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शनिवार, 15 मार्च 2025

था बहुत शोर कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे

 

और मुल्क में होली भी हो गयी और जुमे की नमाज  भी लेकिन ग़ालिब के पुर्जे नहीं उड़े। ग़ालिब ने खुद लिखा था -

 था बहुत शोर कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे 

देखने हम भी गए पै ये तमाशा न हुआ 

अब ग़ालिब तो औरंगजेब नहीं है जो उनका नाम लेना कुफ्र माना जाये ,ग़ालिब का नाम लेने वालों का कमबख्त यूपी में इलाज भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि ग़ालिब न अबू आजम हैं और न आदित्यनाथ योगी ।  ग़ालिब  एक आम हिंदुस्तानी थे, ठीक उसी तरह जैसे करोड़ों दूसरे मुसलमान हिंदुस्तानी हैं। होली पर पहली बार देश में जुमे की नमाज को लेकर हौवा खड़ा किया गया ।  मस्जिदों पर परदे तान दिए गये ।  लगा कि जैसे मुल्क में अनहोनी होने वाली है ,लेकिन कुछ नहीं हुआ। होली भी मस्ती के साथ खेली गयी और जुमे कि नमाज भी ख़ुलूस के साथ अता की गयी। शाहजहांपुर में लाट साहब की सवारी निकाली गयी। इस सवारी के ऊपर मुसलमानों ने फूल बरसाए। सम्भल में भी कुछ नहीं हुआ ,हालाँकि वहां सीओ अनुज चौधरी को सूबे की सत्ता ने हीरो बना दिया। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में वे यहां से कोई चुनाव भी लड़ जाएँ।या अजय देवगन कोई नई फिल्म बना दें 

होली पर रंगों ने अपना असर दिखाया और रंग में भंग करने कि कोशिश करने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना रंग दिखाया ।  उन्होंने होली पर भी गोरखपुर में सियासी भाषण दिया। आखिर योगी जी आसानी से न सुधर सकते हैं और न बदल सकते हैं। वे बकौल ग़ालिब 

 इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।

बिना हाथ में तलबार लिए केवल जुबान की कैंची से खूंरेजी करने अले अकेले योगी जी नहीं हैं।  मुल्क में बहुत से रंगरेज हैं जो अपने वाने से दिखते कुछ और हैं ,लेकिन होते कुछ और हैं। लेकिन इस मुल्क का  अवाम पहचानता  सभी को है। प्रतिक्रिया भी करता  है। मुझे लगता है कि ऐसा शुरू से होता आया है और आगे भी होता रहेगा। इस मिटटी के सौहार्द का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है।  मुग़ल आये और चले गए। अंग्रेज आये और चले गये ।  कांग्रेस आयी और चली गयी ।  इसी तरह भाजपा आई है और चली जाएगी एक दिन ,किन्तु न हम हिन्दू कहीं जाने वाले हैं और न मुसलमान। हमें  इसी धरती पर रहना है। अब भारत जैसे मजबूत मुल्क को बांटना आसान नहीं है।  इसकी कल्पना न योगी को करना चाहिए और न मोदी को।  हेमंत विस्वा सरमा   को भी  अब ये ख्वाब देखना छोड़ देना चाहिए। देश को कांग्रेस विहीन  करना या देश को मुसलमान विहीन कर खालिस हिन्दू राष्ट्र बनाना नामुमकिन है। 

ख़ुशी की बात ये है कि मुसलमानों ने योगी जी कि योजना को फेल कर दिय।  ग्वालियर हो या जयपुर सभी जगह जुमे कि नमाज का वक्त  आगे-पीछे कर टकराव पैदा करने कि कोशिशों को नाकाम कर दिया गया।  मुमकिन है कि योगी मानसिकता के लोग इसे अपनी जीत समझ रहे हों ,लेकिन है उनकी हार। साम्प्रदायिकता ने इतिहास में कभी कोई जंग नहीं जीती ।  न अतीत के औरंगजेब ने और न वर्तमान के औरंगजेब ने। औरंगजेब हर युग में हारते आये हैं और हारते रहेंगे। इस देश की जनता बहुत समझदार है। जानती है कि मुद्दों पर  बहस करने के बजाय मुर्दों पर बहस करने का असल मकसद क्या है ? इसी समझदारी की वजह से अल्लामा इकबाल को कहना पड़ा था -

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा 

हम बुलबुलें हैं इसकी  ,ये गुलसितां हमारा 

सोते -जागते हिन्दू- हिन्दू चिल्लाने वालों को समझ लेना चाहिए कि चाहे आप कोई बाबरी ढांचा ढहा दो या किसी कब्र को खोदने का इरादा कर लो ।, समरसता टूटने वाली नहीं है। ये समरसता अलग ही ईंट-गारे से बनी है। इसे किसी एक ने नहीं बनाया ।  इसे हमारे पुरखों ने बनाया है। इसे तोड़ने का ख्याल भी अपने पुरखों के साथ गद्दारी है। मिर्जा ग़ालिब तभी तो कह गए कि -

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,

कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।

साम्प्रदायिकता की जुल्फ कभी सर होने वाली नहीं है। हमारे यहां हज्जाम ऐसी उलझी जुल्फों को काट फेंकते हैं। वक्त की कैंची यही काम करती आयी है ।  आगे भी करेगी। आप देखेंगे कि जैसा हिंदुस्तान हमारे पूर्वजों ने हमें सौंपा था ,ये वैसा ही रहेग।  यहां राम-रहीम को अलग करना नामुमकिन है। यहां राम लला हों या कृष्ण महाराज उनके कपडे न योगी जी सिलते थे और न सिलेंगे ।  उनके कपडे मुसलमान ही सिलते थे और वे ही सिलेंगे। हमारे विग्रह हमारे नेताओं कि तरह तंगदिल नहीं हैं ।  वे कभी मुसलमानों के हाथों से बने कपडे पोशाकें   पहनने से इंकार नहीं करने वाले। 

आप सभी को होली और रमजान की बधाइयाँ,मुबारकबाद देते हुए मेरा मश्विरा है कि हमारे बीच में यद कोई ऐसा आदमी हो जो योगी आदित्यनाथ को मिर्जा ग़ालिब के लिखे शेर पढ़वा सके ,तो बात बन जाय।योगी जी शायद यूपी के मुसलमानों को सताना बंद कर दें।   ग़ालिब कह गए हैं कि -

यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,

अदू (शत्रु) के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों है।

आज चूंकि बहुत से घरों में अखबार नहीं आया होगा इसलिए मौक़ा है कि आप इस आलेख को बार-बार पढ़ें और मित्रों कोभी पढ़वायें। शायद कुहासा छंटने में कुछ मदद हो सके 

@राकेश अचल

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

मनमानी का लोकतंत्र,हर कोई परम स्वतंत्र

 

भारत में लोकतंत्र अब मनमानी का पर्याय बन चुका है। यदि सत्ता प्रतिष्ठान आपके हाथों में है तो आप जो जी में आये कर सकते हैं ।  न ' लोक ' आपका हाथ पकड़ सकता है और न ' तंत्र ' । यानी लोकतंत्र में परम स्वतंत्र होने की आजादी इस देश की सियासत को वर्ष 2104  के बाद पूरी तरह से मिल चुकी है। 2014  से पहले ये आजादी आंशिक रूप से कांग्रेस के पास थी ।   जो सत्ता प्रतिष्ठान से बाहर हैं वे ही अब परतंत्र हैं ,क्योंकि उनका लोक ,उनका तंत्र अब बीमार हो चुका है।

* अपनी बात के समर्थन में मेरे पास एक नहीं अनेक तथ्य हैं ,तर्क हैं,दुर्भाग्य ये है कि आज के लोकतांत्र में न तथ्य काम आ रहे हैं और न तर्क। तर्कों का मुकाबला कुतर्कों से हो रहा है और तथ्यों का समाना झूठ से। देश में पहली बार हुआ है कि  भाजपा शासित राज्यों में सत्ता प्रतिष्ठान ने होली के मौके पर इबादतगाहों को कपडे या तिरपाल से ढंक दिया है। इबादतगाहें ढंकने की शुरुवात एक परम सभ्य प्रदेश से हुई जिसके मुखिया एक सन्यासी हैं ,लेकिन सत्ताधीश हैं। उन्होंने संविधान की परवाह किये बिना इबादतगाहों को ढंकने का फरमान जारी कर दिया और मशीनरी ने आनन-फानन में मस्जिदों को ढंक दिया। ये कार्रवाई संविधान का मखौल है ,लेकिन योगी बाबा को न राष्ट्रपति ने रोका और न प्रधानमंत्री ने। वे रोकते भी कैसे ? दोनों खुद योगी कि अनुयायी हैं। योगी से ही  ' बंटोगे तो कटोगे '  का नारा उधार लेकर उसकी पैरोडी बनाते हैं। कहते हैं ' एक रहोगे तो सेफ ' रहोगे।

* भाजपा की सरकारें एक दूसरे से प्रेरणा लेती रहतीं है।  योगी ने इबादतगाहें ढंकवाई तो मध्यप्रदेश की सरकार कहाँ पीछे रहने वाली थी । मध्यप्रदेश के पढ़े-लिखे मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने भी योगी की नकल करते हुए अपने यहां इबादतगाहों को ढंकने का फतवा जारी कर दिया। परम स्वतंत्र ,न सर पर कोई 'इसी को कहते हैं।  अब चूंकि सत्तारूढ़ दल में कोई अल्पसंख्यक विधायक है नहीं ,और होता भी तो वो इस कार्रवाई  का विरोध नहीं कर पाता और विपक्ष के विरूद्ध को विरोध माना नहीं जाता।  विपक्ष की परवाह कौन करता है ?

* दुनिया में ये नए तरह का बहुसंख्यक आतंकवाद है। लोग रंगों से खुश होने के बजाय भयभीत हैं। अल्पसंख्यकों को को भगवा   रंग आतंकित कर रहा है तो बहुसंख्यकों को हरे रंग से चिढ हो रही है। अल्पयंख्यक अब बहुसंख्यकों  को आतंकवादी समझ रहे हैं और बहुसंख्यक ,अल्पसंख्यंकों को आतंकवादी मान बैठे हैं । मान क्या बैठे हैं उनसे आतंकियों जैसा बर्ताव भी करने लगे हैं। नफरत केवल रंगों से ही नहीं है । नफरत भाषा तक जा पहुंची है । तमिलनाडु सरकार ने तो भारतीय रूपये के प्रतीक चिन्ह को ही बदल डाला है। नामुराद तमिलनाडु सरकार नहीं समझना चाहती कि  भारतीय रूपये पर तमिल पहले से दर्ज भाषा है।

* आपको बता दें कि भारतीय नोट पर 17 भाषाएं मुद्रित होती हैं. इंग्लिश और हिंदी सामने की तरफ होती हैं तो नोट के पीछे की तरफ 15 भाषाएं दर्ज  होती हैं। दुर्भाग्य ये है की  भारतीय संविधान में किसी भी भाषा को राष्‍ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिला और देश में 22 भाषाएं बोली जाती हैं. ऐसे में इन सभी भाषाओं को नोट पर प्राथमिकता दी गई है। एक देश ,एक चुनाव का नारा देने वाली सरकार भी भारत कि लिए एक भाषा पर अम्ल नहीं कर पायी। जो भाषाएं नोट पर छपी  होती हैं उनमें हिंदी और अंग्रेजी के अलावा असमी, बंगाली, गुजराती, कन्‍नड़, कश्‍मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़‍िया, पंजाबी, संस्‍कृति, तमिल, तेलगु और उर्दू शामिल हैं।  इसके साथ ही 2000 रुपए के नोट पर ब्रेल लिपि भी छपी होती थी  जिससे उन लोगों को आसानी हो जो देख नहीं सकते हैं ,लेकिन ये नोट भी हमारी सरकार ने बंद करा दिया।

* कहने का आशय ये है कि  न भाजपा सरकार को संविधान की परवाह है और न तमिलनाडु सरकार को। दोनों नफरत के मामले में एक जैसे है।  तमिलनाडु सरकार को हिंदी भाषा से चिढ है तो भाजपा की राज्य सरकारों को अल्पसंख्यक मुसलमानों से नफरत है। नफरत के इस माहौल में न संविधान सुरक्षित है और न लोकतंत्र। लेकिन इसकी चिंता किसी को नहीं है ।  सब अपना-अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं। गन्दी सियासत इसी को तो कहते हैं। मुझे आशंका होती है के  आने वाले दिनों में भाषायी नफरत कि चलते कहीं दक्षिण वाले अपना नोट खुद न छाप लें या  फिर वोटों की राजनीति कि चलते हमारी केंद्र सरकार खुद अलग-अलग प्रदेशों कि लिए अलग-अलग भाषा के नोट छपने पर मजबूर न हो जाये।

* सवाल ये है कि जो सरकार अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए जम्मू-कश्मीर से धारा 370  हटा सकती है, जो सरकार अयोध्या में राम मंदिर बनवा सकती है  ,जो सरकार महाकुम्भ से लाखों करोड़ रूपये कमा सकती है।  वो मस्जिदों को ढंकने से नहीं रोक सकती क्या ? क्या उस सरकार के पास इतनी ताकत नहीं है कि  वो भारतीय रूपये का प्रतीक चिन्ह बदलने वाली तमिलनाडु सरकार को बर्खास्त कर दे ?

