शुक्रवार, 27 जून 2025

अब बोलिए जस्टिस गवई के खिलाफ शाखामृगो !

भारत के संविधान को लेकर 25  जून को देश में गजब के नाटक हुए. भाजपा ने संविधान हत्यादिवस मनाया तो कांग्रेस ने संविधान बचाओ दिवस. लेकिन कोई ये तय नहीं कर पाया कि संविधान सर्वोपरि है या संसद? लेकिन भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि देश में संविधान सर्वोच्च है। संसद संविधान को संशोधित कर सकता है, लेकिन उसके मूल में कोई बदलाव नहीं ला सकता है.मुमकिन है कि अब निशिकांत दुबे जैसे लोग जस्टिस गवई पर उसी तरह हमले कर उठें जैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना पर किए गए थे.

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई निडर व्यक्ति हैं. वे सिर्फ कानून से डरते हैं. कोई बडे से बडा नेता उनसे गणपति वंदना शायद नहीं करा सकता, जैसे कि पूर्व के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वाय वी चंद्रचूड से करा ली गई थी.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि भारत का संविधान  सबसे ऊपर है। हमारे लोकतंत्र के तीनों अंग न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका संविधान के अधीन काम करते हैं। सीजेआई गवई ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि संसद  सर्वोच्च है, लेकिन मेरी राय में संविधान सर्वोपरि है. देश की मौजूदा राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और निशिकांत दुबे जैसे बहुत से लोग संसद को ही सर्वोच्च मानते हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय की  बार - बार अवमानना कर चुके हैं.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई ने अमरावती ने कहा कि संसद के पास संविधान संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है। उन्होंने कहा कि एक जज को हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा एक कर्तव्य है। हम नागरिकों के अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों के संरक्षक हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास केवल शक्ति नहीं है, हम पर एक कर्तव्य भी सौंपा गया है। उन्होंने कहा कि किसी भी जज को यह नहीं सोचना चाहिए कि लोग उनके फैसलों को लेकर लोगों की राय क्या होगी। हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोग क्या कहेंगे, यह हमारी फैसले लेने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन सकता है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैंने हमेशा अपने निर्णयों और काम को बोलने दिया है। मैं हमेशा हमारे संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के साथ खड़ा रहा। बुलडोजर न्याय के खिलाफ अपने फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आश्रय का अधिकार सर्वोच्च है।जस्टिस गवई के पास तमाम गुत्थियों को सुलझाने, संवेदनशील मामलों में फैसले सुनाने के लिए कुल तीन महीने बचे हैं. वे 23नवंबर 2025 को सेवानिवृत होंगे. इससे पहले वे क्या कुछ नया कर सकते हैं, इसके संकेत मिलने शुरू हो गए हैं.वक्फ बोर्ड कानून पर अभी जस्टिस गवई ने फैसला नहीं सुनाया है. ऐसे और भी अनेक मामले अभी भी लंवित हैं जिनके ऊपर देश की भावी राजनीति टिकी है.

आपको बता दूं कि जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ। साल 1985 में उन्होंने अपना कानूनी करियर शुरू किया। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की। इससे पहले उन्होंने पूर्व एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट के न्यायाधीश राजा एस भोंसले के साथ काम किया। गवई ने 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की। अगस्त 1992 से 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के रूप में नियुक्त हुए।14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट हुए। 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट के परमानेंट जज बने। 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जस्टिस बने। 14 मई को शपथ लेकर देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनाए गए.अब फैसला 56'और 52वें मुख्य न्यायाधीश के बीच है.

@  राकेश अचल

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