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मंगलवार, 1 जुलाई 2025

भाजपा का नया शत्रु नमाजवाद

 

मै भाजपा का अहसानमंद हूँ, क्योंकि ये दल मुझे रोजाना लिखने के लिए नये शब्द और मुद्दे मुहैया कराने में घणीं मदद करती है. जून के आखरी दिन पता चला कि भाजपा केवल संविधान की प्रस्तावना में दर्ज धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द से ही परेशान नहीं है बल्कि उसकी परेशानी समाजवादियों के अल्पसंख्यक प्रेम से भी है. भाजपा ने समाजवादियों के इस अल्पसंख्यक प्रेम को नमाजवाद का नाम दिया है.

भाजपा की घबडाहट दर असल वक्फ बोर्ड कानून को लेकर है. एक तरफ तो ये कानून सुप्रीम कोर्ट के पाले में है, दूसरी तरफ बिहार में ईंडिया गठबंधन ने इस कानून को चुनावी मूद्दा बनाकर  समस्या खडी कर दी है. भाजपा के विद्वान सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने आईएनडीआईए गठबंधन पर निशाना साधा और राजद प्रमुख तेजस्वी यादव के वक्फ संशोधन अधिनियम पर हालिया बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी.पंडित जी ने कहा कि बाबा साहब के संविधान का मजाक बनाया जा रहा है. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश का समाजवाद यही था क्या. बीजेपी और जेडीयू समाजवाद के साथ खड़े हैं. राजद और सपा जैसे दल ' नमाजवाद ' के साथ खड़े हैं. इनकी सरकार आई तो शरिया लागू कर देंगे. ये लोग आतंकियों को बचाने वाले हैं.

भाजपा के मुँह में राम और बगल में छुरी रहती है. एक तरफ भाजपा अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए तीन तलाक और वक्फ बोर्ड कानून लाती है और दूसरी तरफ  मुस्लिम समाज का पक्ष लेने वालों पर हमलावर रहती है. पंडित सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने शरीया को संविधान से ऊपर कर दिया था. इससे ये पिछड़े दलित वंचित और शोषित के आरक्षण को खाना चाहते हैं. अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय औऔर जामिया मिलिया में अजा, अजजा और पिछडा वर्ग का आरक्षण खत्म किया. जम्मू कश्मीर में धारा 370 लगाकर सभी का आरक्षण खत्म कर दिया था. पिछले दरवाजे से आरक्षण में सेंध लगाने का काम ये पार्टियां कर रही हैं. बंगाल में तो ओबीसी में मुस्लिम जातियां घुसा दी. कर्नाटक में भी ओबीसी आरक्षण में से मुस्लिम को दिया जा रहा है. ये मुल्ला मौलवी का नमाजवाद है.

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि वक्फ को लेकर तेजस्वी यादव बताएं संसद में लालू जी का बयान देख लें. वक्फ की जमीन पर कितने अस्पताल, कॉलेज, इंस्टीट्यूट हैं बताएं. ये तराजू पर तोलते हैं कौन सी माइनॉरिटी है. उसके हिसाब से बात करते हैं. यमुना नगर में गुरुद्वारे पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर दिया तब कोई नहीं बोला.

 त्रिवेदी ने विपक्ष पर सीधा हमला करते हुए कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम अब संसद की ओर से पारित और राष्ट्रपति की तरफ से अनुमोदित कानून है. यह अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और इलाहाबाद व कलकत्ता हाईकोर्ट के कई फैसले इस कानून के समर्थन में हैं.

नमाजवाद से बिहार के भाजपाजन भी आतंकित हैं. उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है और लोकतांत्रिक परंपरा को चुनौती देने का अनुचित प्रयास है।बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन की पतली हालत से दुखी विजय सिन्हा ने कहा कि वोट बैंक के नाम पर परिवार के सभी सदस्य एक मंच पर आ गए हैं। जबकि यह विधेयक देश की संसद द्वारा बहुप्रतीक्षित मांग और सुप्रीम कोर्ट के बार-बार निर्देश पर ही पारित किया गया है। 

अब सवाल ये है कि क्या भाजपा इंडिया गठबंधन के नमाजवाद से बिहार में मुकाबला कर पाएगी. नमाजवाद केवल आरजेडी और कांग्रेस का ही चुनावी हथियार नहीं है बल्कि दूसरी पार्टियों का भी है. नमाजवाद का विरोध कर भाजपा अपनी सहयोगु जेडीयू को उलझन में नहीं डाल देगी? मुसलमानो ने आपरेशन सिंदूर के दौरान भाजपा सरकार का बिना शर्त समर्थन किया था लेकिन अब फिर भाजपा मुसलमानों के साथ वो ही व्यवहार करने लगी है जो इजराइल फिलिस्तीनियों के साथ करता है.

धर्मनिरपेक्षताऔर समाजवाद से आजिज भाजपा अब नये नमाजवाद से भी हलकान है. नमाजवाद कल को देसी से विदेशी मुद्दा भी बन सकता है. भाजपा की मुस्लिम विरोधी छवि को ये नमाजवाद और गहरा कर सकता है, क्योंकि भाजपा के पास समाजवाद, गांधीवाद और नमाजवाद से निबटने के लिए ले देकर एकात्मता मानववाद है जो पिछले आठ दशक में भाजपा कार्यकर्ताओं को छोड किसी के गले नहीं उतरा.

@ राकेश अचल

सोमवार, 30 जून 2025

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी पर एफआईआर के विरोध में कांग्रेस का आंदोलन 8 जुलाई को

 

ग्वालियर। ग्वालियर अंचल के अशोकनगर के मुंगावली कस्बे में राजनैतिक द्वेष के चलते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी पर एफआईआर करने के विरोध में प्रदेश कांग्रेस का प्रदेश व्यापी धरना आंदोलन 8 जुलाई को अशोक नगर में होगा। वहीं दो जुलाई को महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष शाम को चार बजे से दो घंटे का मौन सत्याग्रह करेगी। इसकी तैयारियां कांग्रेस ने शुरू कर दी है। 

उक्त जानकारी आज सोमवार को राज्य सभा सांसद अशोक सिंह, शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष डा देवेन्द्र शर्मा ने पत्रकारों को दी। उन्होंने बताया कि गत 25 जून को प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी जब ओरछा के दौरे पर थे तभी मुंगावली थाने के ग्राम मुडरा निवासी गजराज लोधी और रघुराज लोधी उनसे मिले और अपने साथ हुई आपबीती सुनाई। इनकी आपबीती सुनकर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने दोनों का वीडियो रिकार्ड कर सार्वजनिक कर दिया। जिससे पीडितों को न्याय मिल सके और बात प्रशासन तक पहुंच सके। इसी के अगले दिन 26 जून को जिला प्रशासन ने पीडितों को बुलाकर उन्हें डरा धमका कर शपथ पत्र दिलवाया और आरोप लगवाया कि मानव मल मूत्र की बात के लिए उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने उकसाया था। 

इसी आधार पर मुंगावली थाना पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज कर ली। जिसमें पटवारी को षडयंत्रकर्ता, , धर्म जाति के आधार पर समाज के द्वेष फैलाने , सार्वजनिक उपद्रव भडकाने वाला बयान बताया। 

कांग्रेस सांसद अशोक सिंह सहित अन्य कांग्रेस पदाधिकारियों ने सरकार से मांग की है कि 27 जून को दर्ज झूठी एफआईआर तत्काल निरस्त की जाए। जिला कलेक्टर और एसपी अशोकनगर की भूमिका की स्वतंत्र न्यायिक जांच हो, और पीडितों को न्याय दिलाया जाए। साथ ही सरपंच पुत्र और उसके साथियों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ऐसे अन्याय करने वालों के खिलाफ हमेशा खडी रहेगी। और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करती रहेगी। पत्रकार वार्ता में ग्रामीण जिलाध्यक्ष प्रभुदयाल जौहरे, विधायक ग्रामीण साहब सिंह गुर्जर, प्रदेश महासचिव सुनील शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता धर्मेन्द्र शर्मा, आदि मौजूद थे। 

हिंदी,चीनी भाई -भाई तो हिंदी, मराठी भाई- भाई क्यों नहीं

हिंदी चीनी भाई भाई" हो गये थे लेकिन आज 65साल बाद भी न  मराठी और न तमिल, हिदी भाई -भाई हो पाए. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हिंदी का विरोध आज भी न सिर्फ जारी है बल्कि इस पर बाकायदा, बेमुलाहिजा सियासत भी हो रही है.हिंदी, चीनी भाई-भाई का  नारा 1950 के दशक में भारत और चीन के बीच मजबूत दोस्ती और सहयोग के संबंधों को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इस नारे का मतलब था कि दोनों देश, भारत और चीन, एक दूसरे के साथ भाईचारे और सद्भावना के साथ रहेंगे। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, यह नारा अपनी प्रासंगिकता खो बैठा। 

महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले ने राज्य की राजनीति को तेज कर दिया है। बाला साहेब ठाकरे के सामने ही अलग हो गए राज और उद्दव ठाकरे इस मुद्दे पर एक साथ होकर महाराष्ट्र की भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। दोनों ही नेताओं से अपनी-अपनी पार्टियों का नेतृत्व करते हुए फड़णवीस सरकार के खिलाफ विरोध मार्च निकाला है। इस प्रदर्शन पर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नितेश राणे ने विपक्ष पर निशाना साधा है।

नितेश राणे ने महाराष्ट्र् में मराठी भाषा की अनिवार्यता और उसकी जगह पर किसी के न आने को लेकर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, "हमने इतनी जोर से कहा है.. इतनी बार चिल्ला है के महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य नहीं है.. अब क्या हम इस बात को अपनी छाती पर लिखकर घूमना चालू कर दें? 

