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शुक्रवार, 13 जून 2025

शेष नल-जल योजनाओं का काम जल्द से जल्द पूर्ण करें -विवेक कुमार

ग्वालियर 13 जून ।  जिले में शेष नल-जल योजनाओं का काम जल्द से जल्द पूर्ण कराने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री विवेक कुमार ने शुक्रवार को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों की बैठक लेकर जिले के 70 ग्रामों में जल जीवन मिशन के तहत निर्माणाधीन नल-जल योजनाओं की समीक्षा की। उन्होंने ग्रीष्म ऋतु को ध्यान में रखकर नल-जल योजनाओं को युद्ध स्तर पर पूर्ण करने के निर्देश दिए। 

बैठक में जिला पंचायत के डीपीआरओ, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री व उपयंत्री तथा संबंधित ग्राम पंचायतों के सरपंच व सचिव मौजूद थे। खासतौर पर रेड व ओरेंज जोन में चिन्हित की गई जिले की ग्रामीण नल-जल योजनाओं की समीक्षा बैठक में की गई। बैठक में मौजूद सरपंचों व सचिवों से कहा गया कि वे नल-जल योजनाओं पर व्यक्तिगत नजर रखें। सरकार की मंशा के अनुरूप गाँव के हर घर में नल से जल पहुँचना चाहिए। 


अकल्पनीय होता है हवा में हर हादसा

 

अहमदाबाद में एयर इंडिया के वोइंग विमान के क्रेश होने की खबर जब वायरल हुई उस समय में एक सुपरफास्ट रेल में सफर कर रहा था. हादसे की खबर सुनकर मै सिहर उठा. थोडी ही देर में हादसे की तस्वीरें भी आना शुरू हो गई ं जिन्हे देख कुछ देर के लिए लगा जैसे सांस रुक रही है. बोइंग में 242यात्री थे और जीवित बचा सिर्फ 1.इसे चमत्कार कहा जाए तो कम नहीं होगा.

हर हादसा एक त्रासदी होता है और हर मौद दुखद लेकिन कोई भी हवाई त्रासदी सबसे दुखद होती है, क्योंकि हवाई हादसों में किसी के भी बचने की संभावना नगण्य होती है.

बात 12 जून 2025 की है.अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास मेघानीनगर इलाके में एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 (बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर) टेकऑफ के कुछ सेकंड बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह विमान अहमदाबाद से लंदन (गैटविक) जा रहा था और इसमें 242 लोग सवार थे, जिनमें 169 भारतीय, 53 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली, और 1 कनाडाई नागरिक शामिल थे। हादसे में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी समेत 204 लोगों की मौत की पुष्टि हुई, जबकि दीव के रमेश विश्वास कुमार एकमात्र जीवित बचे।

विमान ने दोपहर 1:38 बजे रनवे 23 से उड़ान भरी और तुरंत MAYDAY संदेश भेजा, जिसके बाद एटीसी से संपर्क टूट गया।यह  विमान मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल बिल्डिंग से टकराया, जिससे आग लग गई और घना काला धुआं उठा। मलबा 1.5 किमी तक फैला।प्रारंभिक जांच में इंजन की तकनीकी खराबी, पायलट की गलती, या टेकऑफ के दौरान बाधा को संभावित कारण बताया गया।बचाव और राहत कार्य:एनडीआरएफ, बीएसएफ, सेना, और फायर ब्रिगेड की टीमें तुरंत मौके पर पहुंचीं। 7 दमकल गाड़ियों ने आग बुझाने का काम शुरू किया।घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया, और ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया।अहमदाबाद हवाई अड्डा अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया, जिससे यात्रियों को परेशानी हुई। रेलवे ने विशेष ट्रेनें शुरू कीं।

केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू और गृह मंत्री अमित शाह अहमदाबाद पहुंचे। जांच के लिए डीजीसीए और अन्य एजेंसियां सक्रिय हैं।प्रधानमंत्री भी संभवतः मौके पर जाएंगे.टाटा ग्रुप ने मृतकों के परिजनों के लिए 1 करोड़ रुपये मुआवजे की घोषणा की। इस हवाई हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया। पीएम मोदी, सीएम भूपेंद्र पटेल, और अन्य नेताओं ने शोक व्यक्त किया।सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दुर्घटना की भयावहता दिखी। कुछ यात्रियों ने हादसे से पहले विमान में खामियों की शिकायत की थी, जिसकी जांच की मांग उठी।।

मै पिछले दो दशक में सैकडों घंटे की हवाई यात्रा का साक्षी हूँ. हवा में तीस चालीस हजार फीट ऊपर घंटों तक उडना जान हथेली पर रखने जैसा होता है, किंतु उन्नत तकनीक और घोर प्रशिक्षण से गुजरे अनुभवी पायलट हर विमान यात्री के लिए देवदूत जैसे होते हैं. विमान बवंडर में फंसे या बादलों में प्राण कंठ में आ जाते हैं. आपदा के समय बताए जाने वाले तमाम सुरक्षात्मक उपाय उस समय धरे रह जाते हैं जब कोई भी विमान हादसे का शिकार होता है.. ऐसे हादसों के बाद लाल बहादुर शास्त्री और माधवराव सिंधिया जैसे मंत्री नैतिकता के चलते अपने पदों से इस्तीफे तक दे देते हैं. लेकिन ये गुजरे जमाने की बात हो चुकी है..

टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान हादसे सबसे आम हैं, वर्ष 2023 के वैश्विक आंकड़ों (109 हादसों में 37 टेकऑफ के दौरान) से पता चलता है।यह एक दुखद घटना है, और जांच से हादसे के सटीक कारणों का पता चलने की उम्मीद है।हाल के आंकड़ों के अनुसार, हवाई यात्रा को परिवहन का सबसे सुरक्षित साधन माना जाता है, लेकिन दुर्घटनाओं का प्रतिशत समझने के लिए कुछ तथ्य महत्वपूर्ण हैं:एविएशन सेफ्टी नेटवर्क के अनुसार, 2017 से 2023 के बीच दुनियाभर में 813 विमान हादसे हुए, जिनमें 1,473 यात्रियों की मौत हुई। यह संख्या कुल उड़ानों की तुलना में बहुत कम है। 2023 में, इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक, 3.7 करोड़ से अधिक उड़ानें हुईं।एसोसियेशन का दावा है कि यदि कोई व्यक्ति 1,03,239 साल तक हर दिन विमान में सफर करे, तो एक घातक दुर्घटना की संभावना होगी। 

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी  के एक अध्ययन (2018-2022) के अनुसार, 1.34 करोड़ यात्रियों में से केवल 1 को घातक दुर्घटना का जोखिम है। 2024 में, चार घातक दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जो 2023 (कोई घातक हादसा नहीं) से अधिक थीं। फिर भी, कुल उड़ानों की संख्या के आधार पर दुर्घटना दर कम रही।पिछले पांच सालों में भारत में केवल एक घातक विमान हादसा हुआ, जिसमें यात्रियों की मौत हुई। 2017-2023 के बीच भारत में 14 हादसे दर्ज किए गए। सबसे ज्यादा हादसे टेक-ऑफ (37%) और लैंडिंग (30%) के दौरान होते हैं। अर्थात हवाई यात्रा की दुर्घटना दर अन्य परिवहन साधनों (जैसे सड़क, रेल) की तुलना में बहुत कम है। सड़क हादसों में भारत में 2022 में 61,000 से अधिक मौतें हुईं, जबकि हवाई हादसों में यह संख्या नगण्य थी। सख्त नियम, उन्नत तकनीक, और प्रशिक्षण के कारण हवाई यात्रा सुरक्षित बनी हुई  है.लेकिन हवाई दुर्घटना सबसे भयावह होती है अहमदाबाद की दुर्घटना क तरह.

@राकेश अचल

बुधवार, 11 जून 2025

बिहार : टिमटिमाते चिराग में रोशनी नहीं


अपने जमाने के मौसम विज्ञानी रानीतिज्ञ कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान के पुत्र लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान  बिहार की राजनीति में अपना चिराग जलाना चाहते हैं. चिराग ने  2025 बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की पुष्टि  कर दी है.बिहार की राजनीति में चिराग की घोषणा से हलचल तो हुई है लेकिन बिहार की चुनावी आंधी में अपनी लोकप्रियता का चिराग जला पाएंगे ये कहना बहुत कठिन है 

डत रविवार को  चिराग पासवान बिहार के आरा  पहुंचे.दरअसल चिराग की रणनीति, बिहार की बदलती राजनीतिक परिदृश्य और एनडीए गठबंधन की आंतरिक राजनीति को लेकर पशोपेश बढाने वाली है. अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से कोई ठोस आश्वासन दिया होगा, अन्यथा चिराग अपना मुँह नहीं खोलते. . आज हर कोई यह सोचने को विवश है कि चिराग पासवान केंद्र में मिले हुए मंत्री पद को छोड़कर बिहार की अनिश्चित राजनीति में आखिर क्यों आना चाहते हैं? हालांकि विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ने की कोई जरूरत वैसे तो नहीं है. पर यदि वाकई में अगर उन्हें बिहार में विधायक बनकर राजनीति करनी है तो उनकी संवैधानिक मजबूरी होगी कि वे अपना मंत्री पद और सांसदी दोनों ही छोड़ दें.

सब जानते हैं कि भाजपा महाराष्ट्र की तर्ज पर अपनी सहयोगी जेडीयू को चकमा देकर बिहार में अपनी सरकार बनाने की फिराक में है.भाजपा ने महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को आखिर मुख्यमंत्री पद से हटाकर ही दम लिया था.

लेकिन, सवाल  ये  है कि क्या बीजेपी ऐसा चाहेगी? और ये भी महत्वपूर्ण है कि बदले में चिराग पासवान से बीजेपी की क्या अपेक्षा होगी?

बीजेपी के लिए गठबंधन सहयोगी क्या मायने रखते हैं, थोड़ा पीछे जाकर ट्रैक रिकॉर्ड देखा जा सकता है. चिराग पासवान खुद भी पांच साल पुराने भुक्तभोगी हैं. 

देखा जाये तो वो भी कुर्बानी जैसी ही रही है. एक दौर था जब वो उद्धव ठाकरे और शरद पवार की ही तरह पार्टी से भी हाथ धो बैठे थे, दिल्ली के सरकारी बंगले से भी बेदखल होना पड़ा था - और काफी इंतजार के बाद धीरे धीरे चीजें मिल पाईं. जब नीतीश कुमार को बर्बाद करने के लिए इतना झेलना पड़ा, तब तो नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बनने के लिए तो और भी बड़ी कुर्बानी देनी पड़ेगी. और बड़ी कुर्बानी तभी मानी जाएगी जब चिराग पासवान अपनी पार्टी दान में दे दें, लेकिन किसी और को नहीं, सिर्फ बीजेपी को. मतलब, बीजेपी में ही विलय कर लें. ऐसे प्रयासों की चर्चा जेडीयू को लेकर भी रही है, और वो भी दोनों तरफ से. लेकिन क्या चिराग पासवान भी तैयार होंगे? 

