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सोमवार, 7 अप्रैल 2025

अयोध्या के राम एक बार फिर निशाने पर

 

अयोध्या के राम एक बार फिर निशाने पर है ।पूरे   45  साल पहले राम नाम को चुनावी बाजार में उतारने वाली भाजपा देश के शेष 10  राज्यों पर सत्तारूढ़ होने के लिए एक बार फिर रामायुध लेकर निकल पड़ी है। इस बार भाजपा का लक्ष्य दक्षिण के साथ पूरब का बंगाल जीतने का भी है। भाजपा ने अपने वानर-भालू इन दोनों ही दिशाओं में तैनात कर दिए हैं। रामनवमी से ये अभियान शुरू हो गया है। 

सत्तारूढ़ होने के लिए राम को साधन और साध्य बनाने वाली भाजपा का दुस्साहस देखिये कि वो एक और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से मोर्चा ले रही है तो दक्षिण में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन से भाषा के मुद्दे पर मोर्चा खोल चुकी है। सबसे पहले बंगाल की बात करते है।  बंगाल में रामनवमी जो कुछ दिखा, वह ममता की धड़कनें बढ़ाने वाला है। भाजपा  नेता अब खुलेआम ‘70  फीसदी  ह‍िन्‍दू राम की सेना’ की बातें करने लगे हैं।  उधर, आरएसएस और विश्व‍ ह‍िन्‍दू पर‍िषद  भी अब सिर्फ बंगाल ही बंगाल का जाप कर रही है है. भाजपा चौतरफा जोर लगाकर बंगाल में सत्ता का खेल बदलने की तैयारी में है।

भाजपा हमेशा से ध्रुवीकरण को जीत   का अमोघ अस्त्र मानती है।  रामनवमी पर भाजपा ने , आरएसएस और वीएचपी के साथ मिलकर  पूरे बंगाल में 2000 से ज्यादा शोभायात्राएं निकालीं।  भाजपा का दावा है कि इस बार एक करोड़ से ज्यादा लोग सड़कों पर उतरे. यह हिंदू ध्रुवीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, आपको ज्ञात ही होगा कि  पश्चिम बंगाल की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी करीब 70  प्रतिशत  है, जबकि मुस्लिम आबादी लगभग 27  प्रतिशत  है। वर्ष  2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा  को 38.15  प्रतिशत  वोट मिले थे और उसने 77 सीटें जीती थीं. वहीं टीएमसी ने 48  फीसदी  वोटों के साथ 215 सीटों पर कब्जा किया था।  वोट शेयर में दोनों पार्टियों के बीच करीब 10 प्रतिशत   का अंतर है। . भाजपा का मानना है कि अगर वह हिंदू वोटरों के अतिरिक्त 5-7 प्रतिशत  को अपने पक्ष में कर ले, तो खेल बदल सकता है,यानि खेला हो सकता है। 

इसी एजेंडे के तहत पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने रविवार को रामनवमी के अवसर पर पूर्वी मेदिनीपुर के सोनचूरा में राम मंदिर की आधारशिला रखी। यह मंदिर नंदीग्राम में बनाया जाएगा। सुवेंदु अधिकारी नंदीग्राम से ही भाजपा विधायक हैं। 2007 में तृणमूल कांग्रेस ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ नंदीग्राम में ही बड़ा आंदोलन किया था।.6 जनवरी 2007 को भूमि अधिग्रहण आंदोलन के दौरान सोनाचुरा गांव में गोली लगने से सात लोगों की जान गई थी। 

आइये अब आपको तमिलनाडु ले चलते है।  रामनवमी को ही तमिलनाडु में प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने रामेश्वरम में नए पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया और 8,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली अन्य विकास योजनाओं का शुभारंभ किया।लेकिन मुख्यमंत्री स्टालिन मोदी जी के इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। आपको बता दें कि  भाजपा और स्टालिन में परिसीमन के मुद्दे पर ठनी हुई  है।तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया को लेकर राज्य के लोगों की आशंकाओं को दूर करना चाहिए।स्टालिन ने  कहा कि मोदी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि संसद में एक प्रस्ताव पारित किया जाए ताकि तमिलनाडु के अधिकारों पर अंकुश नहीं लगे।

प्रधानमंत्री मोदी जी रामेश्वरम (तमिलनाडु)तमिलनाडु के रामेश्वरम में 700 करोड़ की लागत से बने एशिया के पहले वर्टिकल सी ब्रिज का  उद्घाटन करने गए थे,उन्होंने और रामेश्वरम-तांबरम (चेन्नई) नई ट्रेन सेवा को हरी झंडी दिखाई।लेकिन मोदी यहां भी राजनीति करने से बाज नहीं आये ।  उन्होंने  त्रिभाषा फार्मूले से जुड़े विवाद पर तमिलनाडु की स्टालिन सरकार पर तंज कसा और कहा कि केंद्र सरकार के पास चेन्नई से रोज कई चिट्ठियां आती हैं, लेकिन हैरत होती है कि उनपर तमिलनाडु के नेता तमिल में हस्ताक्षर भी नहीं करते। पीएम ने स्टालिन सरकार से आग्रह किया कि तमिलनाडु में भी मेडिकल की पढ़ाई स्थानीय तमिल भाषा में कराने का प्रबंध होना चाहिए, ताकि अंग्रेजी नहीं जानने वाले गरीब बच्चों को भी डाक्टर बनने में सहूलियत हो । मोदी जी ने तमिलनाडु में भी राम नाम का जाप किया और कहा कि कुछ घंटे पहले ही अयोध्या के भव्य मंदिर में सूर्य की किरणों ने श्रीराम को तिलक किया है। उपस्थित जनसमूह से उन्होंने जय श्रीराम के नारे भी लगवाए। मोदी जी जय हिन्द नहीं कहते वे जय श्रीराम कि नारे लगवाते हैं ,क्योंकि वे नहीं मानते की भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। उनकी नजर में भारत हिन्दू राष्ट्र था और हिन्दू राष्ट्र है। 

भाजपा कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि सभी नेता भी आजकल जमुहाई भी लेते हैं तो राम का नाम लेते हुए लेते हैं। भाजपाइयों  ने पढ़ लिया है कि  -

राम-राम कह जे जमुहाई

तिन्ह न पाप-पुंज  समुहाई। 

भाजपा राजसत्ता हासिल कर जन कल्याण करने से पहले देश में राम राज का लेबल लगाकर संघराज  लाना चाहती है। उसकी कोशिश की  जिसे सराहना करना है वो सराहना करे,जिसे विरोध करना है वो विरोध करे। हमारा काम तो सियासत में राम नाम के दुरूपयोग के प्रति आपको आगाह करना है ।  राम हमारे भी आराध्य हैं ,लेकिन सियासत के लिए नहीं। अपने राम को सियासी दलदल से बाहर निकालिये। क्योंकि राम कभी सत्ता के पीछे नहीं भागे जबकि भाजपा की हर कोशिश सत्ता हासिल करने के लिए है। 

@ राकेश अचल

रविवार, 6 अप्रैल 2025

लंका जीतने की और आगे बढ़ती भाजपा


हमने कांग्रेस को बनते नहीं देखा । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को बनते नहीं देखा । जनसंघ भी हमारे धराधाम पर आने से पहले बन गया था ,लेकिन हमने भाजपा को बनते और युवा होते देखा है ।  हम भाजपा की चाल,चरित्र और चेहरे से भी भलीभांति वाकिफ हैं और अब हम भाजपा को राजनीति की लंका जीतने के  लिए लगातार आगे बढ़ते हुए देख रहे हैं। मजे की बात ये है कि भाजपा ही राम है और भाजपा ही रावण। उसका युद्ध अपने आप से है। 

आइये आपको भाजपा की राम-खानी सुनाता हूँ। देश में 1975  में लगे आपातकाल के हटने के बाद एकजुट हुए विपक्ष में यदि जनसंघ की दोहरी सदस्य्ता का मुद्दा जन्म न लेता तो शायद भाजपा का जन्म होता ही नहीं। लेकिन जो होना होता है ,वो होकर रहता है।मेरे जन्म से आठ साल पहले बने जनसंघ का नया अवतार थी भाजपा। भाजपा हालाँकि जनता पार्टी का प्रतिउत्पाद है लेकिन है जनसंघ ही। जनसंघ के संस्थापक    श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे। वे कैसे थे मुझे नहीं पता ,किन्तु मुझे पता है कि   वर्ष 1977  में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनसंघ का उस समय गठित  जनता पार्टी  में  विलय हो गया था ।  आपातकाल हटने कि बाद सन 1977  के आम चुनावों में इसी जनता पार्टी ने कांग्रेस को सत्ताच्युत किया था।  जनसंघ के तेज़ाब ने 1980  में जनतापार्टी को जलाकर भस्म कर दिया।  तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद 1980  में जनता पार्टी विघटित हो गई। 

देश की राजसत्ता में अकेले काबिज होने का सपना देखने वाले पुराने जनसंघियों ने मिलकर 6  अप्रैल 1980  को जनसंघ  के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया ।  इसकी नीव में अटलबिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के अलावा उनकी पीढ़ी के तमाम पुराने जनसंघी थे। भाजपा ने  1984 के आम चुनावों में पहली बार हिस्सा लिय। भाजपा को कुल  दो  सीटें मिलीं। मुमकिन था की भाजपा को कुछ ज्यादा सीटें मिल जातीं किन्तु  1984 में  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण कांग्रेस के पक्ष में जो सहानुभूति की लहर चली उसने सभी राजनीतिक दलों की हवा खराब कर दी थी। 

भाजपा ने सत्ता में आने के लिए पहली बार राम नाम का सहारा लिया और  राम जन्मभूमि आंदोलन को चुनावी मुद्दा बनाया ।  ये मुद्दा भाजपा को फल गया। राम नाम ने भाजपा को संजीवनी दे दी। भाजपा   कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये 1996 में  संसद में सबसे बड़े दल के रूप में नमूदार हुई । भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो 13,लेकिन ये सरकार कुल  दिन चली।आप कह सकते हैं कि  भाजपा की पहली सरकार की भ्रूण हत्या हो गयी। आज की भाषा में भाजपा की प्रथम सत्ता का ' मिसकैरेज' हो गया। भाजपा को बहुत जल्द समझ में आ गया कि  देश की राजसत्ता पर  कब्जा करना उसके अकेले के बूते की बात नहीं है। इसके लिए गठबंधन आवश्यक है। 

देश में 1998 में आम चुनावों के बाद भाजपा ने भानुमति का कुनवा जोड़क्सर जो गठबंधन बनाया उसे  राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) नाम दिया गया। गठबंधन का प्रयोग कामयाब हुआ और एक बार फिर श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में  भाजपा की सरकार बनी जो सिर्फ  एक वर्ष  चली। अगले  आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी।लेकिन पंडित अटल बिहारी बाजपेयी का तिलिस्म बहुत जल्द  टूट भी गया और 2004  के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को पूरे एक दशक तक सत्ता का वनवास भोगना पड़ा । 

भाजपा ने इस एक  दशक तक संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई और 2014  के आम चुनावों में भाजपा ने बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को हटाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना पोस्टर वाय बनाया। देश की जनता को रामराज  का नहीं अच्छे दिनों का नारा दिया। ये नारा असर कर गया और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीतकर सत्ता में वापस आगयी । आगे की रामकहानी आप सब जानते हैं।  भाजपा अपने हिंदुत्व के कार्ड को खेलते हुए आज  भारतीय जनता पार्टी देश के 29 राज्यों में से 19  राज्यों में अकेले या अपने सहयोगियों के साथ सरकार चला रही है। हालाँकि 2025  तक भाजपा की अपनी ताकत संसद में क्षीण हुयी है लेकिन उसके इरादे अभी भी मजबूत हैं। भाजपा अब 2047  तक सत्ता नहीं छोड़ना चाहती। इसके लिए भाजपा कुछभी दांव पर लगाने कि लिए कमर कसे है। 

भाजपा के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री सत्ता की लंका जीतने के लिए भारत के पहले वर्टिकल लिफ्ट समुद्री पुल-नए पंबन रेल पुल का उद्घाटन कर चुके है।  राम ने लंका जीतने के लिए नल-नील द्वारा बनाये पुल का उद्घाटन किया था। इस पुल को पार करने से क्या भाजपा सत्ता की वैतरणी पार करते हुए अपनी कल्पना की सोने की लंका जीत पाएगी या नहीं ये आने वाले दिन बताएँगे,क्योंकि हमारे पुरखे श्री नरेश सक्सेना कहते हैं कि -

'पुल पार करने से

पुल पार होता है

नदी पार नहीं होती

नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना

नदी में धँसे बिना

पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता

नदी में धँसे बिना

पुल पार करने से

पुल पार नहीं होता

सिर्फ़ लोहा-लंगड़ पार होता है

कुछ भी नहीं होता पार

नदी में धँसे बिना

न पुल पार होता है

न नदी पार होती है।

भाजपा ने नरेश सक्सैना  की ये कविता पढ़ी है या नहीं  मुझे नहीं पता किन्तु लगता है कि  अब भाजपा नदी पार करने के फेर में देश को आकंठ साम्प्रदायिकता  में डुबो देना चाहती है। भाजपा के देवतुल्य कार्यकर्ताओं को स्थापना दिवस पर शुभकामनाएं। 

@ राकेश अचल

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

अप्रैल माह 2025 में पडने वाले योग


ये आग कब बुझेगी मी लार्ड ?