* होली के मौके पर इस मुद्दे पर यदि आप होली मन से विचार करें तो ही बात बनेगी अन्यथा अब न सियासत ' होली ' बची है और न राष्ट्रीयता की पाकीजगी महफूज रह गयी है। आज का दिन मेरे लिए नियमित लिखने वाले हिंदी के धुरंधर लेखक स्वर्गीय वेद प्रताप वैदिक को याद करने का दिन भी है। आज ही के दिन उन्होंने देवलोक गमन किया था। उनके ही तरह मै भी बिना कोई अवकाश लिए पिछले पांच साल से लिखता आ रहा हूँ बिना किसी अपेक्षा  के । वैदिक जी के प्रति विनम्र श्रृद्धांजलि।

@ राकेश अचल

गुरुवार, 13 मार्च 2025

आओ रे ! आओ !! खेलें मसाने में होली

 


भारत में चाहे कुम्भ हो या होली उसे हमारे ज्योतिषी आजकल विशेष बना देते हैं ।  जैसे कुम्भ को 144  साल के अद्भुद संयोगों का महाकुम्भ बना दिया था  वैसे  ही होली को भी 100  साल के अद्भुद संयोगों की होली बता दिया गया है। मुझे भी लगता है कि हमारे ज्योतिषी जो कहते हैं वो साबित भी करा देते हैं। जैसे कुम्भको  महाकुम्भ बनाकर ज्योतिषियों ने आधे देश को गंगा में डुबकी लगवा दी, उसी तरह अब पूरे देश को इस बार मसान में होली खेलने के लिए तैयार कर दिया गया है। 

 हिन्दू धर्म की तरह होली भी सनातन ही है । होली की अपनी कहानी है ,अपनी किम्वदंतियां हैं। अपना रंग है ,अपना स्वाद है। अपना आनंद है। लेकिन पहली बार ये आँखें होली का स्वाद, बेस्वाद होते देख रहीं है।  पहली बार होली के रंग खतरनाक   बनाये जा रहे है।  पहली  बार होली की मस्ती से देश  की एक चौथाई आबादी को अलग करने या अलग रहने के लिए कहा जा रहा है। धर्म के ठेकेदार,सियासत  के हाथों की कठपुतली  बनकर होली को सचमुच मसान में खेलने की तैयारी कर रहे हैं। 

मसान की होली अभी तक काशी की मशहूर थी। मशहूर था होली का होली [पवित्र ] गीत। ' होली खेलें मसाने में' छन्नू लाल मिसुर या  मालिनी अवस्थी जब ये गीत गातीं हैं तो मन मछँदर हो जाता है। ये गीत भगवान शिव के साथ होली खेलने का भव्य दर्शन कराता है। लेकिन अब न जाने क्या हुआ है कि हमारी सियासत काशी के मसाने की होली ,पूरे देश में खिलवाना चाहती है। फतवे जारी कर दिए गए हैं कि होली पर विधर्मी अपने घरों से बाहर न निकलें। क्योंकि इससे होली में खलल पड़ सकती है। अरे मिया ! जब महाकुम्भ में खलल नहीं पड़ी तो होली में खलल कैसे पड़ सकती है ?लेकिन यदि सत्ता प्रतिष्ठान चाहे तो कुछ भी मुमकिन है। 

होली का संदर्भ क्या  है ,सन्देश क्या है ? ये विद्वान बता सकते हैं ।  हम जैसे कूढ़ मगज तो सिर्फ इतना जानते हैं कि होली का  एकमात्र सन्देश ये है कि- प्रेम को ,भक्ति को दुनिया की कोई आग नहीं जला सकती।' होलिका भी नहीं ,जिसे आग में सब कुछ भस्म करने का वरदान हासिल था /होलिका प्रेम और भक्ति के प्रतीक प्रह्लाद को नहीं जला पायी और खुद जलकर राख हो गयी। ख़ाक में मिल गयी। इसी तरह मेरा दृढ विश्वास है की सत्ता की होलिका सद्भाव के प्रह्लाद को जलाकर न राख कर सकती है और न खाक में मिला सकती है। भले ही सत्ता प्रतिष्ठान पूरे देश के कब्रस्तान और मस्जिदें खोद कर देख ले। 

लोगों को शायद ये पता नहीं है कि होली पर रियाया आपस में गले मिलती आयी है। आज से नहीं  बल्कि आदिकाल से यानि जब से होली मानाने के सिलसिला शुरू हुआ होगा ,तब से। इस होली को अकेले हिन्दू  नहीं मानते ।  इसमें सिख,ईसाई,मुसलमान और तो और अंग्रेज तक शामिल होते आये हैं और होते आएंगे। कोई किसी को रोक नहीं सकता,रोकता भी  नहीं है। रोकना भी नहीं चाहिए ,लेकिन जो होली खेलना नहीं चाहता उसे इसमें जबरन घसीटा भी नहीं जा सकता। घसीटना भी नहीं चाहिए।  होली यदि हिन्दुओं का त्यौहार है तो उसके लिए दूसरों को न तो विवश किया जा सकता है और न ही किसी को होली खेलने ,मनाने से रोका जा सकता है। स्कूल बंद होने से पहले बच्चों ने होली माना ली,खेल ली। वहां सियासत अपना काम नहीं कर पायी ,लेकिन सम्भल  में रंगों के बजाय खून से होली खेलने की तैयारी जरूर की गयी है खुदा न करे की सम्भल में होली बदरंग हो ,बदनाम हो। 

मैंने सात समंदर पार अमेरिका में दो-तीन बार होली मनाऐहै। वहां होली घरों में नहीं मंदिरों में जलाई जाती है और घरों में नहीं बल्कि सामूहिक रूप से सार्वजनिक बागीचों में खेली जाती है। अमेरिका में अकेले हिन्दू होली नहीं खेलता। पूरा हिंदुस्तान होली खेलता है।  होली खेलने   वाले से उसका मजहब नहीं पूछा जात।  अमरीकी भी होली खेलते है।  अपने बच्चों को होली खिलाने लाते हैं ,लेकिन यदि जिस तरह से हिन्दुस्तान में पहली बार होली खेलने कि कोशिश की जा रहीहै वैसी ही होली यदि देश के बाहर दूसरे मुल्कों में रहने वाले हिन्दुओं ने खेलना शुरू कर दी तो कबाड़ा हो जायेगा ।  भारतीयता का जनाजा उठ जाएगा। भारतीयता का मतलब ही सद्भाव है। 

हमने,आप ने इसी मुल्क में सातों जातों को होली खेलते देखा है ,लेकिन अब जान-बूझकर रंग में भंग डालने की कोशिश की जा   रही है। होली सामाजिक उत्सव  है ,इसमें  राजनीति वाले ,मजहब वाले अपनी नाक क्यों घुसा रहे हैं ?वे थोड़े ही बताएँगे की हमें होली कैसे खेलना है ? किसके साथ खेलना है ? पहले तो ऐसा नहीं होता था ।  ये सब 2014  के बाद ही क्यों शुरू हुआ है ? दुर्भाग्य ये है कि अब होली को बदरंग करने के गुप्त अभियान  में नेता,भगवाधारी संत-महंत और साहित्यकार ,पत्रकार सभी शामिल हो गए हैं और जो इस कोशिश के खिलाफ खड़े हैं उन्हें विधर्मी,तथा देशद्रोही घोषित किया जा रहा है। सब मिलकर रंगों की होली को मसान की होली   बना देने पर आमादा हैं।  अब मजा तब आये जब मुल्क का वो समाज बढ़ -चढ़कर होली खेले,जिसे इससे अलग करने की कोशिश की  जा  रही है ।विधर्मी अपनी मस्जिदों  में जुमे की नमाज भी पढ़ें और नमाज के बाद खुलकर रंगों  की होली   भी खेलें ,तभी साजिशें नाकाम हो सकतीं हैं । दुनिया के किसी भी रंग से न रोजा टूटेगा और न अपवित्र होगा। जैसे हिन्दू  ईद मिलने मुसलमानों के  यहां जाते हैं ,वैसे ही मुसलंमान  भी जुमे कि नमाज के बाद हिन्दू पड़ौसियों  के यहां होली मिलने जरूर  जाएँ । 

बहरहाल हमारे यहां तो होली जलाई भी जा रही है और खेली भी जा रही है,वो भी गलियों में ,मुहल्लों में ,बगीचों में। मसान में होली खेलने कोई नहीं गया। मसान में होली खेलने का हक केवल भगवान शिव को है और हम मनुष्य भगवान नहीं है।  भगवान शिव की तरह मसान की राख से होली नहीं खेल सकते। ये अधिकार भगवान शिव ने केवल काशी वासियों को दिया है। काशी के सांसद चाहें तो काशी के मसानों में जाकर राख की होली खेल सकते हैं,किन्तु देश के मुखिया होने के नाते उनका दायित्व है कि वे होली को बदरंग न होने दें । रोकें अपने प्यादों को ऐसा करने से।  मुझे यकीन है कि उनकी बात सुनी जाएगी ।  उनके कहने पर ये देश जब ताली और थाली बजा सकता है तो मिलजुलकर,सद्भाव से होली भी खेल सकता है।होली कोई कुम्भ स्नान नहीं है कि संगम जाकर ही किया जाये ।  होली तो 60  क्या 150  करोड़ देशवासी जहाँ हैं ,वहां खेल सकते हैं।  किन्तु साहब के  मन की बात केवल साहब  ही जानते हैं। पता नहीं वे क्या चाहते हैं ?

आप सभी को होली की अनन्य अनंत शुभकामनायें। 

@ राकेश अचल

बुधवार, 12 मार्च 2025

पोर्ट लुई टू पटना इलेक्शन केम्पेन

 

भारतीय जनता पार्टी  चुनावों के लिए किसी भी हद को पार कर सकती है ,इसीलिए मैं भाजपा का  अनन्य प्रशंसक हूँ । हमारे प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी यदि अमेरिका में जाकर डोनाल्ड ट्रम्प का प्रचार कर सकते हैं तो मॉरीशस जाकर बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा  के लिए भी चुनाव प्रचार का श्रीगणेश कर सकते हैं। उन्होंने ऐसा कर दिखाया भी। मोदी जी को इस दूरदर्शिता और दुस्साहस के लिए हार्दिक बधाई। 

हमारे प्रधानमंत्री जी मॉरीशस गए तो थे मॉरीशस के 57वें राष्ट्रीय दिवस समारोह के मुख्य अतिथि  बनकर लेकिन वहां जैसे ही उन्हें भारतीय समाज के बीच जाने का मौक़ा मिला उन्होंने अनौपचारिक रूप से बिहार विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव अभियान शुरू कर दिया ।  मोदी जी ने बिहार में नालंदा  विश्विद्यालय के उन्नयन के लिए केंद्र सरकार के काम के साथ ही बिहार में मखाना उद्योग के लिए हाल के बजट में किये गए प्रावधानों का भी उल्लेख कर दिया। आपको पता ही है की मॉरीशस में कोई दो सदी पहले अंग्रेज जिन गिरमिटिया   भारतीय मजदूरों   को भरकर ले गए थे उनमें  बहुत से बिहारी थे। मोदी जी ने पोर्ट लुई में भारतीय मूल के लोगों के बीच हिंदी ,अंग्रेजी के अलावा भोजपुरी भाषा में भी अपने प्रवचन दिए। 

प्रधानमंत्री मोदी के दो दिवसीय मॉरीशस के आधिकारिक दौरे पर मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का सर्वोच्च सम्मान 'द ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार एंड 'की ऑफ द इंडियन ओशन' देने की घोषणा की. मोदी मॉरीशस का सर्वोच्च सम्मान पाने वाले पहले भारतीय बन गए हैं. रामगुलाम ने पोर्ट लुईस में भारतीय समुदाय के एक कार्यक्रम में ये घोषणा की। इसी कार्यक्रम में मोदी जी ने भारतीय मूल के लोगों के बीच अपनी पार्टी के एजेंडे में शामिल राम जी का भी उल्लेख किया और महाकुम्भ का भी। मोदी जी मॉरीशस के भारतियों के लिए त्रिवेणी का गंगाजल भी आपने साथ लेकर गए है।  इस गंगाजल को पोर्ट लुई के   गंगा तालाब में डाला जाएगा ताकि लोग इसमें स्नान,आचमनकर कुम्भ का पुण्य लाभ उठा सकें। 

मोदी जी का अनुशरण भाजपा वाले योगी जी कर   रहे हैं या योगी जी  का अनुशरण  मोदी जी,ये पता नहीं चल रहा / क्योंकि गंगाजल का परिवहन योगी जी ने शुरू कराया  है ।  उन्होंने उत्तर प्रदेश की तमाम जेलों में गंगाजल भिजवाकर कैदियों को कुम्भ लाभ दिलवाया ।  हमारे मध्यप्रदेश में तो अनेक मंत्री-संतरी टेंकरों में भरकर त्रिवेणी से गंगाजल  लेकर आये और घर-घर बटवा रहे हैं ठीक उसी तर्ज पर जिस तरह कोविड के दिनों में नेता ऑक्सीजन सिलेंडर बंटवाया  करते थे। वोट और समर्थन हासिल करने के लिए हमारे मोदी जी कुछ भी कर सकते हैं। मोदी जी को राम राज्य के विस्तार और बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के श्रीगणेश के साथ ही उन्हें मॉरीशस का सर्वोच्छ नागरिक सम्मान मिलने की बहुत  -बहुत बधाई। 

चुनाव कैसे लड़ा जाता है ,चुनाव प्रचार कैसे किया जाता है  ये विपक्ष को माननीय मोदी जी सीखना चाहिए। नहीं सीख रहा इसीलिए 11  साल से सत्ता से दूर है और 2047  तक उसे इसी तरह सत्ता से दूर रहना पडेगा। मोदी जी का क्या भरोसा कि वे मॉरीशस में रहने वाले बिहार मूल के लोगों को बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए बुला लें । उन्हें मताधिकार उपहार में दे दें। मोदी जी जब माननीय ट्रम्प को भारत बुलाकर  चुनाव प्रचार करा सकते हैं तो मॉरीशस की जनता कहाँ लगती है ?मॉरीशस के प्रधानमंत्री माननीय नवीनचंद्र रामगुलाम   की तो क्या जुर्रत कि  वे मोदी जी का आग्रह ठुकरा दे। मोदी जी नवीन सर को ये भी याद दिलाया की पटना के गाँधी मैदान में मॉरीशस के प्रधानमंत्री रहे सर शिव   सागर रामगुलाम की आदमकद   प्रतिमा भी भारत सरकार ने लगवाई है ,जो दोनों देशों के प्रगाढ़ रिश्तों   का प्रतीक है । 

मुझे तो लगता है की मोदी जी मॉरीशस को अपना ही एक राज्य मानकर भाषण दे रहे थे पोर्ट लुई में। भारत का गोदी  मीडिया यदि मोदी जी के पोर्ट लुई के चुनावी भाषण का सीधा प्रसारण   न करता तो मैं इसे चुनावी भाषण कहता ही नहीं ,लेकिन इस भाषण को मोदी जी भारतवासियों को ही नहीं बल्कि बिहारियों को भी सुनवाना चाहते थे इसलिए उसका सीधा प्रसारण भी कराया गया। अन्यथा ये भाषण कोई संयक्त राष्ट्र महासभा में थोड़े ही दिया गया था ! 

