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बुधवार, 30 अप्रैल 2025

प्रशनाकुल बिरादरी, बनाम देशद्रोह

 

राजा जंगल का हो या हमारी बस्ती का डरता है तो केवल मचान से डरता है. ये बात मै अपनेतजुर्बे से कह रहा हूँ. मुमकिन है कि आपका तजुर्बा मेरे तजुर्बे से अलग हो. जंगल हो या कोई मुल्क चलता कानून से ही है. हां कभी-कभी उलट-पलट हो जाती है. कभी देश जंगल और कभी जंगल देश हो जाता है.

राजा कहीं का भी हो, प्रजा और राज्य की रक्षा का दायित्व उसी के ऊपर होता है. सुरक्षा चाहे आंतरिक हो या बाह्य जिम्मेदारी राजा की ही बनती है, लेकभी कभी हालात ऐसे बनते हैं कि राजा को असुरक्षा का अनुभव होने लगता है.. असुरक्षा के संकेत मिलने लगते हैं घटनाक्रम से. ऐसे में राजा धीरे धीरे सक्रिय होता है. अपनी पुलिस, फौज, कानून सबको तैयार करता है.

राजा बाहर घूमने जाता है तब भी उसको देश की, जंगल की फिक्र बनी ही रहती है. कुछ घटनाएं राजा की नींद उडा देती हैं. मिसाल के तौर पर हमारे यहाँ पिछले दिनों देश के भीतर वक्फ बोर्ड कानून के खिलाफ वगावत, या देश में पहलगाम जैसा कोई  अप्रत्याशित हत्याकांड.तब राजा को सक्रिय होना पडता है.ऐसे में यदि पत्ता भी खडकता है तो राजा के कान कडे हो जाते हैं. राजा किसी भी तरह की प्रश्नाकुलता, प्रतिकार, असहमति बर्दाश्त नहीं करता. जिससे तकलीफ होती है उसका निषेध करता है.

आजकल जंगल हो मुल्क दोनों जगह यूट्यूब वाले सबसे बडा खतरा बन गये हैं आंतरिक सुरक्षा के लिए. अनेक यूट्यूब चैनल बंद करा दिए गये. अनेक कतार में हैं. कभी गिरजेश वशिष्ठ पर गाज गिरी तो कभी संजय शर्मा पर. यूट्यूब का इस्तेमाल करने वाला कोई भी नर नारी हो यदि सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ जबान खोलता है या सवाल करता है तो उससे आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो जाता है. ऐसे तत्वों को आप शहरी नक्सली कह सकते हैं. उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है. किया जाना चाहिए या नहीं ये बाद में अदालतें तय करतीं हैं.

जंगल हो या मुल्क केवल डराता है धमकाता है. लोग जब नहीं डरते तो फिर राजा हो रानी उसे देश में इमरजेंसी लगाना पडती है. इमरजेंसी भी दो तरह की होती है. एक श्रीमती इंदिरा गांधी वाली घोषित इमरजेंसी और दूसरी होती है अघोषित इमरजेंसी.

मै  उन खुशनसीब देशवासियों जैसा हूँ जिन्होने दोनों तरह की इमरजेंसियां देखी और उनका सामना किया है. कोई भी इमरजेंसी अच्छी नहीं होती और कोई भी इमरजेंसी सौ फीसदी खराब नहीं होती. दरअसल इमरजेंसी में नुकसान जनता का ही होता है. कल भी हो चुका है, आज भी हो रहा है. इसके बाद भी इमरजेंसी और मुगलिया सल्तनत में भेद है. इतिहास से मुगलकाल विलोपित किया जा सकता है, इमरजेंसी का शासनकाल नहीं. क्योंकि एक सनातन देशी है एक मुगलिया.

हमने वो इमरजेंसी भी देखी जिसमें 19महीने जेलें विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओ से ठसाठस भरी रहीं. तब यूट्यूब नहीं थी लेकिन चार संवाद एजेंसियां थीं, उनहें एक कर दिया गया थ. अखबारों पर पहरे थे, कुछ लोग सुकून से थे तो कुछ डरे हुए थे. आज भी बहुत से लोग सुकून से हैं, बहुत से लोग डरे हुए हैं. कहीं बुलडोजर का डर है. कहीं देशद्रोही घोषित होने का डर है. कहीं अकारण जेल जाने का डर है. लेकिन तब भी निडर लोग डरे नहीं. आज भी निडर लोगों की संख्या कम नहीं हैं. राजा भले पहलगाम न पहुचे हों लेकिन तमाम यूट्यूबर वहां पहुंच चुके हैं. कोई राहुल गांधी भी वहाँ लोगों को नजर आए.

आज के माहौल में आप कौन सी इमरजेंसी महसूस कर रहे हैं, ये आप जानें किंतु मुझे तो अपनी कलम और जबान की चिंता है. चिंता है अपनी सनातन प्रश्नाकुलता की जिसके चलते महाभारत और गीता जैसे कालजयी ग्रंथ हमें विरासत में मिले. क्योंकि तब के राजा घोर इमरजेंसी में यानि युद्धभूमि में भी प्रशन करने की आजादी दिए हुए थे. अर्जुन अपने सारथी से प्रश्न कर सकता था, दृष्टिहीन राजा अपने मंत्री संजय से प्रश्न कर सकता था.जिस देश में या जंगल में प्रश्न करने से आंतरिक सुरक्षा खतरे में पडती हो उस देश का, जंगल का भगवान ही रक्षक हो सकता है. आप मान लीजिये कि हम सब यानि हमारा देश, हमारा जंगल सब भगवान के भरोसे है. हमारे भगवान हमारे मन मंदिर में भी हैं और अयोध्या के नये मंदिर में भी. जय सीताराम.

@ राकेश अचल

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

'ध्रुवयंत्र'का त्याग किए बिना हमारी लड़ाई अधूरी

 पहलगाम हत्याकांड  करने वालों का मकसद आतंक  फैलाना था, देश में दस साल से चल रहा हिन्दू ध्रुवीकरण था या पाकिस्तान की कोई आंतरिक मजबूरी ये जान पाना न एन आई ए के लिए आसान है और न हमारे आपके लिए. हकीकत तो केवल ऊपर वाला जानता है, और ऊपर हमारे रामजी भी हैं और आतंकियों के अल्लाह भी. इन दोनों से कौन पूछे. जब हम अपने प्रधानमंत्री से सवाल - जबाब करने के अधिकारी नहीं हैं तो ऊपर वाला तो ऊपरवाला है.सबसे ऊपरवाला.

आतंकियों का पाकिस्तान सरकार का, पाकिस्तान की सेना का मकसद अलग-अलग नहीं हैं. हो भी नहीं सकते क्योंकि तीनों एक दूसरे के पर्याय हैं, पूरक हैं. उनकी कोशिश कामयाब न हो ये हम सबकी जिम्मेदारी है. ये बात मै इसलिए कह रहा हूं कि पहलगाम हत्याकांड का असर अब भोपाल में भी नजर आने लगा है. भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन परिसर में शनिवार देर रात नशे में धुत युवकों ने रेलवे पुलिस (जीआरपी) के हेड कांस्टेबल दौलत खान पर हमला कर दिया. आरोपियों ने जवान की वर्दी फाड़ दी, गाली-गलौज की और धार्मिक आधार पर आपत्तिजनक टिप्पणियां भी कीं. घटना के बाद पुलिस ने मुख्य आरोपी जितेंद्र यादव को गिरफ्तार कर लिया है. दो अन्य आरोपी फरार हैं. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. वीडियो के सामने आने के बाद राजनीतिक पार्टियां भी भोपाल में प्रशासन और कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठा रहे है. ऐसी छुटपुट वारदातें ऐहतियात से ही रोकी जा सकती हैं किसी 'ध्रुवयंत्र' से नहीं.('ध्रुवयंत्र' यानि हिंदू बनाम मुसलमान करने की तकनीक). यह आर एस एस और भाजपा का प्रिय यंत्र है.

पहलगाम हत्याकांड से बहुत पहले मुगल सम्राट औरंगजेब की तारीफ कर अपनी आफत बुला चुके महाराष्ट्र के सपा विधायक अबू आजमी ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पहलगाम हमले के बाद भारत के मुसलामनों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? उन्होंने कहा कि कश्मीर के पहलगाम में जो हुआ उसका खुलकर तमाम देश के लोगों ने, हर जात-धर्म के लोगों ने निंदा की. खासकर तौर पर भारत का मुसलमान चिल्ला-चिल्लाकर ये कह रहा है कि हम भारत सरकार के साथ हैं, आतंकवाद के खिलाफ सरकार को कड़े से कड़ा एक्शन लेना चाहिए.

अबू आजमी ने कहा, "आतंकवादियों ने वहां पर जात (धर्म) पूछकर मारा. भारतवर्ष में आज क्या हो रहा है? जब से ये सरकार आई है, हिंदू-मुस्लिम किया जा रहा है. लगता है आतंकवादियों को मालूम था कि ये बात करेंगे तो देश के अंदर अशांति फैलेगी...यहां के लोग हिंदू-मुस्लिम को आपस में लड़ा रहे हैं. जबकि वहां के आदिल और नजाकत ने किस तरह से काम किया, जितने लोग गए थे वो चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि वहां के मुसलमानों ने हमें बहुत मदद किया.

अबू आजमी एक विधायक भर हैं, किसी पार्टी के सद्र या किसी सूबे के वजीरेआला नहीं हैं इसलिए उनकी बातों को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही, जबकि वे एक बेहद जरूरी बात कर रहे हैं. दुर्भाग्य ये है कि हम बात करना और सुनना ही नहीं चाहते.खासकर मुसलमानों से चाहे वे विधायक हों, सांसद हों या मुख्यमंत्री हों. पहलगाम हत्याकांड के बाद हुई उच्चस्तरीय बैठक से जब वहाँ के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बाहर कर दिया गया तब अबू आजमी की क्या हैसियत  है आखिर ? 

जब सरकार इस नृशंस हत्याकांड के बाद एक मुसलमान मुख्यमंत्री तक का सम्मान नहीं कर रही तो देश के उन आम मुसलमान के सम्मान की बात कौन करे जो कि आतंकी वारदात के खिलाफ सडकों पर हैं. खतरनाक बात ये है कि हिंदू-मुसलमान हमारी कार्यपालिका, विधायका, न्यायपालिका और खबरपालिका पर भी एक ग्रहण की तरह लग चुका है.

भगवान के लिए, अल्लाह के लिए, वाहे गुरु के लिए, जीसस के लिए मुल्क को बचाइए. भारत की पुण्य भूमि आज की तारीख में हम सबकी है. हम सब उसके अन्न जल पर निर्भर हे. हम सब यानि हम सब, केवल हिंदू नहीं. हिंदू उस समय भी बहुसंख्यक थे जब मुगलों और अंग्रेजों के गुलाम रहे. हिंदू आज भी बहुसंख्यक हैं जब हम 78 साल से आजाद हैं. हिन्दू आगे भी बहुसंख्यक ही रहेंगे. अल्पसंख्यक कभी बहुसंख्यक नहीं हो सकते. बहरहाल एक ही गुजारिश है कि आतंकियों, पाकिस्तानी सरकार के मकसद पूरे मत होने दीजिये. हथियारों से हम पाकिस्तान को बार बार हरा चुके है. हम जीत के बाद पाकिस्तान को उसकी पराजित सेना भी वापस कर चुके है. लेकिन जो नहीं कर सके वो है 'ध्रुवयंत्र ' का परित्याग. एक बार करके तो देखिए.

