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शनिवार, 12 जुलाई 2025

आजकल डॉ मोहन यादव पर लट्टू हैं ज्योतिरादित्य

 

चौंकिए मत! आज का शीर्षक सौ फीसदी सही है. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आजकल मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव पर लट्टू हैं. वे इससे पहले के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, स्वर्गीय बाबूलाल गौर या कमलनाथ पर इतने फिदा नहीं थे जितने कि डॉ यादव पर हैं.

मप्रके मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव पर सिंधिया के फिदा होने की एक वजह हो तो गिना भी दें लेकिन डेढ साल में मुख्यमंत्री यादव ने सिंधिया के अहं को जिस ढंग से संतुष्ट किया है वो काबिले गौर है. मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने सबसे बडी चुनौती दर असल सिंधिया नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं. चौहान का दबाब कम करनेके लिए ही मोहन यादव का झुकाव सिंधिया की ओर हो गया है.

पिछले डेढ साल में सिंधिया ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को जब भी याद किया वे गुना से लेकर ग्वालियर के बीच हाजरी देते नजर आए. मुख्यमंत्री यादव ने सिंधिया को भी खुश रखा और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिह तोमर को भी. मुख्यमंत्री डॉ यादव नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेन्द्र तोमर द्वारा आयोजित भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में भी शामिल हुए. डॉ यादव दर असल हिकमत अमली के उस्ताद साबित हो रहे हैं. उन्हे पता है कि सिंधिया पासंग वाले नेता हैं. वे जब शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मैदान में उतरे तो चौहान को सत्ता से हाथ धोना पडे थे, कमलनाथ के खिलाफ उतरे तो उनकी कुरसी चली गई थी और जब सिंधिया कमलनाथ तथा शिवराज सिंह चौहान पर मेहरबान हुए तो उन्हे रातोंरात सत्ता में वापिस भी ले आए थे.

सूत्र बताते हैं कि सिंधिया ने भी सूबे में अपना वजूद बनाये रखने के लिये सिंधिया को खुश रखने में कोई कंजूसी नहीं की. मुख्यमंत्री यादव ने सिंधिया की कमजोर नस पकड ली है. सिंधिया को अपनी जै - जै पसंद है और मुख्यमंत्री यादव को जै- जै करने में कोई संकोच नहीं है. वे समझ गये हैं कि सिंधिया की जै- जै करना सस्ता सौदा है. सिंधिया के इशारे मुख्यमंत्री समझने लगे हैं. किस अफसर को सिंधिया पसंद करते हैं और किससे खफा हैं ये मुख्यमंत्री को पता रहता है. ग्वालियर और गुना में इनदिनों सिंधिया 'मिनी मुख्यमंत्री ' की भूमिका में नजर आने लगे हैं

पिछले दिनों ग्वालियर में समरसता सम्मेलन में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की शान में कसीदे पढे. विधानसभा सभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की मौजूदगी में कसीदे पढे. सिंधिया ने सम्मेलन में आमंत्रित भीड को भोजन परोसने में भी मुख्यमंत्री का हाथ बंटाया. बेचारे तोमर साहब देखते रहे.दरअसल ग्वालियर भाजपा में सिंधिया समर्थकों की संख्या पहले कम थी, लेकिन अब सिंधिया ने संगठन में भी अपनी जगह बना ली है.

आपको बता दें कि सिंधिया को साधकर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादल सूबे में लोकप्रियता के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौऔहान से बडी लकीर खींचने लगे हैं. डॉ यादव अपने आपको आम आदमी के रूप में स्थापित करना चाहते है. इसके लिए वे काम भी कर रहे है.मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के निवासी उस वक्त हैरान रह गए, जब गुरुवार की रात प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव अचानक उनके बीच पहुंच गए. मुख्यमंत्री ने बाजार में न केवल आम जनता से मुलाकात की और उनका हालचाल जाना, बल्कि एक ठेले वाले से फल भी खरीदे. उन्होंने फल विक्रेता को डिजिटल पेमेंट भी किया.

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने अपने समर्थकों को भाजपा संगठन और निगम, मंडलों में जगह दिलाने की चुनौती है

डॉ यादव से पहले शिवराज सिंह चौहान ने लंबे अरसे तक निगम, मंडलों में नियुक्तियां न कर सिंधिया की खूब किरकिरी कराई. डॉ यादव को पता है कि सिंधिया की पार्टी हाईकमान और आर एस एस में भी गहरी पैठ है जो प्रदेश में सत्ता संतुलन बनाए रखने के बहुत काम आ सकती है. इसलिए वे सिंधिया की हर छोटी- बडी ख्वाहिश पूरी करने में कोई कंजूसी नसी कर रहे है.सिंधिया के आभामंडल का लाभ जितना डॉ मोहन यादव ने हंसते, मुस्कराते ले लिया है इसका अनुमान खुद सिंधिया को भी नहीं है.

मजे की बात ये है कि इस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री यादव के प्रति जितने विनम्र हैं शिवराज सिंह चौहन उतने ही उग्र. चौहान तो पिछले दिनों अपने क्षेत्र के आदिवासियों को लेकर मुख्यमंत्री आवास पर भी जा धमके थे. चौहान ने खाद, बीज के मुद्दे पर परोक्ष रूप से यादव सरकार की किरकिरी कराई. अब देखना ये है कि सिंधिया और डॉ मोहन यादव की ये नयी कैमिस्ट्री कितने दिन चलती है.अतीत में ज्योतिरादित्य के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय मोतीलाल वोरा के बीच भी इसी तरह की कैमिस्ट्री हुआ करती थी. 

@ राकेश अचल

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

क्या आपके पास है नागरिकता प्रमाणपत्र?

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूचियों के विवादास्पद सघन अभियान के बाद से मै परेशान हूँ और सोच रहा हूँ कि मै अगली बार विधानसभा या लोकसभा चुनाव में मतदान कर भी पाऊंगा या नहीं, क्योंकि मेरे पास तो नागरिकता प्रमाणपत्र जैसा कोई दस्तावेज है ही नहीं.

भारत ने आजादी के बाद से अब तक प्रत्येक नागरिक को आधार कार्ड देने की मुहिम तो चलाई लेकिन नागरिकता प्रमाण पत्र के बारे में कभी नही सोचा. भारत में सत्ता में बने रहने के लिए दर अअसल इससे पहले कभी कोई राजनीतिक दल चुनाव में गैर भारतीयों के भाग लेने को लेकर फिक्रमंद हुआ भी नहीं. भाजपा ने भी दो चुनाव बिना किसी डर के जीते लेकिन जब तीसरे आम चुनाव में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का नारा जनता ने नकार दिया तो भाजपा को फिक्र हुई और भाजपा सरकार के कहने पर पहली बार केंद्रीय चुनाव आयोग यानि केंचुआ ने बिहार से मतदादाओं की नागरिकता जांचने की मुहिम शुरु की, जो कि अब सुप्रीम कोर्ट में जेरे बहस है.

मै इस मुहिम के साथ खडा होता यदि ये मुहिम भारत सरकार का गृह मंत्रालय उसी तर्ज पर चलाता जैसे कांग्रेस सरकार ने आधार पहचान पत्र के लिए देशव्यापी मुहिम चलाई थी. मेरी जानकारी में दुनिया के तमाम देशों में जन्मजात और अनुवांशिक नागरिकता प्रचलित है इसलिए सभी के पास अलग से कोई नागरिकता प्रमाण पत्र नही होता. नागरिकता प्रमाणपत्र उन्ही परदेशियों के लिए जारी किया जाता है जो इसके लिए बाकायदा आवेदन करते हैं. भारत में आमतौर से कोई भी शासकीय सुविधा या अधिकार पाने के लिए आयकर प्रमाण पत्र से ज्यादा महत्व आधार पहचान पत्र को दी जा रही है.. मेरे पास वंशानुगत या जन्म आधारित नागरिकता है लेकिन इसका कोई प्रमाण पत्र नहीं है. आपके पास भी शायद नहीं होगा.

