रविवार, 11 मई 2025

सीज फायर और ट्रंप कार्ड : क्या कहता है ये रिश्ता?

 

भारत-पाकिस्तान के बीच 7-8 मयी की रात से शुरू हुए अघोषित युद्ध के तीन दिन बाद ही 'नाटकीय सीजफायर की खबर आम हिंदुस्तानी के गले नहीं उतर रही, क्योंकि इस युद्ध विराम का तमगा अमेरिका अपने सीने पर लटका रहा है जबकि भारत इसका खंडन कर रहा है.खास बात ये कि इधर युद्ध विराम हुआ और उधर पाकिस्तान की ओर से इसका उल्लंघन भी कर दिया गया.

अधिकांश हिंदुस्तानी जंग के खिलाफ रहते हैं लेकिन पहलगाम हत्याकांड के बाद जब भारत ने पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ आपरेशन सिंदूर के जरिये ऐलान-ऐ-जंग कर ही दिया था तब इसे अंजाम तक ले जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ? पिछले तीन दिन में जंग छिडने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री ने अपनी संसद को पल पल की खबर दी. युद्धविराम के ठीक बाद संसद को बताया कि पाकिस्तान ने किन हालात में सीजफायर किया, लेकिन हमारी संसद और देश इस मामले में पहले दिन से प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री जी का मुंह ताक रही है. जो सूचनाएं मिल रहीं हैं वे मिसरी साहब, सोफिया और व्योमिका के जरिये मिल रहीं हैं.

पाकिस्तान की ओर से युद्ध विराम के प्रस्ताव पर भारत ने यकबयक कैसे भरोसा कर लिया जबकि हमारा पुराना अनुभव कहता है कि पाकिस्तान अपने कौल का पक्का नहीं है. पहले भी पाकिस्तान ने कितनी बार सीजफायर किया और फिर उसका उल्लंघन भी किया. 10 मयी को भी एक तरफ सीजफायर का ऐलान हुआ औऔर दूसरी तरफ उसका उल्लंघन भी. वजह साफ है कि पाकिस्तानी फौज और पाकिस्तानी सरकार में कोई तालमेल ही नहीं है. सरकार कुछ कहती है और पाकिस्तानी फौज कुछ करती रहती है.

आपको याद दिला दूं कि इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध 56दिन चला था, फिर इस बार ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान ने तीसरे दिन ही घुटने टेक दिए और भारत ने इसे मान भी लिया.जाहिर है कि इस नाटकीय युद्ध विराम में कुछ न कुछ पेंच जरूर है, अन्यथा अमेरिका इसका श्रेय लूटने वाला कौन है? भारत सरकार  की ओर से हालांकि युद्धविराम में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका से इंकार किया है किंतु अमेरिका के दावे का प्रतिवाद अमेरिका के सामने नहीं किया.

ये मानने में कोई दिक्कत नहीं है कि पाकिस्तान के उपर युद्धविराम के लिए अमेरिका का दबाब होगा लेकिन ये कैसे मान लिया जाए कि भारत भी अमेरिका के दबाब में युद्धविराम पर राजी हो गया. युद्धविराम की जरुरत आखिर किसे थी, क्या आतंकियों के सभी ठिकाने भारतीय सेना ने नेस्तनाबूत कर दिए थे? क्या सभी आतंकी ठिकानों पर सिंदूर मल दिया गया था? शायद नहीं. ऐसे सवाल न कर्नल सोफिया से किए जा सकते हैं न विंग कमांडर व्योमिका सिंह से. विदेश सचिव मिसरी भी ऐसे सवालों का उत्तर नहीं दे सकते. इसका जबाब केवल और केवल प्रधानमंत्री या रक्षामंत्री दे सकते हैं जो दे नहीं रहे हैं.

हम युद्ध विराम के पक्ष में हैं, युद्धविराम का स्वागत भी करते हैं लेकिन इस युद्ध विराम की हकीकत भी जानना चाहते हैं क्योंकि जन भावना युद्धविराम के पक्ष में नहीं है. लोग इस बार निर्णायक युद्ध चाहते थे. पूरा देश सरकार और सेना के साथ साना-बसाना खडा है. यदि इस युद्धविराम के पीछे किसी तीसरे पक्ष का दबाब या कोई राजनीति है तो ठीक नहीं. इस युद्धविराम में कुछ तो गडबड है, अन्यथा हम और हमारी सरकार जानती है कि -

नवन नीच की अति दुखदायी

जिम धनु, अंकुश, उरग, बिलाई 

पाकिस्तान की फितरत धनुष, अंकुश, सांप और बिल्ली जैसी ही है जो पहले पीछे हटते हैं, झुकते हैं और अंतत:वार करते हैं.सवाल ये भी है कि अचानक किया गया ये युद्ध विराम उन निर्दोष भारतीय नागरिकों और जांवाज सैनिकों के बलिदान का अपमान नहीं है? जब भारतीय सेना 1971 में 19  दिन और 1999  में कारगिल युद्ध 56 दिन लड सकी तब ऐसा क्या हुआ कि इस बार युद्धविराम तीन दिन में ही हो गया? भाई जी दाल में कुछ तो काला है या पूरी दाल ही काली है मै कह नहीं सकता. लेकिन एक आम भारतीय के नाते मुझे सवाल करने और संदेह  करने का हक है और ये राष्ट्रप्रेम है न कि देशद्रोह.

हमारी मजबूत और मजबूर सरकार ने पिछले 11साल में जो आचरण किया है, ये संदेह के अंकुर उसी वजह से उमग रहे हैं.नोटबंदी, कालाधन, ऐ वन और ऐ टू को लूट की छूट, संविधान की अनदेखी, विपक्ष का मानमर्दन कोई भूला नहीं है. इस सबके बावजूद देश आतंकवाद के खिलाफ आपरेशन सिंदूर के साथ तनकर खडा रहा. लेकिन अब जब सीजफायर हो ही गया है तब तो देश को हकीकत से रूबरू कराइए महाराज.

@राकेश अचल

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