@राकेश अचल

सोमवार, 28 अप्रैल 2025

थैलेसीमिया माइनर वाले बच्चों के लिए रक्तदान शिविर 6 मई को सिन्धी धर्मशाला में

ग्वालियर 28 अप्रैल ।  थैलेसीमिया माइनर वाले बच्चों के लिए रक्तदान शिविर ग्वालियर में आयोजन 6 मई को महाराज बाडा स्थित सिन्धी धर्मशाला में सुबह 9 बजे से लेकर रात 9 बजे तक किया जा रहा हैं। 

यह शिविर बच्चों को रक्त की कमी से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद कर सकता है। 

हमारी नफरतों की कोई हद नहीं

 

हमारी नफरत की कोई हद नहीं है. इस समय सत्ता प्रतिष्ठान पर जिस तरह अल्पसंख्यको के प्रति नफरत भरी है उसका असर अब हमारी पाठ्य पुस्तको पर भी दिखाई देने लगा है.खबर हैकि दिल्ली की एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तकों में कक्षा 7 की किताबों से मुगल और दिल्ली सल्तनत के चैप्टर्स हटा दिए गए हैं. 

सत्ताप्रतिष्ठान और उसे संचालत दल और संगठन भारत की धरती से अल्पसंख्यकों को खदेडने का ख्वाब देख रहा है. सबसे पहले औरंगजेब पर जोर आजमाइश की. औरंगजेब की कब्र खोदकर उसकी मिट्टी समंदर में डालने का प्लान बनाया पर नाकाम रहे.

 खीजकर अब पाठ्यपुस्तको को निशाना बनाया.इन बदलावों के तहत नए अध्यायों में भारतीय राजवंश, 'पवित्र भूगोल', महाकुंभ और सरकारी योजनाओं पर जोर दिया गया है. ये कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति  और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे 2023 के अनुरूप हैं जो भारतीय परंपराओं, दर्शन, एजुकेशन सिस्टम और स्थानीय संदर्भ पर जोर देते हैं.

एनसीईआरटी के अधिकारियों के मुताबिक, ये पाठ्यपुस्तक का पहला हिस्सा है और दूसरा हिस्सा आने वाले महीनों में जारी किया जाएगा. हालांकि, उन्होंने यह पुष्टि नहीं की कि पहले हटाए गए हिस्से वापस जोड़े जाएंगे या नहीं.

पाठ्यक्रमों से ये खिलवाड नयी नहीं है. कांग्रेस केराज मे मप्र की किताबों से अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोडी रजधानी थी को हटाया गया था. लेकिन इतिहास इतनी आसानी से नहीं बदलता. इतिहास किताबों के अलावा किंवदंतियों, जनश्रुतियों मे भी जिंदा रहता है. इसे कैसे हटाया जा सकता है.

पिछले दिनों पहलगाम में हुए नृशंस हत्याकांड के बाद विधर्मियो के खिलाफ माहौल बनाने की भी कोशिश की गई लेकिन देश की समझदार जनता ने इसे नाकाम कर दिया. घाटी में आतंकियों के घरों को जमीदोज कर केंद्र सरकार ने ये दिखाने की कोशिश की कि सरकार हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठी है. सरकार को हाथ पर हाथ रखकर बैठना भी नहीं चाहिए. देश की संप्रभुता को चुनौती देने वाले हर तत्व को कुचला जाना चाहिए, लेकिन ये तभी मुमकिन है जब सरकार अपने कार्य व्यवहार से ये प्रमाणित भी करे.

पहलगाम हत्याकांड के बाद अपनी विदेश यात्रा रद्द कर स्वदेश लौटने वाले प्रधानमंत्री यदि घटनास्थल पर जाने के बजाय किसी चुनावी आमसभा में नजर आएं तो आप सरकार के बारे में समझ सकते है.

एनसीईआरटी की किताब में मुगलों को हटाने या महाकुम्भ जोडने से कुछ भी हासिल नहीं होगा.सरकार किताबों से मुगलों को हटा सकती है लेकिन ताज महल का क्या करेगी? वहां तो हर देशी, विदेशी जाता है. लालकिले को हटाए बिना मुगल बार बार याद आते रहेंगे

आपको याद होगा कि सरकार की नयी शिक्षानीति से मुगलों को विस्थापित कर उसका संघीकरण करने का काम पहले ही किया जा चुका है..

@राकेश अचल

रविवार, 27 अप्रैल 2025

अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों के साथ किया जा रहा भेदभाव - डॉ अग्र

आरक्षित वर्ग विरोधी प्रशासन में बैठे अधिकारी एक पक्षीय कार्यवाही कर रहे हैं  

ग्वालियर 26 अप्रैल । मध्य प्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग के स्पष्ट नियम है और समय-समय पर पुनः  जारी किए जा रहे हैं कि दलित और आदिवासियों को यानी अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के अधिकारी कर्मचारियों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न किया जाए, लेकिन इन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए आरक्षित वर्ग विरोधी अधिकारी इन वर्गों को शासन के नियम होते हुए भी भेदभाव कर पीड़ित कर रहे हैं निलंबित कर रहे हैं ।

 यह आरोप आरक्षित वर्ग वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ (अवाक्स) के प्रांत अध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र ने लगाया है उदाहरण के लिए दतिया के सीएमएचओ डॉ हेमंत मंडेलिया जो दलित हैं जिला श्योपुर के सहायक आयुक्त जनजाति कार्य विभाग दोनों को निलंबित किया गया है लेकिन दूसरे के अधिकारियों की दर्जनों शिकायतें हैं जांचो में भी दोषी हैं उनको निलंबित नहीं किया जाता । जिस प्रकार दलित और आदिवासी वर्ग के अधिकारी कर्मचारीयों के बिरुद्ध कार्यवाही की जाती है उसी प्रकार दूसरे वर्ग के अधिकारियों पर कर्मचारियों पर कार्यवाही क्यों नहीं की जाती यह हम और आपको समझाना पड़ेगा जबकि शासन के स्पष्ट नियम है कि अनुसूचित जाति जनजाति के अधिकारी कर्मचारियों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव ने किया जाए लेकिन खुलेआम भेदभाव किया जा रहा है इन वर्गों के अधिकारी कर्मचारियों को पीड़ित किया जा रहा है उत्पीडित किया जा रहा है लेकिन हमारे वर्गों के संगठन सम्मेलन सम्मान समारोह करने में मस्त है पीड़ित अधिकारी कर्मचारियों को न्याय दिलाने में और अन्याय अत्याचार भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने में पीछे है ।

शनिवार, 26 अप्रैल 2025

अनुसूचित जाति वर्ग के वर्ष 2016 में बंद किए गए कन्या बालक आश्रम चालू कराने को लेकर केंद्रीय मंत्री सिंधिया से मुलाकात कर मांग की

 

ग्वालियर 26 अप्रैल । विभिन्न समस्याओं को लेकर आज ग्वालियर आगमन पर  ज्योतिरादित्य सिंधिया  केंद्रीय मंत्री को वर्ष 2016 में मध्य प्रदेश शासन अनुसूचित जाति विभाग के बंद किए गए कन्या बालक आश्रम चालू कराने की मांग को लेकर एवं अन्य समस्याओं को लेकर आदम जाति कल्याण विभाग छात्रावास आश्रम शिक्षक अधीक्षक संघ (कसस) के संस्थापक प्रांत अध्यक्ष एवं आरक्षित वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ (अवाक्स) के संस्थापक अध्यक्ष तथा दलित आदिवासी महापंचायत (दाम) के संस्थापक संरक्षक डॉ जवर सिंह अग्र ने मुलाकात कर समस्याओं के निराकरण के लिए निवेदन किया।

 पत्र के माध्यम से सिंधिया  जी को अवगत कराया गया कि मध्य प्रदेश शासन अनुसूचित जाति विभाग के संपूर्ण मध्य प्रदेश के जिलों में अनुसूचित जाति वर्ग के कन्या और बालक आश्रम संचालित थे जिन्हें मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2016 में बंद कर दिया इन आश्रमों में अनुसूचित जाति वर्ग के छात्र-छात्राओं के प्रवेश कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8 तक होते थे इन आश्रमों में गरीब परिवार के छात्र-छात्राओं को आवासीय व्यवस्था के साथ-साथ भोजन व्यवस्था शिक्षा आदि सभी व्यवस्थाएं निशुल्क मध्य प्रदेश शासन की ओर से दी जाती थी।

आश्रम बंद होने के कारण इन सुविधाओं से अनुसूचित जाति वर्ग के कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8 तक के छात्रों प्रवेश से वंचित हो रहे हैं उपरोक्त सुविधाओं से वंचित रह रहे हैं प्रकार एक तरह से शिक्षा से वंचित हो रहे हैं पत्र के माध्यम से  श्री सिंधिया  से निवेदन किया गया है की बंद किए गए आश्रमों को इसी सत्र से चालू करने के आदेश शासन स्तर से जारी करने की कृपा करें। श्री सिंधिया  ने मांग पर शीघ्र कार्रवाई करने का आश्वासन दिया।

एक बार फिर जंग के मुहाने पर भारत

भारत एक बार फिर युद्ध के मुहाने पर है।  ये युद्ध किसी सीमा विवाद की वजह से नहीं बल्कि उस आतंकवाद के खिलाफ होने की अटकलें हैं जो पाकिस्तान से बाबस्ता है।  कश्मीर घाटी के पहलगाम में 26  लोगों की दिन-दहाड़े नृशंस हत्या की वारदात ने भारत को जबरन युद्धोन्मुख किया है।  आसमान में लड़ाकू विमानों की भाग-दौड़  साफ़ दिखाई देने लगी है। हमारे लड़ाकू विमान भी गरज रहे हैं और देश के नेता भी। अब देखना है कि  दोनों के सुर  कब एक होते हैं और बमों की बरसात  कब शुरू होती है।

भारत कृषि प्रधान देश है, युद्ध प्रधान नही।  भारत ने अपनी आजादी से लेकर अब तक जितनी भी जंग लड़ी हैं उनमें शायद एक भी युद्ध ऐसा नहीं है जो भारत ने अपनी तरफ से लड़ा हो। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज के प्रधानमंत्री प्रात: स्मरणीय श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी युद्ध के पक्ष में नहीं हैं। सबको पता है कि  जंग से कुछ हासिल नहीं होता। जंग से सिर्फ और सिर्फ बर्बादी होती है। हर जंग में मनुष्यता कराहती है,निर्दोष लोग मारे जाते हैं। फिर भी यदि जंग के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता तो भारत जंग से पीछे नहीं हटता। आगे भी शायद ऐसा ही हो। मोदी जी ने तो यूक्रेन और रूस की जंग समाप्त करने कि लिए काफी भाग-दौड़ की थी। 

बात कोई  चार दशक पुरानी है ,शायद 1984  की ग्वालियर के कैंसर अस्पताल परिसर में माननीय अटलबिहारी की अध्यक्षता में एक कवि सम्मेलन हो रहा था ।  उस कवि सम्मेलन में मै भी एक नवोदित कवि के रूप में मौजूद था ।  उस कवि सम्मेलन में अटल जी ने अपनी चर्चित कविता' हम जंग न होने देंगे ' पढ़ी थी ।  वे जुंग में थे लेकिन कविता आत्मा से पढ़ रहे थे।  उनकी कविता के कुछ अंश आप देखिये -

हम   जंग    न    होने    देंगे 

विश्व  शांति  के  हम  साधक  है ,  जंग  न  होने  देंगे  !