मोदी जी ने भारतीय शिष्टाचार का पूरा ख्याल रखा। मोदी ने मॉरीशस के राष्ट्रपति धरमबीर गोखुल से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने मॉरीशस के राष्ट्रपति को कई चीजें भेंट की है, जिसमें महाकुंभ से संगम का जल और सुपर फूड मखाना भी शामिल है. इसके अलावा पीएम ने गोखुल की पत्नी वृंदा गोखुल को बनारसी सिल्क की साड़ी भी भेंट की है.ये बात और है की मोदी जी ने अपनी सगी पत्नी को न गंगाजल भेजा और न कोई साडी ।  बेचारी ये खबर देखकर जल-भुनकर रह गयीं होंगी। लेकिन मैं किसी के निजी मामले में मदाखलत नहीं करना चाहता। मैं तो चाहता हूँ कि   मोदी   जी इसी तरह पूरी तीव्रता से दुनिया में अपनी पार्टी का एजेंडा और चुनाव प्रचार का अभियान जारी रखें। चुनाव प्रचार पोर्ट लुई से किया जाये या पटना से ,कोई फर्क नहीं पड़ता ।  बात बिहार की ,लिट्टी चोखा की ,मखाने की होना चाहिए। 

मुझे एक ही हैरानी है कि  मोदी जी ने दो सौ साल पुराने इतिहास से तो अपने आपको जोड़ा  लेकिन चार सौ साल पुराने इतिहास को याद तक नहीं किया ,अन्यथा ये मौक़ा था कि  वे जिस तरह से बिहार के मखाने का जिक्र कर रहे थे ,उसी तरह महाराष्ट्र के संभाजी राव और  औरंगजेब का भी कोई किस्सा मॉरीशस वालों   को सुना देते। मोदी जी आखिर कुछ भी कर सकते हैं। बहरहाल मोदी जी को मिले तमाम दुसरे आंतरराष्ट्रीय नागरिक सम्मानों की फेहरिश्त में एक और नाम मारीशस का भी  जुड़ गया है।  मेरा केंद्र सरकार से आग्रह है कि  वो मोदी   जी के कालखंड को प्रधानमंत्री संग्रहालय के सुपुर्द करने के बजाय उनके लिए अलग से चार मूर्ति भवन बनवाये। तीन मूर्ती भवन तो नेहरूजी  बहुत पहले बनवा चुके हैं। 

@ राकेश अचल 

मंगलवार, 11 मार्च 2025

CM यादव ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की 7

धर्म गुरुओ का सम्मान किया 

ग्वालियर 10 मार्च ।  पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. माधवराव सिंधिया जी की 80वी जयंती के अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सोमवार को सिंधिया परिवार के छत्री परिसर में पहुँचे और स्व. माधराव सिंधिया की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव भजन संध्या में भी शामिल हुए। उन्होंने इस अवसर पर उपस्थित धर्मगुरुओं एवं संतजन का सम्मान भी किया।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव के साथ केन्द्रीय संचार एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं विधानसभा अध्यक्ष श्री नरेन्द्र सिंह तोमर व प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद श्री वी डी शर्मा ने भी स्व. माधवराव सिंधिया की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

भजन संध्या में जल संसाधन मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री श्री तुलसीराम सिलावट,  सामाजिक न्याय एवं दिव्यांगजन कल्याण मंत्री श्री नारायण सिंह कुशवाह, ऊर्जा मंत्री श्री प्रद्युम्न सिंह तोमर, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री श्री गोविंद सिंह राजपूत, प्रदेश संगठन महामंत्री श्री हितानंद शर्मा, विधायक श्री मोहन सिंह राठौर, पूर्व मंत्री श्री जयभान सिंह पवैया, डॉ. नरोत्तम मिश्रा, श्री अनूप मिश्रा, श्री रामनिवास रावत, श्रीमती माया सिंह, श्री ध्यानेन्द्र सिंह, श्री प्रभुराम चौधरी, श्रीमती इमरती देवी व भाजपा जिला अध्यक्ष शहर श्री जय प्रकाश राजौरिया व ग्रामीण श्री प्रेम सिंह राजपूत, नगर निगम सभापति श्री मनोज तोमर सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण एवं बड़ी संख्या में ग्वालियर-चंबल संभाग के नागरिकगण भजन संध्या में शामिल हुए।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. श्री सिंधिया जी की 80वीं जयंती के अवसर पर आयोजित हुई भजन संध्या में सुप्रसिद्ध भजन गायिका सुश्री चित्रा राय एवं श्री राजेन्द्र पारिक व उनके साथियों ने सुमधुर एवं भावपूर्ण भजनों का गायन किया।


सोमवार, 10 मार्च 2025

असली चैम्पियंस का सुयश यानि जय हो

 

एक लम्बे अरसे से न क्रिकेट का खेल देखा और न क्रिकेट पर कुछ लिखा ही ,गन्दी राजनीति से ही फुरसत नहीं मिल रही थी ,लेकिन रविवार की रात आम हिन्दुस्तानियों की तरह मेरे लिए भी क्रिकेट की रात थी। मुझे ख़ुशी है कि भारतीय क्रिकेट टीम ने चैम्पियंस ट्राफी जीतकर भारत का सयुश एक बार फिर बढ़ाया। ये जीत भारतीयता की जीत है। क्योंकि इस टीम  में केंद्रीय मंत्रिमंडल की तरह खिलाडियों का चयन नहीं किया गया था। 

भारतीय क्रिकेट टीम ने चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल मुकाबले में न्यूजीलैंड को 4 विकेट से हराते हुए अपनी तीसरी ट्रॉफी जीती तो पोरे देश ने चार दिन पहले ही होली  मना ली ।हमारे यहां खेल भी तयौहार हैं और त्यौहार ही खेल।  इस मैच में पहले बैटिंग करते हुए न्यूजीलेंड टीम ,भारतीय टीम को 252 रन का लक्ष्य  दिया था।भारतीय टीम [ जिसे हम  टीम इंडिया कहते हैं ] ने 49 ओवर में 6 विकेट खोकर चेज कर लिया। इस जीत के साथ जहां भारतीय टीम सबसे ज्यादा चैंपियंस ट्रॉफी जीतने वाली टीम बन गई, वहीं टीम के कप्तान रोहित शर्मा और स्टार बल्लेबाज विराट कोहली ने भी एक रिकॉर्ड तोड़ दिया।मुझे क्रिकेट का ककहरा भी नहीं आता ,लेकिन एक जमाना था जब मैं क्रिकेट के मैदान में भी होता था और अपने अखबार जनसत्ता के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय मैचों पर लिखता भी था। 

बहरहाल आज मै रविवार के मैच का विश्लेषण नहीं कर रहा । इसके बारे में तो विशेषज्ञ अपना काम कर चुके है। मै तो ये रेखांकित करने  की कोशिश कर रहा हूँ कि  जिस तरह से भारतीय टीम में हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई सब हैं उसकी वजह से हमें यानि भारतीय टीम को ये सयुश हासिल हुआ। हमारी भारतीय टीम में फिलहाल हमारी सरकार हिन्दू-मुसलमान चाहकर भी नहीं कर पायी। हमारी टीम में हिंदू ज्यादा हैं लेकिन एक मुसलमान भी है। हमारी टीम केंद्रीय मंत्रिमंडल की तरह केवल हिन्दुओं की टीम नहीं है ,जिसमें एक भी मुसलमान नहीं है। 

आप कहेंगे कि  खेल में कहाँ हिन्दू-मुसलमान ले आये  ? तो जान लीजिये की खेल में ही नहीं भारतीय समाज के हर हलके में हिन्दू-मुसलमान शुरू से रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हालाँकि आज की सरकार ये नहीं चाहती। आज की सत्ता जिन दलों के हाथों में है वे मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग कर देने पर आमादा है।  उन्हें होली  से दूर करना चाहते हैं,दीवाली से दूर करना चाहते हैं। एक हद तक इस अभियान में सत्ता प्रतिष्ठान को इस दिशा में कामयाबी भी मिली है किन्तु ये कामयाबी भारतीय क्रिकेट टीम की कामयाबी जैसी सतरंगी नहीं है।चैम्पिनस ट्राफी जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान  रोहित शर्मा हैं तो , शुभमन गिल उप-कप्तान हैं  विराट कोहली, श्रेयस अय्यर, केएल राहुल (विकेटकीपर), ऋषभ पंत (विकेटकीपर), हार्दिक पंड्या, यशस्वी जायसवाल, रवींद्र जडेजा, अक्षर पटेल, कुलदीप यादव, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, अर्शदीप सिंह, वॉशिंगटन सुंदर भी। ये एक खूबसूरत टीम है। आदर्श टीम है और ये संकेत देती है कि  हर दिशा में हमारी टीम ऐसी ही होना चाहिए। किसी धर्म या जाति के लिए जैसे क्रिकेट प्रतिबंधित नहीं है वैसे ही राजनीति भी प्रतिबंधित नहीं होना चाहिए। अर्थात चाहे केंद्र की सरकार हो या राज्यों की सरकारें यदि उनमें कोई मोहम्मद शमी नहीं होगा तो टीम को पूरा नहीं कहा जा सकता। दुर्भाग्य से राजीनीति  की टीम में मोहम्मद शमी को जान-बूझकर दूर रखा जा रहा है। 

पिछले दिनों देश में जिस तरह से गड़े  मुर्दे उखाड़कर राजनीति की जा रही है उसे भारतीय क्रिकेट टीम की टीम भावना से कुछ सीखना चाहिए ।  औरंगजेब और तुगलक के नाम और उनकी बिरादरी से घिन करने वाले नेताओं को देखना चाहिए कि  जैसे हम सब स्वतंत्रता आंदोलन में साथ-साथ थे ,जैसे हम खेल के मैदान में साथ-साथ हैं वैसे ही हम राजनीति के मैदान में साथ-साथ रहेंगे तो हमारा सुयश बढ़ेगा,घटेगा नहीं भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तानों की फेहरिश्त पर  यदि नजर डालें तो आप पाएंगे की अब तक हुए 33  कप्तानों में से भारतीय टीम की कप्तानी इफितखार अली खान पटौदी ,गुलाम अहमद ,मंसूर अली खान पटौदी और मोहम्मद अजहरुद्दीन के हाथों में भी सौंपी गयी ।  आज ये विश्वास किसी मुसलमान खिलाड़ी पर हमारे चयनकर्ता यदि करते हैं तो उसे ही असली खेल भावना माना जाता है।राजनेताओं को  भी इसी तरह से राजनीति में टीमें बनाना चाहिए। उन्हें मान लेना चाहिए कि  मुसलमान अस्पृश्य [अछूत ] नहीं हैं। उनका साथ रखना भी उतना ही जरूरी है जितना की आटे में नमक। 

मुझे पता है कि  इस आलेख पर भी मेरे अनेक परिचित-अपरिचित पाठक नाराज होंगे ,लेकिन मै तो जो सोचता हूं  आपसे  छिपाता नहीं ,क्योंकि मेरा कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है ।  मै किसी दल विशेष के लिए नहीं लिखता। मै आम भारतीय लेखक हूँ। एक नामालूम  लेखक । नक्क्कार खाने में तूती की आवाज जैसा लेखक। मुझे जितना पढ़ा या सुना जा रहा है मेरे लिए वही बहुत है ।  एक बार फिर सभी देशवासियों को खेल में मिले सुयश की बधाई  और खिलाडियों को शुभकामनाएं। 

@ राकेश अचल

रविवार, 9 मार्च 2025

सभी थानों में आज से माइक्रो बीट लागू

 

ग्वालियर  9 मार्च। पुलिस महानिदेशक  पुलिस मुख्यालय भोपाल के निर्देशानुसार ग्वालियर जिले में पुलिस अधीक्षक ग्वालियर श्री धर्मवीर सिंह(भापुसे) के मार्गदर्शन में जिले के सभी थानों में आज 9 मार्च  से माइक्रो बीट प्रणाली को लागू किया गया है। बीट प्रणाली के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु आज पुलिस कंट्रोल रूम सभागार में पुलिस महानिरीक्षक ग्वालियर जोन श्री अरविन्द कुमार सक्सेना(भापुसे) द्वारा पुलिस उप महानिरीक्षक ग्वालियर रेंज श्री अमित सांघी एवं पुलिस अधीक्षक ग्वालियर श्री धर्मवीर सिंह(भापुसे) की उपस्थिति में जिले के समस्त राजपत्रित अधिकारी, थाना प्रभारी एवं बीट प्रभारी की बैठक ली जाकर उपस्थित पुलिस अधिकारियों को बीट प्रणाली को प्रभावी रूप से संचालित किए जाने के संबंध में आवश्यक दिशा निर्देश दिये गये। बैठक में अति. पुलिस अधीक्षक(मध्य) श्रीमती सुमन गुर्जर, अति. पुलिस अधीक्षक(पश्चिम) श्री गजेन्द्र वर्धमान, अति. पुलिस अधीक्षक(देहात) श्री निरंजन शर्मा तथा समस्त सीएसपी/एसडीओपी, जिले के थाना प्रभारी एवं बीट प्रभारीगण उपस्थित रहें।

 उन्होने बताया कि ग्वालियर जिले के समस्त थानों में कुल 1073 माइक्रो बीट बनाई गई हैं। जिसमें माइक्रो बीट क्षेत्र के प्रभारी आरक्षक को एक क्षेत्र विशेष की जवाबदारी सौंपी जाकर उस क्षेत्र विशेष से संबंधित गुण्डा, निगरानी बदमाश, सजायाब आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों के साथ-साथ शैक्षणिक संस्थानों, बैंक, एटीएम, होटल, लॉज, ढाबा, पेट्रोल पंप, सीसीटीव्ही कैमरों, अस्पताल, नगर एवं ग्राम रक्षा समिति, धार्मिक स्थलों, धार्मिक उत्सवों, महत्वपूर्ण संस्थानों, वरिष्ठ नागरिकों, मैरिज हाल, साम्प्रदायिक या अन्य दृष्टि से संवेदनशील स्थानों, एवं लोक शान्ति प्रभावित करने वाले मुद्दों, राजनैतिक व्यक्तियों, प्रतिष्ठित एवं सम्भ्रान्त व्यक्तियों, सेवा निवृत्त एवं सेवारत शासकीय कर्मचारियों आदि की सम्पूर्ण जानकारियाँ बीट प्रभारी एवं माइक्रो बीट प्रभारी के द्वारा संधारित की जाएगी।


औरंगजेब के बाद अब तुगलक की बारी

 

'कहते हैं कि जब-' सूप  तो सूप, छलनी भी बोल उठे ' तो समझिये कि संकेत अच्छे नहीं हैं। सत्तारूढ़ दल में मुस्लिम शासकों के खिलाफ छाया युद्ध में अब औरंगजेब के बाद मोहम्मद बिन तुगलक  की एन्ट्री हो गयी है।भाजपा सांसद   दिनेश शर्मा ने अपने तुगलक लेन आवास की नेमप्लेट बदलकर स्वामी विवेकानंद मार्ग कर ली है। उनके इस कदम पर राजनीति शुरू हो गई है। यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि ऐसे नामों को बदलने का दिल्ली में भी सही समय आ गया है। 

मोहम्मद बिन तुगलक के बारे   में जानने से पहले दिनेश शर्मा के बारे में जान लीजिये ।  पंडित जी उसी लखनऊ के हैं और उत्तर प्रदेश से ही  राजयसभा के लिए  चुने गए हैं। लखनऊ  से कभी भाजपा के संस्थापक अटल बिहारी बाजपेयी सांसद हुआ करते थे ।  पंडित जी राजनीति में आने से पहले प्रोफेसर थे,फिर महापौर बने ,विधायक बने, उप्र के उप मुख्यमंत्री बने और अब सांसद हैं। एक जमाने में पंडित अटल बिहारी वाजपेयी ने दिनेश शर्मा को महापौर बनाने के लिए जनता से वोट मांगे थे। यही दिनेश  शर्मा जी अब उस रास्ते पर निकल पड़े हैं जिस पर अटल जी कभी नहीं चले। 