दुर्भाग्य देखिए कि जिस पारपत्र( पासपोर्ट) के आधार पर पूरी दुनिया हमें भारतीय मानकर अपने यहां आने- जाने देती है, कारोबार करने देती है उसी पासपोर्ट को हमारे अपने देश में नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं माना जाता.मान लीजिये कि यदि विदेशी सरकारें भी भारत सरकार की तरह पासपोर्ट के आधार पर हमें भारतीय मानने से इंकार कर दें तो हम कहीं के नहीं रहेंगे. क्योंकि पासपोर्ट जारी ही तब किया जाता है जब जन्म का, आवास का, संपत्ति का और पुलिस द्वारा चरित्र का सघन सत्यापन करा लिया जाता है.कमोवेश यही प्रक्रिया मतदाता पहचान पत्र जारी करने मे अपनाई जाती है. ऐसे में यदि बिहार या देश के किसी भी राज्य में जारी मतदाता पहचान पत्रों को संदिग्ध माना जा रहा है तो दोषी केंद्रीय चुनाव आयोग है. उसका बीएल ओ से लेकर जिला स्तर का अधिकारी दोषी है. उसके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए.

मान लीजिये कि बिहार में करोड, दो करोड मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से उन्हे गैर भारतीय मानकर काट भी दिए जाएं तो क्या भारत सरकार इन कथित गैर भारतीयों को कहाँ भेजेगी?

दर असल केंचुआ के सघन पुनरीक्षण अभियान के पीछे कोई राष्ट्र भक्ति नहीं है. केंचुआ भूमिनाग से शेषनाग बनने की असफल, नाजायज़ कोशिश कर रहा है. दुर्भाग्य से केंचुआ के सामने हमारी न्यायपालिका भी असहाय नजर आ रही है क्योंकि केंचुआ के ऊपर सरकार का वरदहस्त है. और सरकार से टकराना अब आसान काम नहीं. सामान्य सांसद से लेकर उप राष्ट्रपति ही नहीं राष तक सुप्रीम कोर्ट की बखिया उधेडने में लग जाते हैं. यानि संवैधानिक संस्थाओं की तो छोडिए न्यायपालिका का अपमान करने में इन्हे संकोच नहीं होता, शर्म नहीं आती. देश में आपातकाल में भी कुछ -कुछ ऐसा ही हुआ था और जिसका खामियाजा देश ने भुगता था.

आपको बता दूं कि  भारत में नागरिकता प्रमाण पत्र की सटीक संख्या के बारे में कोई आधिकारिक, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ा नहीं है जो यह बता सके कि कितने लोगों के पास यह प्रमाण पत्र है। भारत सरकार, विशेष रूप से गृह मंत्रालय नागरिकता प्रमाण पत्र जारी करता है, लेकिन इसकी कुल संख्या को लेकर व्यापक डेटा सार्वजनिक डोमेन में आसानी से उपलब्ध नहीं है।

नागरिकता प्रमाण पत्र मुख्य रूप से उन लोगों को जारी किया जाता है जो जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिकरण  या क्षेत्रीय समावेशन के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करते हैं, नागरिकता अधिनियम, 1955  के मुताबिक, भारत में जन्मे अधिकांश लोग स्वतः नागरिक माने जाते हैं, और उनके लिए नागरिकता का प्रमाण आमतौर पर जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, या अन्य दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी आदि के माध्यम से स्थापित किया जाता है।दुर्भाग्य ये है कि इस मुद्दे पर हमारा सर्वोच्च न्यायालय और केंचुआ ही नहीं बल्कि सरकार भी एकमत नहीं हैं.

 भारत में नागरिकता साबित करने के लिए आमतौर पर जन्म प्रमाण पत्र, भारतीय पासपोर्ट, वोटर आईडी, या अन्य सरकारी दस्तावेजों का उपयोग होता है। हाल ही में सरकार ने स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड और पैन कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। केवल जन्म प्रमाण पत्र और भारतीय पासपोर्ट को ही प्राथमिक दस्तावेज माना जाता है।


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर  बनाकर मौजूदा सरकार ने असम में एन आर सी प्रक्रिया के तहत नागरिकता सत्यापन करने का अभियान चलाया था जिसमें लगभग 1.9 मिलियन लोग नागरिकता साबित करने में असफल रहे थे, लेकिन  इनमें से किसी को देश निकाला नहीं दिया गया. यही सब बिहार में बिना एन आर सी के करने की कोशिश की जा रही है. बिहार से किसी को नहीं  निकाला जाएगा, केवल उनका मताधिकार छीना जाएगा ताकि वे भाजपा को न हरा सकें.

भारत की कुल जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है, इनमें से अधिकांश लोग जन्म के आधार पर स्वतः नागरिक हैं।केवल उन लोगों को नागरिकता प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ती है जो गैर-नागरिक पृष्ठभूमि से आते हैं या जिन्होंने पंजीकरण/प्राकृतिकरण के माध्यम से नागरिकता प्राप्त की है। ये आंकडा सरकार के पास होगा ही, लेकिन कहीं पै निगाहेँ, कहीं पै निशाना लगाना भाजपा की पुरानी आदत है.

@राकेश अचल

कातिल के हाथों में डंडे झंडे हैं


 कातिल के हाथों में डंडे झंडे हैं

और तुम्हारे हाथों में सरकंडे हैं

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गंगा नही नहा पाओगे, शर्त लगी

घाट घाट पर काबिज उनके पंडे हैं

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क्या निर्यात करें हम बोलो दुनिया में

पास हमारे केवल गीले कंडे हैं

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कुरसी पर काबिज है खूनी, व्यापारी 

उनके पास चुनावी सौ हथकंडे हैं

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देंगे  तालीम भला दिल्ली वाले 

उनके हाथों  में ताबीजें गंडे है

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कैसे पार लगेगी नैया, पता नहीं

उनके पास नये ढेरों हथकंडे हैं

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झुग्गी चुभती है उन सबकी आंखों में

जिनके अपने एक नहीं दसखंडे हैं

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@ राकेश अचल

गुरुवार, 10 जुलाई 2025

आखिर केंचुआ ने मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा?

 

केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व मतदाता सूचियों की जांच के सघन अभियान के नाम पर की जाने वाली कतर-ब्योंत के खिलाफ 9 जुलाई को हुए बिहार बंद की सबसे खास तस्वीर आपके सामने है. बंद कायमाब था या नहीं, अथवा इस बंद से केंचुआ की नींद और दो करोड से ज्यादा मतदाओं का मताधिकार छीने जाने के अभियान पर ब्रेक लगेगा या नहीं, इस पर बाद में बहस करेंगे.

दर असल केंचुआ ने केंद्र सरकार का, भाजपा का, संघ का मनोरथ पूरा करने के लिए मतदाता सूचियों के सघन पुनरीक्षण के नाम पर बिहारियों की नागरिकता की जांच की मुहिम छेडी है, जो किसी बिहारी को बर्दास्त नहीं. इस भैंस वाले को भी जिसे कोई नहीं जानता. केंचुआ शायद नहीं जानता कि आम भारतीय के साथ ही आम बिहारी अपने मताधिकार को अपनी भैंस जितना ही कीमती मानता है. कोई भी यदि किसी बिहारी की भैंस या उसके मताधिकार से छेडछाड करने की कोशिश करेगा तो बिहारी उसे बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देगा.

पूरे देश और दुनिया ने मताधिकार को लेकर बिहार और बिहारियों का जुनून 9  जुलाई को देख लिया.बिहार में गैर भारतीय मतदाता यदि हैं तो लगातार सत्ता में रहे राजनीतिक दलों को इसकी जानकारी जरूर होगी, और यदि है तो फिर भाजपा समेत तमाम दल पिछले साल हुए आम चुनाव के वक्त मौन क्यों रहे? चुनाव आयोग तब कहाँ सो रहा था? अचानक केंचुआ ज्ञानेंश को मतदाता सूचियों  में गैर भारतीयों के शामिल होने का दिव्य ज्ञान कहाँ से मिला? अगर भारत की मतदाता सूचियों में गैर भारतीय शामिल हो गए हैं तो उन्हे बाहर करने के लिए राष्ट्र व्यापी अभियान छेडने के बजाय बिहार को ही लक्ष्य क्यों बनाया गया? 