कभी  न  खेतों  मे  फ़िर  खुनी  खाद  फलेगीं ,

खलिहानों  मे  नहीं  मौत  कि  फसल  खिलेगी

आसमान  फ़िर  कभी  न  अंगारे  उगलेगा ,

एटम  मे  नागासाकी  फ़िर  नहि  जलेगी ,

युद्धविहीन  विश्व  का  सपना  भंग  न  होने  देंगे।

जंग  न  होने  देंगे।

हथियारों  के  ढ़ेरो  पर  जिनका  है  डेरा ,

मुँह  में  शांति , बगल  मे  बम , धोके  का  फ़ेरा

कफ़न  बेचने  वालों  से  कह  दो  चिल्लाकर

दुनियां  जान  गई  है  उनका  असली  चेहरा

कामयाब  हो  उनकी  चालें , वह  ढ़ंग  न  होने  देंगे।

जंग  न  होने  देंगे।

हमें  चाहिए  शांति , ज़िन्दगी  हमको   प्यारी

हमें  चाहिए  शांति , सृजन  कि  है  तैयारी

हमने  छेड़ी  जंग  भूख  से

आगे  आकर हाथ  बँटाए  दूनियां  सारी।

हरी - भरी  धरती  को  खुनी  रंग  न  लेने  देन्गे।

जंग  न  होने  देंगे।

भारत - पाकिस्तान  पडोसी , साथ - साथ रहना  है ,

प्यार  करे  या  वार  करे , दोनो  को  हि  सहना  है ,

तीन  बार  लड़  चुके लड़ाई , कितने  महंगा  सौंदा ,

रुसी  बम  हो  या  अमरीकी , खून  एक  बहना   है।

जो  हम  पर  गुजरी  बच्चो  के   संग न  होने  देंगे।

जंग  न  होने  देंगे।

अटल जी को इसके बावजूद जंग का समाना करना पड़ा ।  उनके शांति प्रयासों को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रशासन ने धता बता दिया था। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में पाकिस्तान से जंग हुई और जीती भी गयी।  अटल जी से पहले प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू,लाल बहादुर  शास्त्री,श्रीमती इंदिरा गाँधी  और पंडित अटल बिहारी बाजपेयी ने भी जंग  लड़ी। जंग में पाकिस्तान टूटा और बांग्लादेश बना। 'जंग में हार-जीत होती रहती है किन्तु देश विकास की दौड़ में पिछड़ जाता है। दरअसल जंग  किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार का हथियार नहीं होती। जंग तानाशाही प्रवृत्ति के नेतृत्व  का अमोध अस्त्र होता है। मोदी सरकार की नाकामियों और पाकिस्तान की हठधर्मी भावी जंग की आधारशिला हैं। 

जंग के मामले में हम संघ और भाजपा के प्रबल विरोधी होते हुए कविवर पंडित अटल बिहारिके प्रशंसक हैं। अटल जी कवि थे या नहीं ये अलग बात है किन्तु वे बेहतरीन तुकबंद थे और उनका मन कविमन था। लेकिन जब सर पर आगयी तो उनकी सरकार ने भी युद्ध लड़ा ,क्योंकि युद्ध भारत पर थोपा गया था।  इस बार भी युद्ध थोपा जा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री  मोदी जी ने भी अटल जी की तर्ज पर पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए कोशिश की थी ,लेकिन उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं। वे अटल जी जैसे कवि हृदय नेता नहीं हैं।  उनकी भाषा और कार्य पद्यति अटल जी से भिन्न है। अब उनके सामने भी कोई विकल्प नहीं है जंग का। यदि उन्होंने जंग न लड़ी तो वे राजनीतिक जंग हार जायेंगे। क्योंकि उन्होंने मुसलमानों  के खिलाफ देश में ही नहीं बल्कि  ,दुनिया में भी एक अघोषित ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है। 

कोई माने या न माने किन्तु  इस समय देश में सरकार के तमाम फैसलों की वजह से मुस्लिम विरोधी वातावरण है। इस वातावरण को तैयार करने में भाजपा और सत्ता प्रतिष्ठान ने बहुत मेहनत की है। इससे देश की समरसता यानि धर्मनिरपेक्षता खतरे में है लेकिन सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। सरकार की इसी लापरवाही का नतीजा है कि  देश में पुलवामा के बाद पहलगाम हो गया। खैर जो हुआ सो हुआ। अब आगे भी जो हो वो ठीक ही हो। इस समय मोदी जी की किस्मत है कि आतंकवाद के खिलाफ  फन्हें विश्व व्यापी समर्थन मिल रहा है।  अटल जी के साथ ऐसा नहीं था। जंग कि लिए पहले देश को तैयार किया जाये फिर फौज को ।  फ़ौज तो हमेशा तैयार रहती ही है ,लेकिन जनता नही।  जंग के दौरान देश में सब एकजुट हों ,कोई फिरकापरस्ती न हो ,कोई अनबन न हो। कोई हिन्दू-मुसलमान न हो।कालाबाजारी न हो।   अच्छी बात ये है की पहलगाम हत्याकांड के बाद देश का मुसलमान भी आतकवाद के खिलाफ सड़कों पर हैं। 

@ राकेश अचल

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

सिंधिया कन्या विद्यालय : आठवाँ श्रीमंत माधव राव सिंधिया धरोहर फैस्ट का आयोजन

रविकांत दुबे जिला प्रमुख 

 ग्वालियर ।सिंधिया कन्या विद्यालय में आठवाँ श्रीमंत माधव राव सिंधिया धरोहर फैस्ट का आयोजन किया जा रहा है।* यह तीन दिवसीय कार्यक्रम 25 अप्रैल 2025 से 27 अप्रैल 2025 तक मनाया जाएगा। *इस वर्ष इस उत्सव की थीम आसाम धरोहर है।* इस कार्यक्रम में *मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. बी. कल्याण चक्रवर्ती,  एडिशनल चीफ  सेक्रेटरी , गवर्नमेंट  ऑफ़  आसाम ,  डिपार्टमेंट ऑफ़ लेबर  वेलफेयर ; कल्चरल अफेयर्स;  स्किल एंड  एन्त्रेप्रेंयूर्शिप, उपस्थित रहेंगे।* *डॉ. बी. कल्याण चक्रवर्ती* ने विविध क्षेत्रों में विकास प्राप्त करने में अग्रणी अनुभव और सफलता प्राप्त की। आपने योजना, विश्लेषण, कार्यक्षेत्र और जोखिम प्रबंधन, आकस्मिक योजना,और संसाधन प्रबंधन को शामिल करते हुए सार्वजनिक सेवा में  उत्कृष्टता का प्रदर्शन किया। आप कई राज्यों और मंत्रालयों में उच्च पदों पर कार्य कर चुके हैं और सरकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं।

 इस कार्यक्रम में विभिन्न विद्यालयों से लगभग *250* छात्र-छात्राएँ आ रही हैं। इसमें मेजबान विद्यालय *सिंधिया कन्या विद्यालय* सहित *15* विद्यालय क्रमशः *बिरला पब्लिक स्कूल पिलानी, दिल्ली पब्लिक स्कूल पठानकोट, एल.के सिंघानिया एजुकेशन सेंटर गोटन, माइल्स ब्रॉनसन रेसिडेंशियल स्कूल गुहाटी, मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल अजमेर, द आसाम वैली स्कूल तेज़पुर, राजमाता कृष्ण कुमारी गर्ल्स स्कूल जोधपुर, स्टेपिंग  स्टोन्स   हाईस्कूल औरंगाबाद, सनबीम  स्कूल लहरतारा, सनबीम स्कूल वरुणा, सनबीम स्कूल मुगलसराय, विद्या देवी जिंदल स्कूल हिसार , द संस्कार वैली स्कूल भोपाल,  द सिंधिया स्कूल ग्वालियर, के.सी. पब्लिक स्कूल जम्मू उपस्थित रहेंगे* । इस धरोहर फैस्ट में 10 प्रतियोगिताएँ *सत्रिया नृत्य (क्लासिकल डांस ऑफ आसाम), लोक नृत्य (फोक डांस ऑफ आसाम), लोक गीत (फोक सांग ऑफ आसाम), पुथी चित्रांकन (मैनुस्क्रिप्ट पेंटिंग), आर्किटेक्चरल मार्वल्स ऑफ़ अहोम डायनेस्टी (ट्राइफोल्ड़ ब्रोशर), रोंधोन शोइली (असामीस क्यूज़ीन), चित्रांकन (वॉटरकलर ऑन पेपर),गमुशा चित्रण (फैब्रिक पेंटिंग ऑन गमछा), भास्करज्यो (टेराकोटा स्कल्पचर), अंकिया नाट भओना (थिएटर) होंगी।* समस्त कार्यक्रम विद्यालय प्राचार्या *श्रीमती निशी मिश्रा* की अध्यक्षता में संपन्न होगा। इस धरोहर कार्यक्रम की कोडीनेटर श्रीमती शिवांगी सहाय है ।

इस अवसर पर अतिथिगण, निर्णायक मंडल, विभिन्न विद्यालयों से आए शिक्षकगण तथा छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहेंगी। गणमान्य अतिथियों का विद्यालय परिसर में प्रातः काल 9:00 बजे आगमन होगा।

 *कार्यक्रम की रूपरेखा (25/04/2025) -:* 

उद्घाटन समारोह (विद्यालय सभागार प्रातः काल 9:00)

दीप प्रज्ज्वलन

गणमान्य अतिथियों तथा निर्णायक का पुष्प गुच्छों से स्वागत

डॉ जदाब बोरा और सुश्री उषा रानी बैश्या और उनके साथियों द्वारा नृत्य की भव्य प्रस्तुति

विद्यालय प्राचार्या श्रीमती निशी मिश्रा द्वारा स्वागत भाषण

विभिन्न टीमों द्वारा ध्वजा रोहण

मुख्य अतिथि का उद्बोधन 

सत्रिया नृत्य (क्लासिकल डांस ऑफ आसाम) (विद्यालय सभागार प्रात: काल 11:30-1:30)

गमुशा चित्रण (फैब्रिक पेंटिंग ऑन गमछा)

आर्किटेक्चरल मार्वल्स ऑफ़ अहोम डायनेस्टी (ट्राइफोल्ड़ ब्रोशर)

भास्करज्यो (टेराकोटा स्कल्पचर)

पुथी चित्रांकन (मैनुस्क्रिप्ट पेंटिंग)

अंकिया नाट भओना (थिएटर) (विद्यालय सभागार सायं काल 06:30-8:30)

 *कार्यक्रम की रूपरेखा (26/05/2025)* -:

लोक गीत (फोक सांग ऑफ आसाम) (विद्यालय सभागार प्रात: काल 10:00-12:00)

रोंधोन शोइली (असामीस क्यूज़ीन) (विद्यालय सभागार प्रात: काल 9:30-12:00)

चित्रांकन (वॉटरकलर ऑन पेपर)

लोक नृत्य (फोक डांस ऑफ आसाम) (विद्यालय सभागार सायं काल 6:00-8:00)


 *कार्यक्रम की रूपरेखा (27/05/2025) -:* 

समापन समारोह (विद्यालय सभागार प्रात: काल 10:00 बजे) 

सिंधिया कन्या विद्यालय की छात्राओं द्वारा बिहू कुम्भ लोक नृत्य की प्रस्तुति (विद्यालय सभागार) 

मुख्य अतिथि द्वारा पुरूस्कार  तथा स्मृति चिह्न वितरण

मुख्य अतिथि द्वारा उद्बोधन

धन्यवाद ज्ञापन

छात्राओं द्वारा प्रतियोगिताओं में बनायी गयी वस्तुओं की प्रदर्शनी (कमला भवन 11:00-11:55)


भटके बादल ,कहाँ गरजे,कहाँ बरसेंगे ?

