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मंगलवार, 8 जुलाई 2025

9 जुलाई भारत के लिए निर्णायक दिन होगा

दुनिया के लिए हो या न हो लेकिन भारत के लिए 9जुलाई 2025 का दिन बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि इसी तारीख को भारत और अमेरिका के बीच एक ट्रेड डील होना है और इसी तारीख को भारत के चुनाव आयोग के खिलाफ पटना में जन आंदोलन का श्रीगणेश भी होना है. इन दोनों घटनाओं का असर भारत की राजनीति और विदेशनीति पर पडने वाला है.

अब तक हम सब 9जुलाई का दिन   इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए जाना जाता है। इस दिन 1875 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना हुई थी, जो एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज है. इसके अलावा, 1925 में भारतीय सिनेमा के महान अभिनेता और निर्देशक गुरु दत्त का जन्म हुआ था.9 जुलाई को ही 1938 में, अभिनेता संजीव कुमार का भी जन्म हुआ था, जिन्होंने हिंदी सिनेमा को अपनी सशक्त अभिनय से समृद्ध किया. 

9जुलाई 1969 के दिन बाघ को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया  था.. इसी दिन 1816: अर्जेंटीना ने स्पेन से स्वतंत्रता हासिल की और इसी तारीख में 1951 में  भारत में पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) प्रकाशित की गई.इसी दिन 2011 में सूडान एक जनमत संग्रह के बाद अलग देश बन गया.

महत्वपूर्ण ये है कि 9 जुलाई को ही भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील भी होना है. इससे ठीक पहले अमेरिका ने ब्रिक्स देशों पर दबाव बढ़ाते हुए सोमवार को जापान और दक्षिण कोरिया नए टैरिफ का ऐलान कर दिया. ट्रंप ने इन दोनों देशों को पत्र लिखकर नए टैरिफ के बारे में बताया है. यह टैरिफ 1 अगस्‍त से इन देशों पर लागू किया जाएगा. ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट में कहा कि 1 अगस्त से दोनों देशों पर 25% टैरिफ लगेगा. इससे दोनों देशों से डील करने के लिए अधिक समय मिल जाएगा. 

लगभग एक जैसे दो पत्रों में ट्रंप ने कहा कि वह दोनों देशों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापार घाटे के बारे में बहुत चिंतित हैं, जिसका अर्थ है कि अमेरिका उन देशों से जितना माल खरीदता है, उससे कहीं अधिक अमेरिकी व्यवसाय उन देशों को निर्यात करते हैं.

अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के इस नए ऐलान के बाद अमेरिकी बाजार में गिरावट देखने को मिली. अमेरिकी शेयर बाजार तेजी से गिरा. Dow Jones और S&P 500 में 1 फीसदी से ज्‍यादा गिरावट आई. Dow 1.13% या 505 अंक गिरकर 44,322.82 पर था, जबकि S&P 500 इंडेक्‍स 58 अंक या 0.95 फीसदी गिरकर 6243 अंक पर था. हालांकि धीरे-धीरे मार्केट में रिकवरी भी आ रही थी. अब भारत इस टैरिफ बार में जीतता है या हारता है, इसका पता लगना बाकी है. भारत के किसान और विपक्षी दल इस डील के खिलाफ हैं.

ये तो हुई एक बात. दूसरी बात ये है कि कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी बुधवार को पटना दौरे पर रहेंगे, जहां वे नए श्रम संहिता और बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन ऑफ इलेक्टोरल रोल्स (विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण) के खिलाफ आयोजित 'चक्का जाम' आंदोलन में शामिल होंगे. इस आंदोलन की घोषणा सोमवार को आई एन डी आई ए गठबंधन के नेताओं ने की.  राजद के तेजस्वी यादव ने ऐलान किया कि वे 9 जुलाई को राहुल गांधी के साथ मिलकर चक्का जाम करेंगे. उन्होंने कहा, जिस तरह से बिहार के लोगों से वोटिंग का अधिकार छीना जा रहा है, उसी तरह जल्द ही उनके अन्य अधिकार भी छीन लिए जाएंगे, इसलिए हम सब मिलकर इसका विरोध करेंगे.

इन दोनों भावी घटनाओं को लेकर भारत के लोग सांस थामकर बैठे हैं. मोदी सरकार के लिए एक ओर डोनाल्ड ट्रंप साहब चुनौती हैं तो घरेलू मोर्चे पर राहुल गांधी. दोनों ने मिलकर हमारे विश्व विख्यात प्रधानमंत्री की नींद हराम कर रखी है.

@ राकेश अचल

सोमवार, 7 जुलाई 2025

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर पूर्व विधायक पिरोनिया ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को सम्मानित किया

 ग्वालियर ।भांडेर के पूर्व विधायक घनश्याम पिरोनिया ने  भारतीय जनता पार्टी उन्नाव  मंडल में आयोजित डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती मे मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया।  कार्यक्रम की अध्यक्षता उन्नाव मंडल अध्यक्ष श्री दिनेश शर्मा घरावा द्वारा की गई । इस अवसर पर कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश बांस विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष एवं भांडेर के पूर्व विधायक श्री घनश्याम पिरोनिया ने भाजपा की वरिष्ठ नेताओं का शॉल श्रीफल से सम्मानित किया ।

 कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक घनश्याम पिरोनिया ने कहा कि डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक देश में दो निशान, दो विधान ,दो प्रधान का विरोध किया था । आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर से धारा 370  हटाकर डॉ मुखर्जी के सपनों को साकार किया है ,और कश्मीर में आतकंवादियों को सबक सिखाने का काम किया । 

अध्यक्षीय भाषण में मंडल अध्यक्ष श्री दिनेश शर्मा ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी देश के विकास के लिए काम कर रही है । कार्यक्रम में मुख्य रूप से जगदीश शर्मा किसान मोर्चा मंडल अध्यक्ष गोविंद सिंह दांगी किसान मोर्चा मंडल महामंत्री भगवत डांगी राममिलन डांगी अंकित दांगी दयाराम कुशवाहा अशोक कुशवाहा रोहित डांगी करण प्रजापति आकाश अहिरवार

राजेंद्र शर्मा रिंकू शर्मा गोविंद डांगी रवि दांगी चरण सिंह दांगी विनोद डांगी वीरन डांगी राठौर निरंजन सुरेश लिटोरिया दिनेश लिटोरिया मदन डांगी देव प्रसाद कुशवाहा मनोहर कुशवाहा कम्मू अहिरवार बंटी परिहार सहित अनेक लोग उपस्थित थे ।

सिन्धु वेलफेयर सोसायटी का स्थापना दिवस समारोह आयोजित

2025-26 के लिए निर्विरोध कार्यकारिणी घोषित 

ग्वालियर । सिन्धु वेलफेयर सोसायटी ने अपने गौरवशाली स्थापना दिवस के अवसर पर भव्य समारोह का आयोजन किया। इस विशेष अवसर पर संस्था के आगामी सत्र 2025-26 के लिए चुनाव भी संपन्न हुए, जिसमें सभी पदों पर निर्विरोध निर्वाचन हुआ। चुनाव अधिकारी श्री पीतांबर लोकवानी एवं जय जयसिंघानी और निर्मल अयलानी के मार्गदर्शन मेंनव-निर्वाचित कार्यकारिणी में निम्न पदाधिकारियों का चयन हुआ।

नवीन कार्यकारिणी 

अध्यक्ष: [विजय वलेचा]

सयुक्त अध्यक्ष (धनराज दर्रा) 

उपाध्यक्ष: [कन्हैयालाल 

छाबड़ा]

सचिव: [मनीष सजवानी]

 सह सचिव  (विकास डावानी) 

कोषाध्यक्ष: [अविनाश हिरानी]

समारोह में संस्था के संस्था संस्थापक स्वर्गीय श्रीचंद वलेचा के लिए 2 मिनिट का मौन धारण कर  उनको श्रद्धांजलि दी गई एवं पूर्व अध्यक्षों और  वरिष्ठ सदस्यों का सम्मान किया गया  संस्था सदस्यों  की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की। संस्था के पूर्व सचिव गोपाल मोटवानी द्वारा सामाजिक सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में किए गए कार्यों का भी संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया। 

अध्यक्षीय उद्बोधन विजय बलेचा ने पढ़ा संस्था का साल भर का लेखा-जोखा कोषाध्यक्ष अविनाश हिरानी द्वारा बताया गया संस्था के नए सह सचिव विकास डावानी द्वारा संस्था को डिजिटल रूप देने के लिए संस्था की वेबसाइट का शुभारंभ किया और संस्था की ई डायरेक्टरी लॉन्च की गई जिसमें संस्था के सारे सदस्यों की जानकारी और संस्था के कार्यक्रमों का विवरण एवं फोटो एक क्लिक में देख सकते हैं स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर संस्था में 11 नए सदस्य भी जोड़े गए इस अवसर पर पूर्व अध्यक्ष तुलसीदास हिंदूजा, पीतांबर लोकवानी, जय  जयसिंघानी राजेश माखीजा एवं  कार्यकारिणी सदस्यडॉ भीष्म जैसवानी,प्रहलाद रोहिरा, नरेन्द्र छबलानी,अमर माखीजा ,कमल विजय, रमेश जयसिंघानी, महेश कुकरेजा, आनंद भाटिया, सुभाष खुशीरामानी, मुकेश वासवानी, सुशील कुकरेजा हर्ष मोरियानी, मोनू कुकरेजा, विक्की गिदवानी, डॉ यशवन्त दुसेजा, हर्ष हेमराजनी,सुनील गेही राजकुमार जोतवानी, नरेश रामानी,आदि उपस्थित थे ।

कार्यक्रम का संचालन निवृतमान अध्यक्ष अमृत माखीजानी ने किया ।

सिन्धु वेलफेयर सोसायटी अपने सेवा कार्यों को आगामी वर्ष में और अधिक विस्तार देने के लिए प्रतिबद्ध है।



ज्योतिरादित्य को खानसामा मत समझिये, वे महाराज ही हैं

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस तस्वीर को देखकर आजकल कहा जा रहा है कि भाजपा ने पांच साल में ही महाराज (राजा)को महाराज(खानसामा )बना दिया. लेकिन मैं इस धारणा से इत्तफाक नहीं रखता. मेरी मान्यता है कि भाजपा में आकर भी ज्योतिरादित्य के भीतर का सामंत जैसा पहले था, ठीक वैसा ही आज भी है बल्कि आज पहले के मुकाबले ज्यादा सुकून में है.