ठाकरे बंधुओं पर निशाना साधते हुए राणे ने कहा कि यह लोग केवल और केवल भाषा के नाम पर हिंदुओं को विभाजित करना चाहते हैं। मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे परिवार पर निशाना साधते हुए कहा, "जावेद अख्तर, आमिर खान और राहुल गांधी हिंदी में बात करते हैं उनके हिंदी थोपने से किसी को कोई परेशानी नहीं है? उन्हें मराठी बोलने के लिए कहिए। उन्हें (ठाकरे बंधुओं) को कहिए कि वे मोहम्मद अली रोड या बेहरामपाड़ा से अपना विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश करें। अगर उन्हें वाकई मराठी से प्यार है, तो कल से अजान मराठी में पढ़वाएं.. तब हम मानेंगे कि उन्हें मराठी भाषा का सम्मान है।"

 दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को लेकर यूटर्न लेने उद्धव ठाकरे ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठी मानुष की शक्ति के आगे हार गई है।महाराष्ट्र सरकार के हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने के बाद शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे ने फडणवीस सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने रविवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के स्कूलों में पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में तीन भाषा नीति के तहत हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस ले लिया है। मतलब सरकार ने मराठी मानुष के सामने हार मान ली है। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के साथ में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने वाले उनके चचेरे भाई और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी इस सफलता का श्रेय मराठी मानुष को ही दिया।

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे बंधुओं के राज्य में हिंदी अनिवार्य करने के विरोध में आने को लेकर तंज कसा है। मंत्री ने कहा कि राहुल गांधी, जावेद अख्तर और आमिर खाने के हिंदी थोपने से किसी को दिक्कत क्यों नहीं है?

 

तमिलनाडु में भी हिंदी का सनातन विरोध है. तमिलनाडु के हिंदी विरोधी तर्क दे रहे हैं कि कर्नाटक में हिंदी अनिवार्य किए जाने से वहाँ हाईस्कूल परीक्षा में 90हजार बच्चे फेल हो गये.तमिलनाडु में हिंदी का विरोध 1937  से अनवरत चल रहा है.

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, तमिलनाडु में हिंदी विरोध फिर से उभरा है, मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले के कारण, जिसे डीएमके सरकार हिंदी थोपने की कोशिश मानती है।डीएमके नेता और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि नयी शिक्षा नीति के जरिए हिंदी और संस्कृत को थोपा जा रहा है, जो तमिल भाषा और संस्कृति के लिए खतरा है।

आपको याद होगा कि फरवरी 2025 में, चेन्नई में रेलवे स्टेशनों और डाकघरों के साइनबोर्ड पर हिंदी शब्दों पर कालिख पोतने की घटनाएं हुईं।अयप्पक्कम हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में लोगों ने रंगोली बनाकर "तमिल का स्वागत, हिंदी थोपना बंद करो" का संदेश दिया। डीएमके और अन्य द्रविड़ दल हिंदी विरोध को तमिल पहचान और स्वायत्तता से जोड़ते हैं।स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने चेतावनी दी है कि हिंदी का बढ़ता प्रभाव तमिल भाषा को नष्ट कर सकता है, जैसा कि उत्तर भारत में अवधी और भोजपुरी जैसी भाषाओं के साथ हुआ।तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी विरोध को द्रविड़ आंदोलन की विरासत के रूप में देखा जाता है, जिसने डीएमके और एआईएडीएमके को सत्ता में लाने में मदद की। 

 तमिलनाडु के लोग तमिल भाषा को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। हिंदी को अनिवार्य बनाने को तमिल संस्कृति पर हमले के रूप में देखा जाता है। तमिलनाडु में तमिल और अंग्रेजी को व्यापार और शिक्षा के लिए पर्याप्त माना जाता है। हिंदी सीखने को आर्थिक या करियर के लिए आवश्यक नहीं समझा जाता। हिंदी विरोध के साथ-साथ, परिसीमन को लेकर भी चिंता है, क्योंकि इससे दक्षिण भारत के राज्यों की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उनकी राजनीतिक आवाज कमजोर हो सकती है।

मजे की बात ये है कि विरोध के बावजूद, तमिलनाडु में हिंदी सीखने की रुचि बढ़ रही है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अनुसार, 2022 में 2.86 लाख लोग हिंदी की परीक्षा में शामिल हुए, जिनमें 80 फीसदी स्कूली छात्र थे।तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति और हिंदी सीखने की बढ़ती मांग से पता चलता है कि आम लोगों में हिंदी के प्रति विरोध उतना तीव्र नहीं है, जितना राजनीतिक स्तर पर दिखाया जाता है।

@  राकेश अचल

रविवार, 29 जून 2025

अनुसूचित जाति जनजाति बालक एवं कन्या छात्रावास भवन बनकर तैयार , कब होगा शुरू

छात्रावास को शीघ्र शुरू किया जाए : डॉ अग्र 

ग्वालियर 29 जून । ग्वालियर से भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार वर्तमान में मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के प्रयासों से केंद्र सरकार की ओर से 500 सीटर कन्या और बालक छात्रावास स्वीकृत कराया भवन बनकर तैयार हो गया। इस छात्रावास का नाम बाबू जगजीवन राम छात्रावास के नाम से ग्वालियर में जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के पीछे हुरावली में बनकर तैयार है लेकिन विभाग की लापरवाही के कारण आज तक शुरू नहीं किया गया है जिससे 500 अनुसूचित जाति जनजाति के छात्र-छात्राओं का नुकसान हो रहा है यह छात्रावास ढाई सौ सीटर कन्या और ढाई सौ सीटर बालक छात्रावास के नाम से स्वीकृत है इस छात्रावास का नाम बाबू जगजीवन राम छात्रावास है ।

 विभाग के अधिकारियों ने आज तक छात्रावास में अधीक्षक नियुक्त नहीं किए हैं इसलिए छात्र-छात्राओं के प्रवेश भी नहीं हो रहे हैं दलित आदिवासी विरोधी अधिकारी इन वर्गों के छात्र-छात्राओं को शिक्षा से वंचित करने का और शासन से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित करने के आरोप में दोषी हैं ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध कठोर से कठोर कार्रवाई होना चाहिए दलित आदिवासी महापंचायत (दाम) के संस्थापक संरक्षक तथा आदिम जाति कल्याण विभाग छात्रावास आश्रम शिक्षक अधीक्षक संघ (कसस) डॉ जवर सिंह अग्र ने शासन प्रशासन से इस छात्रावास में  अधीक्षक नियुक्ति करते हुए छात्र-छात्राओं के प्रवेश शुरू करने की मांग दलित आदिवासी महापंचायत शासन प्रशासन और मुख्यमंत्री से करती है यज्ञात रहे कि सत्र शुरू है शीघ्र ही अनुसूचित जाति जनजाति के पात्र छात्र-छात्राओं के प्रवेश शुरू किए जाएं गरीब छात्र-छात्राएं किराए से कमरा लेकर रहने के लिए मजबूर हैं और उसके बाद विभाग आगमन देता है यदि 576 छात्र छात्राओं के प्रवेश छात्रावास में हो जाएंगे तो निशुल्क शिक्षा आभासी व्यवस्था निशुल्क भोजन की सुविधा छात्र-छात्राओं को प्राप्त होगी।


मप्र अजब है और यहाँ की सरकार भी

हमारे यहां कहावत है कि कोई अपनी जंघा खुद नहीं दिखाता या कोई अपनी मां को भट्टी नहीं कहता. लेकिन मप्र के संदर्भ में ये दोनों कहावतें लागू नहीं होतीं. ये बात हाल की कुछ घटनाओं से प्रमाणित होती है.

मप्र से केंद्र में कृषि मंत्री हैं श्री शिवराज सिंह चौहान. दो दशक तक मुख्यमंत्री भी रहे किंतु आज तक संविधान को नहीं समझ पाए. और एक संवैधानिक पद पर होते हुए संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की संघ के दत्तात्रय होंसबोले की मांग का समर्थन कर बैठे. संघ में अपना महत्व जो बढाना है, अन्यथा उनकी हरकत संविधान की अवमानना है. शिवराज ने मुख्यमंत्री रहते दो दशक में ऐसी मांग नही की.

अब आइये मप्र में सुशासन पर. मप्र में सुशासन की स्थिति ये है कि यहाँ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के कारकेट में शामिल 19 वाहनों में पेट्रोल के बजाय पानी भर दिया जाता है, और किसी को शर्म नही आती. बाद में विभागीय मंत्री पूरे प्रदेश के पेट्रोल पंपो की जांच के आदेश दे देते हैं. आप कल्पना कर सकते हैं कि मप्र में मिलावट का स्तर कहाँ से कहाँ पहुंच गया है?

इसी मप्र में देवास इंदौर हाईवे पर 36 घंटे का जाम तगा रहता है, 3 लोग  इलाज न मिने से मर जाते हैं, लेकिन कोई जिम्मेदारी लैने को तैयार नहीं होता.किसी को शर्म नहीं आती, अन्यथा कोई तो इस घोर लापरवाही क लिए क्षमा मांगता. मप्र में ही राजधानी भोपाल में लोनिवि के इजीनियर 90डिग्री का आर ओ वी बना देते है और  सरकार बेशर्मी से कहती है नया पुल बनवा देंगे. मामला उजागर होने के एक पखवाडे बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को दोषियों पर कार्रवाई की सुध आती है.

मप्र की सरकार इस समय विकास के नाम पर केवल धाम बनाने में जुट जाती है. मुख्यमंत्री अगडे, पिछडे सभी को खुश करने के लिए प्रतिदिन नये धाम बनाने की घोषणाएं कर रही है. मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अभी तक ये यकीन नहीं कर पाए कि वे स्वतंत्र मुख्यमंत्री हैं. उनका पूरा समय सिंधिया, तोमर, चौहान और कैलास विजयवर्गीय को साधने में ही खर्च हो रहा है.