आइये अब मोहम्मद बिन तुगलक के बारे में जान लेते हैं। तुगलक क्रूर औरंगजेब से भी पुराना मुगल शासक था ।  गयासुद्दीन   तुगलक के इस पढ़े लिखे  बेटे ने 1325  से 1351  तक दिल्ली के तख्त   पर राज किया और अपने जमाने में क्रूरता की ,सनक की अनेक इबारतें लिखीं। तुगलक को पढ़ने बैठिये तो आपको एक उपन्यास जैसा मजा आ जायेगा। 20  मार्च 1351  में कालकवलित हुए तुगलक के नाम पर दिल्ली में युगों से एक सड़क है। अब इसी सड़क के विरोध के बहाने तुगलक 674  साल बाद एक बार फिर जेरे बहस है। तुगलक के सनकी फैसलों की वजह से एक मुहावरा ही बन गया ,जिसे ' तुगलकी फरमान ' कहा जाता है। तुगलक के बारे में यदि आपको ज्यादा जानना है तो इतिहास की कोई किताब खरीद लीजिये। 

मै वापस आता हूँ भाजपा की बिना   मुद्दों की राजनीति की और।  भाजपा में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास   मोदी जी से लेकर दिनेश शर्मा तक बिना मुद्दों की राजनीति करते है। वो इसलिए करते हैं क्योंकि  मुद्दों पर राजनीति   करना आसान नहीं होता है ,लेकिन बिना मुद्दों के सुर्खियां बटोरना और असल मुद्दों को इन सुर्ख़ियों के नीचे दफन कर देना होता आसान होता है। भाजपा नेता आसान काम पहले करते हैं। भाजपा मुस्लिम शासकों को न मरने देती है और न जनता को चैन से बैठने देती है। बेचारा औरंगजेब कब्र से बाहर निकालकर पीटा जा रहा है। अभी वो अध्याय समाप्त भी नहीं हुआ था कि पंडित  दिनेश शर्मा जी तुगलक को कब्र से बाहर निकाल लाये। मतलब भाजपा मुर्दों को भी चैन से सोने नहीं दे रही। कल पता नहीं कौन सा मुर्दा कब्र से बाहर निकाल लाये भाजपा। 

मुसलमान शासकों को हौवा बनाकर सियासत  करने वाली भाजपा को मेरा एक ही मश्विरा है की उसे रोज-रोज का मुस्लिम विरोध करने की बजाय एक बार में किस्सा समाप्त कर देना चाहिए ।  देश में मुस्लिम शासकों की नाम से जितने गांव,शहर ,गली-मुहल्ले हैं उन सबके नाम एक झटके में एक विधान बनाकर बदल देना चाहिए /कम से कम जहाँ डबल इंजिन की सरकारें हैं ,वहां तो ये काम आसानी से हो सकता है। दूसरें भारत में जितने भी कब्रस्तान हैं उनके ऊपर बुलडोजर चलकर वहां बागीचे बना देना चाहिए , न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। किन्तु मुश्किल ये है कि भाजपा ये भी नहीं कर सकती। क्योंकि यदि ऐसा कर दिया गया तो विरोधी भाजपा नेताओं की तुलना ही औरंगजेब और तुगलक से किये बिना नहीं मानेगे। 

इतिहास   गवाह है कि जिस किसी भू-भाग में इतिहास पर धूल डालने की कोशिश की गयी है  वहां का न वर्तमान समृद्ध हो पाया है और न भविष्य उज्ज्वल हुआ है।  इतिहास ही ज्ञान का असल स्रोत माना जाता है।  इतिहास ही यदि नींव  में नहीं है   है तो कैसा वर्तमान और कैसा भविष्य ? मुझे मध्यकाल के किसी भी मुगल शासक से कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन मै उनके होने को भी ख़ारिज नहीं kart। मै उनसे घृणा भी नहीं करता ।  मै नहीं कह सकता कि इस मुल्क को बनाने में केवल आज की शासकों का योगदान है और अतीत  के किसी भी शासक का कोई योगदान नहीं है। यदि भाजपा की ये धारणा है तो उसे  सबसे पहले अंग्रेजों के ज़माने   की गुलामी के चिन्ह  समाप्त करने से पहले मुग़लों    के और मुगलों से पहले जो भी शासक रहे हैं उनके अवशेष या चिन्ह समाप्त करना चाहिए। विस्मिल्लाह दिल्ली में बनी क़ुतुब मीनार तोड़कर किया जा सकता है।  कहते हैं कि क़ुतुब मीनार किसी मुगल शासक कुतबुद्दीन ऐबक ने बनाई थी। उसके नाम से भी दिल्ली में बहुत कुछ है। 

पाठकों को और हिंदुस्तान की लोगों को ये तय करना है कि मुल्क में क्या रहे और क्या न रहे ?  ये तय करने वाले भाजपाई कौन होते हैं ?? उन्हें तो देश बनाने का मौक़ा जुम्मा-जुम्मा दस साल पहले मिला है और उसमें भी उन्होंने जो हिंदुस्तान बनाया है वो दरका हुआ,डरा  हुआ एक सशंकित हिंदुस्तान बना है। जिसमें सरकार शहरों ,स्टेशनों,सड़कों की नाम बदलने से ही फारिग नहीं हो पायी है।मुझे तो हैरानी होती है कि जो घ्रणित और घटिया काम पूर्व प्रधानमंत्री  अटल बिहारी वाजपेयी ने नहीं किया वो घटिया और घ्रणित काम अटल जी के शिष्य दिनेश शर्मा कर गुजरे। तुगलक लेन का नाम हालाँकि अभी बदला नहीं है लेकिन यदि बदल भी जाये तो तुगलक इतिहास से गायब नहीं हो सकते। तुगलक क्या कोई भी गायब नहीं हो सकता। इसलिए बेहतर है कि/ भाजपा और भाजपाई अपना मुस्लिम प्रेम [घृणा ] बंद करें और ये मुल्क जैसा बना था उसे वैसा ही बना रहने दें ।  हिंदुस्तान /भारत /इंडिया जैसा था खूबसूरत है। उसे विकृत मत कीजिये। जय श्रीराम 

@ राकेश अचल

शनिवार, 8 मार्च 2025

सरल पॉकेट पंचांग* आज ही अपने एड्रेस पर प्राप्त करें

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👉🏻 ग्रहों की अशुभ स्थिति में उसके कष्टों से बचने के दान,मंत्र जाप,यंत्र आदि सरल उपाय ।

👉🏻 वाहन  खरीदना,ग्रह प्रवेश,भूमि पूजन, गृह प्रवेश,देव प्रतिष्ठा,सगाई,दुकान,व्यापार आदि सभी प्रकार के  मुहूर्त व उनका समय।

👉🏻 सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि,रवि योग,द्विपुष्कर, त्रिपुष्कर,रवि पुष्य,गुरु पुष्य आदि पूरे वर्ष भर के योग व उनका समय।

👉🏻 सूर्यादि सभी ग्रहों का नक्षत्रों,राशियों,में प्रवेश/उदय/अस्त/वक्री/मार्गी आदि।

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शुक्रवार, 7 मार्च 2025

सन्यास लेने से क्यों डरते हैं हमारे नेता ?

 

ऑस्ट्रेलिया के धाकड़ बल्लेबाज स्टीव स्मिथ ने वनडे क्रिकेट से संन्यास लेकर सभी को चौंका दिया। दुनिया के तमाम क्रिकेटर स्मिथ की तरह ही क्रिकेट से एक तय समय के बाद खुद सन्यास लेने का सार्वजनिक ऐलान करते हैं ,लेकिन दुनिया में खासतौर पर  भारत में ऐसे बहुत कम नेता हैं जो स्वेच्छा से राजनीति से सन्यास लेने का ऐलान करते हों। भारतीय परम्परा  में तो सन्यास जीवन  की सर्वोत्कृष्ट अवस्था है। सन्यास की सनातन  परम्परा सामंतकाल में भी थी लेकिन लोकतंत्र में इसका परित्याग कर दिया। अकेली राजनीति ऐसी है जिसमें  आश्रम व्यवस्था लागू नहीं होती । यानि न नेता ब्रम्हचर्य का पालन करता है ,न गृहस्थ रहना चाहता है और न वानप्रस्थ में जाना चाहता है ,सन्यास लेना तो बहुत दूर की बात है। राजनीति में जब कोई सन्यास नहीं लेता तो उसे मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया जाता है। 

मैंने जब से होश सम्हाला है तभी से राजनीति में सक्रिय बहुत कम लोगों को राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा करते देखा है ,उलटे सन्यास ले चुके लोग राजनीति  में घुसपैठ करते जरूर देखे हैं और इस समय तो राजनीति में सन्यासियों की पौ -बारह है।वे केंद्र में भी मंत्री हैं और मुख्यमंत्री भी।  खिलाडियों में सन्यास लेना आम बात  है लेकिन राजनीति में सन्यास लेना ख़ास घटना मानी जाती है। नेताओं को उनकी अपनी पार्टियां जबरन हाशिये पर डाल देतीं हैं क्योंकि वे खिलाड़ियों की तरह खेल भावना से राजनीयति से सन्यास नहीं  लेते। किसी भी दल में सन्यासी न हों ऐसी बात नहीं है ,लेकिन उनकी संख्या न के बराबर है। नानाजी देशमुख या कामराज या ज्योति बसु जैसे बहुत कम नेता हुए हैं जिन्होंने स्वेच्छा से सन्यास लिया हो । सवाल ये है कि आखिर राजनीति में ऐसा क्या है जो नेता उससे सन्यास नहीं लेना नहीं चाहते ? इस विषय पर न किसी ने शोध किया है और न पीएचडी की उपाधि  हासिल की है ,क्योंकि इस विषय पर शोध करने की न फुरसत है और न इजाजत। मान लीजिये इजाजत मिल भी जाए तो गाइड नहीं मिलेगा। क्योंकि विषय ही अछूत है। 

राजनीति से सन्यास लेने वाले भारत के प्रमुख नेताओं पर यदि आपको निबंध लिखने के लिए कह दिया जाये तो आप मुश्किल से एक-दो पृष्ठ ही लिख पाएंगे,क्योंकि राजनीति से ससम्मान सन्यास लेने वाले हैं  ही गिने चुने। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज के प्रधानमंत्री तक किसी ने राजनीति से सन्यास लेने के बारे में कार्ययोजना बनाना तो दूर, कभी सोचा तक नहीं। इस मामले में हर विचारधारा के नेता एक जैसा सोचते है।  राजनीति में व्यक्ति जीवन पर्यन्त सक्रिय रहना चाहता है। कुर्सी के बिना जीवित रहना किसी भी नेता के लिए असम्भव काम है। भारतीय राजनीति में कोई सन्यास नहीं लेता लेकिन शारीरिक अस्वस्थता की वजह से उसे घर बैठना पड़े तो अलग बात है। मिसाल के तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी। 

दुनिया में राजनीति ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ  सन्यास का न कोई लिखित विधान है और न कोई विवादास्पद इतिहास। राजनीति में कोई औरंगजेब भी तो नहीं है जिसने कम से कम पचास साल शासन किया हो।हमारे सनातन में तो राजा- महाराजा  अपने जीते जी अपने उत्तराधिकारी की न सिर्फ घोषणा कर देते थे बल्कि उनका राज्याभिषेक भी करा देते थे। राजनीति में नेता अपना उत्तर्राधिकारी तो घोषत करते हैं लेकिन खुद सन्यास नहीं लेते। हमारी संसद और विधानसभाओं  में पिता-पुत्र ,पति-पत्नी,भाई-भाई साथ -साथ मिल जायेंगे। राजनीति  से नेताओं को सन्यास केवल मृत्यु ही दिलाती है। मुमकिन है कि मै गलत होऊं ,लेकिन मैंने तो अपनी स्मृति में अपवादों को छोड़ किसी को औपचारिक रूप से सन्यास लेते नहीं देखा। आपने देखा हो तो जरूर बताएं। 

मौजूदा राजनीति  में हमारे तमाम नेता  80  पार कर चुके हैं लेकिन राजनीति छोड़ने को तैयार नहीं हैं ,ये भी पता नहीं चल पता कि राजीति ने नेताओं को पकड़ रखा है या नेताओं ने राजनीति को ? अब कांग्रेस से ही शुरू कीजिये। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे हो या ,श्रीमती सोनिया गाँधी सन्यास के बारे में कोई योजना अभी तक नहीं बना पायीं हैं। भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भी राजनीति से सन्यास से कोई इरादा नहीं है।  एनसीपी  के शरद पंवार हर बार, आखरी बार कहते हैं और हर बार राजनीति से चिपके दिखाई देते हैं।  राजद के लालू प्रसाद जी ने अपनी पत्नी और बेटे -बेटियों को भी स्थापित कर दिया लेकिन सन्यास की घोषणा नहीं की।

 बहन मायावती तो किसी आश्रम में रहीं ही नहीं  इसलिए  उनके सन्यास  आश्रम में जाने का सवाल ही नहीं उठता। सन्यास की उम्र तो बहन ममता बनर्जी की भी हो गयी है लेकिन वे भी इस बारे में शायद सोच नहीं पायी हैं। नीतीश कुमार भी सन्यासी नहीं बनना चाहते। समाजवादियों में भी कोई सन्यासी हो तो आप बताइये ?  वाम पंथियों में एक ज्योति बासु अपवाद रहे,उन्होंने स्वास्थ्य कारणों से राजनीति से सन्यास लेकर बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था ,अन्यथा वामपंथी भी आजन्म नेता होते हैं  और मरते समय तक पोलित ब्यूरो सम्हालने का हौसला रखते हैं। 

मुझे लगता है कि राजनीति में सन्यास शब्द से चिढ़ने वाले ,सन्यास को फालतू की चीज मानने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। किसी दल में कोई ऐसा नेता नहीं  है जो   स्मिथ  की तरह ,सचिन तेंदुलकर ,कपिल देव् की तरह अपने सक्रिय जीवन से सन्यास लेने की घोषणा कर अपने चाहने वालों को चौंकाए। अमेरिका में जो वाइडन साहब 80  पार कर भी सन्यासी नहीं बने ,वे तो ईसाई हैं ,उनके यहां शायद सन्यास की व्यवस्था नहीं है। वहां शायद रिटायरमेंट चलता हो लेकिन हम भारतियों की जीवन  शैली में सन्यास एक खास व्यवस्था है लेकिन हमारे नेता सन्यास के नाम से ही बिदक जाते हैं। आपको यकीन न हो तो अपने क्षेत्र के किसी विधायक,संसद,मंत्री या प्रधानमंत्री से राजनीति से सन्यास लेने के बारे में प्रश्न करके देख लीजिये ? हकीकत समझ जायेंगे। 