सिंधिया परिवार में सौजन्यता, विनम्रता और सामंतवाद का दुर्लभ लक्षण है. मै पिछले पांच दशक से इसे बहुत नजदीक से देख रहा हूँ. ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता स्वर्गीय विजयाराजे सिंधिया को ममत्व और त्याग की मूर्ति कहा जाता था. वे थी भी बहुत साधारण. राजपथ छोडकर लोकपथ पर आने वाली वे सिंधिया घराने की पहली महिला थीं. वे साहसी थीं, भावुक थीं और जिद्दी भी. उनकी तुनकमिजाजी खास मौकों पर ही प्रकट होती थी.

राजमाता को भी मैने अपने हाथों से अपने अतिथियों को भोजन परोसते देखा है. 1980के आसपास जब मै नया-नया पत्रकार था तब मैने भी उनके हाथों परोसा भोजन किया है. मुझे तो वे बुंदेली होने के नाते अतिरिक्त तवज्जो देतीं थीं लेकिन उन्हें भाजपा या जनसंघ या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने विनम्र नहीं बनाया था. ये विनम्रता जीवन के तमाम उतार-चढाव की वजह से उनके जीवन में आयी थी. यदि मैं इन उतार -चढावों के बारे में लिखूंगा तो मामला बेहद निजी हो जाएगा. लेकिन संकेतों से समझिये कि उन्हे राजनीति और निजी जीवन में जो खट्टे -मीठे अनुभव मिले, उनसे वे विनम्र हुईं.

राजमाता के पुत्र स्वर्गीय माधवराव सिंधिया तो अपनी माँ और बेटे के मुकाबले हजार गुना अधिक विनम्र और दो हजार गुना ज्यादा सामंत थे. लेकिन उन्हे जनसंघ या कांग्रेस ने विनम्र नहीं बनाया था. वे भी अपनी मां की तरह जीवन की कडवी सच्चाई से दो -चार होते हुए विनम्र बने थे. वे भी अपने मेजवानों को अपने हाथ से खाना परोसने में ही हीं बल्कि निजी आयोजनों में और कुछ भी परोसने में संकोच नहीं करते थे. उनके साथ एक पत्रकार के नाते मेरा लंबा रिश्ता रहा. मैं उनका धुर विरोध रता था किंतु वे मेरे प्रति विनम्र ही रहे.

रही बात ज्योतिरादित्य की तो उन्हे मैने उनकी किशोरावस्था से देखा है. उनका पहला साक्षात्कार उनके पिता के कहने पर आजतक के लिए मैने ही किया था. माधवराव सिंधिया के  आकस्मिक निधन के बाद राजनीति में आए ज्योतिरादित्य के साथ पहली बार शिवपुरी में प्रेस से मैने ही उन्हे रूबरू कराया था. लेकिन 2000 के ज्योतिरादित्य  और आज के ज्योतिरादित्य में कोई तब्दीली आई हो ऐसा मुझे नहीं लगता. उनकी विनम्रता, उनकी सादगी, उनका सौजन्य परिस्थितिजन्य है. ज्योतिरादित्य को भी ढाई दशक की राजनीति ने बहुत कुछ अभिनय करना सिखा दिया है. उन्होने राजनीति में सम्मान, तिरिष्कार, पराजय, अपमान सब देखा है. भाजपा में जब वे शामिल हुए थे तब घबडाए हुए थे लेकिन वे आज भाजपा में अपने आपको पूरी तरह सुरक्षित महसूस करते हैं. भाजपा में ज्योतिरादित्य का आत्मविश्वास तब से और बढा है जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से अपना दामाद कहा है.

ज्योतिरादित्य को अपने परिवार के साथ जिन लोगों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने हाथ बांधे खडे देखा था वे भी भ्रम में हैं और वे भी भ्रम में हैं जो समरसता सम्मेलन में ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री के साथ खाना परोसते देख ये समझ बैठे हैं कि महाराजाधिराज खाना परोसने वाले महाराज बन गये हैं. ज्योतिरादित्य बिल्कुल नहीं बदले. उनमें अपनी दादी की तरह बगावत करने का भी जज्बा है और अपने पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की तरह शतुरमुर्गी मुद्रा अपनाने का साहस भी. 

ज्योतिरादित्य अब बहुत परिपक्व हो चुके हैं. उनका एक मात्र लक्ष्य कहिये या सपना या महात्वाकांक्षा वो है अपनी आंखों के सामने अपने बेटे को संसद में भेजना. भाजपा में सिंधिया का रास्ता निष्कंटक है. उनके परम विरोधी जयभान सिंह पवैया उनके बगलगीर हैं. प्रभात झा रहे नहीं. नरेंद्र सिंह तोमर ठंडी आग बन चुके हैं. मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से ज्योतिरादित्य ने पेंगे बढा ही ली है.

पिछले पांच साल में ज्योतिरादित्य ने न केवल भाजपा संगठन में बल्कि आर एस एस में भी जगह बना ली है.. आपको याद होगा कि संघ तो अपने जन्म से ही सिंधिया परिवार का ऋणी है. ज्योतिरादित्य की दादी ने संघ, जनसंघ और भाजपा को तमाम संपत्ति न्यौछावर में दे दी थी.इसलिए फोटो देखकर भ्रम पालना छोड दीजिये मित्रों.

@ राकेश अचल

रविवार, 6 जुलाई 2025

पूर्व विधायक पिरौनिया ने किसानों को निशुल्क बीज वितरण किया

 किसानों को छह हजार रुपए सालाना दे रही मोदी सरकार : पिरोनिया

किसानों के सर्वांगीण विकास के लिए मोदी सरकार और मप्र की सरकार प्रतिबद्ध है उक्त उद्गार भांडेर के पूर्व विधायक श्री घनश्याम पिरोनिया ने आज भांडेर विधानसभा क्षेत्र ग्राम सालोन ए में कृषि विभाग द्वारा आयोजित बीज वितरण समारोह में कही ।

 भांडेर के पूर्व विधायक श्री घनश्याम पिरौनिया द्वारा ग्राम सालोंन ए में लगभग 200 किसानों को निशुल्क उड़दा का  बीज वितरण किया गया ।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक श्री घनश्याम पिरौनिया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के कल्याण के लिए अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया। किसान सम्मान निधि के आधार पर हर किसानों के खाते में छह हजार रुपए सालाना मोदी सरकार खातों में डाल रही है। खेती को लाभ का धंधा बनाने एवं सिंचाई क्षमता बढ़ाने और नहरों के विकास लिए सरकार काम कर रही है । 

पूर्व विधायक श्री घनश्याम पिरौनिया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार और मप्र में डा मोहन यादव की सरकार किसानों के जीवन स्तर को सुधारने का काम कर रही है। कार्यक्रम का संचालन ने किया।

 इस अवसर पर जनपद सदस्य एवं कृषि स्थाई समिति के अध्यक्ष उर्मिला मुन्नालाल दागी,विशाल दांगी, रामबख्श ,कैलाश नारायण दागी गोविंद कुशवाहा, दुर्गा प्रसाद दोहरी, उमा देवी, नाथू वर्मा, कुलदीप शर्मा,कमल सिंह कमलेश कुशवाहा, कमलेश पाल,  श्री राम दोहर,कुलदीप वर्मा ,बनमली ,उमा देवी जगमोहन,रामहित जाटव ओमप्रकाश वाल्मीकि राजेंद्र पाल ,रमाकांत दांगी, कैलाश नारायण दांगी ,कल्याण सेन, रामकिशन प्रजापति, गौरव शर्मा, धनाराम दोहरे,श्यामसुंदर हरकिशन प्रजापति, सहित ग्रामवासी उपस्थित रहे।

अग्रवाल युवक युवती परिचय सम्मेलन 20 से, 750 पंजीयन हुये

ग्वालियर। अखिल भारतीय अग्रवाल परिचय सम्मेलन द्वारा तीन दिवसीय आयोजन के लिए 55 ऐसे परिवार हैं जो अपने बेटे ओर बेटियों के रिश्ते पुनः करना चाहते हैं। इस परिचय सम्मेलन में हमारे समाज के बहनें और भाई है जिनका विवाह पहले हो चुका है और आपसी तालमेल न बैठ पाने के कारण रिश्ते टूट गये। समाज में यह बहुत ही गंभीर समस्या है। यह बात अग्रवाल परिचय सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश ऐरन ने कही है। 

श्री ऐरन ने कहा कि इस बार इनके रिश्ते कराने का पुरजोर प्रयास होगा। 55 परिवारों मे 35 परिवार तलाक शुदा युवक युवतियों के हैं और ऐसे 20 परिवार है जिनके जीवन साथी बिछुड गए हैं 20 मई को दोपहर 2 बजे से मानस भवन में सम्मेलन प्रारंभ होगा। परिचय सम्मेलन में वैश्य समाज के सभी घटक जैन समाज, माहेश्वरी समाज, खण्डेलवाल समाज गहोई वैश्य समाज के बन्धु भी शामिल होंगे। सम्मेलन की व्यवस्थायों के लिए 21 सदस्यीय समिति बनाई गई है, जिनमें मुकेश सिंघल, दिलीप अग्रवाल, आनन्द अग्रवाल, अनिल अग्रवाल, अनिल गर्ग, महेंद्र अग्रवाल, राकेश अग्रवाल, ओमप्रकाश अग्रवाल, संदीप मंगल, बालकृष्ण अग्रवाल, उत्तम बंसल, जगदीश अग्रवाल, विजय गोयल, मोहित बंसल, रामप्रकाश अग्रवाल, शौर्य अग्रवाल, कमलेश बाबू अग्रवाल, गोपाल जैन, विवेक अग्रवाल, दिनेश बंसल सुभाष अग्रवाल शामिल हैं।

बिहार में जनादेश से पहले रार

और वही हुआ जिसकी आशंका थी. बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण में मनमानी का मामला देश की सबसे बडी अदालत में पहुंच गया, उसी बडी अदालत में जहाँ पहले से बेहद जरूरी मामलों में सुनवाई के बाद फैसले सुनाने के बजाय सुरक्षित रख लिए गए हैं. ये मामला 9जुलाई को जनता की अदालत में भी  विपक्षी इंडिया गठबंधन की ओर से पेश किया जा रहा है.