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश पर कर्ज का स्तर चिंताजनक है। 2025 तक, राज्य पर 4.10 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बताया गया है, और 18 फरवरी 2025 को 5,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज लेने की योजना है।सीएजी की रिपोर्ट में कर्ज की स्थिति पर चिंता जताई गई है, जिसमें कर्ज चुकाने के लिए और कर्ज लेने की प्रवृत्ति उजागर हुई है।2021-22 में कर्ज 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक था, और ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों के 10% से अधिक रहा।गरीबी और सामाजिक सूचकांक:2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश को सामाजिक-आर्थिक विकास में अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ा बताया गया। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात 31.65% था, जो राष्ट्रीय औसत 21.92% से अधिक है। और तो और शिशु मृत्यु दर में मप्र पहले स्थान  पर है. यहाँ एक हजार में से 40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते. क्योंकि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में शिशुरोग विशेषज्ञों के 70  फीसदी पद खाली है.

मेरे पांच दशक के कार्यानुभव में ऐसा लचर मुख्यमंत्री कोई दूसरा नहीं रहा. लेकिन ये राजनीती का नया दौर है. इसमें सब कुछ चलता है.

@  राकेश अचल

शनिवार, 28 जून 2025

उत्तम जखैनिया को प्रभारी उपायुक्त राजस्व का दायित्व

 ग्वालियर । कार्य सुविधा की दृष्टि से नगर निगम आयुक्त के जारी आदेशानुसार उत्तम जखैनिया प्रभारी उपायुक्त सम्पत्तिकर ग्वालियर विधानसभा क्षेत्र को आगामी अन्य आदेश होने तक अपने वर्तमान कार्य के साथ ही  प्रभारी उपायुक्त राजस्व का दायित्व सौंपा गया ।

स्मृति शेष : ग्वालियर की बहू थी शैफाली जरीवाला

कांटा लगा फेम शैफाली जरीवाला के असामय निधन की खबर से मैं दुखी हूं. शैफाली गुजरात की बेटी लेकिन ग्वालियर की बहू थी. अपने जमाने के चर्चित शराब कारोबारी स्वर्गीय गुलजार सिंह के बेटे हरमीत की पत्नी थी शैफाली. ये रिश्ता हालांकि कुल पांच साल चला, किंतु रिश्ता तो रिश्ता होता है. शैफाली के ससुर सरदार गुलजार सिंह का अच्छा खासा रसूख था. लेकिन उनके बेटों ने शराब कारोबार को अपनाने के बजाय संगीत को कैरियर बनाया और यहीं इनको शैफाली मिली. सरदार गुलजार सिंह इस शादी से खुश नहीं थे लेकिन बेटे की खुशी के सामने वे झुके. गुलजार को पता था कि ये शादी चलेगी नही, और हुआ भी वही. पांच साल में ही ये शादी टूट गई.

मुझे सरदार गुलजार सिंह ने ही शैफाली से मिलाया था. सोणी लडकी थी, लेकिन वो गुलजार के परिवार को गुलजार नहीं कर पायी. शैफाली ग्लेमर की दुनियां में ध्रुव तारे की तरह चमकी और पुच्छल तारे की तरह लुप्त भी हो गई. शैफाली ने म्यूजिक वीडियो भी बनाए और कुछ फिल्मों में भी काम किया था. शैफाली के हिस्से में छोटा आकाश आया. मेरी बेटी की उम्र की थी शैफाली. उसमें प्रतिभा, संघर्ष और काम के प्रति समर्पण की कोई कमी नहीं थी. लेकिन उतावलापन उसे ले डूबा.

शेफाली जरीवाला को 2002 में म्यूजिक वीडियो "कांटा लगा" से व्यापक प्रसिद्धि मिली, जिसके बाद उन्हें "कांटा लगा गर्ल" के नाम से बने एक म्यूजिक एलबम से.शेफाली का जन्म अहमदाबाद,  में एक गुजराती परिवार में हुआ था। उन्होंने जमनाबाई नरसी स्कूल, गुजरात से स्कूली शिक्षा पूरी की और सरदार पटेल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, आनंद, गुजरात से इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में बी.ई. की डिग्री हासिल की।शैफाली इंजीनियर बनने के बजाय कांटा गर्ल बन गई.2002 में "कांटा लगा" म्यूजिक वीडियो में उनकी बोल्ड परफॉर्मेंस ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। इसके बाद उन्होंने "कभी आर कभी पार रीमिक्स" (2002), "माल भरी आहे – डीजे हॉट रीमिक्स" (2004), और "प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया" (2006) जैसे अन्य म्यूजिक वीडियो में काम किया।फिल्म और टीवी: उन्होंने बॉलीवुड फिल्म "मुझसे शादी करोगी" (2004) में एक छोटी भूमिका निभाई और कन्नड़ फिल्म "हुडुगारु" (2011) में भी नजर आईं। 2018 में उन्होंने ALT बालाजी की वेब सीरीज "बेबी कम ना" में  मुख्य भूमिका निभाई और "बू सबकी फटेगी" में भी दिखाई दीं। इसके अलावा, उन्होंने रियलिटी शो "बूगी वूगी" (2008), "नच बलिए 5" और "नच बलिए 7" में अपने पति पराग त्यागी के साथ हिस्सा लिया। 2019 में वह "बिग बॉस 13" में वाइल्ड कार्ड प्रतियोगी के रूप में शामिल हुईं। 2024 में वह टीवी शो "शैतानी रस्में" में भी दिखाई दीं।

शेफाली इंस्टाग्राम (@shefalijariwala) पर सक्रिय थीं, जहां उनके 3.2 मिलियन फॉलोअर्स थे, और ट्विटर (@shefalijariwala) पर उनके करीब 125.9k फॉलोअर्स थे।उनके पिता का नाम सतीश जरीवाला और मां का नाम सुनीता जरीवाला है, जो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत थीं। उनकी एक बहन, शिवानी जरीवाला, दुबई में रहती हैं। शेफाली ने 2004 में मीट ब्रदर्स के संगीतकार हरमीत सिंह से शादी की, लेकिन 2009 में तलाक हो गया। उन्होंने हरमीत पर दुर्व्यवहार और मारपीट का आरोप लगाया था। बाद में, 12 अगस्त 2014 को उन्होंने टीवी अभिनेता पराग त्यागी से शादी की

शेफाली ने एक साक्षात्कार में बताया था कि 15 साल की उम्र में उन्हें पहली बार मिर्गी का दौरा पड़ा था। तनाव और चिंता के कारण ये दौरे बढ़ते थे, लेकिन व्यायाम और जीवनशैली में बदलाव से वह दौरे से मुक्त रही थीं और अवसाद से भी जूझती थीं। 

एक बार शेफाली ने मुझे बताया था कि इन्सान के बाद  उसे कुत्तों से बहुत प्यार  है.उनके पास एक पग था। उनके पास पीठ पर एक दिल के आकार का टैटू और बाएं हाथ पर पक्षियों का टैटू था।2016 में उन्होंने अपनी बहन के साथ दुबई में एक प्रोफेशनल ट्रेनिंग और कोचिंग कंपनी, WYN, शुरू की थी।"कांटा लगा" के लिए उन्हें मात्र 7000 रुपये मिले थे, और इस गाने के लिए उन्हें अपने पिता को मनाना पड़ा था, क्योंकि वह एक शैक्षणिक परिवार से थीं।शेफाली जरीवाला की अचानक मृत्यु ने उनके प्रशंसकों और मनोरंजन उद्योग में शोक की लहर पैदा कर दी। उनकी विरासत एक पॉप कल्चर आइकन के रूप में हमेशा याद की जाएगी।ग्वालियर की बहू शैफाली को विनम्र श्रद्धांजलि.

@राकेश अचल

अब तक होती है धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की चुभन !

भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द 42वें संशोधन के द्वारा 1976 में जोड़े गए। यह संशोधन 25 नवंबर 1976 को लागू हुआ।इन शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया, जिससे भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया।लेकिन ये दोनों ही शब्द भाजपा और आर एस एस को कांटे की तरह आज भी चुभते हैं. संघ का बस चले तो वो ये दोनों शब्द रातों -रात हटवा दे, किंतु ऐसा करना फिलहाल असंभव है.

गत दिवस इन दोनों शब्दों की वजह से होने वाली चुभन को  आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले  दबा नहीं पाए. होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की बात कही। उन्होंने कांग्रेस पर 50 साल पहले इमरजेंसी लगाने का आरोप लगाते हुए कहा कि इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस सरकार ने प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जोड़े थे। अब इस पर विचार करना चाहिए कि ये शब्द रहने चाहिए या नहीं। उन्होंने कांग्रेस से इमरजेंसी के लिए माफी मांगने की मांग की। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन्होंने इमरजेंसी किया, वे आज संविधान की प्रति लेकर घूम रहे हैं। उन्हें इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।

 आपको याद होगा कि भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद दो मूलभूत सिद्धांत हैं, जिन्हें 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से जोड़ा गया था.तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ये सब किया था.भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और निष्पक्षता बरती जाएगी। यह पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता (राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव) से भिन्न है, क्योंकि भारत में राज्य धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है और सभी धर्मों के अनुयायियों को समान अधिकार देता है।संवैधानिक प्रावधान:प्रस्तावना: भारत को "धर्मनिरपेक्ष" गणराज्य घोषित करता है।अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करते हैं, जिसमें व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता शामिल है।अनुच्छेद 14, 15, 16: समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार सुनिश्चित करते हैं, जिसमें धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का मतलब "सर्वधर्म समभाव" है, यानी सभी धर्मों का समान सम्मान। राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन धार्मिक सुधारों या सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है (उदाहरण: मंदिरों का प्रशासन, सामाजिक कुरितियों के खिलाफ कानून). यह सिद्धांत भारत की विविध धार्मिक और सांस्कृतिक संरचना को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण है।जबकि संघ और भाजपा संविधान की प्रस्तावना में हिंदू राष्ट्र शब्द जोडने का सपना पाले हुए है.

