सावन का महीना शुरू होते ही उत्तर भारत की प्रमुख धार्मिक यात्राओं में एक 'कांवड़ यात्रा' 11 जुलाई से शुरू हो चुकी है. कांवड़ यात्रा की शुरुआत होती ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सियासत भी गरमा गई है. दरअसल, बीते तीन से चार दिनों में कांवड़ यात्रा के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं, जब कांवड़ियों ने यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले होटल-ढाबों पर तोड़फोड़ की. इस दौरान कांवड़ियों ने ढाबा मालिकों पर मुस्लिम व्यवसायियों पर पहचान छिपाकर ढाबा संचालित करने का आरोप लगाया.
कांवड़ यात्रा का इतिहास भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में गहराई से निहित है। यह मुख्य रूप से भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाने वाली एक वार्षिक तीर्थयात्रा है, जो सावन मास (जुलाई-अगस्त) में होती है। इसका इतिहास पौराणिक कथाओं, धार्मिक मान्यताओं और सामाजिक परंपराओं से जुड़ा है।लेकिन कोई एक प्रामाणिक कथा कांवड की नहीं है.
कांवड़ यात्रा की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जोड़ी जाती है। जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उसमें से विष (हलाहल) निकला। भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ कहा गया। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने शिव पर गंगा जल चढ़ाया। माना जाता है कि कांवड़ यात्रा इस घटना का प्रतीक है, जिसमें भक्त गंगा जल लेकर शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं।
कुछ कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने अपने आराध्य शिव की पूजा के लिए गंगा जल लाने की परंपरा शुरू की थी। उन्होंने कांवड़ (एक बांस के डंडे पर दो बर्तनों में जल) के साथ गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाया, जिससे यह परंपरा प्रचलित हुई।वैसे त्रेता युग की कथाओं में श्रवण कुमार द्वारा अपने माता पिता कोयात्रा कांवड यात्रा देश के दूसरे हिस्से में प्रचलित नहीं है.द्वारा तीर्थ यात्रा कराने का जिक्र है.
कांवड़ यात्रा का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में स्पष्ट रूप से नहीं मिलता, लेकिन यह माना जाता है कि यह परंपरा मध्यकाल से प्रचलित है। सावन मास में शिव भक्ति और गंगा जल के महत्व को देखते हुए यह यात्रा धीरे-धीरे लोकप्रिय हुई। कांवड़ यात्रा ने विभिन्न समुदायों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह भक्ति, समर्पण और तप का प्रतीक बन गई, जिसमें सभी वर्गों के लोग हिस्सा लेते हैं।
कांवड यात्रा में भक्त हरिद्वार, गंगोत्री, ऋषिकेश, या अन्य पवित्र स्थानों से गंगा जल लेकर पैदल चलकर प्रमुख शिव मंदिरों जैसे नीलकंठ, काशी विश्वनाथ, या बैद्यनाथ धाम जाते हैं।कांवड बांस से बनाई जाती है. बांस के डंडे के दोनों सिरों पर जल से भरे बर्तन लटकाए जाते हैं। इसे कंधे पर रखकर भक्त यात्रा करते हैं।
कांवड़िए कठोर नियमों का पालन करते हैं, जमीन पर न सोना, शुद्ध भोजन करना और गंगा जल को भूमि पर न रखना शामिल है.
कांवड़ यात्रा उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और बिहार में बड़े पैमाने पर आयोजित होती है। लाखों भक्त इसमें हिस्सा लेते हैं, और यह एक विशाल सामाजिक-धार्मिक आयोजन बन गया है। आधुनिक समय में, कांवड़ यात्रा में ट्रैक्टर, बाइक और अन्य वाहनों का उपयोग भी होने लगा है, हालांकि पारंपरिक पैदल यात्रा अभी भी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।पिछले कुछ वर्षों से कांवड यात्रा एक राजनीतिक आयोजन हो गया है. सरकार कांवडियों पर हैलीकाप्टर से पुष्प वर्षा करने लगी है. इस यात्रा का इस्तेमाल धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए भी होने लगा है.
मजे की बात ये है कि जिस कांवड यात्रा को राजनीतिक इवेंट बना दिया गया है उसमें सत्ताधारी दल का एक भी छोटा, बडा नेता या उनके बच्चे शामिल नहीं होते. यह श्रमसाध्य कार्य केवल समाज के पिछडे, अशिक्षित, आर्थिक रूप से कमजोर तबके के युवा करते है. अब कांवडिये जरा जरा सी बात पर सरकारी संरक्षण में जिस तरह का उपद्रव करते हैं उसे देखकर आशंका होती है कि एक सात्विक परंपरा का सत्यानाश हो रहा है. इस यात्रा को भाजपा ने एक तरह से अपने एजेंडे में शामिल कर लिया है.
यह पहली बार नहीं है जब कांवड़ यात्रा के दौरान इस तरह का विवाद सामने आया है. इससे पहले भी मुस्लिम ढाबा संचालकों पर हिंदू नाम से व्यवसाय करने के आरोप लगाए गए हैं. कुछ मामले साबित भी हुए हैं तो कुछ फर्जी भी निकले. ऐसे में सवाल यह है कि क्या मुस्लिम होकर हिंदू नाम से ढाबा चलाना क्या गैरकानूनी है? और इस मामले में कानून क्या कहता है? भारत संविधान के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह का व्यवसाय करने का अधिकार है. जहां तक होटल या ढाबों की बात है तो इसके लिए खाद विभाग की ओर से लाइसेंस जारी किया जाता है, जिसमें होटल या ढाबा संचालक का नाम लिखा होता है. सभी होटल या ढाबा संचालकों को यह लाइसेंस रखना अनिवार्य होता है, जिससे जरूरत पड़ने पर उसकी जांच की जा सके.
भारतीय कानून के मुताबिक, किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य नाम से व्यवसाय संचालित करना अपराध नहीं है. हालांकि, अगर ऐसा समाज में भ्रम फैलाने या किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए जानबूझकर किया जा रहा है तो इसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. ऐसा करने पर भारतीय न्याय संहिता के तहत होटल या ढाबा संचालकों पर कार्रवाई की जा सकती है.
बीते साल कांवड़ यात्रा शुरू होने से पहले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार की ओर से आदेश जारी किया गया था, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले सभी होटल या ढाबा संचालकों को अपना नाम व होटल पर काम करने वाले कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया गया था. सरकार का कहना था कि यह आदेश इस बात को सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया, जिससे कांवड़ यात्रियों के बीच भ्रम की स्थिति न हो और विवाद से बचा जा सके. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए आदेश पर रोक लगा दी थी कि सरकार किसी होटल या ढाबा संचालकों को नाम प्रदर्शित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है, अगर वे स्वेच्छा से ऐसा करना चाहते हैं तो कर सकते हैं.
@ राकेश अचल
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