 ताजा खबर ये है कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म(एडीआर) ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान कराने के फैसले को देश की सबसै बडी अदालत में चुनौती दी है. संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर जनहित याचिका में चुनाव आयोग के एसआईआर के फैसले पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गयी है. याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए ऐसे दस्तावेजों की मांग की है, जिसके कारण कई लोग मतदान करने के वंचित हो सकते हैं.

 आपको याद हो कि चुनाव आयोग ने मतदाता पुनरीक्षण के लिए जो शर्ते लगाईं हैं उन्हे देखकर लग रहा है कि केंचुआ मतदाता सेचियों के पुनरीक्षण की आड में बिहारी मतदाओं की नागरिकता की जांच करना चाहता है.बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने के फैसले को लेकर विपक्षी दल लगातार सवाल उठा रहे हैं. चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष अपनी चिंता जाहिर कर चुका है. लेकिन चुनाव आयोग साफ कर चुका है कि यह मामला पूरी तरह पारदर्शी है.

  एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म(एडीआर) ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर जनहित याचिका में चुनाव आयोग के एसआईआर के फैसले पर तत्काल रोक लगाने की मांग की  है. याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने के लिए ऐसे दस्तावेजों की मांग की है, जिसके कारण कई लोग मतदान करने के वंचित हो सकते हैं. साथ ही आयोग के फैसला संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 को उल्लंघन करता है. यही नहीं आयोग के फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 की धारा 21(ए) और मतदाता पंजीकरण कानून 1960 के खिलाफ है. 

फिलहाल बिहार में पहले से मौजूद मतदाताओं काे अब नागरिकता का सबूत देना होगा. सबसे अधिक चिंता की बात है कि आयोग ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और अन्य दस्तावेजों को सबूत के तौर पर मानने से इंकार कर दिया है. इस फैसले के कारण राज्य के करोड़ों गरीब लाेग मतदान से वंचित हो जायेंगे.

एडीआर की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के फैसले का ठोस कारण नहीं बताया. जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 की धारा 21(3) के तहत चुनाव आयोग को ठोस कारण के आधार पर विशेष पुनरीक्षण करने का अधिकार है. लेकिन बिहार के लिए आयोग ने कोई ठोस कारण नहीं बताया है. याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 तक मतदाता सूची का आंशिक समीक्षा की और इसमें व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी की बात सामने नहीं आयी.

. बिहार में गरीबी और पलायन एक बड़ा मुद्दा है. बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाण पत्र या अपने माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं. ऐसे में शीर्ष अदालत को तत्काल इस मामले में दखल देने की आवश्यकता है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि बडी अदालत इस मामले में फौरनकोई दखल देगी. अब बिहार के विपक्षी गडबंधन और जन अदालत ही केंचुआ को मजबूर कर सकती है. 9जुलाई को विपक्ष सडकों पर आ रसा है. बचाव में सत्तापक्ष भी मोर्चा लेगा. केंचुआ को अकेला नहीं छोडने वाला, क्योंकि केंचुआ ने इतना बडा जोखिम सत्ता प्रतिष्ठान के आदेश पर ही लिया है. स्वर्गीय टीऐन शेषन ने केंचुआ को जो प्रतिष्ठा दिलाई थी उसे संघप्रिय  मौजूदा केंद्रीय मुख्य चुनाव आयुक्त ने मिट्टटी में मिला दिया है. अब तेल देखिए और तेल की धार देखिए.केंचुआ झुकता है, हठधर्मिता दिखाता है या कोबरा की खाल ओढे बैठा रह सकता है.

@ राकेश अचल





गुरुवार, 3 जुलाई 2025

नो ईडी, नो सीबीआई, मानसून खोलता है भ्रष्टाचार की पोल

भारत में भ्रष्टाचार की जांच के लिए बना प्रवर्तन निदेशालय हो या सीबीआई फेल हो सकता है लेकिन वर्षा इकलौती एजेंसी है जो निर्माण कार्यों में हुए बडे से बडे भ्रष्टाचार की पोल खोल देती है. दुर्भाग्य ये है कि हमारी सरकारें फिर भी दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करतीं और न उन्हे सजा दिला पाती हैं, क्योंकि ये तमाम भ्रष्टाचार सरकार के संरक्षण में ही फलता -फूलता है.

देश में हर साल मानसून बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के निर्माण कार्यों में आकंठ भ्रष्टाचार की पोल खोलता है. मानसून के आते ही हमारे हवाई अड्डों की छतें आंसू बहाने लगती हैं. सडकें बहने लगतीं है और बडे से बडे पुल-पुलियां टूटने लगते हैं. पहाड धंसने लगते हैं, जल भराव होने लगता है. बडी संख्या में धनहानि के साथ जनहानि होती है किंतु किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. सजा देने की बात तो छोड दीजिये.

सामंतों के शहर ग्वालियर में स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत बनाई गई सडकें पहली बरसात में धंस जातीं हैं, सुपर मल्टी स्पेशल अस्पताल की सीलिंग टपकने लगती है तो देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे का टर्मिनल नंबर 1टपकने लगता है लेकिन न कसी को कोई लज्जा आती है, न किसी की आंखें शर्म से झुकतीं हैं. सुदूर गांवों से लेकर महानगरों तक में अकल्पनीय थल भराव से बिना लागत के स्वीमिंग पूल बन जाते हैं. लोग मरते हैं, घायल होते हैं लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पडता, सिवाय गरीब जनता के. इस खौफनाक, शर्मनाक मंजर से घबडाकर हमारे प्रधानमंत्री जी विदेश यात्रा पर निकल जाते हैं और पूरी सरकार बिहार जीतने में लग जाती है.

मानसून न आए तो देश में निर्माण कार्यों में बडे पैमाने पर होने वाले भ्रष्टाचार की पोल ही न खुले. देश में निर्माण कार्य चाहे रक्षा मंत्रालय में हों या लोकनिर्माण विभाग में भ्रष्टाचार के लिए अभिशप्त हैं. 40 प्रतिशत तक कमीशन पर ठेके होते हैं. स्थानीय निकाय नदी-नालों के जल निकासी के रास्तों पर अतिक्रमण को अनदेखा कर देते हैं और खामियाजा भुगतती है जनता. शहरों में जलभराव की असली जड नालों पर अवैध कब्जे और अवैध निर्माण ही हैं लेकिन मजाल कि कोई इसके खिलाफ कार्रवाई कर दिखाए. सरकारी बुललडोजर केवल अल्पसंख्यकों के मकान गिराती है.

भारी बारिश और बाढ़ के कारण  अकेले हिमाचल प्रदेश में भारी तबाही हुई.। 30 जून तक, राज्य में 39 लोगों की मौत और 129 सड़कों के बंद होने की खबर थी।कुल्लू जिले में ब्यास नदी के उफान पर होने की वजह से भारी नुकसान।1 और 2 जुलाई के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी, जिसमें भूस्खलन और जलभराव का खतरा बताया गया।उत्तराखंड:भारी बारिश और भूस्खलन से चारधाम यात्रा प्रभावित। यमुनोत्री ट्रेक रूट पर 23 जून को भूस्खलन में 5 लोगों की मौत।रुद्रप्रयाग में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना, जिसमें खराब मौसम के कारण पायलट समेत 7 लोगों की मौत।देहरादून में घरों में पानी घुसने की घटनाएँ।

पूर्वोत्तर में बाढ़ और भूस्खलन से 50 से अधिक लोगों की मौत और 15,000 हेक्टेयर फसलों का नुकसान हो गया ।मणिपुर, मिजोरम, और नगालैंड जैसे राज्यों में मानसून की शुरुआत विनाशकारी रही।गुजरात और महाराष्ट्र में चक्रवात बिपरजॉय (2023 में) जैसे पिछले अनुभवों की तरह, 2025 में भी भारी बारिश और तेज हवाओं (40-60 किमी/घंटा) की वजह से तटीय जिलों (वेरावल, पोरबंदर, जामनगर, नवसारी, वलसाड) में भारी नुकसान आपके सामने है.

महाराष्ट्र में भारी बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त, स्कूल बंद, और मुंबई में रेड अलर्ट। बिहार में बिजली गिरने से 10 लोगों की मौत और 13 से अधिक जिलों में खतरे की चेतावनी।झारखंड में बाढ़ और बारिश से तबाही, मैदानी इलाकों में तालाब जैसे हालात। मोटे अनुमान के हिसाब से वर्ष 2013-2022 के दशक में प्राकृतिक आपदाओं से औसतन 8 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 66,000 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ, जिसमें बाढ़ का हिस्सा 63 प्रतिशत था. बाढ आती ही भ्रष्टाचार के कारण है. 2023 में यह नुकसान 12 अरब डॉलर तक पहुंचा। 2025 के लिए अभी पूर्ण आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन स्थिति गंभीर है।

 मानसून में विभिन्न स्रोतों के आधार पर, हिमाचल (39), उत्तराखंड (12+), पूर्वोत्तर (50+), और बिहार (10) में कुल मिलाकर 100 से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। यह संख्या और अधिक हो सकती है, क्योंकि पूरे देश के आंकड़े एकत्रित नहीं हैं। अंधाधुंध विकास के नाम पर प्रकृति से छेडछाड के चलते हिमाचल, उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, राजस्थान, और पूर्वोत्तर राज्यों में भारी बारिश, बाढ़, और भूस्खलन की घटनाएँ हो रहीं हैं, लोग मर रहे हैं।आर्थिक नुकसान हो रहा है लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पडता क्योंकि ये मौसम ही तो खाने- कमाने का और उजागर हो रहे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का मौसम है. आपदा राहत के नाम पर भ्रष्टाचार के अलाबा और क्या होता है? देश में कितने पुल गिरे, कितनी सडकें बहीं किसी ने नैतिकता के चलते इस्तीफा दिया? किसी एक इंजीनियर को सजा हुई. मप्र में एक महिला मंत्री पर एक हजार करोड का कमीशन लेने का आरोप लगा, जांच हुई, लेकिन न मंत्री जेल गई और न लोनिवि का कोई अधिकारी. फिर भी भारत महान है.कांग्रेस के जमाने भी महान था और भाजपा के जमाने में भी भारत महान है. आंखें बंद कीजिए और चैन से सोइए. प्रतिकार करने से आखिर लाभ क्या है. अंधेर नगरी, अंधेर राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा, की व्यवस्था जिंदाबाद.