ये तो पूरी तरह साफ है कि यदि भाजपा ने चिराग पासवान को मोहरा बनाया तो राजद के तेजस्वी यादव की राजनीति बुरी तरह प्रभावित होगी,. तेजस्वी या तो भाजपा के साथ ही चिराग को रास्ते से हटाएं अन्यथा उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबा इंतजार और कड़ा संघर्ष भी करना होगा.

तेजस्वी यादव के लिए ये चुनाव ऐसा मौका है, जब नीतीश कुमार की उम्र और राजनीति दोनों ही ढलान पर है. जाति जनगणना भी होने जा रही है. बीजेपी की तरफ से कोई मजबूत दावेदार भी सामने नहीं आया है - और सर्वे में मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा चेहरा बन चुके हैं.  ऐसे माहौल में चिराग पासवान को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बना दिया जाता है, तो तेजस्वी यादव के लिए नये सिरे से शुरुआत करनी होगी.

चिराग पासवान राजद के तेजस्वी के हम उम्र हैं. लेकिन उनका रास्ता इतना निरापद भी नहीं है. यदि भाजपा चिराग की रोशनी में सत्ता सिंहासन हासिल करने की कोशिश करती है तो जीतन माझी भी चुप बैठने वाले नहीं हैं. वे भी मुमकिन है कि एन वक्त पर भाजपा का साथ छोडकर राजद के साथ खडे हो जाए्. माझी यदि भाजपा को मझधार में छोडकर जाते हैं तो भाजपा की मुश्किल और बढ सकती है.सवाल ये है कि क्या वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सब कुछ मौन होकर देखते रहेंगे?

सब जानते हैं कि नीतीश के पेट में दाढी है. उन्हे एकनाथ शिंदे की तरह मूषक बनाना आसान नहीं है. वे भाजपा द्वारा बिछाए गंये जाल को कुतर कर भाग भी सकते हैं. नीतीश की बैशाखी के सहारे केंद्र में टिकी सरकार को अस्थिर नही करना भाजपा की जरुरत भी है और मजबूरी भी. भाजपा का सिंदूर खेला कुछ भी दाव पर लगा सकता है क्योंकि भाजपा ढाई दशक से बिहार की सत्ता हासिल करने का सपना देखरही है.

@  राकेश अचल 


सोमवार, 9 जून 2025

डीएमके को क्यों नहीं हरा सकती भाजपा?

 

राजनीति में महात्वकांक्षा का बडा महत्व है और इस समय भाजपा देश की सबसे बडी महात्वाकांक्षी राजनीतिक दल है. भाजपा रोडमैप बनाकर राजनीति करती है और भाजपा ने अभी से मान लिया है कि भाजपा बिहार भले जीत ले लेकिन तमिलनाडु को नहीं जीत सकती. भाजपा के लिए तमिल अस्मिता को सिंदूरी रंग में रंगना आसान नहीं है. इसीलिए भाजपा के चाणक्य कहिये या भामाशाह यानि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मान लिया है कि डीएके को हराना भाजपा के बूते की बात नहीं है लेकिन शाह को भरोसा है कि तमिल जनता ही डीएमके को हराएगी.

अमित शाह के हाव-भाव, बोलचाल से मैं रत्तीभर पसंद नहीं करता किंतु मै उनकी हाडतोड मेहनत और  दृढ इच्छाशक्ति का मुरीद हूँ. किसी दूसरे दल के पास अमित शाह जैसा मेहनती नेता नहीं है. शाह दूर की कौंडी लेकर चलते हैं. आलोचनाओं से घबडाते नहीं हैं. तमिलनाडु को लेकर भी उन्होने जमीनी हकीकत जान ली है लेकिन तमिलनाडु में सत्ता हासिल करने का लक्ष्य नहीं छोडा है.

अमित शाह के सपनों वाले तमिलनाडु की राजनीति के बारे में जान लीजिये. तमिलनाडु में अगले साल 2026में विधानसभा चुनाव हैं.तमिलनाडु का राजनीतिक परिदृश्य 2025 में द्रविड़ विचारधारा, क्षेत्रीय अस्मिता, और केंद्र-राज्य संबंधों पर केंद्रित है। तमिलनाडु में प्रमुख राजनीतिक दलद्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम यानि डीएमके वर्तमान में सत्तारूढ़ पार्टी है. एम.के. स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं। आपको याद होगा कि वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने 10 साल बाद सत्ता हासिल की थी , जिसका कारण एआईएडीएमके की सत्ता-विरोधी लहर और गठबंधन रणनीति थी। डीएमके तमिल अस्मिता, भाषाई गौरव, और सामाजिक न्याय पर जोर देती है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति  2020 के त्रिभाषा फॉर्मूले का विरोध करती है, इसे हिंदी थोपने की साजिश मानते हुए हाल ही में  डीएमके ने केंद्र सरकार पर परिसीमन और जनगणना 2027 को लेकर तमिलनाडु के संसदीय प्रतिनिधित्व को कम करने का आरोप लगाया है।

अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम प्रमुख विपक्षी दल है.जिसका नेतृत्व एडप्पादी के. पलानीस्वामी  कर रहे हैं। 2021 में सत्ता गंवाने के बाद से ही एआईएडीएमके 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में सक्रिय है। हाल ही में केंद्र में बीजेपी के साथ गठबंधन करने का ऐलान किया है  अमित शाह इस गठबंधश के योजनाकार हैं. हालांकि इस गठबंधन को लेकर दोनों दलों में कुछ मतभेद भी हैं।, खासकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई इन मतभेदों की जड हैं. आपको पता ही है कि भारतीय जनता पार्टी का तमिलनाडु में  प्रभाव सीमित रहा है, लेकिन के. अन्नामलाई के नेतृत्व में पार्टी ने वोट शेयर को 3.66 फीसदी से बढ़ाकर 11.1 फीसदी किया है।

तमिलनाडु में द्रविड़ दलों की मजबूत जड़ों के कारण बीजेपी को सत्ता में आने के लिए कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।बीजेपी ने तमिल संस्कृति और रामसेतु जैसे प्रतीकों के जरिए अपनी पैठ बनाने की कोशिश की, लेकिन हिंदी विरोध और द्रविड़ अस्मिता जैसे मुद्दों ने इसे मुश्किल बनाया।तमिलगा वेट्री कझगम तमिल सुपरस्टार विजय ने 2024 में अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की, जिसे 2026 के विधानसभा चुनाव में एक नया विकल्प माना जा रहा है।विजय की पार्टी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रही, लेकिन क्षेत्रीय मुद्दों और सामाजिक कल्याण पर जोर दे रही है। सर्वे में विजय को 18 फीसदी लोगों की पसंद बताया गया, जो डीएमके के बाद दूसरा स्थान है। 

तमिलनाडु में हिंदी विरोध का लंबा इतिहास रहा है, जो 1937 से शुरू हुआ।2025 में डीएमके ने नयी शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले को हिंदी थोपने की कोशिश करार दिया, जिसे केंद्र ने खारिज किया। ।स्टालिन ने इसे तमिल अस्मिता और द्रविड़ गौरव से जोड़कर "भाषा युद्ध" की बात कही।परिसीमन और जनगणना 2027 के मुद्दे पर भी स्टालिन भाजपा पर हमलावर हैं.स्टालिन ने केंद्र पर आरोप लगाया कि 2027 की जनगणना और परिसीमन से तमिलनाडु की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे दक्षिण भारत की राजनीतिक ताकत कमजोर होगी।केंद्र ने इन आशंकाओं को निराधार बताया और गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया कि दक्षिणी राज्यों को नुकसान नहीं होगा।तमिलनाडु सरकार और केंद्र के बीच टकराव के तमाम मुद्दे है.

स्टालिन ने प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को, खासकर  तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन मामले में, राज्य के अधिकारों में दखल बताया। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगाई, इसे संघीय ढांचे का उल्लंघन माना।डीएमके ने केंद्र पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाया, जबकि बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई बताती है.तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड़ विचारधारा और तमिल भाषा का गौरव केंद्रीय मुद्दा रहा है। डीएमके और एआईएडीएमके दोनों इस अस्मिता को मजबूत करने में लगे हैं।तमिलनाडु का नाम "तमिझगम" करने का प्रस्ताव भी विवाद का कारण बना, जब राज्यपाल आरएन रवि ने इसे समर्थन दिया, जिसे डीएमके ने राष्ट्रीय एकता के खिलाफ माना।

सत्तारूढ़ दल के रूप में डीएमके को अपनी सामाजिक कल्याण योजनाओं और तमिल अस्मिता के मुद्दे पर भरोसा है, लेकिन कर्ज का बोझ और भ्रष्टाचार के आरोप चुनौतियाँ हैं.हालांकि  एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन 2026 में मजबूत चुनौती पेश कर सकता है, लेकिन अन्नामलाई और पलानीस्वामी के बीच तनाव गठबंधन की एकजुटता को प्रभावित कर सकता है। नवगठित टीवीके के नेता विजय की लोकप्रियता और युवा समर्थन नई राजनीतिक गतिशीलता ला सकता है, लेकिन संगठनात्मक अनुभव की कमी एक चुनौती होगी। आपको पता ही होगा कि सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन का गहरा प्रभाव है, जो 1916 में गैर-ब्राह्मण घोषणापत्र से शुरू हुआ।डीएमके और AIADMK दोनों द्रविड़ विचारधारा से निकले हैं, लेकिन छोटे दल जैसे पीएमकेवीसीकेऔर एमडीएमके भी जातीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रभाव रखते हैं।तमिल भाषा और संस्कृति के प्रति संवेदनशीलता राजनीतिक रणनीतियों का आधार रही है। अब देखना ये है कि भाजपा तमालनाडु में खेला कर पाती है या नहीं?

@ राकेश अचल

रविवार, 8 जून 2025

क्या मुमकिन है टूटे दलों का एकीकरण ?

 

महाराष्ट्र में शिवसेना के तीन धडों के एकीकरण की सुगबुगाहट के साथ ही ये मुद्दा भी गर्म होने लगा है कि क्या शिव सेना समेत देश के तमाम विखंडित राजनीतिक दलों का एकीकरण मुमकिन है?  क्या एकीकरण का बिस्मिल्लाह शिव सेना से ही होगा ?

शिवसेना नेता और बालासाहेब के पुराने भक्त गजानन कीर्तिकर ने  शिवसेना के एकीकरण का सुर्रा तब छोडा जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की शिवसेनाओं के एकीकरण की सुगबगाहट तेज हुई. कीर्तिकर ने कहा,कि ''बालासाहेब ठाकरे के जीवित रहते हुए भी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक करने की कोशिश हुई थी लेकिन शिवसेना का विभाजन हो गया. शिवसेना और मनसे के अलग-अलग होने से शिवसेना को नुकसान हुआ. अब समय है कि ये दोनों एक साथ आएं. ठाकरे नाम एक ब्रांड है, और वह ब्रांड बना रहना चाहिए. ऐसी इच्छा पुराने शिवसैनिकों की है.'

