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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2025

शिन्देशाही से महाराष्ट्र में नयी रार

 

शिन्देशाही का मामला हालाँकि महाराष्ट्र  का है लेकिन ये हमारे शहर ग्वालियर से भी जुड़ा है इसलिए मै इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। ग्वालियर में शिंदे यानि सिंधिया शासन की नीव रखने वाले महान योद्धा महादजी सिंधिया के नाम पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ  शिंदे को ' महादजी शिंदे राष्ट्र गौरव पुरस्कार' देने और एनसीपी के सुप्रीमो शरद पंवार द्वारा एकनाथ की तारीफ़ करने से महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है। 

एकनाथ शिंदे महारष्ट्र के बिभीषण  हैं। उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सत्ता हासिल करने के लिए शिवसेना से बगावत कर एक  नई शिव सेना बना ली थी ।  उन्होंने महाराष्ट्र   विकास अगाडी की सरकार का तख्ता पलटने में मुख्य भूमिका निभाई थी, उन्हीं एकनाथ को सम्मानित करने के लिए आयोजित समारोह में शरद पंवार की मौजूदगी ही नहीं बल्कि उनके द्वारा शिंदे के कसीदे काढ़ना महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के सहयोगियों को रास नहीं आया और शिवसेना [ उद्धव ठाकरे गुट ] ने पंवार को आड़े हाथ ले लिया।आपको बता दूँ कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मंगलवार को न्यू महाराष्ट्र सदन में महादजी शिंदे राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार प्रदान क‍िया गया। पुणे स्थित सरहद संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में एनसीपी (एसपी) नेता शरद पवार ने श‍िंदे को पुरस्‍कार प्रदान क‍िया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मौजूद रहे ,क्योंकि महादजी शिंदे उनके पूर्वज थे। । 

शिवसेना-यूबीटी सांसद संजय राउत ने कहा कि शरद पवार को ऐसे कार्य़क्रम में शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए की सरकार गिरा दी थी। राजनीति में कुछ चीजों से बचना होता है।  जिसे हम महाराष्ट्र का दुश्मन समझते हैं उसे ऐसा सम्मान देना, महाराष्ट्र के गौरव पर आघात है। राउत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीपी-एसपी के सांसद अमोल कोल्हे ने कहा कि -राउत अपनी निजी राय जाहिर कर सकते हैं।   यह अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का हिस्सा था।  उन्होंने  कहा, ''पंवार साहब ने स्टेट्समैनशिप को दिखाया है जहां हर चीज में कोई राजनीति को नहीं लाता।  मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत है।  वह कार्य़क्रम में अध्यक्ष थे। 

इस विवाद   के पीछे राजनितिक   षड्यंत्र देखा जा रहा है।  समझा जा रहा है कि इस कार्यक्रम के बहाने भाजपा हाईकमान ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंदिया के जरिये शरद पंवार को भाजपा में लाने की कोशिश की जा रही है। सिंधिया  भाजपा के पुराने बिभीषण है।  सिंधिया 2020  में  मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरा चुके हैं। उनके इसी कौशल के चलते उन्हें महाराष्ट्र में मराठी कार्ड खेलकर शरद पंवार को भाजपा में लाने की जिम्मेदार दी गयी है । 

 आपको याद होगा कि शरद पंवार की आधी  पार्टी को उनके भतीजे अजित पंवार पहले ही भाजपा के साथ जोड़ चुके हैं।  शरद पंवार अब अकेले पड़ गए हैं और उन्हें अपनी बेटी सुप्रिया के राजनीतिक भविष्य की चिंता सता रही है। माना जाता है की वे अपने जीते जी सुप्रिया का राजनितिक भविष्य सुरक्षित करने के लिए भाजपा से गठजोड़ कर सकते हैं ,अर्थात जिस महाराष्ट्र विकास अघाड़ी को उन्होंने ही बनाया था उसे वे तोड़ सकते हैं। अभी लोकसभा में शरद पंवार गुट के दोनों सदनों में कुल 5  सांसद हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में भी अब पंवार गुट के कुल 10  विधायक बचे हैं। 

मजे की बात ये है कि भाजपा को महाराष्ट्र   की सत्ता में बने रहने के लिए शरद पंवार की जरूरत नहीं है,भाजपा तो महाराष्ट्र में विपक्ष को नेस्तनाबूद करने के लिए पंवार को अपने साथ रखना चाहती है ताकि विपक्षी गठबंधन महाराष्ट्र विकास अघाड़ी पूरी तरह बिखर जाये।हालाँकि लोकसभा और राजयसभा में पंवार के 5  सांसद भाजपा के काम के हैं।  आपको याद होगा कि महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में भाजपा मविअ की कमर पहले ही तोड़ चुकी है। शरद पंवार ने इस दिशा में पहला कदम तो आगे बढ़ा ही दिया है। उन्होंने उन एकनाथ शिंदे की तारीफ में कसीदे पढ़ दिए जो महाराष्ट्र विकास अघाड़ी के दुश्मन नंबर एक हैं। उद्धव ठाकरे गुट ने तो पंवार की इस हरकत पर फौरन प्रतिक्रिया दे ही दी ,लेकिन कांग्रेस मौन है। कांग्रेस का मौन भी संकेत देता है की पंवार साहब की हरकत कांग्रेस को भी रास नहीं आयी। 

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार पहली बार महाराष्ट्र   के लम्बे दौरे पर भी गए थे ।  वे जबसे भाजपा में आये हैं मराठी गौरव के रूप में महादजी सिंधिया के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं।  अपने गृहनगर में भी उन्होंने महादजी सिंधिया स्मारक को नयी सजधज देने के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना का पैसा खर्च कराया है।  आजाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी राजवंश के प्रतीक चिन्हो   को दोबारा से सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिष्ठित करने की कोशिश की गयी। अब महादजी का नाम महारष्ट्र की राजनीती में खटास पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। 

जानकारों का मानना   है कि यदि महादजी शिंदे के नाम का पुरस्कार देने के लिए एकनाथ को न चुना जाता तो शायद ये विवाद भी न होता ,लेकिन जानबूझकर एकनाथ को ये सम्मान दिया गया। एकनाथ शिंदे महादजी शिंदे के गौत्र से हैं या नहीं ये भगवान जाने ? लेकिन उनके नाम के आगे शिंदे लगा है।दूसरी बात ये है कि ये सम्मान महाराष्ट्र साहित्य सम्मेलन का था। यहां सम्मान  लिए राजनीतिक  व्यक्ति को क्यों चुना गया ?क्या ये पुरस्कार केवल शिंदे लोगों के लिए ही सृजित किया गया था ? पांच लाख का ये पुरस्कार आजतक ग्वालियर में किसी को नहीं दिया गया। बहरहाल अब देखना है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के पूर्वज महाराष्ट्र   की सियासत में भाजपा के किसी काम आ सकते हैं  या उनके नाम के इस्तेमाल से मराठा समाज में इसकी गलत प्रतिक्रिया होती है। आने वाले दिनों में पता चल जाएगा कि शरद पंवार भी आखरी वक्त में मुसलमान होने जा रहे हैं या नहीं ?

@ राकेश अचल

समय समीक्षा जैन पॉकेट पंचांग का विमोचन हुआ


ग्वालियर ।वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन द्वारा रचित समय समीक्षा जैन पॉकेट पंचांग का विमोचन प .पूज्य आर्यिका रत्न 105 पूर्णमति माताजी के सानिध्य  साक्षीएंकलेब में 06 फरवरीको राष्ट्रीय स्तर के विद्वानों द्वारा विमोचन ग्वालियर में  किया गया।इस अवसर पर विनोद भैयाजी छतरपुर, डॉ धर्मेंद्र जयपुर, डॉ अमित आकाश वाराणसी, डॉ नीलम जैन ललितपुर, डॉ सोनल शास्त्री दिल्ली, डॉ आशीष जैन सागर, डॉ सुनील जैन संचय ललितपुर डॉ गौरव जैन जबलपुर सहित इस अवसर पर सैकड़ों लोग  उपस्थित रहे।

यह पंचांग अपने अंदर पूरे वर्ष भर की व्यापारिक वस्तुओं की तेजी मंदी के साथ अनेक  विशेषताएं लिए हुए है।

बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

क्या कांग्रेस वाकई एक डूबता जहाज है ?

भारत को 2014  में मिली असली आजादी के बाद भाजपा से लगातार जूझ रही कांग्रेस को दिल्ली विधानसभा चुनाव में जनता द्वारा नकारे जाने के बाद क्या ये लगने लगा है कि -कांग्रेस अब एक डूबता जहाज है और अब कोई दूसरा दल इस पर सवारी नहीं करना चाहेगा ? सवाल जायज  भी है और इस पर विमर्श भी होना चाहिए। बल्कि यूं कहें कि  इस मुद्दे पर विमर्श शुरू भी हो चुका है।  2026  में होने वाले बंगाल  विधानसभा चुनावों के लिए तृणमूल कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन में रहने या कांग्रेस के साथ  मिलकर चुनाव लड़ने से इंकार कर इस विमर्श का श्रीगणेश कर दिया है। 

इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि  देश में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ मोर्चा लेने में कांग्रेस शुरू से अग्रणीय  रही है। 2014  के लोकसभा चुनाव में मात्र 44  सीटों पर सिमटी कांग्रेस ने मैदान नहीं छोड़ा। भाजपा ने तब 286  सीटें अकेले दम पर जीती थीं। पांच साल लगातार विपक्ष में बैठने के बावजूद कांग्रेस अपने ढंग से काम करती रही और 2019  के चुनाव में कांग्रेस 44  सीटों से बढ़कर 52  सीटों पर आ गयी। कांग्रेस के लिए हालाँकि ये कोई बड़ी उपलब्धि नहीं थी ,लेकिन कुल 8  सीटें ज्यादा हासिल कर कांग्रेस को थोड़ी -बहुत ऊर्जा जरूर मिली। डूबते को तिनके का सहारा होता है। 

लगातार दूसरी जीत के बाद भाजपा की चाल,चरित्र और चेहरे में अप्रत्याशित रूप से बदलाव आया ।  भाजपा ने अपने दूसरे कार्यकाल में पूरी ताकत से अपने एजेंडे पर काम करना शुरू किया। जम्मो-कश्मीर से धारा 370  हटाई, अयोध्या में राममंदिर बनाने का रास्ता साफ़ कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कर उसे पूरा भी किया और लगातार एक के बाद एक राज्यों में अपनी बढ़त बनाई ,लेकिन कांग्रेस पीछे नहीं हटी ।  कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों के साथ  भाजपा    के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा की नफरत के मुकाबले मुहब्बत की दूकान खोली ।  पूरे देश में दो बार पदयात्रा कर जन-जागरण की कोशिश की ,परिणाम स्वरूप 2024  के आम चुनाव में कांग्रेस जहाँ 52  से आगे बढ़कर 99  पर पहुंची ,वहीं भाजपा का 400  पार का सपना चकनाचूर हो गया और भाजपा 240  पर सिमिट गयी। 

भारत की राजनीति में कांग्रेस का उत्थान और पतन होता ही रहा है। एक लम्बी दास्तान है कांग्रेस के उत्थान और पतन की। 4  जून  2024  के बाद पिछले 9  महीने में देश में जितने भी विधानसभाओं के चुनाव हुए हैं उनमें से कर्नाटक,केरल,हिमाचल प्रदेश और झारखण्ड को छोड़ कांग्रेस कहीं भी भाजपा का विजय रथ नहीं रोक सकी।  दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ़ हो गया ,और इसी के साथ कांग्रेस की अगुवाई में बने आईएनडीआईए यानि इंडिया गठबंधन में विखराव शुरू हो गया।  दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का साथ और हाथ दोनों छोड़े और सत्ता से बाहर हो गयी। महाराष्ट्र में भी भाजपा ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया ।  हरियाणा में भी कांग्रेस के जीत के सपने को तोड़ा और अब उसका निशाना कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन भी है। 

भाजपा बिहार में विधानसभा के चुनाव से पहले कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की कमर तोड़ देना चाहती है। बिहार में चुनाव इसी साल अक्टूबर में होना है ।  अगले साल बंगाल का नंबर है।  बिहार विधानसभा चुनावों से पहले बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से इंकार कर दिया है। बिहार में कांग्रेस का राजद से गठबंधन है। यहां क्या होगा कहना कठिन है। लेकिन कांग्रेस के लगातार अकेले पड़ने की वजह से जहाँ देश में क्षेत्रीय दल एक-एककर भाजपा के शिकार बन रहे हैं वहीं कांग्रेस के वजूद पर भी प्रश्नचिन्ह भी लगते जा रहे हैं।  ये तय है कि  कांग्रेस जिस मुखरता से हार-जीत की परवाह  किये बिना भाजपा का मुकाबला कर रही है उतनी दम देश के किसी और राजनीतिक दल में नहीं है ।  कांग्रेस का साथ न देकर बीजद ने उड़ीसा खोया है तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली गंवा दी है और यदि तृणमूल कांग्रेस भी यही गलती करती है तो तय मानिये  की उसका हश्र भी बीजद और आम आदमी पार्टी जैसा ही होगा। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी 2026 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी ।  कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी के गठबंधन से उन्होंने इनकार किया है, क्योंकि उसने कांग्रेस को ' डूबता जहाज ' मान लिया है। लेकिन सवाल ये है कि  क्या सचमुच ममता बनर्जी की पार्टी जैसा सोच रही है वैसा ही दूसरे विपक्षी दल भी सोच रहे हैं ? अभी तक उद्धव ठाकरे की शिव सेना हो या तेजस्वी यादव की राजद या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ,इन सभी ने कांग्रेस का न हाथ छोड़ा है और न साथ। जब तक ये सभी कांग्रेस के साथ हैं तब तक कांग्रेस को डूबता जहाज मानना टीएमसी की एक भूल के सिवाय कुछ भी नहीं है। आपको बता दें की ममता बनर्जी ने अपने विधायकों और मंत्रियों से  कहा कि टीएमसी 294 सीटों वाली राज्य विधानसभा में दो-तिहाई बहुमत के साथ 2026 का चुनाव अपने दम पर जीतेगी। 