@  राकेश अचल

बुधवार, 2 जुलाई 2025

पुराने होने की सजा या कोई बडी साजिश

भारत में कहावत है कि साठा सो पाठा, लेकिन दिल्ली समेत देश के तमाम हिस्सों में सरकारें प्रदूषण बढने की आब में 10-15 साल पुराने डीजल और पैट्रोल वाहनों को जबरन सडकों से हटाने पर आमादा है. जबकि पुराने वाहनों से कहीं ज्यादा प्रदूषण दूसरे माध्यमों से फैलाया जा रहा है.

प्रदूषण एक राष्ट्रीय समस्या है लेकिन इसका निदान पुराने वाहनों को सडको से हटाना कदापि नहीं है.दिल्ली में पुराने वाहनों को फ्यूल देने पर लगी रोक मंगलवार से लागू हो गई। दिल्ली के सभी पेट्रोल पंपों पर सुबह से ही ट्रैफिक पुलिस, दिल्ली पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारियों की तैनाती देखी गई। ज्यादातर स्थानों पर पेट्रोल पंपों पर कैमरे लगाने, 10 साल से ज्यादा पुराने डीजल और 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों को ईंधन से मनाही वाले बोर्ड भी लगे नजर आए। पहले दिन कम संख्या में पुराने वाहन पेट्रोल भराने के लिए पहुंचे, जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई। जानें पहले दिन कितने वाहन कैमरे में हुए कैद?

भारत में कुल पंजीकृत डीजल और पेट्रोल वाहनों की सटीक संख्या और उनमें से 15 साल पुराने वाहनों की संख्या के बारे में नवीनतम आधिकारिक आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि यह डेटा विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के परिवहन विभागों द्वारा अलग-अलग रखा जाता है. हालांकि भारत में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021 तक देश में कुल पंजीकृत वाहनों की संख्या लगभग 30 करोड़ थी, जिसमें दोपहिया, चारपहिया, वाणिज्यिक वाहन, और अन्य श्रेणियां शामिल हैं। इनमें डीजल और पेट्रोल वाहनों का एक बड़ा हिस्सा है, दिल्ली जैसे क्षेत्रों में 2025 तक लगभग 62 लाख वाहन "एंड ऑफ लाइफ"  श्रेणी में आते हैं, जिनमें 41 लाख दोपहिया और 18 लाख चारपहिया वाहन शामिल हैं। इनमें से अधिकांश पेट्रोल और डीजल वाहन हैं।

 हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान में भी एंड आफ लाइफ वाहनों की संख्या क्रमशः 27.5 लाख, 12.4 लाख, और 6.1 लाख बताई गई है।15 साल पुराने पेट्रोल और 10 साल पुराने डीजल वाहनों को "एंड ऑफ लाइफ" माना जाता है। 2025 तक, दिल्ली में लगभग 55-62 लाख वाहन इस श्रेणी में आते हैं, जिनमें 66 फीसदी दोपहिया और 54 फीसदी चारपहिया वाहन शामिल हैं।राष्ट्रीय स्तर पर, 15 साल पुराने वाहनों की संख्या का सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अनुमान के आधार पर, देश में कुल पंजीकृत वाहनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (लगभग 15-20 फीसदी है.15 साल से अधिक पुराना हो सकता है। यह अनुमान क्षेत्रीय डेटा और स्क्रैपेज नीति के तहत डी-रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या पर आधारित है।

उदाहरण के लिए अकेले गाजियाबाद में 2.72 लाख वाहन 10-15 साल की आयु सीमा पार कर चुके हैं, और 4.62 लाख वाहन स्क्रैपेज नीति के अंतर्गत आते हैं।राष्ट्रीय वाहन स्क्रैपेज नीति (2021)के तहत, 20 साल पुरानी निजी कारों और 15 साल पुरानी वाणिज्यिक गाड़ियों को डी-रजिस्टर करने का प्रावधान है। दिल्ली-एनसीआर में, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों के अनुसार, 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध है।दिल्ली में, 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों की संख्या लगभग 38 लाख और 10-15 साल पुराने डीजल वाहनों की संख्या 1.5 लाख है।इन नियमों का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना है, और पुराने वाहनों को या तो स्क्रैप करना पड़ता है या उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करना पड़ता है।

परिवहन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, पहले दिन कड़ी निगरानी, ​​कड़ी सुरक्षा और तमाम एजेंसी की कड़ी निगेहबानी के बीच 24 पुराने वाहनों को जब्त किया गया। पहले दिन कुल 98 वाहन कैमरे में कैद हुए। इनमें से 80 को नोटिस जारी किया गया। इनमें से 45 को परिवहन विभाग की ओर से जबकि 34 को दिल्ली पुलिस की ओर से नोटिस जारी किया गया। एक वाहन को एमसीडी ने नोटिस जारी किया।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की ओर से जारी निर्देशों के तहत मंगलवार से समूची दिल्ली के पेट्रोल पंपों को ओवर एज वाहनों को फ्यूल नहीं देने के लिए कहा गया है। पुलिस के अनुसार, सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक अभियान के तहत 24 वाहनों को जब्त किए गए.

विशेष पुलिस आयुक्त (यातायात) अजय चौधरी ने पीटीआई को बताया कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य दिल्ली के पर्यावरण को बेहतर बनाना और प्रदूषण को कम करना है

सवाल ये है कि जिस देश में आम आदमी पूरी जिंदगी में मुश्किल से एक घर और एक कार खरीद पाता है, वहां राष्ट्रीय वाहन स्क्रेप नीति का औचित्य क्या है? ऐसी नीतियाँ संपन्न देशों के लिए तो ठीक हैं लेकिन भारत के लिए नहीं. ऐसी नीतियाँ विश्व बाजार के दबाव में बनाई जाती हैं ताकि वाहन उत्पादको को फायदा पहुंचाया जा सके.

आपको बता दें कि भारत में  2023-24 में, भारत में कुल यात्री वाहनों (पैसेंजर व्हीकल्स) का उत्पादन लगभग 50 लाख यूनिट्स के आसपास रहा, जिसमें कारें, एसयूवी, और अन्य यात्री वाहन शामिल हैं.2025 के लिए, कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन उद्योग की वृद्धि और इलेक्ट्रिक वाहनों  की बढ़ती मांग को देखते हुए, उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है। विशेष रूप से, इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में 2025 में 40 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, जिसमें कुल बिक्री 1,38,606 यूनिट्स तक पहुंचने की उम्मीद है। यह उत्पादन क्षमता में विस्तार और नए मॉडल्स की लॉन्चिंग, जैसे मारुति सुजुकी ई-विटारा, टाटा हैरियर ईवीऔर  एमजी की नई ईवीएस के कारण संभव है।पुराने वाहनों को इन्ही के लिए जबरन हटाया जा रहा है.

मैने 2005 में मारुति -800खरीदी  थी वो भी ऋण लेकर. मेरी कार मुश्किल से 10हजार किमी चली. उससे कोई प्रदूषण नहीं फैलता लेकिन अब उसे सडक पर नहीं ला सकते. मेरे जैसे असंख्य भारतीय हैं जो दूसरा वाहन नहीं खरीद सकते. उनके लिए स्क्रेप नीति जानलेवा है. सरकार को प्रदूषण कम करने के दूसरे उपाय करना चाहिए न कि जबरन पुराने वाहनों को कबाड में बदलना चाहिए.इस विषय में तमाम राजनीतिक दल मौन हैं. कल को सरकार पुराने वाहनों की तरह उम्रदराज लोगों से भी सडक पर न आने की नीति बना सकती है. कहते हैं कि नाच न आवे, आंगन टेढा. सरकार प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखाने तो बंद करा नहीं पाई लेकिन गरीब वाहन चालकों के कान ऐंठ रही है. भारत में ऐसी नीतियों का विरोध होना चाहिए. माननीय अदालत को स्वतः संज्ञान लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बनाई गई राष्ट्रीय स्क्रेप नीति को बदलना चाहिए.

@  राकेश अचल

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

भाजपा का नया शत्रु नमाजवाद

 

मै भाजपा का अहसानमंद हूँ, क्योंकि ये दल मुझे रोजाना लिखने के लिए नये शब्द और मुद्दे मुहैया कराने में घणीं मदद करती है. जून के आखरी दिन पता चला कि भाजपा केवल संविधान की प्रस्तावना में दर्ज धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द से ही परेशान नहीं है बल्कि उसकी परेशानी समाजवादियों के अल्पसंख्यक प्रेम से भी है. भाजपा ने समाजवादियों के इस अल्पसंख्यक प्रेम को नमाजवाद का नाम दिया है.