भारतीय संदर्भ में समाजवाद का मतलब आर्थिक और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना है, जिसमें धन और संसाधनों का असमान वितरण कम करना और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना शामिल है। यह पूर्ण समाजवाद (जैसे साम्यवाद) नहीं, बल्कि "लोकतांत्रिक समाजवाद" है, जो निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाता है।संवैधानिक प्रस्तावना में ये शब्द आने के बाद भारत को "समाजवादी" गणराज्य घोषित कर दिया गया था.।अनुच्छेद 38, 39, 41, 42, 43 आदि सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए राज्य को निर्देश देते हैं। जैसे:अनुच्छेद 39: संसाधनों का समान वितरण और धन का केंद्रीकरण रोकना।अनुच्छेद 43: श्रमिकों के लिए उचित मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा।मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) सामाजिक-आर्थिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।

 भारत का समाजवाद मिश्रित अर्थव्यवस्था पर आधारित है, जिसमें निजी उद्यम और सरकारी नियंत्रण दोनों शामिल हैं। यह सामाजिक कल्याण, गरीबी उन्मूलन और वंचित वर्गों के उत्थान पर केंद्रित है।महत्व: समाजवाद का लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है

भाजपा धर्मनिरपेक्षता को भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को एकजुट रखने का आधार नहीं मानती.है, जो सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार सुनिश्चित करता है।समाजवाद सामाजिक-आर्थिक न्याय और समानता को बढ़ावा देता है, जो भारत जैसे असमानताओं से भरे समाज में महत्वपूर्ण है।दोनों सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करते हैं।

भाजपा पिछले 11साल से सत्ता में है.भाजपा ने संविधान के तहत जम्मू काश्मीर को मिला विशेष दर्जा धारा 370 हटा दी लेकिन संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटा पाना भाजपा की लंगडी सरकार के लिए नामुमकिन लग रहा  है. इन शब्दों की बिना लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाता. अब दैखना  है कि भाजपा इन कांटों को कब तक हटा पाती है.

@ राकेश अचल.

शुक्रवार, 27 जून 2025

अब बोलिए जस्टिस गवई के खिलाफ शाखामृगो !

भारत के संविधान को लेकर 25  जून को देश में गजब के नाटक हुए. भाजपा ने संविधान हत्यादिवस मनाया तो कांग्रेस ने संविधान बचाओ दिवस. लेकिन कोई ये तय नहीं कर पाया कि संविधान सर्वोपरि है या संसद? लेकिन भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि देश में संविधान सर्वोच्च है। संसद संविधान को संशोधित कर सकता है, लेकिन उसके मूल में कोई बदलाव नहीं ला सकता है.मुमकिन है कि अब निशिकांत दुबे जैसे लोग जस्टिस गवई पर उसी तरह हमले कर उठें जैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना पर किए गए थे.

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई निडर व्यक्ति हैं. वे सिर्फ कानून से डरते हैं. कोई बडे से बडा नेता उनसे गणपति वंदना शायद नहीं करा सकता, जैसे कि पूर्व के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वाय वी चंद्रचूड से करा ली गई थी.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि भारत का संविधान  सबसे ऊपर है। हमारे लोकतंत्र के तीनों अंग न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका संविधान के अधीन काम करते हैं। सीजेआई गवई ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि संसद  सर्वोच्च है, लेकिन मेरी राय में संविधान सर्वोपरि है. देश की मौजूदा राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और निशिकांत दुबे जैसे बहुत से लोग संसद को ही सर्वोच्च मानते हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय की  बार - बार अवमानना कर चुके हैं.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई ने अमरावती ने कहा कि संसद के पास संविधान संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है। उन्होंने कहा कि एक जज को हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा एक कर्तव्य है। हम नागरिकों के अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों के संरक्षक हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास केवल शक्ति नहीं है, हम पर एक कर्तव्य भी सौंपा गया है। उन्होंने कहा कि किसी भी जज को यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग उनके फैसलों को लेकर लोगों की राय क्या होगी। हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोग क्या कहेंगे, यह हमारी फैसले लेने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन सकता है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैंने हमेशा अपने निर्णयों और काम को बोलने दिया है। मैं हमेशा हमारे संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के साथ खड़ा रहा। बुलडोजर न्याय के खिलाफ अपने फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आश्रय का अधिकार सर्वोच्च है।जस्टिस गवई के पास तमाम गुत्थियों को सुलझाने, संवेदनशील मामलों में फैसले सुनाने के लिए कुल तीन महीने बचे हैं. वे 23नवंबर 2025 को सेवानिवृत होंगे. इससे पहले वे क्या कुछ नया कर सकते हैं, इसके संकेत मिलने शुरू हो गए हैं.वक्फ बोर्ड कानून पर अभी जस्टिस गवई ने फैसला नहीं सुनाया है. ऐसे और भी अनेक मामले अभी भी लंवित हैं जिनके ऊपर देश की भावी राजनीति टिकी है.

आपको बता दूं कि जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ। साल 1985 में उन्होंने अपना कानूनी करियर शुरू किया। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की। इससे पहले उन्होंने पूर्व एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट के न्यायाधीश राजा एस भोंसले के साथ काम किया। गवई ने 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की। अगस्त 1992 से 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के रूप में नियुक्त हुए।14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट हुए। 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट के परमानेंट जज बने। 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जस्टिस बने। 14 मई को शपथ लेकर देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनाए गए.अब फैसला 56'और 52वें मुख्य न्यायाधीश के बीच है.

@  राकेश अचल

गुरुवार, 26 जून 2025

उम्मीदों के शुभांकर बने शुभांशु

 

ये एक अराजनीतिक खबर है. भारत पूरे 40 साल बाद फिर से अंतरिक्ष में है. भारत के शुभांशु शुक्ला तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ आईएस एस  अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए रवाना हुए हैं. लखनऊ के 40वर्षीय शुभांशु इस जगह पहुने वाले पहले और अंतरिक्ष में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय नागरिक हैं.

 आपको याद होगा कि 1984  में भारतीय वायुसेना के पायलट राकेश शर्मा पहले भारतीय थे, जिन्होंने सोवियत संघ के सोयुज टी-11 मिशन के तहत अंतरिक्ष में यात्रा की थी. तब श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं.। वे 7 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में गए और भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक मील का पत्थर स्थापित किया। राकेश शर्मा के बाद भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने नासा के साथ कई मिशनों में हिस्सा लिया। वे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन  पर लंबे समय तक रहीं और 2024 में बोइंग स्टारलाइनर मिशन के तहत आई एस एस पर गईं। उनकी वापसी तकनीकी कारणों से मार्च 2025 तक टल गई थी। भारत ने उस समय भी  जमकर जश्न मनाया था 

ये दूसरा मौका है जब भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्जाम -4 मिशन के तहत आई एस एस पर गए। यह मिशन 25 जून 2025 को शुरु हुआ, जिसमें शुभांशु पायलट की भूमिका में थे।यह मिशन इसरो और नासा के बीच सहयोग का हिस्सा है, जिसमें शुभांशु 7 भारतीय वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं, जो माइक्रोग्रैविटी, जैविक, और कृषि अनुसंधान से संबंधित हैं।मिशन की लागत 550 करोड़ रुपये है और यह भारत के गगनयान मिशन की तैयारी में महत्वपूर्ण है। खास बात ये कि 7 बार स्थगन के कारण जैविक नमूनों की सुरक्षा पर सवाल उठे, लेकिन इसरो और नासा ने इसे सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएआपको बता दूं कि इसरो का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन, गगनयान, 2027 में शुरु होने की उम्मीद है। यह भारत का पहला स्वदेशी मानव अंतरिक्ष मिशन होगा।

लखनऊ के शुभांशु शुक्ला और ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर ने एक्सजोम -4 के लिए प्रशिक्षण पूरा किया, जो गगनयान की तैयारी में मदद करेगा।गगनयान का लक्ष्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना है।लद्दाख में एनालॉग में इसरो ने नवंबर 2024 में लेह, लद्दाख में भारत का पहला मंगल और चंद्रमा एनालॉग मिशन शुरू किया। यह मिशन चंद्रमा और मंगल जैसे वातावरण में जीवन की चुनौतियों का अनुकरण करता है।मिशन में हब-1 (हाइड्रोपोनिक्स फार्म, रसोई, स्वच्छता सुविधाएँ) का परीक्षण किया गया, जो भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है। दुनिया एक तरफ बारूद का खेल खेल रही है वहीँ दूसरी तरफ 2040 तक लागत प्रभावी अंतरिक्ष पर्यटन की संभावना पर काम हो रहा है।

 अंतरिक्ष के क्षेत्र मे भारत के खाते में भी साल दर साल नयी उपलब्धियाँ जुड रहीं हैं.चंद्रयान-3 (2023) ने चंद्रमा की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग,कर भारत को अंतरिक्ष अन्वेषण में अग्रणी बनाया।2013 में भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन मंगलयान ने , भारत को मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बनाया।आदित्य-एल1: सूर्य-पृथ्वी L1 बिंदु पर भारत का पहला सौर मिशन, जो 2023 में पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकला।

कोई माने न माने लेकिन भारत 140  करोड लोगों की उम्मीद शुभांशु शुक्ला की इस यात्रा की कामयाबी से जुडी है. अब विघ्ध संतोषी सवाल कर सकते हैं कि कोई यादव, कोई खान, कोई गांधी, कोई मोदी इस काम के लिए क्यों नहीं चुना गया? तो उत्तर साफ है कि इस विज्ञानं में राजनीति और आरक्षण नहीं चलता, अन्यथा शुभांशु का नंबर कभी नहीं आता. शुभांशु को हम सब की ओर से कोटि कोटि शुभकामनायें.