 

हैरान मत होइए,मेरे निशाने में आज भी कोई बदलाव नहीं है  ।  मै आज भी अपने प्राणप्रिय प्रधानमंत्री जी की ही बात कर रहा हूँ ।  आपको पढ़ना हो तो पढ़िए और न पढ़ना हो तो मत पढ़िए। मुझे अपने भाग्यविधाता उन भटके हुए बादलों की तरह नजर आ रहे हैं जिन्हें अपने गरजने और बरसने के ठिकानों का पता नहीं है।  पहलगाम के नृशंस हादसे के बाद मोदी जी से उम्मीद थी कि वे रात 8  बजे दूरदर्शन पर दर्शन देंगे,या फिर पहलगाम में मौकाए वारदात पर नजर आएंगे,किन्तु ऐसा नहीं हुआ। वे आवारा बादलों की तरह उड़कर सीधे बिहार पहुँच गए। और बिहार के मधुबनी में मैथली में नहीं अंग्रेजी में बरसे और जमकर बरसे। 

ये कोई व्यंग्य की बात नहीं है। ये हकीकत है और पूरे देश और दुनिया ने माननीय मोदी जी को मधुबनी में गरजते हुए देखा है। उन्होंने मधुबनी  में हिंदी में या मैथली  में नहीं बल्कि अंग्रेजी में भाषण दिया ।  मंच चुनाव की  सभा का था। सामने गैर अंग्रेजी समझने वाले लोग थे लेकिन मोदी जी अंग्रेजी में बरसे ।  उन्होंने आतंकवादियों को चेतावनी दी की ' वी टार्गेटिड,आइडेंटिफाइड एंड पनिश्ड।' मुझे लगा कि मोदी जी को पता है की पहलगाम में नृशंस हत्याकांड करने वाले आतंकवादी   हिंदी या उर्दू या मैथिली नहीं जानते ,वे केवल अंग्रेजी जानते हैं इसलिए उन्हें अंग्रेजी में ही धमकाया जाए।  मुमकिन है कि माननीय मोदी जी भूल गए हों कि वे मधुबनी की चुनावी सभा में नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में बोल रहे हैं और वहां अंग्रेजी में ही बोलने से दुनिया उनकी बात समझेगी। 

मुमकिन है कि मोदी जी का प्रयोग कामयाब भी हो जाये ।  उनकी चेतावनी को आतंकवादी और पाकिस्तान दोनों समझ गए हों और भारत की और से संभावित जबाबी कार्रवाई से बचने में जुट गए हों।  पाकिस्तान को पता है कि मोदी जी खाली बादल नहीं हैं, वे गरजे हैं तो कहीं न कहीं बरसेंगे भी। मोदी जी को बरसना भी चाहिए अन्यथा जनता उन्हें और उनकी पार्टी को एकदम से ख़ारिज कर देगी। मोदी जी के सामने हिन्दुओं के जख्मों पर मरहम लगाने के साथ ही पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी से भी बड़ी जंग छेड़ना होगी।  बात अब जंग से कम पर हो ही नहीं सकती। 

भारत सरकार द्वारा पहलगाम हत्याकांड के फौरन बाद उठाये गए कदमों से पाकिस्तान में बौखलाहट  है ।  भारत ने सिंधु जल समझौता रद्द किया तो पाकिस्तान शिमला समझौता रद्द करने की धमकी   दे रहा है ,हालाँकि अभी उसने ऐसा किया नहीं है।  हम तो कहते हैं कि पाकिस्तान को जो करना है वो करे,लेकिन हमें जो भी करना है हम भी करें और निर्णायक ढंग से करें। हम पहलगाम हत्याकांड को बिहार चुनाव के लिए मुद्दा बनाने की गलतीं करें।  लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा ।  माननीय मोदी जी ने तमाम रोकटोकी के बावजूद पहलगाम हत्याकांड को चुनावी मुद्दा बना ही दिया। वे बिहार में भी इस नृशंस हत्याकांड के सहारे ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। 

माननीय प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी पूरे 11  साल से ध्रुवीकरण में लगी है ।  ध्रुवीकरण भाजपा और प्रधानमंत्री जी का प्रिय खेल है। वे पहलगाम हत्याकांड के बाद पूरे देश को एक ध्रुव पर लाने के बजाय केवल हिन्दुओं का ध्रुवीकरण कर रहे हैं। जनभावनाओं के विरुद्ध जाकर मोदी जी और उनकी सरकार जिस तरह से ध्रुवीकरण का खेल खेल रही है उससे आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई कमजोर हो सकती है। मोदी जी को अभी एक देश ,एक चुनाव की तरह पूरे देश को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करना चाहिए थी लेकिन हो उलटा रहा है। हत्याकांड पाक सेना द्वारा प्रशिक्षित   आतंकवादियों ने किया और सजा दी जा रही है भारत के मुसलमानों को जबकि पहली बार देश भर में मुसलमान तक इस हत्याकांड के खिलाफ एकजुट नजर आ रहे हैं। 

मैंने पहले दिन ही ये आशंका जताई थी कि भाजपा और हमारी लंगड़ी सरकार पहलगाम हत्याकाण्ड का इस्तेमाल चुनावों के लिए ठीक उसी तरह करेगी,जैसे की उसने पुलवामा काण्ड का किया था।  पुलवामा के शहीदों की तस्वीरें चुनावी सभाओं में खुलकर लगाई गयीं थीं। न केंद्रीय चुनाव आयोग सरकार और भाजपा को रोक पाया था और न अदालतें। आज भी यही सब हो रहा है।  खुद  मोदी जी ने पहलगाम हत्याकांड का इस्तेमाल बिहार  विधानसभा के चुनावों के लिए किया।  बेहतर होता कि वे बिहार विधानसभा चुनावों को भूलरकर पहलगाम हत्याकांड का जबाब देने में अपना समय खर्च करते ,किन्तु ऐसा नहीं किया गया। मोदी जी ने एक बार फिर अपने मन की कर दी। बधाई उन्हें, क्योंकि आलोचनाओं का और विरोध का तो मोदी जी पर कोई असर पड़ता ही नहीं है। 

मोदी जी का तो ट्रेक रिकार्ड रहा है कि वे जहाँ जाना होता है ,वहां भूलकर भी नहीं जाते और जहां नहीं जाना चाहिए वहां सबसे पहले जाते हैं। आपको याद होगा कि ढाई साल से जल रहे मणिपुर में मोदी जी नहीं गए तो नहीं गए। उन्हें  मुर्शिदाबाद और मालदा के दंगों के बाद बंगाल नहीं जाना था,वे नहीं गये ।  उन्हें पहलगाम जाना चाहिए था किन्तु नहीं गये ।  अब ये ड्यूटी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी निभा रहे हैं।  राहुल अमरीका से वापस लौटे है और सीधे श्रीनगर जा रहे हैं। उनके जाने से क्या होगा और क्या नहीं ये वे जानें लेकिन मै इतना कह सकता हूँ कि राहुल ने अक्ल से काम लिया है। वे भी श्रीनगर न जाकर मधुबनी से पीड़ितों के प्रति अपनी सहानुभूति का प्रदर्शन कर सकते थे ,लेकिन वे मधुबनी नहीं गए।  वे मोदी जी का पीछा नहीं कर रहे हैं ,फिर भी पूरी भाजपा जितना पाकिस्तान से नहीं डरती उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस और राहुल गाँधी से डरती है। 

अंततोगत्वा मुझे उम्मीद है कि मोदी जी पाकिस्तान को सबक जरूर सिखाएंगे ।  हम सब उनके साथ हैं क्योंकि मसला देश की सम्प्रभुता,एकता और अखंडता से जुड़ा है। इस मामले पर हम कोई राजनीति नहीं करना चाहते ,किसी को भी नहीं करना चाहिये ।  राहुल गाँधी को भी भी नहीं और मोदी जी को भी नहीं। किन्तु मुझे पता है कि मेरे जैसे अदने से लेखक की बात मानता कौन है ? न माने लेकिन मै अपना काम कर रहा हू और मैं कोई भटका बादल नहीं हूँ  की गरजूं कहीं और और बरसूं कहीं और। 

@ राकेश अचल

गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

उठाइये कदम ,हम सब एक साथ हैं

 

पहलगाम नृशंस हत्याकांड के बाद भारत सरकार को जो जरूरी कदम उठाने हैं ,वो उठाये,इस मुद्दे पर पूरा देश सरकार के साथ है। लेकिन शर्त ये है कि सरकार इस मुद्दे पर कार्राई से पहले ये भी गारंटी दे की देश में फिलहाल कोई ध्रुवीकरण नहीं किया जाएगा। इस हत्याकांड की आड़ में फिर से हिन्दू-मुसलमान नहीं किया जाएगा। क्योंकि देश का असली नुक्सान इसी ध्रुवीकरण की वजह से हो रहा है। 

पहलगाम में 28 लोगों की हत्या से पूरा देश सिहिर गया है।  इस हत्याकांड के लिए जब हमने और दूसरों ने केंद्र सरकार की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया तो बहुत से लोग [ भक्तगण ] आहत हो गए। राशन-पानी लेकर पिल पड़े। लेकिन मुझे उनके ऊपर केवल दया आयी,क्योंकि वे नहीं जानते की वे क्या कह रहे हैं या क्या कर रहे हैं ? भटकगणों से मेरा सीधा सा सवाल है की इस हादसे के लिए सत्ता प्रतिष्ठान को दोषी न ठहराया जाये तो क्या विपक्ष को दोषी ठहराया जाये ?डोनाल्ड ट्रम्प,पुतिन या  जिनपिंग को दोषी ठहराया जाये ?ऐसा नहीं होता। दोषी हमेशा सत्ता प्रतिष्ठान होता है क्योंकि उसके पास समस्त शक्तियां होतीं हैं। 

बहरहाल हम स्वागत करते हैं की माननीय प्रधानमंत्री अपनी सऊदी अरब की यात्रा को बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौटे ।  उन्होंने इस हत्याकांड के बाद तात्कालिक रूप से जो मुमकिन हो सकता था वो किया भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) की बैठक  में कई अहम फ़ैसले  भी लिए गए, जिसमें पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को निलंबित करने . इसके साथ ही अटारी बॉर्डर को भी बंद करने का फ़ैसला किया गया है।  आपको याद होगा की भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 के सिंधु जल समझौता किया था। इसे   तुरंत प्रभाव से निलंबित रखने का फ़ैसला किया है।  ये फ़ैसला तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान विश्वसनीय ढंग से सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं कर देता। 