भाजपा की घबडाहट दर असल वक्फ बोर्ड कानून को लेकर है. एक तरफ तो ये कानून सुप्रीम कोर्ट के पाले में है, दूसरी तरफ बिहार में ईंडिया गठबंधन ने इस कानून को चुनावी मूद्दा बनाकर  समस्या खडी कर दी है. भाजपा के विद्वान सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने आईएनडीआईए गठबंधन पर निशाना साधा और राजद प्रमुख तेजस्वी यादव के वक्फ संशोधन अधिनियम पर हालिया बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी.पंडित जी ने कहा कि बाबा साहब के संविधान का मजाक बनाया जा रहा है. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश का समाजवाद यही था क्या. बीजेपी और जेडीयू समाजवाद के साथ खड़े हैं. राजद और सपा जैसे दल ' नमाजवाद ' के साथ खड़े हैं. इनकी सरकार आई तो शरिया लागू कर देंगे. ये लोग आतंकियों को बचाने वाले हैं.

भाजपा के मुँह में राम और बगल में छुरी रहती है. एक तरफ भाजपा अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए तीन तलाक और वक्फ बोर्ड कानून लाती है और दूसरी तरफ  मुस्लिम समाज का पक्ष लेने वालों पर हमलावर रहती है. पंडित सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने शरीया को संविधान से ऊपर कर दिया था. इससे ये पिछड़े दलित वंचित और शोषित के आरक्षण को खाना चाहते हैं. अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय औऔर जामिया मिलिया में अजा, अजजा और पिछडा वर्ग का आरक्षण खत्म किया. जम्मू कश्मीर में धारा 370 लगाकर सभी का आरक्षण खत्म कर दिया था. पिछले दरवाजे से आरक्षण में सेंध लगाने का काम ये पार्टियां कर रही हैं. बंगाल में तो ओबीसी में मुस्लिम जातियां घुसा दी. कर्नाटक में भी ओबीसी आरक्षण में से मुस्लिम को दिया जा रहा है. ये मुल्ला मौलवी का नमाजवाद है.

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि वक्फ को लेकर तेजस्वी यादव बताएं संसद में लालू जी का बयान देख लें. वक्फ की जमीन पर कितने अस्पताल, कॉलेज, इंस्टीट्यूट हैं बताएं. ये तराजू पर तोलते हैं कौन सी माइनॉरिटी है. उसके हिसाब से बात करते हैं. यमुना नगर में गुरुद्वारे पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर दिया तब कोई नहीं बोला.

 त्रिवेदी ने विपक्ष पर सीधा हमला करते हुए कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम अब संसद की ओर से पारित और राष्ट्रपति की तरफ से अनुमोदित कानून है. यह अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और इलाहाबाद व कलकत्ता हाईकोर्ट के कई फैसले इस कानून के समर्थन में हैं.

नमाजवाद से बिहार के भाजपाजन भी आतंकित हैं. उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है और लोकतांत्रिक परंपरा को चुनौती देने का अनुचित प्रयास है।बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन की पतली हालत से दुखी विजय सिन्हा ने कहा कि वोट बैंक के नाम पर परिवार के सभी सदस्य एक मंच पर आ गए हैं। जबकि यह विधेयक देश की संसद द्वारा बहुप्रतीक्षित मांग और सुप्रीम कोर्ट के बार-बार निर्देश पर ही पारित किया गया है। 

अब सवाल ये है कि क्या भाजपा इंडिया गठबंधन के नमाजवाद से बिहार में मुकाबला कर पाएगी. नमाजवाद केवल आरजेडी और कांग्रेस का ही चुनावी हथियार नहीं है बल्कि दूसरी पार्टियों का भी है. नमाजवाद का विरोध कर भाजपा अपनी सहयोगु जेडीयू को उलझन में नहीं डाल देगी? मुसलमानो ने आपरेशन सिंदूर के दौरान भाजपा सरकार का बिना शर्त समर्थन किया था लेकिन अब फिर भाजपा मुसलमानों के साथ वो ही व्यवहार करने लगी है जो इजराइल फिलिस्तीनियों के साथ करता है.

धर्मनिरपेक्षताऔर समाजवाद से आजिज भाजपा अब नये नमाजवाद से भी हलकान है. नमाजवाद कल को देसी से विदेशी मुद्दा भी बन सकता है. भाजपा की मुस्लिम विरोधी छवि को ये नमाजवाद और गहरा कर सकता है, क्योंकि भाजपा के पास समाजवाद, गांधीवाद और नमाजवाद से निबटने के लिए ले देकर एकात्मता मानववाद है जो पिछले आठ दशक में भाजपा कार्यकर्ताओं को छोड किसी के गले नहीं उतरा.

@ राकेश अचल

सोमवार, 30 जून 2025

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी पर एफआईआर के विरोध में कांग्रेस का आंदोलन 8 जुलाई को

 

ग्वालियर। ग्वालियर अंचल के अशोकनगर के मुंगावली कस्बे में राजनैतिक द्वेष के चलते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी पर एफआईआर करने के विरोध में प्रदेश कांग्रेस का प्रदेश व्यापी धरना आंदोलन 8 जुलाई को अशोक नगर में होगा। वहीं दो जुलाई को महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष शाम को चार बजे से दो घंटे का मौन सत्याग्रह करेगी। इसकी तैयारियां कांग्रेस ने शुरू कर दी है। 

उक्त जानकारी आज सोमवार को राज्य सभा सांसद अशोक सिंह, शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष डा देवेन्द्र शर्मा ने पत्रकारों को दी। उन्होंने बताया कि गत 25 जून को प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी जब ओरछा के दौरे पर थे तभी मुंगावली थाने के ग्राम मुडरा निवासी गजराज लोधी और रघुराज लोधी उनसे मिले और अपने साथ हुई आपबीती सुनाई। इनकी आपबीती सुनकर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने दोनों का वीडियो रिकार्ड कर सार्वजनिक कर दिया। जिससे पीडितों को न्याय मिल सके और बात प्रशासन तक पहुंच सके। इसी के अगले दिन 26 जून को जिला प्रशासन ने पीडितों को बुलाकर उन्हें डरा धमका कर शपथ पत्र दिलवाया और आरोप लगवाया कि मानव मल मूत्र की बात के लिए उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने उकसाया था। 

इसी आधार पर मुंगावली थाना पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज कर ली। जिसमें पटवारी को षडयंत्रकर्ता, , धर्म जाति के आधार पर समाज के द्वेष फैलाने , सार्वजनिक उपद्रव भडकाने वाला बयान बताया। 

कांग्रेस सांसद अशोक सिंह सहित अन्य कांग्रेस पदाधिकारियों ने सरकार से मांग की है कि 27 जून को दर्ज झूठी एफआईआर तत्काल निरस्त की जाए। जिला कलेक्टर और एसपी अशोकनगर की भूमिका की स्वतंत्र न्यायिक जांच हो, और पीडितों को न्याय दिलाया जाए। साथ ही सरपंच पुत्र और उसके साथियों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ऐसे अन्याय करने वालों के खिलाफ हमेशा खडी रहेगी। और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करती रहेगी। पत्रकार वार्ता में ग्रामीण जिलाध्यक्ष प्रभुदयाल जौहरे, विधायक ग्रामीण साहब सिंह गुर्जर, प्रदेश महासचिव सुनील शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता धर्मेन्द्र शर्मा, आदि मौजूद थे। 

हिंदी,चीनी भाई -भाई तो हिंदी, मराठी भाई- भाई क्यों नहीं

हिंदी चीनी भाई भाई" हो गये थे लेकिन आज 65साल बाद भी न  मराठी और न तमिल, हिदी भाई -भाई हो पाए. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हिंदी का विरोध आज भी न सिर्फ जारी है बल्कि इस पर बाकायदा, बेमुलाहिजा सियासत भी हो रही है.हिंदी, चीनी भाई-भाई का  नारा 1950 के दशक में भारत और चीन के बीच मजबूत दोस्ती और सहयोग के संबंधों को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इस नारे का मतलब था कि दोनों देश, भारत और चीन, एक दूसरे के साथ भाईचारे और सद्भावना के साथ रहेंगे। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, यह नारा अपनी प्रासंगिकता खो बैठा। 

महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले ने राज्य की राजनीति को तेज कर दिया है। बाला साहेब ठाकरे के सामने ही अलग हो गए राज और उद्दव ठाकरे इस मुद्दे पर एक साथ होकर महाराष्ट्र की भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। दोनों ही नेताओं से अपनी-अपनी पार्टियों का नेतृत्व करते हुए फड़णवीस सरकार के खिलाफ विरोध मार्च निकाला है। इस प्रदर्शन पर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नितेश राणे ने विपक्ष पर निशाना साधा है।

नितेश राणे ने महाराष्ट्र् में मराठी भाषा की अनिवार्यता और उसकी जगह पर किसी के न आने को लेकर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, "हमने इतनी जोर से कहा है.. इतनी बार चिल्ला है के महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य नहीं है.. अब क्या हम इस बात को अपनी छाती पर लिखकर घूमना चालू कर दें? 

ठाकरे बंधुओं पर निशाना साधते हुए राणे ने कहा कि यह लोग केवल और केवल भाषा के नाम पर हिंदुओं को विभाजित करना चाहते हैं। मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे परिवार पर निशाना साधते हुए कहा, "जावेद अख्तर, आमिर खान और राहुल गांधी हिंदी में बात करते हैं उनके हिंदी थोपने से किसी को कोई परेशानी नहीं है? उन्हें मराठी बोलने के लिए कहिए। उन्हें (ठाकरे बंधुओं) को कहिए कि वे मोहम्मद अली रोड या बेहरामपाड़ा से अपना विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश करें। अगर उन्हें वाकई मराठी से प्यार है, तो कल से अजान मराठी में पढ़वाएं.. तब हम मानेंगे कि उन्हें मराठी भाषा का सम्मान है।"

 दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को लेकर यूटर्न लेने उद्धव ठाकरे ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठी मानुष की शक्ति के आगे हार गई है।महाराष्ट्र सरकार के हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने के बाद शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे ने फडणवीस सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने रविवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के स्कूलों में पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में तीन भाषा नीति के तहत हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस ले लिया है। मतलब सरकार ने मराठी मानुष के सामने हार मान ली है। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के साथ में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने वाले उनके चचेरे भाई और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी इस सफलता का श्रेय मराठी मानुष को ही दिया।

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे बंधुओं के राज्य में हिंदी अनिवार्य करने के विरोध में आने को लेकर तंज कसा है। मंत्री ने कहा कि राहुल गांधी, जावेद अख्तर और आमिर खाने के हिंदी थोपने से किसी को दिक्कत क्यों नहीं है?