आज मी लार्ड का सम्बोधन किसी न्यायाधीश के लिए नहीं बल्कि कल्कि  अवतार उन नेताओं के लिए है जिन्होंने देश में मजहब के नाम पर साम्प्रदायिकता की आग को और हवा दे दी है।  कितनी बिडम्वना है कि इस देश में जहाँ सरकार ईद की नामज छतों पर और सड़कों पर पढ़ने से रोकती है वहीं दूसरी और बंगाल में राम नवमी का जुलूस प्रतिबंधित किया जाता है। जाहिर है कि हमारे मुल्क में न राम राज आया है और न अंग्रेजी तथा मुगल राज समाप्त हुआ है।  हमारे मुल्क में सभी को कुछ भी करने की आजादी है। हम सचमुच में आजाद हिन्द की फ़ौज हैं। 

इधर संसद के दोनों सदनों  में विवादास्पद वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पारित हुआ और उधर कुछ हिन्दू अतिवादी संगठन सम्भल  में जामा मस्जिद में हवन करने जा धमके। ये हौसला इन संगठनों को कहाँ से मिलता है ,ये बताने की जरूरत नहीं है। 

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024  पारित होने के बाद अब जब क़ानून बनेगा तब पता चलेगा कि मुल्क के कितने लाख या करोड़ मुसलमानों का भला होगा,फिलहाल तो राजनीतिक दलों में इसी मसले पर फूट और उत्तरप्रदेश सरकार की तैयारी देखने लायक है। उसने वक्फ सम्पतियों का सर्वे शुरू करा दिया ह।  नए वक्फ बोर्ड क़ानून के खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन शुरू होगये हैं। लेकिन सरकार बेफिक्र है ,क्योंकि उसने जैसा चाहा था वैसा ही हो रहा है। सरकार इस नए कानून के बहाने मुसलमानों की ताकत का आकलन करना चाहती है।ाल इंडिया मुस्लिम परसनल बोर्ड ने राष्ट्रपति जी से तत्काल मुलाक़ात का समय माँगा है। मुस्लिम परसनल ला बोर्ड को पता नहीं क्यों राष्ट्रपति से कोई उम्मीद है ,जबकि सब जानते हैं की हमारे देश में राष्ट्रपति महोदय केवल दही -मिश्री खिलाने के लिए हैं ,न की सरकार की कान-कुच्ची करने के लिए। 

सरकार के फैसले को शिरोधार्य करने के बजाय  मुसलमान सड़क पर उतर गए हैं। देश के कोने-कोने में इस संशोधन विधेयक के खिलाफ मुसलमानों ने आंदोलन करना शुरू कर दिया है। कोलकाता, हैदराबादा, मुंबई समेत देश के अलग-अलग स्थानों पर मुसलमानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। इस बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस बिल के पास होने पर इसे जम्हूरियत के लिए काला अध्याय और कलंक बताया है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि सत्ताधारी लोग ताकत के नशे में मदहोश होकर आगे बढ़ रहे हैं। सरकार ने मु्स्लिमसंगठनों और मुसलमानों की आवाज को नहीं सुना। इसके खिलाफ मुसलमान शांत नहीं बैठेगा और पूरे देश में प्रदर्शन किए जाएंगे।जबाब में दिल्ली के जामिया इलाके में पुलिस ने आज फ्लैग मार्च निकाला। बता दें कि दिल्ली में इस बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने की संभावना के बीच आरपीएफ ने फ्लैग मार्च निकाली और भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है। 

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर सरकार के साथ खड़ी जेडीयू भी अब दो फाड़ होती दिखाई दे रही है ।  जंयन्त चौधरी की रालोद भी मुश्किल में है। मुश्किल में तो पूरा देश है लेकिन इस मुश्किल से सरकार अनजान बनी हुई है। एक तरफ वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक का विरोध और दुसरे तरफ बंगाल में रामनवमी जुलूस पर पाबन्दी से तनाव सरकार के ध्रुवीकरण अभियान के लिए शुभ संकेत दे रहा है। भाजपा और भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार शायद चाहती ही ये है कि  देश में हिन्दूओं और मुसलमानों के बीच एक विभाजक रेखा खिंच जाये। भाजपा और संघ के अभियान का एक अभिन्न हिस्सा बने मध्यप्रदेश के धीरेन्द्र शास्त्री का हौसला तो देखिये की वे अपने गृहक्षेत्र में एक हिन्दू गांव बसने जा रहे हैं और सरकार कुछ नहीं कह रही। क्या हमारा संविधान इस तरह की मूर्खताओं की इजाजत देता है ?

पश्चिम बंगाल के हावड़ा में रामनवमी  पर जुलूस निकालने को लेकर हिंदू संगठनों और पुलिस प्रशासन के बीच ठन गई थी. पुलिस ने इसकी परमिशन नहीं दी तो संगठन कलकत्ता हाई कोर्ट चले गए. अब कोर्ट ने उन्हें रैली निकालने की सशर्त परमिशन दे दी है. कोर्ट ने इजाजत देते हुए कहा कि रामनवमी पर रैली के दौरान जुलूस के आगे-पीछे पुलिस लगी रहेगी. किसी भी तरह के हथियार ले जाने की परमिशन नहीं होगी. दोपहर 12 बजे तक हर हाल में रैली का समापन कर देना है। बंगाल में न्यायपालिका ठीक वैसे ही काम कर रही है जैसा की उसे करना चाहिए। अदालत ने भी हिन्दू संगठनों को उस तरह से नहीं रोका जिस तरह से उत्तर प्रदेश  की सरकार   ने मुसलमानों को सड़क पर नमाज करने से रोका था। आखिर अदालत में भी तो हम और आप जैसे ही लोग हैं मी लार्ड ! अब जिम्मेदारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की है कि वे सौहार्द बिगड़ने न दें। 

देश को साम्प्रदायिकता की आग में झुकने के बाद देश के प्रधानमंत्री निश्चिंत होकर विदेश यात्रा पर है। प्रधानमंत्री जी  थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में हो रहे बिम्स्टेक (बे ऑफ़ बंगाल इनिशिएटिव फ़ॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) के छठे शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद श्रीलंका चले गए। बैंकाक में प्रधानमंत्री जी ने बांग्लादेशके अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस की पहली मुलाक़ात में हिंदुओं की सुरक्षा और शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण का मुद्दा हावी रहा। संसद में पारित उम्मीद से देश के मुस्लमानोनो को भले कोई उम्मीद न हो किन्तु मुझे  उम्मीद है की भारत और बांग्लादेश के बीच का अनबोला तो समाप्त किया ही जा सकता है। 

कुलजमा बात ये है कि हमारा देश एक गहन संक्रमण काल से गुजर रहा है। न अंतर्राष्ट्रीय हालात हमारे अनुकूल हैं और न राष्ट्रीय स्थितियां। आने वाले दिनों में क्या होगा ,कहने की नहीं समझने की जरूरत है। अभी भी वक्त है की सरकार हकीकत समझे और उम्मीद क़ानून को वापस ले ले ठीक उसी तरह जैसे की कृषि कानूनों को वापस लिया गया था ।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

भारत सिंह पर कृपा कीजिये महाराज

आप भारत   सिंह को नहीं  जानते । भारत सिंह कुशवाह ग्वालियर के साँसद हैं। ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं,लेकिन मप्र विधानसभा के सदस्य और मंत्री रह चुके है।  पेशे से किसान हैं और मप्र विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की वजह से राजनीति में अपनी पहचान बना पाए हैं। भारत सिंह कुशवाह की किस्मत देखिये की वे 2023  में विधानसभा का चुनाव हार गए लेकिन 2024  में लोकसभा का चुनाव 70  हजार वोटों से जीत गए ।  भारत सिंह  कुशवाह की तकलीफ ये है कि ग्वालियर के साँसद होते हुए भी उन्हें एक साँसद की तरह न काम करने दिया जा रहा है और न विकास का मसीहा बनने दिया जा रहा। 

आप ये जानकर हैरान होंगे किभारत सिंह कुशवाह के रास्ते में आड़े आ रहे हैं गुना के सांसद केंद्रीय मंत्री  ज्योतिरादित्य सिंधिया। सिंधिया भले ही गुना के साँसद हैं लेकिन वे आधे मध्यप्रदेश को [यानि पुरानी सिंधिया रियासत के भू-भाग को ] अपनी रियासत ही समझते हैं। वे अकेले गुना के लिए नहीं बल्कि भिंड,मुरैना और ग्वालियर  के लिए भी काम करते है।  उन्हें विदिशा,उज्जैन जैसे इलाकों की भी फ़िक्र रहती है। उन्हें लगता है कि वे आज भी पुरानी ग्वालियर रियासत के महाराज हैं, इसलिए उन्हें इस पूरे इलाके की फ़िक्र करना चाहिए। 

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि भारत सिंह कुशवाह के मुकाबले ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक विरासत सौ गुना ज्यादा है ।  भारत सिंह के पुरखे भी शायद सिंधिया रियासत की रियाया रहे होंगे ,किन्तु भारत सिंह तो आजाद भारत के भारत सिंह हैं और स्वयं सांसद भी हैं ठीक उसी तरह जैसे की ज्योतिरादित्य सिंधिया है। भारत सिंह की मुश्किल ये है कि वे हिम्मत कर ग्वालियर के लिए केंद्र से जिन तमाम योजनाओं के लिए भागदौड़ करते हैं उनके स्वीकृत होते ही वे सब योजनाएं सिंधिया अपने खाते में दर्ज करा देते हैं। जाहिर है कि सिंधिया का आभा मंडल है। उनकी दादी ,पिता ,बुआ तक सांसद रहीं हैं ।  वे किसी भी केंद्रीय मंत्री ही क्या प्रधानमंत्री जी से भी आसानी से मिल सकते हैं और किसी भी  योजना को स्वीकृत भी करा सकते हैं ,लेकिन उन्हें भारत सिंह को भी तो कुछ   करने देना चाहिए। 

ग्वालियर का जिला प्रशासन भी भारत सिंह को एक सांसद की तरह महत्व नहीं देता ,खासतौर पर तब ,जब  महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद मैदान में हों। स्थिति ये बन गयी है कि अक्सर भारत सिंह कुशवाह को सरकारी बैठकों में ,कार्यक्रमों में आमंत्रित  ही नहीं किया जाता। अब खुद भारत सिंह उन कार्यक्रमों से कन्नी काटने लगे हैं जिनमें  केंद्रीय  मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मौजूद होते हैं। कायदे से तो सिंधिया को वरिष्ठ होने के नाते भारत सिंह को अपने साथ रखकर उनका रास्ता आसान करना चाहिए था किन्तु वे श्रेय में किसी को भागीदार  नहीं बनाते,बेचारे भारत सिंह कुशवाह की तो  हैसियत ही क्या है ?

आपको बता दें कि सिंधिया ने भारत सिंह से पहले ग्वालियर के साँसद रहे विवेक नारायण शेजवलकर को भी आत्मनिर्भर सांसद नहीं बनने दिया। हालाँकि विवेक नारायण शेजवलकर भारत सिंह के मुकाबले ज्यादा पढ़े लिखे [ इंजीनियर ] साँसद थे ।  उनके पिता भी सांसद रहे। ।  विवेक नारायण शेजवलकर तो महापौर भी रहे ,लेकिन शेजवलकर ने सिंधिया का लिहाज किया ,पर सिंधिया ने शेजवलकर का लिहाज नहीं किया । शेजवलकर से पहले नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर के साँसद थे,लेकिन उनका कद पार्टी में इतना बड़ा था कि सिंधिया तोमर  को अपनी छाया के अधीन नहीं कर पाए। तोमर ने भी सिंधिया को उतने समय ही महाराज माना जितने समय कि दिखाने के लिए जरूरी था। 

अब भारत सिंह कुशवाह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच की बढ़ती खाई का मामला पार्टी हाईकमान के साथ ही आरएसएस तक भी पहुँच चुका है। पर मजा देखिये कि  पार्टी है कमान और संघ परिवार भी भारत सिंह के साथ खड़े होने के लिए राजी नहीं हैं। अब बेचारे भारत सिंह कुशवाह अपनी लड़ाई अकेले कब तक लड़ें ? भारत सिंह कुशवाह के राजीनतिक गुरु विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमार भी खुलकर सिंधिया का विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं। सिंधिया आखिर सिंधिया है।  उन्हें विकास का मसीहा बनने से कौन रोक सकता है ?

भारत सिंह कुशवाह और सिंधिया में तनातनी  नई नहीं है।कुछ समय  पहले भी जीवाजी विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री सिंधिया, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और राज्यपाल मांगूबाई पटेल ने प्रतिमा का अनावरण किया था। इस दौरान सांसद मौजूद नहीं थे। तब भी यह बात निकलकर आई थी कि उन्हें बुलाया ही नहीं गया था। वहीं, रविवार को भी केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने भी जब बजट को लेकर प्रेसवार्ता की तो उसमें भी सिंधिया समर्थक ऊर्जा मंत्री तोमर और अन्य समर्थक तो नजर आए लेकिन जिलाअध्यक्ष तक नजर नहीं आए। 

भारत सिंह कुशवाह ने जब ज्यादा असंतोष जताया तो कुछ समय  के लिए सिंधिया ने ग्वालियर में अपनी सक्रियता कम की किन्तु वे ज्यादा दिन ग्वालियर से दूर नहीं रह पाये । अब वे फिर सक्रिय हैं और पूरी तरह सक्रिय हैं। सिंधिया की छाया से अकेले भारत सिंह कुशवाह ही परेशान नहीं है अपितु कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य अशोक सिंह भी दुखी है।  वे सिंधिया की वजह से ग्वालियर में अपनी सांसद निधि से ऐसा कोई काम हाथ में नहीं ले पाए जोउन्हें एक साँसद  के तौर पर पहचान दिला दे। अशोक सिंह के पिता स्वर्गीय राजेंद्र सिंह और पितामह डोंगर सिंह कक्का सिंधिया परिवार के विरोधी रहे ,लेकिन बाद में अशोक सिंह ने हथियार डाल दिए और 2007 ,2009 ,2014 और 2019 में ग्वालियर से ॉक्सभा का चुनाव ग्वालियर सीट से लड़ा जरूर किन्तु सिंधिया ने न उन्हें चुनाव जिताया और न जीतने दिया।  अशोक सिंह कांग्रेस में दिग्विजय सिंह खेमे से आते हैं। 

अब देखना ये है कि सिंधिया की छत्र छाया से ग्वालियर के भाजपा साँसद भारत सिंह कुशवाह और कांग्रेस के राज्य सभा सांसद अशोक सिंह कितने दिन तक बचे रह सकते हैं ? इन दोनों में सिंधिया का मुकाबला करने की क्षमता हालांकि  है नहीं। फिर भी समय किसने देखा है। वैसे भी सिंधिया के पास झंडावरदारी के लिए उनकी अपंनी पुरानी कांग्रेसियों की टीम है ही,उसमें  अब कुछ भाजपाई भी शामिल हो गए हैं। 

@ राकेश अचल

स्मृति शेष : मनोज कुमार यानि भारत

हम लोग उस पीढ़ी से आते हैं जिसने राष्ट्रवाद का पाठ किसी संघ,जनसंघ या भाजपा से नहीं सीखा ।  हमारी पीढ़ी को राष्ट्रवाद और भारतीयता का पाठ पढ़ाया था एक शर्मीले से लम्बे और खूबसूरत अभिनेता ने ,जिसका नाम मनोज कुमार था। भारत देश का बच्चा-बच्चा मनोज कुमार को जानता था,उनसे मोहब्बत करता था और उनकी फिल्मों के गीत गुनगुनाते हुए भविष्य के सपने देखता था। मनोज मुमार जन्म से मनोज कुमार नहीं थे ।  उनका नाम हरिकृष्णा गिरी गोस्वामी था। 

मनोज कुमार यदि मनोज कुमार न बनते तो कथा वाचक बनते,क्योंकि उनके पास लोगों को आकर्षित करने का हुनर था ।  मनोज कुमार उसी दिल्ली के रहने वाले थे जिस दिल्ली में ग़ालिब हुए,बहादुरशाह जफर हुए। मेरे जन्म से दो साल पहले 1957  में फिल्म फैशन से फ़िल्मी दुनिया में कदम रखने वाले मनोज कुमार 1967  में उपकार बनाकर हर भारतीय के दिल पर छा गए ।  ' मेरे देश की धरती सोना उगले -उगले हीरा मोती ' हर भारतीय की जुबान पर था। वे आदर्श किसान थे उस फिल्म में। संघर्ष उनकी पहचान था। जो आज आधी सदी के बाद भी अमित है। 