शिंदे गुट के नेता गजानन कीर्तिकर ने कहा, “क्या ये दोनों (उद्धव ठाकरे-राज ठाकरे) साथ आएंगे? यह नहीं मालूम, लेकिन सुना है कि दोनों ने कुछ शर्तें रखी हैं. उद्धव ठाकरे ने कहा है कि राज ठाकरे को महायुति (बीजेपी गठबंधन) छोड़ना चाहिए, तो वहीं राज ने कहा है कि उद्धव को कांग्रेस का साथ छोड़ना चाहिए. दोनों की बातें सही हैं.” गजानन कीर्तिकर ने लोकसभा चुनाव के दौरान एकनाथ शिंदे की शिवसेना के लिए प्रचार भी किया था और शिंदे की उपस्थिति में शिवसेना में दोबारा एंट्री ली थी. 

 महाराष्ट्र में शिवसेना के तीन हिस्से हो गए है. एक शिवसेना उद्धव ठाकरे की है, दूसरी राज ठाकरे की है और तीसरी एकनाथ शिंदे की. उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी), जो एमवीए के साथ है. एमवीए में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की पार्टी एनसीपी है.  एकनाथ शिंदे गुट की पार्टी शिवसेना जो महायुति के साथ है. इसमें बीजेपी, शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी है.तीसरी शिवसेना राज ठाकरे की है. उनकी शिवसेना  मनसे के नाम से जानी जाती है. शिवसेना पहले पारिवारिक विवाद के चलते टूटी थी बाद में भाजपा ने उद्धव ठाकरे की सेना को दो फांक कर दिया था.

कीर्तिकर का दावा है कि, ''एकनाथ शिंदे, शिवसेना प्रमुख बालासाहेब की विचारधारा को लेकर ही पार्टी से बाहर निकले थे—जैसे हिंदुत्व, आक्रमक शैली, राष्ट्रीयता और मराठी लोगों का सर्वांगीण विकास लेकिन बीजेपी के साथ होने की वजह से आगे बढ़ने में उन्हें कई अड़चनें आती हैं. दोनों (उद्धव-राज) की शर्तें सही हैं, क्योंकि ये बाधाएं हैं जो अखंड शिवसेना बनने से रोक रही हैं. जब तक ये दूर नहीं होतीं, तब तक मजबूत शिवसेना नहीं बन पाएगी.”

आपको याद होगा कि एनडीए में पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना थी, फिर उन्होंने साथ छोड़ा, और फिर एकनाथ शिंदे ने उसमें प्रवेश किया. दोनों बालासाहेब की विचारधारा को आगे ले जाने की बात करते हैं. लेकिन मतदाता और कार्यकर्ता बालासाहेब की शिवसेना को जानते हैं, न कि बीजेपी या कांग्रेस प्रेरित शिवसेना को. इसलिए अगर असली शिवसेना को फिर से स्थापित करना है, तो इन तीनों को (राज-उद्धव-शिंदे) अपने-अपने गठबंधन छोड़ने होंगे.''

गजानन कीर्तिकर ने ये भी कहा, ''बालासाहेब खुद चाहते थे कि राज और उद्धव एक हों. उन्हें इस विभाजन के खतरे की पहले से जानकारी थी. आज अगर राज और उद्धव एक होने का रुख ले रहे हैं, तो वह अच्छा संकेत है लेकिन अगर हम फिर से बालासाहेब की प्रचंड, प्रभावशाली शिवसेना देखना चाहते हैं, तो उसमें एकनाथ शिंदे को भी शामिल होना चाहिए. अगर राज, उद्धव और शिंदे तीनों एक साथ आते हैं, तभी एक मजबूत शिवसेना दिखाई देगी. ये जरूरत महाराष्ट्र और शिवसैनिकों की है.

महाराष्ट्र में भाजपा ने केवल शिवसेना को ही नहीं तोड़ा बल्कि एनसीपी को भी तोडा. एक गुट शरद पंवार का है, दूसरा अजित पंवार का. एक गुट मविअ में है तो दूसरा एनडीए में.अब भाजपा ने शरद पंवार गुट को भी एनडीए में शामिल होने के लिए चारा डाला है. शरद पंवार भी भाजपा की ओर झुकते नजर आ रहे हैं. भाजपा के कारण मप्र में कांग्रेस टूट चुकी है. हरियाणा में भी ऐसी ही टूट जेजेपी में भी हुई. झारखंड में भाजपा ने झामुमो को  तोडा. बिहार में भी इसी तरह की तोडफोड प्रादेशिक दलों में हुई. सबसे ज्यादा तोडफोड का सामना कांगेस ने किया, फिर समाजवादी दल का नंबर आता है. बंगाल में सत्तारूढ तृमूका कांग्रेस का ही उत्पाद है.

अब सवाल ये है कि भाजपा की 'फूट डालो और राज करो  'की नीति के शिकार अनेक दल दोबारा एक होकर भाजपा से बदला लेंगे. इस सवाल का जबाब हां भी हो सकता है और ना भी. लेकिन टूटे दलों का एकीकरण. टूटना आसान है और जुडना कठिन भी. लेकिन राजनीति भी क्रिकेट की तरह संभावनाओं का खेल है. यहाँ कुछ भी सकता है. यदि टूटे दलों के एकीकरण की प्रक्रिया सत्तारूढ भाजपा के लिए घातक हो सकता है.

@राकेश अचल

शनिवार, 7 जून 2025

मेरी गजल

🌹🌹🌹

मोअजिज कौन है इस मुंबई में

जुबां हर मौन है इस मुंबई में

🌹

सभी परिचय, अपरिचय एक से हैं

सिसकती पौन है इस मुंबई में

🌹

यहाँ घर हैं, मगर लगते हैं दडबे

मुहल्ले जोन हैं इस मुंबई में

🌹

समंदर है यहाँ दुख बांटने को

अजब सी टोन है इस मुंबई में

🌹

सुबह से शाम, भागमभाग, तौबा

सहारा फोन है इस मुंबई में

🌹

धरम के नाम पर धंधे अनेको

नया इस्कोन है इस मुंबई में

🌹

सऊदी सा, कतर सा, एक हिस्सा

उरई-जालौन है, इस मुंबई में

🌹

कोई जीता नहीं, मरता नहीं है

सभी का 'क्लोन 'है इस मुंबई मे

🌹

@ राकेश अचल

लगातार गायब होते सिक्के और दुर्लभ होते नोट

  

आज का विषय शुष्क जरूर है लेकिन है महत्वपूर्ण. आज हम भारत की उस मौद्रिक प्रणाली की बात कर रहे हैं जिसके चलते हमारे देश से तमाम नोट और सिक्के गायब हो रहे हैं. हम शायद ऐसी आखिरी पीढी के लोग होंगे जिन्होने अपने देश की सबसे छोटी मुद्राक्ष1 पैसे के सिक्के या एक रुपये के नोट को बाजार में चलते हुए देखा था धीरे धीरे  ये सिक्के और नोट चलन से बाहर हो गये. अब 2000 के नोट के बाद 2रुपये का नोट भी दुर्लभ हो रहा है.

रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया के द्वारा मुद्रा व्यवस्था में बड़ी बदलाव की गई है। आरबीआई ने ₹2, रु5 और ₹2000 के नोटों की छपाई बंद कर दी है। इस बदलाव का मुख्य मकसद डिजिटल करेंसी को बढ़ावा देना है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया पहले 2000 नोटों की छपाई बंद कर चुका है। अब ₹2 और ₹5 के नोटों की छपाई पर भी रोक लग जाएगी.अब ऐसे नोट आम लोगों के जेबों से भी गायब हो चुके हैं। इसका चलन लगभग बंद हो चुका है। सिर्फ नोट ही नहीं बल्कि सिक्कों के इस्तेमाल में भी कमी देखने को मिल रही है। छोटे लेनदेन के लिए ही लोग अब ₹2 या ₹5 के सिक्कों का इस्तेमाल करते हैं।

रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने बताया कि ऐसे नोटों के छपाई में ज्यादा खर्चा आ रहा था। हर साल इसके छपाई में लगभग 6372 करोड रुपए तक का खर्च आ जाता था। लेकिन इसका इस्तेमाल बेहद कम किया जाता था, यही वजह है कि ऐसे नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया है।

आरबीआई ने साफ किया है कि पुराने और गंदे नोटों का रीसायकल किया जाएगा। आज के समय में ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा दिया जा रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने साफ कर दिया है कि कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा दिया जाएगा यही वजह है कि छोटे नोटों को अब बंद किया जा रहा है।

अभी कुछ समय पहले ही रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने ₹5 के पुराने सिक्के को बंद करने का फैसला लिया था। इसका मुख्य कारण था ऐसे सिक्कों को छापने में काफी ज्यादा खर्च आ रहा था। अब दो और ₹5 के नोटों को बंद करने का भी और आरबीआई ने फैसला किया है और जल्द ही ऐसे नोट मार्केट से पूरी तरह गायब हो जाएंगे।

मुझे याद है कि आज से आधी सदी पहले देश में 1,2,3,5, और 25,पैसे के सिक्के इफरात में चलन में थे. सबसे छोटा नोट एक रुपये का था, जो चल तो अब भी रहा है लेकिन अब बेचारे की कोई हैसियत नहीं है. और अब दो, पांच रुपये के नोटों के वजूद पर संकट मंडरा रहा है. नोटों और सिक्कों के प्रचलन से बाहर होने की वजह मंहगाई है. नोट और सिक्के बनाने का बढता खर्च है. मजे की बात ये  है कि हमारी मौद्रिक प्रणाली जस की तस है लेकिन सिक्कों और नोटों का वजूद खतरे में है.

 मै उन लोगों मे से हूँ जिन लोगों ने अधन्नी, एकन्नी, दुअन्नी, चार पैसा, पांच पैसा, दस पैसा, बीस पैसा, चवन्नी (25 पैसे), अठन्नी (50 पैसे): के सिक्के देखे और इस्तेमाल किए हैं.ये सिक्के  धीरे धीरे बंद किए गए, क्योंकि उनकी खरीद शक्ति कम हो गई थी और उत्पादन लागत अधिक थी। उदाहरण के लिए, 25 पैसे और उससे कम मूल्य के सिक्के 30 जून 2011 से वैध मुद्रा के रूप में बंद हो गए।एक रुपये, दो रुपये, और पांच रुपये के नोट भी धीरे-धीरे सर्कुलेशन से हटा लिए गए, क्योंकि सिक्कों ने इनकी जगह ले ली। एक रुपये का नोट 1994 में बंद हुआ, और दो रुपये व पांच रुपये के नोट भी 1990 के दशक में धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गए।

मैने अपने घर में 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट देखे हैं. ये नोट देश आजाद होने के पहले से चलन में थे. इन्हे कुछ समय के लिए बंद किया गया लेकिन 1954 में फिर से शुरू कर दिया गया.साथ ही 5,000 रुपये का नोट भी छापा गया। लेकिन ये सभी नोट 1978 में फिर से बंद हो गए।

एक लंबे अरसे के बाद 2005 में नोटों का विमुद्रीकरण फिर हुआ.2005 से पहले के 500 रुपये के नोटों को मनमोहन सिंह सरकार ने बंद किया था।भारत में नोटबंदी की प्रमुख घटनाएँ 1946, 1978, और 2016 में हुईं, जिनमें उच्च मूल्यवर्ग के नोट (500, 1,000, 5,000, 10,000 रुपये) बंद किए गए। 2023 में 2,000 रुपये के नोट को सर्कुलेशन से हटाया गया, लेकिन यह पूर्ण नोटबंदी नहीं थी। सिक्कों में छोटे मूल्यवर्ग (जैसे 25 पैसे, 50 पैसे) और कुछ छोटे नोट (1, 2, 5 रुपये) भी समय के साथ बंद हो गए। इन फैसलों के खिलाफ देश में कभी कोई आंदोलन नहीं हुआ क्योंकि कभी किसी ने मुद्रा को देश की अस्मिता से नहीं जोडा.