मै केंचुआ की इस बात से इत्तफाक रखता हूँ कि भारत की मतदाता सूचियों में कोई गैर भारतीय नहीं रहेगा. नहीं रहना चाहिए. लेकिन क्या केंचुआ के पास इस सवाल का कोई जबाब है कि भारत में नागरिकों को दिए गये आधार पहचान पत्र बोगस हैं. यदि केंचुआ ये कहना चाहता है तो ये केवल बिहारियों का नहीं बल्कि भारत सरकार का अपमान है. प्रधानमंत्री का अपमान है. संविधान का अपमान है. और इसै बर्दास्त नहीं किया जा सकता. किसी सूरत में नहीं किया जा सकता. सवाल ये है कि क्या खुद केंचुआ ज्ञानेंश के पास कोई नागरिकता प्रमाणपत्र है? कम से कम मेरे पास तो नहीं है, क्योंकि भारत सरकार ने हम भारतीयों को आधार पहचान पत्र के अलावा कुछ दिया ही नहीं.

बहरहाल अब बिहार बंद पर आते हैं.बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण के खिलाफ  बिहार बंद का असर कई जिलों में नजर आया है। राजधानी पटना के अलावा गोपालगंज, दरभंगा, आरा, किशनगंज, गया जी, सहरसा समेत कई जिलों में बंद समर्थकों ने जमकर प्रदर्शन किया है। इस दौरान कहीं ट्रेनें रोक दी गईं तो कहीं सड़क पर आगजनी कर आवागमन को बाधित कर दिया गया। महागठबंधन में शामिल घटक दलों ने वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ यह बंद बुलाया था। पटना की सड़क पर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव समेत अन्य दिग्गज नेता नजर आए। मुजफ्फरपुर में वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को भी रोका गया। सीपीआई माले ने बिहार बंद को ऐतिहासिक बताया। दूसरी ओर, मजदूर एवं कर्मचारी संगठनों ने भी विभिन्न मांगों को लेकर बुधवार को बिहार समेत देश भर में बंद बुलाया। बिहार ग्रामीण बैंक में हड़ताल से 10 हजार करोड़ रुपये के कारोबार का नुकसान हुआ।

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पहले से तय कार्यक्रम के तहत इस बिहार बंद को धार देने के लिए हवाई जहाज से पटना पहुंचे। पटना पहुंचने के बाद राहुल गांधी आयकर गोलंबर पर पहुंचे। इनकम टैक्स गोलंबर पर पहले से ही बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव मौजूद थे। यहां महागठबंधन के कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ा हुआ था। इसके बाद तेजस्वी यादव, राहुल गांधी, दीपांकर भट्टाचार्य और मुकेश सहनी जैसे दिग्गज नेता एक वाहन पर सवार होकर मार्च के लिए निकले। गाड़ी पर दिग्गज नेताओं के साथ पटना की सड़क पर कार्यकर्ता लगातार पैदल मार्च कर रहे थे।

पैदल मार्च करते हुए यह हुजूम शहीद स्मारक पहुंचा। यहां निर्वाचन कार्यालय से कुछ दूर पहले ही पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी थी। कई कार्यकर्ताओं ने यहां बैरिकेडिंग को तोडऩे का भी प्रयास किया औऱ कई बार स्थिति तनावपूर्ण भी बनी। पुलिस लगातार बैरिकेडिंग ना तोड़ने की अपील यहां कर रही थी। इस दौरान महागठबंधन के नेताओं ने अपने संबोधन में केंद्र और राज्य सरकार को घेरा तथा बिहार चुनाव से पहले मतदाता पुनरीक्षण को घातक बताया. 

सरकार और केंचुआ की कुंभकर्णी नींद तोडने के लिए बंद से ज्यादा क्या किया जा सकता है. अब भी यदि केंचुआ, केंचुआ सरका न जागी तो 1975की समग्र क्रांति के अलावा शायद कोई दूसरा विकल्प बचेगा नहीं.

@ राकेश अचल

शनिवार, 5 जुलाई 2025

बेशक बेबाकी से झूठ बोलती है हमारी सरकार

 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों को बर्दास्त न कर पाने वाली सरकार यदि कहे कि- भारत सरकार आस्था और धर्म से जुड़े विश्वासों और परंपराओं पर कोई रुख़ नहीं अपनाती और न ही इस पर कोई टिप्पणी करती है."या "सरकार ने हमेशा भारत में सभी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है और आगे भी ऐसा करती रहेगी."तो आप भरोसा करेंगे? 

 धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर सरकार और सरकारी पार्टी के दोहरे रवैये की पोल न खुलती यदि तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को लेकर  केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजु के बयान पर आंखे लाल न करता. इधर चीन ने आंखें तरेरीं और उधर भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी  कर सफाई दे डाली..

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "हमने दलाई लामा की ओर से दलाई लामा संस्था की निरंतरता को लेकर दिए गए बयान से जुड़ी रिपोर्ट्स देखी हैं."उन्होंने कहा, "भारत सरकार आस्था और धर्म से जुड़े विश्वासों और परंपराओं पर कोई रुख़ नहीं अपनाती और न ही इस पर कोई टिप्पणी करती है."बयान में आगे कहा गया, "सरकार ने हमेशा भारत में सभी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है और आगे भी ऐसा करती रहेगी."

 आपको बता दें कि दलाई लामा ने बुधवार को कहा था कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी.इस बात का सीधा मतलब यह है कि मौजूदा दलाई लामा की मृत्यु के बाद भी उनका उत्तराधिकारी होगा.

लेकिन दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर चीन ने कड़ा ऐतराज़ जताया है.

दलाई लामा के संदेश को ख़ारिज करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उनके पुनर्जन्म को चीनी सरकार की मंज़ूरी की ज़रूरत है.साथ ही चीन ने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकार की प्रक्रिया में चीन के क़ानूनों और नियमों के साथ-साथ 'धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं' का पालन होना चाहिए.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी की पहचान केवल लॉटरी सिस्टम के माध्यम से की जा सकती है - जहां नाम एक सुनहरे कलश से निकाले जाते हैं.

दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो, मेरे जन्म से ठीक एक महिने पहले 31 मार्च 1959 को भारत आए थे.। वे तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 17 मार्च 1959 को चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद भागकर भारत आए। चीनी सेना द्वारा तिब्बत पर कब्जा (1950) और बढ़ते दमन के कारण उनकी जान को खतरा था। 15 दिनों तक हिमालय पार करने के बाद, उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में भारतीय सीमा में प्रवेश किया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें शरण दी। तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती समुदाय के साथ रह रहे हैं, जहां उन्होंने निर्वासित तिब्बती सरकार और गदेन फोडरंग ट्रस्ट की स्थापना की। चीन उन्हें अलगाववादी मानता है, क्योंकि वे तिब्बत के लिए स्वायत्तता की वकालत करते हैं।

इस मामले में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने 3 जुलाई 2025 को कहा था कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन केवल दलाई लामा और उनकी स्थापित संस्था, गादेन फोडरंग ट्रस्ट, द्वारा ही किया जाएगा, जिसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं होगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला तिब्बती बौद्ध परंपराओं और दलाई लामा की इच्छा के अनुसार होगा। यह बयान दलाई लामा के उस कथन के बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी संस्था जारी रहेगी और केवल गादेन फोडरंग ट्रस्ट को उनके पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार होगा।