भारत कुमार यानी मनोज कुमार ने भरी -पूरी जिंदगी पायी  ।

 वे 87  साल के होकर चुपचाप बिना किसी विवाद के इहलोक से विद्दा हुए हैं। उनके ऊपर कोई ऐसा दाग-धब्बा नहीं है की लोग मनोज कुमार से घृणा करे ।  मनोज कुमार केवल और केवल मोहब्बत के लायक थे। मनोज कुमार का फ़िल्मी सफरधीमी गति के समाचारों जैसा था ।  वे साल में एक फिल्म बना लें तो बहुत है। उन्हें सुपर स्टार या जुबली कुमार बनने की जल्दी शायद कभी नहीं रही। वे खरामा-खरामा अपना काम करते थ।। उनके काम करने के तरिके से आप शायद सहमत न भी हों ,लेकिन ये उनका अपना अंदाज था।  

 मनोज कुमार ने 1957फैशन,1958  सहारा और पंचायत में काम किया लेकिन पहचाने नहीं गए ।  1960  में हनीमून भी उनके काम नहीं यी लेकिन 1961  में रेशमी रूमाल और कांच की गुड़िया के जरिये वे चर्चा में आये। इसी साल सुहाग सिन्दूर ने उन्हें पहचान दिलाई। 1962  में शादी ,नकली नबाब ,डाक्टर विद्या ,बनारसी ठग, अपना बना के देखो और मान बेटा के साथ ही हरियाली और रास्ता ने मनोज कुमार की सफलता का रास्ता खोला ।  उन्हें कामयाब बनाने में गीत -संगीत की अपनी भूमिका थी। मुझे याद है की 1963  में मनोज कुमार गृहस्थी में नजर आये ,इसी साल उन्होंने घर बसा के देखो में काम किया। 1964  में फूलों की सेज और अपने हुएपराये ने दर्शकों को रुलाया भी और हसाया भी। लेकिन 1964  में ही आयी एक मिस्त्री फिल्म 'वो कौन थी ' ने उन्हें हीरो के रूप में स्थापित कर दिया। गुमनाम ने उन्हें नया मुकाम दिया। 1965  में बेदाग  और 1965  में ही शहीद ने उन्हें जो मुकाम दिया उसे वे ताउम्र भुनाते रहे। 

 मनोज कुमार ने हर विषय पर फ़िल्में लीन और अभिनय किया ।  शहीद के बाद पूनम की रात, से कहीं ज्यादा ' हिमालय की गोद में फिल्म ने मनोज कुमार को चमकाया ।  इस फिल्म का गीत ' चाँद सी मेहबूबा हो मेरी कब ऐसा मायने सोचा था। आज भी ज़िंदा है। सावन की घटा,पिकनिक,और दो बदन को कौन भूल सकता है ।  हम लोगों ने उस समय दो बदन स्कूल से गोत लगाकार देखीं थी । पत्थर के सनम  ने मनोज के अभिनय का लोहा मनवा लिया । उपकार तो ब्लाक बस्टर और मील का पत्थर फिल्म साबित हुई। मनोज कुमार की फिल्म  अनीता और आदमी जिसने भी देखी होगी वो इसे शायद ही कभी भुला पा।  जब मैं कक्षा 8  का छात्र था तब मनोजकुमार की फिल्म नीलकमल को देखने लवकुशनगर [ लौंडी] से महोबा तक साइकल से गया था। उनकी फिल्म साजन,पहचान,यादगार  के बाद पूरब और पश्चिम ने मनोज कुमार को जो छवि दी वो आजन्म उनके सतह चिपकी रही। उन्होंने मेरा नाम जोकर में भी काम किया। 

आम आदमी के सरोकारों को लेकर बनी फिल्मों में काम करने के लिए जाने जाने वाले मनोज कुमार की फिल्म शोर ने जो शोर मचाया उसकी प्रतिध्वनि आज भी सुनाई देती ह।  बाकी कुछ बचा तो महगाई मार गयी ,पानी रे पानी को कौन भूल सकता है ?  बेईमान,रोटी कपड़ा और मकान तथा सन्यासी को हमारी पीढ़ी कभी नहीं भुला सकती। दस नंबरी ,अमानत,जैसी फ़िल्में बनाने वाले मनोज कुमार ने शिरडी के साइन बाबा जैसी फ़िल्में बनाने का काम भी किया। वे जाट पंजाबी भी बना सके,लेकिन क्रांति और कलियुग की रामायण तथा संतोष  जैसी फ़िल्में बनाने का दुस्साहस भी मनोज कुमार जैसे हीरो ही कर सकते थे। 

मुझे याद आता है कि मनोज कुमार ने 1995 की फिल्म मैदान-ए-जंग में काम करने  के बाद उन्होंने अभिनय छोड़ दिया । उन्होंने अपने बेटे कुणाल गोस्वामी को 1999 की फिल्म जय हिंद में निर्देशित किया , जो देशभक्ति की थीम पर आधारित थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही और कुमार ने जिस आखिरी फिल्म में काम किया, वह थी।

चार दशक से  अधिक के फ़िल्मी योगदान  के लिए उन्हें 1999 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। 

मनोज कुमार को जितने सम्मान मिले उतने ज्यादा नहीं हैं  लेकिन वे इन पुरस्कारों के पीछे भगे  नही।  उन्होंने किसी का पिछलग्गू बनना पसंद नहीं किया। वे किस का माउथपीस नहीं बने । बने भी तो आम आदमी के प्रवक्ता। लेकिन दूसरों की तरह मनोज कुमार भी आखरी वक्त में हिन्दू बन गए।  मनोज कुमार ने भी रिटायरमेंट के  बाद राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया।मुझे याद है कि  2004 के आम चुनाव से पहले, मनोज कुमार  आधिकारिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। लेकिन ये उनकी गलती थी  या नहीं ये वे जाने ।  मैं तो उनका सम्मान एक भावुक,संवेदनशील ,शांत अभिनेता के रूप में याद करता हूँ। विनम्र श्रृद्धांजलि। 

@ राकेश अचल

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

जन-गण-मन,अधिनायक जय हे

हमारे राष्ट्रगान की उक्त पंक्तियों को मैं कभी नहीं भूलता,क्योंकि इसमें भारतीय जनतंत्र की  ,भारतीय गणतंत्र ,की और भारतीय मानसिकता की   जय के साथ-साथ उस अधिनायक की भी जय बोली गयी है जो अदृश्य है। भारतीय जनतंत्र और गणतंत्र के बीच छिपकर बैठा ये अधिकानायक हमेशा बहुमत के रूप में   हमारे सामने प्रकट होता रहता है ।  इसका चेहरा कभी स्त्री  का होता है तो कभी पुरुष का और कभी अर्धनारीश्वर  का। अधिनायक  की पहचान अक्सर संसद में किसी विधेयक पर मत विभाजन के समय होती है ।  वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024  पर मत विभाजन के समय भी ये अधिनायकत्व खुलकर सामने आया है।

वक्फ बोर्ड  की सम्पत्तियों पर मौजूदा सरकार की नजर शुरू से थी लेकिन उसे कोई मौक़ा नहीं मिल रहा था,किन्तु हाल ही में महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में मिली जीत ने बैशाखी सरकार को इतना हौसला दिया कि वो मुसलमानों की टोपी जमकर उछाले। सरकार ने ऐसा किया भी। वक्फ बोर्ड क़ानून में संशोधन कर अपने लिए बोर्ड में घुसपैठ करने की गुंजायश निकाल ही li।  पूरा विपक्ष मिलकर भी इसे रोक नहीं पाया। रोक भी नहीं सकता था क्योंकि संख्या बल उसके पास नहीं था। अब ये विधेयक राजयसभा में  भी आसानी से पारित होने के बाद क़ानून का रूप ले लेगा। अब विपक्ष इसे न कानून बनने से रोक सकता है और  न इस पर अमल करने से।

लोकसभा में इस विवादास्पद विधेयक पर पूरे 12  घंटे बहस चली ।  मुमकिन है कि आप में से बहुत कुछ ने ये पूरी बहस देखी हो ,लेकिन मैंने इसे पूरा देखा,सुना। इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि सत्ता के लालच में टीडीपी और जेडीयू जैसे कथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने जहां अपना दीन-ईमान बेच दिया वहीं उद्धव ठाकरे की शिव सेना और तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे लोग बिना लाभ-हानि की फ़िक्र किये विधेयक के विरोध में डटे रहे।अब पूरी मोदी सेना विपक्षी सांसदों को काफिर ठहराने पर   लगी है। यानी मुसलमानों का समर्थन करना काफिर होना है और विरोध करना सनातनी होना है।

भारत की आजादी के पहले के और बाद के इतिहास में किसी एक बिरादरी के साथ इस तरह के दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा बर्ताव कभी नहीं हुआ। मुगलों के जमाने में तो ऐसे बर्ताव का सवाल ही नहीं उठता लेकिन अंग्रेजों ने भी ये जुर्रत नहीं की जो आज की जा रही है। सरकार  की रीती,नीति और कार्यक्रम न जाने क्यों अचानक मुसलमान विरोधी हो गए हैं। सरकार अपने कार्यक्रमों और नीतियों के जरिये मुसलमानों को मुसलमान बना देने पर आमादा है। लेकिन ऐसा होगा नहीं।  सरकार के मुस्लिम विरोधी रवैये से मुसलमान  को अपने शुभचिंतक चुनने में पहले के मुकाबले ज्यादा आसानी होगी।

अभी तक राजनीतिक   दलों पर मुसलमानो को तुष्ट करने का आरोप लगता था किन्तु अब मुसलमानों के हाथ में ये मौक़ा आया है की वे अपनी पसंद के राजनीतिक दलों को तुष्ट और पुष्ट करें। मुसलमान  किस दल के साथ रहना चाहते हैं ये तय करने वाले हम और आप कोई नहीं हैं किन्तु हम लोकतंत्र में अधिनायक की पहचान में सबकी मदद कर सकते है।  मुसलमानों की भी और हिन्दुओं की भी। आज से पचास साल पहले हम और इशाक भाई एक साथ एक क्लास में पढ़ते थे,खाते थे,खेलते थे । हमारी माँ और फ़रीदा बेगम में बहुत फर्क नहीं था । दोनों के आंचल की छांव एक जैसी थी ,लेकिन अब सब बदल चुका है।  न इशाक  हमारे साथ और  न फ़रीदा बेगम। सियासत ने सभी को पराया बना दिया है। कोई डर की वजह से पराया हुआ है तो कोई सियासत की वजह से ।

संख्या बल के चलते वक्फ बोर्ड विधेयक राजयसभा में भी आसानी से पारित  होगा,इसलिए वहां इस विधेयक पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है। बहुमत के बूटों से अक्लियत का कुचला जाना अकलियत के लोगों की नियति बन चुकी है। फिर भी उम्मीद है कि बी भारत में जैसे हिलमिलकर हम सब  रहते थे वैसे ही आगे भी रहेंगे। नहीं रहेंगे तो सब बर्बाद हो जायेंगे। हमारा भी वही हाल होगा जो किसी जमाने में महाराणा प्रताप का हुआ,छत्रपति शिवाजी का हुआ। छत्तरसाल का हुआ,लक्ष्मीबाई का हुआ। बंटा हुआ समाज कभी देश की ताकत नहीं हो सकता। बंधी हुई मुठ्ठी ही लाख की होती है,खुल गयी तो ये मुठ्ठी ख़ाक की हो जाती है। मैं न काफिर हूँ  और न मुसलमान ,लेकिन मैं भी उसी तरह सनातनी भारतीय हूँ जिस तरह इस देश के सनातनी मुसलमान हैं। उनका भाग्य बैशाखी लगाकर सरकार चलने वाले तय नहीं कर सकते। किन्तु दुर्भाग्य है कि वे ऐसा कर रहे हैं।

ऐसे मौकों पर मुझे ' मेरे महबूब 'फिल्म का वो  गीत  अक्सर याद आता है जिसे शकील बदायूनी ने लिखा था। -कोई देखे या न देखे ,अल्ला देख  रहा है। ' हमारी सरकार अल्लाह की सरकार नहीं है । वो राममजी की सरकार है इसलिए अल्लाह से डरती नहीं है ।  उसके लिए ईश्वर,अल्लाह तेरो ही नाम नहीं है। वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक से हमारा कुछ बनना और बिगड़ना  नहीं है ।  जिनका बनना और बिगड़ना है ,उन्हें तय करना है कि वे इस मसले पर कैसे अपनी प्रतिक्रिया दें। उनके सामने दोनों विकल्प हैं। वे चाहें तो सरकार के सामने घुटने टेकेन और न चाहें तो सरकार को घुटे टेकने पर विवश करें। सरकार को न अदालत रोक सकती है और न अल्ला।  सरकार को केवल और केवल वोट रोक सकता है। जो वोट की ताकत नहीं जानते,वे कुछ नहीं जानते।

इस देश में रामजी कि सरकार कभी हिन्दू मंदिरों के न्यासों के घपलों के बारे में कभी गंभीर नहीं हो सकती । कभी ये नहीं कहने वाली कि सौ साल पहले हिन्दू मंदिरों की आय कितनी थी और आज कितनी है ।  सौ साल पहले हिन्दू मंदिरों कि सम्पत्ति कितनी थी और   आज कितनी है ?ये सरकार कभी ये देखना और जानना या रोकना पसंद नहीं करेगी कि हिन्दू मंदिरों के ट्रस्टों कि आड़ में देश के राजे-महाराजाओं ने अपनी कितनी सम्पत्ति कराधान से बचा रखी है ? अकेले ग्वालियर में एक ही राज परिवार के 19  ट्रस्ट इसी तरह से करचोरी के धंधे में  लगे हैं। हरि अनंत ,हरि कथा अनंता ।

@ राकेश अचल 

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

छावा के बाद सिकंदर की धूम

 

ज्योतिषियों के परामर्श पर आज तुला राशि के जातकों को वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए ।  इसलिए मै आज सीधे-सीधे सियासत पर  कोई  बात नहीं कर रह।  मै आज बात कर रहा हूँ  फिल्म सिकंदर की ।  ये फिल्म छावा की तरह किसी एजेंडे के तहत नहीं बनी ।  और इस फिल्म का नायक इतिहास पुरुष नहीं बल्कि हमारे-आपके बीच का एक युवक है लेकिन उसका पीछ भी सियासत नहीं छोड़ रही। 