मुझे न ममता बनर्जी के आत्म विश्वास पर संदेह है और न कांग्रेस के डूबने को लेकर कोई शक। लेकिन मेरा मानना है कि  कांग्रेस विहीन भारत की कल्पना को साकार करने में भाजपा को अभी लम्बी लड़ाई लड़ना पड़ेगी। कांग्रेस का डीएनए अमीबा जैसा है। अमीबा कभी मरता नहीं है। अमीबा जितना विखंडित होता है उतना ही विकसित होता जाता है। कांग्रेस पिछले सवा सौ साल में दर्जनों बार विभाजित,पराजित हुई है लेकिन समाप्त नहीं हुई ,अर्थात उसका जहाज कभी भी टाइटेनिक की तरह समुद्र की सतह में नहीं समाया। कांग्रेस डूबकर भी हर बार सतह पर आयी है। न भी आये  तो देश कहीं जाने वाला नहीं है। 

 कांग्रेस विहीन भारत कैसा होगा इसकी कल्पना न ममता बनर्जी को है और न अरविंद केजरीवाल को। जिन्हें है वे कांग्रेस के साथ खड़े हैं ,जिन्हें जाना है वे जायेंगे भी ।  कांग्रेस शायद ही  जाने वालों की चिरोरियाँ करे। कांग्रेस को लड़ने की आदत है ,चिरोरियाँ करने की नहीं। कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व कांग्रेस की दशा-दुर्दशा की समीक्षा खुद करेगा। नहीं करेगा तो भाजपा के गाल में समा जाएगी कांग्रेस। लेकिन ऐसा समय कब आएगा ,कहना कठिन है। हमें अभी अक्टूबर में बिहार का घमासान भी देखना है और अगले साल बंगाल का भी। भविष्य में किसका जहाज डूबेगा और किसका नहीं ये देखना बाकी है। 

@ राकेश अचल

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

सनम रे ! झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है

 
झूठ बोलना पाप है या पुण्य ये तो हम नहीं जानते लेकिन हमें पता है कि सियासत ने झूठ बोल-बोलकर नौकरशाही को भी झूठ  बोलना सिखा दिया है। अब देश की ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश की नौकरशाही भी जनता के समाने ही नहीं बल्कि विदेशी  मेहमानों के समाने झूठ ही नहीं बल्कि सफेद  झूठ बोलने में संकोच नहीं करती ,जबकि हमारे यहां हमेशा झूठ बोलने वालों को आगाह किया जाता रहा है ये कहकर कि-

' सनम रे ! झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है। 'लेकिन अब खुदा से डरता कौन है ?

खबर मध्यप्रदेश  के एक बड़े गांव में तब्दील हो चुके शहर ग्वालियर की है ।   पिछले दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका के काउंसिल जनरल श्री माइक हैंकी दो दिवसीय प्रवास पर ग्वालियर आए थे ।हैंकी सीधे ग्वालियर कलेक्ट्रेट पहुँचे। कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान ने  उन्हें ग्वालियर के औद्योगिक वैभव व अन्य खूबियों से भी अवगत कराया और  कहा  कि ग्वालियर निवेश के लिये सबसे अच्छी व बड़ी संभावनाओं वाला क्षेत्र है।  

 कलेक्टर  ने  हैंकी को ग्वालियर की विशेषतायें बताते हुए कहा कि ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर संगीत, कला व स्थापत्य के साथ-साथ औद्योगिक व आर्थिक रूप से भी समृद्ध रही है। ग्वालियर शहर देश की राजधानी नई दिल्ली के नजदीक होने के साथ-साथ उत्कृष्ट हवाई, रेलवे व सड़क सेवाओं से पूरे देश से जुड़ा है। ग्वालियर में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का दिव्यांग खेल स्टेडियम, ट्रिपल आईटीएम व एलएनआईपीई जैसे राष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान सहित कई विश्वविद्यालय हैं। इस प्रकार ग्वालियर एक शिक्षा का हब भी बन चुका है। 

 किसी भी निवेशक को प्रभावित करने के लिए आधा झूठ और आधा सच बोला जाता है ,लेकिन ग्वालियर कलेक्टर ने सफेद झूठ बोला। कलेक्टर ने हैंकि को ये तो बताया कि ग्वालियर में वेस्टर्न बायपास, एलीवेटेड रोड, आईएसबीटी व आगरा-मुम्बई सिक्सलेन एक्सप्रेस-वे जैसे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट मूर्तरूप ले रहे हैं। साथ ही अंतराष्ट्रीय स्तर का एयर टर्मिनल हाल ही में बनकर तैयार हुआ है। अत्याधुनिक रेलवे स्टेशन निर्माणाधीन है। लेकिन ये नहीं बताया कि ये प्रदेश का वो अकेला शहर है जहां कोई सार्वजनिक परिवहन सेवा नहीं है ।  बस स्टेण्ड हैं लेकिन सिटी बसें नहीं हैं। हैंकि को ये भी नहीं बतया गया कि अब ग्वालियर में एक भी उद्योग नहीं बचा है। ग्वालियर  के आसपास बानमौर और मालनपुर औद्योगिक केंद्र कारखानों के कब्रगाह बन चुके हैं। ग्वालियर में कम से कम तीन निवेशक सम्मेलनों के बाद एक भी नया उद्योग नहीं लगाया जा सका है। 

 अमेरिकन काउंसिल जनरल को ग्वालियर के औद्योगिक वैभव से परिचित कराते हुए कलेक्टर श्रीमती चौहान ने जानकारी दी कि ग्वालियर के जयाजी कॉटन मिल, ग्रेसिम, सिमको, लैदर फैक्ट्री, ग्वालियर पॉटरीज जैसी इंडस्ट्रीज का देश की नहीं पूरी दुनिया में नाम था।लेकिन ये नहीं बतया कि अब इनमें से एक भी कारखाना वजूद में नहीं है । औद्योगिक निवेश की संभावनायें तलाशने आए  अमेरिकन काउंसिल जनरल ग्वालियर का ऐतिहासिक दुर्ग देखने पहुँचे और यहाँ की उत्कृष्ट स्थापत्य कला से खासे प्रभावित हुए। श्री हैंकी  को जयविलास पैलेस संग्रहालय दिखाकर भी प्रभावित करने की कोशिश  की गयी। ग्वालियर में यही एक ऐसा स्थान है जिसे देखकर राष्ट्रपति से लेकर कोई भी मेहमान प्रभावित हो जाता है। लेकिन किसी को ये नहीं बताया  जाता की इस शहर में किले पर जाने के लिए पिछले 70  साल में एक रोप-वे नहीं बनाया जा सका,क्योंकि किसी के पास इच्छाशक्ति ही नहीं है। 

दरअसल झूठ बोलकर अतिथियों को फांसने का काम हमारे नेता और सरकारें करतीं है इसलिए नौकरशाही भी इससे मुक्त नहीं है। नौकरशाही के नंबर झूठ बोलने से ही बढ़ते हैं। झूठ बोलना आज की नौकरशाही का परम् धर्म है। झूठ बोलने से तरक्की मिलती है ,अवसर मिलते हैं,लेकिन शहर को कुछ नहीं मिलता।  मै इस शहर में पिछले 52  साल से हूँ और इस बात का चश्मदीद हूँ की झूठ बोलने की प्रवृत्ति ने ग्वालियर का बंटाधार कर दिया। ग्वालियर ऐतिहासिक शहर और विकसित शहर था ,लेकिन यहां झूठ की अमरबेल ऐसी फैली की इस शहर के पास जो कुछ था,वो भी छीन लिया गया। यहां न काउंटर मेग्नेट शहर बनाया जा सका और न इंदौर,भोपाल यहां  तक की जबलपुर के मुकाबले यहां विकास किया जा सक।  स्मार्ट सिटी परियोजना का पैसा यहां की नौकरशाही ने राजशाही को खुश करने में लुटा दिया। अन्यथा ग्वालियर प्रदेश के किसी भी शहर के मुकाबले अधोसंरचना,पुरातत्व और पर्यटन के मामले में सबसे ज्यादा समृद्ध शहर था। ये शहर ,यहां के जन प्रतिनिधि और नौकरशाही जब तक झूठ बोलना नहीं छोडेगी तब तक इस शहर का कल्याण नहीं हो सकता। 

@ राकेश अचल

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

वीरेन का इस्तीफा ,यानि का वर्षा जब कृषि सुखानी

 

पिछले 21  महीने से साम्प्रदायिकता की आग में धधक रहे मणिपुर के मुख्यमंत्री वीरेन कुमार सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया,इससे पहले उन्होंने   कुम्भ में डुबकी लेकर अपनी नाकामी के लिए शायद   प्रायश्चित   भी किया,लेकिन अब मुख्यमंत्री के इस्तीफे का कोई अर्थ नहीं रह जाता क्योंकि भाजपा   हाईकमान ने वीरेन सिंह को हटाने में काफी देर कर दी। दिल्ली  विधानसभा चुनाव जीतने के फौरन बाद वीरेन सिंह के इस्तीफे की खबर दबकर रह गयी। आपको याद होगा कि मणिपुर 03  मई 2023  से हिंसा की आग में जल रहा है। निर्णय लेने में डबल इंजिन की सरकार को लगभग पूरे दो साल लग गए।

निर्णय लेने में देरी के संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में जो चौपाई लिखी वो कालांतर   में मुहावरा बन गया ।  उन्होंने लिखा - 

का बरषा सब कृषी सुखानें। 

समय चुकें पुनि का पछितानें॥ 

भाजपा ने मणिपुर की हिंसा के फौरन बाद यदि मुख्यमंत्री को हटा दिया होता तो शायद मणिपुर की हिंसा भी रूकती और भाजपा को आलोचनाओं का शिकार भी नहीं होना पड़ता ,लेकिन भाजपा  ने इस मामले में जान-बूझकर लेतलाली की। मुख्यमंत्री का इस्तीफा तो छोड़िये देश के प्रधानमंत्री भी पिछले दो साल में एक बार भी मणिपुर हिंसा की समीक्षा करने या पीड़ितों से भेंट करने मणिपुर नहीं गए। 

मुझे  याद है इसलिए मै आपको याद दिलाना चाहता हूँ   कि 27 मार्च 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट ने एक आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की बात पर जल्दी विचार करने को कहा था.और इस आदेश के कुछ दिन बाद ही तीन मई 2023 को राज्य में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क गई थी।  इसमें कई लोगों की जान भी गई। मणिपुर में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर द्वारा आयोजित एक जन रैली के हिंसक हो जाने के बाद प्रशासन ने शूट ऐट साइट का ऑर्डर भी जारी किया.

उसके बाद प्रदेश के अधिकांश ज़िलों में कर्फ़्यू लगा दिया गया और हालात को नियंत्रित करने के लिए सेना और असम राइफ़ल्स के जवानों को तैनात किया गया। 

कभी -कभी ऐसा लगता है  कि  देश की मजबूत सरकार मनीपुर की हिंसा को जानबूझकर सुलगाये रही। भाजपा ने देश में इस बीच आधा दर्जन से ज्यादा   विधानसभाओं के   चुनाव लड़े और जीते। भाजपा को शायद ये भी या आशंका थी कि यदि मणिपुर में मुख्यमंत्री को बदला गया तो मुमकिन है कि भाजपा शासित दूसरे राज्यों में भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग खड़ी हो सकती है ,क्योंकि भाजपा ने जिस तरह से मप्र  और राजस्थान कएकदम नए चेहरे दिए इससे पार्टी के भीतर घोर असंतोष था। 

मणिपुर की हिंसा भाजपा शासन के ऊपर पिछले  एक दशक का सबसे बड़ा धब्बा है।19 जुलाई 2023 को मणिपुर में हुई हिंसा दुनिया भर में सुर्खियां बनीं - जब दो कुकी महिलाओं के नग्न परेड का वीडियो सोशल मीडिया में सामने आया.मणिपुर पुलिस ने इस वीडियो की पुष्टि करते हुए बताया कि ये महिलाएं चार मई को मणिपुर के थोबल ज़िले में यौन उत्पीड़न की शिकार हुई थीं।  मणिपुर की हिंसा को लेकर दुनिया के अनेक देशों में प्रतिक्रियाएं हुईं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर जाना उचित नहीं समझा। वे संसद में भी मणिपुर पर बहुत देर में बोले। 

इस अभूतपूर्व हिंसा को लेकर राजनीति भी खूब हुई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मणिपुर से मुंबई तक 6,700 किलोमीटर से ज़्यादा की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू की थी। मणिपुर की राजधानी इम्फाल के निकट थौबल में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की मौजूदगी में एक बड़ी रैली के सामने बोलते हुए राहुल गांधी ने कहा, "मणिपुर जिस दर्द से गुज़रा है, हम उस दर्द को समझते हैं."उन्होंने कहा, "हम वादा करते हैं कि उस शांति, प्यार, एकता को वापस लाएंगे,। राहुल दो बार मणिपुर गए भी लेकिन उन्हें इसका कोई राजनितिक लाभ नहीं मिला। इस हिंसा से भाजपा का भी कोई नुक्सान नहीं हुआ। शेष देश की जनता को लगा जैसे की मणिपुर की हिंसा किसी दुसरे देश का मामला है। 

