एक तरफ तो सरकार बड़े बड़े दावे कर रही है कि देशभर में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनके गांव गंतव्य तक पहुंचाने के लिए बसों और ट्रेनों की सुविधा मुहैया कराई जा रही है. लेकिन दूसरी तरफ ऐसी ऐसी तस्वीरें हैं जो सरकार के दावों की पोल खोल रही हैं. कोई सड़क, कोई राजमार्ग, कोई राष्ट्रीय राजमार्ग ऐसा नहीं है जहां प्रवासी मजदूरों के महा पलायन की तस्वीर दिखाई न दे रही हो
मजदूरों के बीच में सत्तार मंडल भी रहते हैं. घर पश्चिम बंगाल में है और इसी महीने की 29 तारीख को सत्तार मंडल की शादी होने वाली थी. शादी के सवाल पर शरमा गए और हंसते हुए बोले-मां ने कहा था कि पैदल चले आना. शादी पहले ही तय हो गई थी लेकिन अब लगता है नहीं हो पाएगी.
सत्तार मंडल की कहानी सिस्टम पर और कड़े सवाल उठाती है. सत्तार ने बताया कि बंगाल जाने के लिए रजिस्ट्रेशन किया था. ट्रेन भी आई थी और जाने के लिए उनका नाम भी था. लेकिन सिर्फ वह कागज पर बंगाल तक पहुंच गए. सत्तार ने बताया, "जाने के समय हमारे पास फोन आया कि आज नहीं कल जाना है. क्योंकि ममता बनर्जी ने मना कर दिया. हम कमरे पर लौट आए और सुबह 11:00 बजे की ट्रेन थी.
सत्तार मंडल ने बताया, जब ट्रेन चली गई तो मेरे पास बंगाल से फोन आया और पूछ रहे हैं कि मैं कहां तक पहुंचा. अजमेर और कोलकाता से फोन आया. लेकिन डीएम ऑफिस में सुनवाई नहीं हुई. ट्रेन आई थी और कागज में हम लोग बंगाल पहुंच गए. बंगाल में क्वारनटीन करने वाले बार बार फोन करके पूछ रहे हैं कि हम लोग कहां हैं? हमने उन्हें बताया कि ट्रेन हमें लेकर ही नहीं गई." सत्तार मंडल ने अपना दुखड़ा रोते हुए बताया कि कैसे उनके सामने दूसरे लोग पुष्कर से निकल गए लेकिन वह नहीं जा पाए. उनकी आंखें नम हो गईं.
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