सिकंदर का नायक वही सलमान खान है जो लारेंस विश्नोई के साथ ही देश के नामचीन्ह हिंदूवादियों के निशाने पर रहता है। सलमान खान चाहे बजरंगी भाई बनाएं या सिकंदर उनके अंदर  का अभिनेता दर्शकों को हिला देता है ।  एक अभिनेता जैसी ताकत हमारे देश के किसी भी राजनेता के पास नहीं है ,और है तो वो जनता से ज्यादा से ज्यादा तालियां बजवा सकता है ,फूल बरसवा सकता है। नेता और अभिनेता  में यही मूलभूत अंतर् है। एक किरदार में डूब कर उसे असली जैसा बना देता है और दूसरा खुद किरदार बनने की कोशिश करता है लेकिन कामयाब नहीं हो पाता। छावा फिल्म का छावा विक्की   कौशल छावा नहीं था लेकिन उसने छावा के किरदार को ज़िंदा कर दिया। अक्षय  खन्ना औरंगजेब नहीं हैं किन्तु उन्होंने   औरंगजेब को ज़िंदा कर दिया। हमारे नेताओं ने भी औरंगजेब को कब्र से बाहर निकाला लेकिन अपने फायदे के लिए ,जनता के मनोरंजन के लिए नहीं। 

फिल्म सिकंदर में राजकोट के राजा संजय के किरदार में सलमान खान नजर आए। फिल्म की शुरुआत में ही दिखाया गया कि उन्होंने फ्लाइट में एक राजनेता के बेटे अर्जुन (प्रतीक बब्बर) को पीट दिया। दरअसल, वह वहां पर मौजूद एक महिला का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा था। इसके बाद मिनिस्टर सलमान खान के किरदार से बदला लेने की हर संभव कोशिश करता है। पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए घर जाती है, लेकिन राजा होने के कारण सलमान के किरदारों को लोगों का बेशुमार प्यार मिलता है और वह उसकी रक्षा करने के लिए बड़ी संख्या में पहुंच जाते हैं। खैर, मिनिस्टर के गुंडे सिकंदर के पीछे पड़ जाते हैं और इस लड़ाई के कारण उन्हें अपनी पत्नी साईंश्री (रश्मिका मंदाना) को खोना पड़ता है।

फिल्म सिकंदर ईद के दिन रिलीज हुई थी। इसी दिन देश के 32  लाख गरीब मुसलमानों को सौगात -ऐ-मोदी  मोदी भी दी गयी ,लेकिन ये सौगात -ऐ -मोदी 'सौगात सिकंदर के शोर में कहीं दबकर रह गयी। बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म 'सिकंदर' प्रसिद्ध निर्देशक एआर मुरुगदॉस के निर्देशन में बनी है। मुरुगदॉस इससे पहले आमिर खान की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'गजनी' बना चुके हैं, जो बॉलीवुड की पहली 100 करोड़ क्लब में शामिल होने वाली फिल्मों में से एक थी। 'सिकंदर' में सलमान खान के साथ पहली बार रश्मिका मंदाना नजर आ रही हैं। दोनों की जोड़ी को लेकर दर्शकों में खासा उत्साह है। फिल्म में प्रतीक बब्बर, काजल अग्रवाल, सत्यराज और शरमन जोशी जैसे शानदार कलाकार सहायक भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं। कहानी एक ऐसे शख्स की है, जो भ्रष्ट सिस्टम से त्रस्त होकर इसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला करता है। फिल्म में जबरदस्त एक्शन, इमोशन और मनोरंजन का तड़का देखने को मिलेगा।

अब भ्रस्ट सिस्टम के खिलाफ आम जनता नहीं लड़ती ,फिल्मों का नायक लड़ता है ,जबकि ये लड़ाई आम जनता की है। जनता अपनी ओर से फ़िल्मी नायकों को लड़ते देख ही खुश हो लेती है। आम जनता भूल गयी है कि-स्वर्ग खुद के मरने पर ही मिलता है। फ़िल्मी  परदे की लड़ाई से भ्रस्ट सिस्टम का,जहरीली सियासत का मुकाबला नहीं किया जा सकता। सिकंदर फिल्म भी सिस्टम के खिलाफ लड़ाई को उस तरह तेज नहीं कर पायेगी जिस तरह की छावा ने नफरत फ़ैलाने में कामयाब हुई।  कुछ फ़िल्में राजनीति का मकसद पूरा करने में कामयाब हो जातीं हैं  ,कुछ नही।  सिकंदर एक मनोरंजन प्रधान फिल्म है इसलिए उसे कामयाबी दिलाने के लिए किसी खादीधारी प्रमोटर  की जरूरत नहीं है। सिकंदर की टीम के साथ कोई फकीर फोटो खिंचवाए या न खिंचवाए, ये फिल्म चल पड़ी है और करोड़ों कमाकर ही दम लेगी।  फिल्म 'सिकंदर' ने पहले दिन 30.06 करोड़ रुपये की कमाई की है।

सिकंदर  की कामयाबी का संकेत साफ़ है कि फ़िल्में केवल मनोरंजन और शुभ के सन्देश के साथ बनाई जाना चाहिये ।  फ़िल्में राजनीतिक एजेंडे के तहत बनेंगी तो इस माध्यम का दुरूपयोग समझा जाएगा। वैसे सिकंदर नाम ही कामयाबी का है।  असली सिकंदर ने 32  साल की उम्र में दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य स्थापित कर लिया था। आज दुनिया में कोई सिकंदर जैसा नहीं है ।  लोग विश्वगुरु बनने के फेर में बूढ़े हो गए लेकिन अपना खुद का सम्राज्य नहीं सम्हाल पा रहे।  

बहरहाल मै सिकंदर की कामयाबी के लिए सलमान खान और सिकंदर फिल्म की पूरी टीम को मुबारकबाद देता हूँ। सलमानखान की फ़िल्में अक्सर ईद के दिन ही तोहफे के रूप में आतीं हैं और कामयब भी होतीहै। सनातनियों को भी चाहिए की वे भी अपनी फ़िल्में होली,दीपावली या रामनवमी को रिलीज किया करें। जैसे राजनीति का धर्म से गहरा नाता बना दिया गया है वैसा ही फिल्मों  का भी धर्म से सीधा नाता है। कुछ लोग मंदिरों पर धनवर्षा करते हैं तोकुछ लोग सिनेमाघरों पर,जिन्हें  अब मल्टीप्लेक्स कहा जाता है।मल्टीप्लेक्स मनी को मल्टीप्लाई करता है ठीक वैसे ही जैसे कोई भी मंदिर मनी को मल्टीप्लाई करता ह।  मनी को मल्टीप्लाई करने की ताकत किसी मस्जिद में नहीं है। ताजमहल इसका अपवाद है। 

@ राकेश अचल

मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

जिले के सरकारी स्कूलों में मनाए गए प्रवेशोत्सव

नव प्रवेशी बालिकाओं का पुष्पाहारों से स्वागत कर उन्हें पाठ्य पुस्तकों के सैट सौंपे

ग्वालियर 1 अप्रैल । स्कूल चलें अभियान के तहत अप्रैल माह के पहले दिन ग्वालियर जिले के सरकारी स्कूलों में भी प्रवेशोत्सव कार्यक्रम आयोजित हुए। मुरार स्थित शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रवेशोत्सव में पूर्व विधायक श्री मुन्नालाल गोयल एवं कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान शामिल हुईं। इस अवसर पर उन्होंने विद्यालय की नव प्रवेशी बालिकाओं का पुष्पाहारों से स्वागत कर उन्हें पाठ्य पुस्तकों के सैट सौंपे। 

पूर्व विधायक श्री मुन्नालाल गोयल ने इस अवसर पर छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि लक्ष्य निर्धारित करें और आत्मविश्वास रखकर लक्ष्य प्राप्ति के लिये कड़ी मेहनत करें। ऐसा करने से सफलता अवश्य मिलेगी। उन्होंने छात्राओं का आह्वान किया कि ऊँचे सपने देखो और उन्हें हासिल करने के लिये अनुशासन के साथ प्रयास करें। 

आरंभ में अतिथियों ने माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन कर प्रवेशोत्सव कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर जिला शिक्षा अधिकारी श्री अजय कटियार, सहायक संचालक स्कूल शिक्षा श्रीमती पुष्पा ढोंड़ी, राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल से आए श्री आशीष भारती तथा विद्यालय के शिक्षकगण व विभिन्न कक्षाओं की बालिकायें मौजूद थीं।  स्कूलों में भी प्रवेशोत्सव कार्यक्रम आयोजित हुए। मुरार स्थित शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रवेशोत्सव में पूर्व विधायक श्री मुन्नालाल गोयल एवं कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान शामिल हुईं। इस अवसर पर उन्होंने विद्यालय की नव प्रवेशी बालिकाओं का पुष्पाहारों से स्वागत कर उन्हें पाठ्य पुस्तकों के सैट सौंपे। 

पूर्व विधायक श्री मुन्नालाल गोयल ने इस अवसर पर छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि लक्ष्य निर्धारित करें और आत्मविश्वास रखकर लक्ष्य प्राप्ति के लिये कड़ी मेहनत करें। ऐसा करने से सफलता अवश्य मिलेगी। उन्होंने छात्राओं का आह्वान किया कि ऊँचे सपने देखो और उन्हें हासिल करने के लिये अनुशासन के साथ प्रयास करें। 

आरंभ में अतिथियों ने माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन कर प्रवेशोत्सव कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर जिला शिक्षा अधिकारी श्री अजय कटियार, सहायक संचालक स्कूल शिक्षा श्रीमती पुष्पा ढोंड़ी, राज्य शिक्षा केन्द्र भोपाल से आए श्री आशीष भारती तथा विद्यालय के शिक्षकगण व विभिन्न कक्षाओं की बालिकायें मौजूद थीं। 

उत्तराखंड के नए नामदेव धामी

 

उत्तराखंड यानि देवभूमि। यहां के मुख्यमंत्री को भी हम देवता ही मानते हैं और हमें आज लगा कि  उनका नाम पुष्कर धामी नहीं बल्कि नामदेव धामी होना चाहिए।  वे राजनीति की उस वंश परम्परा से आते हैं जो इतिहास बनाने के बजाय उसे बदलने की होड़ में शामिल है। मुगलों कि बाद सबसे पहले नाम बदलने का शौक चर्राया था बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती को ,लेकिन बाद में इसे भाजपा ने हडपलिया। भाजपा का हर मुख्यमंत्री अपने-अपने सूबे में ' नाम बदलो 'अभियान का सूत्रपात कर  चुका है ,और अब धामी साहब ने एक साथ डेढ़ दर्जन ठिकानों के नाम बदलकर अपने सभी वरिष्ठों को इस अभियान में पीछे छोड़ दिया है। 

धामी साहब वैसे भी किसी काम के मुख्यमंत्री नहीं है।  वे आम कठपुतलियों की तरह दिल्ली के इशारे पर नर्तन करते है। उनके पास करने के लिए कुछ है भी नहीं,क्योंकि उत्तराखंड में जो करते हैं वो सब देवता करते हैं वो भी दिल्ली कि देवता । नेता तो हाँ में हाँ मिलाते है।  मुमकिन   है कि  थोक में नाम बदलने का आदेश भी धामी जी को ख्वाब में किसी देवता ने दिया हो। पुष्कर सिंह धामी ने हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और उधमसिंह नगर जनपद में स्थित विभिन्न स्थानों के नाम में परिवर्तन की घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि  जनभावना और भारतीय संस्कृति व विरासत के अनुरूप ये नामकरण किए जा रहे हैं। इससे लोग भारतीय संस्कृति और इसके संरक्षण में योगदान देने वाले महापुरुषों से प्रेरणा ले सकेंगे।

धामी नकलची वानर की तरह है।  उन्होंने ' सौगाते मोदी ' की नकलकर उत्तराखंड के मुसलमानों को 'सौगाते धामी' के नाम से ठीक ईद के दिन मुस्लिम शासकों द्वारा बसाये गए तमाम शहरों के नाम बदलने का तोहफा दिया है। जैसे अब हरिद्वार जिले का औरंगजेबपुर- शिवाजी नगर गाजीवाली- आर्य नगर,चांदपुर- ज्योतिबा फुले नगर,मोहम्मदपुर जट- मोहनपुर जट ,खानपुर कुर्सली- अंबेडकर नगर,इदरीशपुर- नंदपुर,खानपुर- श्री कृष्णपुर,अकबरपुर फाजलपुर- विजयनगर के नाम से जाने जायेंगे। 

देहरादून जिले में मियांवाला- रामजीवाला,पीरवाला- केसरी नगर ,चांदपुर खुर्द- पृथ्वीराज नगर,अब्दुल्लापुर- दक्षनगर कहे जायेंगे। नैनीताल जिला

का नवाबी रोड- अटल मार्ग ,पनचक्की से आईटीआई मार्ग- गुरु गोवलकर मार्ग ,उधम सिंह नगर जिलाकी नगर पंचायत सुल्तानपुर पट्टी- कौशल्या पूरी कही जाएगी। नाम बदलने से न मुसलमानों का कुछ बिगड़ना है और न हिन्दुओं का। क्योंकि जिसकी गर्भनाल जहां जमीदोज है उसे तो धामी जी उखड़वा नहीं सकते।  नाम बदलने को मुगलिया संस्कृति मानता हूँ ।  मुगलों ने किसी जगह का नाम क्यों बदला ये बताने वाला कोई मुगल सम्राट ज़िंदा नहीं है ,लेकिन मैंने जितना इतिहास पढ़ा है उससे मैं ये समझा है कि  वे जहाँ भी महीना-दो महीना अपना लश्कर रोकते थे उसे नया नाम दे जाते थे। उन्होंने समोने में भी नहीं सोचा होगा की भारत में पांच सौ साल बाद कोई उन्हीं की तरह नकल करते हुए फिर से उनके बसाये,बसाये  शहरों का नाम बदल देगा। 

मेरी समझ में नहीं आता कि भाजपाई हों या बसपाई,सपाई हों या कांग्रेसी ये नयी बसाहट करने कि बजाय पुरानी बसाहटों कि नाम क्यों बदलते हैं।  कांग्रेस कि ज़माने  में हमारे मध्यप्रदेश में कांग्रेस कि एक नेता माधवराव सिंधिया कि नाम से [साडा ] ने एक शहर ग्वालियर में तीस साल पहले बसने की कोशिश की थी लेकिन बेचारा आज तक नहीं बस पाया। क्योंकि नया शहर बसना आसान काम नहीं है। मुगलों ने ये काम कैसे कर लिया  राम ही जानें ? भाजपा की सरकार भी देश में 10  साल से है लेकिन मोदी जी ने एक भी नया नगर नहीं बसाया। ऐसे में वे मुगलों से केवल नफरत कर सकते हैं,मुकाबला नहीं। नया नगर बसने की कुब्बत उत्तर प्रदेश कि मुख़्यमंत्रो योगी आदित्यनाथ में भी नहीं है ।  वे भी इलाहबाद को प्रयागराज कर पाए। नया नगर नहीं बसा पाये । इलाहबाद है कोर्ट का नाम आज भी इलाहबाद है कोर्ट ही है।  हमारे मध्यप्रदेश में भी होशंगाबाद का नाम बदला गया ।  हबीबगंज स्टेशन को रानी  कमलापत कर दिया गया ,क्योंकि ये आसान काम है। 

