अनुच्छेद 370 पर आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा

 

भारतीय राजनीति में जड़ता टूटने का नाम ही नहीं ले रही ।  सभी प्रमुख दलों  का सुर एक जैसा है ,यानि ' मेरा टेसू यहीं अड़ा' । बात महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा चुनावों की नहीं बल्कि उस जम्मू-कश्मीर विधानसभा की है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 370  की वापसी के लिए रखे गए प्रस्ताव पर  मुंहवाद ही नहीं हुआ बल्कि लात-घूंसे  भी चले। जम्मू-काश्मीर से मीलों दूर महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने समवेत स्वर में कहा कि -मोदी के रहते इस प्रावधान की वापसी कभी नहीं होगी। हालाँकि  महाराष्ट्र  और  झारखण्ड  के विधानसभा चुनावों का अनुच्छेद 370  से कोई लेना-देना नहीं है

अनुच्छेद 370  को हटाने कि पैरवी करते हुए प्रधानमंत्री  जी और उनका ' कटक '[ फ़ौज ] एक ही तर्क दे रहा है कि जम्मू-काश्मीर में बाबा साहब अम्बेडकर का संविधान लागू है और वो ही रहेगा।  अब सवाल ये है कि क्या संविधान का अनुच्छेद 370  का प्रावधान  अमेरिका के संविधान से लिया गया था ?  ये  प्रवधान सौ फीसदी उसी संविधान का हिस्सा था जो बाबा साहब अम्बेडकर कि अगुवाई में रचा गया था।  हमारा संविधान लचीला है ,उसे देश-काल के हिसाब से बदला जाता रहा है।  कांग्रेस के समय भी और भाजपा के समय भी ,इसलिए कोई ये दम्भ और दावा कैसे कर सकता है कि जम्मू-काश्मीर को दोबारा अनुच्छेद 370  का संरक्षण नहीं मिल पायेगा।

आज का जम्मू -काश्मीर ,कल के जम्मू काश्मीर से एकदम अलग है ।  आज के कश्मीर के पास राज्य का वैभव नहीं है । ये वैभव उसे आजादी के बाद बाबा साहब के संविधान से ही हासिल हुआ था। आज  वो खंड-खंड हो चुका है ।  केंद्र के अधीन क्षेत्र भर है आज का जम्मू-काश्मीर। उसे उसका राज्य का दर्जा भी वापस  चाहिए और संविधान के अनुच्छेद 370  का संरक्षण भी।  अब ये कब और कैसे होगा ? होगा भी या नहीं होगा ? ये कहना कठिन है। भाजपा ने जम्मू-काश्मीर विधानसभा में और देश के दूसरे हिस्सों में जिस तरह से अनुच्छेद 370  को लेकर प्रतिक्रिया दी है उसे देखकर ये तो तय है कि जम्मू-काश्मीर की जनता के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा कि सरकार ने वादा खिलाफी की है।  जम्मू-काश्मीर के लोगों को इस सरकार के रहते न राज्य का वैभव वापस मिलेगा और न अनुच्छेद 370  का छाता।

संविधान के अनुच्छेद 370  को लेकर माननीय   प्रधानमंत्री मोदी जी और  उनके हनुमान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बोलें तो समझ में भी आता है, लेकिन जब बाबा योगी आदित्यनाथ बोलते हैं तो हंसी आती है।  वे आजकल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा का नया ' माउथपीस ' बने हुए है।  वे ' बटोगे तो कटोगे ' का नारा देने के बाद अब कहते फिर रहे हैं कि देश में अब कांग्रेस का हाल भी संविधान के अनुच्छेद 370  जैसा होगा,यानि कांग्रेस भविष्य में कभी केंद्र कि सत्ता में नहीं लौटेगी।  योगी बाबा के नारे को लेकर भाजपा गठबंधन में फूटे विरोध के स्वर देखते ही प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस नारे को नया मुखौटा लगाने की चतुराई दिखाई है ।  उनका नया नारा है कि -' एक रहोगे तो सेफ रहोगे ' ये हिंदी और अंग्रेजी का खिचड़ी नारा है ।  इस नारे से न मराठी मानुष प्रभावित होने वाला है और न झारखण्ड का आदिवासी समाज।

