भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पानी पी पीकर भले ही कोसते हों लेकिन संकट की हर घडी में नेहरू ही भाजपा और मोदी की मदद करते हैं. मोदी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए नेहरू की कल करते हुए न सिर्फ तमिलनाडु से प्रत्याशी को चुना बल्कि उसी उप नाम का व्यक्ति चुना जिसका उपनाम राधाकृष्णन है.मोदी जी के राधाकृष्णन में और नेहरू जी के राधाकृष्णन में जमीन -आसमान का अंतर है.
मोदी जी के राधाकृष्णन चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन 68 साल के हैं और महज बीबीए कर पाए. हालांकि उन्होने अपने उद्यम से कोई 70 करोड की पूंजी जमा कर रखी है. मोदीजी के राधाकृष्णन 2024 से महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं वह भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं और कोयंबतूर से दो बार लोकसभा के लिए चुने गए थे।मोदीजी के राधाकृष्णन तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी हैं और उन्हें पार्टी ने केरल भाजपा प्रभारी नियुक्त किया गया था।वह 2016 से 2019 तक अखिल भारतीय कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष थे, जो लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम मंत्रालय (एमएसएमई) के अधीन है।
मोदी जी के राधाकृष्णन लोकसभा के दो बार सदस्य रहे ।1998 के कोयंबतूर बम धमाकों के बाद 1998 और 1999 के आम चुनावों में उन्होंने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की.राधाकृष्णन 1998 में 150,000 से अधिक मतों के अंतर से और 1999 के चुनावों में 55,000 के अंतर से जीते।
मोदीजी के राधाकृष्णन ने तमिलनाडु में भाजपा के लिए जमीन तैयार करने में खूब श्रम किया, लेकिन उन्ही की वजह से भाजपा का डीएमके से गठबंधन भी टूटा.
मोदीजी के राधाकृष्णन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता पर हमला करने वाले दोषियों के खिलाफ निष्क्रियता का विरोध करने के लिए मेट्टुपालयम में गिरफ्तारी दी।वे दक्षिण और तमिलनाडु से भाजपा के सबसे वरिष्ठ और सम्मानित नेताओं में से हैं और 16 साल की उम्र से 1973 से 48 साल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ से सीधे संगठन से जुड़े रहे हैं।
भाजपा ने सीपी राधाकृष्णन को चुनते समय भी लाभ- हानि का गणित लगाया.सीपी राधाकृष्णन हर मामले में फिट बैठते हैं. वे तमिलनाडु के नेता हैं. भाजपा और आरएसएस की विचारधारा से जुड़े हुए हैं.राज्य के शहरी और उच्च जातीय वर्ग में उनकी स्वीकार्यता है.उपराष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर बैठाने से भाजपा तमिल समाज को संदेश देना चाहती है कि दिल्ली की सत्ता में उनका भी हिस्सा है.
भाजपा यहां से एक नेशनल कनेक्ट बनाकर दिखाना चाहती है कि दक्षिण का नेता भी पश्चिमी भारत में शासन संभाल सकता है और अब दिल्ली में नंबर दो पद पर आसीन है.आपको बता दें कि तमिलनाडु की राजनीति में जाति का वजन बहुत अहम है.तमिल राजनीति पर ओबीसी और द्रविड़ जातियां हावी हैं लेकिन ब्राह्मण समाज की हिस्सेदारी कम है, भाजपा को लगता है कि ब्राम्हण ही उसका प्राकृतिक कैडर बेस है, क्योंकि द्रविड़ दलों की एंटी-ब्राह्मण राजनीति ने इस वर्ग को हाशिए पर धकेला. भाजपा को उपराष्ट्रपति पद के लिए सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसा उदभट विद्वान नहीं चाहिए उसे तो वोटों की फिक्र है राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति बनाने से भाजपा ब्राह्मण वोटरों के साथ-साथ उस शहरी, पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग तक पहुंच बनाना चाहती है, जो अभी भी डीएमके या एआईएडीएमके की राजनीति से दूरी रखता है.
पूर्व में भी तमिलनाडु के नेताओं को केंद्र की राजनीति में अहम पद मिले हैं. डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन पहले उपराष्ट्रपति फिर राष्ट्रपति बने.आर. वेंकटरमण राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे. कई नेता मंत्री और स्पीकर रहे.
अब आइए आपको पंडित जवाहरलाल नेहरू के राधाकृष्णन से मिलवाते हैं. नेहरू के राधाकृष्णन 64 वर्ष की उम्र में उपराष्ट्रपति बने थे.डॉ॰ राधाकृष्णन का जन्म तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेन्सी के चित्तूर जिले के तिरूत्तनी ग्राम के एक तेलुगुभाषी ब्राह्मण परिवार में 5 सितम्बर 1888 को हुआ था।
नेहरू के राधाकृष्णन शुद्ध शिक्षाविद और दार्शनिक थे. वे परास्नातक होने के साथ ही पीएचडी उपाधिधारक भी थे. वे 21वर्ष की उम्र में सहायक व्याख्याता बन गये थे.
नेहरू के राधाकृष्णन आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी व्याख्याता रहे. वे कलकत्ता, आंध्र, काशी और दिल्ली विश्वविद्यालयों के चांसलर रहे. संविधान सभा के सदस्य रहे. सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे. 1954 में उन्हे भारतरत्न से अलंकृत किया गया. नेहरू के राधाकृष्णन का जन्मदिन देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.नेहरू के राधाकृष्णन चुनावी राजनीति से सदैव दूर रहे. वे न चुनाव लडे और न किसी दल का चुनाव प्रचार करने गये. वे उच्चकोटि के लेखक भी थे. नेहरू के राधाकृष्णन नेहरू के सामने भी तनकर चल सकते थे लेकिन मोदी के राधाकृष्णन की ये हैसियत नही कि वे मोदी जी के हाथ में हाथ डालकर एक कदम भी चल सकें.
अब भाजपा अपने राधाकृष्णन सीपी को नेहरू के राधाकृष्णन सर्वपल्ली जितना न पढा सकती है और न उदभट विद्वान बना सकती है. तमिलनाडु के ब्राह्मण भी शायद ही मोदीजी के राधाकृष्णन के प्रति उतने श्रद्धानवत हों जितने कि नेहरू के राधाकृष्णन के प्रति हैं. मोदी के राधाकृष्णन तो पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड का भी किसी भी पैमाने पर मुकाबला नहीं कर सकते. बहरहाल सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने साबित कर दिया कि उसके पास बौद्धिक संपदा नगण्य है. उसे हर हाल में, हर पद पर केवल और केवल शाखामृग चाहिए. जिस गद्दी पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन बैठे उसी पर एक कारैबारी राधाकृष्णन को बैठे देखना भारत की विवशता है.
@राकेश अचल
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