मंगलवार, 13 मई 2025

जबाब न देने में सिद्धहस्त हो गए हैं मोदी जी

 

पहलगाम में आतंकियों द्वारा किए गए नृशंस हत्याकांड के बाद जबाब में भारत की ओर से किए गए आपरेशन सिंदूर और तीन दिन बाद हुए सीजफायर के बीच एक पखवाडे में जितने भी सवाल, शंकाएं, कुशंकाएं जन्मी उन सबका जबाब सुनने के लिए देश और दुनिया बेताब थी. भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी 12 मयी 2025 की रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करने प्रकट भी हुए, लेकिन उन्होने हमेशा की तरह 'सीजफायर का सच ' देश  और दुनिया से छुपा लिया.

माननीय मोदी जी के बहुप्रतीक्षित संबोधन में न कोई लय थी न आलाप. कोई उतार -चढाव, कोई मुरकी, कोई नोम- तोम भी नहीं था. मैने मोदी जी का संबोधन दत्तचित होकर सुना क्योंकि मै 22 अप्रैल से ही मोदी जी से बोलने का आग्रह कर रहा था. मै क्या पूरा देश मेरी तरह आग्रही था. लेकिन मोदी जी जब बोले तो ' खोदा पहाड, निकला चूहा' वाली कहावत चरितार्थ हो गई. यानि मोदी जी सेना और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं से ज्यादा कुछ नहीं बोले. हाँ उन्होने देश को ये आश्वासन  अवश्य दिया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष से पीछे नहीं हटेगा.

पाकिस्तान के साथ आपरेशन सिंदूर ओर उसकी कामयाबी को भारत की माताओं, बहनों और बेटियों को समर्पित करने के साथ ही सेना की मुक्तकंठ से सराहना करते मोदी जी अच्छे लगे, लेकिन भारत पाकिस्तान के बीच सीजफायर पर छायी धुंंध मोदी जी ने साफ नहीं की. उन्होने नहीं बताया कि सीजफायर का पाकिस्तानी प्रस्ताव आनन - फानन में कैसे स्वीकार कर लिया गया जबकि हमारी सेनाओं को आतंकियों के पाकिस्तान स्थित 11और ठिकाने नेस्तनाबूत करना थे. सेना अपने काम में प्राणपन से लगी थी, किंतु जैसे सेना के हाथ खोले गये थे वैसे ही अचानक उन्हें बांध दिया गया.

हम न जंग के खिलाफ हैं न युद्धविराम के. दोनों होना चाहिए. सवाल तो ये था कि युद्धविराम भारत का अपना निर्णय था या दोनों देशों पर चौधरी अमेरिका का दबाब इसके पीछे था? माननीय मोदी जी ने इस सवाल को कडवे घूंट की तरह पी लिया. उन्होने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप साहब के दावे के बारे में एक शब्द नहीं कहा. मोदी जी ने देश को आश्वस्त किया कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष को लेकर कोई भारत को ब्लैकमेल नहीं कर सकता. हमें यानि देश को मोदी जी पर पूरा भरोसा है लेकिन वे अमेरिका से ब्लैकमेल होते दिखाई दे रहे हैं. पाकिस्तान अमेरिका के दबाब में युद्धविराम पर राजी हो ये तो मुमकिन है लेकिन भारत ऐसा क्यों कर बैठा ये यक्ष प्रश्न है.

माननीय प्रधानमंत्री जी ने फिलहाल 'सीजफायर का सच' छिपा लिया है लेकिन आज नहीं तो कल उन्हे ट्रंप के दावे पर जबाब देना ही पडेगा.संसद यही सवाल करेगी जो जनता कर रही है, विपक्ष कर रहा है. माननीय मोदी जी से तो ज्यादा साहसी कांग्रेस के आधे भाजपाई हो चुके सांसद शशि थरूर निकले. थरूर ने अमेरिका की भूमिका को 'हस्तक्षेप'  न कह कर 'रचनात्मक सहयोग' कहा.मुमकिन है कि मोदी जी भी यही कहना चाहते हों किंतु पहलगाम में रक्षा प्रबंधों में कमी का अपराध बोध इसके आडे आ गया हो.लेकिन मोदी जी को बोलना चाहिए था.

माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश को ये भी नहीं बताया कि भविष्य में तीसरे देश के हस्तक्षेप को रोकने के लिए 1972 में हुआ लंबित शिमला समझौता बहाल होगा या उसकी जगह कोई नया समझौता वजूद में आएगा.आपको याद होगा कि इस बार मोदी जी से न किसी ने कोई सबूत मांगा है न किसी कार्रवाई का विरोध किया है. सब मोदी जी के साथ हैं फिर भी मोदी जी सीजफायर का सच छिपा रहे हैं.बेहतर होता कि मोदी जी देश को ये आश्वासन भी देते कि वे भविष्य में आपरेशन सिंदूर की कामयाबी का राजनीतिक फायदा नहीं उठाएंगे.पुलवामा के बाद मोदी जी ऐसा कर चुके हैं.

माननीय मोदी जी और उनके भक्त बुरा न मानें तो मै कहना चाहूंगा कि राष्ट्र को संबोधित करते हुए मोदी जी की आंखों में एक विजेता जैसी चमक, शब्दों में ओज का बेहद अभाव था. पूरा संदेश एक फिल्मी पटकथा जैसा था. मोदी जी देश के बजाय कैमरे की आंख में आंख डाले हुए थे, उन्हें देश की आंखों में आंखें डालकर बोलना था. सहज होकर बोलना था. सजीव (लाइव) बोलना था. इंदिरा गांधी की तरह न सही कम सेकम पंडित अटल बिहारी वाजपेयी की तरह उन्मुक्त होकर बोलना था. बहरहाल राष्ट्र फिलहाल मोदी जी के साथ है. उम्मीद है कि बिहार भी उनके साथ रहेगा और कोई सवाल सीजफायर को लेकर नहीं करेगा. नहीं पूछेगा कि ट्रंप का बच्चा क्या कहता है? 

@  राकेश अचल

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