 रिजिजू ने यह भी कहा कि वह एक बौद्ध श्रद्धालु के रूप में बोल रहे हैं, न कि भारत सरकार की ओर से, और दलाई लामा के सभी अनुयायी चाहते हैं कि उत्तराधिकारी का चयन स्वयं दलाई लामा करें।इस बयान पर चीन ने आपत्ति जताई, जिसके विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि भारत को तिब्बत (शिजांग) से संबंधित मुद्दों पर सावधानी बरतनी चाहिए और दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चीनी कानूनों, धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं के अनुसार चुना जाना चाहिए, जिसमें चीन की मंजूरी आवश्यक है। 

अब असली मुद्दे पर आते हैं कि क्या सचमुच भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था के मामलों में सरकार दखल नहीं देती? यदि ये सही है तो सरकार तीन तलाक और वक्फ बोर्ड जैसे कानून क्यों बनाती है? कांवड यात्रा पर फूल बरसाती है और मस्जिदों, मजारों पर बुलडोजर क्यों चलाती है.क्यों मदरसों में दखल देती है. क्यों एक धर्म विशेष के पूजाघरों पर सरकारी खजाना खोल देती है? हकीकत ये है कि भारत सरकार चीन से डरती है लेकिन बांग्लादेश से नहीं. सरकार  को तिब्बत के मुद्दे पर सफाई देने की क्या जरुरत थी? सरकार जैसे सीज फायर पर खामोश रही वैसे ही तिब्बत के मामले में चीन की आपत्ति को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती! 

बांग्लादेशियो से नफरत करने वाला भारत बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री को शरण दे सकता है. तस्लीमा नसरीन को शरण दे सकता है लेकिन 66साल से भारत में शरणार्थी दलाई लामा को संरक्षण देते हुए कांप जाता है. आज 66साल बाद भी तिब्बती भारत के नागरिक ननही बल्कि शरणार्थी हैं. बहरहाल धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था के मुद्दे पर यदि सचमुच भारत सरकार जो कह रही है वो सच है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए.

@  राकेश अचल

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

नोटबंदी के बाद अघोषित वोटबंदी की ओर देश

 

लिखने के लिए विषय और मुद्दे कभी समाप्त नहीं होते. बीती रात मैने मप्र की राजनीति पर लिखने का मन बनाया था किंतु लिख रहा हूं बिहार की राजनीति के बहाने देश पर थोपी जा रही वोटबंदी की. सरकार नोटबंदी के बाद विपक्ष पर जीत हासिल करने के लिये वोटबंदी का सहारा ले रही है. इसके लिए सरकार ने अपने केंचुए को सक्रिय कर दिया है. केंचुआ अचानक कोबरा की मुद्रा में नजर आ रहा है.

नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल 9 जून 2024 को शुरू हुआ, जब वे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ लेने वाले दूसरे नेता बने, पहले जवाहरलाल नेहरू थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 293 सीटें जीतीं, लेकिन भाजपा अकेले 240 सीटों के साथ बहुमत से चूक गई। इससे मोदी को तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जिससे उनके पिछले एकल-निर्णयकारी शासन की तुलना में सहयोगात्मक शासन शैली की आवश्यकता है।किसी ने नहीं सोचा था कि बैशाखियों पर टिकी सरकार विनम्र होने के वजाय और दंभी हो जाएगी.

मोदी का यह कार्यकाल उनके पिछले कार्यकालों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि गठबंधन की गतिशीलता और एक मजबूत विपक्ष (इंडिया गठबंधन, 234 सीटें) के कारण उन्हें सत्ता साझा करनी पड़ रही है। विश्लेषकों का कहना है कि आर्थिक मुद्दे, जैसे महामारी के बाद बेरोजगारी, और धार्मिक ध्रुवीकरण की आलोचना ने मतदाताओं को प्रभावित किया। फिर भी, मोदी विकास और हिंदू राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे पर जोर दे रहे हैं, 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखते हुए।क्या आप किसी विशिष्ट पहलू, जैसे नीतियों या राजनीतिक चुनौतियों, पर अधिक जानकारी चाहेंगे?इसी के तहत मोदी जी किसी भी सूरत में बिहार जीतना चाहते हैं. बिहार जीते बिना वे बंगाल नहीं जीत सकते.

बिहार जीतने के लिए भाजपा ने बिहार की मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण और सत्यापन के बहाने कम से कम 3करोड मतदाओं को मताधिकार से वंचित करने की रणनीति बनाई और इस पर अमल के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग को सक्रिय कर दिया. केंचुए ने मतदाता सत्यापन के लिए जो नियम बनाए हैं वे अमेरिका में अवैध प्रवासियों के लिए बनाए गये नियमों से भी ज्यादा कठिन हैं. यानि वे 3करोड मतदाता रोजी रोटी के लिए बिहार से बाहर हैं वे पहले सत्यापन के लिए अपने घर आएं. अपने माँ बाप के जन्म प्रमाण पत्र जुटाएं जो असंभव है. और जुटा भी लें तो मतदान के दिन फिर बिहार आएं.

विपक्ष ने इन अव्यावहारिक नियमों का विरोध करत हुए केंचुआ प्रमुख से मलना चाहा तो उन्होने राजनतिक दलों के प्रतिनिधियों से मिलने के नये नियम बना दिए. केंचुआ एक दल के केवल अध्यक्ष और महासचिव से ही मिलना चाहता है. यानि केंचुए का दफ्तर न हुआ बल्कि रक्षा मंत्रालय हो गया. लग ऐसा रहा है कि केंचुआ भाजपा य संघ का कोई नुषांगिक संगठन बन गया है.

अब सवाल ये है कि वोटबंदी के लिए तमाम अनैतिक, गैर कानूनी तरीके अपनाकर क्या भाजपा बिहार को महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह जीत लेगी? क्या भाजपा इस चुनाव में अपने सहयोगी दलों को शिवसेना और एनसीपी की तरह तोड सकेगी? क्या भाजपा बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को एकनाथ शिंदे की तरह पदावनत कर पाएगी? यदि भाजपा ये सब न कर पायी तो उसे झारखण्ड की तरह बिहार में मुंह की खाना पडेगी. वोटबंदी शायद ही भाजपा के काम आए.

नोटबंदी को देश का विपक्ष नहीं रोक पाया था और यदि वोटबंदी को भी  न रोक पाया तो विपक्ष निर्मूल हो जाएगा. फिर देश में न धर्मनिरपेक्षता बचेगी और न समाजवाद. देश अखंड भी शायद न रह पाए और तमाम राज्य जम्मू काश्मीर की तरह खंडित कर दिए जाएं. सत्ता में अनंतकाल तक रहने की लालसा पूरी करने के लिए भाजपा अपने प्रधानमंत्री बडे  से बडा पाप करा सकती है. वैसे भी मौजूदा प्रधानमंत्री का ये अंतिम कार्यकाल है. संघ को अब 400 पार कराने वाला नेता चाहिए, 240 पर अटकने वाला नहीं. बिहार ही संघ, भाजपा और मोदीजी की किस्मत का फैसला करेगा. बिहार समग्र क्रांति का जनक है.

