बुधवार, 2 जुलाई 2025

पुराने होने की सजा या कोई बडी साजिश

भारत में कहावत है कि साठा सो पाठा, लेकिन दिल्ली समेत देश के तमाम हिस्सों में सरकारें प्रदूषण बढने की आब में 10-15 साल पुराने डीजल और पैट्रोल वाहनों को जबरन सडकों से हटाने पर आमादा है. जबकि पुराने वाहनों से कहीं ज्यादा प्रदूषण दूसरे माध्यमों से फैलाया जा रहा है.

प्रदूषण एक राष्ट्रीय समस्या है लेकिन इसका निदान पुराने वाहनों को सडको से हटाना कदापि नहीं है.दिल्ली में पुराने वाहनों को फ्यूल देने पर लगी रोक मंगलवार से लागू हो गई। दिल्ली के सभी पेट्रोल पंपों पर सुबह से ही ट्रैफिक पुलिस, दिल्ली पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारियों की तैनाती देखी गई। ज्यादातर स्थानों पर पेट्रोल पंपों पर कैमरे लगाने, 10 साल से ज्यादा पुराने डीजल और 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों को ईंधन से मनाही वाले बोर्ड भी लगे नजर आए। पहले दिन कम संख्या में पुराने वाहन पेट्रोल भराने के लिए पहुंचे, जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई। जानें पहले दिन कितने वाहन कैमरे में हुए कैद?

भारत में कुल पंजीकृत डीजल और पेट्रोल वाहनों की सटीक संख्या और उनमें से 15 साल पुराने वाहनों की संख्या के बारे में नवीनतम आधिकारिक आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि यह डेटा विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के परिवहन विभागों द्वारा अलग-अलग रखा जाता है. हालांकि भारत में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021 तक देश में कुल पंजीकृत वाहनों की संख्या लगभग 30 करोड़ थी, जिसमें दोपहिया, चारपहिया, वाणिज्यिक वाहन, और अन्य श्रेणियां शामिल हैं। इनमें डीजल और पेट्रोल वाहनों का एक बड़ा हिस्सा है, दिल्ली जैसे क्षेत्रों में 2025 तक लगभग 62 लाख वाहन "एंड ऑफ लाइफ"  श्रेणी में आते हैं, जिनमें 41 लाख दोपहिया और 18 लाख चारपहिया वाहन शामिल हैं। इनमें से अधिकांश पेट्रोल और डीजल वाहन हैं।

 हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान में भी एंड आफ लाइफ वाहनों की संख्या क्रमशः 27.5 लाख, 12.4 लाख, और 6.1 लाख बताई गई है।15 साल पुराने पेट्रोल और 10 साल पुराने डीजल वाहनों को "एंड ऑफ लाइफ" माना जाता है। 2025 तक, दिल्ली में लगभग 55-62 लाख वाहन इस श्रेणी में आते हैं, जिनमें 66 फीसदी दोपहिया और 54 फीसदी चारपहिया वाहन शामिल हैं।राष्ट्रीय स्तर पर, 15 साल पुराने वाहनों की संख्या का सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अनुमान के आधार पर, देश में कुल पंजीकृत वाहनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (लगभग 15-20 फीसदी है.15 साल से अधिक पुराना हो सकता है। यह अनुमान क्षेत्रीय डेटा और स्क्रैपेज नीति के तहत डी-रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या पर आधारित है।

उदाहरण के लिए अकेले गाजियाबाद में 2.72 लाख वाहन 10-15 साल की आयु सीमा पार कर चुके हैं, और 4.62 लाख वाहन स्क्रैपेज नीति के अंतर्गत आते हैं।राष्ट्रीय वाहन स्क्रैपेज नीति (2021)के तहत, 20 साल पुरानी निजी कारों और 15 साल पुरानी वाणिज्यिक गाड़ियों को डी-रजिस्टर करने का प्रावधान है। दिल्ली-एनसीआर में, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों के अनुसार, 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध है।दिल्ली में, 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों की संख्या लगभग 38 लाख और 10-15 साल पुराने डीजल वाहनों की संख्या 1.5 लाख है।इन नियमों का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना है, और पुराने वाहनों को या तो स्क्रैप करना पड़ता है या उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करना पड़ता है।