मैंने  दुनिया के अनेक देशों में भी छोटे सक्के और नोट प्रचलन में देखे हैं खासतौर पर इंग्लैंड और अमेरिका में. दुनिया के तमाम देश आज भी अपनी मुद्रा का भरपूर सम्मान करते है एक भारत देश है जहाँ आपको एक रुपया या पचास पैसे के सिक्के के बदले में चाकलेट, माचिस या च्विंगम थमाई जा सकती है और आप कुछ नहीं कर सकते. विदेशों में आप छोटे सिक्कों को भी वही सम्मान मिलते देख सकते हैं जो किसी बडे नोट को मिलता है. विदेशो में छोटे सिक्कों को आप रुपये में बदल सकते हैं. इसके लिए टेलरिंग मशीनें लगी हैं. वहां लागत की बिना पर किसी सिक्के या नोट का गला नहीं घोंटा गया. लेकिन भारत में किसी मंच पर इस समस्या पर विमर्श नहीं होता. संसद में भी नही. सवाल मे है जब आप प्लास्टिक मुद्रा से पैसे और सिक्के नहीं हटा रहे तो आभासी दुनिया से उन्हें विदा क्यों किया जा रहा है.

लागत की आड में सिक्के ही नहीं हमारे पोस्टकार्ड, अंतर्देशी लिफाफे भी गायब हो गये. आने वाले दिनों  में और  पता नहीं है कि लागत बढने के नाम पर और क्या क्या बंद हो सकता है.

@राकेश अचल

शुक्रवार, 6 जून 2025

एक लाख वृक्षारोपण का संकल्प : सांसद भारत सिंह कुशवाह के मुख्य आतिथ्य में संस्था सदस्यों के साथ पोधारोपड़ किया

 ग्वालियर। समाजसेवी संस्था अनुपमा राज डंडोतिया वेलफेयर फाउंडेशन गंगा जगत गुरुधाम अखाड़ा परिषद बड़ागांव द्वारा संस्था की सरंक्षक स्व. रामश्री देवी दंडोतिया  की स्मृति में एक लाख पोधारोपड़ करने का संकल्प लिया और सांसद भारत सिंह कुशवाह के मुख्य आतिथ्य में संस्था सदस्यों के साथ पोधारोपड़ किया ।

इस अवसर पर ग्वालियर सांसद भारत सिंह कुशवाह ने अनुपमा राज दंडोतिया वेलफेयर फाउडेशन द्वारा अपनी माँ रामश्री देवी दंडोतिया की स्मृति में एक पेड़ माँ के नाम एक पेड़।पूर्वजो,शहीदों के नाम कार्यक्रम की सराहना की ऒर प्रधानमंत्री मोदी के साथ अनुपमा राज दंडोतिया वेलफेयर फाउडेशन की पुनीत पहल उद्देश्य में सभी से सहभागी बनने की अपील की ।
इस अवसर पर सांसद भारत सिंह कुशवाह,राज दंडोतिया अनुपमा दंडोतिया रामवरण शास्त्री, रामवीर शर्मा,पूजा गुप्ता, जयारोग्य अस्पताल अधीक्षक सुधीर सक्सेना,उप अधीक्षक बालेन शर्मा,अमित दुबे, अखिलेश पांडे सहित सेकड़ो कार्यकर्ताओ ने सभी देश व प्रदेश वासियो से एक पेड़ माँ पूर्वजों शहीदों के नाम लगाने की अपील की ।

सिंधी समाज के जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिये पाठ्य सामग्री वितरण कार्यक्रम के फॉर्म 15 जून से होंगे वितरित

 सिंधु विद्यार्थी शिक्षा चैरिटेबल ट्रस्ट की पहल

पूज्य सिंध  हिंदू जनरल पंचायत द्वारा गठित

 ग्वालियर । सिंधु विद्यार्थी शिक्षा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा सिंधी समाज के जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए पाठ्य सामग्री वितरण कार्यक्रम के अंतर्गत आवेदन फॉर्म का वितरण दिनांक 15 जून से प्रारंभ होगा। मीडिया प्रभारी अमर माखीजा जी ने बताया कि ट्रस्ट के मुख्यन्यासी श्रीचंद वलेचा जी के निवास पर हुई पंचायत के महासचिव श्रीचंद  पंजाबी जी की अध्यक्षता में मीटिंग में यह तय  किया गया।

ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री प्रहलाद रोहिरा एवं महासचिव ओम प्रकाश छाबड़ा के नेतृत्व में फॉर्म का वितरण तीन चरणों में सप्ताह के निर्धारित दिनों में झूलेलाल परमार्थ ट्रस्ट भवन दाना ओली में प्रातः 10: 30 बजे से 12:30 बजे तक किया जाएगा। यह तिथियाँ 15, 16, 17 जून, 22, 23, 24 जून एवं 29, 30 जून तथा 1 जुलाई रहेंगी। पात्र विद्यार्थियों को जुलाई के प्रथम पखवाड़े में पाठ्य सामग्री वितरित की जाएगी। इस कार्यक्रम के संयोजक विजय वलेचा, अमृत माखीजानी, धनराज दर्रा एवं गोपाल मोटवानी रहेंगे।

 मीटिंग में  मुख्य रूप से ट्रस्ट के उपाध्यक्ष भीष्म पमनानी, दिलीप हुंदवानी, सचिव मुकेश वासवानी कोषाध्यक्ष निर्मल एलानी एवं वितरण समिति सदस्य नरेन्द्र छबलानी, संतोष वाधवानी, जय जयसिंघानी एवं सुशील कुकरेजा, रमेश रुपानी उपस्थित थे ।

सभी अभिभावकों एवं विद्यार्थियों से समय पर फॉर्म प्राप्त कर निर्धारित तिथियों में जमा कराने की अपील की गई है।

गुरुवार, 5 जून 2025

शिवपुरी के खनियाधाना ब्लॉक के शिक्षा विभाग के सभी अधिकारी कर्मचारियों को दो माह से नहीं मिला वेतन

वेतन न मिलने के कारण भुखमरी के कगार कर्मचारी शीघ्र वेतन दिया जाए - डॉ अग्र

 ग्वालियर । जिला शिवपुरी के खनियाधाना ब्लॉक के शिक्षा विभाग के सभी अधिकारी कर्मचारी दो माह से वेतन न मिलने के कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड रहा हैं ।

आरक्षित वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ अवाक्स के संस्थापक प्रांताध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र ने बताया कि खनियाधाना ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले शिक्षक पत्राचार क्लर्क चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को विगत दो माह अप्रैल 2025 से मई 2025 का वेतन नहीं मिला इस कारण शिक्षा विभाग खनियाधाना ब्लॉक के सभी शासकीय अधिकारी कर्मचारी भुखमरी के कगार पर है बच्चों के एडमिशन के लिए फीस भी जमा नहीं कर पा रहे हैं ट्यूशन फीस भी जमा नहीं कर पा रहे हैं ईएमआई किस्त भी जमा नहीं कर पा रहे हैं परिवार में बीमा सदस्यों का इलाज भी नहीं कर पा रहे हैं ।

 दवाई डॉक्टरी जांच के लिए भी कर्मचारी परेशान हो रहे हैं। उधारी जैसे दूध और करना और सब्जी वाले उनके घरों पर चक्कर काट रहे हैं इससे उनकी बेजती हो रही है आरक्षित वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ अवाक्स के संस्थापक प्रांताध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र ने मध्य प्रदेश शासन ऊर्जा विभाग के मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर मनोज खत्री आयुक्त ग्वालियर संभाग ग्वालियर कलेक्टर जिला शिवपुरी तथा सहयोग संचालक लोक शिक्षण संभाग ग्वालियर एवं जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिवपुरी से मांग की है कि खनियाधाना ब्लॉक के शिक्षा विभाग के सभी अधिकारी कर्मचारियों को शीघ्र से शीघ्र विगत 2 माह अप्रैल और मई 2025 का वेतन  भुगतान शीघ्र से शीघ्र किया जाए डॉ  जवर सिंह अग्र ने रोष व्यक्त करते हुए कहा है कि मध्य प्रदेश शासन के स्पष्ट नियम है कि सभी अधिकारी कर्मचारियों को महीने की पहली तारीख को हर हालत में वेतन का भुगतान होना चाहिए इस प्रकार के आदेश वित्त विभाग के भी हैं फिर भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण कर्मचारियों को दो माह से वेतन का भुगतान नहीं हो रहा है आज 5 तारीख हो गई शीघ्र से शीघ्र वेतन का भुगतान कराया जाए कल दिनांक 6 जून 2025 को अब्बास के संस्थापक प्रांताध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र मध्य प्रदेश शासन की ऊर्जा मंत्री जिला शिवपुरी के प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर एवं आयुक्त ग्वालियर संभाग ग्वालियर कलेक्टर जिला शिवपुरी संयुक्त संचालक लोक शिक्षण ग्वालियर संभाग ग्वालियर तथा जिला शिक्षा अधिकारी जिला शिवपुरी को पत्र भेजकर कर्मचारियों को शीघ्र वेतन भुगतान करने की मांग करेंगे।

बुधवार, 4 जून 2025

राजा-रानियों पर लट्टू मोहन बाबू की सरकार


मप्र में भाजपा सरकार राजा और रानियों पर लट्टू है. मप्र में भाजपा 2003,में सत्ता में आई थी. जनता ने भाजपा को 20018 के विधानसभा चुनाव में उखाड फेंका था, लेकिन मात्र 19महीने बाद ही एक स्वयंभू महाराज की कृपा से भाजपा पुनः सत्ता में लौट आई तो भाजपा का राजा रानी प्रेम और बढ गया. आजकल भाजपा प्रदेश के अनेक राजा रानियों को सम्मानित करने में खजाना लुटा रही है.

