कि केंचुआ भाजपा य संघ का कोई नुषांगिक संगठन बन गया है.

अब सवाल ये है कि वोटबंदी के लिए तमाम अनैतिक, गैर कानूनी तरीके अपनाकर क्या भाजपा बिहार को महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह जीत लेगी? क्या भाजपा इस चुनाव में अपने सहयोगी दलों को शिवसेना और एनसीपी की तरह तोड सकेगी? क्या भाजपा बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को एकनाथ शिंदे की तरह पदावनत कर पाएगी? यदि भाजपा ये सब न कर पायी तो उसे झारखण्ड की तरह बिहार में मुंह की खाना पडेगी. वोटबंदी शायद ही भाजपा के काम आए.

नोटबंदी को देश का विपक्ष नहीं रोक पाया था और यदि वोटबंदी को भी  न रोक पाया तो विपक्ष निर्मूल हो जाएगा. फिर देश में न धर्मनिरपेक्षता बचेगी और न समाजवाद. देश अखंड भी शायद न रह पाए और तमाम राज्य जम्मू काश्मीर की तरह खंडित कर दिए जाएं. सत्ता में अनंतकाल तक रहने की लालसा पूरी करने के लिए भाजपा अपने प्रधानमंत्री बडे  से बडा पाप करा सकती है. वैसे भी मौजूदा प्रधानमंत्री का ये अंतिम कार्यकाल है. संघ को अब 400 पार कराने वाला नेता चाहिए, 240 पर अटकने वाला नहीं. बिहार ही संघ, भाजपा और मोदीजी की किस्मत का फैसला करेगा. बिहार समग्र क्रांति का जनक है.

@ राकेश अचल

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