किसी बसाहट या संस्था का नाम बदलना ,उसकी बदलियत बदलने जैसा अक्षम्य अपराध नहीं है ,किन्तु होना चाहिए। किन्तु   भाजपा सरकार तो ये काम करने से रही ।  वैसे ये अपराध किस राजनीतिक दल ने नहीं किया ? कांग्रेस के लबे कार्यकाल में किसी बसाहट की बल्दियत बदली गयी हो तो सुधि पाठक मुझे भी बताने की कृपा करें।  नाम को व्याकरण में संज्ञा कहते हैं। संज्ञा बदली नहीं जाती लेकिन भाजपाई कुछ भी बदल सकते हैं।  मेरा मश्विरा है कि वे देश में रहने वाले करोड़ों मुसलमानों को तो देशनिकाला दे नहीं सकते  सो क्यों न मुसलमानों की बिरादरी का नाम बदलकर किसी भाजपा नेता कि नाम उसे नया नाम दे दें। हमेशा कि लिए रट्टा ही खत्म हो जाये।

जहाँ तक मुझे याद आता है कि  मोदीजी के राज में एक संसद भवन नया जरूर बना है ।  इसके लिए उन्हें साधुवाद।  कांग्रेस ये सुकृत्य नहीं कर पायी जबकि पचास साल से ज्यादा सत्ता में रही। अब ये बात और है कि नया संसद भवन पहली ही बरसात में टपकने लगा। क्या ही बेहतर हो कि  पुराने को पुराना रहने दिया जाये और नया ही कुछ किया जाये। नया करना ही पुरुषार्थ है ।  ये नहीं कि  किसी स्टेडियम पर कोई अपना नाम चस्पा कार दे और इतिहास पुरुष बन जाये। बहरहाल पुष्कर धामी को बधाई की वे भी नामदेव बन गये । 

@ राकेश अचल

सोमवार, 31 मार्च 2025

तरण पुष्कर 1अप्रैल से शुरू होगा, पूर्व सांसद शेजवलकर ने पहली छलांग लगाकर तैराकी का शुभारंभ किया

ग्वालियर  31 मार्च ।  गर्मी के मौसम में शहरवासियों के लिए राहत देने के नगर निगम द्वारा संचालित तरण पुष्कर 1 अप्रैल से आमजन के लिए खोला जाएगा । तरण पुष्कर में पूर्व सांसद श्री विवेक नारायण शेजवलकर ने पहली छलांग लगाकर तैराकी का शुभारंभ किया।

नोडल अधिकारी एवं उपायुक्त सत्यपाल सिंह चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि तरण पुष्कर स्विमिंग पूल पर आज संगीत मय सुंदरकाड का पाठ कर विधि विधान से पूजा अर्चना की, इस मौके पर श्री विवेक शेजवलकर पूर्व सांसद, सभापति श्री मनोज तोमर, वरिष्ठ भाजपा नेता रामेश्वर भदोरिया, धर्मेन्द्र राणा, एवं निगमायुक्त श्री संघ प्रिय, उपायुक्त श्री सत्यपाल चौहान, सहायक खेल अधिकारी श्री जीतेंद्र यादव, श्री अयोध्याशरण शर्मा, सुश्री विजेता चौहान एवं तरण पुष्कर स्टाफ  मौजूद था

तैराकी के बैच सुबह 6 से 10 एवं शाम 5 से 8 तक रहेंगे, प्रत्येक वैच 45 मिनट का रहेगा, मुख्य कोच अयोध्या शरण शर्मा ने तैराकी आने वाले सभी सदस्यों से अपनी अपनी स्विमिंग कोस्टूम साथ लाने अनुरोध किया है, वगैर कोस्टूम तैराकी नहीं कर सकेंगे, एवं प्रथम दिवस निर्धारित समय प्रवेश कार्ड अनुसार समय से 10 मिनट पूर्व आने की सलाह दी है।

तापमान बढने के कारण 1अप्रैल से स्कूलों का समय बदला

 ग्वालियर 31 मार्च ।  ग्रीष्म ऋतु के दौरान बढ़ते हुए तापमान को ध्यान में रखकर जिले में बच्चों के हित में स्कूलों के संचालन के समय में बदलाव किया गया है। कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी श्री अजय कटियार ने इस आशय का आदेश जारी कर दिया है। 

जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार जिले में अब प्ले ग्रुप से दूसरी कक्षा तक के लिये प्रात: 9 बजे से दोपहर एक बजे तक का समय निर्धारित किया गया है। इसी तरह तीसरी से बारहवीं तक की कक्षाएँ प्रात: 8 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक संचालित होंगीं। परीक्षायें यथावत संचालित रहेंगीं। यह आदेश एक अप्रैल से प्रभावशील होगा और जिले की सभी शासकीय-अशासकीय और अनुदान प्राप्त शालाओं पर लागू होगा। 

मोदी जी का संघं शरणम गच्छामि

 

प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र दामोदर  दास मोदी जी के 12  साल बाद संघ की शरण में जाने के लोग अलग-अलग अर्थ निकाल रहे हैं र  । संघी कुछ कहते हैं और विपक्ष कुछ और ।  लेकिन मुझे इसमें  कोई भी नयी बात नजर नहीं आती। संघ आख़िरकार मोदी जी का दीक्षास्थल है और संघ की कृपादृष्टि से वे 2014  में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार और फिर लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। 

माननीय मोदी जी का संघ यानि राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के नागपुर मुख्यालय पहुंचना ठीक वैसा ही जैसा की किसी की घर वापसी होती है। कहतें हैं कि चाहे बाघ हो, चाहे नाग अंतिम  समय में अपनी गुफा या बिल में प्रवेश करके ही शांति अनुभव करता है। माननीय मोदी जी तो मनुष्य हैं ',नान -बायलोजिकल मनुष्य' उन्हें भी अंतिम समय में अपनी मांद की ,बिल की,घर की याद आना स्वाभाविक है।  मोदी जी को अब शायद कोई चुनाव नहीं लड़ना है, इसलिए वे संघ को उसके तमाम अस्त्र-शस्त्र ,कवच,कुंडल वापस करने गए हों ताकि संघ उन सबको मोदी जी के नए  उत्तराधिकारी के लिए धो-मांजकर  तैयार कर ले। आखिर मोदी जी कब तक प्रधानमंत्री पद पर टिके रह सकते है।  इससे पहले कि जनता उन्हें हटाए, संघ खुद उन्हें घर बुला लेना श्रेयस्कर समझेगा। 

जहाँ तक मैं संघ को जानता और समझता हूँ उसके मुताबिक संघ अपने विस्तार में बाधक   किसी भी अवरोध को दूर करने में कोई संकोच नहीं करता।  संघ ने देख लिया है ,जान लिया है कि मोदी जी अब 2029  के आम चुनाव के काम के नहीं रहे ।  वे तीसरी बार प्रधानमंत्री जरूर बन गए लेकिन उन्हें    उन दलों से बैशाखियाँ लेना पड़ीं जिनका चाल,चरित्र और चेहरा संघ और भाजपा से कतई मेल नहीं खाता। संघ की कोशिश भी है और शायद योजना भी कि मोदी जी को स-सम्मान घर बुला लिया जाये।  संघ मोदी जी को आडवाणी  गति प्रदान नहीं करना चाहता ,क्योंकि मोदी जी ने मनसा,वाचा ,कर्मणा संघ  की  कार्यसूची पर अमल करते हुए देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में निशि-याम काम किया है। मोदी जी राष्ट्रनिर्माण में इतने व्यस्त रहे की वे 12  साल में न मणिपुर जा पाए और न नागपुर। 

मोदी की कर्तव्यनिष्ठा पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता। लक्ष्य प्राप्ति के लिए संघ का एक प्रचारक जितना निर्मम हो सकता है मोदी जी ने अपने आपको उससे कहीं ज्यादा निर्मम प्रमाणित किया है।आज मोदीजी कि वजह से ही देश का अल्पसंख्यक मुसलमान पहली बार सड़कों पर ईद कि नमाज नहीं पढ़ सका।   मोदी जी से पहले माननीय अटल बिहारी वाजपेयी भी देश के प्रधानमंत्री  बने लेकिन वे भी देश में  हिंदुत्व का इतना तीव्र भूडोल नहीं  ला  सके थे।  वे सत्ता में जरूर आये थे लेकिन न वे जम्मू-कश्मीर से धारा 370  हटा पाए थे और न राम मंदिर बनवा पाए थे। वे तीन तलाक विधेयक भी  पारित नहीं करा पाए थे, उनके खाते में महिला शक्ति  वंदन विधेयक भी दर्ज नहीं है। हालाँकि वाजपेयी जी के मुकाबले मोदी जी पासंग भी नहीं हैं किन्तु उनके खाते  में वे तमाम उपलब्धियां दर्ज हैं ,जो वाजपेयी जी के खाते में नहीं है। 

मोदी जी पक्के शाखामृग हैं। संघ से  मोदी का दिल  का रिश्ता है। संघ के लिए वे गौतम बुद्ध की तरह अपनी पत्नी तक का त्याग कर चुके हैं। संघ के साथ उनका रिश्ता  दशकों पुराना है।  मोदी जी यदि  1972 में संघ की शरण में न आते तो वे कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे,संघ ने उन्हें चाय बेचने के श्रमसाध्य धंधे से बाहर निकाला। सन 1972 में नरेंद्र मोदी संघ  में शामिल हुए थे  प्रचारक बने. फिर संघ के मार्फत ही उन्हें भाजपा में प्रवेश मिला। गुजरात में संगठन की जिम्मेदारी मिली और बाद में वे  2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने ,लेकिन वर्ष 2023 के आम चुनाव में संघ और मोदी जी की भाजपा के सुर अचानक बदले ।  मोदी ने संघ परिवार के समानांतर अपना मोदी परिवार बनाया  । उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्ढा के मुंह से कहलवाया की अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है।बावजूद इसके मोदी जी कि समझ में आ गया कि वे संघ से बड़े कभी नहीं हो सकते।  

संघ ने अपने अपमान का ये घूँट चुचाप पपी लिया यहां तक की संघ का शताब्दी वर्ष भी इसीलिए धूमधाम से नहीं मनाया। किन्तु समय रहते मोदी जी को अपनी गलतियों का आभास  शायद हो गया और वे अंतत: संघ की शरण में लौट आये।  संघ भी यही चाहता है कि  मोदी जी अब सिंहासन   खाली करें।  स-सम्मान करें तो बेहतर अन्यथा संघ को मोदी जी की शाखा लगाने में कोई देर होने वाली नहीं है। आज भी भाजपा में 70  फीसदी संघी ही है।  मोदी जी ने हालाँकि भाजपा का कांग्रेसीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन संघियों ने प्रवासी यानि दलबदलू कांग्रेसियों को ज्यादा भाव नहीं दिया।  केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे बिभीषण आज भी संघियों के लिए अस्पृश्य ही है। 

कुल मिलाकर मोदी जी के संघ की शरण में वापस लौटने से भाजपा का नेतृत्व नयी पीढ़ी के हाथ में जाने के शुभ संकेत मिले हैं। मुझे लगता है कि अब भाजपा का नया अध्यक्ष  और देश का नया पंत प्रधान भी शीघ्र घोषित कर दिया जाएग।  मोदी जी 2029  के लिए सलामी लेने के लिए हमने शायद उपलब्ध  न हों। 

@ राकेश अचल

रविवार, 30 मार्च 2025

चैत्र माह में चेतने का मौक़ा देती है प्रकृति

हिंदी का नया साल चैत्र मास से शुरू होता है। मेरे लिए ये महीना बहुत महत्वपूर्ण है। मेरी दादी बताया करतीं थीं   कि  मै चैत्र मास में ही अवतरित हुआ था। इसी महीने में चेतुओं की किस्मत चेतती है।  दादी निरक्षर थीं लेकिन पंचांग के बारे में उन्हें पता नहीं कहाँ से पता चल जाता था। वे बताती थीं कि  चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इसी  दिन से चैत्र नवरात्रि के पावन पर्व का शुभारंभ भी होता है। इस बार चैत्र मास 30 मार्च 2025 यानी आज से शुरू हुआ तो दादी की बहुत याद आयी। वे पक्की सनातनी थीं किन्तु मैंने उन्हें कभी व्रत -उपवास करते नहीं देखा ,जबकि ठीक उनके विपरीत मेरी माँ को तीज-त्यौहार,व्रत,उपवास में गहरी दिलचस्पी थी। उनकी देखा-देखी मैंने भी अनेक बार चैत्र मास में 9 दिन के न सिर्फ व्रत किये बल्कि दो मर्तबा गवालियर से करौली तक 208  किमी की लम्बी और कठिन पदयात्रा भी की। 

आज का पंचांग बता रहा है कि इस तिथि पर रेवती नक्षत्र और ऐन्द्र योग के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण भी हो रहा है। इसके अलावा यह दिन हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2082 के रूप में आया है, जिसमें सूर्य और चंद्र देव दोनों मीन राशि में मौजूद हैं।आज के ही दिन देश-दुनिया में ईद का त्यौहार भी मनाया जा रहा है लेकिन  भारत में तमाम पाबंदियों के साथ। कहते हैं न कि  -जिसकी लाठी,उसकी भैंस। आज लाठी हमारे हाथ में हैं। इसलिए भैंस भी हमारी है। हमारी भैंस  के आगे बीन बजाने का कोई फायदा नहीं ,क्योंकि वो ससुरी खड़ी-खड़ी पगुराती रहती है ।  बीन की धुन पर नाचना उसे आता ही नहीं है।उसे न मणिपुर कि जलने से कोई फर्क पड़ता है और न कुणाल कामरा काण्ड से।  

आप कहेंगे कि  नया साल और नए साल का पहला  दिन में ये भैंस कहाँ से आ गयी। तो आपको बता दें कि  भैंस  से हमारा सनातन नाता है,ये बात अलग है कि  हम किसी भैंस को अपनी माता नहीं कहते,जबकि भैंस ,गौमाता से जायदा  दूध देती है,ज्यादा गोबर देती है और ज्यादा मांसाहार भी देती है। दुर्भाग्य ये है  कि  हमारे यहां भैंसपुत्र   केवल बलि के लिए इस्तेमाल किये जाते है।  किसी जमाने में भैंसे पंचायतों ,नगर निगमों में कचरा गाडी खींचने के काम भी आते थे किन्तु अब तो बेचारे सिर्फ  कटते हैं और लोगों के पेट भरने के काम आते हैं। भैंसों के नाम परदुनिया के  किसी देश में कोई राजनीती नहीं होती ।  कम से कम हमारे देश में तो नहीं होती ।  हमारे यहां गायों के नाम पर राजनीति भी होती है और लिंचिंग भी। दुर्भाग्य ये है कि  भारत में अभी तक किसी ने भैंसशाला नहीं खोली  इसीलिए भैंसे अक्सर सड़क पर आवारगी करते देखी जा सकतीं हैं।  