आपको याद होगा कि भाजपा सरकार ने सबसे पहले भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर एक आदिवासी  गोंड रानी कमलापत को सम्मान देते हुए हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापत स्टेशन कर दिया.मप्र के लोग रानी कमलापत को भूल चुके थे लेकिन भाजपा ने उन्हे खोज निकाला.रानी कमलापति 18वीं शताब्दी की भोपाल की अंतिम गोंड रानी थीं। उनका विवाह गिन्नौरगढ़ के गोंड राजा निजाम शाह से हुआ था, जिनकी सात पत्नियों में से कमलापति सबसे प्रिय थीं।


 वे सीहोर के सलकनपुर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया की बेटी थीं और अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता, और साहस के लिए जानी जाती थीं। कमलापति कुशल घुड़सवार, धनुर्धर, और सेनापति थीं, जिन्होंने अपने पिता की सेना के साथ युद्धों में हिस्सा लिया।1720 में निजाम शाह की उनके भतीजे आलम शाह (या कुछ स्रोतों में चैन सिंह) द्वारा जहर देकर हत्या के बाद, रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह के साथ भोपाल के कमलापति महल में आ गईं। उन्होंने अपने पति की हत्या का बदला लेने के लिए अफगान सरदार दोस्त मोहम्मद खान से मदद मांगी, जिसके बदले में उन्होंने एक लाख रुपये देने का वादा किया। दोस्त मोहम्मद ने आलम शाह को मार दिया, लेकिन रानी पूरी राशि नहीं दे पाईं और भोपाल का हिस्सा देना पड़ा।बाद में, दोस्त मोहम्मद ने भोपाल पर कब्जा करने की कोशिश की और रानी को अपने हरम में शामिल करने का प्रस्ताव रखा। अपनी और अपने बेटे की रक्षा के लिए रानी ने विरोध किया। 1723 में, जब दोस्त मोहम्मद ने हमला किया, रानी के 14 वर्षीय बेटे नवल शाह ने लाल घाटी में युद्ध लड़ा, जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। रानी ने अपनी आबरू और भोपाल को बचाने के लिए महल के पास तालाब में अपनी संपत्ति डालकर जल समाधि ले ली। उनके बलिदान के बाद भोपाल में नवाबों का शासन शुरू हुआ।रानी कमलापति की वीरता और साहस के सम्मान में भोपाल के हबीबगंज  स्टेशन का नाम 2021 में उनके नाम पर रखा गया।

रानी कमलापत के बाद हाल ही में इंदौर की रानी अहिल्या बाई को सम्मान देने के लिए मप्र सरकार ने अहिल्या बाई  मराठा की 300 वीं सालगिरह पर इंदौर के राजवाडा में मंत्रिमंडल की बैठक पर करोडों रुपये फूंक दिए.अहिल्या बाई होल्कर (31 मई 1725 – 13 अगस्त 1795) मराठा साम्राज्य की होल्कर रियासत की रानी थीं, जिन्हें उनकी प्रशासनिक कुशलता, साहस और समाज सुधार के लिए जाना जाता है। वे मालवा की रानी थीं और अपने पति खंडेराव होल्कर की मृत्यु के बाद उन्होंने होल्कर राज्य का नेतृत्व संभाला।

अहिल्या बाई ने अपने शासनकाल में मालवा को समृद्ध और सुव्यवस्थित बनाया। उन्होंने न्याय, व्यापार और कृषि को बढ़ावा दिया। उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया और सामाजिक भेदभाव को कम करने के प्रयास किए।धार्मिक और सांस्कृतिक कार्य: अहिल्या बाई ने कई मंदिरों, घाटों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण और सोमनाथ मंदिर की मरम्मत शामिल हैं। उन्होंने होल्कर सेना को मजबूत किया और कई युद्धों में अपनी रणनीतिक कुशलता दिखाई।अहिल्या बाई को उनकी सादगी, धर्मनिष्ठा और जनता के प्रति समर्पण के लिए याद किया जाता है। उन्हें "पुण्यश्लोक" (पवित्र ख्याति वाली) कहा जाता है।

अहिल्या बाई को सम्मान देने के बाद राज्य सरकार को अचानक एक और आदिवासी राजा भभूत सिंह को सम्मानित करने की याद आ गई. राज्य सरकार न राजा भभूत सिंह को सम्मानित करने के लिए मंत्रिमंडल की बैठक पचमढी में आयोजित कर डाली.अब आप कहेंगे कि ये कौन से राजा हैं तो आपको बता दें कि राजा भभूत सिंह मध्य प्रदेश के पचमढ़ी क्षेत्र के एक जनजातीय शासक थे, जिन्होंने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सतपुड़ा की वादियों में उन्होंने तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन का मुकाबला किया। वे हर्राकोट के जागीरदार थे और जनजातीय समाज पर उनका गहरा प्रभाव था। 

राजा भभूत सिंह ने गुरिल्ला युद्ध पद्धति का उपयोग कर अंग्रेजों को परेशान किया, खासकर देनवा घाटी में, जहां उनकी सेना ने अंग्रेजी फौज को हराया। उनकी रणनीति शिवाजी महाराज की छापामार युद्ध शैली से मिलती-जुलती थी।1858 में, तात्या टोपे के साथ नर्मदा नदी पार करने और स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत करने में उनकी भूमिका उल्लेखनीय थी। हालांकि, 1860 तक वे अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष करते रहे, लेकिन अंततः उन्हें पकड़ने के लिए ब्रिटिश सेना को विशेष प्रयास करने पड़े। उनकी वीरता और नेतृत्व को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हाल के वर्षों में सम्मानित किया गया है, जैसे कि 3 जून 2025 को पचमढ़ी में उनकी स्मृति में आयोजित कैबिनेट बैठक और पौधरोपण कार्यक्रम।

भाजपा दर असल राजा रानियों की अनुकंपाओं से उऋण होना चाहती है. पूर्व में भाजपा ने ग्वकी राजमाता के नाम से कृषि विश्वविद्यालय बनाया तो राजा मानसिह तोमर के नाम से संगीत विश्वविद्यालय बना दिया. पूरे प्रदेश में राजा रानियों की दर्जनों प्रतिमाएं लगीं है.ग्वालियर में सिंधिया, जबलपुर में रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या देवी की प्रतिमाएं बनाने में भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी कभी कंजूसी नहीं दिखाई.

आने वाले दिनों में पता नहीं किस राजा या रानी को सम्मान देने के लिए खोज लिया जाए. मप्र सरकार राजा रानियों के बिना शायद चल ही नहीं सकती. कांग्रेस ने भी दशकों तक राजा रानियों को झेला. राजा नरेन्द्र सिंह, अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह, महाराज माधवराव सिंधिया कांग्रेस के लिए पूजनीय रहे थे. भाजपा ने भी अनेक राजा मंत्रिमंडल में रखे. एक थे मानवेन्द्र सिंह जो मंत्री बनाए गये थे. एक हो तो गिनाएं भी, मप्र में तो राजा रानियों की इफरात है.

@राकेश अचल

शुक्रवार, 30 मई 2025

लीची नाम मेरा, मै लीची बदनाम

इस मौसम का सबसे लजीला और सबसे रसीला फल है लीची. मै तो इस पर लट्टू हूँ. आज ही 200₹ किलो के भाव मिली. थोडी सी ले आया.लीची  एक उष्णकटिबंधीय फल है जो भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापक रूप से उगाया जाता है। यह सपिंदेसी (Sapindaceae) परिवार का सदस्य है और अपने रसदार, मीठे और सुगंधित गूदे के लिए जाना जाता है। 

भारत में मैने लीची से लदे वृक्ष पहली बार गोरखपुर में देखे थे.लीची की खेती मुख्य रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, झारखंड और असम जैसे राज्यों में होती है, जिसमें बिहार का मुजफ्फरपुर क्षेत्र विशेष रूप से प्रसिद्ध है।लीची का गूदा रसदार, पारदर्शी और मीठा होता है, जिसमें हल्का फूलों जैसा स्वाद होता है। इसका बाहरी छिलका गुलाबी-लाल और खुरदरा होता है, जो आसानी से हटाया जा सकता है।पोषण: लीची विटामिन C, पोटैशियम, और एंटीऑक्सिडेंट्स का अच्छा स्रोत है। यह कम कैलोरी वाला फल है, जो हाइड्रेशन और पाचन में मदद करता है।

भारत में लीची का मौसम आमतौर पर मई से जुलाई तक होता है। इसे ताजा खाया जाता है, जूस, डेजर्ट, या स्मूदी में  भी आप इसका इस्तेमाल कर है। सूखे लीची को "लीची नट" के रूप में भी खाया जाता है। लीची केवल फः नहीं बल्कि औषधि भी है. ये फल इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।त्वचा के लिए लाभकारी।हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।हालांकि, अधिक मात्रा में खाने से "लीची विषाक्तता" (hypoglycemic encephalopathy) का खतरा हो सकता है, खासकर खाली पेट बच्चों में, लीची को गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है, लेकिन फूल आने के दौरान ठंडी और शुष्क परिस्थितियाँ चाहिए। भारत में शाही, चाइना, और बेदाना जैसी किस्में लोकप्रिय हैं। कीट, फल छेदक कीड़े, और मौसम परिवर्तन लीची की खेती को प्रभावित करते हैं।भारत में लीची को गर्मियों के मौसम का एक विशेष फल माना जाता है और इसे अक्सर मेहमानों को परोसा जाता है। यह स्थानीय बाजारों और निर्यात के लिए भी महत्वपूर्ण है।

वैश्विक स्तर पर लीची का वार्षिक उत्पादन लगभग 2.5 से 3 मिलियन टन अनुमानित है, हालांकि यह आंकड़ा मौसम, जलवायु, और खेती की तकनीकों के आधार पर बदल सकता है। चीन लीची का सबसे बड़ा उत्पादक देश, जिसका वार्षिक उत्पादन लगभग 2 मिलियन टन है। चीन में लगभग 100 किस्मों की लीची उगाई जाती है, और यह दक्षिणी क्षेत्रों (विशेषकर ग्वांगडोंग, ग्वांग्शी, और हाइनान) में प्रचुर मात्रा में होती है।भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, जहां प्रतिवर्ष लगभग 5,85,300 मीट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है। भारत का उत्पादन वैश्विक स्तर पर लगभग 20-25 प्रतिशत हिस्सा रखता है।वियतनाम के उत्तरी भाग में लीची की खेती प्रमुख है, और यह तीसरा बड़ा उत्पादक माना जाता है।थाईलैंड में भी लीची मिल जाती है.दक्षिण-पूर्व एशिया में लीची का महत्वपूर्ण उत्पादक, विशेष रूप से उत्तरी क्षेत्रों में।मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, और संयुक्त राज्य अमेरिका (फ्लोरिडा, हवाई): ये देश भी लीची का उत्पादन करते हैं, लेकिन उनका योगदान वैश्विक उत्पादन में अपेक्षाकृत कम है।प्रमुख उत्पादन क्षेत्र:चीन: दक्षिणी चीन (ग्वांगडोंग, ग्वांग्शी, हाइनान) में लीची की खेती 2000 ईसा पूर्व से प्रचलित है। तो आज आप भी लीची खाइए, तबियत तर हो जाएगी.इसलिए आपरेशन सिंदूर, सीजफायर, शशि थरूर सब भूल जाइए. सि्फ लीची खाइये.