बहरहाल अब मणिपुर   में मुख्यमंत्री हटा दिए गए है ।  लगता है वहां अब शीघ्र ही नया मुख्यमंत्री भेज दिया जाएगा। भाजपा अब दिल्ली जीतने के बाद अपने आपको एकदम सुरक्षित समझने लगी है। लेकिन ऐसा है नहीं। भले ही भाजपा ने ' देर आयद,दुरुस्त आयद ' की कहावत को सार्थक किया है किन्तु ये देर से उठाया कदम तो है ही। यही काम यदि भाजपा ने दो वर्ष पहले कर दिया होता तो आज मणिपुर की तस्वीरें कुछ और ही होतीं।  मणिपुर में नया मुख्यमंत्री कौन होगा और कौन नहीं इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। फिर भी भाजपा को आई सद्बुद्धि के लिए मोशा की जोड़ी का आभार। 

@ राकेश अचल

रविवार, 9 फ़रवरी 2025

बाबूराम गोयल दलित आदिवासी महापंचायत जिला भिंड के अध्यक्ष बने

ग्वालियर । दलित आदिवासी महा पंचायत (दाम - DAM) के संस्थापक संरक्षक डॉ जवर सिंह अग्र के निर्देश अनुसार  प्रांतीय अध्यक्ष महेश मदुरिया ने भिंड जिले के  वरिष्ठ समाजसेवी सेवानिवृत्ति प्राचार्य माननीय बाबूराम गोयल जी ( बी आर गोयल ) को दलित आदिवासी महापंचायत (DAMदाम) जिला शाखा भिंड के जिला अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं।

 जिला अध्यक्ष नियुक्त होने पर गोयल साहब को बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं आशा करते हैं कि दलित आदिवासी समाज हित में कार्य करते रहेंगे और दाम को जिले में ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे साथ ही अपनी जिला कार्यकारणी का गठन कर प्रांत से अनुमोदित कराकर घोषित करने के निर्देश दिए हैं साथी प्रांत अध्यक्ष महेश मदुरिया ने कहा कि दलित आदिवासी वर्ग की समस्याओं को उठाने के लिए संघर्षरत है और महापंचायत मात्र एक संगठन है जो इन वर्गों की समस्या को उठाकर पीड़ितों को न्याय दिलाने का काम कर रहा है बाबूराम गोयल जी को भिंड का जिला अध्यक्ष बनाए जाने पर दारा सिंह कटारे जिला ग्वालियर के अध्यक्ष संदीप सोलंकी शिवपुरी के जिला अध्यक्ष डॉक्टर रामदास मथोरिया रामनारायण दोहरे सियाराम सरैया मनोज पावन एन के खांडेकर रामसेवक मंडेलिया पूर्व सरपंच गया प्रसाद जाटव ओम प्रकाश जाटव प्रेम नारायण आदिवासी आदि ने बधाई दी है ।

छोटे अहंकार की बड़े अहंकार से मात

 

दिल्ली जीतने के लिए भाजपा नेतृत्व को हार्दिक बधाई।  ब्धाई दे रहा हूँ क्योंकि ये बधाई बनती है।  मै  भाजपा की तरह न ' तंग-दिल ' हूँ और न 'संग-दिल 'इसलिए तमाम असहमतियों के रहते हुए मुझे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को बधाई देने में कोई संकोच नहीं है।  मोदी की भाजपा ने 27  साल की लम्बी तपस्या का फल हासिल कर लिया है। अब बड़ी दिल्ली और छोटी दिल्ली दोनों भाजपा के हाथ में हैं।  भाजपा ने बड़ी ही हिकमत  अमली से केजरीवाल से उनकी दिल्ली छीन ली है।

 दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर आपने तमाम मीमांसाएँ,समीक्षाएं,विश्लेषण देखे और पढ़े होंगे ,लेकिन मैंने शरू से कहा था कि इस बार दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ठीक उसी तरह घेरे जा चुके हैं जैसे 2019  के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश   में अजेय सिंधिया ज्योतिरादित्य को घेरकर हराया गया था।  सिंधिया ने पराजय के बाद भाजपा में शामिल होकर दोबारा से जय हासिल कर ली किन्तु अरविंद केजरीवाल की किस्मत में ये भी मुमकिन नहीं है , क्योंकि वे देश केप्रधानमंत्री को ' चौथी पास राजा ' कह चुके हैं और उस विधानसभा में कह चुके हैं जिसके रिकार्ड को विलोपित करना भाजपा के लिए भी आसान नहीं है ,भले ही उसे 27  साल बाद दिल्ली में प्रचंड,अखंड या ' बम्पर ' बहुमत मिला है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की हार नहीं है ,ये नीतियों की भी हार नहीं है ,ये ईमानदारी और बेईमानी की भी हार नहीं है। ये हार दरअसल अहंकार की हार है। दुर्भाग्य ये कि दिल्ली का छोटा अहंकार देश  के बड़े अहंकार से हार गय। अर्थात दिल्ली को अभी भी अहंकार  से निजात नहीं मिली है। यदि दिल्ली में कुशासन हारा है तो दुशासन से हारा है। सुशासन   के लिए तो कहीं कोई जगह है ही नहीं आज की राजनीति में।  सुशासन कहीं दुबका हुआ बैठा होगा। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की नाव वहां डूबी है जहां पानी कोई कोई कमी नहीं थी ,कमी थी तो विनम्रता की।  आम आदमी पार्टी ने अपने खिलाफ एक साथ दो शत्रु खड़े  कर लिए थे।

आप मानकर चलिए कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव जिस कड़वे माहौल में हुए हैं उसके फलस्वरूप दिल्ली की सियासत में कोई सुधा बरसने वाली नहीं है। आने वाले दिन आम आदमी पार्टी के आम कार्यकर्ता के साथ ख़ास नेताओं तक के लिए भरी पड़ने वाले हैं ,क्योंकि भाजपा है कमान आम आदमी पार्टी के आमो-खास को मुआफ करने वाली नहीं है ।  भाजपा की केंद्रीय और अब दिल्ली की सरकार चुन-चुनकर केजरीवाल ऐंड कम्पनी से बदला लेगी। केजरीवाल से लेकर मनीष सिसौदिया को एक बार फिर से जेल-यात्राएं   करना होंगी।  अदालतें भी शायद उनकी मदद न कर पाएं।

ये विधानसभा चुनाव क्षेत्रीय दलों के लिए अपशकुन हैं तो क्षेत्रीय दलों के लिए एक संकेत भी। कि वे अकेले किसी भी सूरत में भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकते । उन्हें कांग्रेस   के साथ चलना ही होगा। दिल्ली के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए भी एक नयी चुनौती हैं।  भाजपा का इतिहास रहा है कि उसने अपने तमाम समर्थकों और विरोधियों को निर्ममता के साथ समाप्त किया है।  भाजपा के नेतृत्व ने पार्टी के भीतर जब विरोधियों को नहीं बख्शा तो बाहर के विरोधियों को बख्शने का सवाल ही नहीं उठता।  जैसा कि माननीय मोदी जी के विजयोत्स्व के भाषण से साफ़ है कि अब केवल बंगाल की तृण मूल कांग्रेस ही नहीं अपितु बिहार की उनकी अपनी सहयोगी जेडीयू भी भाजपा के निशाने पर है।  भाजपा अब टीडीपी को भी कोई उड़ान नहीं भरने देगी।  गोबर पट्टी में विजय पताकाएं   फहराते हुए आगे बढ़ रही भाजपा अब दक्षिण और पूरब की और रुख करेगी और 2028  से पहले अपने अखिल भारत विजय के अभियान को पूरा करना चाहेगी।

संदर्भ के लिए याद दिला दूँ कि भाजपा ने जब अपनी पुरानी सहयोगी उड़ीसा की बीजद  को नहीं छोड़ा तो आम आदमी पार्टी को वो कैसे छोड़ देती ? भाजपा अपने तमाम  सहयोगी दलों की या तो बलि ले चुकी है या फिर उन्हें दो-फांक   कर अपने साथ खड़ा कर चुकी  है। अकाली हों या शिवसेना वाले कोई भाजपा की मार से बचे नही।  एक आंकड़ा बताता है कि भाजपा के मौजूदा नेतृव ने पिछले 10  साल में अपने 24  छोटे-बड़े सहयोगी दलों की निर्मम हत्या की है। आम आदमी  पार्टी के संस्थापक को जीतकर भाजपा ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को भी संकेत दे दिए हैं की वे किसी गफलत में न रहें। गफलत में देश को भी नहीं रहना चाहिए और कांग्रेस को भी। भाजपा की अक्षोहणी सेना  हर चुनाव में पूरी तैयारी के साथ उतरती है।  भाजपा ने यदि झारखण्ड ,तेलंगाना और कर्नाटक नहीं जीत पाया तो ये नहीं समझा जाना चाहिए कि भाजपा की जीतने कोई भूख मर गयी है। भाजपा चौबीस   घंटे युद्धरत रहती है।

दिल्ली के विधानसभा चुनाव ये संकेत दे चुके हैं की क्षेत्रीय  दलों को निगलने के बाद उसका अगला और अंतिम निशाना कांग्रेस ही है। कांग्रेस चूंकि ' हप्पा ' नहीं है इसलिए उसे निगलने में भाजपा को वक्त लगेगा ,लेकिन भाजपा हार मानकर बैठने वाली नहीं है।  उसकी नफरत की आंधी और अदावत के तूफ़ान भारतीय राजनीति को हलकान किये रहेंगे। इसलिए मेरा मश्विरा है कि स्थितिप्रज्ञ होकर फ़िलहाल ' तेल देखिये और तेल की धार देखिये '

@ राकेश अचल

शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

भारत को विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनाने का लक्ष्यः केन्द्रीय मंत्री सिंधिया

ग्वालियर संवाददाता रविकांत दुबे 

ग्वालियर। केन्द्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिल्ली चुनाव परिणाम पर कहा कि मैंने दिल्ली से निकलने से पहले ही कह दिया था कि सिर्फ 12 घंटे इंतजार कीजिए हम (भाजपा) दिल्ली में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाने जा रहे है। शनिवार को ग्वालियर में पत्रकारों से चर्चा में केन्द्रीय मंत्री सिंधिया ने बजट को देश को आत्मनिर्भर और भारत को विश्वगुरु बनाने में नींव का पत्थर साबित होने वाला बताया। उन्होंने कहा कि 2027 तक देश को विश्व की तीसरी बड़ी इकॉनामी बनाने के लक्ष्य की ओर भारत चल पड़ा है। 
केन्द्रीय मंत्री सिंधिया ने बजट पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत सरकार का यह बजट गरीब, अन्नदाता, महिलाओं और युवाओं पर केन्द्रित है। विश्व की विकास की दर देखे तो पिछले साल ही विश्व की विकास दर 3.2 प्रतिशत थी और भारत की विकास दर 6.50 प्रतिशत थी। इस लिहाज से हम देखे तो भारत विश्व से सौ प्रतिशत अधिक की विकास दर के साथ आगे बढ रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में यूपीए सरकार के समय तक बैंकों में एनपीए 11.3 प्रतिशत था। आज मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण एनपीए घटकर 2.6 प्रतिशत पर आ गया है। 9 प्रतिशत की इसमें गिरावट जो देश की मजबूत आर्थिक प्रगति को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि भारत का निर्यात 600 बिलियन डालर पहुंच चुका है। वहीं विदेशी मुद्रा की बात की जाए तो पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार 705 बिलियन डालर पहुंच चुका है। उन्होंने बताया कि देश में विदेशी निवेश में तेजी आई है। बजट पर बात करते हुए केन्द्रीय मंत्री सिंधिया ने कहा कि देश में पिछले एक साल में अधोसंरचना पर लगभग 11 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। जबकि यूपीए की सरकार में अधोसंरचना पर मात्र 2 लाख करोड़ का खर्च ही हुआ था। उन्होंने कहा कि रेलवे लाइन हो या राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण, मोदी सरकार में इन पर तेजी से कार्य हुआ है। बीते साल में 17 वंदे भारत ट्रेनें प्रारंभ हो चुकी हैं।
उन्होंने कहा कि दूरसंचार सेवाओं के विस्तार के मामले में भी भारत में तेजी से प्रगति हो रही है। हमने बहुत ही कम समय में देश के 10 हजार 900 गांवों को कवर कर लिया है। भारत में जहां मोबाइल फोन का 90 प्रतिशत तक आयात होता था आज भारत फोन के निर्यात के मामले में विश्व का अग्रणी देश बन गया है। हमारे यहां से 90 प्रतिशत देशों को अब फोन का निर्यात हो रहा है। पिछले साल 1 लाख 28 हजार करोड़ के फोन हमारे देश से निर्यात हुए हैं। कृषि क्षेत्र में 3.50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। केन्द्रीय मंत्री सिंधिया ने कहा कि देश में बेरोजगारी की दर में कमी आई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 14-15 में बेरोजगारी की दर जहां 6 प्रतिशत थी वह आज सिमटकर 3 प्रतिशत पर आ गई है। उन्होंने कहा कि कृषि पर जहां केवल 22 हजार करोड़ खर्च होते थे आज यह बजट 1 लाख 22 हजार करोड़ का हो गया है। मोदी सरकार में यह 5.5 गुना बढ़ चुका है। देश को दलहनों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। मध्यप्रदेश इसमें बड़ी भूमिका निभाएगा। प्रदेश में सर्वाधिक दलहन का उत्पादन हो रहा है।
सिंधिया ने कहा कि 2027 तक भारत विश्व की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनें इसके लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। हम जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ने के लिए तैयार है। 2028 तक हमें देश को 5 ट्रिलियन डाॅलर की इकोनॉमी वाला बनाना है। साथ ही साल 2030 तक 6 ट्रिलियन डाॅलर की इकोनॉमी बनाने की ओर हम चल पड़े हैं। यूरिया प्रोडक्शन के लिए तीन प्लांट लग गए हैं। वहीं देश लॉजिस्टिक के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य करने के लिए तैयार है। केन्द्रीय संचार मंत्री सिंधिया ने ब्रॉडबैंड की चर्चा करते हुए कहा कि हर पंचायत तक हम पहुंचेंगे। उन्होंने बजट में प्रस्तावित अन्य योजनाओं पर भी चर्चा करते हुए कहा कि देश में 50 पर्यटन साइट्स बनाई जाएंगी। बीमा के क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाकर 100 प्रतिशत कर दिया है। उन्होंने कहा कि आयकर की सीमा 12 लाख तक किए जाने से मध्यमवर्ग को बड़ा लाभ हुआ है। अब मध्यम वर्गीय को 12 लाख तक की आय पर कोई टैक्स नहीं देना होगा।
पत्रकारवार्ता में उर्जा मंत्री प्रघुम्न सिंह तोमर, जिला महामंत्री विनोद शर्मा भी उपस्थित थे।