 

तमिलनाडु में भी हिंदी का सनातन विरोध है. तमिलनाडु के हिंदी विरोधी तर्क दे रहे हैं कि कर्नाटक में हिंदी अनिवार्य किए जाने से वहाँ हाईस्कूल परीक्षा में 90हजार बच्चे फेल हो गये.तमिलनाडु में हिंदी का विरोध 1937  से अनवरत चल रहा है.

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, तमिलनाडु में हिंदी विरोध फिर से उभरा है, मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले के कारण, जिसे डीएमके सरकार हिंदी थोपने की कोशिश मानती है।डीएमके नेता और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि नयी शिक्षा नीति के जरिए हिंदी और संस्कृत को थोपा जा रहा है, जो तमिल भाषा और संस्कृति के लिए खतरा है।

आपको याद होगा कि फरवरी 2025 में, चेन्नई में रेलवे स्टेशनों और डाकघरों के साइनबोर्ड पर हिंदी शब्दों पर कालिख पोतने की घटनाएं हुईं।अयप्पक्कम हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में लोगों ने रंगोली बनाकर "तमिल का स्वागत, हिंदी थोपना बंद करो" का संदेश दिया। डीएमके और अन्य द्रविड़ दल हिंदी विरोध को तमिल पहचान और स्वायत्तता से जोड़ते हैं।स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने चेतावनी दी है कि हिंदी का बढ़ता प्रभाव तमिल भाषा को नष्ट कर सकता है, जैसा कि उत्तर भारत में अवधी और भोजपुरी जैसी भाषाओं के साथ हुआ।तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी विरोध को द्रविड़ आंदोलन की विरासत के रूप में देखा जाता है, जिसने डीएमके और एआईएडीएमके को सत्ता में लाने में मदद की। 

 तमिलनाडु के लोग तमिल भाषा को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। हिंदी को अनिवार्य बनाने को तमिल संस्कृति पर हमले के रूप में देखा जाता है। तमिलनाडु में तमिल और अंग्रेजी को व्यापार और शिक्षा के लिए पर्याप्त माना जाता है। हिंदी सीखने को आर्थिक या करियर के लिए आवश्यक नहीं समझा जाता। हिंदी विरोध के साथ-साथ, परिसीमन को लेकर भी चिंता है, क्योंकि इससे दक्षिण भारत के राज्यों की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उनकी राजनीतिक आवाज कमजोर हो सकती है।

मजे की बात ये है कि विरोध के बावजूद, तमिलनाडु में हिंदी सीखने की रुचि बढ़ रही है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अनुसार, 2022 में 2.86 लाख लोग हिंदी की परीक्षा में शामिल हुए, जिनमें 80 फीसदी स्कूली छात्र थे।तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति और हिंदी सीखने की बढ़ती मांग से पता चलता है कि आम लोगों में हिंदी के प्रति विरोध उतना तीव्र नहीं है, जितना राजनीतिक स्तर पर दिखाया जाता है।

@  राकेश अचल

रविवार, 29 जून 2025

अनुसूचित जाति जनजाति बालक एवं कन्या छात्रावास भवन बनकर तैयार , कब होगा शुरू

छात्रावास को शीघ्र शुरू किया जाए : डॉ अग्र 

ग्वालियर 29 जून । ग्वालियर से भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार वर्तमान में मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के प्रयासों से केंद्र सरकार की ओर से 500 सीटर कन्या और बालक छात्रावास स्वीकृत कराया भवन बनकर तैयार हो गया। इस छात्रावास का नाम बाबू जगजीवन राम छात्रावास के नाम से ग्वालियर में जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के पीछे हुरावली में बनकर तैयार है लेकिन विभाग की लापरवाही के कारण आज तक शुरू नहीं किया गया है जिससे 500 अनुसूचित जाति जनजाति के छात्र-छात्राओं का नुकसान हो रहा है यह छात्रावास ढाई सौ सीटर कन्या और ढाई सौ सीटर बालक छात्रावास के नाम से स्वीकृत है इस छात्रावास का नाम बाबू जगजीवन राम छात्रावास है ।

 विभाग के अधिकारियों ने आज तक छात्रावास में अधीक्षक नियुक्त नहीं किए हैं इसलिए छात्र-छात्राओं के प्रवेश भी नहीं हो रहे हैं दलित आदिवासी विरोधी अधिकारी इन वर्गों के छात्र-छात्राओं को शिक्षा से वंचित करने का और शासन से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित करने के आरोप में दोषी हैं ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध कठोर से कठोर कार्रवाई होना चाहिए दलित आदिवासी महापंचायत (दाम) के संस्थापक संरक्षक तथा आदिम जाति कल्याण विभाग छात्रावास आश्रम शिक्षक अधीक्षक संघ (कसस) डॉ जवर सिंह अग्र ने शासन प्रशासन से इस छात्रावास में  अधीक्षक नियुक्ति करते हुए छात्र-छात्राओं के प्रवेश शुरू करने की मांग दलित आदिवासी महापंचायत शासन प्रशासन और मुख्यमंत्री से करती है यज्ञात रहे कि सत्र शुरू है शीघ्र ही अनुसूचित जाति जनजाति के पात्र छात्र-छात्राओं के प्रवेश शुरू किए जाएं गरीब छात्र-छात्राएं किराए से कमरा लेकर रहने के लिए मजबूर हैं और उसके बाद विभाग आगमन देता है यदि 576 छात्र छात्राओं के प्रवेश छात्रावास में हो जाएंगे तो निशुल्क शिक्षा आभासी व्यवस्था निशुल्क भोजन की सुविधा छात्र-छात्राओं को प्राप्त होगी।


मप्र अजब है और यहाँ की सरकार भी

हमारे यहां कहावत है कि कोई अपनी जंघा खुद नहीं दिखाता या कोई अपनी मां को भट्टी नहीं कहता. लेकिन मप्र के संदर्भ में ये दोनों कहावतें लागू नहीं होतीं. ये बात हाल की कुछ घटनाओं से प्रमाणित होती है.

मप्र से केंद्र में कृषि मंत्री हैं श्री शिवराज सिंह चौहान. दो दशक तक मुख्यमंत्री भी रहे किंतु आज तक संविधान को नहीं समझ पाए. और एक संवैधानिक पद पर होते हुए संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की संघ के दत्तात्रय होंसबोले की मांग का समर्थन कर बैठे. संघ में अपना महत्व जो बढाना है, अन्यथा उनकी हरकत संविधान की अवमानना है. शिवराज ने मुख्यमंत्री रहते दो दशक में ऐसी मांग नही की.

अब आइये मप्र में सुशासन पर. मप्र में सुशासन की स्थिति ये है कि यहाँ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के कारकेट में शामिल 19 वाहनों में पेट्रोल के बजाय पानी भर दिया जाता है, और किसी को शर्म नही आती. बाद में विभागीय मंत्री पूरे प्रदेश के पेट्रोल पंपो की जांच के आदेश दे देते हैं. आप कल्पना कर सकते हैं कि मप्र में मिलावट का स्तर कहाँ से कहाँ पहुंच गया है?

इसी मप्र में देवास इंदौर हाईवे पर 36 घंटे का जाम तगा रहता है, 3 लोग  इलाज न मिने से मर जाते हैं, लेकिन कोई जिम्मेदारी लैने को तैयार नहीं होता.किसी को शर्म नहीं आती, अन्यथा कोई तो इस घोर लापरवाही क लिए क्षमा मांगता. मप्र में ही राजधानी भोपाल में लोनिवि के इजीनियर 90डिग्री का आर ओ वी बना देते है और  सरकार बेशर्मी से कहती है नया पुल बनवा देंगे. मामला उजागर होने के एक पखवाडे बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को दोषियों पर कार्रवाई की सुध आती है.

मप्र की सरकार इस समय विकास के नाम पर केवल धाम बनाने में जुट जाती है. मुख्यमंत्री अगडे, पिछडे सभी को खुश करने के लिए प्रतिदिन नये धाम बनाने की घोषणाएं कर रही है. मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अभी तक ये यकीन नहीं कर पाए कि वे स्वतंत्र मुख्यमंत्री हैं. उनका पूरा समय सिंधिया, तोमर, चौहान और कैलास विजयवर्गीय को साधने में ही खर्च हो रहा है.

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश पर कर्ज का स्तर चिंताजनक है। 2025 तक, राज्य पर 4.10 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बताया गया है, और 18 फरवरी 2025 को 5,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज लेने की योजना है।सीएजी की रिपोर्ट में कर्ज की स्थिति पर चिंता जताई गई है, जिसमें कर्ज चुकाने के लिए और कर्ज लेने की प्रवृत्ति उजागर हुई है।2021-22 में कर्ज 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक था, और ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों के 10% से अधिक रहा।गरीबी और सामाजिक सूचकांक:2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश को सामाजिक-आर्थिक विकास में अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ा बताया गया। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात 31.65% था, जो राष्ट्रीय औसत 21.92% से अधिक है। और तो और शिशु मृत्यु दर में मप्र पहले स्थान  पर है. यहाँ एक हजार में से 40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते. क्योंकि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में शिशुरोग विशेषज्ञों के 70  फीसदी पद खाली है.

मेरे पांच दशक के कार्यानुभव में ऐसा लचर मुख्यमंत्री कोई दूसरा नहीं रहा. लेकिन ये राजनीती का नया दौर है. इसमें सब कुछ चलता है.