@ राकेश अचल

गुरुवार, 29 मई 2025

*हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष* राष्ट्र की विरासत है हिंदी पत्रकारिता

 

हिंदी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर लोकतंत्र के सशक्तीकरण तक हर दौर में समाज का मार्गदर्शन किया है। लेकिन आज इस क्षेत्र के समक्ष विश्वसनीयता, भाषा की शुद्धता, डिजिटल प्लेटफार्मों पर सनसनी और सूचनाओं की सत्यता जैसी गंभीर चुनौतियाँ भी हैं। ऐसे समय में पत्रकारिता को न केवल सूचना का स्रोत, बल्कि विवेकपूर्ण और विचारोत्तेजक संवाद का माध्यम बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर जानते हैं कैसा रहा अतीत से लेकर आज तक के पत्रकारिता का सफर और मौजूदा परिवेश में क्या हैं उसके समक्ष पनपती चुनौतियां..?_

--30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। यह दिन न केवल हिंदी पत्रकारिता की ऐतिहासिक यात्रा को स्मरण करने का अवसर है, बल्कि समकालीन पत्रकारिता के सामने उपस्थित चुनौतियों और जिम्मेदारियों पर विचार करने का भी उपयुक्त समय है। यह वह दिन है जब भारत में प्रथम हिंदी समाचार पत्र ’उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन आरंभ हुआ था, जिसने भारतीय जनमानस को जागरूक करने की दिशा में एक सशक्त पहल की थी।

30 मई, यह तारीख भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में मील का पत्थर है। 1826 में इसी दिन कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके से पंडित जुगल किशोर शुक्ल द्वारा देश का पहला हिंदी समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ प्रकाशित किया गया। यह साप्ताहिक अखबार था और हर मंगलवार के दिन पाठकों तक पहुंचता था। सीमित साधनों और कठिन परिस्थितियों में शुरू हुई यह पहल आज हिंदी पत्रकारिता के विशाल और विविधतापूर्ण संसार का आधार बनी।

कारण स्पष्ट है कि भारत का पहला हिंदी साप्ताहिक समाचार-पत्र था ‘उदन्त मार्तण्ड’,जो अंग्रेजी और फारसी समाचार-पत्रों के प्रभुत्व वाले उस दौर में हिंदी में समाचार-पत्र निकालना एक क्रांतिकारी कदम था। सीमित संसाधनों, भाषाई उपेक्षा और पाठकों की संख्या कम होने के बावजूद यह प्रयास भारत में हिंदी पत्रकारिता के बीज बोने जैसा था। 

यद्यपि यह पत्र आर्थिक कठिनाइयों के कारण केवल 79 अंकों के बाद बंद हो गया, लेकिन इसने पत्रकारिता में हिंदी की उपस्थिति दर्ज कराई। हिंदी पत्रकारिता दिवस केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है, उस पहली आवाज़ की, जिसने हिंदी में जनचेतना का बीज बोया। 

उदन्त मार्तण्ड के बाद हिंदी पत्रकारिता ने धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ी। 19वीं सदी के उत्तरार्ध और 20वीं सदी के पूर्वार्ध में कई प्रतिष्ठित हिंदी समाचार पत्रों का जन्म हुआ। ’हिंदुस्तान’, ’अभ्युदय’, ’कर्मवीर’, ’प्रभा’, और ’आज’। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी पत्रकारिता ने जनजागरण और राष्ट्रभक्ति की भावना को व्यापक जनसमूह तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।

आजादी के बाद हिंदी पत्रकारिता ने अपने सरोकारों का विस्तार किया। जनपक्षधरता, सामाजिक विषमता, शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, साहित्य और संस्कृति जैसे विषयों पर गंभीर विमर्श प्रारंभ हुआ। प्रिंट मीडिया के साथ-साथ रेडियो और टेलीविजन पर भी हिंदी समाचारों की उपस्थिति मजबूत होती गई।

21वीं सदी यानी आधुनिक युग में जब डिजिटल मीडिया ने पत्रकारिता के स्वरूप को बदल दिया तो हिंदी पत्रकारिता ने भी स्वयं को नए कलेवर में ढाला। आज हिंदी समाचार पोर्टल्स, मोबाइल ऐप्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंदी पत्रकारिता की दमदार उपस्थिति है। ’दैनिक जागरण’, ’हिंदुस्तान’, ’अमर उजाला’, ’राजस्थान पत्रिका’, ’भास्कर’ जैसे अखबारों ने न केवल प्रिंट में बल्कि डिजिटल माध्यमों में भी करोड़ों पाठकों से सीधा संवाद कायम किया है।

आज, जब डिजिटल युग में पत्रकारिता की परिभाषाएँ बदल रही हैं, तब आवश्यक है कि हम अपनी मूल पत्रकारिता परंपराओं को स्मरण करें। जहाँ समाचार संप्रेषण के साथ जनजागरण, सामाजिक सरोकार और नैतिक जिम्मेदारी भी पत्रकार का धर्म मानी जाती थी।

भारतीय समाचार पत्र दिवस 2025 का विषय “डिजिटल युग में प्रिंट मीडिया की भूमिका” पर केंद्रित है। यह विषय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के तेज़ी से विकास के बीच प्रिंट मीडिया की निरंतर प्रासंगिकता और अनुकूलन पर प्रकाश डालता है।

आज हिंदी पत्रकारिता पहले की तुलना में कहीं अधिक सशक्त, तकनीकी रूप से सक्षम और जन-प्रभावी है, लेकिन इसके समक्ष कई चुनौतियाँ भी हैं। इनमें प्रमुख हैं, सूचनाओं की सत्यता और विश्वसनीयता बनाए रखना, टीआरपी या क्लिक की दौड़ में मूल पत्रकारिता मूल्यों का क्षरण, और भाषाई शुद्धता की उपेक्षा। इसके अलावा छोटे और स्वतंत्र पत्रकारों के लिए संसाधनों की कमी, तथा ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल पहुँच की सीमाएँ भी चिंता का विषय हैं।

बावजूद इसके यह भी एक सच्चाई है कि हिंदी पत्रकारिता में संभावनाओं का संसार अनंत है। भारत में हिंदी बोलने और पढ़ने वालों की संख्या करोड़ों में है, और यह निरंतर बढ़ रही है। यदि पत्रकारिता जनसरोकारों से जुड़ी रहे, सत्य और निष्पक्षता को अपना धर्म बनाए रखे, तो हिंदी पत्रकारिता समाज में सकारात्मक बदलाव की वाहक बन सकती है।

कह सकते हैं कि हिंदी पत्रकारिता दिवस हमें उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाता है जब ’उदन्त मार्तण्ड’ ने हिंदी में पत्रकारिता का शुभारंभ किया। यह दिवस हमें आत्मचिंतन का अवसर देता है कि पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सूचना देना नहीं, बल्कि सही सूचना देकर समाज को सजग, संवेदनशील और समृद्ध बनाना है। आज जब हम डिजिटल युग के नए द्वारों पर खड़े हैं, तो यह आवश्यक है कि हिंदी पत्रकारिता अपनी जड़ों को न भूलते हुए तकनीकी नवाचारों के साथ कदम से कदम मिलाकर चले।

हिंदी बोलने-पढ़ने वालों की बढ़ती संख्या और तकनीकी संसाधनों की व्यापकता इस भाषा की पत्रकारिता को नई ऊँचाइयों तक ले जाने में सक्षम है, बस शर्त यही है कि पत्रकारिता अपने मूल सरोकारों से विचलित न हो।

हिंदी पत्रकारिता दिवस केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है उस पहली आवाज़ की, जिसने हिंदी में जनचेतना का बीज बोया। आज आवश्यकता है उस परंपरा को आगे बढ़ाने की, ईमानदार, जनपक्षधर और संवेदनशील पत्रकारिता के माध्यम से। यही हमारी जिम्मेदारी है, और यही हिंदी पत्रकारिता की सच्ची सेवा।

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर यही संकल्प होना चाहिए कि हम पत्रकारिता को न केवल अभिव्यक्ति का माध्यम बनाएं, बल्कि उसे जन-जागरण, जन-सशक्तिकरण और लोकतंत्र की मजबूती का प्रभावशाली उपकरण भी बनाएं। 

आज आवश्यकता है उस परंपरा को आगे बढ़ाने की, ईमानदार, जनपक्षधर और संवेदनशील पत्रकारिता के माध्यम से। यही हमारी जिम्मेदारी है, और यही हिंदी पत्रकारिता की सच्ची सेवा। क्योंकि हिंदी पत्रकारिता हमारी विरासत है और इसे संभाल कर रखना और वर्चस्व को बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।  

 डॉ केशव पांडे 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

सोमवार, 26 मई 2025

अब 20 साल पुराने निजी वाहन सडकों पर नहीं चलेंगे

 15 वर्ष पुराने शासकीय वाहन भी दिखाई नहीं देंगे 

ग्वालियर 26  मई। जिले में 20 वर्ष से अधिक पुराने निजी वाहन एवं 15 वर्ष से अधिक पुराने शासकीय वाहन अब रोड पर नहीं चलेंगे। ऐसे वाहनों को परिवहन विभाग द्वारा संचालित स्क्रैप केन्द्र पर भेजा जायेगा। कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने परिवहन विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया है कि ऐसे निजी वाहन जो 20 वर्ष से अधिक पुराने हैं एवं ऐसे शासकीय वाहन जो 15 वर्ष से अधिक पुराने हैं, उनकी सूची तीन दिवस में प्रस्तुत करें। इसके साथ ही शासन के प्रावधान को भी प्रस्तुत किया जाए ताकि प्रावधानों के अनुरूप प्रभावी कार्रवाई की जा सके। उन्होंने विभागीय अधिकारी को कहा है कि प्राप्त सूची के आधार पर इन वाहनों का चलना प्रतिबंधित किया जायेगा। इसके साथ ही नियमानुसार स्क्रैप करने की कार्रवाई की जायेगी। 

कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने सोमवार को अंतरविभागीय समन्वय समिति की बैठक में विभागीय योजनाओं और कार्यक्रमों की समीक्षा करते हुए यह निर्देश दिए हैं। कलेक्ट्रेट के सभाकक्ष में आयोजित समीक्षा बैठक में अपर कलेक्टर श्री कुमार सत्यम, श्री टी एन सिंह सहित जिले के अनुविभागीय अधिकारी और विभागीय अधिकारी उपस्थित थे। 

कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने कहा है कि शासन के प्रावधानों एवं प्रदूषण को देखते हुए ग्वालियर जिले में पुराने वाहन सड़क पर न चलें इस पर प्रभावी कार्रवाई की जायेगी। निजी एवं शासकीय वाहनों के उपयोग की समय-सीमा शासन द्वारा निर्धारित की गई है। उन्होंने परिवहन विभाग को निजी एवं शासकीय वाहनों की सूची उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। सूची प्राप्त होने पर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के नेतृत्व में जिले में कार्रवाई सुनिश्चित की जायेगी। 

सिंदूर पर भारी भारत की चार नंबरी अर्थव्यवस्था

 

अब भगवान के लिए आपरेशन सिंदूर को भूल जाइए. सीज फायर को भुला दीजिये. डोनाल्ड ट्रंप साहब के बयानों पर गौर मत कीजिए क्योंकि अब भारत ने जापान को पछाड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव हासिल किया है। यह उपलब्धि भारत के लिए महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इसका श्रेय अनुकूल भू-राजनीति और निरंतर नीतिगत सुधारों को जाता है।लेकिन आरती उतारना पडेगी आपको अंततोगत्वा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की.