ज्ञान के महाकुम्भ में अज्ञान की डुबकी

 
मुझे 144 साल बाद प्रयागराज में सजे महाकुम्भ में शामिल न होने का अफसोस तो है लेकिन मै संतुष्ट हूं कि मैने दिल्ली में लगने वाले ज्ञान महाकुंभ में अज्ञान मुक्त होने की डुबकी लगा ली. दिल्ली में पिछले 51 वर्षों से ये ज्ञान महाकुम्भ आयोजित किया जा रहा  है. इसका नाम हालांकि नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला है और ये प्रकाशन जगत में एक प्रमुख कैलेंडर कार्यक्रम है। 

वर्ष 2025 का  ये ज्ञानकुंभ  1 से 9 फरवरी 2025 तक भारत मंडपम, नई दिल्ली में नवनिर्मित हॉल 2-6 (भूतल) में आयोजित किया गया.। मेले का आयोजन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन) द्वारा किया जाता है। इसमें कोई शाही दिन नहीं  होता. कोई अखाडा नहीं होता. कोई पीठाधीश्वर, शंकराचार्य या महामंडलेश्वर नहीं होता. वीआईपी कल्चर से भी ज्ञानकुंभ मुक्त है. यहाँ हर घाट पर जाकर आम आदमी अपनी ज्ञान पिपासा शांत कर सकता है.

ज्ञान कुंभ यानि विश्व पुस्तक मेले में लेखक, पाठक और प्रकाशक एक घाट पर पानी पीते हैं. लेकिन दुर्भाग्य कि यहाँ ने वाले श्रद्धालुओं के ऊपर हैलीकाप्टर से पुष्पवृष्टि नहीं की जाती. यह मेला भी हालांकि डॉ मोहन भागवत के संघ परिवार की गिरफ्त में है फिर भी यहाँ भी कोई  विधर्मी वर्जित नहीं है. यहाँ आपको हर पंथी मिलेगा ज्ञान त्रिवेणी में डुबकियां लगाते. दक्षिण पंथी, वामपंथी, समाजवादी, अर्बन नक्सली, सब यहाँ आते- जाते हैं. 

इस कुंभ में मीलों पैदल नहीं चलना पडता. यहाँ के घाट मनोहर और पंक रहित होते हैं. यहाँ भंडारे नहीं होते लेकिन आप पैसा देकर खान- पान की हर सुविधा हासिल कर सकते हैं. यहाँ नामालूम से लेकर स्थापित, ख्यातिनाम प्रकाशक, लेखक और पाठक एक दूसरे से मिलते दिखाई देते है. यहाँ आप पाठक से लेखक और लेखक से प्रकाशक तक बन सकते है. यहाँ आपको मुफ्त में कुछ नहीं मिलता. हाँ, 5 ₹ से लेकर हजारों रुपये तक की पुस्तकें यहाँ उपलब्ध हैं. यहाँ लेखक खुद सेल्समैन की भूमिका में होता है. किताबों का फटाफट विमोचन भी होता है.

बच्चों के साहित्य और पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने वाली कई गतिविधियाँ जैसे कि कहानी सुनाने के सत्र, कार्यशालाएँ, पैनल चर्चाएँ, संवादात्मक सत्र, प्रश्नोत्तरी, प्रतियोगिताएँ, आदि के साथ-साथ बाल लेखक कॉर्नर का आयोजन आकर्षक ढंग से डिज़ाइन किए गए बच्चों के मंडप में किया जाता है। प्रसिद्ध लेखकों और चित्रकारों के साथ-साथ शिक्षा और प्रकाशन क्षेत्र के पेशेवरों द्वारा संचालित इन गतिविधियों में विभिन्न सरकारी और निजी स्कूलों/गैर-सरकारी संगठनों के शिक्षकों और बच्चों के साथ-साथ समुदाय से जुड़े लोगों की भारी भागीदारी देखी जाती है

  राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान, अहमदाबाद द्वारा डिजाइन किया गया एक समर्पित थीम मंडप, पुस्तक मेले की थीम को रचनात्मक, ग्राफिक्स, प्रतिष्ठानों, पुस्तकों, दीवारों, कलाकृतियों आदि के साथ प्रदर्शित करता है। थीम मंडप में मेले के दिनों में थीम के इर्द-गिर्द कई साहित्यिक सत्र और सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।

ज्ञानकुंभ में विचारों को साझा करने और साहित्यिक समझ को बढ़ाने के लिए एक आकर्षक मंच है। विदेशी प्रदर्शकों/मिशनों/दूतावासों/सांस्कृतिक केंद्रों/पुस्तक प्रचार एजेंसियों को पुस्तक लॉन्च, पैनल चर्चा, साहित्यिक कार्यक्रम और बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के लिए कार्यशालाओं के आयोजन के लिए इवेंट कॉर्नर पर स्लॉट बुक करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता ।

मेले के विभिन्न हॉलों में बनाए गए खूबसूरती से डिज़ाइन किए गए लेखक कॉर्नर घरेलू प्रकाशकों, लेखकों और पुस्तक प्रेमियों के लिए संवाद, पैनल चर्चा, पुस्तक लॉन्च के लिए सही मंच प्रदान करते हैं। बुक टॉक और लेखक मंच के नाम से उपयुक्त; ये कॉर्नर जीवंत साहित्यिक गतिविधियों का पर्याय बन गए हैं, और आगंतुकों के लिए बैठक स्थल के रूप में भी काम करते है।

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के दौरान, तथा उत्सव को और अधिक रोचक बनाने के लिए, एनबीटी इस क्षेत्र के अग्रणी संगठनों जैसे गीत एवं नाटक प्रभाग, साहित्य कला परिषद, आदि द्वारा मेले में सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी आयोजित करता है। यहाँ सबसे अच्छी बात ये है कि किसी नेता का कट- आउट या कोई भगवा झंडा नहीं दिखता।

इस ज्ञानकुंभ मे इस बार भी मै सपत्नीक गया. बच्चों के लिए किताबें खरीदीं. यहाँ माला बेचने वाली कंजी आंखों की कोई मोनालिसा, कोई आई आईटीयन बाबा, कोई हैरान करने वाला व्यक्ति नजर नहीं आता. इस बार आप यदि ज्ञान महाकुम्भ में डुबकी लगाने से चूक गये हों तो कोई बात नहीं. अगले साल आइए. ये कुंभ कौन बारह साल में सजता है. इसे तो हर साल लगना है।

@ राकेश अचल

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

भारत की हसीन विदेश नीति पर कुर्बान जाइये

 

भारत की विदेश नीति  को ऊपर वाला भी नहीं पहचान सकता ।  अमेरिका भारतियों को अवैध प्रवास के आरोप में गिरफ्तार  कर हथकड़ियां लगाकर  भारत वापस भेजे तो भी भारत का खून नहीं खौलता ।  राष्ट्रप्रेम जागृत नहीं होता। दूसरी तरफ भारत देश में शरणार्थी की हैसियत से रह रही बांग्लादेश  की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेशियों को सम्बोधित करने के लिए आन लाइन सुविधा देती है। समझ में नहीं आता कि भारत की हसीन विदेश नीति का आधार क्या है ? या भारत की विदेश नीति  अब थाली के बैंगन जैसी हो गयी है। 

भारतीय प्रवासियों के साथ दुर्व्यवहार को लेकर जहाँ  संसद में विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान निराशाजनक रहा ,वहीं दूसरो तरफ राज्य सभा में राष्ट्र्पति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का उत्तर देते हुए इसी मामले पर प्रधानमंत्री का मौन भी खल गया। दुनिया में जहाँ छोटे-छोटे देश अमरीका की दादागीरी के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं वहीं भारत जैसा डेढ़ अरब की आबादी का देश अमेरिका की विदेश नीति की हिमायत करने में संकोच नहीं दिखहा रहा। लगता है कि  भारत सरकार  देशवासियों की भावनाओं को या तो समझना नहीं चाहती या उसमें जन भावनाओं के खिलाफ जाने की प्रवृत्ति बना ली है। 

आपको याद होगा कि  शेख हसीना तख्ता पलट के बाद जान बचाकर  भारत आ गईं, हैं  मगर मुसीबत ने उनका साथ नहीं छोड़ा। बुधवार को  बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के ढाका स्थित आवास में प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ की. इतना ही नहीं, उस ऐतिहासिक घर को आग के हवाले भी कर दिया।  यह तोड़फोड़ और आगजनी उस समय हुई, जब उनकी बेटी और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ‘ऑनलाइन’ बांग्लादेश के लोगों को संबोधित कर रही थी।   जब शेख हसीना को इसकी खबर मिली तो वह गुस्से से लाल हो गईं. उन्होंने ऑनलाइन संबोधन में ही बांग्लादेशियों से सवाल कर दिया कि क्या उन्होंने बांग्लादेश के लिए कुछ नहीं किया ?

सवाल ये है कि  क्या कोई शरणार्थी भारत भूमि पर रहकर कोई राजनीतिक गतिविधि कर सकता है ? यदि नहीं तो भारत सरकार ने शेख हसीना को आन लाइन समबोधन करने की इजाजत और सुविधा कैसे मुहैया कराई ? शेख हसीना को भारत सरकार ने अतिथि वीजा दिया है न कि  सियासत करने की छूट दी है। और यदि शरणार्थी के रूप में सियासत करने की इजाजत दी है तो तय मानिये कि  ये राष्ट्रिय हितों के खिलाफ है।  आने वाले कल में भारत विरोधी तत्व भी इसी तरह दूसरे देश में शरण लेकर भारत विरोधी गतिविधियों को शह देंगे। 

भारत की सरकार न अमेरिका से रिश्तों को लेकर स्पष्ट है और न बांग्लादेश से   रिश्तों को लेकर गंभीर है।  भारत सरकार को अपनी सम्प्रभुता की फ़िक्र नहीं है ।  भारत भूमि पर अमेरिका के सैन्य विमान ऐसे बेख़ौफ़ होकर उतर  रहे हैं जैसे भारत अमेरिका का कोई उपनिवेश हो। भारत के रूपये की साख पहले ही गिर चुकी है और बची खुची साख को भारत की विदेश नीति मिटटी में मिलाये दे रही है। भारत सरकार को शायद समझ में नहीं आ रहा है कि  उसे करना क्या चाहिए   और सरकार कर क्या रही है। ऐसा असमंजस देश ने न पहले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में देखने  को मिला और न पहले,दूसरे  और तीसरे मौके पर लोकसभा में। 

हम न विदेश नीति जानते हैं  और न चाय नीति ,लेकिन हम इतना जानते हैं कि  कोई भी शरणार्थी किसी दूसरे देश में बैठकर राजनीति नहीं कर सकता ।  हसीना के ई-सन्देश के बाद ढाका में भारत के कार्यवाहक उच्चायुक्त पवन बाधे को सौंपे गए विरोध पत्र के जरिए मंत्रालय ने बांग्लादेश की गहरी चिंता, निराशा और गंभीर आपत्ति से अवगत कराया. बांग्लादेश का कहना है कि "ऐसे बयान बांग्लादेश में लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं." मंत्रालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि उनकी ऐसी गतिविधियों को बांग्लादेश के लिए शत्रुतापूर्ण कृत्य माना जाता है और यह दोनों देशों के बीच स्वस्थ संबंध स्थापित करने के प्रयासों के लिए अनुकूल नहीं है।  जाहिर है कि  हसीना को भारत में मिली छूट से भारत और बांग्लादेश के पहले से खराब हो चुके रिश्ते और खराब हो जायेंगे। 

दुर्भाग्य की बात ये है कि  हमारी सरकार अपनी विदेश नीति के किसी भी पहलू पर संसद में बात नहीं करना चाहती ।  मामला चाहे अमेरिका से भारतियों की अपमानजनक वापसी हो या दिल्ली में रहकर शेख हसीना का सियासत करने का । अमेरिका से अवैध प्रवास के आरोप में भारत भेजे गए लोगों के मुद्दे पर विदेशमंत्री एस जयशंकर प्रसाद का वक्तव्य भी घोर निराशाजनक रहा।  उन्होंने भारत की जन भावनाओं को समझे बिना अमेरिका सरकार के व्यवहार का एक तरह से समर्थन ही किया।  इससे लगता है कि  आम भारतीय की भावना भले ही आहत हुई हो किन्तु भारत सरकार की आत्मा को कोई तकलीफ नहीं है।  आत्मा यदि संगदिल हो तो उसे कोई तकलीफ आखिर कैसे हो सकती है ?