सिंधु समझौते बारे में आज के पाठक शायद न जानते हों इसलिए बता दूँ की सिंधु जल  समझौते के तहत  ब्यास, रावी और सतलुज नदियों का नियंत्रण भारत को, तथा  सिंधु, चिनाब और झेलमका नियंत्रण पाकिस्तान के पास है । समझौते के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी ,क्योंकि इन  नदियों का उद्गम  भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।

पहलगाम हत्याकांड के फौरन बाद भारत ने अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट को भी तुरंत प्रभाव से बंद करने का फ़ैसला किया है. सरकार की ओर से कहा गया है कि जो लोग मान्य दस्तावेजों के आधार पर इधर आए हैं वो इस रूट से 1 मई 2025 से पहले वापस जा सकते हैं। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि अब पाकिस्तानी नागरिक सार्क वीजा छूट स्कीम (एसवीईएस) के तहत जारी वीजा के आधार पर भारत की यात्रा नहीं कर पाएंगे. एसवीईएस के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को पूर्व में जारी किए वीजा रद्द माने जाएंगे. एसवीईएस के तहत जो भी पाकिस्तानी नागरिक भारत में हैं उन्हें 48 घंटों में भारत छोड़ना होगा। 

एक अन्य फैसले के बाद नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा/सैन्य, नौसेना और वायु सेना सलाहकारों को अवांछित (पर्सोना नॉ ग्रेटा) व्यक्ति घोषित कर  दिया गया है।  उन्हें भारत छोड़ने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया है।  भारत इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग के रक्षा/सैन्य, नौसेना और वायु सेना सलाहकारों को भी वापस बुला रहा है. दोनों उच्चायोग में ये पद खत्म माने जाएंगे। ये सभी कूटनीति और राजनयिक कदम हैं। असली कार्रवाई तो नृशंस हत्यारों का खात्मा है। ये खात्मा फुटकर मुठभेड़ों से मुमकिन नहीं है। इसके लिए क्या किया जाना चाहिए ये हम जैसे लोग नहीं बता सकते ।  ये तय करना सेना और सरकार का काम है। हमारे यहां कहावत है की शत्रुता और उधारी कभी बकाया नहीं रहना चाहिए। हिसाब बराबर होना ही एकमात्र विकल्प है। 

मेरे हिसाब से और बेहतर होता की सरकार इस हत्याकांड के बाद राजनीति से ऊपर उठकर आनन-फानन में एक सर्वदलीय बैठक भी बुला लेते ।  सभी दलों को विश्वास में लेकर कोई फैसला किया जाता तो और बेहतर होता। क्योंकि ये लड़ाई हिन्दू-मुसलमान की या भाजपा -कांग्रेस की नहीं है। पूरे देश की है,देश की सम्प्रभुता  और एकता पर हमले के खिलाफ लड़ने की है। इसे सरकार अकेले नहीं लड़ सकती। पूरे देश को ये लड़ाई लड़ना होगी। मैं होता तो देश से अपील करता कि देश कुछ समय के लिए तमाम आंदोलन,धरना,प्रदर्शन बंद कर भारत सरकार के साथ खड़ा हो। अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है।  सरकार को विपक्ष कि साथ पाकिस्तान जैसा व्यवहार  न करते हुए  सहयोगियों जैसा व्यवहार करना चाहिए। जब हालात मामूल पर आ जाएँ तब विपक्ष अपना काम करे और सरकार अपना काम करें। लेकिन सरकार ऐसा कर नहीं रही ।  जम्मू-कश्मीर में हुई उच्च स्तरीय बैठक  से सूबे के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बाहर कर दिया गया। ये राज्य की जनता का अपमान है।उमर कोई पाकिस्तानी नागरिक नहीं है।  उनके पास आतंकवादियों से दो-दो हाथ करने का पुराना तजुर्बा  है।

आज मैं न प्रधानमंत्री की आलोचना करना चाहता हूं और न गृहमंत्री जी की । मेरा तो एक ही आग्रह है इस देश के प्रधानमंत्री किसी दिन रात  8  बजे देश से मुकझातिब हों। उन्हें   इस हादसे   के बाद देश से मुंह  छिपाने की जरूरत नहीं है। उनकी सरकार के अतीत के फैसलसों पर बाद में बात हो जाएगी। अभी तो पाकिस्तान से और आतंकवादियों  से निबटना है और मिलजुलकर निबटना है। 

@ राकेश अचल

बुधवार, 23 अप्रैल 2025

पहलगाम में आतंकी हमला 27लोग मरे ,पूरा देश स्तब्ध




धरती के स्वर्ग में नारकीय तांडव

 

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण नरसंहार की खबर सुनकर सारी रात नींद नहीं आयी। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस भूखंड को खंड-खंड किये जाने के छह साल बाद हुए इस आंतकी कुकृत्य में दो दर्जन से अधिक उन निरीह युवाओं  की जान चली गयी जो अपना घर-संसार बसाने से पहले अपने साथ कुछ सुनहरी यादें समेटने यहां आये थे। इस नराधम कार्रवाई से देश ही नहीं पूरी दुनिया स्तब्ध है। इस हादसे की निंदा करने के लिए भी शब्द कम पड़ रहे हैं। पूरी घाटी आने वाले काले दिनों के खौफ से जार-जार हो उठी है।

भारत का ये अभिन्न अंग  शुरू से ही गैरकांग्रेसी  राजनीति का केंद्र रहा है ।  आजादी के ठीक पहले गठित राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और बाद में जनसंघ  तथा भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370  को लेकर पूरे 72  साल राजनीति की और 2019  में इस प्रावधान को हटाकर ही चैन लिया। इस प्रावधान को हटाने के साथ ही घाटी को आतांकवाद से निजात दिलाने के लिए सूबे को तीन भागों में विभाजित किया ,पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की ,लेकिन आतंकवाद  का खत्मा नहीं हुआ। पहलगाम का नरसंहार एक दुःस्वप्न की तरह हमारे सामने है। पहलगाम आतंकी  हमले में कुल 26 लोग मारे गए, जिसमें दो विदेशी और दो स्थानीय शामिल है।  मृतकों में भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल शहीद हो गए।  हाल ही में शादी के बाद वे हनीमून पर पत्नी संग पहलगाम गए थे. हमले में उनकी पत्नी सुरक्षित बचीं। यह हमला पहलगाम के बैसरन घाटी में हुआ, जहां अक्सर पर्यटक आते हैं. इस इलाके में केवल पैदल या घोड़ों से ही पहुंचा जा सकता है. लश्कर-ए-तैयबा के एक संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट '(टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है.

इस अकल्पनीय हत्याकांड के लिए कौन जिम्मेदार है और कौन नहीं इसकी मीमांसा बाद में हो जाएगी ,लेकिन अभी तो ये तय करना है कि क्या घाटी से 370  हटाने की वजह से ये वारदात हुई है या देश में अल्पसंख्यकों के साथ वक्फ बोर्ड कानून के जरिये उनकी भावनाओं से छेड़छाड़ की कोशिश इसकी वजह है ? इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि इस समय देश सबसे बड़े संक्रमण काल से गुजर रहा है ।  देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की उधेड़बुन ने देश को हर तरफ से साम्प्रदायिकता   की आग में झौक दिया है।  हिन्दू -मुसलमान अकेला हो तो आप सम्हाल भी लें किन्तु अब तो हिन्दूहै  बनाम दलित,हिन्दू बनाम जैन ,हिन्दू बनाम हिन्दू ,हिन्दू बनाम आदिवासी यानि हिन्दू बनाम सब कुछ चल रहा है और हमारे भायविधाता न जम्मू-कश्मीर सम्हाल पा रहे हैं और न बंगाल। मणिपुर वे पहले ही जला चुके हैं। अब कश्मीर घाटी भी एक बार फिर धधक उठी है।

घाटी में अब चुनी हुई सरकार है लेकिन ये सरकार आधी-अधूरी सरकार है ।  ये राज्य सरकार नहीं बल्कि एक केंद्र शासित क्षेत्र की सरकार है ।  यहां सीमाओं की सुरक्षा हो या पुलिस सब केंद्र के हाथ में है और केंद्र इस समय साम्प्रदायिक धृवीकरण में व्यस्त है। राहुल गाँधी और उनकी माँ श्रीमती सोनिया गाँधी को जेल भेजने की तैयारियों में व्यस्त है।  हमारे भाग्यविधातों को बिहार और बंगाल की सत्ता जीतना है और ईडी,सीबीआई तथा केंचुआ के बाद भारत की न्यायपालिका को भी बंधुआ बनाना है। इसके लिए देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना साहब तक को देश में कथित तौर पर चल रहे तमाम गृह युद्दों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।  यदि भाजपा का यही पैमाना है तो पहलगाँम   के नरसंहार के लिए भी देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना  ही जिम्मेदार हैं।

. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि गुनहगारों को बख्शा नहीं जाएगा। आतंकवादियों की कायराना हरकत का जवाब देने के लिए भारतीय सेना तैयार है।  हमारी सेना तो पहले भी आतंकवादियों से लगातार जूझ ही रही थी ,उसके हाथ किसी ने बंधे थोड़े ही थे। फिर भी ये हादसा हुआ इसका अर्थ है की सरकार और सेना की रणनीति में कहीं कोई झोल रह गया। यानि सरकार का और सेना का खुफिया तंत्र नाकाम साबित हुआ। सवाल ये है की जब हमारी सरकार एक बार सर्जिकल स्ट्राइक कर चुकी है फिर ये आतंकी कहाँ से आ गए ? सरकार को पता था कि  पहलगाम हत्याकांड का मुख्य मास्टर माइंड ताजा आतंकी हमले से दो महीने पहले ही सैफुल्लाह खालिद पाकिस्तान के पंजाब के कंगनपुर पहुंचा था, जहां पाकिस्तान सेना की एक बड़ी बटालियन रहती है। वहां पाक सेना के एक कर्नल जाहिद जरीन खटक ने उसे जेहादी भाषण देने के लिए बुलाया था।  उसके वहां पहुंचने के बाद खुद कर्नल ने उसके उपर फूल बरसाए.गए थे।

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद सरकार सक्रिय  हुई  है।प्र्धानमंत्री श्री नरेंद्र  मोदी ने अमित शाह से फोन पर बातचीत की। उन्होंने इस घटना पर कड़ी कार्रवाई करने के आदेश दिए।मोदी जी इस समय सऊदी अरब में है ।  बेहतर होता कि वे इस हत्याकांड के बाद अपना दौरा निरस्त कर स्वदेश लौटते और खुद सारी स्थिति की समीक्षा करते  लेकिन उन्होंने ऐसा न कर अपने हनुमान यानी गृहमंत्री अमित शाह को कमान सौंपी है।  शाह  ने कहा कि इस जघन्य आतंकी हमले में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा और हम अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देंगे। गृह मंत्री अमित शाह ने श्रीनगर पहूंचकर  सभी एजेंसियों के साथ सुरक्षा समीक्षा बैठक की है ।  अब नतीजोंका इन्तजार करना होगा।

@ राकेश अचल

मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

सिंधिया स्कूल में “वर्ल्ड अर्थ डे” के अवसर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित


रविकांत दुबे जिला प्रमुख 

 ग्वालियर । सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में आज “वर्ल्ड अर्थ डे” के अवसर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। सर्वप्रथम विद्यालय के 600 से अधिक सदस्यों के द्वारा पर्यावरण संबंधित रीवाइल्डिंग,जल-प्रबंधन, अपशिष्ट-प्रबंधन,ऊर्जा-संरक्षण और जैविक खेती जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ड्राइंग शीट पर ड्राइंग, स्केचिंग या भित्तिचित्र बनाए गए। 