आईएमएफ के अनुसार, भारत की नॉमिनल जीडीपी 4.19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई है। नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने इस खबर की घोषणा करते हुए भारत की आर्थिक प्रगति की सराहना की। दिग्‍गज उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने इस उपलब्धि को लाखों भारतीयों की महत्वाकांक्षा और सरलता का प्रमाण बताया है। कभी वह भारत को जापान से आगे निकलने की कल्पना को दूर का सपना मानते थे।

आपरेशन सिंदूर को बीच में ही रोकने और ट्रंप के दखल की वजह से देश ने देश की सेना की आरती तो उतारी लेकिन मोदी जी की नहीं. मोदीजी देश के इस व्यवहार से आहत हैं और इसीलिए उन्होने एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में सबसे मौन रहने कै कहा.क्योंकि इस फायर, सीज फायर और मिस फायर को लेकर मोदी जी और देश की जितनी छीछालेदर हुई है, उतनी पहले किसी मुद्दे पर नहीं हुई. मोदी जी के तीसरे कार्यकाल की ये सबसे बडी विफलता है.

बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए अब भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। ये दावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट  रिपोर्ट में किया है, जो 22 अप्रैल 2025 को जारी हुई थी।नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने रविवार 25 मई को इस बात की पुष्टि करते हुए कहा,'भारत अब जापान को पीछे छोड़कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। हमारी जीडीपी 4 ट्रिलियन डॉलर को पार कर चुकी है, और ये कोई हमारा अनुमान नहीं, बल्कि आईएम एफ के आंकड़े हैं।'

उन्होंने यह भी कहा कि अगर देश की नीतियां इसी तरह बनी रहीं तो आने वाले 2 से 3 सालों में भारत जर्मनी को भी पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।

2023 के आंकड़ों के अनुसार टॉप पर अमेरिका – $27.72 ट्रिलियन, फिर चीन – $17.79 ट्रिलियन फिर जर्मनी – $4.52 ट्रिलियनफिरजापान – $4.20 ट्रिलियन और पांचवे स्थान पर भारत – $3.56 ट्रिलियन था. अब भारत चौथे स्थान पर है और जापान पांचवें स्थान पर. इस उपलब्धि का श्रेय किसानों, उद्योगपतियों को देने से , पहले प्रधानमंत्री और सीतारामी बजट बनाने वाली वित्तमंत्री को देना चाहिए.आखिर इस मुकाम पर आने में भारत को आठ दशक लग गए. इसका श्रेय नेहरू, इंदिरा, राजीव नरसिम्हाराव,, अटल जी या डॉ मनमोहन सिंह नहीं देना चाहिए, अन्यथा  मोदीजी का दिल फिर टूट जाएगा..और देश को मोदी जी के साथ ये जुल्म नहीं करना चाहिए.

बिहार विधानसभा चुनाव में लेकिन ये उपलब्धि असरदार होगी इसमें मुझे संदेह है. बिहार और बंगाल में तो मोदी जी को सिंदूर से ही काम चलाना पड़ेगा. वहां जातीय जनगणना का भी असर होने वाला नहीं है. देश में न कालाधन लौटा, न भगोडे डिपोर्ट हुए, न बेरोजगारी कम हुई और न मंहगाई रुकी फिर भी देश की अर्थव्यवस्था चार ट्रिलियन की हो गई, ये प्रभु श्रीराम की ही महती कृपा है. सीजफायर की तरह इसमें ट्रंप साहब का कोई योगदान नहीं है. जो है सब मोदी जी और सिर्फ मोदी जी का है. उनकी 56"की छाती का है. हमें मोदीजी पर गर्व है.

मजा तब आएगा जब हम चीन की चोटी खींचने लायक बनेंगे. इसके लिए हमे अभी जर्मनी को पछाडना पडेगा. मोदी जी हैं तो ये भी मूमकिन है. मोदी जी वैसे भी अभी कौन से रिटायर होने जा रहे हैं. अभी वे 2029  के आम चुनाव में भी एनडीए का नेतृत्व करेंगे भले ही उन्हे बैशा के बाद व्हील चेयर का सहारा लेना पडे किंतु सरकार वे ही बनाएंगे और चलाएंगे. राहुल गांधी के लिए सत्ता में आना सपना ही रहेगा.

@ राकेश अचल

रविवार, 25 मई 2025

प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट को आदिम जाति कल्याण विभाग और नगर निगम की समस्याओं को लेकर अलग-अलग दो पत्र सोंपे - डॉ अग्र

 

ग्वालियर 25 मई  । मध्य प्रदेश शासन के कैबिनेट मंत्री जल संसाधन विभाग एवं ग्वालियर जिले के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट को आदिम जाति कल्याण विभाग जिला ग्वालियर एवं नगर निगम ग्वालियर में लंबित समस्याओं के निराकरण की मांग को लेकर आरक्षित वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ (अवाक्स) के संस्थापक प्रांत अध्यक्ष एवं आदिम जाति कल्याण विभाग छात्रावास आश्रम शिक्षक अधीक्षक संघ (कसस) के संस्थापक प्रांत अध्यक्ष डॉ जवर सिंह अग्र ने ग्वालियर प्रवास पर आए जिले के प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट जी को अलग-अलग दो पत्र देकर पत्र में उल्लेखित समस्याओं के निराकरण की मांग की गई । 

जिस पर प्रभारी मंत्री सिलावट जी ने शीघ्र कार्रवाई करने का आश्वासन दिया। ज्ञात रहे की जिन समस्याओं को लेकर प्रभारी मंत्री से मुलाकात की गई वह काफी लंबे समय से आदिम जाति कल्याण विभाग ग्वालियर में और नगर पालिका  निगम ग्वालियर में लंबित है ।

पुलिस पर हमलों की वजह है 'पुलिस स्टेट

 

मप्र के गुना जिले में एक पुलिस इंस्पेक्टर पर त्रिशूल से हक्षले की खबर हालांकि बहुत बडी नहीं है लेकिन इस हमले के पीछे की वजह बहुत बडी है. पुलिस पर बढते हमलों की पडताल से पता चलता है कि यह सब सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा सूबे को पुलिस स्टेट में बदलने का नतीजा है.

सबसे पहले आपको पुलिस स्टेट के बारे में जानना होगा क्योंकि ये बहुत प्रचलित शब्द नहीं है.दरअसल पुलिस स्टेट  एक ऐसी शासन व्यवस्था को कहते हैं जिसमें सरकार अत्यधिक नियंत्रण और निगरानी के माध्यम से नागरिकों की स्वतंत्रता को सीमित करती है। इसमें पुलिस या अन्य सुरक्षा बलों को व्यापक शक्तियाँ दी जाती हैं, जो अक्सर नागरिकों के मौलिक अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता, और गतिविधियों की स्वतंत्रता, का उल्लंघन करती हैं।

पुलिस स्टेट में सरकार  नागरिकों की गतिविधियों और संचार, और निजी जीवन पर कड़ी नजर रखती है,  फोन टैपिंग, इंटरनेट मॉनिटरिंग, या सीसीटीवी के व्यापक उपयोग के माध्यम से स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जाते हैं.अभिव्यक्ति की यानि प्रेस, और सभा की स्वतंत्रता सीमित होती है। असहमति या विरोध को दबाने के लिए सख्त कानून लागू किए जाते हैं। पुलिस को बिना उचित कारण के गिरफ्तारी, पूछताछ, या संपत्ति जब्त करने की शक्ति दी जा सकती है। पुलिस स्टेट में भय का माहौल बनता है.नागरिकों में सरकार या पुलिस के डर से आत्म-संयम  बढ़ता है, जिससे लोग अपनी राय व्यक्त करने से बचते हैं। जब पुलिस ही सब कुछ हो जाती है तब न्यायिक स्वतंत्रता का अभाव नजर आने लगता है, और कानून का शासन  कमजोर होता है। सरकार प्रचार के माध्यम से अपनी नीतियों को उचित ठहराती है और असहमति को देशद्रोह या खतरे के रूप में चित्रित करती है।

भारत में पुलिस स्टेट बनाने की लत हाल के वर्षों में तेजी से बढी है. अतीत में  नाज़ी जर्मनी, सोवियत संघ (स्टालिन के शासनकाल में), और कुछ आधुनिक अधिनायकवादी शासनों को पुलिस स्टेट के उदाहरण के रूप में देखा जाता है, जहाँ नागरिकों की स्वतंत्रता को कठोर नियंत्रण के तहत दबाया गया।भारत में संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है, और लोकतांत्रिक ढांचा पुलिस स्टेट की विशेषताओं से बचने की कोशिश करता है। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में, जैसे आपातकाल (1975-1977) के दौरान, या कुछ विवादास्पद कानूनों (जैसे UAPA) के दुरुपयोग के मामलों में, पुलिस स्टेट जैसे लक्षण साफ नजर आ रहे हैं.

मप्र सहित डबल इंजन की सरकारें पुलिस स्टेट बनने और बनाने की ओर अग्रसर हैं. फर्जी मुठभेडें, बुलडोजरों का बेजा इस्तेमाल, बुद्धजीवियों की गिरफ्तारी, उनके ऊपर मुकदमे लादने की ताजा घटनाओं से इस बात की पुष्टि हो रही है कि देश पुलिस स्टेट की तरफ बढ रहा है. प्रो अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी, नेहा राठौड और कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय पर मुककदमें, महाराष्ट्र में एक स्टेंडिग कमेडियन के स्टूडियो में तोडफोड और सत्ता प्रतिषपर उंगली उठाने वाले लोगों को अर्बन नक्सली कहकर उन्हे पुलिस प्रताडना का शिकार बनाना पुलिस स्टेट को बढावा देना ही है.

पुलिस मजबूरी में पुलिस स्टेट बनने में सरकार का सहयोग कर रही है या पुलिस को ऐसा करने से लाभ है, ये कहना कठिन है. लेकिन एक बात तय है कि पुलिस स्टेट में पुलिस का इकबाल समाप्त हो रहा है. उसका देशभक्ति, जनसेवा का संकल्प अकारथ जा रहा है. जनता पुलिस पर भरोसा करने के बजाय पुलिस से नफरत करने लगी है. पुलिस पर बढते हमले चिंताजनक हैं.