मै कट्टर सनातनी हूँ, फिर भी इन ज्योतिषियों की वजह से हमेशा परेशान रहते है।  ये हर त्यौहार को सुलभ के बजाय दुर्लभ बताकर ऐसा उन्माद पैदा करते हैं कि  आधा देश महाकुम्भ में नहाने जा धमकता है ,दीवाली पर ऐसा पुष्य योग बताते हैं कि  आधा देश भले कटोरा लिए खड़ा रहे लेकिन बाकी देश सर्राफा बाजार या मोटरकार   बाजार में खड़ा नजर आता है।  ज्योतिषी इस बार भी नहीं माने। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक लगभग 100 वर्षों बाद नवरात्रि के प्रथम दिन पंचग्रही योग का निर्माण भी हो रहा है. इसके साथ ही पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि ,इंद्र, बुद्धदित्य ,शुक्रदित्य, लक्ष्मी नारायण जैसे शुभ योग का निर्माण हो रहा है.।  हमारा   सौभाग्य है या दुर्भाग्य कि  ये ज्योतिषी हमारे पास ही सबसे जायदा है।  दूसरे मजहबों में भी हैं लेकिन वे इतने शातिर नहीं हैं जितने किहमारे हैं। हम पढ़े-लिखे हों या अनपढ़  सब के सब ज्योतिषियों के इशारों पर नाचते हैं। 

कभी-कभी मै सोचता हूँ कि  हमारे पास भले ही वैज्ञानिक कम हों किन्तु  ज्योतिषी इफरात में है। काश ऐसे ही ज्योतिषी म्यांमार वालों के पास होते ।  कम से कम वे ये तो बता देते कि  वहां  जो भूकमंप आया है वो किस दुर्लभ योग में आया है और उसके क्या लाभ-हानि है। किस राशि के जातकों के लिए भूकंप जानलेवा साबित होगा और कौन सा  महफूज रहेगा ? म्यांमार वालों के साथ हमारी गहन संवदना है ।  हमारी सनातनी सरकार ने म्यांमार के भूकंप पीड़ितों की इमदाद के लिए  लेफ्टिनेंट कर्नल जगनीत गिल के नेतृत्व में शत्रुजीत ब्रिगेड मेडिकल रिस्पॉन्डर्स की 118 सदस्यीय टीम आवश्यक चिकित्सा उपकरणों और आपूर्ति के साथ शीघ्र ही म्यांमार के लिए रवाना हुई. यह टीम जरूरी चिकित्सा उपकरणों और आपूर्ति के साथ एयरबोर्न एंजल्स टास्क फोर्स के रूप में तैनात की जा रही है, ये फोर्स आपदा-प्रभावित क्षेत्रों में उन्नत चिकित्सा और सर्जरी सेवाएं देने के लिए प्रशिक्षित है। 

हम शुक्रगुजार   हैं भारत सरकार की दरियादिली के, कि  उसने कम से कम चैत्र मास में कोई तो पुण्यकार्य किया ! अन्यथा मुमकिन था कि  हमारे गृहमंत्री अड़ जाते कि - नहीं  ! म्यांमार में राहत भेजने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वहां  के रोहिंग्या मुसलमान भी इस राहत का फायदा उठाएंगे। हमारी सरकार को मुसलमानों से खासी चिढ है,फिर चाहे वे हिन्दुस्तानी हों या बांग्लादेशी या म्यांमारी। हमारे यहां मुसलमान ही हैं जो सड़क पर नमाज नहीं पढ़ सकते,सड़क तो छोड़िये अपने घर की छत पर नमाज नहीं पढ़ सकते।  मुसलमानों को छोड़ दुसरे मजहबों का कोई भी आदमी कुछ भी कर सकता है। उसके लिए कोई पाबन्दी नहीं है। 

इस नवरात्रि पर मै भी 9  दिन के व्रत रख रखा हूँ ।  मेरी देवी में भारी आशक्ति है ।  मेरी कामना है कि  देवी माँ भारत की पुण्य भूमि पर पैदा होने वाले हर हिंदुस्तानी का कल्याण करें ।  मुझे उम्मीद है कि  ऐसा होगा भी ,क्योंकि हमारी देवियाँ नेताओं की तरह हिन्दू-मुसलमान नहीं देखतीं कल्याण करते वक्त। हमने जितनी भी किम्वदंतियां या लोक कथाएं पढ़ी हैं उनमें  किसी में भी किसी देवी ने किसी खान  साहब का वध नहीं किया। उन्होंने महिषासुर को मारा। मुसलमानों में भी शैतान के बच्चे पैदा होते हैं जो आतंकवादी हो जाते हैं लेकिन उनका नाश करने के लिए देवियों ने दूसरी व्यवस्था की है। हिन्दुओं में भी शैतान होते हैं ,वे भी आदमी तो आदमी इमारतों और कब्रों तक को जमीदोज कर देते हैं ,लेकिन उनका इलाज हमारी देवियों के पास नहीं  है। 

चूंकि  हमारे सनातनियों को अब विक्रम सम्वत में आस्था है इसलिए उन्हें इस नववर्ष की बधाइयां ,चूंकि आज ही ईद है इसलिए मुसलमानों को ईद मुबारक और म्यांमार के भूकंप पीड़ितों को अपनी हार्दिक संवेदनाएं देते हुए मै अपने आपको खुशनसीब समझता हूँ क्योंकि आज से 9  दिन तक मुझे शक्ति की आराधना की छूट है।  मै कमरे में ,घर की छत पर या सड़क पर ,कहीं भी आराधना कर सकता हू।  तमाम पाबंदियां  तो विधर्मीयों  के लिए हैं।  वे भारतीय होकर भी हमारे लिए प्रवासी हैं। 

@ राकेश अचल

शनिवार, 29 मार्च 2025

अमर सिंह राव दिनकर दतिया जिला अध्यक्ष , प्रेम नारायण आदिवासी प्रदेश सचिव बने

 ग्वालियर । दलित  आदिवासी महापंचायत के संरक्षक डॉक्टर जबर सिंह अग्र के निर्देशानुसार एवं वरिष्ठ समाजसेवियों की अनुशंसा पर अमर सिंह राव दिनकर को दतिया का जिला अध्यक्ष एवं प्रेम नारायण आदिवासी को प्रदेश के सचिव पद पर प्रदेश अध्यक्ष महेश मदुरिया ने मनोनीत किया है। 

  मनोनीत होने पर दलित आदिवासी महापंचायत  (DAM-दाम) मध्य प्रदेश के साथियों ने हर्ष व्यक्त किया। प्रदेश अध्यक्ष महेश मदुरिया ने बताया की आज प्रदेश एवं देश में अनुसूचित जाति -जनजाति गरीबों के ऊपर हो रहे अन्याय अत्याचार शोषण एवं हक अधिकारों के लिए हम संगठित होकर , आवाज़ उठाएं और संवैधानिक तरीके से इन वर्गों को न्याय दिलाने का कार्य करना चाहिए ।

 दलित आदिवासी महापंचायत (दाम) एक गैर राजनीतिक सामाजिक संगठन है हम सभी अनुसूचित जाति- जनजाति से अनुरोध करते हैं कि इस विषम परिस्थिति में संगठन से जुड़कर देश एवं प्रदेश के सामाजिक ,आर्थिक, शैक्षणिक विकास उन्नति के लिए हमें आगे आना चाहिए हमें अपने महान संतों एवं महान पुरुषों तथा हमारे बुजुर्गों बुद्धिजीवियों के सपनों को साकार करने के लिए आगे आगे आए और पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से मानवीय आधार पर कार्य करें। 

  अमर सिंह राव दिनकर दतिया जिला अध्यक्ष में प्रदेश सचिव प्रेम नारायण आदिवासी के बनने पर हर्ष व्यक्त करने वालों में सर्वश्री संभागीय अध्यक्ष हाकिम सिंह चौकोटिया जी ग्वालियर के जिला अध्यक्ष सोलंकी एवं कार्यकारी अध्यक्ष सी एल बरैया जी भिंड के जिला अध्यक्ष श्री बाबूराम गोयल ,शिवपुरी के जिला अध्यक्ष डॉक्टर रामदास माथोरिया जी सागर के जिला अध्यक्ष जीवनलाल अहिरवार जी, कटनी के जिला अध्यक्ष नोने सिंह गौर आदिवासी ,पन्ना के जिला अध्यक्ष तिलक वर्मा जी, छिंदवाड़ा के जिला अध्यक्ष श्री डोडियार जी, अमर सिंह चौहान प्रिंस गोड़िया आदि को बनाने पर हर्ष व्यक्त किया। 

कांपती धरती और हांफता सूर्य


म्यांमार में धरती काँपी तो डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मौत का शिकार हो गए और हजारों लोग घायल हो गए ,दूसरी  तरफ दुनिया ने 29  मार्च को साल के पहले सूर्यग्रहण का सामना किया ।  कहीं सूरज हांफता नजर आया तो कहीं इसके दर्शन नहीं हुए। भारत में सूर्यग्रहण नजर नहीं आया,आता भी कैसे ,यहां तो सूर्य को ग्रहण लगे एक दशक से जायदा बीत चुका है। प्रकृति में हो रही इस हलचल के बारे में हम कुछ सोच नहीं पा रहे हैं ,क्योंकि हमारे सामने जेरे बहस दूसरे मुद्दे हैं। 

भूकंप को पुरबिया भू-डोल कहते है।  दो फीसदी से ज्यादा लोग इसे ' अर्थक्वेक ' कहते हैं क्योंकि उन्हें हिंदी नहीं आती या हिंदी बोलने में तकलीफ होती है। लेकिन बहस का मुद्दा भाषा नहीं आपदा है।  म्यांमार में आए भूकंप से हुयी तबाही हृदयविदारक है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है कहना कठिनहै। हम क्या, कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि ये भूकंप क्यों आया या ये सूर्यग्रहण क्यों लगा ? इस बारे में विज्ञान की अपनी परिभाषाएं हैं और इन्हीं पर हम भरोसा करते आये है। हमारे पास भूकंप की आहट सुनने की मशीने है।  भूकंप की तीव्रता को झेलने वाली तकनीक  भी है ,किन्तु  सब असफल साबित होती है। जनहानि भी करता है भूकंप और धनहानि भी। 

म्यांमार में शुक्रवार आए तेज भूकंप से भीषण तबाही हुई है. इस आपदा से अब तक 140 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 700 से ज्यादा घायल बताए जा रहे हैं। भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.7 रही।  जिसका असर पड़ोसी देश थाईलैंड में भी देखने को मिला है।  राजधानी बैंकॉक की एक 30 मंजिला निर्माणाधीन इमारत भूकंप के झटके से जमींदोज हो गई जिसमें 8 लोगों मौत हो चुकी है. इसके अलावा 100 ज्यादा लोगों के इमारत के मलबे में दबे होने की आशंका है। इस भूडोल की वजह से हमने बहुमंजिला इमारत पर बने स्विमिंग पूल को जाम की तरह छलकते  देखा है। इस आपदा के शिकार लोगों के प्रति हमारी हार्दिक सवेदना है। आखिर म्यांमार हमारा पड़ौसी मुल्क है ,ये बात और है कि  म्यांमार के रोहिंगिया मुसलमानों से हमारी सरकार हमेशा   परेशान रहती है। 

अब बात करें सूर्यग्रहण की।  वर्ष 2025 का पहला सूर्य ग्रहण 29 मार्च को आंशिक रूप में होगा। नासा के अनुसार यह आंशिक सूर्य ग्रहण यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका तथा आर्कटिक के कुछ क्षेत्रों में देखा जा सकेगा। भारत में यह नहीं दिखाई दिया  क्योंकि इस दौरान चंद्रमा की छाया भारतीय उपमहाद्वीप तक नहीं पहुंचेगी।सूर्य और चन्द्रमा और धरती के बीच ये छाया युद्ध आज का नहीं है।  बहुत पुराना है।  हमारे पास तो इसे लेकर बाकायदा दंतकथाएं हैं ,आख्यान हैं। और कहावतें भी। हम सनातनी लोग हैं। आज भी इन दंतकथाओं से बाहर नहीं आये हैं और न आना चाहते हैं ,क्योंकि इन्हीं में सुख है। 

कहावतों की बात करें तो भारत में ग्रहण केवल सूर्य या चन्द्रमा को ही परेशान नहीं करता बल्कि राजनीति को,धर्म को,अर्थव्यवस्था को और आम नागरिकों को भी परेशान करता है।  आजकल भारत भूकंप से महफूज है लेकिन सियासी सूर्यग्रहण से अपने आपको नहं बचा सका।  भारत की समरसता,धर्मनिरपेक्षता ,सम्प्रभुता, सभी को ग्रहण लगा है साम्प्रदायिकता का,संकीर्णता का ,धर्मान्धता का। हमारे पास पहले ये सब चीजें  नहीं थी ।  ये सियासी ग्रहण का ही उत्पाद हैं और अब इनका असर  दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है क्योंकि भांग पूरे कुएं  में घुल चुकी है। सूर्यग्रहण हो या चंद्र ग्रहण सभी को प्रभावित करता है। वो हिन्दूमुस्लमान नहीं देखता ,लेकिन हमारी धर्मान्धता की सत्ता तो  हिन्दू-मुसलमान की बैशाखियों पर ही टिकी है।

हम आजादी हासिल करने के बाद ' नौ दिन चले लेकिन केवल अढ़ाई कोस ' ही चल पाए। हमारे साथ ,हमारे पहले,हमारे बाद आजाद हुए देश कहीं के कहीं पहुँच गए किन्तु हम जहाँ थे ,वहां से भी पीछे जाते नजर आ रहे हैं।  जो साम्प्रदायिकता,धर्मान्धता आजादी के समय हुए विभाजन के बाद समाप्त हो जाना चाहिए थी ,वो आज भी ज़िंदा है।  कुछ मुठ्ठीभर लोग हैं सियासत में जो आजादी के बाद पकिस्तान की तर्ज पर भारत को हिंदुस्तान बनाना चाहते थे ,उस समय जब जंगे आजादी लड़ी जा रही थी ,तब वे बिलों में थे । आज वे सब बिलों से बाहर आ चुके हैं और एक बार फिर पाकिस्तान के मुकाबले हिन्दुओं का हिंदुस्तान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि हमें चीन जैसा मजबूत और अमेरिका जैसा महान बनना था।  

भारत के संविधान ने किसी को कोशिश करने से नहीं रोका ,इसलिए देश में पहली बार सड़कों पर ईद की नमाज पढ़ने पर पासपोर्ट छीनने की धमकियां दी जा रहीं है।  नवरात्रि पर माँस  बिक्री के इंतजाम किये जा रहे है।  कब्रें और मस्जिदों को खोदने की मुहीम तो अब  पुरानी पड़ गयी है। धरती के नीचे से आने वाला भूकंप तो तबाही करके शांत हो जाता है।  प्रकृतितिक आपदा पर  पीड़ित देश को दुनिया भर   से राहत भी मिल जाती है किन्तु धर्मान्धता और संकीर्णता के भूकंप के शिकार देश को दुनिया इमदाद नहीं करती । दुनिया तमाशा देखती है ।  हमारी कूपमंडूकता पर हंसती है। लेकिन हमारे ऊपर इन सबका कोई असर नहीं पड़ता। हम अपने पांवों पर कुल्हाड़ियाँ  चलने में ही बुद्धिमत्ता समझते हैं।

हमारे पड़ौसी हमसे बिदके हुए हैं। नेपाल से हमारे रिश्ते खराब हैं। बांग्लादेश अब चीन का बगलगीर हो रहा है। बांग्लादेश के  यूसुफ़ साहब चीन की मेहमानी का मजा ले रहे हैं। हमने तो उन्हें लिफ्ट दी नहीं  ।  पाकिस्तान से तो हमारे सदियों पुराने खराब रिश्ते हैं। इन रिश्तों को जब पंडित जवाहर लाल नेहरू नहीं सुधार पाए तो पंडित   नरेंद्र मोदी की क्या बिसात ? हमारे प्रधानमंत्री ने दोस्त कम, दुश्मन ज्यादा बनाये हैं। अब हमारे हाथों में न शांति कपोत है और न निर्गुटता का कोई अस्त्र। हमारी लड़ाई हमसे ही है। इसलिए हमें किसी नए दुश्मन की जरूरत नहीं है। हम आपस में ही लड़-खप मरेंगे। हमारे पास इसका फुलप्रूफ इंतजाम है। हमने इस पर काम भी शुरू कर दिया है। अब भगवान ने भी हमारी मदद करने से इंकार कर दिया है।  भगवान कहते हैं कि  जब हमारा काम धीरेन्द्र शास्त्री जैसे बकलोल कर सकते हैं ,तो हमारा क्या काम तुम्हारे  अंगने में ?