@ राकेश अचल

शनिवार, 21 जून 2025

ग्राम बसरोही में रेट्रॉफिटिंग नल जल योजना की स्वीकृति के बावजूद नहीं हुआ कार्य

छतरपुर।  ग्राम बसरोही, ग्राम पंचायत एरोरा तहसील बिजावर, जिला छतरपुर, मध्यप्रदेश शासन लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा पत्र क्रमांक F08-03/2020/2/34, दिनाँक 27 जुलाई 2022 के माध्यम से ग्राम बसरोही रैदासपुरा के लिए रेट्रॉफिटिंग नल जल योजना स्वीकृत की गई थी। सलंग्न फाइल के बिंदु क्रमांक 653 पर ग्राम बसरोही का नाम अंकित है, तथा इस योजना के लिए 50.24 लाख रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई थी।

लेकिन दिनाँक 21/06/2025 तक इस योजना का क्रियान्वयन नहीं किया गया है और न ही पानी की टंकी का निर्माण कार्य शुरू किया गया है। ग्राम बसरोही रैदासपुरा में वर्तमान में तीन शासकीय ट्यूबवेल मौजूद हैं जिनमें पर्याप्त पानी उपलब्ध है, बावजूद इसके विभाग के संबंधित अधिकारी इस योजना को लागू नहीं करना चाहते हैं।

इसकी मूल वजह ग्राम की शत-प्रतिशत जनसंख्या का अनुसूचित जाति से होना और गांव का अत्यधिक पिछड़ा होना प्रतीत होता है, जिससे अधिकारियों की गांव के प्रति अनुसूचित जाति विरोधी मानसिकता झलकती है।

अतः हम संबंधित अधिकारियों से अनुरोध करते हैं कि ग्राम बसरोही रैदासपुरा में रेट्रॉफिटिंग योजना का जल्द से जल्द क्रियान्वयन किया जाए और दोषी अधिकारियों के विरुद्ध तत्काल प्रभाव से निलंबन की कार्यवाही की जाए तथा अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाए।

राहुल अहिरवार

मो:–7697959515




मंगलवार, 10 जून 2025

क्योंकि सभी के पास हैं आजकल ' ठंडे बस्ते '

जैसे सरकारी दफ्तरों में फाइलों पर बंधा एक लालफीता होता है, ठीक वैसे ही हमारी सरकारों, राजनीतिक दलों और निर्णायक संस्थाओं के पास एक ठंडा बस्ता होता है. इस ठंडे बस्ते में वे गर्म मुद्दे डाले जाते हैं जिनसे मुल्क में, समाज में आग लगने की आशंका होती है.

"ठंडा बस्ता " एक हिंदी मुहावरा है, जिसका अर्थ है किसी काम, योजना, या मुद्दे को अनिश्चितकाल के लिए टाल देना या उसे नजरअंदाज करना। जब कोई चीज "ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है," तो इसका मतलब है कि उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही और वह प्राथमिकता से हट चुकी है।ठंडे बस्ते का इस्तेमाल हर सरकार करती है. फिर चाहे सरकार किसी भी दल की हो. सरकारों की देखादेखी ठंडे बस्ते का चलन हर संस्था में बढ गया है. हमारी कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका तक में ठंडे बस्ते को पूरा पूरा सम्मान मिलता आया है. 

ठंडे बस्ते के आविष्कारक का पता नहीं है. इस पर शोध होना बाकी है. लगता है इस काम को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.ठंडा बस्ता दो शब्दों से मिलकर बनता है. एक शब्द है ' ठंडा ' और दूसरा है ' बस्ता'. ठंडा को हिंदी में शीतल कहते हैं. और ब, बस्ते को पटका. ठंडे बस्ते के शब्द को लेकर गफलत है. कोई इसे हिंदी का शब्द मानता है तो कोई उर्दू का. लेकिन मैं इसे हिंदुस्तानी शब्द मानता हूं.. मै ठंडे बस्ते की 'कूलिंग 'क्षमता का मुरीद हूँ. मेरी अखंड मान्यता है कि यदि हमारे पास ठंडा बस्ता न होता तो लोकतंत्र खतरे में पड जाता.

लोकतंत्र को खतरे से बचाने के लिए हमारे यहाँ इमरजेंसी का इस्तेमाल किया गया, लेकिन दांव उलटा पडा. लोगों ने इमरजेंसी को ही लोकतंत्र के लिए खतरा मान लिया और इसके खिलाफ जनादेश दिया, लेकिन ठंडे बस्ते के साथ ऐसा नहीं है.

देश में पिछले 11साल में ऐसे दर्जनों नजीरें सामने आईं हैं जहाँ लोकतंत्र बचानेक्षके नाम पर इमरजेंसी के बजाय ठंडे बस्ते का इस्तेमाल किया गया और  एक भी जनादेश ठंडे बस्ते के खिलाफ नहीं आया. ठंडे बस्ते का सर्वाधिक इस्तेमाल हमारे लोकप्रिय नेता और सरकारें करतीं हैं. आपको याद होगा कि देश में किसानों ने सालों साल चलने वाला एक आंदोलन 3कृषि कानूनों के खिलाफ किया था. आंदोलन में 700से ज्यादा किसान शहीद हुए थे. हारकर सरकार ने तीनों कानूनों को वापस लेकर ठंडे बस्ते में डाल दिया और आजतक उन्हे बाहर नहीं निकाला. सरकार जो भी नया कानून बनाती है उसमें से अधिकांश को ठंडे बस्ते में जाना ही पडता है. जो कानून और जो फैसले ठंडे बस्ते में नहीं जाते उन्हे बाद में मुसीबतों का सामना करना पडता है.

सरकार की तरह देश की तमाम छोटी बडी अदालतें  भी ठंडे बस्ते का इस्तेमाल करतीं हैं. अदालतों में तमाम मामलों में सुनवाई पूरी होने के बाद फैसले सुरक्षित रख लिए जाते हैं. ये फैसले ठंडे बस्तों में ही तो रखे जाते हैं. ताजा फैसला वक्फ बोर्ड कानून का है. आप सरकार हो या अदालत किसी को भी ठोडा बस्ता खोलने के लिए मजबूर नहीं कर सकते. ये सभी निर्णायक संस्थाओं का संवैधानिक अधिकार है. अभी तक इस अधिकार को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी गई. इसीलिए ठंडे बस्ते वजूद में हैं.

हमारे यहाँ जितनी भी छोटी बडी जांच एजेंसियां हैं वे ठंडे बस्तों का इस्तेमाल करतीं हैं. पुलिस, ईडी, सीबीआई सभी को ठंडे बस्ते प्रिय हैं. ये जांच एजेंसियां देश काल, परिस्थिति के अनुरूप ठंडे बस्तों का इस्तेमाल करती आई हैं. आगे भी करतीं रहेंगी. देश के ठंडे बस्ते हमेशा सार्थक साबित होते हैं. ठंडे बस्तों को बांधना और खोलना भी एक ललित कला है. कब किस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना और कब, किस मुद्दे को ठंडे बस्ते से निकालना है.

 भारत में ऐसे कई मामले हैं, जिनमें आपराधिक, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, और सामाजिक मुद्दों से जुड़े मामले शामिल हैं।1984 सिख विरोधी दंगों के कई मामले आज भी पूरी तरह सुलझे नहीं हैं। कई पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं मिला, और कुछ प्रमुख आरोपी कानूनी प्रक्रिया की जटिलताओं के कारण सजा से बचते रहे।हाई-प्रोफाइल हत्याएं जेसिका लाल हत्याकांड (1999) और प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड (1996), लंबे समय तक लंबित रहे। हालांकि इनमें अंततः सजा हुई, लेकिन देरी ने सिस्टम की कमियों को उजागर किया।नदिमार्ग नरसंहार (2003) के मामले में, 2022 में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने फिर से सुनवाई शुरू करने के निर्देश दिए, क्योंकि यह मामला लंबे समय तक ठंडे बस्ते में रहा। बोफोर्स घोटाला (1980-90): बोफोर्स तोप सौदे में कथित रिश्वत के मामले की जांच दशकों तक चली, लेकिन कोई बड़ा दोषी सजा नहीं पाया। यह मामला समय के साथ ठंडा पड़ गया।2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2008): इस बड़े भ्रष्टाचार मामले में कई आरोपियों को अंततः बरी कर दिया गया, और जांच की धीमी गति ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।कोयला घोटाला (कोलगेट): कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताओं के मामले में कई जांचें शुरू हुईं, लेकिन अधिकांश मामलों में ठोस परिणाम नहीं मिले।

आतंकवाद और सुरक्षा से जुड़े मामले जैसे 1993 मुंबई बम धमाके के मामले में हालांकि कुछ मुख्य आरोपियों को सजा हुई, कई सह-आरोपी अभी भी फरार हैं, और कुछ पहलुओं की जांच अधूरी है।पठानकोट हमले (2016)  की जांच में कई सवाल अनुत्तरित रहे, और मामला धीरे-धीरे सुर्खियों से बाहर हो गया.

