गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

उठाइये कदम ,हम सब एक साथ हैं

 

पहलगाम नृशंस हत्याकांड के बाद भारत सरकार को जो जरूरी कदम उठाने हैं ,वो उठाये,इस मुद्दे पर पूरा देश सरकार के साथ है। लेकिन शर्त ये है कि सरकार इस मुद्दे पर कार्राई से पहले ये भी गारंटी दे की देश में फिलहाल कोई ध्रुवीकरण नहीं किया जाएगा। इस हत्याकांड की आड़ में फिर से हिन्दू-मुसलमान नहीं किया जाएगा। क्योंकि देश का असली नुक्सान इसी ध्रुवीकरण की वजह से हो रहा है। 

पहलगाम में 28 लोगों की हत्या से पूरा देश सिहिर गया है।  इस हत्याकांड के लिए जब हमने और दूसरों ने केंद्र सरकार की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया तो बहुत से लोग [ भक्तगण ] आहत हो गए। राशन-पानी लेकर पिल पड़े। लेकिन मुझे उनके ऊपर केवल दया आयी,क्योंकि वे नहीं जानते की वे क्या कह रहे हैं या क्या कर रहे हैं ? भटकगणों से मेरा सीधा सा सवाल है की इस हादसे के लिए सत्ता प्रतिष्ठान को दोषी न ठहराया जाये तो क्या विपक्ष को दोषी ठहराया जाये ?डोनाल्ड ट्रम्प,पुतिन या  जिनपिंग को दोषी ठहराया जाये ?ऐसा नहीं होता। दोषी हमेशा सत्ता प्रतिष्ठान होता है क्योंकि उसके पास समस्त शक्तियां होतीं हैं। 

बहरहाल हम स्वागत करते हैं की माननीय प्रधानमंत्री अपनी सऊदी अरब की यात्रा को बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौटे ।  उन्होंने इस हत्याकांड के बाद तात्कालिक रूप से जो मुमकिन हो सकता था वो किया भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) की बैठक  में कई अहम फ़ैसले  भी लिए गए, जिसमें पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को निलंबित करने . इसके साथ ही अटारी बॉर्डर को भी बंद करने का फ़ैसला किया गया है।  आपको याद होगा की भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 के सिंधु जल समझौता किया था। इसे   तुरंत प्रभाव से निलंबित रखने का फ़ैसला किया है।  ये फ़ैसला तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान विश्वसनीय ढंग से सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं कर देता। 

सिंधु समझौते बारे में आज के पाठक शायद न जानते हों इसलिए बता दूँ की सिंधु जल  समझौते के तहत  ब्यास, रावी और सतलुज नदियों का नियंत्रण भारत को, तथा  सिंधु, चिनाब और झेलमका नियंत्रण पाकिस्तान के पास है । समझौते के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी ,क्योंकि इन  नदियों का उद्गम  भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।

पहलगाम हत्याकांड के फौरन बाद भारत ने अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट को भी तुरंत प्रभाव से बंद करने का फ़ैसला किया है. सरकार की ओर से कहा गया है कि जो लोग मान्य दस्तावेजों के आधार पर इधर आए हैं वो इस रूट से 1 मई 2025 से पहले वापस जा सकते हैं। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि अब पाकिस्तानी नागरिक सार्क वीजा छूट स्कीम (एसवीईएस) के तहत जारी वीजा के आधार पर भारत की यात्रा नहीं कर पाएंगे. एसवीईएस के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को पूर्व में जारी किए वीजा रद्द माने जाएंगे. एसवीईएस के तहत जो भी पाकिस्तानी नागरिक भारत में हैं उन्हें 48 घंटों में भारत छोड़ना होगा। 

एक अन्य फैसले के बाद नई दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग के रक्षा/सैन्य, नौसेना और वायु सेना सलाहकारों को अवांछित (पर्सोना नॉ ग्रेटा) व्यक्ति घोषित कर  दिया गया है।  उन्हें भारत छोड़ने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया है।  भारत इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग के रक्षा/सैन्य, नौसेना और वायु सेना सलाहकारों को भी वापस बुला रहा है. दोनों उच्चायोग में ये पद खत्म माने जाएंगे। ये सभी कूटनीति और राजनयिक कदम हैं। असली कार्रवाई तो नृशंस हत्यारों का खात्मा है। ये खात्मा फुटकर मुठभेड़ों से मुमकिन नहीं है। इसके लिए क्या किया जाना चाहिए ये हम जैसे लोग नहीं बता सकते ।  ये तय करना सेना और सरकार का काम है। हमारे यहां कहावत है की शत्रुता और उधारी कभी बकाया नहीं रहना चाहिए। हिसाब बराबर होना ही एकमात्र विकल्प है। 

मेरे हिसाब से और बेहतर होता की सरकार इस हत्याकांड के बाद राजनीति से ऊपर उठकर आनन-फानन में एक सर्वदलीय बैठक भी बुला लेते ।  सभी दलों को विश्वास में लेकर कोई फैसला किया जाता तो और बेहतर होता। क्योंकि ये लड़ाई हिन्दू-मुसलमान की या भाजपा -कांग्रेस की नहीं है। पूरे देश की है,देश की सम्प्रभुता  और एकता पर हमले के खिलाफ लड़ने की है। इसे सरकार अकेले नहीं लड़ सकती। पूरे देश को ये लड़ाई लड़ना होगी। मैं होता तो देश से अपील करता कि देश कुछ समय के लिए तमाम आंदोलन,धरना,प्रदर्शन बंद कर भारत सरकार के साथ खड़ा हो। अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है।  सरकार को विपक्ष कि साथ पाकिस्तान जैसा व्यवहार  न करते हुए  सहयोगियों जैसा व्यवहार करना चाहिए। जब हालात मामूल पर आ जाएँ तब विपक्ष अपना काम करे और सरकार अपना काम करें। लेकिन सरकार ऐसा कर नहीं रही ।  जम्मू-कश्मीर में हुई उच्च स्तरीय बैठक  से सूबे के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बाहर कर दिया गया। ये राज्य की जनता का अपमान है।उमर कोई पाकिस्तानी नागरिक नहीं है।  उनके पास आतंकवादियों से दो-दो हाथ करने का पुराना तजुर्बा  है।

आज मैं न प्रधानमंत्री की आलोचना करना चाहता हूं और न गृहमंत्री जी की । मेरा तो एक ही आग्रह है इस देश के प्रधानमंत्री किसी दिन रात  8  बजे देश से मुकझातिब हों। उन्हें   इस हादसे   के बाद देश से मुंह  छिपाने की जरूरत नहीं है। उनकी सरकार के अतीत के फैसलसों पर बाद में बात हो जाएगी। अभी तो पाकिस्तान से और आतंकवादियों  से निबटना है और मिलजुलकर निबटना है। 

@ राकेश अचल

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