@  राकेश अचल

बुधवार, 25 जून 2025

भव्य सम्मान समारोह: ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन सम्मानित हुए

वैश्य महासम्मेलन युवा इकाई महानगर द्वारा श्री उमाशंकर गुप्ता के जन्म दिन पर अलग अलग क्षेत्रों में विशेष सामाजिक कार्यों में अपनी विद्या द्वारा सफल   प्रतिभाओं और छात्र / छात्राओं का  भव्य सम्मान दिवस समारोह जैन छात्रावास ग्वालियर में किया गया इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रदेश युवा इकाई के प्रदेश अध्यक्ष श्री विकाश डागा इंदौर,प्रदेश उपाध्यक्ष श्री मुकेश अग्रवाल प्रदेश महामंत्री श्री अनिल जैन प्रदेश महामंत्री श्रीमती नीलम जैन संभागीय अध्यक्ष डॉ रजनीश नीखरा युवा इकाई अध्यक्ष श्री विवेक गुप्ता जी आदि विशेष रूप से उपस्थित थे हाल दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था 

इस अवसर पर अलग अलग क्षेत्रों में विशेष सफल सामाजिक कार्यों के लिए सम्मानित किया जा रहा था इस अवसर पर ज्योतिष के क्षेत्र में सफल और उत्कृष्ट कार्य करने वाले जाने माने ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन को उनकी तीन दशक से अधिक समय से अनेक जटिल मुद्दों पर सत्य हो रही राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय भविष्यवाणियों के लिए सम्मानित किया गया।

ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन को इस विशेष सामाजिक सम्मान के लिए उनके इष्ट मित्रो ने उन्हें बधाई और शुभ कामनाएं दी।

जाने कब भरेंगे आपातकाल में हुए जख्म ?

मै आपातकाल के पचास साल पूरे होने पर न भी लिखता तो कोई पहाड टूटने वाला नहीं था, क्योंकि आपातकाल में प्रतिरोध करने वालों को मिले जख्म न जाने कब के भर चुके है. लेकिन राजनीति की फितरत है कि वो हर जख्म को हरा रखती है ताकि सत्ता बनी रहे. देश में सरकारी पार्टी भाजपा 25  जून 2025  को आपातकाल की पचासवीं सालगिरह को संविधान सुरक्षा दिवस के रुप में मनाकर  आपातकाल के हौवे को बनाये रखना चाहती है.

देश में एक पीढी है, जिसने आपातकाल नहीं देखा और एक पीढी आपातकाल की साक्षी भी है. आपातकाल में जो लोग जेल गए थे भाजपा उन्हे लोकतंत्र सेनानी मानती है और ऐसे लोगों को राजकोष से बाकायदा पेंशन भी दे रही है. आपातकाल के इस प्रतिसाद से पल रहे लोग आपातकाल को जिंदा रखना चाहते हैं, बल्कि मै तो कहूं तो ऐसे दल और लोग आपातकाल से प्रेरणा लेकर बिना आपातकाल की घोषणा के ही संविधान के, नागरिक अधिकरों के शत्रु बने हुए हैं.

जिस दिन आपातकाल लगा मै सिनेमाघर से बाहर निकला था, आपातकाल का विरोध करते हुए गिरफ्तारी देने वालों के साथ मै भी पुलिस वेन में सवार हुआ लेकिन नफरी के बाद मुझे नाबालिग होने की वजह से बैरंग लौटा दिया गया. उस समय मैं कक्षा 11का छात्र था. आपातकाल का मतलब नहीं समझता था. मेरे सामने ही आपातकाल हटा भी, चुनाव भी हुआ. कांग्रेस हारी भी. विपक्ष की सरकार भी बनी और ढाई साल में ये सरकार गिर भी गई.

आज मै एक अघोषित आपातकाल को देख रहा हूँ. आज भी सत्ता प्रतिष्ठान के विरोध में बोलने वालों को जेलों में ढूंसा जा रहा है. यातनाये दी जा रहीं हैं और संविधान का चीरहरण किया जा रहा है, लेकिन सब कुछ संविधान बचाने के नाम पर. आज संविधान बचाने का नारा और जिम्मेदारी कांग्रेस और शेष विपक्ष के पास है. संविधान तब भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ और आज भी सब कुछ संविधान के नाम पर, संविधान की आड में हो रहा है.

पिछले ग्यारह साल के अघोषित आपातकाल में संवैधानिक संस्थाएं क्षीण हुई हैं., विधायिका,न्यायपालिका अपमानित हुई है लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ न पचास साल पहले जैसी विपक्षी एकता है और न आक्रामकता. दुर्भाग्य से कोई जयप्रकाश नारायण भी नहीं है. यही वजह है कि आपातकाल की घोषणा किए बिना काम कर रहे दल लगातार  तीसरा चुनाव जीत गये. जनता उन्हें उस तरह से सजा नहीं दे सकी जैसी कांग्रेस को मिली थी. जनता के पास  आपातकाल के खिलाफ अकुलाहट तो है लेकिन तीव्रता नही  है. लोग चुपचाप मार सह रहे हैं. क्योंकि उनके सामने 25  जून 1975  वाले आपातकाल का हौवा है. रुदालियां हैं जो घूंघट डालकर विलाप करती हैं. 

जनता के पास प्रतिकार की जो क्षमता पचास साल पहले थी, अब नहीं है. खमियाजा पूरा देश भुगत रहा है. एक दिव्यांग सरकार स्वेच्छाचारिता की सभी हदें तोडकर भी महात्मा बनी हुई है. देश के भीतर- बाहर भारत की छवि धूमिल हो रही है. भारत का अपमान हो रहा है किंतु एक छद्म राष्ट्रवाद का मुलम्मा इस सब पर चढाया जा रहा है. पुराने आपातकाल ने लोकतंत्र की मात्र 19  महीने की अवमानना की थी, लेकिन आज ऐसा होते 11 साल पूरे होने वाले हैं. प्रार्थना कीजिये कि देश में लोकतंत्र बना रहे. अधिनायकवाद की जडें मजबूत न हों.जनतांत्रिक अधिकार न कुचले जाएं.

मजे की बात ये है कि आपातकाल का हौवा खडे करने वाले लोग तब जेल भी नहीं गये थे. वे मेरी तरह नाबालिक भी नहीं थे. वे भूमिगत हो गये थे. गिरफ्तारी से डर  गये थे. यही लोग आपातकाल का हवाला देकर देश को गुमराह कर रहे हैं. ये लोग चूंकि लोकतंत्र के छदम सेनानी हैं. बहरहाल मै आश्वस्त हूं कि देश जब घोषित आपातकाल से बाहर  आ गया था तो इस अघोषित आपातकाल से भी यथाशीघ्र बाहर आ जाएगा.

राकेश अचल

मंगलवार, 24 जून 2025

बारह दिन का महाभारत और युद्ध विराम

 

आज की अच्छी खबर ये है कि ईरान, इजराइल और अमेरिका के बीच पिछले बारह दिन से चल रहे लोमहर्षक अमानवीय, अनैतिक और अयाचित युद्ध पर विराम लग गया. गनीमत है कि इस युद्ध विराम की घोषणा चीन, रूस या विश्वगुरु भारत ने नहीं बल्कि खुद हमलावर अमेरिका ने की है. ये मौका था कि भारत अमेरिका से पहले युद्ध विराम की घोषणा कर अमेरिका से अपने अपमान का बदला ले लेता. खैर !

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद ईरान और इजरायल के बीच सीजफायर लागू हो गया है. दोनों देशों के बीच बीते 12 दिनों से जंग चल रही थी, जिसके वजह से दोनों देशों को लगातार जान-माल का नुक़सान हो रहा था. दोनों ही देश एक-दूसरे पर हवाई हमले कर रहे थे. दुनिया इस हिंसक, क्रूर लडाई को तीसरे विश्व युदध के आगाज के रूप में देख रही थी, लेकिन बला टल गई. अब अगले 24 घंटे में युद्ध की औपचारिक तौर पर अंत हो जाएगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के साथ ही दुनियाभर के देश युद्ध को समाप्त करने की अपील कर रहे थे ताकि मध्य पूर्व में शांति बहाल हो सके.



अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान-इजरायल के बीच सीजफायर का ऐलान किया.उन्होंने कहा, मिडिल ईस्ट में शांति बहाल का रास्ता साफ हो गया है.

दोनों देश के बीच बीते 12 दिनों से जंग चल रही थी, लगातार हवाई हमले किए जा रहे थे. जिसकी वजह से स्थिति और तनावपूर्ण होते जा रहा था. इस दौरान दोनों ही पक्षों को जान-माल का नुक़सान हुआ. हालांकि, अब दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति से सीजफायर पर बात बन गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने बताया है कि अगले 24 घंटे में औपचारिक तौर से युद्ध की समाप्ति हो जाएगी.मजे की बात देखिए कि जिस अमेरिका ने ईरान को नेस्तनाबूत करने की कसम खाई थी उसी अमेरिकी प्रशासन ने दोनों पक्षों को शांति के लिए प्रेरित किया. 

 आपको याद होगा कि ईरान ने कतर की राजधानी में स्थित अमेरिकी अल-उदीद बेस (सैन्य ठिकाना) पर सोमवार को मिसाइल हमले कर दागकर पूरी दुनिया को चौंका दिया था. जिसकी वजह से कतर को कुछ घंटों के लिए अपना एयरस्पेस बंद करना पड़ा था. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने अमेरिकी बेस पर हमले के बाद कहा कि ईरान किसी के समक्ष झुकेगा नहीं. ईरान आत्मसमर्पण करने वाला राष्ट्र नहीं है. 

 द्वापर में धरती का सबसे विनाशकारी युद्ध महाभारत 18दिन चला था, लेकिन खाडी का ये युद्ध 12दिन में ही ठिठक गया. एक जमाने में खाडी युद्ध 8साल तक चला था. लेकिन तब के और अब के हालात में बहुत अंतर आ गया है. इस युद्धविराम के बाद अब रूस और यूक्रेन को भी जनहित में युद्ध रोक देना चाहिए. ईरान, इजराइल, अमेरिका, रूस और यूक्रेन से बेहतर तो हम भारत वाले हैं जो हमने तीन दिन में युद विराम स्वीकार कर लिया.हम जानते हैं कि युद्ध लीला कोई रामलीला या रासलीला नहीं है. युद्ध हमेशा से विनाशकारी होता है.