राजस्थान और अन्य राज्यों में दलितों के खिलाफ अत्याचार के कई मामले, जैसे करौली में दलित युवती की हत्या (2023), अभी तक पूरी तरह सुलझे नहीं हैं।महिलाओं के खिलाफ अपराध: कई बलात्कार और हिंसा के मामले, जैसे निर्भया केस के बाद के कुछ मामले, जांच और सुनवाई में देरी के कारण लंबित रहते हैं।

भारत में इंटरनेट शटडाउन के कई मामले, जैसे कश्मीर में 2019 के बाद हुए शटडाउन, कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन कई याचिकाएं कोर्ट में लंबित हैं।दिल्ली शराब घोटाला (2021-22): इस मामले में कुछ आरोपियों को राहत मिली, लेकिन जांच अभी भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई।ठंडे बस्ते में जाने के कारणन्यायिक प्रक्रिया में देरी: भारत में कोर्ट में लाखों मामले लंबित हैं। 2023 तक, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में करीब 50 लाख मामले पेंडिंग थे।जांच एजेंसियों की सुस्ती: सीबीआई, एनआईए जैसी एजेंसियों पर संसाधनों की कमी और राजनीतिक दबाव के आरोप लगते हैं।साक्ष्यों का अभाव: कई मामलों में साक्ष्य एकत्र करने में देरी या गवाहों का सहयोग न मिलना।राजनीतिक हस्तक्षेप: कुछ मामलों में राजनीतिक प्रभाव के कारण जांच रुक जाती है।वर्तमान स्थितिकई संगठन और कार्यकर्ता इन मामलों को फिर से उठाने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, 2024 में दलित और आदिवासी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण से जुड़े फैसले के खिलाफ भारत बंद का आह्वान किया, जिससे कुछ पुराने मुद्दों पर फिर से ध्यान गया।

यानि ठंडे बस्तों की कथा अनंत है, अनादि है. मै इसे यहीं समाप्त करता हूँ यानि ठंडे बस्ते में डालता हूँ. शुक्र मनाइये कि लालफीताशाही की तरह अभी देश में ठंडा बस्ताशाही जैसी कोई चीज मुहावरा नहीं बनी है.

@ राकेश अचल

रविवार, 1 जून 2025

जब सिंदूर जाएगा तब कोरोना आएगा ?

मै भविष्य वक्ता नहीं हूँ लेकिन विगत के आधार पर आगत की पदचाप सुन लेता हूँ. अपने इसी अनुभव के आधार पर मै कह रहा हूँ कि अव्वल तो सिंदूर अभी जाएगा नहीं और यदि खुदा न खास्ता गया भी तो उसकी जगह कोरोना आ जाएगा और आपको एक बार फिर अपने घरों में कैद कर दिया जाएगा, ताकि आप सरकार को ऊल-जलूल सवाल पूछकर परेशान न कर सकें.

दर असल आपरेशन सिंदूर के बाद जिस सच को सरकार देश से छिपाने की कोशिश कर रही है, वो सच छिप नहीं रहा. सरकार सवाल टालने में दक्ष है लेकिन सेना नहीं.

पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कार्रवाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सीडीएस अनिल चौहान ने कहा, 'मुझे लगता है कि लड़ाकू विमान का गिरना महत्वपूर्ण बात नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि वे क्यों गिरे।' जनरल चौहान से पूछा गया कि क्या इस महीने पाकिस्तान के साथ चार दिनों तक चले सैन्य टकराव के दौरान भारत ने लड़ाकू विमान गंवाए थे।अब कांग्रेस खामखां सीडीएस की स्वीकारोक्ति पर खामखां सवाल कर रही है जबकि उसे पता है कि उसे जबाब नहीं मिलेगा.

सरकार जनता को खुला नहीं छोडना चाहती. यदि सिंदूर का रंग फीका पडा तो सरकार तमाम ज्वलंत मुद्दों पर कोविड की चादर डाल देगी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अभी से इस दिशा में काम शुरू कर दिया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में कोविड के एक्टिव केसों की संख्या 3,395 तक पहुंच गई है, जबकि पिछले 24 घंटों में 4 लोगों की मौत हुई है. केरल में सबसे ज्यादा 1336 एक्टिव केस हैं. बीते कुछ दिनों में ही कोरोना के एक्टिव केसों की संख्या में भारी वृद्धि देखने को मिली है. विशेषज्ञों ने लोगों से मास्क पहनने, भीड़ से बचने और जरूरत पड़ने पर टेस्ट कराने की अपील की है.

करें, भीड़भाड़ से बचाव और मास्क का प्रयोग (जहां आवश्यक हो) करें.

स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली, केरल, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है. दिल्ली में 71 वर्षीय बुजुर्ग की मौत निमोनिया, सेप्टिक शॉक और एक्यूट किडनी इंजरी के कारण हुई. कर्नाटक में 63 वर्षीय मरीज, केरल में 59 वर्षीय मरीज और उत्तर प्रदेश में 23 वर्षीय युवक की मौत हुई है.बीते कुछ दिनों में ही कोरोना के एक्टिव केसों की संख्या में भारी वृद्धि देखने को मिली है. 22 मई को जहां सिर्फ 257 सक्रिय मामले थे, वहीं 26 मई को यह आंकड़ा बढ़कर 1010 और अब 3395 हो गया है. बीते 24 घंटों में 685 नए मामले दर्ज किए गए हैं.

देश में यदि कोरोना की चाल बढी तो एक बार फिर संक्रमण रोकने के लिए वे सब कदम उठाए जा सकते हैं जो आपको घरों में कैद करने के लिए काफी हैं. ये बात अलग है कि देश कोरोना के दो डोज के अलावा तीसरा बूस्टर डोज लगाए बैठा है, इसलिए कोरोना होना नहीं चाहिए. लेकिन यदि सिंदूर की तरह कोरोना सियासत का मददगार बन सकता है तो कौन उससे परहेज करेगा?

आपको पता है कि जैसे सरकार ने आपरेशन सिंदूर के बाद अचानक सीजफायर का ऐलान किया था उसी तरह लोकनिंदा के बाद अचानक सियासी सिंदूर खेला पर भी विराम लगा दिया है. भाजपा ने खंडन किया है कि पार्टी 9 जून से घर घर सिंदूर बांटने नहीं जा रही है. हालांकि भाजपा और प्रधानमंत्री जी का सिंदूर मोह कम नहीं हुआ है. प्रधानमंत्री की भोपाल रैली में भी राज्य सरकार ने अग्र पंक्ति में 30हजार आंगनवाडी कार्यकर्ताओ को सिंदूरी साडियां पहना ही दी. खुद प्रधानमंत्री महिला सशक्तिकरण सम्मेलन में 'गोली और गोला ' की भाषा का इस्तेमाल किए बिना रह नहीं सके.

मेरा अनुमान है कि भाजपा के सिंदूर खेला में कोई फौरी क्षेपक अवश्य आ सकता है लेकिन अगले एक साल तक सिंदूर किसी न किसी रूप में भारतीय राजनीति का हिस्सा बना रहेगा. बिना सिंदूर वापरे भाजपा भविष्य की सियासी चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकती. जब तक सिंदूर भाजपा नेताओं की पेशानी पर चमकता रहेगा, तब तक भाजपा का सुहाग कांग्रेस या इंडिया गठबंधन उजाड नहीं सकता.