परिवहन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, पहले दिन कड़ी निगरानी, ​​कड़ी सुरक्षा और तमाम एजेंसी की कड़ी निगेहबानी के बीच 24 पुराने वाहनों को जब्त किया गया। पहले दिन कुल 98 वाहन कैमरे में कैद हुए। इनमें से 80 को नोटिस जारी किया गया। इनमें से 45 को परिवहन विभाग की ओर से जबकि 34 को दिल्ली पुलिस की ओर से नोटिस जारी किया गया। एक वाहन को एमसीडी ने नोटिस जारी किया।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की ओर से जारी निर्देशों के तहत मंगलवार से समूची दिल्ली के पेट्रोल पंपों को ओवर एज वाहनों को फ्यूल नहीं देने के लिए कहा गया है। पुलिस के अनुसार, सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक अभियान के तहत 24 वाहनों को जब्त किए गए.

विशेष पुलिस आयुक्त (यातायात) अजय चौधरी ने पीटीआई को बताया कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य दिल्ली के पर्यावरण को बेहतर बनाना और प्रदूषण को कम करना है

सवाल ये है कि जिस देश में आम आदमी पूरी जिंदगी में मुश्किल से एक घर और एक कार खरीद पाता है, वहां राष्ट्रीय वाहन स्क्रेप नीति का औचित्य क्या है? ऐसी नीतियाँ संपन्न देशों के लिए तो ठीक हैं लेकिन भारत के लिए नहीं. ऐसी नीतियाँ विश्व बाजार के दबाव में बनाई जाती हैं ताकि वाहन उत्पादको को फायदा पहुंचाया जा सके.

आपको बता दें कि भारत में  2023-24 में, भारत में कुल यात्री वाहनों (पैसेंजर व्हीकल्स) का उत्पादन लगभग 50 लाख यूनिट्स के आसपास रहा, जिसमें कारें, एसयूवी, और अन्य यात्री वाहन शामिल हैं.2025 के लिए, कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन उद्योग की वृद्धि और इलेक्ट्रिक वाहनों  की बढ़ती मांग को देखते हुए, उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है। विशेष रूप से, इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में 2025 में 40 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, जिसमें कुल बिक्री 1,38,606 यूनिट्स तक पहुंचने की उम्मीद है। यह उत्पादन क्षमता में विस्तार और नए मॉडल्स की लॉन्चिंग, जैसे मारुति सुजुकी ई-विटारा, टाटा हैरियर ईवीऔर  एमजी की नई ईवीएस के कारण संभव है।पुराने वाहनों को इन्ही के लिए जबरन हटाया जा रहा है.

मैने 2005 में मारुति -800खरीदी  थी वो भी ऋण लेकर. मेरी कार मुश्किल से 10हजार किमी चली. उससे कोई प्रदूषण नहीं फैलता लेकिन अब उसे सडक पर नहीं ला सकते. मेरे जैसे असंख्य भारतीय हैं जो दूसरा वाहन नहीं खरीद सकते. उनके लिए स्क्रेप नीति जानलेवा है. सरकार को प्रदूषण कम करने के दूसरे उपाय करना चाहिए न कि जबरन पुराने वाहनों को कबाड में बदलना चाहिए.इस विषय में तमाम राजनीतिक दल मौन हैं. कल को सरकार पुराने वाहनों की तरह उम्रदराज लोगों से भी सडक पर न आने की नीति बना सकती है. कहते हैं कि नाच न आवे, आंगन टेढा. सरकार प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखाने तो बंद करा नहीं पाई लेकिन गरीब वाहन चालकों के कान ऐंठ रही है. भारत में ऐसी नीतियों का विरोध होना चाहिए. माननीय अदालत को स्वतः संज्ञान लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बनाई गई राष्ट्रीय स्क्रेप नीति को बदलना चाहिए.

@  राकेश अचल

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