ईरान -इजराइल युद्ध लंबा खिंच सकताश्रथा लेकिन रूस और चीन के साथ ही ईरान के तेवर देख अमेरिका को युद्ध विराम की घोषणा करना पडी, अन्यथा इजराइल और अमेरिका का एजेंडा तो ईरान में तख्ता पलटने का था. खुदा का करम है कि ये एजेंडा पूरा नहीं हुआ. इसके लिए दुनिया के सभी पक्षों का शुक्रिया, उनका भी जिन्होंने ईरान का समर्थन किया, उनका भी जिन्होंने मौन धारण किया. भगवान करे कि अब युद्ध की चिंगारी दुनिया के किसी भी हिस्से में न भडके. इस विनाषक, भयावह, नृशंस युद्ध में बेमौत मारे गये ईरानियों, इजराइलियों और अमरीकियों को ऊपरवाला जन्नत फरमाए. जो जख्मी हुए हैं उन्हे सेहत दे. इस युद्ध से हुए नुकसान की भरपाई आसानी से नहीं होगी. एक लंबा अरसा लगेगा हालात मामूल पर आने में.

बधाई उन ईरानियों को जो अपनी संप्रभुता और स्वाभिमान के लिए लडे. बधाई उन इजराइलियों और अमरीकियों के अलावा दुनिया के उन तमाम लोगों और संगठनों को को जो इस युद्ध के खिलाफ अपनी -अपनी जमीन पर लडे. जो तटस्थ रहे उनका हिसाब भी समय करगा ही.

@ राकेश अचल

सोमवार, 23 जून 2025

अब मिलकर बजाइए जलमध्यडमरू

 चौंकिए मत, ईरान पर अमरीकी हमले के बाद ईरान ने वही किया जिसकी आशंका थी. ईरान ने होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर दिया. ये रास्ता एक तरह का जल मध्य डमरू है. ये डमरू अपनी रचना की वजह से महत्वपूर्ण है. आप कहेंगे कि आखिर ये क्या बला है, तो पहले इसे जान लीजिये.

जलमध्यडमरू, जिसे जलसंधि या जलडमरूमध्य भी कहा जाता है, एक संकीर्ण जलमार्ग है जो दो बड़े जल निकायों (जैसे समुद्र, महासागर या खाड़ी) को जोड़ता है। इसका भौगोलिक आकार अक्सर  शंकर जी के प्रिय डमरू  जैसा होता है,. डमरू मदारी भी बजाते थे. आजकल मदारी नाम की संस्था समाप्त हो चुकी है, लेकिन जल के मध्य डमरु आज भी महत्वपूर्ण है.. इसमें  दो बड़े जल क्षेत्रों के बीच एक तंग हिस्सा होता है, इसलिए इसे जलडमरूमध्य कहा जाता है।यह डमरू कोई बनाता नहीं है बल्कि ये प्राकृतिक रूप से बनता है, जैसे टेक्टोनिक प्लेटों की गति या जल के कटाव से नौकाएँ और जहाज इस मार्ग से एक जलाशय से दूसरे जलाशय तक जा सकते हैं, जो व्यापार और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है।जलसंधियाँ व्यापारिक और सैन्य नौवहन पर नियंत्रण के लिए कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं। उदाहरण के लिए, होर्मुज जलसंधि तेल व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।इसका भू-राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है.इन पर नियंत्रण को लेकर इतिहास में कई बार अंतरराष्ट्रीय विवाद हुए हैं, जैसे जिब्राल्टर जलसंधि पर स्पेन, ब्रिटेन और मोरक्को के बीच तनाव।

ईरान के ऊपर अमेरिका हमले के बाद इस युद्ध के विकराल रूप लेनी की संभावनाए अपने चरम पर है. ईरान ने ऐलान किया है कि वह अमेरिका के इस हमले का जवाब देगा. हालांकि इजराइल ने अमेरिका के हमले के बाद इजराइल पर करीब 30 मिसाइलें दागी हैं. अब ईरान की संसद ने एक ऐसा फैसला किया है, जिसके बाद बिना मिसाइल दागे पूरी दुनिया ही जाएगी.

अगर ईरान इस होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर देगा, तो तेल की कीमते आसमान छू सकती हैं हालांकि बता दें कि ईरानी संसद में तो ये प्रस्ताव पारित हो चुका है, लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला ईरानी सुप्रीम लीडर लेंगे.


आपको बता दें कि दुनिया का 20 फीसदी तेल इसी रास्ते से जाता है. इसमें ज्यादातर एशियाई देशों को जाने वाला तेल हैं. तेल ही नहीं यहां से गैस भी ट्रांस्पोर्ट की जाती है और यह रास्ता ऐशियाई देशों के मध्य पूर्व में निर्यात का रूट भी है. जिसमें भारत, चीन और पाकिस्तान अहम हैं. जाहिर है कि ईरान के इस फैसले के खिलाफ अमेरिका और सख्त कदम उठा सकता है.

एशिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर तेल मध्यपूर्व के देशों से लेता हैं. भारत का करीब 50 फीसदी तेल और गैस होर्मुज की खाड़ी से आता हैं. भारत अपनी एल एन जी का 40 फीसदी कतर और 10 फीसदी दूसरे खाड़ी देशों आयात करता हैं. वहीं भारत 21 फीसद इराक और बाकी दूसरे खाड़ी देशों से आयात करता है.

अगर होर्मुज को ईरान ने बंद किया तो भारत में तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. साथ भारत की ओर से खाड़ी देशों में एक्सपोर्ट होने वाला सामान भी लंबा रास्ता लेकर निर्यात होगा, जो निर्यात की लागत को बढ़ाएगा.लेकिन भारत इस नये युद्ध में अभी तक अपना रुख तय नहीं कर पाया है. भारत की सरकारी पार्टी इसलिए खुश है कि एक इस्लामिक देश बर्बाद हो रहा है. भारत की सरकार और सरकारी पार्टी हमलावर इजराइल के प्रति सहानुभूति रखती है क्योंकि उसे लगता है कि इजराइलियों की नस्ल और हिंदुओं की नस्ल एक है. यानि श्रेष्ठ नस्ल. लेकिन सरकार और सरकारी पार्टी भूल जाती है कि कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरते. युद्ध न वियतनाम को समाप्त कर सका, न अफगानिस्तान को. न सीरिया को न ईराक को. यूक्रैन भी अभी बाकी है, हाँ हर युद्ध में मानवता पिसती है. आज भी पिस रही है.

बहरहाल ईरान अमेरिका, इजराइल युद्ध आपकी जेब पर भी भारी पडने वाला है. भले ही हम रूस से तेल लेने लगे हैं. लेकिन  अर्थव्यवस्था का तेल निकालने के बहुत से तरीके बाकी है. भारत का मौन, या रटी -रटाई गागरौनी भारत की छवि धुमिल कर रहे हैं.

@राकेश अचल

रविवार, 22 जून 2025

स्वर्गीय जोर सिंह कुशवाहा स्मृति सम्मान इस वर्ष राकेश अचल को

ग्वालियर/मध्य प्रदेश काव्य धारा मंच एवं आदर्श कला निकेतन के संयुक्त तत्वावधान में श्रमिक नेता स्वर्गीय श्री जोर सिंह कुशवाहा की पुण्य स्मृति में एक भव्य कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 24 जून 2025 को सायंकाल 5:30 बजे इंटक मैदान, सब्जी मंडी हजीरा में आयोजित होगा।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि  पूर्व  संभागीय कमिश्नर अखिलेदु अर्जरिया होंगे कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ सुरेश सम्राट करेंगे 

उक्त आयोजन मेंवरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार राकेश अचल जी होंगे, जिन्हें जोर सिंह कुशवाहा स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इसके अलावा, कवि सम्मेलन में शहर के प्रमुख कवियों द्वारा अपनी रचनाओं का पाठ किया जाएगा।

मध्य प्रदेश काव्य धारा मंच के अध्यक्ष नयन किशोर श्रीवास्तव ने बताया कि यह कार्यक्रम साहित्य और कला के प्रति लोगों को जागरूक करने और साहित्यकारों को सम्मानित करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। सभी साहित्य प्रेमियों से अनुरोध है कि वे इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर अपनी गरिमा मयी उपस्थिति दर्ज कराएं।

क्या सरकारें खुद न्यायाधीश बन सकती है ?

 


मै लंबे समय से जो कहता आया हूँ कि सरकारें न्यायपालिका का काम नहीं कर सकतीं. यही बात अब भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने  भी यही बात हाल ही में कही कि सरकारें कभी भी न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकतीं। इस सप्ताह की शुरुआत में भारत में सरकारी प्राधिकारियों द्वारा निजी संपत्तियों के प्रतिशोधात्मक विध्वंस  के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा कि कार्यपालिका,  न्यायाधीश, जूरी  और जल्लाद नहीं बन सकती।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने कहा कि हाल ही में, कोर्ट ने संरचनाओं के विध्वंस के मामले में निर्देशों के संबंध में न्यायालय ने राज्य अधिकारियों द्वारा अभियुक्तों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त करने के निर्णयों की जांच की, जो कि उन्हें न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने से पहले ही दंड के रूप में दिए गए थे। यहां, न्यायालय ने माना कि इस तरह के मनमाने विध्वंस, जो कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हैं, कानून के शासन और अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं। कार्यपालिका एक साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले ने इस बात की पुष्टि की है कि संवैधानिक गारंटियों को न केवल नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से कमजोर लोगों की गरिमा, सुरक्षा और भौतिक कल्याण को भी बनाए रखना चाहिए।

न्यायमूर्ति गवई, जिन्होंने पिछले साल फैसला सुनाने वाली पीठ का नेतृत्व किया था, 18 जून को मिलान अपीलीय न्यायालय में “देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में संविधान की भूमिका: भारतीय संविधान के 75 वर्षों पर विचार” विषय पर बोल रहे थे।

सीजेआई गवई ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत द्वारा हासिल किए गए सामाजिक-आर्थिक न्याय ने भारतीय संविधान के आलोचकों को गलत साबित कर दिया है। उन्होंने संवैधानिक लक्ष्यों को मजबूत करने में न्यायपालिका द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डाला।

सीजेआई गवई ने कहा कि मैं कह सकता हूं कि संसद और न्यायपालिका दोनों ने 21वीं सदी में सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के दायरे का विस्तार किया है । उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान ने आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास किया है.