भारत देश कि  प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की विदेश नीति पर चलकर 67  साल तक कामयाब रहा ।  यहां तक कि  भाजपा की पहली गठबंधन सरकार के मुखिया पंडित अटल बिहारी वाजपेयी ने भी नेहरू की विदेशनीति का त्याग नहीं किया ,किन्तु महापंडित नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही नेहरू की विदेश नीति को ही नहीं ,बल्कि अपने से पहले की  हर नीति को त्याग दिया और नतीजा आप सबके सामने है।  आज भारतियों के साथ जो व्यवहार अमेरिका ने किया है वो एक न भूलने वाला कृत्य है।भारत सरकार ने इस बात का कोई खंडन नहीं किया कि  भारत भेजे गए भारतियों के साथ अमेरिका ने कैदियों जैसा अमानवीय व्यवहार पहली बार किया है।  

बहरहाल हमारी सरकार एक के बाद एक आत्मघाती कदम उठाती जा रही है। परम स्वतंत्र न सर पर कोई की तरह ।  गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में हमारे प्रधानमंत्री के चरित्र को लेकर बहुत पहले लिखा था कि  -

परम स्वतंत्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई॥

भलेहि मंद मंदेहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू॥

अर्थात हमारे प्रमुख सेवादार  परम स्वतंत्र हैं , उनके सिर पर तो कोई है नहीं, इससे जब जो मन को भाता है,वही करते हो। भले को बुरा और बुरे को भला कर देते हैं । हृदय में हर्ष-विषाद कुछ भी नहीं लाते। हमारे मुखिया ने अपने आपको पहले ही नान वायलॉजिकल घोषित कर दिया था। स्थिति ये है कि  अब 

डहकि डहकि परिचेहु सब काहू। अति असंक मन सदा उछाहू॥

करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा। अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा ॥

 अर्थात वे सभी सहयोगी दलों को  ठग-ठगकर परक गए हैं और अत्यन्त निडर हो गए हैं , इसी से (ठगने के काम में) मन में सदा उत्साह रहता है। शुभ-अशुभ कर्म तुम्हें बाधा नहीं देते। अब तक उन्हें  किसी ने ठीक नहीं किया। जनता भी इस मामले में गफलत में हैऔर आरएसएस भी ।  विपक्ष भी सरकार को न पटरी पर ला पा रहा है और न सत्ताच्युत कर पा रहा है। इसीलिए अमेरिका भी अपनी मन की कर रहा है और शेख हसीना भी। बेहतर होता कि  शेख हसीना के स्थान पर हमारे अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री बांग्लादेश की ताजा घटनाओं पर संसद  में बोलते ।  वे अमेरिका को आँख दिखाते जैसे की दूसरे देशों ने दिखाई ,लेकिन ये न हुआ और न आगे होने की कोई उम्मीद है।उनसे बेहतर तो अटल जी थे जिन्होंने अमेरिका कि प्रतिबंधों की परवाह न करते हुए इंदिरा गाँधी की तरह देश में परमाणु परिक्ष्ण कर दिखाया था। बहरहाल  प्रधानमंत्री 13  फरवरी को अमेरिका जायेंगे लेकिन अमेरिका सरकार के रवैये के खिलाफ अपना रोष प्रकट करने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प से उस तरह हथकड़ियां लगाकर नहीं मिलेंगे जैसे विपक्ष संसद में विरोध प्रकट करने उपस्थित हुआ था। वे हमेशा की तरह ट्रम्प को झप्पी देंगे। यही झप्पियाँ भारत को महंगी पड़ने वाली हैं। 

@ राकेश अचल

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

जंजीरों में जकड़ी भारतीयों की अस्मिता

 

पिछले 45 साल की अपनी पत्रकारिता की यात्रा में मैंने पहले कभी ऐसे मंजर नहीं देखे जैसे 5 फरवरी  को देखना पड़े ।  जंजीरों में जकड़े 105 भारतीयों  को जंजीरों से जकड़े हुए अमरीकी सैन्य विमान से उतरते देखना 2014  के बाद मिली भारत को असली आबादी के बाद का सबसे खौफनाक और अपमानजनक मंजर  था। किसी देश में अवैध प्रवास सचमुच एक अपराध है। हम क्या सारी दुनिया में इसे घुसपैठ कहा जाता है ,लेकिन  क्या   किसी और देश ने  भारतीय  घुसपैठियों  को इतना  बेआबरू कर अपने  देश से निकला है ?

घुसपैठ अकेले अमेरिका की समस्या नहीं है। ये एक विश्वव्यापी समस्या है और इस समस्या से हर देश अपने तरीके से निबटता भी है। ये बात और है कि भारत में घुसपैठ से निबटना भारत सरकार को वैसे नहीं आता ,जैसे अमेरिका को आता है।  अमेरिका में निजाम बदलने के एक पखवाड़े के बाद ही ट्रम्प प्रशासन ने भारतीय घुसपैठिओं की पहली खेप का निर्वासन कर उन्हें  कैदियों के रूप में भारत भेज दिया। अमेरिका में अवैध भारीय प्रवासियों की वास्तविक संख्या 2  लाख बताई  जाती है ,लेकिन 18  हजार तो बाकायदा अमेरिका की जेलों में पड़े हुए है।  इतने घुसपैठिये तो भारत में भी बांग्लादेश और म्यांमार के नहीं होंगे। 

अमेरिका ने भारतीय घुसपैठियों को निर्वासित कर दिया इस पर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती किन्तु उन्हें जिस तरह युद्धबन्दियों की तरह हथकड़ियों में जकड़ कर भारत भेजा गया ,वो भी सैन्य विमान से ,ये आपत्तिजनक है। खेद है कि  भारत ने इसको लेकर अपनी आपत्ति दर्ज नहीं कराई। भारत अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए अपना विमान भेज सकता था। भारत ने अपने नागरिकों को अतीत में यूक्रेन और सीरिया से निकालने के लिए अपने विमान ही नहीं बल्कि अपने मंत्री तक भेजे हैं। लेकिन अमेरिका में अपने ही लोगों को लेने जाने से भारत डर गय। भारत मैक्सिको की तरह अमेरिका का विरोध भी दर्ज नहीं करा पाया ,अमेरिकी विमान को रोकना तो दूर की बात है।  

भारत में बांग्लादेशी हिन्दुओं पर अत्याचार के विरोध में धरना-प्रदर्शन करने वाले हिन्दू संगठन इस समय भूमिगत हैं जबकि अमेरिका के केलिफोर्निया में ही लोगों ने अमरीकी आव्रजननीति का विरोध किया। भारत में अमेरिका के कदम के खिलाफ किसी ने कोई विरोध नहीं किया। उलटे देश के प्रधानमंत्री ने उसी दिन गंगा में डुबकी लगाईं जिस दिन अमेरिका ने निर्वासित भारतीयों की पहली खेप भारत भेजी।  दुर्भाग्य की बात ये है कि  भारत सरकार ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में डूबने से बचाने   के लिए अमेरिका के सैन्य विमान को दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतारने के बजाय अमृतसर भेज दिया। 

भारत -अमेरिका संबंधों के बारे में एक दिन पहले संसद में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को कोसने वाले देश के प्रधानमंत्री ने देश को नहीं बताया की देश आजाद होने के बाद 1947  से 2013  तक अमेरिका ने कितने भारतीय प्रवासियों को कैदियों की तरह अपने सैन्य विमान में भरकर भारी भेजा ? मुझे लगता है कि  भारत का इस घटना से जितना अपमान वैश्विक जगत में 5  फरवरी 2025  को हुआ है उतना पहले कभी नहीं हुआ।  न अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में ,न डॉ मनमोहन सिंह के जमाने में और न नेहरू,इंदिरा और मिस्टर क्लीन राजीव गाँधी के जमाने में। उस जमाने में प्रधानमंत्री शतुरमुर्ग की तरह न रेत में सर छिपाते थे और न मोदी जी की तरह गंगा में डुबकी लगाते थे। बराबरी से बात करते थे।  बेहतर होता कि  मोदी जी अमेरिका की इस कार्रवाई के विरोध में अपनी 13  फरवरी से प्रस्तावित यात्रा ही रद्द कर देते। लेकिन इसके लिए साहस चाहिए ,भारतीय स्वाभिमान की रक्षा का संकल्प चाहिए। मोदी कि पास सातवां बड़ा थोड़े ही है।

आपको बता दे कि  अमेरिका में अल सल्वाडोर के 7.5 लाख, भारत के 7.25 लाख, ग्वाटेमाला के 6.75 लाख और होंडूरास के 5.25 लाख अवैध प्रवासी रहते हैं। अमेरिका में फ्लोरिडा, टेक्सॉस, न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, मैसाच्युएट्स , मैरीलैंड और कैलिफोर्नियां ऐसे शहर हैं, जहां सबसे ज्यादा अवैध प्रवासी रह रहे हैं। अमेरिका में शायद ही कोई चीनी नागरिक अवैध रूप से रहता हो ,जबकि चीन भारत से आबादी के मामले में पीछे है।लेकिन चीन इस मामले में शायद भारत से ज्यादा सतर्क है। अमेरिका घुसपैठियों के मामले में कितना सख्त है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि  घुसपैठियों की तलाश का काम सेना से कराया  जा रहा है ।  अमेरिका में भारतीय घुसपैठियों की तलाश के लिए गुरुद्वारों तक की तलाशी ली गयी है। 

मुझे नहीं लगता कि  भारत के मौजूदा नेतृत्व में इतनी तथा है जो वो भारतीयों के निर्वासन के मुद्दे पर अमेरिका से सीधा मुकाबला कर सके। यदि भारत ने समय रहते अपना रवैया  न बदला तो आप देखेंगे कि  आने वाले दिनों में हर दिन देश के किसी न किसी हवाई अड्डे पर अमेरिका का कोई न कोई सैन्य विमान निर्वासित भारतीयों की खेप लेकर उतरता दिखाई देगा। 2014  के बाद आजाद हुए अंधभक्त इस तरह के अपमानजनक मंजर देखना चाहते हैं तो शौक से देखें, लेकिन शेष देश को अमेरिका की इस कार्रवाई के बारे में  अपने देश की सरकार को  विवश करना चाहिए।  इस समय देश की इंदिरा गाँधी जैसे नेतृत्व की जरूरत है जो अमेरिका की आँख  में आंख डालकर बात कर सके और अवैध प्रवासन के मुद्दे को मानवीय आधार पर सुलझाने का हौसला दिखा सके। 

 अमेरिका से वापस आए भारतीय लोगों को बेड़ियों से जकड़ कर लाया गया।  अमेरिकी सरकार की ओर से ऐसे सलूक पर मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने कहा है कि मामले को लेकर वो विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात करेंगे। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर जिस तरह से ठंडी प्रतिक्रिया दी है उससे बात बनने वाली नहीं है ।  कांग्रेस  को इस मुद्दे पर सड़कों पर लड़ाई लड़ना चाहिए। भारत से ज्यादा बड़ा कलेजा तो कोलंबिया का है ।  अमेरिका ने जब कोलंबिया के अवैध प्रवासियों को अमेरिकी सेना के विमान से उनके देश वापस भेजने की घोषणा की तो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेड्रो ने इसका विरोध किया। सैन्य विमानों में जबरन लोगों को बैठाकर दूसरे देश की ज़मीन पर उतरने को संप्रभुता से जोड़कर भी देखा जाता है।  इसी वजह से मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम ने इस मुद्दे को लेकर बड़ा बयान दिया था लेकिन भारत को अमेरिका के सैन्य विमान का भारत की जमीन पर उतरना समप्रभुता पर हमला नहीं लगता। हे राम !

