गुरुवार, 17 जुलाई 2025

कुत्तों की आवारगी पर सबसे बडी अदालत का रुख

 

इनसानों की आवारगी पर आज तक देश का कोई कुत्ता सर्वोच्च न्यायालय नहीं पहुंचा लेकिन इनसान आवारा कुत्तों के मुद्दे पर देश की सबसे बडी अदालत तक जा पहुंचा. संवेदनशील माननीय अदालत ने आवारा कुत्तों के बारे में याचिका सुनी भी और कुछ निर्देश भी दिए जो देश भर के कुत्ता विररोधियों के लिए एक सबक है.देश के आवारा कुत्तों की ओर से मैं सर्वोच्च न्यायालय का आभार व्यक्त करता हूँ.

मेरे लिए आवारा कुत्तों के खिलाफ दर्ज याचिका की न्यूज वेल्यू केंचुआ के खिलाफ दर्ज याचिकाओं से कम नहीं है. कुत्तों के प्रति मेरा प्रेम, मेरी संवेदना अनुवांशिक है.. मेरी दादी माँ फूलकुंवर देवी निरक्षर थीं लेकिन सांसारिक मुद्दों पर उनका ज्ञान असीमित था. वे आवारा कुत्तों को उसी स्नेह से रोटी खिलाती थीं जितने स्नेह से गाय को. सनातन भारतीयों के लिए आवारा गाय फिर भी पूजनीय है लेकिन आवारा कुत्ता नहीं. मेरी दादी आवारा, बेसहारा कुत्तों को ' बिना झोली का फकीर ' कहती थीं. कमोवेश यही बात माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कही है.

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को खाना देने से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से ही सवाल पूछ लिए। अदालत ने नोएडा में आवारा कुत्तों को खाना देने पर परेशान किए जाने का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा “आप उन्हें अपने घर में खाना क्यों नहीं देते हैं?”

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “क्या हमें इन बड़े दिल वाले लोगों के लिए हर गली, हर सड़क खुली छोड़ देनी चाहिए? इन जानवरों के लिए तो पूरी जगह है लेकिन इंसानों के लिए कोई जगह नहीं है। आप उन्हें अपने घर में खाना क्यों नहीं देते? आपको कोई नहीं रोक रहा है।” यह याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के मार्च 2025 के आदेश से संबंधित है.

इस पर वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को परेशान किया जा रहा है और वह पशु जन्म नियंत्रण नियमों के अनुसार सड़कों पर रहने वाले कुत्तों को खाना देने में असमर्थ है। पशु जन्म नियंत्रण नियमावली, 2023 का नियम 20 सड़कों पर रहने वाले पशुओं के भोजन से संबंधित है और यह परिसर या उस क्षेत्र में रहने वाले पशुओं के भोजन के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का दायित्व स्थानीय ‘रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन’ या ‘अपार्टमेंट ऑनर एसोसिएशन’ या स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि पर डालता है।

शीर्ष अदालत ने इस पर कहा, “हम आपको अपने घर में ही एक आश्रय स्थल खोलने का सुझाव देते हैं। गली-मोहल्ले के प्रत्येक कुत्ते को अपने घर में ही खाना दें।” याचिकाकर्ता के वकील ने नियमों के अनुपालन का दावा किया और कहा कि नगर प्राधिकार ग्रेटर नोएडा में तो ऐसे स्थान बना रहा है लेकिन नोएडा में नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसे स्थानों पर भोजन केंद्र बनाए जा सकते हैं जहां लोग अक्सर नहीं आते।

पीठ ने इस पर पूछा, “आप सुबह साइकिल चलाने जाते हैं? ऐसा करके देखिए क्या होता है।” जब वकील ने कहा कि वह सुबह की सैर पर जाते हैं और कई कुत्तों को देखते हैं तो पीठ ने कहा, “सुबह की सैर करने वालों को भी खतरा है। साइकिल सवार और दोपहिया वाहन चालकों को ज़्यादा खतरा है।” इसके बाद पीठ ने इस याचिका को इसी तरह के एक अन्य मामले पर लंबित याचिका के साथ संलग्न कर दिया।

इससे पहले उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए नियमों के प्रावधानों को उचित देखभाल और सतर्कता के साथ लागू करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया। न्यायालय ने कहा, “कानून के प्रावधानों के अनुसार गलियों में रहने वाले कुत्तों का संरक्षण आवश्यक है लेकिन साथ ही अधिकारियों को आम आदमी की चिंता को भी ध्यान में रखना होगा ताकि इन आवारा कुत्तों के हमलों से सड़कों पर उनकी आवाजाही बाधित न हो।”

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि भारत में आवारा कुत्तों की आबादी के बारे में अलग-अलग स्रोतों से विभिन्न आँकड़े सामने आते हैं। 2019 की पशुधन गणना के अनुसार, भारत में आवारा कुत्तों की संख्या लगभग 1.53 करोड़ थी, जो 2012 में 1.71 करोड़ थी। हालाँकि, कुछ अन्य स्रोतों और सोशल मीडिया पोस्ट्स के अनुसार, यह संख्या 6.2 करोड़ तक हो सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन  और अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में आवारा कुत्तों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है, और यह रेबीज जैसी बीमारियों के प्रसार का प्रमुख कारण भी है। सटीक संख्या में अंतर स्रोतों और गणना के समय पर निर्भर करता है, लेकिन अनुमानित तौर पर यह 1.5 करोड़ से 6.5 करोड़ के बीच हो सकती है।

भारत में कुत्तों की आवारगी भले ही एक राष्ट्रीय समस्या है लेकिन ये ही भारतीय कुत्ते को भगवान भैरव की सवारी मानकर उसे पूजते भी हैं. टोटके-टमने वाले लोगों को काले कुत्ते को रोटी खिलाने की सलाह देते हैं. हमारे समाज में कुत्ते की मौत को सबसे घृणित और निकृष्ट मानकर इसे गाली के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. कुत्ते और इनसान का संबंध सनातन है. द्वापर में तो धर्मराज युधिष्ठिर का कुत्ता तो स्वर्ग के दरवाजे तक पहुंचा.

दुर्भाग्य ये है कि देश में आवारा इनसानों के लिए हवालातें, और मर्सी होम्स हैं. आवारा गायों के लिए गौशालाएं हैं लेकिन कुत्तों के लिए कोई माकूल इंतजाम नहीं है. कुत्ते आये दिन इनसानों की क्रूरता और नृशंसता के शिकार होते हैं वाहनों से कुचले भी जाते हैं. विदेशों में कुत्ते इनसानों की तरह सम्मानित जीवन जीते हैं.

@ राकेश अचल

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