@  राकेश अचल

शनिवार, 28 जून 2025

उत्तम जखैनिया को प्रभारी उपायुक्त राजस्व का दायित्व

 ग्वालियर । कार्य सुविधा की दृष्टि से नगर निगम आयुक्त के जारी आदेशानुसार उत्तम जखैनिया प्रभारी उपायुक्त सम्पत्तिकर ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र को आगामी अन्य आदेश होने तक अपने वर्तमान कार्य के साथ ही  प्रभारी उपायुक्त राजस्व का दायित्व सौंपा गया ।

स्मृति शेष : ग्वालियर की बहू थी शैफाली जरीवाला

कांटा लगा फेम शैफाली जरीवाला के असामय निधन की खबर से मैं दुखी हूं. शैफाली गुजरात की बेटी लेकिन ग्वालियर की बहू थी. अपने जमाने के चर्चित शराब कारोबारी स्वर्गीय गुलजार सिंह के बेटे हरमीत की पत्नी थी शैफाली. ये रिश्ता हालांकि कुल पांच साल चला, किंतु रिश्ता तो रिश्ता होता है. शैफाली के ससुर सरदार गुलजार सिंह का अच्छा खासा रसूख था. लेकिन उनके बेटों ने शराब कारोबार को अपनाने के बजाय संगीत को कैरियर बनाया और यहीं इनको शैफाली मिली. सरदार गुलजार सिंह इस शादी से खुश नहीं थे लेकिन बेटे की खुशी के सामने वे झुके. गुलजार को पता था कि ये शादी चलेगी नही, और हुआ भी वही. पांच साल में ही ये शादी टूट गई.

मुझे सरदार गुलजार सिंह ने ही शैफाली से मिलाया था. सोणी लडकी थी, लेकिन वो गुलजार के परिवार को गुलजार नहीं कर पायी. शैफाली ग्लेमर की दुनियां में ध्रुव तारे की तरह चमकी और पुच्छल तारे की तरह लुप्त भी हो गई. शैफाली ने म्यूजिक वीडियो भी बनाए और कुछ फिल्मों में भी काम किया था. शैफाली के हिस्से में छोटा आकाश आया. मेरी बेटी की उम्र की थी शैफाली. उसमें प्रतिभा, संघर्ष और काम के प्रति समर्पण की कोई कमी नहीं थी. लेकिन उतावलापन उसे ले डूबा.

शेफाली जरीवाला को 2002 में म्यूजिक वीडियो "कांटा लगा" से व्यापक प्रसिद्धि मिली, जिसके बाद उन्हें "कांटा लगा गर्ल" के नाम से बने एक म्यूजिक एलबम से.शेफाली का जन्म अहमदाबाद,  में एक गुजराती परिवार में हुआ था। उन्होंने जमनाबाई नरसी स्कूल, गुजरात से स्कूली शिक्षा पूरी की और सरदार पटेल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, आनंद, गुजरात से इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में बी.ई. की डिग्री हासिल की।शैफाली इंजीनियर बनने के बजाय कांटा गर्ल बन गई.2002 में "कांटा लगा" म्यूजिक वीडियो में उनकी बोल्ड परफॉर्मेंस ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने "कभी आर कभी पार रीमिक्स" (2002), "माल भरी आहे – डीजे हॉट रीमिक्स" (2004), और "प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया" (2006) जैसे अन्य म्यूजिक वीडियो में काम किया।फिल्म और टीवी: उन्होंने बॉलीवुड फिल्म "मुझसे शादी करोगी" (2004) में एक छोटी भूमिका निभाई और कन्नड़ फिल्म "हुडुगारु" (2011) में भी नजर आईं। 2018 में उन्होंने ALT बालाजी की वेब सीरीज "बेबी कम ना" में  मुख्य भूमिका निभाई और "बू सबकी फटेगी" में भी दिखाई दीं। इसके अलावा, उन्होंने रियलिटी शो "बूगी वूगी" (2008), "नच बलिए 5" और "नच बलिए 7" में अपने पति पराग त्यागी के साथ हिस्सा लिया। 2019 में वह "बिग बॉस 13" में वाइल्ड कार्ड प्रतियोगी के रूप में शामिल हुईं। 2024 में वह टीवी शो "शैतानी रस्में" में भी दिखाई दीं।

शेफाली इंस्टाग्राम (@shefalijariwala) पर सक्रिय थीं, जहां उनके 3.2 मिलियन फॉलोअर्स थे, और ट्विटर (@shefalijariwala) पर उनके करीब 125.9k फॉलोअर्स थे।उनके पिता का नाम सतीश जरीवाला और मां का नाम सुनीता जरीवाला है, जो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत थीं। उनकी एक बहन, शिवानी जरीवाला, दुबई में रहती हैं। शेफाली ने 2004 में मीट ब्रदर्स के संगीतकार हरमीत सिंह से शादी की, लेकिन 2009 में तलाक हो गया। उन्होंने हरमीत पर दुर्व्यवहार और मारपीट का आरोप लगाया था। बाद में, 12 अगस्त 2014 को उन्होंने टीवी अभिनेता पराग त्यागी से शादी की

शेफाली ने एक साक्षात्कार में बताया था कि 15 साल की उम्र में उन्हें पहली बार मिर्गी का दौरा पड़ा था। तनाव और चिंता के कारण ये दौरे बढ़ते थे, लेकिन व्यायाम और जीवनशैली में बदलाव से वह दौरे से मुक्त रही थीं और अवसाद से भी जूझती थीं। 

एक बार शेफाली ने मुझे बताया था कि इन्सान के बाद  उसे कुत्तों से बहुत प्यार  है.उनके पास एक पग था। उनके पास पीठ पर एक दिल के आकार का टैटू और बाएं हाथ पर पक्षियों का टैटू था।2016 में उन्होंने अपनी बहन के साथ दुबई में एक प्रोफेशनल ट्रेनिंग और कोचिंग कंपनी, WYN, शुरू की थी।"कांटा लगा" के लिए उन्हें मात्र 7000 रुपये मिले थे, और इस गाने के लिए उन्हें अपने पिता को मनाना पड़ा था, क्योंकि वह एक शैक्षणिक परिवार से थीं।शेफाली जरीवाला की अचानक मृत्यु ने उनके प्रशंसकों और मनोरंजन उद्योग में शोक की लहर पैदा कर दी। उनकी विरासत एक पॉप कल्चर आइकन के रूप में हमेशा याद की जाएगी।ग्वालियर की बहू शैफाली को विनम्र श्रद्धांजलि.

@राकेश अचल

अब तक होती है धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की चुभन !

भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द 42वें संशोधन के द्वारा 1976 में जोड़े गए। यह संशोधन 25 नवंबर 1976 को लागू हुआ।इन शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया, जिससे भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया।लेकिन ये दोनों ही शब्द भाजपा और आर एस एस को कांटे की तरह आज भी चुभते हैं. संघ का बस चले तो वो ये दोनों शब्द रातों -रात हटवा दे, किंतु ऐसा करना फिलहाल असंभव है.

गत दिवस इन दोनों शब्दों की वजह से होने वाली चुभन को  आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले  दबा नहीं पाए. होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की बात कही। उन्होंने कांग्रेस पर 50 साल पहले इमरजेंसी लगाने का आरोप लगाते हुए कहा कि इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस सरकार ने प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े थे। अब इस पर विचार करना चाहिए कि ये शब्द रहने चाहिए या नहीं। उन्होंने कांग्रेस से इमरजेंसी के लिए माफी मांगने की मांग की। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन्होंने इमरजेंसी किया, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं। उन्हें इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।

 आपको याद होगा कि भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद दो मूलभूत सिद्धांत हैं, जिन्हें 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से जोड़ा गया था.तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ये सब किया था.भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और निष्पक्षता बरती जाएगी। यह पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता (राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव) से भिन्न है, क्योंकि भारत में राज्य धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है और सभी धर्मों के अनुयायियों को समान अधिकार देता है।संवैधानिक प्रावधान:प्रस्तावना: भारत को "धर्मनिरपेक्ष" गणराज्य घोषित करता है।अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करते हैं, जिसमें व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता शामिल है।अनुच्छेद 14, 15, 16: समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार सुनिश्चित करते हैं, जिसमें धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब "सर्वधर्म समभाव" है, यानी सभी धर्मों का समान सम्मान। राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन धार्मिक सुधारों या सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है (उदाहरण: मंदिरों का प्रशासन, सामाजिक कुरितियों के खिलाफ कानून). यह सिद्धांत भारत की विविध धार्मिक और सांस्कृतिक संरचना को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण है।जबकि संघ और भाजपा संविधान की प्रस्तावना में हिंदू राष्ट्र शब्द जोडने का सपना पाले हुए है.

भारतीय संदर्भ में समाजवाद का मतलब आर्थिक और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है, जिसमें धन और संसाधनों का असमान वितरण कम करना और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना शामिल है। यह पूर्ण समाजवाद (जैसे साम्यवाद) नहीं, बल्कि "लोकतांत्रिक समाजवाद" है, जो निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाता है।संवैधानिक प्रस्तावना में ये शब्द आने के बाद भारत को "समाजवादी" गणराज्य घोषित कर दिया गया था.।अनुच्छेद 38, 39, 41, 42, 43 आदि सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए राज्य को निर्देश देते हैं। जैसे:अनुच्छेद 39: संसाधनों का समान वितरण और धन का केंद्रीकरण रोकना।अनुच्छेद 43: श्रमिकों के लिए उचित मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा।मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) सामाजिक-आर्थिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।

 भारत का समाजवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था पर आधारित है, जिसमें निजी उद्यम और सरकारी नियंत्रण दोनों शामिल हैं। यह सामाजिक कल्याण, गरीबी उन्मूलन और वंचित वर्गों के उत्थान पर केंद्रित है।महत्व: समाजवाद का लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है

भाजपा धर्मनिरपेक्षता को भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को एकजुट रखने का आधार नहीं मानती.है, जो सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार सुनिश्चित करता है।समाजवाद सामाजिक-आर्थिक न्याय और समानता को बढ़ावा देता है, जो भारत जैसे असमानताओं से भरे समाज में महत्वपूर्ण है।दोनों सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करते हैं।

भाजपा पिछले 11साल से सत्ता में है.भाजपा ने संविधान के तहत जम्मू काश्मीर को मिला विशेष दर्जा धारा 370 हटा दी लेकिन संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटा पाना भाजपा की लंगडी सरकार के लिए नामुमकिन लग रहा  है. इन शब्दों की बिना लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाता. अब दैखना  है कि भाजपा इन कांटों को कब तक हटा पाती है.