इस मुद्दे पर मेरी अनेक पुलिस अफसरों से बात हुई. अनेक सेवानिवृत और मौजूदा आईपीएस अफसर पुलिस स्टेट की अवधारणा को अलोकतांत्रिक मानते हैं. नाम न देने के आग्रह के साथ इन अफसरों का कहना है कि सत्ता प्रतिष्ठान ने जबसे नियुक्ति और पदोन्नति प्रक्रिया का राजनीतिकरण किया है तब से हालात और बिगड गए हैं.पुलिस जनता के बजाय नेताओं की सेवा करने के लिए अभिशप्त हो चुकी है. जो लोग नेताओं की कठपुतली बनने से इंकार करते हैं उन्हें फील्ड से हटाकर बाबू बना दिया जाता है.मौजूदा समय मे इस मुद्दे पर तत्काल समीक्षा की सख्त जरूरत है.मैने शुरू में जिस घटना का जिक्र किया उसके पीछे भी जनाक्रोश ही प्रमुख वजह है.

 मप्र  में गुना जिले के मधुसूदनगढ़ में  अतिक्रमण हटाने पहुंचे प्रशासन और पुलिस पर अतिक्रमणकारियों ने हमला कर दिया। इस दौरान इन्होंने जामनेर थाना प्रभारी को त्रिशूल मार दिया। मधुसूदनगढ़ में भोपाल रोड पर बस स्टैंड की जमीन से अतिक्रमण हटाने गए प्रशासन और पुलिस की टीम पर हमला हुआ। करीब 30 वर्ष पुराने अतिक्रमण को हटाने अमला पहुंचा था। इस दौरान जामनेर थाना प्रभारी सुरेश सिंह कुशवाहा पर त्रिशूल से हमला किया गया, जिससे उनके हाथ की हथेली कट गई और चोट आई है।अब अतिक्रमण कराया किसी और ने, किया किसी और ने और पिटी पुलिस.

@ राकेश अचल

शनिवार, 24 मई 2025

भाजपा की साख और सड़क पर साखा

 

मप्र भाजपा के मंत्री से लेकर कार्यकर्त्ता तक पार्टी की साख को या तो बट्टा लगा रहे हैं या फिर अपनी ऊल जलूल हरकतों से उसमें चार चांद लगा रहे हैं. नयी खबर ये है कि भाजपा के एक नेता ने एक्सप्रेस हाइवे पर ही अपनी एक महिला मित्र के साथ साखा लगा डाली. नेताजी को पता नहीं था कि हाइवे पर जगह जगह लगी तीसरी आंख न सिर्फ उन्हे मिथुन मुद्रा में देख रही है बल्कि उसे रिकार्ड भी कर रही है.

मध्य प्रदेश से एक शर्मसार करने वाली कहानी सामने आई है. मध्य प्रदेश का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वायरल वीडियो में एक नेता जी नजर आ रहे हैं, जो दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे पर एक महिला के साथ बेहद आपत्तिजनक स्थिति में नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो के बारे में दावा किया जा रहा है कि इस वीडियो में दिख रहा शख्स मनोहर धाकड़ है. मनोहर धाकड़ भाजपा नेता बताए जा रहे हैं. हालांकि वायरल वीडियो के बाद पार्टी ने उनसे किसी प्रकार के संबंध का खंडन किया है. 

मनोहर धाखड़ की पत्नी सोहन बाई धाकड़ मंदसौर के बनी गांव की वार्ड क्रमांक-8 से जिला पंचायत सदस्य है. वे मंत्री विजय शाह से भी ज्यादा दुस्साहसी निकले.13 मई की रात के इस वीडियो में मनोहर धाकड़ दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे पर खड़ी सफेद बलेनो कार में एक महिला के साथ आपत्तिजनक हालत में दिख रहे हैं. धाकड़ साहब का धाकड़ वीडियो सोशल मीडिया पर 21 मई 2025 को देर रात अपलोड हुआ, जिसके बाद अश्लील वीडियो इंटरनेट पर सनसनी बना हुआ है.प्रदेश भाजपा प्रवक्ता यशपाल सिंह सिसोदिया ने बेहद लज्जित होते हुए कहा कि भाजपा की साख को प्रभावित करने वाले किसी भी घटनाक्रम पर कार्रवाई होनी चाहिए. मामला प्रदेश नेतृत्व के संज्ञान में है, जल्द निर्णय होगा. 

हाइवे पर साखा लगाने वाले  कथित भाजपा नेता मनोहर धाकड़  अब लापता है. उनका मोबाइल भी स्विच ऑफ आ रहा है.रतलाम रेंज के डीआईजी मनोज सिंह ने कहा कि वीडियो वायरल संभवतः 8 लेन सड़क की है. यह सड़क अभी नई बनी है. इस सड़क को अभी आम आदमी के लिए खोला नहीं गया है. उन्होंने यह भी कहा कि सार्वजनिक जगह पर ऐसे कृत्य करना निंदनीय है.

भाजपा का आम कार्यकर्ता हो या बडा नेता जो करता है खुल्लम खुल्ला करता है. मप्र के एक बुजुर्ग नेता भी इसी तरह के मामले में पार्टी की साख बढा चुके हैं हालांकि उन्हे बाद में सुप्रीमकोर्ट ने दोषमुक्त कर दिया था. वे भाथपा की भेलसा की तोप कहे जाते थे.

भाजपा नेताओं का साखा लगाने का शौक पुराना है.एक शाखा मृग  थे संजय जोशी. जोशी को 2005 में एक कथित सेक्स सीडी कांड के बाद मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संगठन महामंत्री के पद से हटाया गया था। यह सीडी, जिसमें संजय जोशी कथित रूप से एक महिला के साथ अंतरंग स्थिति में दिखाई दिए थे, मुंबई में बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन से ठीक पहले सामने आई थी। हालांकि, बाद में जांच में सीडी को फर्जी बताया गया, लेकिन संजय जोशी की सक्रिय राजनीति में वापसी नहीं हो सकी.

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के गृहनगर  उज्जैन में  वर्ष 2019 में प्रदीप जोशी को भी एक अश्लील वीडियो और चैटिंग मामले के बाद संभागीय संगठन महामंत्री के पद से हटा दिया गया था। यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद बीजेपी संगठन ने त्वरित कार्रवाई की थी. लेकिन धाकड़ एक आम कार्यकर्त्ता है.

भाजपा कर्नल सौफिया कुरेशी को आतंकियों की बहन बताकर तीन बार माफी मांग चुके हैं. उनके खिलाफ हाईकोर्ट के दखल के बाद मामला भी दर्ज है. एस आई टी मामले की जांच भी कर रही है लेकिन उन्हे अभी तक मंत्री पद से नहीं हटाया गया. हटाएंगे भी नहीं क्योंकि शाह साहब संघप्रिय जो हैं. भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के ऐसे असंख्य किस्से हैं. कोई लव जिहाद के आरोपी फरहान का मित्र है तो कोई चकला संचालन के आरोप में अदालती कार्रवाई का सामना कर रहे हैं. मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव तक का माँ-बहन के नाम के श्लोक बोलते हुए वीडियो वायरल हो चुके हैं.

मप्र भाजपा की साख हर दशक में कोई न कोई नेता, कार्यकर्ता बढाता ही रहता है. कोई अवैध संबंधों को लेकर तो कोई हत्याओं को लेकर. मुझे याद है कि बहुचर्चित शहला मसूद हत्या कांड  भोपाल में 16 अगस्त 2011 को हुआ था. जिसमें आरटीआई कार्यकर्ता शहला मसूद की उनके घर के बाहर कार में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में  भाजपा के तत्कालीन विधायक ध्रुव नारायण सिह का नाम सामने आया था, हालांकि वे इस मामले में कभी औपचारिक रूप से आरोपी नहीं बनाए गए।बाद में हत्या की पुष्टि हुई और केस सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई जांच में सामने आया कि शहला मसूद और जाहिदा परवेज, एक इंटीरियर डिजाइनर, दोनों के साथ ध्रुव नारायण सिंह के विवाहेतर संबंध थे। यह प्रेम त्रिकोण हत्या का कारण बना।जाहिदा परवेज ने शहला की हत्या की सुपारी दी थी, क्योंकि उसे लगता था कि शहला की वजह से ध्रुव के साथ उसकी नजदीकी कम हो रही थी। जाहिदा ने साकिब अली उर्फ 'डेंजर' और ताबिश जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को हत्या के लिए उकसाया था.सीबीआई ने जाहिदा परवेज, सपा फारुकी, साकिब अली, और ताबिश को दोषी ठहराया, जिन्हें 2017 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। एक अन्य आरोपी, इरफान, गवाह बन गया और उसे सजा से छूट मिली।ध्रुव नारायण सिंह का नाम जांच में आया, और जाहिदा ने उन्हें हत्याकांड का "मास्टरमाइंड" बताया था, लेकिन सीबीआई को उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला, और उन्हें क्लीन चिट दे दी गई।

मुमकिन है कि ये सिलसिला आगे भी जारी रहे, क्योंकि अब भाजपा की चाल, चेहरा और चरित्र पूरी तरह बदल चुका है.

(मनोहर धाकड का वीडियो सोसल साइट्स पर देखा जा सकता है )

@ राकेश अचल

सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा 25 मई को

 30 परीक्षा केन्द्रों पर होगी, परीक्षा  दो सत्रों में प्रात: 9.30 बजे से 11.30 बजे एवं दोपहर 2.30 बजे से अपरान्ह 4.30 बजे तक आयोजित की जायेगी

ग्वालियर  । संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा रविवार 25 मई को ग्वालियर शहर में 30 परीक्षा केन्द्रों पर होगी। यह परीक्षा इस दिन दो सत्रों में प्रात: 9.30 बजे से 11.30 बजे एवं दोपहर 2.30 बजे से अपरान्ह 4.30 बजे तक आयोजित की जायेगी। इस परीक्षा में 8 हजार 509 अभ्यर्थी सम्मिलित होंगे। 
ग्वालियर में सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा को सुव्यवस्थित ढंग से सम्पन्न कराने के लिये संयुक्त कलेक्टर श्री देवकीनंदन सिंह को परीक्षा प्रभारी एवं नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी दी गई है। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ऑब्जर्वर के रूप में सेक्टर ऑफीसर श्री हिमांशु कुमार को नियुक्त किया गया है। 
परीक्षा के लिये कलेक्ट्रेट के कक्ष क्र.-113 में कंट्रोल रूम स्थापित किया गया है। इसका टेलीफोन नम्बर 0751-2446214 है। कलेक्ट्रेट के अधीक्षक श्री आई आर भगत (मोबा. 9425135143) को कंट्रोल रूम का प्रभारी बनाया गया है। यह कंट्रोल रूम परीक्षा दिवस 25 मई को प्रात: 7 बजे से परीक्षा समाप्ति तक लगातार कार्यशील रहेगा। परीक्षा समय तक इस कंट्रोल रूम में परीक्षा से संबंधित शिकायतें एवं सुझाव दिए जा सकेंगे

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