@  राकेश अचल

सोमवार, 28 अप्रैल 2025

तेंदूपत्ता फड़ रैदासपुरा में फड़ मुंशी नियुक्ति में अनुसूचित जाति के लोगों की उपेक्षा

 राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति विकास परिषद नई दिल्ली के इंजी. राहुल अहिरवार, प्रदेश सोशल मीडिया प्रभारी मध्य प्रदेश द्वारा जारी मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि वन परिक्षेत्र बिजावर के तेंदूपत्ता संग्रहण फड़ रैदासपुरा के लिए फड़ मुंशी नियुक्त किया जाना है। इस संबंध में समस्त ग्रामवासियों द्वारा सर्वसहमति से दिनांक 17 अप्रैल 2025 को वन परिक्षेत्र अधिकारी बिजावर को ज्ञापन पत्र दिया गया है और प्रबंधक वन समिति को भी ज्ञापन पत्र की प्रति दी गई है।

ग्रामवासियों की मांग है कि तेंदूपत्ता फड़ संचालन का कार्य ग्राम के ही अनुसूचित जाति के लोगों को दिया जाए, क्योंकि इस फड़ में शत-प्रतिशत तेंदूपत्ता इन्हीं के द्वारा तोड़ी जाती है। लेकिन वन परिक्षेत्र अधिकारी और प्रबंधक वन समिति द्वारा ग्रामवासियों के दिए गए नाम को फड़ मुंशी हेतु नियुक्त करने की सूची में शामिल नहीं किया जा रहा है।

इस संबंध में ग्रामवासियों ने  मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश शासन,  प्रमुख सचिव वन विभाग मध्य प्रदेश शासन, वन मंत्री श्री दिलीप अहिरवार और वन मंडल अधिकारी जिला छतरपुर, वन परिक्षेत्र अधिकारी बिजावर को आवेदन और ज्ञापन के माध्यम से अवगत कराया है और जल्द से जल्द कार्रवाई की मांग की है।

ग्रामवासियों का मानना है कि उनकी मांगें जायज हैं और उन्हें अपने अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि ग्रामवासियों को उनका हक मिल सके।

इन्जीनियर राहुल अहिरवार 

बुधवार, 16 अप्रैल 2025

डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की 134 वीं जयंती पर कृष्णा चौधरी ने महूं, पहुंचकर बाबा साहेब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया

महूं। बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की 134 वीं जयंती के शुभ अवसर पर कृष्णा चौधरी ने महूं, इन्दौर पहुंचकर  डॉ. बाबा साहेब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

कृष्णा चौधरी ने कहा कि बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के विचारों को समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुँचाने का एक सार्थक प्रयास करूंगा, जो हमें सामाजिक न्याय, समता, बंधुत्व और संविधान की मूल भावना के प्रति जागरूक करता है।

डॉ. अम्बेडकर ने हमेशा शिक्षा, समानता और सामाजिक न्याय के लिए आवाज उठाई। उनकी सोच आज भी हर वर्ग, हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

कृष्णा चौधरी कहते हैं आइए हम सब मिलकर उनके दिखाए मार्ग पर चलें और एक न्यायपूर्ण एवं समतामूलक समाज के निर्माण में योगदान दें।

जन साहस संस्था ने रैदासपुरा गांव में किया सुरक्षित पलायन प्रशिक्षण

 


छतरपुर।  आज ज़िला छतरपुर के ब्लॉक बिजावर के ग्राम रैदासपुरा (बसरोही)में जन साहस संस्था द्वारा प्रिडिपार्चर  की गई, जिसमें सुरक्षित प्रवास  की जानकारी दी गई और जन साहस मजदूर हेल्पलाइन नंबर  180012011211 की जानकारी दी गई।

इस दौरान  वंन नेशन वंन राशनकार्ड योजना, बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी, सुरक्षित प्रवास,  बालमज़दूरी पर चर्चा की गई ।  वही आपातकालीन स्थिति, मजदूरी का भुक्तान ना होना  और  सामाजिक सुरक्षा योजना की जानकारी विस्तार से दी गई ।सुकन्या समृद्धि खाता की जानकारी दी गई।

 प्रशिक्षण में रैदासपुरा के प्रवासी मजदूरों ने और जन साहस से मुकेश कुमार,और अरविन्द जी ने भागीदारी की।

इन्जीनियर राहुल अहिरवार 

शनिवार, 29 मार्च 2025

इंजी. राहुल अहिरवार राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति विकास परिषद मध्य प्रदेश के सोशल मीडिया प्रभारी बनें

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति विकास परिषद नई दिल्ली ने इंजी. राहुल अहिरवार को मध्य प्रदेश के सोशल मीडिया प्रभारी के रूप में नियुक्त किया है। यह नियुक्ति मध्य प्रदेश में सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचने और उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

इंजी. राहुल अहिरवार कई वर्षो से सामाजिक क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। वह आम नागरिकों एवं अनुसूचित जाति जनजाति के समस्त नागरिकों की प्रत्येक समस्याओं को सोशल मीडिया के माध्यम से शासन तक पहुंचाते हैं और समाधान करवाते हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति विकास परिषद नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण मांगरिया जी ने इंजीनियर राहुल अहिरवार को सोशल मीडिया प्रभारी मध्य प्रदेश नियुक्त होने पर बधाई शुभकामनाएं दी। उन्होंने आशीर्वाद दिया कि इंजी. राहुल अहिरवार अपने अनुभव और क्षमता के साथ इस पद पर उत्कृष्ट कार्य करेंगे और मध्य प्रदेश की जनता और संगठन की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे।

इस अवसर पर  इंजी. राहुल अहिरवार को सोशल मीडिया और विभिन्न माध्यम से बधाइयां दी गई।



बुधवार, 26 मार्च 2025

मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना जमीनी स्तर पर हो रही चुनावी जुमला साबित?

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। यह योजना युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन अब यह जमीनी स्तर पर चुनावी जुमला साबित हो रही है।

वर्ष 2023 में ऊर्जा विभाग में चयनित हुए मध्य प्रदेश के युवाओं को अभी तक नियमित रोजगार नहीं मिला है। इसके अलावा, प्रशिक्षण पूर्ण होने के सात महीने बाद भी उन्हें प्रशिक्षण पूर्ण प्रमाण पत्र नहीं दिया गया है। युवाओं ने वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव,ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर,  ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव, तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, तथा अन्य बड़े-बड़े अधिकारियों को ज्ञापन दिया, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है।

इस मामले में मध्य प्रदेश के ऊर्जा विभाग में कार्य कर चुके युवाओं की मांग है, कि उन्हें उसी विभाग में रोजगार प्रदान किया जाए। 

राहुल बौद्ध 


शुक्रवार, 21 मार्च 2025

महाराजा छत्रसाल जी की वीरता का वर्णन

  • करो देस के राज छतारे
  • हम तुम तें कबहूं नहिं न्यारे।
  • दौर देस मुगलन को मारो
  • दपटि दिली के दल संहारो।
  • तुम हो महावीर मरदाने
  • करिहो भूमि भोग हम जाने।

महाराजा छत्रसाल ने मुगलों से कभी हार नहीं मानी और सदा विजेता रहे। वह बुंदेलखंड के एक महान योद्धा थे जिन्होंने अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए अनेक युद्ध लड़े। उनकी वीरता और साहस की कहानियां आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं ।

    यशस्वी अरजरिया (दर्शनशास्त्र छात्रा MCBU)

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

विजली विभाग : आउटसोर्स भर्ती में भ्रष्टाचार और भाई–भतीजावाद को लेकर जांच की मांग

छतरपुर ।   मीडिया रिपोर्ट में अवगत कराया गया कि        म.प्र.पू.क्षे.वि.वि.कं.लि.संभाग कार्यालय बिजावर एवं वितरण केंद्र बिजावर में आउटसोर्स भर्ती मे भ्रष्टाचार और भाई भतीजाबाद की नीति अपनाई गई है ।