बहरहाल आज मैंने भी बकलोल ही की है लेकिन मेरी बकलोल आपको सोचने के लिए मजबूर कर सकती है।  मुमकिन है मुझसे दूर भी कड़े,लेकिन मैं तो मुसलमान नहीं हूँ जो अपना मुल्क छोड़कर कहीं और चला जाऊं । मुसलमान भी होता तो मुल्क नहीं छोड़ता ।  किसी मुसलमान ने भी इतनी तकलीफों कि बावजूद हिंदुस्तान नहीं छोड़ा है। हिंदुस्तान छोड़ने वाले तो माल्या हैं ,मोदी हैं ,जो हिन्दू हैं मुसलमान नहीं।  मैं आपसे कल फिर मिलूंगा ,किसी नए मजमून के साथ। खुदाहाफिज़। 

@ राकेश अचल

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

मुंह में राम, बगल में छुरियां आखिर क्यों ?

 
मेरे तमाम पाठक मश्विरा देते हैं कि मुझे अब भाजपा और मोदी जी को बख्श देना चाहिए ,क्योंकि ये दोनों मुझे बीमार कर सकते है।  ऐसे मित्रों को मैं अक्सर कहता हूँ कि  भाजपा और मोदी जी ने मेरी भैंस नहीं खोली,इसलिए उनसे मेरी कोई अदावत नहीं है ।  मैं इन दोनों के खिलाफ नहीं बल्कि सत्ता प्रतिष्ठान को केंद्र में रखकर लिखता हूँ ।  कल यहां कोई और होगा ,आज यहां भाजपा और मोदी जी हैं। आज भी मैं भाजपा और मोदी जी को मश्विरा देने जा रहा हूँ कि  -देश सेवा करना है तो अब ' मुंह में राम और बगल में छुरियां रखना बंद कर देना चाहिए। 

मैं न मुसलमान हूँ और न रोजा रखता हूँ ,लेकिन मैं भाजपा के इस ऐलान से खुश हुआ था कि  आने वाली ईद को मुल्क के 32  लाख मुसलमानों को ,गरीब मुसलमानों को सौगात-ऐ- मोदी बांटी जाएगी ,लेकिन मेरी ख़ुशी केवल एक दिन टिकी और उस समय काफूर हो गयी जब भाजपा शासित अनेक  राज्य सरकारों ने मुसलमानों की खुशियां  छीनने वाले फैसले कर डाले। अब या तो राज्य सरकारें माननीय मोदीजी को नीचा दिखाना चाहतीं हैं या फिर मोदी जी के इशारे पर ही मुसलमानों को दुखी करने वाले फैसले कर रहीं हैं।  

खबर हरियाणा से आयी है कि  हरियाणा सरकार ने मुसलमानों को ईद पर मिलने वाली सरकारी छुट्टी रद्द कर दी है। तर्क ये है कि   ईद की छुट्टी को गजेटेड हॉलीडे के बजाय रेस्ट्रिक्टेड हॉलीडे  किया गया है।  सरकारी अधिसूचना के मुताबिक  सप्ताहांत  होने के चलते शनिवार और रविवार (29 और 30 मार्च) को छुट्टी होगी. इसी बीच 31 मार्च (सोमवार) को फाइनेंशियल ईयर का कलोजिंग डे है. इसलिए सरकारी की ओर से यह फैसला लिया गया है ।  भारतीय रिजर्ब बैंक ये कदम उठती है तो समझ आता है ,उसने ये कदम उठाया भी है। भारतीय रिजर्व बैंक  ने अपने सभी बैंक को 31 मार्च को काम करने और सभी सरकारी लेन-देन पूरा करने के निर्देश दिए हैं. यानी ईद की छुट्टी सस्पेंड कर दी गई है और सभी बैंकिंग सुविधाएं जारी रहेंगी लेकिन हरियाणा को छोड़ किसी और सूबे ने ये अक्लमंदी नहीं दिखाई। 

मोदी जी कितने उदार हैं लेकिन उनकी पार्टी की सरकारें उतनी ही कठोर हो रही है।  मोदी जी के चिर प्रतिद्वंदी माने जाने वाले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार और नौकरशाही हरियाणा से भी आगे निकल गयी। मेरठ में पुलिस प्रशासन ने ईद की नमाज को लेकर सख्त आदेश जारी करते हुए सड़कों पर नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी है। इस आदेश पर अब प्रदेश में सियासत हो रही है। एनडीए की सहयोगी और केंद्र सरकार में मंत्री जयंत चौधरी ने मेरठ पुलिस के इस फैसले का विरोध किया है और उसकी तुलना ऑरवेलियन 1984 की पुलिसिंग से की है। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर ये पोस्ट किया है। संभल में पीस कमेटी की बैठक बुलाकर सबको नसीहत दी गई है कि कोई मस्जिद के अलावा कहीं नमाज़ पढ़ता हुआ दिखाई दिया, तो सख्त एक्शन होगा। 

हरियाणा और उत्तर प्रदेश से भी एक कदम आगे 27  साल बाद दिल्ली में आयी भाजपा की सरकार नवरात्रि पर दिल्ली  में मांस की दुकानें बंद करने पर आमादा है। दिल्ली में मीट और मछली की बिक्री को लेकर सरकार ने बड़ा फैसला किया है। दिल्ली में गैरकानूनी रूप से मीट, मछली बेचने पर रोक लगाई गई है। दिल्ली सरकार में मंत्री प्रवेश वर्मा ने इस संबंध में अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। इस संबंध में प्रवेश वर्मा ने कहा कि राजधानी में अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वह गैरकानूनी मीट, मछली बेचने वाली यूनिट को खत्म करें। मंत्री प्रवेश वर्मा ने साफ कहा कि कोई भी व्यक्ति गैर-कानूनी रूप से मीट और मछली नहीं बेचना चाहिए।अब इस फैसले से कौन खुश होगा और कौन नहीं ये सब बताने की जरूरत नहीं है। यानि इस बार भले ही मोदी जी की तरफ से गरीब मुसलमानों को सौगात बांटने का ऐलान किया गया हो किन्तु भाजपा शासित सरकारों ने तमाम तरह की पाबंदियां लगाकर ईद का मजा तो पहले से ही किरकिरा कर दिया है। 

इस मुल्क में सड़क पर कांवड़ यात्राएं वर्षों से निकल रहीं है।  धार्मिक जुलूस निकाले  जाते है ।  हर धर्म के लोग जुलूस निकलते हैं लेकिन परेशानी अलविदा की नमाज से है। अलविदा की नमाज से क़ानून और व्यवस्था की स्थिति खराब होती है। अरे मिया !  सड़क पर नमाज कोई पूरे दिन  तो नहीं होती ! कुछ देर के लिए उसी तरह ट्रेफिक को मोड़ा जा सकता है जिस तरह मंत्रियों की सभाओं के लिए मोड़ा जाता है ,लेकिन ये कसरत कौन करे? क्यों करे ? मुसलमान इस मुल्क के नागरिक थोड़े ही हैं।  सारी पाबंदियां उन्हीं के लिए हैं। बहुसंख्यक महाराष्ट्र के अहिल्यनगर में ख्वाजा चिश्ती की दरगाह पर बवाल काट सकते हैं,वहां भगवा फहरा सकते हैं।  शायद यही  गजबा -ऐ-हिन्द का जबाब भगवा -ऐ- हिन्द है और वो भी सरकार की तरफ से। गनीमत है कि  ईद के चाँद पर हमारी भाजपा सरकार का नियंत्रण नहीं है अन्यथा ये भी मुमकिन था की चाँद को या तो निकलने ही नहीं दिया जाता या फिर उन मोहल्लों में चादरें तान दी जातीं हैं जहाँ चाँद देखना एक रिवायत है। 

 @ राकेश अचल

गुरुवार, 27 मार्च 2025

अब राणा सांगा को लेकर जंग का आगाज

हमारा मुल्क बिना  जंग के रह नहीं सकता ।  हम बमुश्किल औरंगजेब से फ़ारिग हुए थे कि गुरु रामजीलाल सुमन ने राणा सांगा को मैदाने जंग में ला खड़ा किया। राणा सांगा की और से अब ये लड़ाई करणी सेना लड़ रही है और सुमन की और से अखिलेश यादव की यादवी सेना।  हम आम जनता मूकदर्शक  बने इस  जंग को देख रहे हैं।  हम न इस जंग का हिस्सा बन सकते हैं और न हमारी  इस जंग का हिस्सा बनने में कोई दिलचस्पी है। हाँ हमारी दिलचस्पी इस बात में जरूर है कि  उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे की उत्तरदायी सरकार कैसे एक निर्वाचित संसद को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाती ।
राणा सांगा के बारे में जानने से पहले आप रामजी लाल सुमन के बारे में जान लीजिये। कोई 48 साल का संसदीय अनुभव रखने वाले रामजीलाल सुमन चंद्रशेखर से लेकर मुलायम सिंह जैसे कद्दावर नेताओं के भरोसेमंद और विश्वसनीय साथ ही रहे हैं।   25 जुलाई 1950 को हाथरस जनपद के बहदोई गांव में  जन्में रामजीलाल सुमन  की प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई. उनकी माध्यमिक शिक्षा हाथरस में और उच्च शिक्षा आगरा कॉलेज में हुई।  समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामजीलाल सुमन पहली बार 1977 में लोकसभा पहुंचे थे। यानि हमारे सुमन जी हमारे प्रधानमंत्री जी की उम्र के हैं और उनसे पुराने सांसद है।  उन्हें इतिहास का ज्ञान भी कम नहीं है।
आपको बता दें कि  रामजीलाल सुमन ने राज्यसभा में कहा था, अगर मुसलमानों को बाबर का वंशज कहा जाता है, तो हिंदू गद्दार राणा सांगा के वंशज होने चाहिए। हम बाबर की आलोचना करते हैं, लेकिन राणा सांगा की आलोचना क्‍यों नहीं करते ? सुमन ने सवाल किया था,जंगे ऐलान नहीं।  कोई राजपूत ,कोई हिन्दू हृदय सम्राट सुमन कि सवाल का शास्त्रोक्त जबाब देकर मामला शांत कर सकता था ,लेकिन दुर्भाग्य की जबाब देने कि लिए पढ़े-लिखे लोगों का टोटा है।  सपा अध्‍यक्ष अखिलेश यादव ने भी सुमन के इस बयान का समर्थन किया है। इसके बाद विवाद शुरू हो गया है। सुमन ने यह भी कहा था कि आखिर बाबर को भारत कौन लाया। यह राणा सांगा ही थे जिन्‍होंने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए आमंत्रित किया था।अब गवाही कि लिए न इब्राहिम लोदी आ सकते हैं और न राणा सांग।  बाबर को भी समन नहीं किया जा सकता। भरोसा इतिहास की किताबों पर ही करना होगा।
रामजीलाल सुमन के बयान के बाद करणी सेना भड़क गयी।  ये सेना राणा सांगा के समय में थी या नहीं ,मै नहीं जानता ,लेकिन मुझे पता है कि  ये वो सेना है जो एक फिल्म का विरोध करने के लिए सड़कों पर पहली  बार उतरी थी ।  ये सेना भारतीय सेना की कोई ब्रिगेड है या नहीं  ये भी मैं नहीं जानता। हमारे देश में भारतीय सेना के अलावा भी अनेक सेनाएं हैं।  इन सेनाओं पर कोई लगाम नहीं लगाता ।  एक जमाने में बिहार में ऐसी निजी सेनाओं का बहुत बोलबाला था ,लेकिन बाद में सबकी बोलती बंद होगयी। उत्तरप्रदेश में करणी सेना की बोलती बंद नहीं हुई क्योंकि सूबे की सरकार ने इस सेना को तोड़फोड़ करने के लिए अधिमान्य कर रखा है अन्यथा किसी भी निजी सेना की क्या मजाल कि  वो 75  साल के एक प्रतिष्ठित नेता के घर को घेर कर वहां तोड़फोड़ करे और पुलिस को भी घायल कर दे ?
लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन का अधिकार सभी को है। करणी सेना को भी ,लेकिन विरोध प्रदर्शन के तरीके भी हैं ।  सुमन ने यदि कुछ गलत कहा है तो उनकी मुखलफ़्त राज्य सभा  में की जाये। क्या करनी सेना की और से एक भी राजपूत राज्य सभा में नहीं है जो खड़े होकर सुमन के बयान का विरोध कर सके ? करणी सेना को राजपूती अस्मिता की इतनी ही फ़िक्र है तो उसे पुलिस थाने जाना चाहिए अदालत जाना चाहिए ,लेकिन इतना ठठकर्म कौन करे। सड़क पर आकर जंग लड़ना ज्यादा आसान है।  कुणाल कामरा के खिलाफ महाराष्ट्र में इसी तर्ज पर शिवसेना [एकनाथ शिंदे समूह ] ने भी लड़ाई लड़ी।  क़ानून हाथ में लेने में उतनी मशक्क्त नहीं करना पड़ती जितनी की कानूनी रूप से जंग लड़ने में करना पड़ती है। शिंदे समर्थकों को कुणाल कि मुंह से ' गद्दार ' शब्द बुरा लगा लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के मुंह से नहीं। शिंदे का  कोई  समर्थक उद्धव के घर तोड़फोड़ करने नहीं गया। ठीक इसी तरह रामजीलाल सुमन के मुंह से गद्दार सशब्द सुनकर करनी सेना की आत्मा घायल हो गयी।
चूंकि हमारा इस जंग से सीधे कोई सरोकार नहीं है इसलिए हम तमाशबीन की हैसियत में है।  तमाशबीन या तो तालियां बजाते हैं या फिर सीटियाँ। तमाशा समाप्त होने पर पान चबाते या गुटका खाते हुए अपने घरों को लौट जाते हैं।  राणा सांगा बनाम रामनीलाल सुमन की जंग में भी यही सब होता दिखाई दे रहा है।  सत्ता पोषित हिंसा के हम सब मूक दर्शक हैं। हमारा क़ानून भारहीन है ,उसे कोई भी अपने हाथ में ले सकता है हालांकि हमारी बहादुर पुलिस क़ानून को बचाने के लिए करणी सेना से पिट भी लेती है।  पुलिस  बनाई ही गयी है पिटने-पीटने के लिए। जान जैसा मौक़ा होता है ,तब तैसा हो जाता है।
राणा सांगा हमारी राजयसभा में उसी तरह आये जैसे औरंगजेब और उनकी कब्र आयी थी।  मरे हुए लोगों को संसद में आने -जाने से कोई रोक नहीं सकता।  ये बिना चुनाव लड़े संसद में आ-जा सकते हैं और हंगामा खड़ा कर वापस भी लौट सकते हैं।राणा सांगा को भी हमने उसी तरह नहीं देखा जिस तरह की औरंगजेब को नहीं देखा था।  राणा की बहादुरी के किस्से हमने भी पढ़े हैं,सुने हैं लेकिन देखे नहीं हैं। सुमन ने भी नहीं देखे होंगे और करणी सेना ने भी। सबने उनके बारे में वैसे ही पढ़ा और सुना होगा जैसे की दूसरे नायकों,खलनायकों,अधिनायकों के बारे में पढ़ा  और सुना जाता है।
अतीत के किरदारों को लेकर हमारी भावनाएं आग की तरह क्यों भडक़तीं हैं ,इसके बारे में शोध होना चाहिए।  हमारी भावनाएं छुईमुई   हैं जो हाल कुम्हला जातीं हैं,आहत हो जातीं है।  मजे की बात ये है कि आहत भावनाओं का कोई भेषजीय उपचार नहीं है ।  आहत भावनाएं केवल खून-खराबा और अराजकता पैदाकर अपना इलाज खुद करना चाहती हैं। रामजीलाल सुमन पर हमला कर, करनी सेना ने हिन्दू-मुसलमान नहीं बल्कि हिन्दू -बनाम हिन्दू संघर्ष को न्यौता दिया है ।  एक तरफ करणी सेना के हिन्दू हैं   तो दूसरी तरफ वे हिन्दू हैं  जो अनुसूचित जाति के कहे और माने जाते हैं। हमारी सरकार भी यही चाहती है  कि  लोग इसी तरह से अपनी धार्मिक,जातीय भावनाओं को आहत करते-करते रहें और लड़ते-लड़ाते रहें। लेकिन मैं इसके खिलाफ हूँ ,क्योंकि इस तरह की गतिविधियों से हमारे विश्वगुरु  बनने के अभियान में खलल पड़ता है।
काश कि  इस तरह के विवादों में पीड़ित पक्ष   के रूप में खुद औरंगजेब  या राणा सांगा की आत्माएं प्रकट होकर जंग लड़तीं। मुमकिन है कि  वे लड़ती ही नहीं क्योंकि वे दोनों तो अब एक ही जगह पर पहुँच चुकी है।  मरी हुई आत्माएं कभी ,किसी से लड़ने नहीं आतीं ठीक वैसे ही जैसे नेहरू और इंदिरा भाजपा और माननीय मोदी जी से लड़ने नहीं आते। इसलिए हे भारतीय नागरिको ,जागो ! और ,बिना बात के बवाल मत काटो ।  बवाल काटना भी है तो उन मुद्दों पर काटो जो आपके भविष्य से जुड़े हुए हैं। वर्तमान से जुड़े हैं। अतीत के लिए वर्तमान से लड़ना कतई बुद्धिमत्ता नहीं है।
@ राकेश अचल  

