गुरुवार, 15 मई 2025

खेल के नये सन्यासी चीकू उर्फ विराट कोहली

 

हमारे चीकू और आपके चहेते क्रिकेटर विराट कोहली ने महज 36 साल की उम्र में क्रिकेट से सन्यास ले लिया. हालांकि ये उम्र सन्यास की थी नहीं, लेकिन एक समझदार खिलाडी वही है जो सही समय पर सही फैसला कर ले. विराट ने सन्यास का फैसला कब कर लिया इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी.

दिल्ली में पैदा हुए विराट कोहली ने 2006 में अपनी पहली श्रेणी क्रिकेट कैरियर की शुरुआत  की थी. वे छात्र जीवन से ही क्रिकेट की पिच पर थे. उन्होंने 2008, मलेशिया में अंडर -19 विश्व कप में जीत हासिल की, और कुछ महीने बाद, 19 साल की उम्र में श्रीलंका के खिलाफ भारत के लिए अपना ओ॰डी॰आई॰ पदार्पण किया। शुरुआत में भारतीय टीम में रिजर्व बल्लेबाज के रूप में खेलने के बाद, उन्होंने जल्द ही ओ॰डी॰आई॰ के मध्य क्रम में नियमित रूप से अपने आप को स्थापित किया और टीम का हिस्सा रहे और 2011 क्रिकेट विश्व कप जीता। 

सब जानते हैं कि विराट ने 2011 में अपना टेस्ट मैच कैरियर शुरू किया था और 2013 तक ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट शतक के साथ "ओ॰डी॰आई॰ विशेषज्ञ" के टैग को झुका दिया। 2013 में पहली बार ओ॰डी॰आई॰ बल्लेबाजों के लिए आई॰सी॰सी॰ रैंकिंग में नंबर एक स्थान पर पहुँचने के बाद, कोहली को ट्वेंटी -20 प्रारूप में भी सफलता मिली, आई॰सी॰सी॰ विश्व ट्वेंटी 20 (2014 और 2016 में) में मैन ऑफ द टूर्नामेंट दो बार वह जीते । 2014 में, वह आई॰सी॰सी॰ रैंकिंग में शीर्ष रैंकिंग वाले टी 20 आई बल्लेबाज बने, जिसने 2017 तक तीन लगातार वर्षों की स्थिति संभाली। अक्टूबर 2017 के बाद से, वह दुनिया में शीर्ष रैंकिंग ओ॰डी॰आई॰ बल्लेबाज भी रहे हैं। एक ऐसा समय भी आया जब 13 दिसंबर 2016 को वह आई॰सी॰सी॰ रैंकिंग में तीनों फॉर्मैट के प्रथम स्थान पर थे।

कोहली को 2012 में ओ॰डी॰आई॰ टीम के उप-कप्तान नियुक्त किया गया था और 2014 में महेंद्र सिंह धोनी की टेस्ट सेवानिवृत्ति के बाद टेस्ट कप्तानी सौंपी गई थी।

मै यहां आपको कोहली की उपलब्धियां गिनाने नहीं बैठा. वे तो आप गोर्क या गूगल से पूछ सकते हैं. मै तो आपको ये बताना चाहता हूं कि सन्यास लेने में खिलाडी जितने मुस्तैद होते हैं उतना और कोई नहीं होता.नेता, वकील, लेखक मरते दम तक सन्यास के बारे में नहीं सोचते, निर्णय करना तो दूर की बात है.

कोहली क्रिकेट में जितना ऊपर जा सकते थे, वहाँ तक वे पहुंच चुके थे. इसलिए सन्यास लेना उनका सही और विवेकपूर्ण निर्णय है. उन्होने अपने पूर्ववर्ती क्रिकेटरों की तरह सन्यास लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया. सन्यास लेकर वे संतों की शरण में पहुचे. इसका आशय ये नहीं है कि विराट भगवा धारण करने वाले है. वैसे इस समय देश में हर कोई भगवा धारण कर सन्यासी बनना चाहता है सिवाय नेताओं के. जैसा कि मैने पहले कहा कि नेता किसी भी दल का हो राजनीति से सन्यास नहीं लेता. उसे धकियाना पडता है.

मेरी सलाह है कि नेताओं को भी कामराज योजना पुनर्जीवित कर लेना चाहिए. आपको याद होगा कि अपने जमाने में किंग मेकर रहे तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता के कामराज ने  साठ के दशक की शुरुआत में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती जा रही है। उन्होंने सुझाया कि पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए लगाएं। उनकी इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया और लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई तथा एसके पाटिल जैसे नेताओं ने भी सरकारी पद त्याग दिए। यही योजना कामराज प्लान के नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है कि कामराज प्लान की बदौलत वह केंद्र की राजनीति में इतने मजबूत हो गए कि नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही। वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।

भाजपा में अघोषित रुप से के कामराज योजना 2014 में लागू की गई, लेकिन इसकी बदौलत सत्ता में आए लोग अब खुद सन्यासी नहीं बनना चाहते. लोकप्रियता में लगातार गिरावट के बावजूद सत्ता का मोह हमारे नेताओं को सन्यास नहीं लेने देता. सबसे ज्यादा उम्र तक राजनीति और सत्ता में रहने का कीर्तिमान कांग्रेस और वामपंथियों के नाम है. भाजपा तीसरे स्थान पर है.

अब समय है कि हमारे देश और दुनिया के तमाम नेता खिलाडियों से प्रेरणा लें और सही वक्त पर सन्यास लें अन्यथा उन्हे वैसे ही धकियाया जाएगा जैसे हमारे लालकृष्ण आडवाणी को या अमेरिका में जो वाईडन को धकियाया गया. सत्ता लोलुप नेताओं को समझना चाहिए कि आज भी समाज में सन्यासियों का बहुत सम्मान है, वो भी तब जब समाज में आसाराम और राम रहीम जैसे वयभिचारी भी मौजूद हैंं.

@राकेश अचल

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