आपको याद होगा कि पिछले कुछ वर्षों में देश की तमाम डबल इंजिन की सरकारों ने बुलडोजर संहिता लागू कर  हत्या, बलात्कार, अतिक्रमण के आरोपियों के खिलाफ अंधाधुंध तरीके से बुलडोजर का इस्तेमाल कर एक वर्ग विशेष को प्रताडित किया था. बुलडोजर संहिता लागू करने में उप्र की योगी सरकार सबसे आगे रही. बाद में मप्र, राजस्थान, उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया थ. पीडितों ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी. कुछ राज्य सरकारों ने माननीय अदालत के निर्देश के बावजूद बुलडोजर  का इस्तेमाल बंद नहीं किया था. अब आप उम्मीद कर सकते हैं कि डबल इंजन की सरकारों  को सदबुद्धि आएगी और सरकारें अर्थात न्यायाधीश बनने की कुचेष्टा नहीं करेगी.

उल्लेखनीय है कि 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाइयों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं और दिशानिर्देश जारी किए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:किसी व्यक्ति का घर केवल इसलिए नहीं तोड़ा जा सकता क्योंकि वह किसी अपराध का आरोपी या दोषी है।बुलडोजर कार्रवाई से पहले उचित नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें कम से कम 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।कार्रवाई कानून के शासन और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए। बिना सुनवाई के किसी को दंडित करना असंवैधानिक है।अगर अवैध निर्माण सिद्ध होता है, तो केवल उसी हिस्से को हटाया जा सकता है, और पूरी संपत्ति को ध्वस्त करना अंतिम उपाय होना चाहिए।गलत कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को मुआवजा देना होगा और उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका (प्रशासन) यह तय नहीं कर सकती कि कोई दोषी है या नहीं; यह न्यायपालिका का अधिकार है। बुलडोजर कार्रवाइयाँ सामूहिक दंड के समान हैं, जो संविधान के खिलाफ है।सामाजिक प्रभाव: कुछ लोग बुलडोजर कार्रवाइयों को अपराध के खिलाफ कठोर कदम मानते हैं और इसे समर्थन देते हैं, जैसा कि एक सर्वे में 54% लोगों ने उत्तर प्रदेश में इसे माफिया के खिलाफ प्रभावी बताया। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह कार्रवाइयाँ अक्सर पक्षपातपूर्ण होती हैं और अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाती हैं।

@ राकेश अचल

मंगलवार, 17 जून 2025

गांधी का डीएनए भी बदल गया है अब


मैं चूंकि गांधीवादी हूँ इसलिए मुझे ये खबर पढकर सदमा लगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रपौत्री को उस दक्षिण अफ्रीका में धोखाधडी के मामले में दंडित किया गया है, जिस दक्षिण अफ्रीका को महात्मा गांधी ने सत्याग्रह करना सिखाया और नींद से जगाया था.

खबर है कि महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन को दक्षिण अफ्रीका में 3.22 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में 7 साल की सजा हुई. उन्होंने नकली दस्तावेजों के जरिए व्यापारी से पैसे लिए. लता, महात्मा  गांधी  के बेटे मणिलाल की पोती और एला गांधी की बेटी हैं.

लता रामगोबिन पर आरोप था कि उन्होंने व्यापारी एसआर महाराज को यह कहकर 62 लाख रैंड ले लिए कि उन्होंने भारत से लिनन के तीन कंटेनर मंगवाए हैं, जिन पर कस्टम ड्यूटी और अन्य आयात शुल्क चुकाने के लिए पैसे की जरूरत है. बदले में उन्होंने व्यापारी को मुनाफे में हिस्सेदारी का लालच दिया. एसआर महाराज दक्षिण अफ्रीका की एक कंपनी न्यू अफ्रीका अलाइंस फुबियर डिस्ट्रीब्यूटर के डायरेक्टर हैं. उनकी कंपनी वस्त्र, जूते और लिनन का आयात और निर्माण के साथ ही फाइनेंस भी मुहैया कराती है.

नेशनल प्रॉसिक्यूशन अथॉरिटी  के अनुसार, लता रामगोबिन ने व्यापारी को भरोसा दिलाने के लिए फर्जी इनवॉयस, डिलीवरी नोट और नेट केयर अस्पताल समूह की ओर से भुगतान का दावा करने वाले दस्तावेज प्रस्तुत किए. उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि तीन कंटेनरों में लिनन  अस्पताल के लिए मंगवाया गया है.“रामगोबिन ने महाराज से कहा था कि उन्हें बंदरगाह से माल छुड़वाने के लिए तत्काल 6.2 मिलियन रैंड की आवश्यकता है. उन्होंने अस्पताल  का एक फर्जी परचेज ऑर्डर और इनवॉयस भी दिखाया ताकि भरोसा दिलाया जा सके कि माल डिलीवर हो चुका है और भुगतान जल्द ही होगा.

आशीष लता रामगोबिन महात्मा गांधी की परपोती हैं. उनका संबंध गांधी जी के दूसरे बेटे मणिलाल गांधी से है, जो दक्षिण अफ्रीका में बस गए थे. मणिलाल गांधी की बेटी एला गांधी एक जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वे करीब 9 साल तक दक्षिण अफ्रीका की सांसद भी रहीं. एला गांधी के चार बच्चों में से एक हैं आशीष लता रामगोबिन. इस तरह आशीष लता, गांधी जी की वंशज हैं और उनका परिवार लंबे समय से दक्षिण अफ्रीका में सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ा रहा है.

महाराज ने लता रामगोबिन के पारिवारिक पृष्ठभूमि और गांधी परिवार से उनके संबंधों को देखते हुए उन पर भरोसा किया और पैसे दिए. लेकिन बाद में जब उन्होंने दस्तावेजों की जांच की, तो पता चला कि वे सभी नकली थे. इसके बाद उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. लता रामगोबिन को पहले 50,000 रैंड की जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए 7 साल जेल की सजा सुनाई.

लता रामगोबिन  भी एक स्वयं सेवी संगठन इंटरनेशनल सेंटर फार नान वायलेंस की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक थीं. वे खुद को पर्यावरण, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर काम करने वाली कार्यकर्ता बताती थीं. गौरतलब है कि महात्मा गांधी के कई वंशज आज भी सामाजिक कार्यों में जुटे हैं. लता रामगोबिन की मां एला गांधी भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों ही देशों में सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता रही हैं. उनके अन्य रिश्तेदारों में कीर्ति मेनन, उमा धुपेलिया-मेस्थ्री और स्व. सतीश धुपेलिया जैसे नाम शामिल हैं, जो मानवाधिकारों के लिए सक्रिय रहे हैं.

यह मामला दिखाता है कि डीएनए स्धिर चीज नहीं है और एक न एक दिन बदल भी सकता है. लता का डीएनए बदला. उनके लिए अहिंसा और सत्याग्रह जैसे सिद्धांत केवल प्रदर्शन के लिए रह गए.लेकिन गांधीवाद का डीएनए अक्षुण है. वह नहीं बदलता. गांधी के बताए रास्ते पर चलने के लिए गांधी का वंशज होना जरुरी नहीं है. महात्मा गांधी को राष्ट्र विभाजन के लिए अपराधी मानने वाले वर्ग के लिए लता ने एक अवसर और दे दिया है, लेकिन इससे गांधी और गांधीवाद पर कोई असर पडने वाला नहीं है, क्योंकि महात्मा गांधी ही सली विश्ववगुरू हैं.

@ राकेश अचल

सोमवार, 16 जून 2025

झांसी से आयेगी शहीद ज्योति यात्रा

              1008 दीपों से श्रृद्धांजलि देंगे

ग्वालियर 16 जून ।  ग्वालियर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला दो दिवसीय वीरांगना लक्ष्मीबाई बलिदान मेले का शुभारम्भ 17 जून को सायं झांसी से आई शहीद ज्योति यात्रा से होगा। 

बलिदान मेले में 17 जून की सायं 6:00 बजे शहीद ज्योति झांसी दुर्ग से ग्वालियर पहुंचेगी, जिसे राजा मानसिंह तोमर प्रतिमा से राइडर्स क्लब की वाहन सवार मातृशक्ति की अगुवाई में फूलबाग चौराहा लाया जायेगा। फूलबाग चौराहे से सायं 6:30 बजे अश्वारोही झांकियों के साथ सैकड़ों केसरिया ध्वजधारी देशभक्त पैदल शोभा यात्रा के रूप में समाधि तक लायेंगे व मेला के संस्थापक अध्यक्ष श्री जयभान सिंह पवैया व नगर निगम के सभापति श्री मनोज तोमर ज्योति को स्थापित करेंगे। 17 जून को ही सायं 7:30 बजे नगर निगम द्वारा लगाई गई क्रांतिकारियों के शस्त्रों व संस्कृति विभाग द्वारा लगाई जा रही प्रदर्शनी "जरा याद करो कुर्बानी" का शुभारम्भ कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान की उपस्थिति में सम्पन्न होगा। इस अवसर पर समाधि के समक्ष भारत विकास परिषद द्वारा 1008 दीपों द्वारा दीपदान किया जायेगा।

नेशनल क्रिकेटर सुश्री वैष्णवी शर्मा का सम्मान एवं अ.भा. कवि सम्मेलन भी होगा 

बलिदान मेले के दूसरे दिन 18 जून की सायं 7:00 बजे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मुख्य आतिथ्य में महानाट्य व क्रांतिवीर तथा शहीद परिजन सम्मान के साथ ग्वालियर की अंडर 19 नेशनल प्लेयर कु. वैष्णवी शर्मा के सम्मानोपरांत अ.भा. कवि सम्मेलन में प्रख्यात कवि पद्म श्री सुरेन्द्र दुबे, अरुण जेमिनी, विनीत चौहान, सुरेश अलबेला, भुवन मोहिनी, शशिकांत यादव, योगेन्द्र शर्मा, गौरव चौहान व दिनेश "देशी घी" का काव्यपाठ होगा।

लव जिहाद ही नहीं अब लव अपराध भी है

मुझे लगता है कि लव यानि प्यार यानि इश्क से जुडी कहानियों को लेकर मुझे अब बाकायदा किसी विश्वविद्यालय में जाकर शोध कार्य करना पडेगा. सोनम-राजा रघुवंशी कांड के बाद मुझे -'नफरत सी हो गई है, मोहब्बत के नाम से '. लगता है प्रेम अब न जिहाद है, न जिद बल्कि अपराध है, केवल अपराध.