@ राकेश अचल

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मेरी गजल

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आंधी के पीछे तूफान, चले आए

बिना बुलाए घर मेहमान, चले आए

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सात समंदर पार गए थे चुपके से

चूर - चूर करके अरमान, चले आए

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खाली हाथ गए थे, खाली लौटे हैं

छोड - छाडकर हर सामान, चले आए

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कोई माई - बाप नहीं है दुनिया में

साथ लिए केवल अपमान, चले आए

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बहुत भरोसा था अपने आकाओं पर

निकले सारे बेईमान, चले आए

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मजबूरी में जान हथेली पर रक्खी

सीधे थे शायद भगवान, चले आए

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किसे दिखाएं जख्म खोलकर सीने के

गिरवी रख आए सम्मान, चले आए

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@ राकेश अचल

बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष उषा अग्रवाल ने सीपी कॉलोनी मुरार में सीसी रोड का भूमिपूजन किया

रविकांत दुबे 


ग्वालियर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री आशीष उषा अग्रवाल ने बुधवार को वार्ड 25 के लाल साहब का बगीचा, सीपी कॉलोनी मुरार में सीसी रोड का भूमिपूजन किया। प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री अग्रवाल ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि सीसी रोड भूमिपूजन इस क्षेत्र के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस क्षेत्र के पार्षद श्री संजू परमार के विशेष योगदान से क्षेत्र के लोगों को सड़क की सौगात मिली है, इसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूं। 

उन्होंने कहा कि भूमिपूजन न केवल क्षेत्र की बुनियादी सुविधाओं को बेहतर करेगा, बल्कि यहां के लोगों के लिए एक सुविधाजनक और सुरक्षित यातायात व्यवस्था भी स्थापित करेगा। इस प्रकार के विकास कार्य पार्टी और सरकार के समर्पण को दर्शाते हैं, जो हमेशा जनता के भले के लिए काम करती है। इस अवसर पर श्री राजेश चौहान, चच्चू परमार, श्री केके पचौरी, श्री कुशलपाल भदौरिया, श्री सौरभ सिकरवार सहित पार्टी पदाधिकारी व कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

एक आम बजट की तीन -तीन आहटें

ये महाकुम्भ काल है।  पूरा देश या तो संगम में डुबकियां लगा रहा है या बजट में।  बजट यानि आम बजट। मैंने जबसे होश सम्हला है तभी से संगम को भी देख रहा हूँ और आम बजट को भी ,लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि एक आम बजट आने से पहले जनता को राष्ट्रपति अभिभाषण   के माध्यम से परोसा गया। दूसरा बजट खुद केंद्रीय वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण   ने निर्मल हृदय से पेश किया और वही बजट तीसरी बार माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद  प्रस्ताव का उत्तर देते हुए पेश किया।प्रधानमंत्री जी का उत्तर संगीतमय श्रीमदभागवत कथा जैसा था। उनके हर वाक्य पर सत्तारूढ़ दल के सांसद मेजें बजा रहे थे।  अब प्रधानमंत्री जी की पीठ तो कोई सीधे ठोंक नहीं सकता ,इसलिए मेजें  बजाना ही पहला और अंतिम विकल्प बचता है। 

आप प्रधानमंत्री जी को संसद में बोलते देखिये या किसी समुद्र तट पर डोलते हुए देखिये। कुम्भ में डुबकी लगते हुए देखिये या किसी को झप्पी देते हुए देखिये ।  वे स्थितिप्रज्ञ दिखाई देते हैं।  मैंने प्रधानमंत्री जी के भाषण से पहले लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के अलावा लगभग हर दल के सांसदों  का भाषण सुना । सत्तापक्ष के भाषणों में स्तुतिगान स्वाभाविक था ,वे अपने प्रधानमंत्री या सरकार से कोई प्रश्न नहीं कर सकते थे,लेकिन विपक्ष के लगभग हर सदस्य ने सरकार से कोई न कोई सवाल किया। मजेदार  और खास बात ये रही कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने किसी संसद के किसी सवाल का जबाब नहीं दिय।  देते भी कैसे ? उन्होंने किसी को बोलते हुए तो प्रत्यक्ष रूप से सुना ही नहीं।  केवल उन्हें अपने कक्ष  में बैठकर सुना जिनसे सवालों के जबाब में सवाल करना थे। 

प्रधानमंत्री ने धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए पूरा का पूरा बजट दोहरा दिया ,लेकिन अपनी और से छोंक-बघार लगते हुए।  मुझे हैरानी हुई कि धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए भी उनके  सिर पर प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू,श्रीमती इंदिरा गाँधी ,राजीव गाँधी और प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी पूरी तरह ही नहीं बुरी तरह से सवार थे।  ,माननीय  प्रधानमंत्री जी ने 14  वीं बार संसद में धन्यवाद प्रस्ताव का उत्तर दिया है और हर बार अपने विरोधियों को निरुत्तर भी किया है कोई उत्तर न देकर। प्रधानमंत्री जी का भाषण उबाऊ नहीं था ,बड़ा रोचक था।  उन्होंने  कहा कि उन्होंने झूठे नारे नहीं ,बल्कि सच्चा विकास दिया।  मोदी जे इस कथन पर मै तो नहीं लेकिन मेरे साथ ही टीवी पर मोदी जी को बोलते सुन और देख रही मेरी पत्नी अवश्य हंसी। देश में और भी लोग हैं जो मेरी पत्नी की तरह हँसे होंगे। 

प्रधानमंत्री जी के भाषण की ख़ास बात ये रही कि उन्होंने महात्मा गाँधी के 'ट्रस्टीशिप ' के सिद्धांत की बात की।  उन्होंने डॉ भीमराव अम्बेडकर के आरक्षण की बात कही , उन्होंने ओबीसी ,अजा,जजा  की बात कही। पहली बार उनके भाषण में न दीनदयाल उपाध्याय  आये और न श्यामाप्रसाद मुखर्जी ।  अटल जी या आडवाणी जी के तो आने का सवाल ही नहीं उठता। उनके भाषण में अरविंद केजरीवाल का शीशमहल भी आया। आना ही था ,क्योंकि दिल्ली  विधानसभा का चुनाव जो हो रहा है। बिहार का मखाना भी उनके  प्रवचन का हिस्सा था ,क्योंकि बिहारियों की बैशाखी के सहारे उनकी सरकार चल रही है। 

प्रधानमंत्री  जी के भाषण में पूरा आम बजट अक्षरश:दोहराया गया। उनके भाषण में जो नहीं था तो वो था कुम्भ का हादसा।  उनके भाषण में यदि कुछ नहीं था तो अमेरिका से अवैध प्रवास की वजह से हथकड़ी लगाकर लौटाए जा रहे  भारतीयों का मुद्दा ।  उनके बजट में वो चीन भी नहीं था जिसका जिक्र राहुल गाँधी और अखिलेश यादव ने बार-बार किया।  उनके भाषण में बुलेट ट्रेन नहीं थी। उनके भाषण में अग्निवीर  नहीं थे  उनके भाषण में लद्दाख और दमन- दीव के संसद के सवालों का कोई उत्तर नहीं था। उनके भाषण में सवाल करने वालों के सवालों के जबाब में सवाल थे ,सिर्फ सवाल। हर सवाल का जबाब ही सवाल था।  लग रहा था कि जैसे माननीय कोई फ़िल्मी गीत सुनकर आये थे ,की किसी सवाल का जबाब सवाल के रूप में ही देना है। 

धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्रपति के अपमान का जिक्र किया। परिहास भी किया।  विदेश नीति पर बोलते हुए शशि थरूर को इंगित कर वे हँसे भी। लेकिन उन्होंने नेहरू को कोसते हुए अपनी विदेश नीति की खामियों  पर कोई बात नहीं की।उन्होंने इन आरोपों का खंड भी नहीं किया की तरमु साहब के शपथ समारोह का निमंत्रण हासिल करने के लिए उन्होंने विदेश मंत्री को अमेरिका भेजा था । मोदी जी ने   न बांग्लादेश की बात की ,न चीन की बात की और न अमेरिका की बात की। उन्होंने किसानों के कल्याण   की बात की लेकिन उनके आंदोलन की बात नहीं की। प्रधानमंत्री जी ने देश की आम जनता और किसानों को बता दिया कि भले ही वे जनता के खातों में पंद्रह लाख रूपये न भेज पाए हों लेकिन उन्होंने अपनी तमाम योजनाओं के जरिये जनता के लाखों रूपये बचा दिए हैं। उन्हने दावा किया कि आयुष्मान योजना के जरिये उन्होंने हर भारतीय के कम से कम 70  हजार रूपये   सालाना  बचाये ,जन आरोग्य औषधालयों के जरिये 30  हजार रूपये बचवाये, नल से जल देकर 40  हजार रूपये की बचत  कराईअन्यथा कुएं का पानी पीकर होने वाली बीमारियों पर ये पैसा खर्च करना पड़ता।  ,सौर ऊर्जा के तहत बिजली देकर 30  हजार रूपये बचवाये। किसानों को तमाम योजनाओं का लाभ देकर कम से कम 30  हजार   रूपये साल की बचत कराई है।  

प्रधानमंत्री जी ने संविधान के सम्मान की बात कही ।  प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने जहर की खेती नहीं की। प्रधानमंत्री जी ने कहा कि उन्होंने फर्जीवाड़ा रोका,घोटाले नहीं होने दिया ।  लेकिन प्रधानमंत्री जी ने वक्फ बोर्ड में तोड़-मरोड़ पर कुछ नहीं कहां ।  मुसलमानों के लिए तीन तलाक विधेयक  की बात कही लेकिन ये नहीं कहा कि उनकी पार्टी किसी मुसलमान को चुनाव लड़ने का मौक़ा नहीं देती। दरअसल प्रधानमंत्री जी को इतना लंबा भाषण इसलिए देना पड़ा क्योंकि उनकी सरकार की   तमाम उपलब्धियां  इस बजट में माध्यम वर्ग को कर छूट की सीमा 12  लाख करने से बनी सुर्ख़ियों में कहीं छिप गयीं थीं।  बहरहाल जो आप नहीं देख पाए, नहीं सुन पाए वो सब संक्षेप में मैंने आपको बताया है।यदि आपकी मर्जी मेजें बजाने की है तो मजे बजाइये और नहीं तो अपना सर बजाइये। 

@ राकेश अचल

पिछोर अथवा खनियाधाना को जिला बनाया जाए - डॉ अग्र

ग्वालियर । दलित आदिवासी महापंचायत के संस्थापक संरक्षक डॉक्टर जवर सिंह अग्र मैं पिछोर को अथवा कन्या दाने को जिला बनाने की मांग की है   शिवपुरी जिले की विधानसभा पिछोर khaniyadhana को जिला बनाने की मांग को लेकर मेरे द्वारा भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया  को सितंबर 2024 में पत्र दिया था, जिस पर से सिंधिया ने कलेक्टर शिवपुरी को पत्र लिखकर निर्देशित किया था कि जिला शिवपुरी के खनियाधाना को जिला बनाने की कार्यवाही करने के साथ-साथ ही खनियाधाना में सीवर पानी की पाइपलाइन डालने के साथ ही इस समस्या का निराकरण करने के निर्देश दिए हैं ।

 श्री  सिंधिया ने भी खनियाधाना अथवा पिछोर को लोकसभा चुनाव से पहले लोकसभा के चुनाव प्रचार में यह घोषणा की थी कि आपके जिले के खनियाधाना अथवा पिछोर को जिला बनाया जाएगा ।  अब परिसीमन की चर्चा है कि पिछोर विधानसभा को अशोकनगर जिले में शामिल किया जा रहा है जो पिछोर विधानसभा की जनता के साथ अन्याय होगा डॉक्टर अग्र ने श्री सिंधिया और प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग है कि पिछोर को अथवा खनियाधाना को जिला बनाने की कार्यवाही करें और इस क्षेत्र को जिला शिवपुरी में ही रहने दे ।



मंगलवार, 4 फ़रवरी 2025

दिल्ली विधानसभा चुनाव ,कहाँ बंधेंगे बसंत ?


देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार थम  चुका है। आप जब ये पंक्तियाँ पढ़ रहे होंगे तब दिल्ली की जनता अपने  का प्रयोग कर रही होगी।  दिल्ली में इस बार विधानसभा चुनाव दिलचस्प हैं ,क्योंकि इस बार दिल्ली में ' सत्ता के छींके ' पर तमाम बिल्लियों की नजर है।  अब देखना ये है कि भाजपा बिना योगी आदित्यनाथ के दिल्ली में सत्ता का छींका अपने कब्जे में कर पाती है या नहीं। महाकुम्भ की वजह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं ले पाए हैं।
दिल्ली विधानसभा का चुनाव इस बार दिलचस्प इसलिए है क्योंकि इसमें जो दोस्त थे , वे दोस्त नहीं रहे और जो दुश्मन थे वे एक न होकर भी एक साथ सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी पर हमलावर हैं।  दिल्ली विधानसभा का चुनाव इस बार आम आदमी पार्टी  के साथ ही भाजपा और कांग्रेस के लिए भी नाक का सवाल बना हुआ है।  भाजपा यदि चुनाव नहीं जीतती तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित लोकप्रियता पर बट्टा लग जायेगा ।  कांग्रेस चुनाव नहीं जीतती तो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी एक अकुशल योद्धा साबित हो जायेंगे और आम आदमी पार्टी  यदि सत्ताच्युत होती है तो अरविंद केजरीवाल का शीराजा बिखर  जाएगा।इस चुनाव में परीक्षा मैनेजमेंट,मशीन और मशीनरी की भी होना है।
मेरा अपना आकलन है कि  इस बार कोई जीते या न जीते लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अरवविंद केजरीवाल नहीं जीतने वाले ।  भाजपा ने उन्हें हारने के लिए वो ही फार्मूला इस्तेमाल किया है जो 2019  के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के तत्कालीन श्रीमंत   ज्योतिरादित्य सिंधिया को हारने के लिए किया गया था। सिंधिया मध्यप्रदेश में अजेय माने जाते थे।अरविंद केजरीवाल को हराये बिना भाजपा दिल्ली जीत भी नहीं सकती। उन्हें भाजपा और कांग्रेस दोनों ने घेर लिया है। वे दोहरे चक्र्व्यूह में फंसे अभिमन्यु हैं। उन्हें ये चक्रव्यूह भेदना आता है लेकिन शायद ही वे कामयाब हो पाएं ।  इस चुनाव में टीम केजरीवाल के तीन प्रमुख योद्धाओं की शामत आने वाली है ,ये हैं पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ,मुख्यमंत्री  आतिशी मेम ,पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया। ये तीनों हारे और आम आदमी पार्टी जीत भी गयी तो कोई मतलब नहीं है।
दिल्ली में फैसला उन अल्पसंख्यकों के हाथों में है जो पिछले 44  साल से भाजपा के निशाने  पर हैं।दिल्ली में विधानसभा चुनाव के मतदान  से दो दिन पहले प्रमुख राजनीतिक दलों, खासकर सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की नजरें मुस्लिम बहुल मानी जाने वाली करीब 22 सीटों पर टिकी हैं। इनमें से पांच सीट सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला सीट से अक्सर मुस्लिम उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंचते रहे हैं, भले ही वे किसी भी दल से हों।
दिल्ली में   बाबरपुर, गांधीनगर, सीमापुरी, चांदनी चौक, सदर बाजार, किराड़ी, जंगपुरा व करावल नगर समेत 18 सीट ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 10 से 40 फीसदी मानी जाती है और इन क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका अदा करता रहा है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, दिल्ली में मुस्लिम आबादी करीब 13 फीसदी थी। जानकार मानते हैं कि इस बार मुस्लिम मतदाता सत्तारूढ़ ‘आप’ और कांग्रेस को लेकर असमंजस में है।चुनाव से ठीक पहले संसद के बजट सत्र में मुस्लिम वक्फ बोर्ड को लेकर जो कुछ हो रहा है उसका  असर भी दिल्ली विधानसभा चुनाव पर पड़ने वाला है। प्रयागराज के महाकुम्भ में भगदड़   में हुई मौतें भी दिल्ली के मतदाता को प्रभावित कर सकतीं हैं।आम बजट और  दिल्ली में भाजपा के पास योगी आदित्यनाथ की अनुपस्थिति भी एक बड़ा कारक होने वाली है। मतदान कि दिन संगम में प्र्धानमंत्र की प्रस्तावित डुबकी भी अंतिम अस्त्र साबित हो सकती है। हालाँकि प्रधानमंत्री यदि गंगा कि बजाय यमुना में डुबकी  लगते तो शायद उन्हें ज्यादा पुण्य फल मिलता।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार यमुना,जहर शराब के अलावा अजा,जजा और पिछड़ावर्ग भी एक चुनावी मुद्दा रहा है।  केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का सबसे बड़ा ओबीसी नेता बता चुके हैं।  अब देखना है कि  किरेन कीबात सच साबित होती है या नहीं। दिल्ली विधानसभा की चुनाव हालाँकि बहुत छोटा चुनाव है किन्तु इस चुनाव ने सभी दलों और नेताओं को दिन में ही तारे दिखा दिए हैं। ये चुनाव महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों से भी ज्यादा दिलचस्प हो गए हैं। भाजपा को दिल्ली में दिया तले   का अन्धेरा  दूर करना है और कांग्रेस को दिल्ली जीतना नहीं है केवल अरविंद केजरीवाल को सबक सिखाना है,क्योंकि केजरीवाल ने विपक्षी एकता में सेंध लगाने का पाप किया है ।  अब दीखिये 8  फरवरी को कौन सा दल और किस दल के नेता बसंत मनाते हैं ?
@ राकेश अचल

सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

गंगा के घाटन में ,काफिर बसंत है

कल भी बसंत था,आज भी बसंत है।  बसंत इसलिए है क्योंकि इसका कभी अंत नहीं होता।  ये बारह साल में नहीं बल्कि हर साल आता है और हर जगह आता है।  ये मजहब नहीं देखता । बसंत धर्म निरपेक्ष है।  हिन्दुओं के यहां भी दस्तक देता है और मुसलमानों के यहाँ भी ।  सिखों के यहां भी और ईसाइयों के यहां भी। बसंत का इन्तजार सभी को होता है। आइये पहले अपने-अपने ठिकाने पर बसंत का स्वागत करें, इस्तकबाल करें ,खैर-मकदम करें।
मुझे अबकी बसंत पिछले बसंत से एकदम अलग लग रहा है। अलग है , इसलिए अलग लग रहा है।  इस बार का बसंत प्रयागराज में बहने वाली गंगा के तटों पर भी अलग है और अल्लाहबाद की मस्जिदों में भी अलग है।  जो लोग पुण्य सलिला गंगा में डुबकी लगाने प्रयागराज आ रहे हैं उन्हें यदि भगदड़ के दौरान कहीं जगह नहीं मिली तो उन्हें  अल्लाहबाद की मस्जिदों ने अपना मेहमान बना लिया। उनका हर तरह से ख्याल रखा। सनातनियों की सेवा करने के लिए किसी योगी सरकार ने इन मस्जिदों को नहीं खुलवाया ।  ये अपने -आप खुलीं।  इंसानियत के नाते खुली।  योगी सरकार के लिए तो ये मस्जिदें विधर्मियों की इबादतगाहें हैं। यहां सनातनी झाँक भी लें तो अपवित्र हो जाएँ। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।  मस्जिदों में शरण लेने वाले किसी भी सनातनी का धर्म भ्रष्ट नहीं हुआ।
अल्लामा इकबाल इसीलिए कहकर गए कि-' मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना।'  आपस में बैर करना तो सियासत सिखाती है ।  मजहब का नाम लेकर। श्रीमद भागवत में भी विधर्मियों के घरों पर बुलडोजर चलाये जाने का कोई निर्देश नहीं है ,लेकिन ये योगी कि भागवत में है।   डॉ मोहन भागवत की भागवत में है। उनके लिए काफिर तो काफिर है।  उसे बर्दाश्त किया ही नहीं जा सकत।  मोहन की भागवत हो या योगी की या धीरेन्द्र  शास्त्री की चौपटिया , सभी में ये मुल्क केवल और केवल सनातनियों का मुल्क है ।  हिन्दुओं का मुल्क है ।  हिन्दुओं की ही बापौती है इस मुल्क पर।  लेकिन आपाद स्थितियां ये प्रमाणित करती है कि ये मुल्क सभी का है।  जितना हिन्दुओं का ,उतना ही मुसलमानों का,उतना ही सिखों का,उतना ही ईसाइयों का।
मजहब यदि केवल बैर करना सिखाता होता तो मौनी  अमवस्या पर प्रयागराज में हुई भगदड़ के बाद इलाहबाद में फंसे लोगों के लिए मस्जिदों के दरवाजे नहीं खुलते ।  मस्जिदों के दरवाजे बसंत पंचमी पर भी तीसरे शाही स्नान के दिन भी खुले है।  बसंत पंचमी के मौके पर प्रयागराज महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को शहर में ठहराने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मस्जिदों और मदरसों के दरवाजे एक बार फिर खोल दिए हैं. श्रद्धालुओं के लिए इबादतग़ाहों में खास इंतजाम किए गए हैं. उनके ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्थाएं की गई हैं. शहरी इलाके की तकरीबन पचास मस्जिदों - दरगाहों और मदरसों में इंतजाम किए गए हैं।।  मुख्यमंत्री योगी में या किसी अखाड़े में दम हो तो हिन्दू श्रृद्धालुओं से कहे कि वे मस्जिदों में न जाए।  मुसलमानों का आतिथ्य स्वीकार न करें। लेकिन ये मुमकिन नहीं है।
करोड़ों लोग संगम और गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित कर रहे है।  पाप धो रहे है।  मोक्ष का दरवाजा खटखटा रहे हैं है।  वहीं दूसरी तरफ अल्लाहाबाद के हजारों मुसलमान हैं जो बिना गंगा स्नान किये जन्नत की और बढ़ रहे हैं विधर्मी सनातनियों की सेवा कर। इसके लिए किसी  ने फतवा जारी नहीं किया।  इसके लिए इंसानियत ने  प्रेरणा दी।  ऐसा प्रयागराज में ही नहीं हुआ । ऐसा पहली बार भी नहीं हुआ ।  ऐसा हमेशा होता है।  देश कोई आजादी के पहले और बाद के दांगों के समय भी हुआ था।  हिन्दुओं ने मुसलमान  को और मुसलमानों ने हिन्दुओं की रक्षा  की थी।  जो लोग कत्लो-गारद कर रहे थे वे जानवर थे ,इधर के भी और उधर के भी।
संगम  नोज पर भगदड़ के बाद संत समाज के बीच प्रवचन देने आये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में यदि जरा भी अक्ल होती तो वे अकलियत के उन लोगों का आभार जरूर व्यक्त करते जिन्होंने ने मस्जिदों के दरवाजे सनातनियों के लिए खोले।  उन्हें पानी पिलाया। उन्हें  चैन की नींद सोने दिया।  कोई माने या न माने की उत्तर प्रदेश की सरकार आपदा के समय यही नहीं बल्कि जरूरत के समय भी विधर्मियों द्वारा किये गए उपकार और सद्भाव का कर्ज कभी भी नहीं उतार पाएंगे।  योगी तो वे योगी हैं जो कावंड यात्रा के दौरान मुसलमानों के ठेलों और ढाबों तक पर पाबंदी लगा देते हैं। उनसे उदारता और सद्भाव की अपेक्षा करना ही बेमानी है।  वे जब सनातन धर्म के शीर्ष माने जाने वाले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के प्रति उदार नहीं है तो मुसलमानों के प्रति उदार कैसे हो सकते हैं ? वे संगदिल थे ,वे संगदिल हैं और वे संगदिल रहेंगे। लेकिन उनकी संगदिली से बसंत  घबड़ाने वाला नहीं है। वो काफिर ही सही लेकिन प्रयागराज में गंगा के तटों पर भी बिखरा दिखाई देगा और पूरी कायनात में।
बसंत इसी तरह आता रहता है ।  कहीं स्प्रिंग बनकर ,तो कहीं किसी और रूप में।  बसंत  पर हमारे कवियों ने बहुत लिखा है।  मै उसे दुहरा भी नहीं सकता। लेकिन मुझे याद है कि बसंत कूलन में ,कछारन में तो बगरता ही है लोगों के दिलों में भी बगरता है।  बसंत ही है जो नहीं सिखाता  आपस में बैर करना। इसलिए आइये बसंत मनाएं। आप सभी को बसंत  पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें। बसंत  एक दिन का नहीं है। ये एक मौसम है जो पूरी प्रकृति को रंग-बिरंगा करके ही जाएगा। कायाकल्प करना ही इसका धर्म है।
@ राकेश अचल  


शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

दिल्ली में मोदी बनाम केजरीवाल बनाम राहुल

 

दिल्ली विधानसभा का चुनाव है तो मुंबई महापालिका से भी छोटा लेकिन इस चुनाव को जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां आम आदमी पार्टी जैसे छोटे से दल से भिड़ गयीं है ।  इस चुनाव को अब दिल्ली वाले केजरीवाल बनाम मोदी बनाम राहुल होते देख रहे हैं।  सत्तारूढ़ होने की वजह से जहाँ भाजपा ये चुनाव जीतने के लिए साम-दाम-दंड और भेद का इस्तेमाल कर रही है ,वहीं कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी को आस्तीन का सांप मानकर कुचलने में जुटी हुई है। 

सबसे पहले सत्तारूढ़ दल की  बात करते है।  इस चुनाव में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के ऊपर  जितने भी हमले किये हैं उनका बचाव प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और पार्टी  अध्यक्ष जेपी नड्ढा से लेकर पार्टी के हर छोटे बड़े नेता को करना पड़ रहा है। संख्याबल और अनुभव के हिसाब से देखें तो भाजपा के समाने आम आदमी पार्टी अभी भी शैशवकाल में है लेकिन उसका हौवा इतना है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तक को मैदान में उतरना पड़ा है।  पूरे   देश में भाजपा और डबल इंजिन की जितनी भी राज्य सरकारें हैं उनके मुख्यमंत्री भी दिल्ली जितने के लिए अपने -अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे है।  एक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरूर महाकुम्भ हादसे की वजह से दिल्ली नहीं जा पाए। 

भाजपा ने दिल्ली जीतने के लिए अपने सभी आजमाए हुए फार्मूले दिल्ली में भी अपनाये है।  भाजपा ने केंद्रीय चुनाव आयोग का खुलकर दुरुपोग किया है।  पुलिस का इस्तेमाल किया है।  आम आदमी पार्टी पर दबाब बनाने के लिए दिल्ली स्थित  पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के घर छापा मरने की कोशिश की है। आम आदमी पार्टी के 7  पूर्व विधायकों के असंतोष का फायदा उठाते हुए उन्हें पार्टी छोड़कर बाहर आने पर मजबूर कर दिया  है। अब ये सब भाजपा के लिए काम करेंगे। आम आदमी पार्टी सरकार के मुखिया से लेकर पुराने केजरीवाल मंत्रिमंडल के तीन मंत्रियों को जेल की हवा पहले ही खिलाई जा चुकी है ,यहां तक की आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सदस्य संजय  सिंह को भी जेल यात्रा करना पड़ी है। 

अब कांग्रेस की बात करते है।  कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ इंडिया गठबंधन में तालमेल बनाये रखने की बहुत कोशिश की ,लेकिन आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का लिहाज न मप्र विधानसभा चुनाव में किया और न हरियाणा और महाराष्ट्र में। गुजरात में तो किया ही नहीं ,उलटे दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से अपने रिश्ते खराब और कर लिये ।  आम आदमी पार्टी ने भाजपा के भ्रष्ट नेताओं की सूची में लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी को भी जोड़ लिया।आम आदमी पार्टी की इस हरकत के बाद कांग्रेस ने भी आम आदमी पार्टी को आस्तीन का सांप मानकर उसका फन कुचलना शुरू कर दिया है। 

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ही नहीं बल्कि उनकी बहन प्रियंका वाड्रा और पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अब आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर लगातार हमले कर रहे हैं। कांग्रेस भी भाजपा की तर्ज पर केजरीवाल को महाभ्रष्ट बता रही है ।  मुख्यमंत्री आवास को शीशमहल बनाने और शराब घोटाले के आरोप लगा रही है । कांग्रेस  आम आदमी पार्टी को भाजपा की बी टीम बता रही है।  भाजपा ने जहाँ दिल्ली में हिन्दुओं का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है ठीक वैसे ही कांग्रेस ने अल्पसंखयकों को अपने साथ रखने  का प्रयास किया  है। 