@ राकेश अचल

गुरुवार, 6 मार्च 2025

गड़े मुर्दों पर बवाल ,बुरा है देश का हाल

देश में इन दिनों कोई समस्या नहीं है।  ' मोदी राज बैठे त्रेलोका ,हर्षित भये,गए सब शोका ' वाली स्थिति  है। देश में अगर कोई मसला है तो वो है गड़े हुए मुर्दे ,को अचानक बाहर निकल आये हैं। कुछ मुर्दे हंगामा मचाये  हुए हैं और कुछ पंचभूत में विलीन होने के बाद भी जेरे बहस हैं।  इन गड़े मुर्दों पर अभी डबल इंजन की सरकारों वाले सूबों की विधानसभाओं में बहस  हो रही है और कुछ के बारे में विधानसभाओं के बाहर बहस जारी है।  मुर्दे खुश हैं ,लेकिन हम जैसे अमन पसंद लोगों की नींद हराम है। 

भाजपा के अखंड भारत के सपने को 1658  में ही अमली जामा पहनाने वाले मुगल सम्राट  औरंगजेब का मुर्दा कब्र से बाहर निकलकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश विधानसभा में बहस करा रहा है।  समाजवादी पार्टी  के विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब के राज की तारीफ़ की तो भाजपा के तमाम छावा अचानक दहाड़ने लगे।  सबने मिलकर अबू आजमी को विधानसभा के मौजूदा सत्र से निलंबन की मांग कर डाली और विधानसभा अध्यक्ष ने अबू आजमी को निलंबित भी कर दिया,लेकिन अबू आजमी  के साथ महाराष्ट्र विकास अगाडी   वाले शिवसेना [उद्धव ठाकरे का जी इससे भी नहीं जुडाया । उन्होंने आजमी की सदस्य्ता ही समाप्त करने की मान कर डाली। और तो और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी  आदित्यनाथ ने तो विधानसभा में ही समाजवादी पार्टी से अबू को पार्टी से निकलने की मांग करते हुए कहा की उस कमबख्त को यूपी भेज दो हम उसका इलाज कर देंगे। 

देश की दो विधानसभाओं में कभी चुनाव न लड़ने वाले औरंगजेब पर गर्मागर्म बहस देख-सुनकर मजा भी आया और क्षोभ भी हुआ। मजा इसलिए आया कि हमारी विधानसभाएं असल काम छोड़कर छाया युद्ध करती नजर आ रहीं हैं और क्षोभ इसलिए हुआ कि  औरंगजेब के नाम और उनके काम का जिक्र करना भी इस देश में बिना क़ानून बनाये जुर्म मान लिया गया। इस मामले में भाजपा के छावाओं से सवाल किया जा सकता है कि  क्या वे पिछले दस साल से सो रहे थे ? क्या वे इससे पहले औरंगजेब को नहीं जानते थे ? और वे अब तीन सौ साल पहले जमीदोज किये जा चुके औरंगजेब का क्या बिगाड़ लेंगे ?

औरंगजेब की क्रूरता इतिहास के पन्नो में दफन हो चुकी है ।  हम में से किसी ने उसे देखा नहीं है, सिर्फ पढ़ा है। आने वाली  पीढ़ी भी इसी तरह आज के औरंगजेबी संस्करणों के आचरण के बारे में पढ़ेगी। औरंगजेब ने जो किया उसकी सजा पायी होगी। मरे  हुए आदमी को सजा नहीं दी जा सकती ।  और भाजपा को ये अधिकार किसने दिया है, ये भी जानना जरूरी है।  औरंगजेब की करतूतों की सजा तबके सनातनी सम्राट उसे नहीं दे पाए तो आज के हिन्दू सम्राट उसे सजा देने निकल पड़े हैं।  वे औरंगजेब की कब्र खोदकर फेंक देना चाहते हैं। कहाँ ले जायेंगे उसकी मिटटी को ? समंदर में फकेंगे या हवा में उड़ाएंगे ? 

भाजपाई हमारे अपने भाई हैं लेकिन वे हकीकत को तस्लीम नहीं करना चाहते। उन्हें तो एक ही धुन सवार है कि  भारत को कांग्रेस विहीन और मुसलमान विहीन करो।  ये तब तक मुमकिन नहीं है जब तक कि  इस देश का संविधान न बदला जाये और इस देश के दो टुकड़े फिर से न किये जाएँ। आखिर 20  करोड़ से ज्यादा मुसलमानों को आप कहाँ ले जाइएगा ? हालाँकि ये सबके सब औरंगजेब नहीं हैं ।  उसके खानदान के भी नहीं हैं। ये औरंगजेब का दिया हुआ भी नहीं खाते। ये खुद मेहनत -मजदूरी करते हैं तब खाते हैं। 

मेरी फ़िक्र में अबू-आजमी नहीं है।  उनकी जान तो खतरे में है ही ,लेकिन उन बच्चों का क्या होगा जिन्हें आज भी इतिहास में औरंगजेब पढ़ाया जाता है। क्या भाजपा सरकार ने इतिहास की किताबों से औरंगजेब का नामो-निशान मिटा दिया है।  क्या सरकार ने औरंगजेब का और उसके राज का जिक्र करना राष्ट्रद्रोह का अपराध बना दिया है ? शायद नहीं किया है ऐसा।  हाँ ऐसा करने की कोशिश जरूर की जा सकती है।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस तरीके से विधानसभा  में दुसरे सूबे कि एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि का इलाज करने की बात कहते दिखाई देते हैं उसे देखकर जरूर लगता है कि  अब इस देश में क़ानून का नहीं बल्कि नए औरंगजेबों का राज आ गया है। 

सवाल फिर भी टेसू की तरह अपनी जगह अड़ा, खड़ा हुआ है।  क्या औरंगजेब ,क्रूर औरंगजेब ,सनातन विरोधी औरंगजेब इस देश से सनातन को खत्म कर पाया? क्या संभाजी राव के साथ पाश्विकता का व्यवहार करने के बाद भी देश में  औरंगजेब की प्रतिमाएं  लगाईं गयीं ? नहीं लगाई गयीं ,क्योंकि औरंगजेब आज के युग का न नायक है और न खलनायक। वो इतिहास बन चुका है और इतिहास को गरियाकर आज की सियासत नहीं की जा सकती। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि  ऐसा ही हो रहा है। मैंने तो सुझाव दिया था कि  औरंगजेब से छुटकारा पाना है तो उसकी कब्र को खुदवाकर पाकिस्तान को उपहार में दे देना चाहिए ।  मुसलमानों से मुक्ति चाहिए तो सबको सरकारी खर्चे पर अमेरिका की नागरिकता दिला देना चाहिए , न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।  औरंगजेब ही क्यों रसखान को और उन अमीर खुसरो को भी प्रतिबंधित कर देना चाहिए जहाँ पिछले दिनों माननीय प्रधानमंत्री जी गए थे। 

मुझे लगता है कि  संतन संग बैठ -बैठ लोक-लाज तो खो ही चुकी है ,अब विष बेल भी फ़ैल चुकी है। ये विष बेल अब ज़िंदा के साथ मुर्दों को भी समूल नष्ट कर देना चाहती है। अरे भाई समझो औरंगजेब कोई  ओसामा बिन लादेन नहीं था। औरंगजेब  इसी मुल्क का बादशाह था जिसने पचास साल इस मुल्क पर राज किया।तब  किया जब योगी आदित्यनाथ कि पुरखे इस देश में माला जपा करते थे लेकिन वे औरंगजेब से छावा की तरह टकराये नहीं। भैंसे ही चराते रहे।  आज भी बहुत से लोगों का सपना मुल्क पर पचास साल राज करने का है ,लेकिन वे ऐसा कर नहीं पा रहे। न जवाहरलाल नेहरू कर पाए, न इंदिरा गाँधी कर पायीं और न नरेंद्र मोदी ही कर पाएंगे। ऊपर वाला सबको औरंगजेब नहीं बना सकता। एक तो गलती से बना था जो अपनी मौत के तीन सौ साल बाद भी हंगामा मचाये हुए है।

एक गड़ा मुर्दा पूर्व कांग्रेसी   मणिशंकर ने उखाड़ा है।  वे कहते हैं कि  कांग्रेस ने दो बार केम्ब्रिज में फेल हुए राजीव गाँधी को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। ये हकीकत भी हो सकती है ,लेकिन सवाल ये है कि  मणिशंकर को ये राज उजागर करने का साहस तब क्यों नहीं हुआ जब राजीव गाँधी जीवित थे। ! मरे हुए आदमी की निंदा करना भी ठीक वैसा ही है जैसा मरे हुए औरंगजेब को गालियां देना। लेकिन क्या करें रोग तो रोग है। याद कीजिये की ये वही मणिशंकर हैं जो हमारे प्रधानमंत्री  श्री नरेंद्र मोदी जी को नीच कह चुके है।  मुझे उनकी जबान भू उतनी ही  काली लगती   है जितनी की योगी आदित्यनाथ की। आपकी आप जानें।  

@ राकेश अचल

बुधवार, 5 मार्च 2025

वनतारा के शेर और राजनीति के छावा

 

आज आप फिर कहेंगे  कि मै घूम-फिरकर शेरों और छावा पर आ गया ,सवाल ये है कि  मै करूँ  तो करूँ क्या ? मै डोनाल्ड ट्रम्प से चीन के राष्ट्रपति शी  जिन पिंग की तरह पंगा ले नहीं सकत।  नहीं कह सकता की ' टैरिफ वार हो या असली वार हम अंत तक लड़ने को तैयार हैं। शी जिन पिंग ने जो कहा यदि यही बात हमारे विश्वगुरु कहते तो मै उन्हें घी-शक्कर खिलाता,लेकिन उन्होंने तो कुछ कहने के बजाय वनतारा जाना पसंद किया। ये उनका निजी मामला है इसलिए मै कुछ कहना नहीं चाहता। आजकल राजनीति में इतिहास के छावा तलाशे जा रहे हैं।  पहले डोनाल्ड ट्रम्प से टकराने वाले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की मुझे राजनीति के छावा लगे  लेकिन अब इस फेहरिश्त में चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग का नाम भी जुड़ गया है। 

मामला राष्ट्रीय होकर भी अंतर्राष्ट्रीय हो गया है।  हमारे छावा आजकल ट्रम्प से भिड़ने का साहस जुटाने या दिखने के बजाय अपने गृहराज्य गुजरात में वनतारा के प्रवास पर हैं।  सिंहों की तस्वीरें उतार रहे हैं, सिंह शावकों यानि छावाओं को बोतल से दूध पिला रहे हैं। उनका दिल करुणा से सराबोर है।  वे किसानों से ज्यादा वन्य प्राणियों का ख्याल रखते हैं ,इसीलिए मै उनका हृदयतल से सम्मान करता हूँ। लेकिन ट्रम्प के समाने मुझे अपने नेता का भीगी बिल्ली बनना बिलकुल रास नहीं आता। आपको आता है तो मुझे कुछ नहीं कहना,किन्तु मै तो अपनी बात कर रहा हूँ। मेरी बात सबके मन की बात हो ये जरूरी नहीं। मन की बात ,मन की होती है जन-जन के मन की नहीं होती,ये हम मन की बात के 100  से ज्यादा एपिसोड देखकर जान गए हैं। 

आपको पता है कि  इस समय अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प  साहब ने सहित युद्ध के बजाय दुनिया को टैरिफ युद्ध की सौगात दी है। ट्रंप  ने कनाडा और मैक्सिको के साथ ही चीन पर ही नहीं हमारे भारत पर  भी अतिरिक्‍त टैरिफ लगाया है. अमेरिका  के इस कदम से चीन आगबबूला हो गया है।  लेकिन हमने अपने आपको आग-बबूला नहीं होने दिया। इधर जैसे ही अमेरिका ने चीन से निर्यात  होने वाले माल  पर  टैरिफ लगाने का ऐलान किया ,उधर बीजिंग की तरफ से भी जवाबी कार्रवाई की गई।  चीन भी अब अमेरिका से आने वाले  होने वाले सामान  पर 10 से 15 फीसद तक का टैरिफ लगाने जा रहा है।  इससे अब दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच ऐलान -ऐ- ट्रेड वॉर शुरू हो गया है।  चीन  ने ट्रंप सरकार को खुले तौर पर युद्ध की भी धमकी दे डाली है।  चीन का कहना है कि अगर अमेरिका युद्ध चाहता है (चाहे वह टैरिफ युद्ध हो, व्यापार युद्ध हो या कोई और युद्ध) तो हम अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं। 

दरअसल भारत और चीन में यही फर्क है। चीन का राष्ट्रवाद भारत और अमेरिका के राष्ट्रवाद से अलग है। हम संकट के समय में वनतारा में मन की शांति तलाश करते हैं लेकिन चीन मोर्चाबंदी करता है। हम या तो झूला झूलने में सिद्धहस्त हैं या सिंह शावकों को दूध पिलाने में।  हमें आँखें तरेरना आता ही नहीं। हम आँखें  तरेरते   भी हैं तो ले-देकर नेहरू,इंदिरा,राजीव और राहुल गाँधी पर। क्योंकि हमें पता है कि  हम ट्रम्प  साहब हों या शी जिन  पिंग साहब को आँखें नहीं दिखा सकते ।  उनसे ऑंखें नहीं मिला सकते  ,भले ही दोनों हमें आँखें दिखाएँ, हमारी बांह मरोड़ें या हमारी जमीन पर कब्जा कर लें। 

आप हमारे छावा से तो सवाल नहीं कर सकते लेकिन अपने आपसे तो सवाल कर सकते हैं कि  जिस टोन में चीन अमेरिका को जबाब दे रहा है ,हम क्यों नहीं दे पा रहे ? क्या हमने माँ का दूध नहीं पिया ? क्या हम अमेरिका को छठी का दूध याद नहीं दिला सकते ? हमारी आबादी चीन से ज्यादा है। हम चीन  से बड़ा बाजार हैं।  अमेरिका की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड हम भारतीय हैं। फिर भी हम शतुरमुर्ग   बने खड़े हैं। आप सवाल कर  सकते  हैं कि  हमने आपको देश का निगेहबान   कहें ,चौकीदार कहें या सेवक कहें इसलिए नहीं चुना कि  आप देश के स्वाभिमान की रक्षा करने के वजाय मोरों के साथ ,सिंह  शावकों के साथ या गाय-बछड़ों के साथ फोटो खिंचवाने में व्यस्त रहें ।  आपको जेलेंस्की और शी जिन पिंग की तरह काम करना चाहिए था। 

जो काम हमारे आज के नेता कर रहे हैं वो तो आज के नेताओं की आँख की किरकिरी रहे  नेहरू,गाँधी भी कर चुके हैं। इसीलिए   आपको ऐसा करने से रोका जाना पूर्वाग्रह माना जाएगा ,इसलिए आप शौक से सिंह शावकों को बोतल से दूध पिलाइये ,लेकिन देख लीजिये कि देश की अर्थ व्यवस्था भी अब घोर कुपोषण का शिकार  है।  शेयर बाजार औंधे   मुंह पड़ा हुआ है।  इन्हें भी दूध से बोतल पिलाये जाने की जरूरत है अन्यथा ये दोनों ही दम तोड़  देंगे। जो बात मै अपने आज के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के लिए कह रहा हूँ वो ही बात मै गांधियों से भी कहता बाशर्त कि  वे सत्ता प्रतिष्ठान में होते। वे तो विपक्ष में है।  वे तो बिखरे हुए हैं। असहाय हैं। अमेरका से पंगा नहीं ले सकते। वे तो आपसे ही पंगा लेकर हलाकान हैं। 