इंदौर के राजा रघुवंशी की उसकी पत्नी सोनम द्वारा हत्या और इंदौर कै ही कांग्रेस पारषद द्वारा लव जिहाद के लिए पार्षद निधि का इस्तेमाल सचमुच चौंकाने वाला मामला है.

सोनम कांड एक प्रेम, धोखे, और सुनियोजित हत्या की कहानी है, जिसने न केवल राजा रघुवंशी के परिवार को झकझोर दिया, बल्कि समाज में रिश्तों और विश्वास पर सवाल उठाए। मेघालय पुलिस की जांच अभी भी जारी है, और सोनम की व्हाट्सएप चैट, क्राइम सीन रीक्रिएशन, और अन्य सबूत इस मामले को और स्पष्ट कर सकते हैं।

 सबसे पहले सोनम की बेवफाई की बात करते हैं. मामला पिछले महीने का है लेकिन हमारे ठलुआ मीडिया ने इसे अभी तक जिंदा रखा हुआ है. सोनम का नाम और हर रोज एक नयी कहानी सुन और पढकर लगता है कि सोनम न हुई चंद्रकांता संतति का अंतहीन किस्सा हो गई. लगता है कि मीडिया ने तय कर लिया है कि वो सोनम को मरने नहीं देगा.सोनम कांड, जिसे मेघालय हनीमून मर्डर केस के रूप में भी जाना जाता है, मध्य प्रदेश के इंदौर के रहने वाले राजा रघुवंशी की हत्या से संबंधित एक हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामला है। इस मामले में मुख्य आरोपी उनकी पत्नी सोनम रघुवंशी हैं। यह मामला 2025 में सुर्खियों में आया और इसने पूरे देश में व्यापक चर्चा उत्पन्न की।

आपको बता दें कि इंदौर देश में स्वच्छता के मामले में नंवर वन था लेकिन अब अपराध के मामले में नंवर वन है.. भाजपा के राज में इसी इंदौर में हनीट्रेप कांड हुआ था. उस मामले में भी किसी का कुछ नहीं बिगडा और शायद सोनम का भी कुछ नहीं बिगडेगा. मुमकिन है कि रामसे ब्रदर्श सोनम कांड पर कोई हारर फिल्म का ऐलान कर दें.राजा रघुवंशी और सोनम की शादी 11 मई 2025 को हुई थी। शादी के कुछ ही दिनों बाद, सोनम ने अपने पति को हनीमून के लिए मेघालय ले जाने का फैसला किया।मेघालय में, सोनम ने अपने प्रेमी राज कुशवाह और कुछ अन्य साथियों के साथ मिलकर राजा की हत्या की साजिश रची।.20 मई 2025 को राजा और सोनम मेघालय के लिए रवाना हुए। सोनम ने राजा को शिलांग के पास एक सुनसान रास्ते पर ले गई, जिसे उसने हत्या के लिए चुना था।जांच के अनुसार, सोनम ने राजा को वेइसाडोंग फॉल्स के पास ले जाकर उसकी हत्या करवाई और शव को एक गहरी खाई में फेंक दिया। 2 जून 2025 को राजा का शव खाई में मिला।पुलिस का दावा है कि सोनम ने अपने प्रेमी राज कुशवाह और तीन अन्य लोगों (विशाल सिंह चौहान, आकाश राजपूत, और आनंद कुर्मी) के साथ मिलकर इस हत्या को अंजाम दिया।मकसद:प्रारंभिक जांच में हत्या का मकसद सोनम का राज कुशवाह के साथ अवैध संबंध बताया गया है।कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि सोनम ने राजा की हत्या के लिए 20 लाख रुपये का प्रलोभन देकर सुपारी किलर हायर किए।

 सोनम ने राजा को तंत्र-मंत्र और मंगल दोष के बहाने कामाख्या मंदिर ले जाकर हत्या की योजना को अंजाम दिया।पुलिस जांच और गिरफ्तारी:मेघालय पुलिस ने इस मामले की जांच के लिए "ऑपरेशन हनीमून" शुरू किया।सोनम ने 9 जून 2025 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अन्य तीन आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया।सभी पांच आरोपियों को शिलांग कोर्ट ने 8 दिन की पुलिस रिमांड में भेजा।पुलिस ने सोनम के मंगलसूत्र और अंगूठी से महत्वपूर्ण सुराग प्राप्त किए, जो जांच में महत्वपूर्ण साबित हुए।सोनम की व्हाट्सएप चैट हिस्ट्री को रिकवर करने की कोशिश की जा रही है, जो इस मामले को सुलझाने में महत्वपूर्ण हो सकती है.

यह मामला सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से ट्रेंड कर रहा है, जिसमें "सोनम बेवफा है" जैसे हैशटैग वायरल हुए।बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने भी इस मामले पर टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने शादी को लेकर डर और सामाजिक चिंता व्यक्त की।इस कांड ने शादी से पहले पार्टनर की पृष्ठभूमि जांच कराने की मांग को बढ़ा दिया है।सोनम के भाई गोविंद ने राजा के परिवार से मुलाकात की और रोते हुए कहा कि अगर उनकी बहन दोषी है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए।सोनम के पड़ोसियों ने भी हैरानी जताई, क्योंकि उन्हें सोनम एक धार्मिक और सामाजिक रूप से सक्रिय लड़की के रूप में दिखती थी।विवाद और अन्य दावे:सोनम के पिता ने अपनी बेटी को निर्दोष बताया और मेघालय पुलिस पर उसे फंसाने का आरोप लगाया, साथ ही सीबीआई जांच की मांग की।कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के अपराधों में फिल्मों, टीवी, और सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है, जो महिलाओं को अपराध की ओर ले जा सकता है।

दूसरी कहानी भी इंदौर की ही है. उसी इंदौर की जो देवी अहिल्या का इंदौर है.इंदौर के बाणगंगा थाना क्षेत्र में दो युवकों पर दो युवतियों के साथ बलात्कार और धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाने का मामला दर्ज किया  है. दोनों आरोपियों ने कांग्रेस पार्षद अनवर कादरी का नाम लिया, जिस पर उन्हें लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने और निकाह के लिए पैसों का लालच देने का आरोप है।

पुलिस की मानें तो आरोपी साहिल शेख और अल्ताफ ने सोशल मीडिया पर फर्जी हिंदू नामों से आईडी बनाकर युवतियों से संपर्क किया था। मोबाइल जांच में यह स्पष्ट हुआ कि वे 'अर्जुन' और 'राज' जैसे नामों का इस्तेमाल कर लड़कियों से दोस्ती करते और फिर उन्हें बहलाकर मुलाकात के लिए बुलाते थे। इसके बाद शादी और धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता था।

पुलिस को मिले वीडियो साक्ष्यों और आरोपियों के बयान के आधार पर पार्षद अनवर कादरी का नाम एफआईआर में जोड़ा गया है। बताया गया है कि उसने युवकों को एक लड़की को फंसाने के लिए एक लाख रुपए और निकाह कराने पर दो लाख रुपए देने की बात कही थी। पुलिस जल्द ही अनवर को हिरासत में लेकर पूछताछ करेगी।

लव के नाम पर जब गोरखधंधे होते हैं तो हिंदू संगठनों की भी बन आती है.हिंदू संगठनों ने आरोप लगाया कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जिसके तहत हिंदू लड़कियों को सोशल मीडिया के ज़रिए निशाना बनाया जा रहा था। हकीकत जो भी हो लेकिन तथ्य ये है कि अब कोई न सोनम पर भरोसा करेगा और न अपने पार्षद पर. सब लव को औजार बनाकर उसे बदनाम कर रहे हैं. वरना सोनम से पहले जब लव जिहाद का जिक्र होता था तो शीरी-फरहाद, हीर-रांझा, और सोनी-महवाल का नाम श्रद्धा से लिया जाता था. सावधान रहिए कि ये लव जानलेवा साबित न हो जाए.

@राकेश अचल

रविवार, 15 जून 2025

पिता का स्मरण करते हुए बेटे से बतरस मै भी युद्ध विराम कर रहा हूँ बेटा

 बेहद मुश्किल काम कर रहा हूं बेटा 

मैं खुद को नीलाम कर रहा हूं बेटा

🌹

देखें कितना दाम लगाती है दुनिया 

सब कुछ इसके नाम कर रहा हूँ बेटा

🌹

मेरी कीमत क्या है, मुझको पता नहीं 

कोशिश रोज तमाम कर रहा हूँ बेटा

🌹

दाम लगाने वाले ढेरों हैं फिर भी 

मोल भाव निशियाम कर रहा हूं बेटा

🌹

दुनिया भर के कर्ज पटाना हैं मुझको

गुणा भाग अविराम कर रहा हूँ बेटा

🌹

मेरे बाद न कुर्की हो मेरे घर की 

मै भी युद्ध विराम कर रहा हूं बेटा

🌹

@राकेश अचल

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  मै भाजपा का अहसानमंद हूँ, क्योंकि ये दल मुझे रोजाना लिखने के लिए नये शब्द और मुद्दे मुहैया कराने में घणीं मदद करती है. जून के आखरी दिन पता...