इसके बाद विद्यालय के सभी सदस्यों को संबोधित करते हुए प्राचार्य श्रीअजय सिंह ने कहा कि हमें एक विशेष दिन पर अर्थ डे मनाते हैं परंतु हमारे लिए हर दिनअर्थ डे होना चाहिए  आपका हर छोटे से छोटा कार्य इस धरती को, इस पर्यावरण को बचाने के लिए होना चाहिए।जब आप कक्षा से बाहर आते हैं और लाइट और पंखे बंद कर देते हैं या अपने आसपास फैले गंदगी को साफ करते हैं या किसी भी प्रकार से पानी को बर्बाद नहीं करते यह सभी छोटी-छोटी आदतें सीधे तौर पर पृथ्वी को बचाने में काम आती हैं इसलिए अपनी इस तरह के किसी भी काम को छोटा मत समझिए।  उन्होंने विद्यालय में हर हफ्ते मंगलवार को मनाए जाने वाले “नो व्हीकल डे” की भी चर्चा की।

विद्यालय में आज एक घंटे के लिए सभी लाइट्स बंद कर दिए गए और इस दौरान सभी छात्रों नेअपने-अपने सदन में रहकरअपनी विभिन्न प्रतिभाओं को सभी के समक्ष रखा।इसमें कविता पाठ गायन वादन तथाअर्थ देखकर महत्व पर प्रकाश डाला गया। 

इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य श्री अजय सिंह, उप-प्राचार्या सुश्री स्मिता चतुर्वेदी  सहशैक्षणिक गतिविधियों के अधिष्ठाता श्री धीरेंद्र शर्मा, कार्यक्रम के संयोजक श्री गोपाल चतुर्वेदी सहित विद्यालय के सभी अध्यापक, छात्र और सिंधिया  स्कूल के प्रशाशनिक विभाग के सदस्यों ने भी इसमें भाग लेकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई ।

मनोज मिश्रा 

मीडिया प्रभारी 

सिंधिया स्कूल ,ग्वालियर

पोप फ्रांसिस के लिए झुका तिरंगा

 

ईसाइयों के जगतगुरु पोप फ्रांसिस के सम्मान में भारत का राष्ट्रिय ध्वज  3  दिन के लिए झुका देखकर  मैं भ्रम में पड़ गया हूँ  कि  भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए संघर्षरत संगदिल लोगों की सरकार का दिल अचानक दरिया कैसे हो गया कि  भारत में पोप फ्रांसिस के निधन पर 3  दिन का राष्ट्रिय शोक घोषित कर दिया गया।भारत में तो इन दिनों ईसाई हों या मुसलमान या जैन सभी कि खिलाफ एक अघोषित शीत युद्ध चल रहा है।  पोप फ्रांसिस का  का 21 अप्रैल को 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनके लिए भारत ने 22 से 24 अप्रैल तक तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है। मुमकिन है की ऐसा अमेरिका को खुश करने कि लिए किया गया हो।

पोप फ्रांसिस को न मैंने कभी देखा और न मिला ,लेकिन टेलीविजन के पर्दे पर वे जब भी दिखे एक आकर्षक धार्मिक नेता की तरह ही नजर आये ।  उनके चेहरे से दया,करुणा ही झलकती दिखाई दी,उन्हें कभी उत्तेजित होते हुए नहीं देखा गया। पोप फ्रांसिस रोमन  कैथोलिक ईसाई समाज के सबसे बड़े धार्मिक गुरु थे। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक पोप फ्रांसिस रोमन कैथोलिक समुदाय के 266  वे और  सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट ऑर्डर) के पहले पोप थे, दक्षिणी अमेरिका से पहले पोप थे, तथा 8वीं शताब्दी के सीरियाई पोप ग्रेगरी तृतीय  के बाद यूरोप के बाहर जन्मे या पले-बढ़े दूसरे पोप थे।

अर्जेंटीना के बोनस आइरिस में जन्में पोप फ्रांसिस की भी ईश्वर में आस्था एक बीइमारी की गिरफ्त में आने के बाद बढ़ी ।  ये बात 1958  की है।वे 1969  में पहली बार पादरी बने और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पोप फ्रांसिस 2013  में तत्कालीन पोप के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी बनाये गए। आप जानते ही हैं कि  पोप की हैसियत सिर्फ एक धार्मिक नेता की ही नहीं होती बल्कि वे विश्व राजनीति में एक कूटनीतिज्ञ की तरह भी किरदार अदा करते है।  पोप फ्रांसिस प्रगतिशील और दक्षिणपंथ विरोधी नेता के रूप में उभरे ।  उन्होंने अनेक विवादास्पद रिश्तों और प्रवासियों के मुद्दों पर चीन जैसे देशों से मुठभेड़ की। पोप फ्रांसिस हमेशा प्रवासियों के हितों की रक्षा को सभ्य समाज का कर्तव्य मानते थे ।  उन्होंने इस मुद्दे पर अमरीकी नीतियों का भी विरोध किया।

मुझे लगता है कि  पोप फ्रैंसिस  फ़्रांसिस का पूरा जीवन लॉर्ड और चर्च की सेवा में समर्पित रहा।  पोप फ्रांसिस ने दुनिया को हमेशा साहस, प्यार और हाशिए के लोगों के पक्ष में खड़ा रहने के लिए प्रेरित किया।  एक मायने में कहें तो पोप फ़्रांसिस लॉर्ड जीसस के सच्चे शिष्य थे। पोप फ्रांसिस को कैथोलिक चर्चों में सुधार के लिए भी जाना जाता है. इसके बावजूद पोप परंपरावादियों के बीच भी लोकप्रिय थे. फ्रांसिस दक्षिण अमेरिका (अर्जेंटीना) से बनने वाले पहले पोप थे। पोप फ़्रांसिस ईस्टर संडे को ही वेटिकन में सेंट पीटर्स स्क्वेयर पर अपने भक्तों के सामने प्रकट हुए थे।  हुए थे।

पोप फ्रांसिस  को मैं कोरा धार्मिक नेता नहीं मानता क्योंकि उन्हें  चुनाव के दौरान उन्हें रूढ़िवादियों और सुधारकों  का  जबरदस्त समर्थन मिला।  पोप ने आलोचनाओं की परवाह  किये बिना   यौन मामलों में रूढ़िवादी और सामाजिक मामलों में उदारता दिखाई । पोप को उनके समर्थक उन्हें लोगों से जुड़ने, क्यूरिया (वेटिकन नौकरशाही) में सुधार लाने, वेटिकन बैंक में भ्रष्टाचार को समाप्त करने और चर्च में बाल यौन शोषण रोकने के संकल्प के कारण खासा पसंद करते थे। पोप बनने के चार साल बाद हुए सर्वेक्षणों से पता चला कि पोप की लोकप्रियता कैथोलिक और अन्य धर्मों के बीच बहुत ज़्यादा है. सोशल मीडिया एक्स पर उन्हें डेढ़ करोड़ से भी ज़्यादा लोग फ़ॉलो करते हैं।  कई मुद्दों पर सीधा दखल न देने के कारण वेटिकन के अंदर और बाहर उनके विरोधियों की संख्या भी काफी रही।

आप माने या न मानें किन्तु मुझे पोप फ्रांसिस हमेशा गांधीवादी लगे ।  उनका जीवन सादा और उच्च विचारों का था। एक बार की बात है कि  पोप फ्रांसिस वेटिकन लौटते समय इतालवी राजधानी के मध्य में पादरी वर्ग के लिए बने एक होटल में रुके ।  ये होटल पोप क लिए निशुल्क था  किन्तु उन्होंने अपना बिल चुकाने पर ज़ोर दिया, इससे उनकी शैली की छाप पोप पद पर तुरंत पड़ गई। पोप ने उस विशाल पेंटहाउस अपार्टमेंट को त्याग दिया, जिसे पोप कई शताब्दियों से इस्तेमाल कर रहे थे।  वह वेटिकन गेस्टहाउस के एक छोटे से सुइट में रहने लगे। पोप फ्रांसिस ने  पोप के ग्रीष्मकालीन निवास कासल गंडोल्फो को भी त्याग दिया था।

पोप फ्रांसिस मुझे इसलिए भी आकर्षित करते रहे क्योंकि वे कोरे धार्मिक भाषणों  तक ही सीमित  नहीं रहे ।  उन्होंने सामाजिक सरोकारों को भी रेखांकित किया। उन्होंने मुक्त बाजार अर्थशास्त्र पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि चर्च को समलैंगिक लोगों के लिए राय बनाने के बजाय उनसे माफी मांगनी चाहिए.। उन्होंने अन्य बातों के अलावा यूरोपीय प्रवासी हिरासत केंद्रों की तुलना नज़रबंदी शिविरों से की।  कभी-कभी पोप फ्रांसिस की झलक मुझे भारत की द्वारिकापीठ के शंकराचार्य रहे स्वामी स्वरूपानद जी और उनके उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानद में भी दिखाई देती है।

पोप फ्रांसिस इस साल 2025 के बाद भारत दौरे पर आने वाले थे।  इसके लिए भारत की तरफ से पोप फ्रांसिस को आधिकारिक तौर पर निमंत्रण दिया जा चुका था ,लेकिन भारत यात्रा से पहले ही वे अनंत ायत्रा पर निकल गए।पोप फ्रांसिस भारतीय संत परम्परा से भी खासे प्रभावित थे ।  उन्होंने पिछले साल  संत श्री नारायण गुरुकी खुलकर प्रशंसा की थी। । पोप फ्रांसिस ने तब कहा था कि संत नारायण गुरु का सार्वभौमिक मानव एकता का संदेश आज बहुत प्रासंगिक है ,क्योंकि दुनिया में हर तरफ और हर जगह नफरत बढ़ रही है। पोप ने ये बातें तब कहीं थीं, जब केरल के एर्नाकुलम जिले के अलुवा में श्री नारायण गुरु के सर्व-धर्म सम्मेलन के शताब्दी समारोह के मौके पर धर्मगुरुओं का सम्मेलन  हुआ था। पोप ने तब वेटिकन में भी जुटे धर्मगुरुओं और प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए ये बातें कही थीं। मानवता के इस महान प्रहरी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।

@ राकेश अचल

सोमवार, 21 अप्रैल 2025

कैट व पुलिस के बीच सौहार्दपूर्ण क्रिकेट मैच 11 मई को

 

ग्वालियर। कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया टेडर्स (कैट) यूथविंग के प्रदेश प्रभारी आकाश जैन ने बताया कि कैट और पुलिस के मध्य सौहार्दपूर्ण क्रिकेट मैच 11 मई को खेला जायेगा। 
         आज पुलिस महानिरीक्षक अरविन्द सक्सैना, पुलिस उप महानिरीक्षक अमित सांघी से भेंट कर 11 मई की तिथि निर्धारित की । जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक  धर्मवीर सिंह जी के नेतुत्व में व्यापारियों और पुलिस के मध्य सौहार्दपूर्ण क्रिकेट मैच का आयेाजन कैट की यूथविंग द्वारा किया जा रहा है। 
      कैट मध्यप्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र जैन, थाना स्तरीय व्यापारिक समिति के ग्वालियर चम्बल संभाग के संयोजक अज्ञात गुप्ता, एस.एस.शुक्ला, कैट मध्यप्रदेश उपाध्यक्ष पवन जैन शिवपुरी ने गत अधिकारियों से मुलाकात कर ग्वालियर जोन के चारों जिलों में सौहार्दपूर्ण क्रिकेट मैच कराये जाने की बात रखी इसी श्रंखला में 11 मई से यह आयोजन प्रारंभ होगा। तत्पश्चात ग्वालियर, डबरा, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर एवं अन्य तहसील स्तर पर भी व्यापारी इस सौहार्दपूर्ण मैच में भागीदारी करेंगे।

