बुधवार, 11 जून 2025

बिहार : टिमटिमाते चिराग में रोशनी नहीं


अपने जमाने के मौसम विज्ञानी रानीतिज्ञ कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान के पुत्र लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री चिराग पासवान  बिहार की राजनीति में अपना चिराग जलाना चाहते हैं. चिराग ने  2025 बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की पुष्टि  कर दी है.बिहार की राजनीति में चिराग की घोषणा से हलचल तो हुई है लेकिन बिहार की चुनावी आंधी में अपनी लोकप्रियता का चिराग जला पाएंगे ये कहना बहुत कठिन है 

डत रविवार को  चिराग पासवान बिहार के आरा  पहुंचे.दरअसल चिराग की रणनीति, बिहार की बदलती राजनीतिक परिदृश्य और एनडीए गठबंधन की आंतरिक राजनीति को लेकर पशोपेश बढाने वाली है. अटकलें लगाई जा रही हैं कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से कोई ठोस आश्वासन दिया होगा, अन्यथा चिराग अपना मुँह नहीं खोलते. . आज हर कोई यह सोचने को विवश है कि चिराग पासवान केंद्र में मिले हुए मंत्री पद को छोड़कर बिहार की अनिश्चित राजनीति में आखिर क्यों आना चाहते हैं? हालांकि विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्हें मंत्री पद छोड़ने की कोई जरूरत वैसे तो नहीं है. पर यदि वाकई में अगर उन्हें बिहार में विधायक बनकर राजनीति करनी है तो उनकी संवैधानिक मजबूरी होगी कि वे अपना मंत्री पद और सांसदी दोनों ही छोड़ दें.

सब जानते हैं कि भाजपा महाराष्ट्र की तर्ज पर अपनी सहयोगी जेडीयू को चकमा देकर बिहार में अपनी सरकार बनाने की फिराक में है.भाजपा ने महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को आखिर मुख्यमंत्री पद से हटाकर ही दम लिया था.

लेकिन, सवाल  ये  है कि क्या बीजेपी ऐसा चाहेगी? और ये भी महत्वपूर्ण है कि बदले में चिराग पासवान से बीजेपी की क्या अपेक्षा होगी?

बीजेपी के लिए गठबंधन सहयोगी क्या मायने रखते हैं, थोड़ा पीछे जाकर ट्रैक रिकॉर्ड देखा जा सकता है. चिराग पासवान खुद भी पांच साल पुराने भुक्तभोगी हैं. 

देखा जाये तो वो भी कुर्बानी जैसी ही रही है. एक दौर था जब वो उद्धव ठाकरे और शरद पवार की ही तरह पार्टी से भी हाथ धो बैठे थे, दिल्ली के सरकारी बंगले से भी बेदखल होना पड़ा था - और काफी इंतजार के बाद धीरे धीरे चीजें मिल पाईं. जब नीतीश कुमार को बर्बाद करने के लिए इतना झेलना पड़ा, तब तो नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बनने के लिए तो और भी बड़ी कुर्बानी देनी पड़ेगी. और बड़ी कुर्बानी तभी मानी जाएगी जब चिराग पासवान अपनी पार्टी दान में दे दें, लेकिन किसी और को नहीं, सिर्फ बीजेपी को. मतलब, बीजेपी में ही विलय कर लें. ऐसे प्रयासों की चर्चा जेडीयू को लेकर भी रही है, और वो भी दोनों तरफ से. लेकिन क्या चिराग पासवान भी तैयार होंगे? 

ये तो पूरी तरह साफ है कि यदि भाजपा ने चिराग पासवान को मोहरा बनाया तो राजद के तेजस्वी यादव की राजनीति बुरी तरह प्रभावित होगी,. तेजस्वी या तो भाजपा के साथ ही चिराग को रास्ते से हटाएं अन्यथा उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबा इंतजार और कड़ा संघर्ष भी करना होगा.

तेजस्वी यादव के लिए ये चुनाव ऐसा मौका है, जब नीतीश कुमार की उम्र और राजनीति दोनों ही ढलान पर है. जाति जनगणना भी होने जा रही है. बीजेपी की तरफ से कोई मजबूत दावेदार भी सामने नहीं आया है - और सर्वे में मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा चेहरा बन चुके हैं.  ऐसे माहौल में चिराग पासवान को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बना दिया जाता है, तो तेजस्वी यादव के लिए नये सिरे से शुरुआत करनी होगी.

चिराग पासवान राजद के तेजस्वी के हम उम्र हैं. लेकिन उनका रास्ता इतना निरापद भी नहीं है. यदि भाजपा चिराग की रोशनी में सत्ता सिंहासन हासिल करने की कोशिश करती है तो जीतन माझी भी चुप बैठने वाले नहीं हैं. वे भी मुमकिन है कि एन वक्त पर भाजपा का साथ छोडकर राजद के साथ खडे हो जाए्. माझी यदि भाजपा को मझधार में छोडकर जाते हैं तो भाजपा की मुश्किल और बढ सकती है.सवाल ये है कि क्या वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सब कुछ मौन होकर देखते रहेंगे?

सब जानते हैं कि नीतीश के पेट में दाढी है. उन्हे एकनाथ शिंदे की तरह मूषक बनाना आसान नहीं है. वे भाजपा द्वारा बिछाए गंये जाल को कुतर कर भाग भी सकते हैं. नीतीश की बैशाखी के सहारे केंद्र में टिकी सरकार को अस्थिर नही करना भाजपा की जरुरत भी है और मजबूरी भी. भाजपा का सिंदूर खेला कुछ भी दाव पर लगा सकता है क्योंकि भाजपा ढाई दशक से बिहार की सत्ता हासिल करने का सपना देखरही है.

@  राकेश अचल 


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