एक सामान्य पत्रकार होने के नाते मै माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी कि ' वाडी लेंग्वेज ' देखकर ये बात दावे के साथ कह  सकता हूँ कि दस साल केंद्र की सत्ता में रहने के बाद भी माननीय मोदी जी के स्वभाव में कोई तब्दीली नहीं आयी है ।  वे नारा अवश्य ' सबका साथ ,सबका विकास'  का लगा रहे हैं लेकिन हकीकत ये है कि वे इस देश के अल्पसंख्यकों को न  ' एक ' रहने देंगे और न  ' सेफ '।  उन्हें बहुसंख्यक हिन्दुओं को ' एक ' रखने और ' सेफ ' रखने की सनक  सवार  है। ये सनक भी है और इसे ुका  दृढ संकल्प भी कहा जा सकता है।  आरएसएस का एजेंडा भी कहा जा सकता है।  इसे आप जो चाहे सो कह सकते हैं। सम्भवत:वे  राजनीति में अवतरित ही इसी के लिए हुए हैं

मुझे अनुच्छेद 370  वापस लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है । मेरी चिंता जम्मू-काश्मीर कि जनता के साथ हो रहे दुराव को लेकर है ।  इस समय देश में लोकतंत्र के जितने भी स्तम्भ हैं उनमें से अधिकांश माननीय मोदी जी के सुर में सुर मिला रहे हैं या उनके प्रत्यक्ष और परोक्ष इशारों पर नर्तन कर रहे हैं। किसी एक विश्व विद्यालय के अलप संख्यक या बहुसंख्यक दर्जे का सवाल नहीं है, सवाल ये है कि आने वाले दिनों में क्या अल्पसंख्यकों को इतना दबाया जाएगा कि वे या तो बहुसंख्यक समाज के दास बन जाएँ या फिर देश छोड़कर भाग जाएँ,लेकिन ये दोनों ही सपने पूरे होने वाले नहीं है ।

अगर आप कान लगाकर सुनें तो आपको मोदी जी के सुर में वही तारत्व सुनाई देगा जो इजराइल के प्रधान नेतन  याहू के या रूस के राष्ट्रपति पुतिन  के या अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सुरों में शामिल है।  एक अलग तरह का राष्ट्रवाद दुनिया के तमाम देशों में ठाठें मार रहा है। ऐसा दुनिया में पहले भी हुआ है ,आज भी हो रहा है  और शायद कल भी होगा ,लेकिन इस राष्ट्रवाद की  उम्र बहुत छोटी होती है। दुनिया में वही राष्ट्रवाद कामयाब है जहां सचमुच सभी  जातियों ,धर्मों और वर्णों के लोग मिलजुल कर रहते हैं।  भारत जिस बीमारी से 1947  में बचकर निकल गया था आज वही  बीमारी तेजी से फ़ैल रही है। बांटने और काटने की बात आजादी के पहले सुनाई दी  थी और आज आजादी के 77  साल बाद एक बार फिर से सुनाई दे रही है।

इस देश कि किस्मत में क्या लिखा है ये कहना बहुत कठिन है ।  उस देश ने बहुत से बुरे दिन देखे है।  1947  से पहले भी और 2014  के बाद भी। जबकि 2014  में नारा ' अच्छे दिन आएंगे '  का दिया गया था। नारा केवल नारा ही साबित हुआ। नारा अमल में नहीं आ पाया।  इसके लिए देश कि जनता जिम्मेदार है या नेता ये कोई अदालत तय नहीं कर सकती ।  हमारे पास तो अदालतें आजकल आधे-अधूरे फैसले देने के लिए लोकप्रिय है, फैसले टालने के लिए चर्चित है।  नेताओं के साथ आरतियां उतरने के लिए सुर्ख़ियों में है। अब जो होगा सो 23  नबंवर के बाद देखा  जाएगा ,जब विधानसभा चुनावों /उप चुनावों के परिणाम सामने आएंगे ।  देखा जाएगा 25  नबम्वर को जब देश के संसद एक बार फिर बैठेगी।

अनुच्छेद 370 को लेकर दोबारा से शुरू हुई यलगार थमने वाली नहीं है।  थम भी नहीं सकती,क्योंकि दोनों ही पक्ष झुकने को राजी नहीं है। याद रहे की अनुच्छेद 370  व्यवहार में तो हटाया जा चुका है किन्तु जम्मू-कश्मीर की जनता के दिलों से इसे हटाना आसान काम नहीं है।  यदि होता तो विधानसभा चुनाव के बाद्घाटी में नेशनल कांफ्रेंस या इंडया गठबंधन की नहीं भाजपा गठबंधन एनडीए की सरकार होती। खंडित सूबे की जनता ने महाप्रभु मोदी का सपना खंडित कर एक और अपराध कर दिया है।

@राकेश अचल  

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