बहरहाल चूंकि हमारे राष्ट्र नायक ने वनतारा  का प्रमोशन किया है तो मै भी निकट भविष्य में वनतारा  जाकर कुछ दिन वहां बिताऊंगा । अनंत अम्बानी साहब को भी बधाई दूंगा। लेकिन अभी तो मेरी नींद उडी हुई है। सपने में कभी ट्रम्प साहब आते हैं तो कभी जेलेंसिकी। अब तो शी जिन पिंग   साहब भी आने लगे हैं। कल रात ही मेरे सपने में मोदी जी अपने सिंह शावकों को दूध पिलाते नजर आये। 

@ राकेश अचल

मंगलवार, 4 मार्च 2025

एमएलबी महाविद्यालय की छात्राओं ने रैली निकाल बाल विवाह को बताया अभिशाप

 


ग्वालियर। महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय की छात्राओं ने बाल विवाह को समाज से मिटाने के लिये रैली निकाली। छात्रायें हाथों में पोस्टर लेकर चल रही थी। छात्रायें बाल-विवाह समाज के लिए अभिशाप है का नारा लगाते हुए जब छात्राएं निकली तो हर जगह उनके हौसले की सरहाना की गई। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. हरीश अग्रवाल एवं कार्यक्रम संयोजक प्रो. कुसुम भदौरिया ने हरी झंडी दिखाकर रैली को रवाना किया। इसके पूर्व छात्र-छात्राओं ने बाल विवाह के विरुद्ध समृद्ध एवं सशक्त महिला विषय पर पोस्टर निर्माण किया। इस अवसर पर शासकीय महाविद्यालय बानमोर से प्रो. रिचा गुप्ता एवं शासकीय कमलाराजा कन्या महाविद्यालय से प्रो दिनेश पाटीदार सहित प्रो. आर.के. सिंह, प्रो. रवि रंजन, प्रो. विभा दूरवा, डॉ. कुसुम चैधरी, डॉ दिनेश गुर्जर, राहुल, आकाश बाथम शामिल थे। 

दाम ने अनुसूचित जाति जनजाति कार्य विभाग कार्यालय शारदा विहार से की अवैध कब्जा हटाने की मांग


 कलेक्टर की जनसुनवाई में पहुंचकर की मांग 


ग्वालियर 4 मार्च  ।आदिम जाति कल्याण विभाग संभागीय आयुक्त एवं सहायक आयुक्त कार्यालय शारदा विहार सिटी सेंटर ग्वालियर पर अतिक्रमणकारियों नेअवैध कब्जा कर लिया है अतिक्रमण हटवाने के लिए आज दिनांक 4 मार्च 2025 मंगलवार की जनसुनवाई में दलित आदिवासी महापंचायत के प्रांतीय अध्यक्ष महेश मदुरिया ने आवेदन पत्र दिया अनुसूचित जाति जनजाति कार्य विभाग की भूमि पर अतिक्रमण की शिकायत विभाग के अधिकारियों ने आज तक अतिक्रमण नहीं हटाए और ना ही आज तक वरिष्ठ अधिकारियों को बताया इसलिए प्रतीत होता है कि आदिम जाति कल्याण विभाग कार्यालय ग्वालियर पर आदिम जाति कल्याण विभाग  अधिकारियों की मिली भगत से खुलेआम अतिक्रमण कर कब्जा किया गया है।

       जनसुनवाई में मौजूद संयुक्त कलेक्टर गुप्ता जी ने आदिम जाति कल्याण विभाग के प्रभारी सहायक आयुक्त जिनका मूल पद प्राचार्य है श्री राकेश गुप्ता जी को निर्देश देते हुए कहा की  शीघ्र ही सीमांकन करें तथा अतिक्रमण हटाया जाए। दलित आदिवासी महापंचायत के आवेदन को जनसुनवाई में दर्ज किया गया है

       दलित आदिवासी महा पंचायत के संस्थापक संरक्षक डॉ जवर सिंह अग्र एवं प्रदेश अध्यक्ष महेश मदुरिया ने प्रशासन से मांग की है कि अनुसूचित जाति जनजाति कार्य विभाग के लिए जो जमीन आवंटित की गई है उस पर से तत्काल अतिक्रमण हटाया जाए।

    जिससे शासन एवं विभाग की जमीन अनुसूचित जाति जनजाति के उपयोग में लाई जा और अभी तक कब्जा हटाने की कार्रवाई न करने वाले विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई करने की मांग कलेक्टर  से की गई है जिस पर कलेक्टर की जनसुनवाई में मौजूद अधिकारियों ने जमीन पर से अतिक्रमण हटाकर यदि अधिकारी दोषी पाए जाते हैं तो उनके प्रति कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है ।

अपनी जेब के बजाय औरंगजेब पर रार

 

हिन्दुस्तानी यानि सनातनी बेमिसाल होते हैं .आजकल हम हिन्दुस्तानी अपनी लगातार काटी जा रही जेब की फ़िक्र करने के बजाय उस औरंगजेब  को लेकर आपस में कट -मर रहे हैं जिसे हम में से किसी ने भी देखा नहीं. देखते भी कैसे ,क्योंकि  उसे दुनिया से गए सैकड़ों साल हो चुके हैं .आज की राजनीति ने औरंगजेब को एक बार फिर ज़िंदा कर दिया है .अब औरंगजेब सत्ताप्रतिष्ठांन  और उससे बाबस्ता दलों और संगठनों के काम आ रहा है .कोई औरंगजेब के कसीदे पढ़ रहाहै तो कोई उसकी क्रूरता के किस्से सुना-सुनाकर हिंदुस्तान में मौजूद हर मुसलमान को औरंगजेब बनाये दे रहा है .

यकीनन बात हैरानी की है ,लेकिन हिंदुस्तान में बहुसंख्यक लोग हैं जो औरंगजेब के मुद्दे पर आपस में जूझने की वकालत कर रहे हैं .बहुत से कूढ़ मगज हैं जो आजकल औरंगजेब की तस्वीरें सार्वजनिक गुसलखानों और पाखानों पर लगाकर अपने राष्ट्रवादी होने का प्रमाण दे रहे हैं .ये सब देखकर औरंगजेब जहाँ भी होगा हंस ही रहा होगा . हिन्दू तालिबानियों  ने औरंगजेब को गुसलखानों और पखानों से लेकर फ़िल्मी दुनिया के जरिये एक बार फर जिन्दा कर दिया है .आजकल वो ' छावा ' फिल्म का लोकप्रिय खलनायक है .दर्शक औरंगजेब की भूमिका करने वाले अक्षय खन्ना के अभिनय की भूरि  -भूरि   प्रशंसा कर रहे हैं .

आप मानें या न माने किन्तु ये सच है कि आज की सियासत में भी औरंगजेबों की कमी नहीं है .मैंने  तो औरंगजेब को देखा नहीं, किताबें के जरिये ही जाना है .इसलिए मैं उसके बारे में आधिकारिक रूप से कुछ कहने का अधिकारी नहीं हूँ ,किन्तु जो औरंगजेब को ज़िंदा कर सियासत  कर रहे हैं वे शायद उसके बारे में मुझसे ज्यादा जानकारी रखते हैं .न रखते होते तो औरंगजेब को आज की सियासत का औजार भी नहीं बनाते .अब औरंगजेब ज़िंदा हो ही गया है तो रोजाना कटती अपनी जेब की चर्चा कौन करे ? जेब कतरी की चर्चा न हो ये भी औरंगजेब को जिन्दा करने की एक वजह हो सकती है .

आज की तारीख में लोग जितना देश के प्रधानमंत्री के बारे में या लोकसभा में विपक्ष के नेता के बारे में या अपने खुद के पुरखों के बारे में नहीं जानते जितना की 318 साल पहले 3 मार्च के रोज दिवंगत  हुए औरंगजेब के बारे में जानते हैं .औरंगजेब के बारे में जिसके पास जो भी जानकारी है वो इतिहास की किताबों से ही आयी है .अब आज की सरकार और आज की सरकार चलने वाली भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठन कहते हैं कि औरंगजेब के बारे में इतिहास सच नहीं बताता .मुमकिन है कि ऐसा हो भी और न भी हो ,लेकिन सवाल ये है कि तीन सौ साल से भी ज्यादा पुराने किरदार की  आज की सियासत में क्या जगह है ? कौन से मुकाम पर हमें औरंगजेब कोई जरूरत पड़ गयी ? 

आप यकीन मानिये कि औरंगजेब न मणिपुर की समस्या सुलझाने के काम आ सकते हैं और न रूस और यूक्रेन के बीच  की जंग समाप्त करने में कोई भूमिका अदा कर सकते हैं. वे दो गज जमीन के नीचे  318 साल से खामोशी के साथ सोये पड़े हैं ,फिर उन्हें क्यों परेशान किया जा रहा है  ? देश के अल्पसंख्यक मुसलमानों को लज्जित करने के लिए .उन्हें देशद्रोही बताने के लिए ? दुनिया में कितने देशों में गड़े मुर्दे उखाड़कर राजनीति की जाती है मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि आजकल देश एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसमें केवल और केवल एक उन्माद है .ऐसा उन्माद जिसकी न आँखें हैं और न कान .उसे न किसी की बात सुनाई देती है और न हकीकत दिखाई देती है ..

अब सुना है कि औरंगजेब को खलनायक मानने वाले लोग पूरे  मुल्क के मुसलमानों को भी औरंगजेब मानने लगे हैं. वे आने वाली होली पर मुसलमानों को अपने पास फटकने भी नहीं देंगे. गले लगाने और रंग-अबीर का इस्तेमाल करना तो दूर है .ये औरंगजेबी घृणा का ज्वार मथुरा से उठा है उसी मथुरा से जहाँ रसखान कृष्ण भक्ति में सराबोर रहा करते थे .ये गुबार देश की उस गंगा जमुनी साझा विरासत को फूंक से उड़ा देने की कोशिश है .आम मुसलमान को औरंगजेब मानने वाले हिन्दू तालिबानियों की नजर में हिंदुस्तान में कोई गंगा-जमुनी संस्कृति थी ही नहीं ,ये तो अर्बन नक्सलियों द्वारा पैदा किया गया एक मिथक है .

इतिहास एक ऐसी चीज है जो बदली नहीं जा सकती. इतिहास के जरिये आप अपना वर्तमान और भविष्य बना और बिगाड़  सकते हैं ,लेकिन इतिहास का बाल -बांका नहीं कर सकते,फिर चाहे वो इतिहास किसी अंग्रेज ने लिखा हो,किसी मुग़ल ने लिखा हो या किसी भटियारे ने . इतिहास को बदलने की कोशिश जो लोग करते हैं उन्हें इतिहास कूड़ेदान में डाल देता है .दुर्भाग्य ये है कि हम न वर्तमान को लेकर फिक्रमंद हैं और न भविष्य को लेकर .हमारी परेशानी वो इतिहास है जो अब इतिहास हो चुका है .वो हमारा कुछ भी भला-बुरा नहीं कर सकता .हाँ हम जरूर इतिहास को जेरे बहस लेकर अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं .मुमकिन है कि आप मेरी बात से इत्तेफाक न रखते हों लेकिन क्या एक भी तर्क है जो आप इस पक्ष में दे सकें ? क्या आप बता सकते हैं कि गुसलखानों और पाखानों  पर औरंगजेब की तस्वीरें लगाकर हम औरंगजेब का कुछ बिगाड़ लेंगे ?

आज की सियासत में कोई औरंगजेब नहीं हो सकता. कोई औरंगजेब की तरह मुल्क पर आधी सदी तक राज नहीं कर सकता ,क्योंकि अब हर पांच साल में चुनाव होते हैं .आज यदि औरंगजेब भी होता तो उसे भी चुनाव लड़ना पड़ता और मुमकिन था कि उसे भी एके-दो चुनाव के बाद जनता ख़ारिज कर देती .औरंगजेब   खुशनसीब  था  जो  उसके  जमाने  में  आरएसएस और भाजपा नहीं थी,यदि  होती तो उसे कभी का देश निकाला दे चुकी होती .संघ के और भाजपा के रहते देश किसी सूरत में गुलाम हो ही नहीं सकता था .लेकिन हम सब बदनसीब हैं कि हमारे दौर में औरंगजेब न सही लेकिन उसकी मानसिकता के लोग हमारे बीच हैं .

मुहिउद्दीन मोहम्मद कहें या  औरंगज़ेब या आलमगीर यदि चाहता तो पचास साल के शासन में देश को हिन्दू विहीन कर देता लेकिन उसने ऐसा नहीं चाहा. उसकी चाहत आज के शासकों जैसी शायद नहीं रही होगी. जो देश को कांग्रेस विहीन ,मुसलमान विहीन करना चाहते हैं .उसने हिन्दुओं पर भी राज किया और मुसलमानों पर भी ,लेकिन आज के शासक केवल हिन्दू पदशाही चाहते हैं. वे न मुसलमानों पर राज करना चाहते हैं और न उन्हें राजसत्ता में भागीदारी करने देना चाहते हैं ,इसीलिए एक-एक कर विधानसभाओं से लेकर संसद तक में उनकी सहभागिता  को कम करते जा रहे हैं ,औरंगजेब को छोड़िये जैसे अकबर के दरबार में दिखावे के लिए जो नवरत्न थे वैसे ही आज की सरकार में दिखावे के लिए भी एक मुसलमान न संसद है और न मंत्री .अब आप समझ सकते हैं की औरंगजेब कौन है ?

मेरे अवचेतन में भी औरंगजेब की वही क्रूर  छवि  है जो आम हिन्दुस्तानी,आम सनातनी,आम कांग्रेसी ,आम भाजपाई के जेहन में है ,लेकिन मैं औरंगजेब को लेकर आज अपनी जेब की दुर्दशा को नहीं भुला सकता .मेरी या आपकी जेब किसी औरंगजेब ने नहीं काटी. हमारी जेब हमारी सरकार काट रही है ,हालाँकि हमारे मुखिया औरंगजेब नहीं हैं लेकिन वे और उनके कारनामें औरंगजेब जैसे जरूर नजर आ रहे हैं .इसलिए मैं बार-बार कहता हूँ कि औरंगजेब को भाड़ में जाने दीजिये. देश के हर मुसलमान को औरंगजेब मत समझिये .मुसलमान को लेकर इतनी नफरत पैदा मत कीजिये की एक और विभाजन की त्रासदी से इस खूबसूरत मुल्क को दो -चार होना पड़े .

@ राकेश अचल

सोमवार, 3 मार्च 2025

प्रह्लाद पटेल सठियाये हैं या बौरा गए हैं ?