राहुल अहिरवार ने अवगत कराया की मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड संभाग बिजावर एवं वितरण केंद्र बिजावर में एक एक पद खाली था, जिससे आउटसोर्स भर्ती के माध्यम से भरा जाना था, उपरोक्त पदों के लिए  अधीक्षण अभियंता मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड वृत कार्यालय छतरपुर द्वारा समस्त कार्यपालन अभियंताओं को लेख किया गया था,कि विभाग के खाली पदों पर आउटसोर्स भर्ती में  मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना के युवाओं एवं एक वर्ष ट्रेनिंग पूर्ण कर चुके अप्रेंटिसशिप युवाओं को प्रथम प्राथमिकता दी जाए, लेकिन  मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड संभाग बिजावर मे सेवानिवृत कर्मचारी  मोहम्मद यूसुफ के सगे संबंधी जाकिर मोहम्मद की आउटसोर्स पद पर भर्ती की गई, इसके पूर्व में मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना के युवा राहुल अहिरवार ने ट्रेनिंग पूर्ण के बाद रिक्त आउटसोर्स पद पर भर्ती हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें मुख्यमंत्री सीखो कमाओ योजना के युवा  के आवेदन को कार्यपालन अभियंता संभाग बिजावर द्वारा नजअंदाज किया गया कोई कार्यवाही नहीं की गई कार्यपालन अभियंता संभाग बिजावर द्वारा कार्यवाही न करने का मुख्य कारण  सेवानिवृत कर्मचारी मोहम्मद यूसुफ की सेवानिवृत होने के बाद भी सेवा लेना और मोहम्मद यूसुफ का प्रतिदिन ऑफिस आना तथा समस्त गोपनीय कार्य करना था, इस संबंध में राहुल अहिरवार ने  राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक आयोग भारत सरकार,  राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग भारत सरकार, माननीय मानव अधिकार आयोग भारत सरकार, माननीय प्रमुख सचिव श्रम विभाग मध्यप्रदेश शासन भोपाल, माननीय अपर सचिव महोदय ऊर्जा विभाग मध्यप्रदेश शासन, कलेक्टर जिला छतरपुर को ईमेल के माध्यम से शिकायती पत्र प्रेषित किया, और आउटसोर्स भर्ती में हुए भ्रष्टाचार की जांच करने  दोषियो पर कार्यवाही करने, तथा सेवानिवृत कर्मचारी मोहम्मद यूसुफ को  सेवानिवृत्ति के बाद कार्यपालन अभियंता संभाग बिजावर कार्यालय में सेवा देने से रोकने की मांग की ।






गुरुवार, 13 मार्च 2025

महाराज छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने पन्ना के प्राणनाथ और जुगल किशोर मंदिर का शैक्षणिक भ्रमण किया

छतरपुर । महाराज छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर से प्रणामी संप्रदाय विषय के विद्यार्थियों ने पन्ना के प्राणनाथ और जुगल किशोर मंदिर का शैक्षणिक भ्रमण किया। इस अवसर पर, छात्र अर्जुन कुमार ने बताया कि हमें प्रणामी संप्रदाय के बौद्धिक सत्र द्वारा प्रणामी संप्रदाय के बारे में गहराई से जानने का अवसर प्राप्त हुआ।

उन्होंने बताया कि  प्रणामी संप्रदाय से संबंधित गलत अवधारणाओं को दूर किया गया और असली और उचित सिद्धांतों का वर्णन किया गया। हमारे विभागाध्यक्ष जे. पी. शाक्य जी के मार्गदर्शन द्वारा हमने प्रणामी संप्रदाय का अपने विषय के रूप में चयन किया, जो हमारे लिए लाभप्रद रहा।

इस अवसर पर  छतरपुर के राजा महाराज छत्रसाल जी का प्रणामी संप्रदाय के प्रति विचार और दृष्टिकोण जानने का अवसर मिला। छात्रों ने जे. पी. शाक्य सर, बी. डी. नामदेव सर, और संतोष सर जी का धन्यवाद वयक्त किया है ।


गुरुवार, 6 मार्च 2025

वैधराज देशराज अहिरवार प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति से कर रहे जटिल रोगों का इलाज

छतरपुर । मीडिया रिपोर्ट मे वैधराज देशराज अहिरवार ने अवगत कराया कि बे मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बिजावर तहसील के रैदासपुरा गाँव में रहते हैं। वे आयुर्वेद के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियों का ईलाज करते हैं, जिनमें अंधापन, बहरापन, गूंगापन, जन्मजात अपाहिजता, जोड़ों का दर्द, गंजापन, पथरी, पुरानी से पुरानी सर्दी जुखाम, पेट से संबंधित समस्याएं, लकवा, खाज खुजली, सफेद दाग, पीलिया, सुन्नपन आदि शामिल हैं।

वैधराज देशराज अहिरवार का मानना है, कि आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जो भारत में लगभग 5,000 वर्षों से प्रचलित है। आयुर्वेद का अर्थ है "जीवन का ज्ञान" और यह प्राकृतिक तरीकों से स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बनाए रखने पर केंद्रित है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों में से एक यह है कि शरीर में तीन दोष - वात, पित्त, और कफ - होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को नियंत्रित करते हैं।


वैधराज देशराज अहिरवार ने अपने पूर्वजों के ज्ञान और अनुभव का उपयोग करते हुए आयुर्वेदिक ईलाज पद्धति को विकसित किया है। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा ठीक किए गए मरीजों की संपूर्ण जानकारी उनके यूट्यूब चैनल वैधराज देशराज अहिरवार पर उपलब्ध है,जिससे सभी लोग देख सकते हैं, उन्होंने कहा कि वे छोटे से गाँव से संबंध रखते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को ईलाज मिले, उनके पास सोशल मीडिया ही एक रास्ता है, जो उनके ज्ञान अनुभव और ईलाज पद्धति को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने का प्रमुख साधन है,

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिजावर में सीटी स्कैन,एक्स-रे और सीबीसी आदि जाँचो की सुविधा उपलब्ध हो

  परिसंघ ने लिखा शासन को पत्र

 छतरपुर । जिले में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिजावर में सीटी स्कैन, एक्स-रे, और सीबीसी जैसी जांचों की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह समस्या इतनी गंभीर है कि कई मरीजों की इलाज के अभाव में मौत हो गई है।

दलित, ओबीसी, माइनॉरिटी, और आदिवासी संगठनों के परिसंघ ने मध्य प्रदेश सरकार और जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर इस समस्या का समाधान करने की मांग की है। परिसंघ के संयोजक इंजीनियर राहुल अहिरवार ने कहा है, कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिजावर को सीटी स्कैन, एक्स-रे,और सीबीसी जैसी जांचों की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार को जल्द से जल्द कार्यवाही करनी चाहिए।


गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

संत शिरोमणि रविदास जी की जयंती पर ग्राम रैदासपुरा में भव्य शोभा यात्रा निकाली गई एवं समारोह आयोजित हुआ

इंजीनियर राहुल अहिरवार

 
छतरपुर, मध्य प्रदेश।ग्राम रैदासपुरा की आयोजक समिति ने संत शिरोमणि रविदास जी की जयंती पर एक भव्य समारोह आयोजित किया। इस अवसर पर ग्राम के समस्त निवासियों ने भाग लिया और संत रविदास जी के जीवन और उनके संदेशों को याद किया।

समारोह की शुरुआत शोभा यात्रा से हुई, जो ग्राम के पंच चबूतरा से शुरू हुई और जटाशंकर रोड से होते हुए संपूर्ण ग्राम से होकर पंच चबूतरा पर समाप्त हुई। इसके बाद हवन किया गया और संत रविदास जी के जीवन और उनके संदेशों पर चर्चा की गई।

आयोजक समिति के सदस्य इंजीनियर राहुल अहिरवार ने कहा, "संत रविदास जी का जीवन समाज के सभी वर्गों के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनकी भावपूर्ण कविताएं जाति और धर्म की सीमा से ऊपर उठते हुए पूरी मानवता को प्रेरित करती हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "ग्राम रैदासपुरा में संत रविदास जी की जयंती का एक अलग ही महत्व है। ग्राम की संपूर्ण जनसंख्या अहिरवार है, और ग्राम का नाम संत शिरोमणि रविदास जी के नाम पर ही रैदासपुरा पड़ा है।"

इस अवसर पर ग्राम के समस्त निवासियों ने संत रविदास जी के जीवन और उनके संदेशों को याद किया और उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।

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