@ राकेश अचल.

शुक्रवार, 27 जून 2025

अब बोलिए जस्टिस गवई के खिलाफ शाखामृगो !

भारत के संविधान को लेकर 25  जून को देश में गजब के नाटक हुए. भाजपा ने संविधान हत्यादिवस मनाया तो कांग्रेस ने संविधान बचाओ दिवस. लेकिन कोई ये तय नहीं कर पाया कि संविधान सर्वोपरि है या संसद? लेकिन भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि देश में संविधान सर्वोच्च है। संसद संविधान को संशोधित कर सकता है, लेकिन उसके मूल में कोई बदलाव नहीं ला सकता है.मुमकिन है कि अब निशिकांत दुबे जैसे लोग जस्टिस गवई पर उसी तरह हमले कर उठें जैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना पर किए गए थे.

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई निडर व्यक्ति हैं. वे सिर्फ कानून से डरते हैं. कोई बडे से बडा नेता उनसे गणपति वंदना शायद नहीं करा सकता, जैसे कि पूर्व के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वाय वी चंद्रचूड से करा ली गई थी.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि भारत का संविधान  सबसे ऊपर है। हमारे लोकतंत्र के तीनों अंग न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका संविधान के अधीन काम करते हैं। सीजेआई गवई ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि संसद  सर्वोच्च है, लेकिन मेरी राय में संविधान सर्वोपरि है. देश की मौजूदा राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और निशिकांत दुबे जैसे बहुत से लोग संसद को ही सर्वोच्च मानते हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय की  बार - बार अवमानना कर चुके हैं.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई ने अमरावती ने कहा कि संसद के पास संविधान संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है। उन्होंने कहा कि एक जज को हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा एक कर्तव्य है। हम नागरिकों के अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों के संरक्षक हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास केवल शक्ति नहीं है, हम पर एक कर्तव्य भी सौंपा गया है। उन्होंने कहा कि किसी भी जज को यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग उनके फैसलों को लेकर लोगों की राय क्या होगी। हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोग क्या कहेंगे, यह हमारी फैसले लेने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन सकता है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैंने हमेशा अपने निर्णयों और काम को बोलने दिया है। मैं हमेशा हमारे संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के साथ खड़ा रहा। बुलडोजर न्याय के खिलाफ अपने फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आश्रय का अधिकार सर्वोच्च है।जस्टिस गवई के पास तमाम गुत्थियों को सुलझाने, संवेदनशील मामलों में फैसले सुनाने के लिए कुल तीन महीने बचे हैं. वे 23नवंबर 2025 को सेवानिवृत होंगे. इससे पहले वे क्या कुछ नया कर सकते हैं, इसके संकेत मिलने शुरू हो गए हैं.वक्फ बोर्ड कानून पर अभी जस्टिस गवई ने फैसला नहीं सुनाया है. ऐसे और भी अनेक मामले अभी भी लंवित हैं जिनके ऊपर देश की भावी राजनीति टिकी है.

आपको बता दूं कि जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ। साल 1985 में उन्होंने अपना कानूनी करियर शुरू किया। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की। इससे पहले उन्होंने पूर्व एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट के न्यायाधीश राजा एस भोंसले के साथ काम किया। गवई ने 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की। अगस्त 1992 से 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के रूप में नियुक्त हुए।14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट हुए। 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट के परमानेंट जज बने। 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जस्टिस बने। 14 मई को शपथ लेकर देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनाए गए.अब फैसला 56'और 52वें मुख्य न्यायाधीश के बीच है.

@  राकेश अचल

गुरुवार, 26 जून 2025

उम्मीदों के शुभांकर बने शुभांशु

 

ये एक अराजनीतिक खबर है. भारत पूरे 40 साल बाद फिर से अंतरिक्ष में है. भारत के शुभांशु शुक्ला तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ आईएस एस  अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए रवाना हुए हैं. लखनऊ के 40वर्षीय शुभांशु इस जगह पहुने वाले पहले और अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय नागरिक हैं.

 आपको याद होगा कि 1984  में भारतीय वायुसेना के पायलट राकेश शर्मा पहले भारतीय थे, जिन्होंने सोवियत संघ के सोयुज टी-11 मिशन के तहत अंतरिक्ष में यात्रा की थी. तब श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं.। वे 7 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में गए और भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक मील का पत्थर स्थापित किया। राकेश शर्मा के बाद भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने नासा के साथ कई मिशनों में हिस्सा लिया। वे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन  पर लंबे समय तक रहीं और 2024 में बोइंग स्टारलाइनर मिशन के तहत आई एस एस पर गईं। उनकी वापसी तकनीकी कारणों से मार्च 2025 तक टल गई थी। भारत ने उस समय भी  जमकर जश्न मनाया था 

ये दूसरा मौका है जब भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्जाम -4 मिशन के तहत आई एस एस पर गए। यह मिशन 25 जून 2025 को शुरु हुआ, जिसमें शुभांशु पायलट की भूमिका में थे।यह मिशन इसरो और नासा के बीच सहयोग का हिस्सा है, जिसमें शुभांशु 7 भारतीय वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं, जो माइक्रोग्रैविटी, जैविक, और कृषि अनुसंधान से संबंधित हैं।मिशन की लागत 550 करोड़ रुपये है और यह भारत के गगनयान मिशन की तैयारी में महत्वपूर्ण है। खास बात ये कि 7 बार स्थगन के कारण जैविक नमूनों की सुरक्षा पर सवाल उठे, लेकिन इसरो और नासा ने इसे सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएआपको बता दूं कि इसरो का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन, गगनयान, 2027 में शुरु होने की उम्मीद है। यह भारत का पहला स्वदेशी मानव अंतरिक्ष मिशन होगा।

लखनऊ के शुभांशु शुक्ला और ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर ने एक्सजोम -4 के लिए प्रशिक्षण पूरा किया, जो गगनयान की तैयारी में मदद करेगा।गगनयान का लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना है।लद्दाख में एनालॉग में इसरो ने नवंबर 2024 में लेह, लद्दाख में भारत का पहला मंगल और चंद्रमा एनालॉग मिशन शुरू किया। यह मिशन चंद्रमा और मंगल जैसे वातावरण में जीवन की चुनौतियों का अनुकरण करता है।मिशन में हब-1 (हाइड्रोपोनिक्स फार्म, रसोई, स्वच्छता सुविधाएँ) का परीक्षण किया गया, जो भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है। दुनिया एक तरफ बारूद का खेल खेल रही है वहीँ दूसरी तरफ 2040 तक लागत प्रभावी अंतरिक्ष पर्यटन की संभावना पर काम हो रहा है।

 अंतरिक्ष के क्षेत्र मे भारत के खाते में भी साल दर साल नयी उपलब्धियाँ जुड रहीं हैं.चंद्रयान-3 (2023) ने चंद्रमा की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग,कर भारत को अंतरिक्ष अन्वेषण में अग्रणी बनाया।2013 में भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन मंगलयान ने , भारत को मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बनाया।आदित्य-एल1: सूर्य-पृथ्वी L1 बिंदु पर भारत का पहला सौर मिशन, जो 2023 में पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकला।

कोई माने न माने लेकिन भारत 140  करोड लोगों की उम्मीद शुभांशु शुक्ला की इस यात्रा की कामयाबी से जुडी है. अब विघ्ध संतोषी सवाल कर सकते हैं कि कोई यादव, कोई खान, कोई गांधी, कोई मोदी इस काम के लिए क्यों नहीं चुना गया? तो उत्तर साफ है कि इस विज्ञानं में राजनीति और आरक्षण नहीं चलता, अन्यथा शुभांशु का नंबर कभी नहीं आता. शुभांशु को हम सब की ओर से कोटि कोटि शुभकामनायें.

@  राकेश अचल

बुधवार, 25 जून 2025

भव्य सम्मान समारोह: ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन सम्मानित हुए

वैश्य महासम्मेलन युवा इकाई महानगर द्वारा श्री उमाशंकर गुप्ता के जन्म दिन पर अलग अलग क्षेत्रों में विशेष सामाजिक कार्यों में अपनी विद्या द्वारा सफल   प्रतिभाओं और छात्र / छात्राओं का  भव्य सम्मान दिवस समारोह जैन छात्रावास ग्वालियर में किया गया इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रदेश युवा इकाई के प्रदेश अध्यक्ष श्री विकाश डागा इंदौर,प्रदेश उपाध्यक्ष श्री मुकेश अग्रवाल प्रदेश महामंत्री श्री अनिल जैन प्रदेश महामंत्री श्रीमती नीलम जैन संभागीय अध्यक्ष डॉ रजनीश नीखरा युवा इकाई अध्यक्ष श्री विवेक गुप्ता जी आदि विशेष रूप से उपस्थित थे हाल दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था 

इस अवसर पर अलग अलग क्षेत्रों में विशेष सफल सामाजिक कार्यों के लिए सम्मानित किया जा रहा था इस अवसर पर ज्योतिष के क्षेत्र में सफल और उत्कृष्ट कार्य करने वाले जाने माने ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन को उनकी तीन दशक से अधिक समय से अनेक जटिल मुद्दों पर सत्य हो रही राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय भविष्यवाणियों के लिए सम्मानित किया गया।

ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन को इस विशेष सामाजिक सम्मान के लिए उनके इष्ट मित्रो ने उन्हें बधाई और शुभ कामनाएं दी।

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पुलिस ने किया सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा

  टीकमगढ़ जिला ब्यूरो प्रमोद अहिरवार  पुलिस अधीक्षक  मनोहर सिंह मंडलोई के निर्देशन में टीकमगढ़ पुलिस ने पर्दाफाश किया  थाना चंदेरा अंतर्गत आ...