 

एक लोक कहावत हैं कि -' साठा ,सो पाठा ।  लेकिन इस कहावत पर अब मुझे यकीन नहीं रहा, क्योंकि मैंने चार साल पहले साठा हुए भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल को बौराते हुए देखा हैं।  वे भाजपा के पहले ऐसे निर्मल हृदय नेता हैं जिन्होंने सार्वजनिक रूप से जनता को भिखमंगा कहा हैं। उनके इस कथन के लिए उनका सम्मान किया जाये या निंदा या सामाजिक बहिष्कार ये अभी तय नहीं हुआ। पटेल अपने इस उद्घोष से सुर्ख़ियों में जरूर आ गए हैं। 

प्रह्लाद पटेल हम उम्र हैं। उन्हें दूर रहकर भी बाखूबी जानता हूँ  ,मेरे मन में उनके प्रति सम्मान भी बहुत था ।  ईश्वर ने उन्हें अच्छी कद-काठी भी दी थी।  उनकी रसना पर सरस्वती भी विराजती थी ,लेकिन अब लगता हैं कि  मेरी धारणा गलत थी । वे दूसरे शाखामृगों  की भांति ही कूप मंडूक और अक्ल से पैदल हैं। उन्हें जनता-जानार्दन का सम्मान करना संघ की शाखाओं में सिखाया ही नहीं गया। पता नहीं कैसे पटेल को ये आत्मानुभूति हुई कि  वे ' दाता 'और जनता ' भिखारी ' हैं। तीर, कमान से निकले और बोल, जबान से निकलने के बाद वापस नहीं आता,इसलिए मुमकिन हैं कि  प्रह्लाद चौतरफा हो रही लानत-मलानत के बाद कहें कि  उनके बायां को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया हैं उनका मकसद जनता का अपमान करना नहीं था। 

पटेल कोई नौसीखिया नहीं है।  पांच बार के संसद है।  केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें पहली बार विधयनसभा चुनाव क्या लड़वा दिया,वे बौरा गए और सुठालिया की सभा में अपने 'मन की बात' कह बैठे । पटेल दरअसल जनता द्वारा मंत्रियों को 'टुकना' भर ज्ञापन देने से आजिज आ गए है।  उन्होंने उत्तेजना में कहा कि  जनता को भीख मांगने की आदत से बाज आना चाहिए। जनता जनार्दन हैं लेकिन कमजोर है। बीमार हैं ,इसलिए पटेल से प्रतिप्रश्न नहीं कर सकती। नहीं पूछ सकती कि  देश की जनता को पिछले एक दशक में भिखारी बनाया किसने ?जनता ये सवाल भी नहीं कर सकती कि  समस्याओं के समाधान के लिए ज्ञापन देना भीख मांगना नहीं बल्कि जन प्रतिनिधियों को उनकी जिम्मेदारी के प्रति आगाह करना भी हैं। 

भारत में कहने के लिए जनता जनार्दन हैं लेकिन हकीकत ये है कि  हमारी सरकार ने देश की 80  करोड़ जनता को पहले ही 2028  तक के लिए भिखमंगा बना दिया हैं ,और अब पटेल जैसे जन प्रतिनिधियों को लगने लगा हैं कि  जनता उनसे भीख मांगने आती हैं ,जबकि असली और मुकम्मल भिखारी तो पटेल जैसे नेता ही हैं ,जो हर पांच साल में अपनी झोली फैलाते हुए जनता-जनार्दन से वोटों की भीख मांगने आते है। जात-पांत देखे बिना जनता के पैरों में गिर जाते हैं ,लेकिन जनता ने कभी नहीं कहा कि-  नेताओं   को भीख मांगना छोड़ देना चाहिए ?

प्रह्लाद भाजपा के युवा तुर्क लगते थे, लेकिन हैं नही।  वे 1999  से चुनाव लड़ते आ रहे है।  बुंदेलखंडी हैं ,इसलिए मुझे प्रिय है।  उन्हें हमारे शहर के माननीय अटल बिहारी वाजपेयी ने कोयला मंत्री भी बनाया था लेकिन वे अपने व्यक्तित्व से चिरकुटपन और सामंती मानसिकता को दूर नहीं कर पाए। 

तीन बच्चों के पिता प्रह्लाद पटेल करोड़पति भी हैं इसलिए उन्हें जनता अब भिखमंगी लगने लगी हैं। पटेल 1982  से युवा मोर्चा के जरिये राजनीति करते हुए जहां तक पहुंचे हैं ,वहां तक पार्टी के बहुत कम लोग पहुँच पाते हैं ,यहां तक की पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूपमिश्रा तक को हाशिये पर खड़ा कर दिया गया हैं लेकिन प्रह्लाद पटेल जितने  अटल जी के समय में महत्वपूर्ण थे उतने ही मोदी जी के समय में भी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन मुझे लगता हैं कि   अब पार्टी को उन्हें घर बैठा देना चाहिए,क्योंकि उन्होंने जनता को भिखमंगा तब कहा हैं जब माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास  मोदी पार्टी के जन प्रतिनिधियों को चार दिन पहले ही भोपाल में जमीन पर रहने की सीख देकर   गए थे।प्रह्लाद पटेल ने भी मोदीजी की क्लास अटेंड की थी लेकिन सबक कुछ नहीं सीखा,रहे पटेल के पटेल।  

आपको बता दें कि  पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के साथ भाजपा से बगावत कर चुके प्रह्लाद सिंह पटेल को भाजप्पा एक बार माफ़ कर चुकी हैं ,लेकिन इस बार सार्वजनिक रूप से जनता जनार्दन के अपमान के बाद भी उन्हें पार्टी महत्व देती रहेगी इसमें मुझे संदेह हैं। प्रह्लाद पटेल सच्चे सनातनी हिन्दू है।  नर्मदा परिक्रमा कर उन्होंने पूर्व मुख्य्मंत्री दिग्विजय सिंह की नकल भी की। लेकिन मुझे लगता हैं कि  प्रदेश का मुख्यमंत्री न बन पाने की कसक प्रह्लाद के मन में भी कहीं  रह गयी और शायद यही कुंठा अब उनके बयानों से झलकने लगी हैं।  कोई संघमित्र प्रह्लाद को समझाये कि  जनता जनार्दन कभी भिखमंगी नहीं होती ,असली भिखमंगे तो नेता होते हैं।  जनता पर फ्रीविज के जरिये सरकारी खजाना खाली करने के दोषी तो सरकार हैं। 

यदि जनता  टोकना भर कर मंत्रियों को ज्ञापन देती हैं तो इसका मतलब हैं कि  प्रदेश   में डॉ मोहन यादव की सरकार ढंग से काम नहीं कर रही।तो क्या ये मान लिया जाये कि  पटेल साहब आपने ही मुख्यमंत्री की सरकार को बेपर्दा करना चाहते हैं ? या उनका निशाना सीधे मुख्यमंत्री जी खुद हैं। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की किस्मत से जलने वाले पटेल साहब अकेले नेता नहीं है।  विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर हों या कैलाश विजयवर्गीय ,या डॉ नरोत्तम मिश्रा या और कोई भी यदि मोहन यादव से जलता हैं तो इसका अर्थ ये नहीं हैकि वो बौरा जाये और आय-बांय बोलने लगे । पटेल को समझना चाहिए कि  ये जनता जनार्दन ही हैं जो उन्हें हार बार चुनाव जिताती हैं। इसलिए जनता भिखारी नहीं बल्कि असली दाता हैं। माफ़ी मांगिये  जनता से पटेल साहब  !। कांग्रेस, पटेल साहब के बयान की निंदा कर खामोश हो गयी हैं,उसमें  इतनी कूबत नहीं कि  वो प्रह्लाद सिंह पटेल को माफ़ी मांगने के लिए मजबूर कर सके। 

@ राकेश अचल

रविवार, 2 मार्च 2025

राकेश अचल की रमजान पर ग़ज़ल

 


न सुनाई देने वाला हाहाकार भी सुनिए

 

आहें,चीखें और सिसकियाँ आदमी के दुःख की अभिव्यक्ति के वे रूप हैं जिसे सभी वाकिफ हैं,लेकिन कभी -कभी ऐसा भी होता है जब ये आहें,चीखें ,सिसकियाँ हमें सुनाई नहीं देती ,हालाँकि यदि हम इन्हें सुन सकें  तो इनका स्वरूप हृदय विदारक भी होता है तो कभी-कभी कारुणिक भी और कभी-कभी जुगुप्सा पैदा करने वाला . इन दिनों दुनिया भर में निवेशकों के बीच कोहराम है. कोई आहें भर रहा है ,कोई चीख रहा है और कोई सिसकियाँ लें रहा है लेकिन सुनाई किसी   को कुछ नहीं दे रहा .सबसे बुरी हालत तो हमारे अपने देश भारत की है .जहाँ शेयर बाजार  औंधें  मुंह पड़े हुए हैं और कोई किसी को ढांढस बांधने वाला नहीं है .

.शेयर बाजार में गिरावट समंदर में उठने वाले ज्वर-भाटे की तरह होती है.कभी-कभी ये सुनामी का रूप ले लेती है और जब सुनामी आती है तो सब कुछ तबाह हो जाता है. दुनिया के शेयर बाजारों में इस समय पिछले 40  दिन से सुनामी आयी हुई है. ट्रंपअनुशासन इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है .जानकार बताते हैं कि फरवरी की 28 तारीख को दिन की शुरुआत में ही सेंसेक्स में करीब 1000 अंकों की और निफ्टी में 300 अंकों की भारी गिरावट देखने को मिली. एक झटके में निवेशकों के 7.5 लाख करोड़ रुपए डूब गए.

बात कोई एक दिन की नहीं है.शेयर बाजार हर दिन डुबकियां ले रहा है . फरवरी 2025 में कुल 20 दिन शेयर बाजार खुला, जिसमें 16 दिन सेंसेक्स नेगेटिव रहा. पिछले 4 महीने में सेंसेक्स में 12 फीसद से ज्यादा गिरावट हुई है. प्रयागराज के कुम्भ में तो मान लीजिये की 62  करोड़ लोगों ने ही डुबकी लगाईं लेकिन शेयर बाजार में तो इसका कोई पुख्ता आंकड़ा ही नहीं है .

आपने आपको विश्वगुरु बताने वाले लोग भी देश के शेयर बाजार को डूबने से नहीं रोक पाए ,लेकिन एक अकेला चीन है जिसके  शेयर बाजार इस सुनामी से अप्रभावित दिखाई दे रहे हैं . चीन के ‘शंघाई स्टॉक एक्सचेंज कम्पोजिट इंडेक्स’ में अगस्त 2024 से जनवरी 2025 के बीच 15 प्रतिशत  का इजाफा हुआ है. जबकि हांगकांग के ‘हैंग सेंग इंडेक्स’ में सिर्फ एक महीने में 16  प्रतिशत  का उछाल दिखा है.आपको हक है कि  आप मुझसे सवाल करें  कि भारतीय बाजार में 28 साल की सबसे बड़ी गिरावट की क्या वजह है और पड़ोसी देश चीन का शेयर बाजार क्यों लगातार चढ़ता जा रहा है ?

सरकारी नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद शेयर बाजार में मगजमारी   करने वाले हमारे एक मित्र हैं डॉ रंजीत भाले. वे बताते हैं कि  फरवरी के आखिरी दिन निफ्टी ने गिरावट के मामले में 28 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है. साल 1996 के बाद से शेयर बाजार में कभी भी लगातार पांच महीने तक गिरावट नहीं देखी गई है. 1996 के बाद ये पहला मौका है जब शेयर बाजार में लगातार पांचवे महीने गिरावट देखने को मिली है.

पीएचडी उपाधि धारक डॉ भाले   भी इस सुनामी में  दूसरे निवेशकों की तरह अपना बहुत कुछ गंवा बैठे हैं .वे कहते हैं कि  उन्होंने निफ्टी के इतिहास में ऐसी गिरावट  1990 के बाद केवल दो बार पांच महीने या उससे ज्यादा समय तक गिरावट दर्ज होते देखी थी . अपनी याददाश्त पर जोर डालते हुए डॉ भाले बताते हैं कि   सितंबर 1994 से अप्रैल 1995 तक 8 महीनों में इंडेक्स 31.4 फीसदी गिर गया था. आखिरी बार पांच महीने की गिरावट 1996 में देखी गई थी. उस समय जुलाई से नवंबर तक निफ्टी में 26 फीसदी की गिरावट आई थी.

एक तरह से आर्तनाद कर रहे दुनिया भर के निवेशक इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को कोस रहे हैं ,क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद लगातार टैरिफ लगाने की धमकी दे रहे हैं. ऐसे में पूरी दुनिया में अनिश्चितता का माहौल है. भय और आतंक के इस माहौल में  में निवेशक को जहां अपना निवेश सुरक्षित नजर आता है, वो वहां जाते हैं. फिलहाल निवेशक को  डॉलर और सोने में ज्यादा  सुरक्षा नजर आ रही  है. यही वजह है कि भारतीय बाजार से देशी और विदेशी निवेशक अपना  पैसा निकाल रहे हैं, जिससे बाजार गिर रहा है.लेकिन हमारे नेता,हमारी सरकार मौन साधकर बैठी है .उसे बाजार से ज्यादा अपनी चिंता है .

किसी से भी ये बात छिपीन्हीं है की भारतीय बाजार से पैसा निकालकर ज्यादातर निवेशक  अमेरिका और चीनके बाजारों में लगा  रहे हैं.  चीनी बाजार से ज्यादा रिटर्न की उम्मीद है . दूसरी ओर अमेरिकी सरकार बॉन्ड के जरिएनिवेशक  को बेहतर रिटर्न का भरोसा दे रही है. ऐसे में जब तक अमेरिकी बॉन्ड बाजार आकर्षक बना रहेगा, विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों में बिकवाली यानी शेयर बेचना जारी रख सकते हैं.

मैंने शेयर बाजार में बहुत पहले कुछ पैसे लगाए थे ,लेकिन फिर मै इस मायाजाल से बाहर निकल आया .मेरी आपको यही सलाह है कि  यदि आप शेयर बाजार का हिस्सा हैं तो अभी चुप्पी साधकर बैठे रहें. घबड़ाहट में कोई फैसला न करें .बाजार में ठहराव आने दें ,हालाँकि इसके लिए आपको लाम्बा इन्तजार भी करना पड़ सकता है .लेकिन इन्तजार ही आपको इस सुनामी से उबार सकता है . हमारे  प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी हों या वित्त मंत्री निर्मला बाई वे आपकीकोई मदद नहीं कर सकते .उन्हें खुद अपनी कुर्सी कीपड़ी है .

@ राकेश अचल

शनिवार, 1 मार्च 2025

रमजान : क्या मस्जिदों पर भी फूल बरसायेंगे योगी ?