श्रीवैदिक फाउण्डेशन ने बांटे गरीब बस्ती में कपड़े

ग्वालियर। श्री वैदिक फाउंडेशन के द्वारा डीडी नगर गरीब बस्तियों में गर्मियों के कपड़े वितरित किये गये। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता फाउण्डेशन की अध्यक्ष व समाजसेविका नीरू त्रिपाठी के द्वारा की गयी। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सरपंच संघ के अध्यक्ष जीतेन्द्र शर्मा मौजूद रहे उन्होंने बताया कि अनेक परिवार जिनके पास कपड़ों की कमी है वह लगातार परेशान होते रहते हैं तथा उनके पास पहनने व रहने के लिए पर्याप्त जगह नहीं रहती है ऐसे में हम सब का कर्तव्य बन जाता है कि हम उनकी संभव मदद कर उनका सहयोग करे। उन्होंने बताया कि श्री वैदिक फाउंडेशन लगातार नीरू त्रिपाठी की अध्यक्षता में पूरे वर्ष कार्य करता रहता है तथा शहर में अनेक जगहों पर समाज सेवा के कार्य इस संगठन के द्वारा किये जाते हैं इसके लिए मैं सभी को बहुत-बहुत साधुवाद बधाई देता हूॅ।

 कार्यक्रम के संयोजक राइटर समाजसेवी कृष्णकान्त तिवारी ने बताया कि फाउंडेशन के द्वारा केवल वस्त्र वितरण ही नहीं बल्कि प्रत्येक समाज सेवा के कार्य में फाउंडेशन के प्रत्येक सदस्य बढ़-कर के हिस्सा लेता है और पूरे शहर वासियों से भी अनुरोध करता हूं कि बच्चे गरीब बेसहारा तथा पीड़ित परिवारों के साथ कंधे से कंधा लगा करके सहयोग प्रदान करें जिससे उनको परिवार की कोई भी कमी महसूस ना हो।

 आपको बता दें कि फाउंडेशन की अध्यक्ष समाजसेविका नीरू त्रिपाठी ने बताया कि श्री वैदिक फाउंडेशन के द्वारा यह निश्चित किया गया है कि शहर में जितनी भी जगह गरीब बस्तियां गरीब झोपड़ी या गरीब टपके के निवास रहते हैं उनको यथा संभव जीवन यापन की समस्त सामग्री प्रदान की जाएगी जिसके अन्तर्गत प्रत्येक सदस्य महीने में अपनी बचत के माध्यम से तथा संगठन के द्वारा लोगों की सहायता जरूर करेगा। वस्त्र वितरण कार्यक्रम के मौके पर प्रमुख रूप से कोचिंग संचालक अमित खमरिया, ददरौआ धाम भक्त मण्डल के पूर्व अध्यक्ष सुरेश चन्द्र गोस्वामी, योग शिक्षक मोन्टू गोस्वामी, योगेश बिहारी प्रमुख रूप से मौजूद रहे तथा प्रत्येक सदस्य का पूर्ण रूप से सहयोग प्रदान रहा।

तूतियों की आवाज के पीछे हैं नक्कारे


हमारे दादा कहा करते थे कि तूतियों की  आवाज पर कोई ध्यान नहीं देता  ,हालांकि देना चाहिए क्योंकि कभी-कभी इन तूतियों की आवाज के पीछे नक्कारों की आवाज भी छिपी होती है। तूती के बारे में आमतौर पर लोग कम ही जानते है।  तूती का सीधा रिश्ता सुर और कर्कशता  से है ।  तूती एक वाद्ययंत्र भी है और एक छोटे आकार का तोता भी ।  दोनों की आवाज पतली लेकिन कर्कश  होती है ,लेकिन जब नक्कारखाने में तमाम तरह के वाद्य बजते हैं तो अक्सर तूती की  आवाज दब जाती है और यहीं से एक मुहावरा जन्म लेता है -' नक्कारखाने में तूती की आवाज ' का यानि बड़े दरबारों में आम आदमी की बात सुनी नहीं जाती। लेकिन आज कलियुग है ।  नक्कारख़ानों में तूतियों की आवाजें खूब गूँज रहीं हैं।गूँज ही नहीं रहीं बल्कि उन्हें सुना जा रहा है। 

मुद्दे की बात ये है कि आजकल  तूतियों  हर तरफ पायी जातीं है।  राजनीति में भी ,साहित्य में भी और फ़िल्मी दुनिया में भी। मैं इन तूतियों के बारे में लिखना नहीं चाहता था ,लेकिन लिखना पड़ रहा है। देशज भाषा में तूतियों को 'चूतिया' भी कहा जाता है। सभ्य समाज में ये शब्द असंसदीय   है लेकिन देशज समाज में ये आम बोल- चाल   का शब्द है और इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे लोगों के लिए किया जाता है जो अधजल गगरी की तरह अपना ज्ञान छलकाते रहते हैं। ये  तूतिया टाइप के लोग कोई धनकड़ भी हो सकता है ,कोई निशिकांत भी हो सकता हैऔर कोई मनोज मुन्तशिर  भी। 

निशिकांत जाति से ब्राम्हण हैं लेकिन उन्हें केवल दो ही वेद पढ़े हैं। उनका उपनाम दुबे है ।  उन्होंने देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को निशाने पर लेकर  अदालत की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही कानून बनाएगा, तो संसद को बंद कर देना चाहिए. दुबे ने तो यहां तक कह दिया कि इस देश में जितने भी ‘गृहयुद्ध’ हो रहे हैं, उसके लिए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं।  दुबे जी के इस ब्यान से इधर भाजपा ने पल्ला झाड़ा उधर उनके समर्थन में भाजपा के दूसरे सांसद नमूदार होने लगे हैं। भाजपा सांसद अग्निमित्रा पॉल ने निशिकांत दुबे का समर्थन क‍िया. उन्‍होंने कहा, उन्होंने सही बात कही है. राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं. फिर सीजेआई राष्ट्रपति के आदेश को कैसे नकार सकते हैं? वह देश के सांसदों और नीति निर्माताओं के फैसले को कैसे नकार सकते हैं?जबकि निशिकांत कोटमां गृहयुद्धों के लिए अपने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को जिम्मेदार ठहरना चाहिए था। 

भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने एस. वाई. कुरैशी पर भी  निशाना साधा । उन्होंने कहा कि कुरैशी चुनाव आयुक्त नहीं, बल्कि 'मुस्लिम आयुक्त' थे। दुबे ने यह टिप्पणी कुरैशी द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम की आलोचना के बाद की। कुरैशी ने इस अधिनियम को मुसलमानों की जमीन हड़पने की सरकार की योजना बताया था। कुरैशी भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं।निशिकांत का इस्तेमाल भाजपा सांसद के भीतर और सांसद   के बाहर उन लोगों के खिलाफ करती है जिनसे वो खुद भयभीत रहती है। आप   धनकड़ हों या दुबे ,दुबे हों या और कोई। भाजपा के पास ऐसी तूतियों की कमी नहीं है।  

पंडित निशिकांत से पहले हमारे देश के विद्वान उप राष्ट्रपति महामहिम जगदीप धनकड़ साहब सुप्रीम कोर्ट पर राशन-पानी लेकर चढ़ चुके हैं।  धनकड़ साहब को सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142  के तहत मिली शक्तियों पर ऐतराज है ।  वे इन शक्तियों को न्यूक्लियर मिसाइल कहते हैं। धनकड़ साहब भाजपा के देवतुल्य कार्यकर्ताओं की तरह प्रतिक्रियाएं देने के लिए प्रसिद्ध हैं। धनकड़ साहब चूंकि कानूनविद हैं इसलिए उनकी टिप्पणी पर मुझे भी हंसी आयी और देश के तमाम लोगों को भी हंसी आयी। लेकिन धनकड़ साहब पर इसका कोई असर नहीं हुआ। हो भी नहीं सकता। उन्हें तो तूतियों  की तरह बजना है। 

हमारी फ़िल्मी  दुनिया में भी इस तरह की तूतियाँ हैं जो जब-तब बजाकर अपने आपको देशभक्त,मोदी भक्त साबित करने कि कोशिश करती रहतीं है।  फ़िल्मी दुनिया में एक होते हैं अनुराग कश्यप और एक होते हैं मनोज मुन्तशिर।अनुराग कश्यप ने भी देश कि एक बुद्धिमान जाति के बारे में एक अजीब सी टिप्पणी कि तो उस जाति के लोगों से ज्यादा मनोज मुन्शीर बमक उठे।  मनोज ने अनुराग कश्यप को औकात में रहने कि नसीहत दे डाली। अनुराग के खिलाफ एक निशिकांत दुबे बोलना भूले तो दूसरे दुबे जी बोल उठे।  केंद्रीय मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने इस मामले पर कहा है कि -'यह नीच व्यक्ति अनुराग कश्यप सोचता है कि वह पूरे ब्राह्मण समुदाय पर गंदी बातें कहकर बच जाएगा? अगर उसने तुरंत सार्वजनिक माफी नहीं मांगी, तो मैं कसम खाता हूं कि उसे कहीं शांति नहीं मिलेगी. इस गंदे मुंह वाले के नफरत भरे बोल अब और बर्दाश्त नहीं. हम चुप नहीं रहेंगे!"  

अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि हमारे देश में नेता और साहित्यकार कितने फुरसत में हैं और किस तरह से अपने नक्कारों [नाकारा नेताओं ]के लिए बेशर्मी के साथ तूती बने हुए हैं।  ये तमाम तरह की तूतियाँ दरअसल पैदा ही होतीं है पी-पीं-पीं करने के लिए है।  ये सुरीली नहीं होतीं लेकिन कर्कश होने की वजह से लोगों का ध्यान अपनी और खींचती जरूर हैं। कोशिश कीजिये कि आपके आसपास ऐसी तूतियाँ बजे ही नहीं और यदि वे बजती हैं तो सावधान हो जाएँ कि तूतियों की आवाज उनकी अपनी नहीं बल्कि उन नक्कारों की है जो दूर के ढोल की तरह सुहावने जरूर लगते हैं किन्तु होते नहीं हैं। इनके बजने का मतलब कोई न कोई आसन्न संकट होता है। 

@ राकेश अचल

रविवार, 20 अप्रैल 2025

ग्वालियर रेलवे स्टेशन का नाम डॉक्टर भीमराव अंबेडकर रखने को लेकर संयुक्त मोर्चा की बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय लिए

 

ग्वालियर 20 अप्रैल  । ग्वालियर रेलवे स्टेशन का नाम डॉ भीमराव अंबेडकर के नाम करने तथा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ग्वालियर में संविधान निर्माता स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री भारत रत्न दलित शोषित गरीबों महिलाओं के तथा मजदूरों के साथ-साथ सर्वहारा वर्ग के मुक्तिदाता भारत देश को संविधान देने वाले बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा शीघ्र लगाने के की मांग को लेकर ग्वालियर के विभिन्न संगठनों के सामाजिक संगठनों का संयुक्त मोर्चा के साथियों की एक आवश्यक बैठक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बेजाताल मोती महल में आयोजित की गई।

 बैठक में जिन मोर्चा के साथियों के कहने पर बैठक रखी गई वहीं बैठक से नदारत रहे जिसकी सभी उपस्थित सदस्यों ने निंदा की साथ ही पिछली बैठकों में लिए गए निर्णय के अनुसार कार्य नहीं करने की भी निंदा की गई और उक्त दोनों कार्यों के लिए आगामी रुपरेखा के लिए बैठक उपस्थित सभी सदस्यों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किया।

 बैठक में डॉ जवर सिंह अग्र महेश मदुरिया दारा सिंह कटारे एडवोकेट श्रीमती कीर्ति माहोर हाकिम सिंह चोकोटिया राहुल बरैया राजेश कुमार पिप्पल नंदकिशोर कदम कोक सिंह राजे केशव माहोर श्रीमती रजनी कुशवाहा श्रीमती कीर्ती मुदगल संदीप सोलंकी आदि ने  अपने-अपने विचार व्यक्त किया और आगामी रूपरेखा की तैयारी पर चर्चा की गई ।

बैठक में उपस्थित साथियों ने बताया की संयुक्त मोर्चा की है तीसरी बैठक है बैठक में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ग्वालियर ब्रांच में शीघ्र लगाने एवं ग्वालियर रेलवे स्टेशन का नाम डॉ भीमराव अंबेडकर के नाम करने की मांग से संयुक्त मोर्चा पीछे नहीं हटेगा जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी होगा ।वही  मंत्री सांसद विधायकों को ज्ञापन दिए जाएंगे ।

फिर भी उक्त दोनों मांगों को पूरा नहीं किया गया तो संयुक्त मोर्चा को आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा जिसकी समस्त जवाबदारी शासन प्रशासन की होगी ।


आखिर आ ही गया सड़कों पर देश

 

आप ख़ुशी मनाएं या गम ,लेकिन हकीकत ये है   कि  आज पूरा देश सड़कों पर आ गया है ।  किसी के हाथ में भीख का कटोरा है तो किसी के हाथ में तलवारें,कोई निहत्था है तो कोई मानव शृंखला बनाने पर मजबूर। ये सब तब हो रहा है जबकि हमारी लोकप्रिय सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास कार रही है। यदि सचमुच सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास कर रही है तो सबको अपने घरों में रहना चाहिए,न कि  सड़कों पर। लेकिन लोग सड़कों पर हैं ,क्योंकि संसद सबकी सुन नहीं रही। सरकार ने कानों में तेल डाल रखा है। 

सड़कों पर सबसे पहले आये देश के अल्पसंख्यक मुसलमान।  उन्हें सड़कों पर लेकर आयी हमारी लोकप्रिय सरकार।  सरकार ने मुसलमानों की भलाई के लिए नया  वक्फ बोर्ड क़ानून बनाया ,लेकिन ये कानून मुसलमानों को रास नहीं आया।  वे दक्षिण से लेकर उत्तर तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक सड़कों पर आ गए। आते जा रहे है।  बंगाल में आये । तेलंगाना में आये,आंध्र में आये कर्नाटक में आये,बंगाल में आये ।  ये कहना कठिन है कि  कहाँ नहीं आये। लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा। मुसलमान सड़कों पर नमाज  नहीं पढ़ रहे,आंदोलन कर रहे है।  अपनी इबादतगाहें,खानगाहें मसजिद और कब्रें बचाने के लिए। मुसलमान सड़कों पर भी हैं और देश की सबसे बड़ी  अदालत मे भी ।  उन्हें उम्मीद है कि  कहीं तो उनके साथ इन्साफ होगा ! कोई तो उन्हें सुनेगा !! 

मुसलमानों से पहले देश के राजपूत सड़कों पर उतरे ।  उन्हें एक दलित सांसद के हकीकत बयान करने पर आपत्ति है। ब्यान राणा सांगा कि बारे में था ।  ये राजपूत अपनी करणी सेना के साथ सड़कों पर आये ।  करणी सेना के सैनिकों  ने प्रदर्शन किया,तलवारें लहराई ।  दलित संसद रामजीलाल सुमन के घर हमला किया।  लेकिन सुमन अपने बयान से पीछे नहीं हटे ।  उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी। सुमन के समर्थन में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव आगरा पहुंचे तो उन्हें भी गोली मारने की धमकी दी गयी ,लेकिन कोई गोली मारने का साहस जुटा नहीं पाया। तलवारें हवा में लहराने में और गोली चलने में फर्क है ।  करणी सेना के सैनिक कोई राणा सांगा थोड़े ही हैं। अखिलेश यादव ने कहा कि  करणी सेना कोई सेना-वेना नहीं है,ये तो योगी सेना है। 

पिछले दिनों विश्व णमोकार मन्त्र दिवस पर अल्पसंख्यक जैन समाज के साथ णमोकार मन्त्र का जाप करने वाले प्रधानमंत्री जी के संरक्षण के बाद भी मुंबई में एक जैन मंदिर ध्वस्त किये जाने   के बाद मुंबई का जैन समाज सड़कों पर है ।  मुंबई के अलावा   भी अनेक शहरों में जैन समाज ने सड़कों पर आकर प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए जैन समुदाय के कुछ लोगों की आंखों में आंसू थे. वो इस बात से दुखी थे कि तीन दशक पुराने मंदिर को तोड़ा गया है।  जैन समाज अहिंसा को परम धर्म मानता है ,लेकिन ये नहीं जानता की ध्वंश हमारी सरकार का सबसे प्रिय खेल है।  ये वही लोकप्रिय सिंगल और डबल इंजिन की सरकार है जिसने इस देश में बुलडोजर संस्कृति कहें या बुलडोजर संहिता का व्यापक इस्तेमाल किया।  सरकार के बुलडोजर केवल अल्पसंख्यकों के घर और उनके इबादतगाह पहचानते हैं। फिर अल्पसंख्यक चाहे मुसलमान हों या जैन। मणिपुर में तो डबल इंजिन की सरकार के रहते अल्पसंख्यक ईसाइयों की 250  से ज्यादा इबादतगाहें जलाकर राख कर दिन गयी ,लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी। 

इस समय  लोगों को जब सरल,सुलभ न्याय नहीं मिल रहा तो उन्हें  मजबूरन सड़कों पर आना पड़ रहा है ।  सुना है कि   महाराष्ट्र में हिंदी लागू करने के सरकारी फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे सड़कों पर आने की तैयारियां कर  रहे हैं।  उनकी सेना भी करणी  सेना जैसी ही उग्र सेना है ।  आखिर क्यों न हो उग्र ? निकली तो बाला साहब ठाकरे  की असली वाली शिव सेना के गर्भ से ही है ।  बाला साहब ठाकरे की शिव सेना  से पहले 'मनसे' बनी फिर भाजपा की कोशिशों   से इसी में से एक सेना एकनाथ शिंदे  की और दूसरी उद्धव ठाकरे साहब की बनी।  यानि आप कह सकते हैं कि  महाराष्ट्र सेना प्रधान देश है। 

सड़कों पर खड़ा देश देखकर हमारे समाजवादी पुरखे डॉ लोहिया की आत्मा बहुत खुश होगी। जो देश सड़कों पर आने का माद्दा नहीं रखता उस देश में तानाशाही अपना  प्रभुत्व कायम कर लेती है। आप देख रहे होंगे कि  भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी लोग अपने राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर हैं। आपको पता ही है कि  देश की 80  करोड़ से जयादा जनता पहले से ही सड़कों पर है ।  उसके पास न घर है न घाट।  हमारी लोकप्रिय सरकार इस आबादी को पांच किलो राशन मुफ्त में न दे तो ये आबादी  सड़कों से उठकर या तो कब्रस्तान में जा पहुंचे या श्मशान में। मजे की बात तो ये है कि  अब हमारे देश की न्यायपालिका को भी सड़कों पर लाने के इंतजाम किये जा रहे है।  हमारे देश की लोकप्रिय सरकार के एक सांसद महोदय देश के मुख्यन्यायाधीश को लेकर उग्र हैं। लोकसभा में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने  सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए। उन्होंने सीजेआई खन्ना पर भी निशाना साधा था।संविधान के अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है और सुप्रीम कोर्ट कानूनों की व्याख्या करने के लिए है। कोर्ट सरकार को आदेश दे सकता है, लेकिन संसद को नहीं।भाजपा के कामचलाऊ अध्यक्ष जेपी नड्ढा ने दुबे जी के बयान से पार्टी को अलग कर लिया। हालाँकि  वे जो चाहते थे वो काम तो दुबे जी ने कर ही दिया। अब भी सीजेआई खन्ना साहब न समझें तो वे अनाड़ीहैं।

लब्बो-लुआब ये है की देश की लोकप्रिय सरकार के तीसरे कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि ये है कि  उसने देश की जनता को सड़कों   पर आना सिखा दिया। सरकार ने ही जनता की प्रतिकार की ताकत को छीन लिया था ,लेकिनअब ख़ुशी की बात ये है कि  अवाम अपनी ताकत का अहसास करने लगी है।  सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास कर रही है या नहीं ,ये आप जानें लेकिन हमारी कामना भी है और प्रार्थना भी कि  सरकार भविष्य में ऐसा कुछ न करे कि  जनता को मजबूरन सड़कों पर आकर कहना पड़े कि  -सिंघासन खाली करो,की जनता आती है।। जनता का सड़कों पर आना जहाँ लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है, वहीं दूसरी तरफ सरकार की नाकामी का भी। 

@ राकेश अचल

शनिवार, 19 अप्रैल 2025

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अल्प प्रवास पर ग्वालियर पधारे

 

ग्वालियर  19 अप्रैल। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अल्प प्रवास पर शनिवार को ग्वालियर पधारे। ग्वालियर विमानतल पर जनप्रतिनिधियों ने पुष्प-गुच्छ भेंट कर स्वागत किया और प्रशासनिक अधिकारियों ने मुख्यमंत्री डॉ. यादव की अगवानी की।

 मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव  राजकीय विमान द्वारा भोपाल से ग्वालियर पधारे। कुछ समय रुकने के पश्चात मुख्यमंत्री डॉ. यादव हैलीकॉप्टर से मुरैना जिले में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के लिये रवाना हुए।

विमानतल पर विधान सभा अध्यक्ष श्री नरेंद्र सिंह तोमर, संसाद श्री भारत सिंह कुशवाहा,  पूर्व मंत्री श्री रामनिवास रावत , भाजपा जिला अध्यक्ष श्री जयप्रकाश राजौरिया, ग्रामीण अध्यक्ष श्री प्रेम सिंह राजपूत, नगर निगम सभापति श्री मनोज तोमर सहित जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री की अगवानी की। 

इस मौके पर संभाग आयुक्त श्री मनोज खत्री,   आईजी श्री अरविंद सक्सेना, डीआईजी श्री अमित सांघी, कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री धर्मवीर सिंह, नगर निगम आयुक्त श्री संघ प्रिय उपस्थित थे।

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