दिल्ली में पहली बार विधानसभा का चुनाव साफ़ तौर पर त्रिकोणीय बना है।  दिल्ली में इस बार आम आदमी पार्टी स्पष्ट बहुमत से बहुत दूर खड़ी दिखाई दे रही है। ऐसे में स्थितियां ऐसी बन सकतीं हैं कि  आम आदमी पार्टी को सत्ता में बने रहने के लिए या तो एक बार फिर कांग्रेस के समाने समर्पण करना होगा या सचमुच में भाजपा की बी टीम बनकर रहना होगा।  ये भी हो सकता है कि  यही समस्या भाजपा और कांग्रेस के सामने भी आये। कुल जमा पशोपेश दिल्ली के मतदाता की है। उसे तय करना है कि  वो कौन से भ्र्ष्ट दल की सरकार बनाती है ,क्योंकि आम आदमी पार्टी भाजपा और कांग्रेस को महाभ्रष्ट बता चुकी है ,वहीं कांग्रेस और भाजपा ने आम आदमी पार्टी को समवेत स्वर में महाभ्रष्ट   कहा है।  अर्थात दिल्ली में दूध का धुला कोई दल नहीं है । 

आगामी 5  फरवरी को दिल्ली में मतदान है। उसी दिन प्रधानमंत्री दिल्ली जीत की कामना लेकर प्रयागराज में आयोजित   महाकुम्भ में डुबकियां    लगाने  जायेंगे। उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री को पापमुक्त करने के लिए भी डुबकी लगना है। रहल गाँधी या उनके परिवार ने अपने आपको महाकुम्भ से मुक्त रखा है। शायद उन्हें न मोक्ष की कामना   है और न पापों से मुक्ति की। मुमकिन है कि  वे अपने आपको पापी समझते ही न हों। कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने तो महाकुम्भ में डुबकी  लगा ली है। लेकिन पुण्य लाभ किसे मिलने वाला है इसका पता 8 फरवरी को ही चलेगा।   

आपको बता दें कि दिल्ली   भले ही पूर्ण राज्य नहीं है किन्तु यहां विधानसभा के चुनाव 1952  से ही हो रहे है।  यहाँ के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के चौधरी ब्रम्ह प्रकाश थे। फिर गुरुमुख निहाल सिंह  मुख्यमंत्री बने ।  दिल्ली में 1956  से 1993  तक विधानसभा के चुनाव नहीं हुए और जब 1993  में दोबारा विधानसभा के चुनाव हुए तो 1998  तक भाजपा ही सत्ता में रही ।  इस काल में भाजपा ने मदनलाल खुराना ,साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया। 1998  से 2013  तक दिल्ली पर कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का एकछत्र राज रहा। 2013  में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता छीनी ,और तब से आजतक आम आदमी पार्टी ही दिल्ली की सत्ता में है।  हालाँकि इस बीच दो बार मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में आरोपी बनने के बाद पद छोड़ना पड़ा ।  इस समय दिल्ली में आतिशी मलना खड़ाऊ राज कर रहीं हैं। अब देखना ये है कि  आम आदमी पार्टी लगातार सत्ता में बने रहने का कीर्तिमान  बना पाती है या नहीं ?

@ राकेश अचल

डॉ.रामदास माथोरिया दाम के शिवपुरी जिला अध्यक्ष बने

 

ग्वालियर। दलित आदिवासी महापंचायत (दाम) मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेतृत्व एवं संस्थापक संरक्षक डॉक्टर जवर सिंह अग्र के निर्देशानुसार शिवपुरी जिले के अध्यक्ष डॉ.रामदास माथोरिया को नियुक्त किया गया है। 

 दलित आदिवासियों (अनुसूचित जाति जनजाति) गरीबों के हक- अधिकारो के लिए संघर्ष कर न्याय दिलाने के लिए एक मात्र सामाजिक संगठन दलित आदिवासी महापंचात (दाम) ने डॉ.रामदास माथोरिया को जिला शिवपुरी का नवनियुक्त अध्यक्ष बनाए जाने पर बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं दी। 

   विगत दिनों से अनुसूचित जाति - जनजाति एवं गरीबों पर हो रहे अन्याय अत्याचार शोषण के खिलाफ आवाज उठाएंगे तथा पीड़ितों को न्याय दिलाने का काम संगठन के माध्यम से पुरजोर तरीके से करेंगे। 

पुलिस विभाग से रिटायर्ड हुए अधिकारी कर्मचारियों को एसपी ग्वालियर ने दी विदाई

 

ग्वालियर। पुलिस अधीक्षक ग्वालियर श्री धर्मवीर सिंह,भापुसे द्वारा पुलिस विभाग से सेवानिवृत हुए पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों को विदाई दी गई। इस मौके पर अति पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) श्री निरंजन शर्मा, रक्षित निरीक्षक रणजीत सिंह सिकरवार, निज सहायक एसपी ग्वालियर निरीक्षक(अ) विजय रावत, सूबेदार अनुपम भदौरिया,मुख्य लिपिक नरेन्द्र तुनिया, सउनि(एम) अभिषेक पाराशर सहित कार्यालयीन स्‍टाफ एवं सेवानिवृत हुए पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारी व उनके परिजन उपस्थित रहे।

आज पुलिस कन्ट्रोल रूम ग्वालियर सभागार में पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त हो रहे 13 पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों के लिये विदाई समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें पुलिस अधीक्षक ग्वालियर द्वारा पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हो रहे पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों को प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह देकर विदाई दी गई। कार्यक्रम के समापन पर पुलिस अधीक्षक ग्वालियर ने आज सेवानिवृत्त हो रहे पुलिसकर्मियों को प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह देकर उनके बेहतर स्वास्थ्य व उज्जवल भविष्य की कामना की। पुलिस अधीक्षक ग्वालियर द्वारा सेवानिवृत्त हो रहे सभी अधिकारी एवं कर्मचारियों से उनकी सेवाकाल के दौरान किये गये कार्यो की जानकारी ली गई। 

सेवानिवृत होने वाले पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारिगण इस प्रकार है- निरी कृपाशंकर अवस्थी, सउनि फिलमोन मिंज, सउनि भगवान सिंह, सउनि रणवीर सिंह तोमर, सउनि राजेन्द्र सिंह भदौरिया, सउनि बृजराज सिंह तोमर, सउनि ओमकुमार सिंह, सउनि मोहन सिंह तोमर, सउनि किशन सिंह राणा, प्र.आर सुरेन्द्र सिंह गौड़, प्र.आर महेन्द्र कुमार मिश्रा, प्र.आर कमल सिंह तोमर, प्र.आर अवतार सिंह यादव।

शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

अविमुक्तेश्वरानद की सुनिए दिल्ली वालो


ज्योतिष पीठ द्वारिका के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानद सरस्वती ने महाकुम्भ हादसे में मौनी अमावस्या पर हुई मौतों के लिए सीधे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दोषी करार देते  हुए उन्हें तत्काल पद से हटाने की मांग की है। शंकराचार्य   ने योगी को ' महाझूठा ' भी कहा। अब सवाल ये है कि क्या भाजपा हाईकमान स्वामी अविमुक्तेश्वरानद की बात मानेगी ?

महाकुम्भ से पहले ही कुम्भ मेलों में हादसे होते आये हैं ,लेकिन ये पहली बार हुआ की सरकार ने भगदड़ में हुई मौतों का आंकड़ा  जारी करने में पूरे 18 घंटे का समय लिया। मुख़्यमंत्रो योगी आदित्यनाथ पूरे दिन कहते रहे कि  भगदड़ में कोई नहीं मरा और उनकी बात मानकर ही महाकुम्भ में तीन शंकराचार्यों के अलावा तमाम अखाड़ों ने शाही स्नान किये ,जबकि भगदड़ में कम से कम 30 लोग अपनी जान गंवा चुके थे। स्वामी अविमुक्तेश्रानद का गुस्सा इस बात को लेकर है कि  यदि मुख्यमंत्री ने झूठ न बोला होता तो कम से कम प्रयागराज में मौजूद संत समाज मृतकों के प्रति श्रृद्धांजलि अर्पित करने के लिए उस दिन उपवास तो कर ही लेता। 

प्रयागराज में भगदड़ की न्यायिक जांच करने की बात कही गयी है ,दूसरी तरफ सरकार ने घटनास्थल  पर जेसीबी और ट्रेक्टर लगाकर पूरी सफाई करा दी है ,इससे अब कोई साक्ष्य ही नहीं बचे।  अब खबरें आ रहीं हैं कि  भगदड़ केवल संगम नोज पर ही नहीं एक और घाट पर भी हुई थी ,वहां भी लोग मरे गए ,लेकिन सरकार ने इस सबको छिपा लिया। आखिर सरकार को ऐसा करने की जरूरत क्या पड़ी ? क्या सही संख्या बताने से कोई फांसी पर चढ़ाया जा सकता था ? ये सब सरकार ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए किया , अब उत्तर प्रदेश की सरकार बुरी तरह  फंस गयी है।

 स्वामी अविमुक्तेश्वरानद को आप मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रतिद्वंदी  नहीं कह सकते।   वे मौजूदा चारों  शंकराचार्यों में सबसे ज्यादा मुखर शंकराचार्य हैं।  आपको याद होगा कि  उन्होंने गत वर्ष अयोध्या में राम मंदिर  में प्राण प्रतिष्ठा  समारोह का बहिष्कार भी किया था।  वे गौहत्या पर प्रतिबंध न लगाने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की न सिर्फ आलोचना कर चुके हैं बल्कि उन्हें कसाई तक कह चुके हैं।वे अम्बानी कि बेटे की शादी में भी पहुँच गए थे।  दुर्भाग्य ये है कि  योगी को हटाने की मांग करते हुए वे अकेले है।  शेष तीन शंकराचार्यों के अलावा महाकुम्भ में मौजूद 14  अखाड़ों के पीठाधीश्वरों ने फ़िलहाल चुप्पी साध रखी है।  सत्ता प्रतिष्ठान का विरोध करने का साहस शायद और किसी में है भी नहीं। अखाडा प्रमुखों को तो आप पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का जलाभिषेक करते हुए देख ही चुके हैं। 

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि मौजूदा सरकार को सत्ता में रहने का अब नैतिक अधिकार नहीं है।उन्होंने कहा कि भगदड़ की घटना ने  सरकारी इंतजामों की पोल खोल दी है. अधिकारी महाकुंभ में 40 करोड़ और मौनी अमावस्या पर 10 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का दावा पहले ही कर रहे थे. इस हिसाब से उन्हें व्यापक तैयारी करके रखनी चाहिए थी।कि यह मौजूदा सरकार की बहुत बड़ी विफलता है. ऐसी सरकार को सत्ता में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह गया है.सरकार को खुद ही हट जाना चाहिए या फिर जिम्मेदार लोगों को इस मामले में दखल देना चाहिए. यह ऐसी दुखद घटना है जिसे सनातनियों की सुरक्षा पर सवालिया निशान खड़े किए हैं 

इस मामले में संत समाज का मौन सालता है ,लेकिन नगीना से लोक सभा सांसद और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ ने भगदड़ के लिए बागेश्वर धाम सरकार धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को दोषी बताया है। उन्होंने बागेश्वर बाबा पर मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करने की बात कही है। चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ ने कहा कि एक बागेश्वर बाबा हैं जिन्होंने वहीं कुंभ में खड़ा होकर कहा था कि जो यहां नहीं आएगा मौनी अमावस्या पर जब यहां अमृत वर्षा होगी वो देश्द्रोशी होगा। मैं मानता हूं कि जो लोग वहां गए और अव्यवस्था की वजह से जिनकी जान गई। उन सभी के जिम्मेदार बागेश्वर बाबा है। उनपर मुकदमा करके उन्हें जेल में डाल देना चाहिए।

 प्रयागराज  कुम्भ  में अभी 3  और शाही स्नान होना बाकी  है।  मुझे नहीं लगता कि  भाजपा हाईकमान  भगदड़ के बाद मुख्यमंत्री को हटाने का कोई निर्णय कर पायेगी ।  भाजपा को और आरएसएस को अभी योगी आदित्यनाथ की जरूरत है। वे संघ की मांग में उधर का सिन्दूर हैं जो पिछले अनेक विधानसभा चुनावों में भाजपा के बहुत काम आये हैं। दुर्भाग्य से दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा योगी का इस्तेमाल नहीं कर पायी,क्योंकि प्रयागराज में भगदड़ हो गयी। अब देखना ये है कि  ये देश एक शंकराचार्य के साथ खड़ा होते है या एक योगी मुख्यमंत्री के खिलाफ। आपको बता दें की शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानद पहले भी कह चुके हैं की योगी को मठ और सत्ता में से किसी एक को चुन लेना चाहिए ,क्योंकि कोई योगी यानि संत सत्ता प्रतिष्ठान के लायक नहीं होता और कोई मुख्यमंत्री संत नहीं हो सकता। संत मुख्यमंत्री के रूप में उतना उदार नहीं हो सकता जितना की संत को होना चाहिए। 

महाकुम्भ में भगदड़ का हादसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि 5  फरवरी को महाकुम्भ में आने को लेकर भी सवाल खड़े कार रहा ह।  लेकिन मुझे लगता है की प्रधानमंत्री जी अपने तय समय पर महाकुम्भ में डुबकी लगाएंगे। वे कुम्भ से दूर रहकर अपने आपको देशद्रोही थोड़े ही कहलवाना चाहेंगे।कायदे से तो उन्हें हादसे कि फौरन बाद प्रयागराज में होना चाहिए था लेकिन वे शायद साहस नहीं जुटा पाए। वे यदि हादसे कि बाद प्रयागराज आ जाते तो उनके प्रति जनता का आदर भाव बढ़ता ही।  

@ राकेश अचल

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