 

देश के 22  करोड़ मुसलमानों का पवित्र त्यौहार 'रमजान ' रविवार से शुरू हो रहा है। । प्रयागराज में समाप्त हुए महाकुम्भ के बाद का ये एक बड़ा त्यौहार  है। अब सवाल ये है कि क्या उत्तर पदेश की सरकार सूबे की मस्जिदों में सरकारी हैलीकाप्टर से नमाजियों पर पुष्पवृष्टि करेगी ? पढ़ने वाले कहेंगे कि  -क्या मूर्खतापूर्ण सवाल किया है ? मस्जिदों पर भी कोई फूल बरसता है। वहां तो केवल पुलिस की लाठियां बरसाई जाती हैं। 

रमजान का महीना महाकुम्भ की तरह हालाँकि पाप धोने का मौक़ा नहीं है लेकिन इस महीने में लोग  पूरे एक महीने उपवास कर लोककल्याण के लिए दुआएं करते हैं। पवित्र कुरआन का परायण करते हैं ,तरावीह की नमाज पढ़ते हैं और अपनी औकात के हिसाब से जकात [ दान ] भी देते हैं। एतेकाफ़ करते हैं और माह के अंत में मिलजुलकर ईद मनाते हैं। यानि ये आत्मशोधन और लोककल्याण की उपासना का महीना है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि  किसी भी सरकार के पास इस त्यौहार को मनाने   की न इच्छाशक्ति है और न खजाने में पैसा है ,न नमाजियों पर फूल बरसाने के लिए कोई हैलीकाप्टर। 

आम धारणा है कि  रमजान महीने की 23  वीं तारीख शबे कद्र है ,यानि इसी दिन कुरआन का अवतरण   हुआ। इसलिए इस महीने में कुरान  का पारायण किया जाता है ,जो अनपढ़ हैं वे कुरान सुनते हैं। रमजान के महीने में उपवास   को अरबी में सौम और फ़ारसी में रोजा कहा जाता है  जाता है। लोग फज्र की नमाज पढ़ते हैं ,सेहरी करते हैं। सूर्यास्त के बाद रोजा खोला जाता है यानि इफ्तारी की जाती है। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति के यहां भी रोजेदारों के लिए इफ्तार की दावतें होतीं थीं, लेकिन अब सरकार रोजा इफ्तार को पाप और तुष्टिअकरण मानती है इसलिए इस रिवायत को समाप्त कर दिया गया है। मौजूदा सरकार में तो एक भी मुसलमान मंत्री भी नहीं है जो बेचारे रोजदारों को इफ्तार की दावत दे दे। 

महाकुम्भ  में जैसे सनातनियों के पाप धुल जाते हैं वैसे ही माहे रमजान में रोजदारों के गुनाह माफ़ हो जाते हैं। रोजा   इफ्तार के लिए पकवानों की जरूरत नहीं होती,ये शृद्धा का मामला है।  अगर आपके पास कुछ नहीं है तो आप रोजेदार को एक खजूर और और  एक गिलास पानी देकर भी इफ्तारी करा सकते हैं। ये महीना मुस्तहिक़ लोगों की इमदाद करने का है। इस इमदाद को आप जकात कहें या फ़ित्रा कहें या सदक़ा कहें कोई फर्क नहीं पड़ता। रोजा मुसलमानों को 'जब्ती नफ़्स ' यानि आत्म नियंत्रण   करना सिखाता है।परहेजगारी सिखाता है  यानि ये एक तरह की हठ साधना है। 

रमजान का आगाज चंद्र   दर्शन से होता है और समापन भी चंद्र दर्शन से होता है। ठीक उसी तरह मुसलमान चण्द्रमा की प्रतीक्षा करते हैं जैसे करवा   चौथ पर सनातनी विवाहिताएं चन्द्रमा की प्रतीक्षा करती हैं।  यानि चाँद सियासित  नहीं करता । चाँद दोनों को क्या सभी को दर्शन देता है। चन्दा सबका है। चाँद मियां का भी और चंद्रशेखर का भी। सनातनियों का भी और गैर सनातनियों का भी ।  आप कह सकते हैं कि  काफिरों का भी होता है चाँद। वैसे रमज़ान इस्‍लाम कैलेंडर का नौवां महीना होता है।।  माना जाता है कि सन् 610 में लेयलत उल-कद्र के मौके पर मुहम्‍मद साहब को कुरान शरीफ के बारे में पता चला था।  यूं रंजन का मतलब प्रखर होता है। 

रोजा हिन्दुओं के अनेक कठिन व्रतों जैसा ही है।  हमारे इशाक मियाँ के अब्बू बताया करते थे कि रोज़े का मतलब यह नहीं है कि आप खाएं तो कुछ न, लेकिन खाने के बारे में सोचते रहें. रोजे के दौरान खाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।  इस्लाम के अनुसार पांच बातें करने पर रोज़ा टूटा हुआ माना जाता है. ये पांच बातें हैं- बदनामी करना, लालच करना, पीठ पीछे बुराई करना, झूठ बोलना और झूठी कसम खाना। अब्बू कि मुताबिक रोजे का मतलब बस उस अल्लाह के नाम पर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है। इस दौरान आंख, कान और जीभ का भी रोज़ा रखा जाता है।  इस बात का मतलब यह है कि न ही तो इस दौरान कुछ बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें। रोजे का मुख्य नियम यह है कि रोजा रखने वाला मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान कुछ भी न खाए। रोजा मन सा वाचा,कर्मणा आत्मनियंत्रण का अवसर है। काम,क्रोध,मोह और लोभ से मुक्ति का संकल्प  लेकर रोजा रहा जाता है। मै अ-स्नानी  सनातनी हूँ ,लेकिन जब -तब अपने मुस्लिम मित्रों को इफ्तार की छोटी-मोती दावत देकर थोड़ा-बहुत पुण्य हासिल करने की कोशिश करता हूँ। ऐसी कोशिशें ही सामाजिक सद्भाव कि लिए जरूरी हैं। ऐसी कोशिशें सरकारों को भी करना चाहिए ,लेकिन सरकारें तो सनातनियों की हैं  और उन्हीं  के लिए काम करतीं हैं। उनका तुष्टिकरण में नहीं सन्तुष्टिकरण में यकीन बढ़ता जा रहा है। सभी रोजेदारों को बहुत-बहुत मुबारकवाद। 

@ राकेश अचल

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

क्या फ़िल्में बदल पाएंगी इतिहास की इबारत ?

बात फिल्मों की है लेकिन सियासत की भी है ।  आजकल देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के तमाम विकल्पों पर एक साथ काम चल रहा है।  फ़िल्में भी इसका एक मोर्चा है। फिल्मों के जरिये इतिहास के पुनर्शोधन की कोशिश देखकर हैरानी भी होती  है और हंसी भी आती है।  ये मामला 1941  से चलकर अब 2025  में आ गया है। सिकंदर [1941  ] से शुरू हुई ये यात्रा अब छावा [2025  ]तक आ पहुंची है। 

भारत  में कहा जाता है कि पहली ऐतिहासिक किरदार पर बनी पहली फिल्म सिकंदर थी। 1941  में जब ये फिल्म बनी तब तकनीक का विकास बहुत ज्यादा नहीं हुआ था इसलिए तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें वो रंग नहीं भरे जा सके जो आज की फिल्म छावा में भरे जा सके हैं। हिंदुस्तान में फ़िल्में सियासत का औजार नहीं थीं ,वे सामाजिक  चेतना का औजार जरूर थी।  तब इतिहास को लेकर नजरिया भी हिन्दू-मुसलमान का नहीं था ,इसीलिए सोहराब मोदी की फिल्म में अपने जमाने के स्थापित अभिनेता पृथ्वीराज कपूर सिकंदर की भूमिका भी सहजता से कर पाए।  हमारी स्मृति की पहली ऐतिहासिक फिल्म तो ' मुगले-आजम ' थी। इस फिल्म को भारतीय दर्शकों ने न सिर्फ अभिनय के लिए बल्कि गीत  -संगीत के लिए भी एक बार नहीं  बल्कि बीसियों बार देखा। बार-बार देखा। हजार बार देखा। 

मुगले -आजम के जरिये भी मुगल सम्राट अकबर को महान बताने की कोशिश नहीं की गयी थी ,बल्कि ये फिल्म प्रेम और सत्ता के बीच जंग की यशोगाथा थी। इस फिल्म में बामुश्किल केवल एक गीत रंगीन फिल्माया जा सका था। लेकिन ये फिल्म सचमुच कालजयी साबित हुई । इसे उन लोगों ने भी देखा जो आज देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए जी-जान से लगे हैं और खुलकर फिल्मों का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए कर रहे हैं। 

मुझे लगता है कि  पिछले 64  साल में मुगले  आजम की कामयाबी के बाद दर्जनों ऐतिहासिक विषयों पर फ़िल्में बनीं लेकिन वे दर्शकों के लिए थीं ,सियासत  केलिए नहीं।आपको हैरानी होगी कि  मुगले आजम बनाने वाले के आसिफ मुसलमान होते हुए भी इस फिल्म  को हिन्दू-मुसलमान के लिए नहीं बना पाए ।  क्योंकि इस फिल्म की कथावस्तु प्रेम था जो दुनिया के हर मजहब की रीढ़ होता है। के आसिफ ने अकबर को अल्लाह की तरह महान बनाने की कोशिश नहीं की बल्कि अकबर को मुहब्बत के समाने नतमस्तक होते दिखाया ,लेकिन अब जो फ़िल्में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बन रहीं हैं उनका एकमेव मकसद दर्शकों के मन में एक खास मजहब के लोगों के खिलाफ घृणा पैदा करना है ।  दुःख की बात ये है कि  ऐसे  प्रयासों को सत्ता का संरक्ष्ण भी हासिल है । 

हिंदुत्व की स्थापना के लिए शिक्षा में परिवर्तन हो रहा है ,इतिहास का पुनर्लेखन भी हो रहा है और ' छावा' जैसी फ़िल्में भी बनाई जा रहीं हैं।  मैंने 'छावा ' बार-बार देखी। तकनीक ,अभिनय और पटकथा की दृष्टि से ' छावा ' बनाने में सचमुच मेहनत की गयी है। लेकिन इसके बावजूद 'छावा ' ' मुगले -आजम ' की बराबरी नहीं कर पाती। क्योंकि छावा बनाते वक्त निर्माता का नजरिया केवल मनोरंजन या अर्थोपार्जन नहीं बल्कि सियासत भी है ,जो छिपाये नहीं छिप रहा। फिल्म अपने उद्देश्य में सफल भी होती दिखाई दे रही है।  ' छावा ' को वे दर्शक भी पर्याप्त संख्या में मिल रहे हैं जो हिन्दू राष्ट्र के समर्थक हैं। ये अच्छी बात है या नहीं ,कह पाना कठिन है। 

हम उस पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने मुगले -आजम के बाद अनारकली भी देखी और रजिया सुल्तान भी। जोधा-अकबर भी देखी और बाजीराव  मस्तानी भी। हमने पद्मावत भी देखी और मणिकर्णिका भी। हम उन दर्शकों में से हैं जिन्होंने तानाजी दी अनसंग वारियर भी देखी और अब छावा भी देख रहे हैं।  फिल्मे ही नहीं अब तो धारावाहिकों का इस्तेमाल भी मुगलों को क्रूर और हिन्दू विरोधी प्रमाणित करने के लिए किया जा रहा है । ऐसे ही धारावाहिकों में हाल ही में हमारी नजर पृथ्वीराज पर भी पड़ी।  इन सबका मकसद इतिहास का शुद्दिकरण है। इतिहास का भगवाकरण है।  मुमकिन है कि  आपको मेरी ये धारणा बुरी और राष्ट्रविरोधी लगे किन्तु जो है सो है ,इसे बदला नहीं जा सकता।

हमारे देश में ऐसे सियासदां भी हैं जो कह चुके हैं की महात्मा गाँधी को ' गांधी ' फिल्म बनने से पहले कोई नहीं जानता था। ऐसे लोगों के लिए छावा जैसी फ़िल्में ही सच हैं।ऐसे दर्शक भी हैं जो गाँधी बनने से पहले गाँधी को और छावा बनने से पहले संभाजी राव को नहीं जानते थे।  फिल्मों के जरिये जनता के मन में एक मजहब के प्रति नफरत बोने की कोशिश हास्यास्पद भी है और निंदनीय भी,लेकिन कुछ कि लिए सराहनीय भी।  क्योंकि आज जो मुसलमान इस देश में है वो न औरंगजेब की जेब से निकला है और न महमूद गजनबी का डीएनए उसमें है। औरंगजेब  को मरे  हुए 318  साल हो गए हैं और  मेहमूद गजनबी को मरे दो एक हजार साल से भी ज्यादा हो गए हैं।  अब हमारे बीच जो मुसलमान हैं वे न मुगल हैं और न अफगानी या ईरानी। वे विशुद्ध भारतीय हैं और कोई भी फिल्म  उनकी भारतीयत नहीं बदल सकती। 

इतिहास  में भारतीय नायकों की एक लम्बी फेहरिस्त है जो स्वराज्य के लिए कुर्बान हो गए लेकिन किसी आततायी के आगे झुके नहीं ,लेकिन वे न कांग्रेसी थे और न भाजपाई। उनके समाने अखंड भारत भी नहीं था। सबका   अपना-अपना राज  था और वो ही स्वराज  था। ऐसे महान नायकों के किस्से हमारे बच्चों को जानना ही चाहिए ,लेकिन इनके जरिये बच्चों के कोमल मन में किसी जाति या मजहब के खिलाफ घृणा पैदा करने की कोशिश भी नहीं की  जाना चाहिए। क्योंकि हमारे इतिहास में बहुत से ऐसे किरदार भी हैं जो विजातीय होते हुए भी स्वराज के लिए लड़े और मरे। हजार,पांच सौ साल पुराने इतिहास की मरम्मत कर कोई आज की पीढी का भविष्य  नहीं बना सकता। लेकिन कोशिश तो कोशिश है। इस तरह की कोशिशें केवल सैकड़ों साल पुराने इतिहास को लेकर ही नहीं हुईं बल्कि आज के कश्मीर ,केरल और मणिपुर को लेकर भी हुईं हैं। इन फिल्मों से हुए नफा-नुक्सान के बारे में दुनिया जानती है। 

बहरहाल आज के दौर में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनाई जा रही फ़िल्में  हों या धारावाहिक तकनीक और अभिनय के हिसाब से बहुत प्रभावी हैं। ऐतिहासिक  किरदारों में भगवा   ब्रिगेड में शामिल अक्षय कुमार भी शामिल हैं और संजय दत्त भी। पहले इनकी जगह मनोज कुमार यानि भारत कुमार हुआ करते थे ,लेकिन वे भारतीयता और भारतीय मूल्यों को लेकर फ़िल्में  बनाते थे,हिन्दू-मुसलमान को लेकर नहीं। इसलिए जब भी ऐतिहासिक फ़िल्में देखें तब ये जरूर ध्यान में रखें कि  आप फिल्म देख रहे हैं न की इतिहास पढ़ रहे हैं। इतिहास चंद फिल्मों के जरिये नहीं बदला जा सकता,नहीं जाना जा सकता। 

@ राकेश अचल

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