बुधवार, 26 मार्च 2025

गुडी पडवा कालयुक्तनाम नवसंवत्सर 2082 : 30 मार्च को मनाया जाएगा

ग्वालियर 26 मार्च । गुडी पडवा कालयुक्तनाम नवसंवत्सर 2082 , 30 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। इससे पूर्व सांस्कृतिक कार्यक्रम शहर के विभिन्न स्थानों पर आयोजित किए जा रहे हैं। आज रॉक्सी पुल पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। 

गुडी पडवा कालयुक्तनाम नवसंवत्सर 2082 30 मार्च को मनाया जाएगा। इससे सांस्कृतिक कार्यक्रम शहर के विभिन्न स्थानों पर प्रतिदिन सायं 6 बजे से आयोजित किए जा रहे हैं। जिसमें 27 मार्च को छत्री मंडी, 28 मार्च को जीवाजी चॉक बाडा पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम लोकगीत, भरत नाट्यम, बालिकाओं द्वारा नृत्य, काव्य गोष्ठी, शास्त्रीय संगीत आदि आयोजित किए जा रहे हैं। 

इसके साथ ही 29 मार्च को पूर्व संध्या वर्तमान पिंगलनाम संवत्सर 2081 विदाई समारोह सायं 6ः30 बजे से जलविहार स्थित मनाया जाएगा। इस अवसर पर ध्येय गीत, काव्य गोष्ठी, शास्त्रीय वादन, संगीत सरिता नवराग मंजरी, शास्त्रीय नृत्य, ओडिसी नृत्य आदि कार्यक्रम आयोजित किए जाएगें। 

मुख्य कार्यक्रम गुडीपडवा कालयुक्तनाम नवसंवत्सर 2082 स्वागत महोत्सव 30 मार्च को जलविहार पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम कर मनाया जाएगा। 

'गजवा -ए- हिन्द' बनाम 'सौगात -ए - मोदी '

आज मै खुले दिल से भाजपा के दुस्साहस को सलाम करता हूँ ।  आप कहेंगे कि सलाम क्यों,प्रणाम क्यों नहीं ? तो भाई केवल भाषा का फर्क है,भाव का नहीं। भाजपा एक तरफ हाल के अनेक चुनावों में देश के मुसलमानों  को मंगलसूत्रों का लुटेरा कह चुकी है। उनके खिलाफ ' बंटोगे   तो कटोगे ' का नारा लगा चुकी है ।  मुसलमानों के खिलाफ आधे हिंदुस्तान में भारतीय न्याय संहिता के बजाय ' बुलडोजर संहिता ' का खुले आम इस्तेमाल कर चुकी है ,बावजूद इसके आने वाली ईद पर भाजपा मुसलमानों के बीच ' सौगात-ए-मोदी ' लेकर पहुँचने वाली है।ये सौगात मसलमानों के ' गजवा ए हिन्द ' कि मुकाबले में है।  ईद पर 32 लाख गरीब मुसलमानों को 'सौगात-ए-मोदी' किट  में सेवइयां, खजूर, ड्राई फ्रूट्स, बेसन, घी-डालडा और महिलाओं के लिए सूट के कपड़े होंगे। 

सब जानते हैं कि  भाजपा और आरएसएस मुसलमान विहीन ,कांग्रेस विहीन भारत चाहते हैं  ,लेकिन वे सारा कस-बल लगाकर भी इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए। इन दोनों संस्थाओं ने जिन्दा मुसलमानों के साथ ही मर चुके औरंगजेब   की कब्र तक पर हमले कर लिए लेकिन बात बनी नही।  संघ के इंद्रेश  कुमार मुस्लिम राष्ट्रिय मंच बनाकर भी देश के मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में नहीं कर पाए किन्तु भाजपा ने हार नहीं मानी। भाजपा मुसलमानों को संसद में ' कटुआ' कहने के बाद भी सोचती है कि  गरीब   मुसलमान सेवइयां, खजूर, ड्राई फ्रूट्स, बेसन, घी-डालडा और महिलाओं के लिए सूट के कपड़े के लालच में आकर भाजपा का वोट बैंक बन जाएगा। उस भाजपा के साथ खड़ा हो जायेगा जो मुसलमानों को न संसद में जाने दे रही है और न विधानसभाओं में। 

भाजपा के दुस्साहस से देश की दीगर सियासी पार्टियों क सीखना चाहिए। भाजपा ने आज 25  मार्च से मोदी की सौगत वाली किट बाँटने का आगाज कर दिया है। भाजपा का कहना है कि यह योजना न केवल सहायता प्रदान करेगी, बल्कि मुस्लिम समुदाय को ‘चंद दलालों और ठेकेदारों’ के प्रभाव से बाहर निकालने में भी मदद करेगी।इसकी शुरुआत नई दिल्ली के गालिब अकादमी से हो रही है . इसके तहत हर एक भाजपा कार्यकर्ता 100 लोगों से संपर्क करेगा. भाजपा का दावा है कि यह कदम सामाजिक समावेश और गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक बड़ा प्रयास है. इस पहल को बिहार सहित कई राज्यों में लागू किया जाएगा, जहां भाजपा की मजबूत उपस्थिति है। 

 सौगात ए मोदी अभियान भारतीय जनता पार्टी द्वारा शुरू किया गया एक अभियान है। इसका उद्देश्य है मुस्लिम समुदाय के बीच कल्याणकारी योजनाओं को बढ़ावा देना और भाजपा और एनडीए के लिए राजनीतिक समर्थन जुटाना है।  यह अभियान खास इसलिए भी है क्योंकि यह रमजान और ईद जैसे अवसरों पर केंद्रित है। भाजपा जहाँ एक और सम्भल और ज्ञानवापी जैसी मस्जिदों को खोदने पर आमादा हैवहीं दूसरी और भाजपा ने 3 हजार मस्जिदों के साथ सहयोग करने की योजना बनाई है। आप इसे केंद्र सरकार का  समावेशी  निर्णय भी कह सकते हैं और राजनीति का हिस्सा हिस्सा भी कह सकते हैं  हैं। 

दुनिया और भारत का मुसलमान जानता है कि  भाजपा और भाजपा के प्रचारक से प्रधानमंत्री बने मोदी जी मुसलमानों की टोपी से चिढ़ते है।  प्रधानमंत्री आवास पर होने वाली इफ्तार पार्टियों को वे बंद करा चुके हैं ,लेकिन अचानक बिहार जीतने के लिए अब  भाजपा और संघ दोनों ने अपना रंग बदल लिया है। बिहार में अचानक  पटना में अलग-अलग राजनैतिक दलों द्वारा इफ्तार का आयोजन किया गया । भाजपा के सहयोगी  चिराग पासवान द्वारा भी इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया ,लेकिन कई मुस्लिम नेताओं ने इससे  दूरी बना रखी। चिराग पासवान कहते घूम रहे हैं  कि केंद्र सरकार मुसलमानों के लिए लगातार काम कर रही है लेकिन उस हिसाब से मुस्लिम समुदाय के लोगों का वोट एनडीए को नहीं मिल रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि मुसलमानों का इस्तेमाल केवल वोट बैंक की तरह किया गया है। 

सौगात-ए-मोदी पर प्रतिक्रियाएं आने लगीं हैं।  कोई इसे मुसलमानों के साथ छल बता रहा है तो कोई इसे चुनावी दांव बता रहा है. अखिलेश यादव समेत विपक्ष के कई नेता भाजपा की इस योजना पर बिफरे हुए हैं. तृमूकां  सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने तो इस योजना को मुसलमानों के साथ मजाक बताया है। बीजेपी ने सौगात-ए-मोदी की शुरुआत दिल्ली से की है, मगर इसकी सबसे ज्यादा चर्चा बिहार में है।  क्योंकि बिहार में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा  ने ये दांव चला है। हालांकि, विपक्ष के नेता ये भी कहते हैं कि ऐसी सौगातों से भाजपा  को बिहार में कोई फायदा नहीं मिलने वाला. जबकि भाजपा का कहना है कि गरीब अल्पसंख्यक भी खुशी से अपना पर्व मनाएं इस लिए ये योजना चलाई गई है। 

आप भाजपा से और अपने आपसे सवाल कर सकते हैं कि  भाजपा को अचानक गरीब मुसलमानों की चिंता क्यों सताने लगी ? भाजपा मुसलमानों को आतंकित कर देख चुकी है लेकिन उसे लगता है कि  बात अभी बनी नहीं है इसलिए अब मुसलमानों की गरीबी का लाभ उठाने के लिए उन्हें मोदी जी की और से सौगात बांटी जा रही है।  ये सौगात मोदी जी के वेतन से नहीं जा रही ।  भाजपा के चंदे से जुटाए करोड़ों रुपयों से नहीं दी जा रही ।  ये सौगात सरकारी पैसे से दी जा रही है। उस सरकारी पैसे से जो देश के आम करदाताओं का पैसा है। यानि ये  सौगात भी एक तरह का फ्रीबीज है। जिस देश में 80  करोड़ से ज्यादा लोग दो वक्त की रोटी के लिए सरकार के मोहताज हैं उस मुल्क में 32  लाख गरीब मुसलमानों को रिझाना कोई कठिन काम नहीं है। 

भाजपा का ये कदम हालाँकि साफतौर पर सियासी है लेकिन मैं इसकी कामयाबी की कामना करता हूँ। कम से कम गरीब मुसलमानों को कुछ तो मिलेगा।  किन्तु मुझे इस बात पर संदेह बह है कि  मुल्क का गरीब मुसलमान ईद जैसे पाक त्यौहार पर कोई सियासी सौगात कबूल कर अपने ईमान ,इकबाल का सौदा करेगा ? इस देश के मुसलमानों के मन में भाजपा को लेकर जो संदेह हैं वे मोदी जी की छह सौ रुपल्ली की सौगात से दूर होने वाले नहीं हैं।  फिर भी कोशिश तो एक आशा जैसी है ही। कांग्रेस समेत दूसरे तमाम दलों के पास मोदी की इस सौगात के जबाब में कोई और महंगी सौगात है क्या ? भारत में मुस्लिम आबादी अभी 20  करोड़ है । जाहिर है की भाजपा ने मोदी जी की  सौगात पूरे देश के मुसलमानों के लिए तैयार नहीं की है।  ये सिर्फ ३२ लाख मुसलमानन के लिए है जो बिहार में रहते हैं।  

@ राकेश अचल

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